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क्या परमेश्‍वर चाहता है कि आप अमीर बनें?

क्या परमेश्‍वर चाहता है कि आप अमीर बनें?

बाइबल क्या कहती है?

क्या परमेश्‍वर चाहता है कि आप अमीर बनें?

“आज से मैं लाखों में खेलूँगा, लाखों में! यह सब भगवान्‌ की मेहर है।”

“मैं बड़े-बड़े सपने देख रहा हूँ। और क्यों न देखूँ, जब स्वर्ग में बैठा ईश्‍वर और सारे स्वर्गदूत मेरे अमीर बनने के सपने बुन रहे हैं।”

“ऊपरवाला हमें मालामाल बनने की ताकत देता है।”

“मैं [बाइबल] की बदौलत दिन-दूनी रात-चौगुनी तरक्की कर रहा हूँ।”

ये बातें दिखाती हैं कि दुनिया के ज़्यादातर धर्म यही सिखाते हैं, ‘धन-दौलत, ऊपरवाले की देन है।’ वे कहते हैं कि अगर हम वह काम करें जो भगवान्‌ के मुताबिक सही है, तो वह हमें इस ज़िंदगी के ऐशो-अराम तो देगा ही देगा, साथ ही मरने के बाद भी इनाम देगा। यह धारणा लोगों के दिलों को भा गयी है और जो किताबें इसे बढ़ावा देती हैं, वे मशहूर हो गयी हैं। लेकिन क्या यह धारणा, बाइबल की शिक्षा से मेल खाती है?

बाइबल कहती है कि हमारा सृष्टिकर्ता “आनंदित परमेश्‍वर” है। इसलिए वह चाहता है कि हम भी खुश रहें और एक सफल जिंदगी जीएँ। (1 तीमुथियुस 1:11; भजन 1:1-3) यही नहीं, वह उन लोगों पर आशीषें बरसाता है, जो उसे खुश करते हैं। (नीतिवचन 10:22) लेकिन आज क्या ये आशीषें सिर्फ रुपये-पैसे के रूप में आती हैं? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें यह जाँचना होगा कि परमेश्‍वर के मकसद के मुताबिक, हम समय की धारा में कहाँ हैं।

क्या यह समय अमीर होने का है?

बीते ज़माने में, यहोवा परमेश्‍वर ने अपने कुछ सेवकों पर धन-दौलत बरसायी। इसकी दो बढ़िया मिसाल हैं, अय्यूब और राजा सुलैमान। (1 राजा 10:23; अय्यूब 42:12) लेकिन परमेश्‍वर का भय माननेवाले कुछ लोग ऐसे भी थे, जिनके पास धन-दौलत के नाम पर कुछ नहीं था। जैसे, यहून्‍ना बपतिस्मा देनेवाला और यीशु मसीह। (मरकुस 1:6; लूका 9:58) इन मिसालों से हम क्या सीखते हैं? बाइबल के मुताबिक, परमेश्‍वर फलाँ वक्‍त पर अपने सेवकों के लिए जो मकसद ठहराता है, उसी के मुताबिक वह उनसे पेश आता है। (सभोपदेशक 3:1) यह सिद्धांत आज हम पर कैसे लागू होता है?

बाइबल की भविष्यवाणी बताती है कि हम इस “दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त” या “आखिरी दिनों में” जी रहे हैं। इस दौर में युद्ध, बीमारियाँ, अकाल और भूकंप होंगे। संसार के नैतिक मूल्य गिरते ही जाएँगे। ये हालात सन्‌ 1914 के बाद से बड़े पैमाने पर बढ़ते ही जा रहे हैं। (मत्ती 24:3; 2 तीमुथियुस 3:1-5; लूका 21:10, 11; प्रकाशितवाक्य 6:3-8) चंद शब्दों में कहें तो यह दुनिया उस जहाज़ की तरह है, जो बस डूबने ही वाला है। इन सारी बातों के मद्देनज़र, क्या इस बात से कोई तुक बनता है कि परमेश्‍वर अपने सेवकों पर धन-दौलत बरसाए? या उसने हमारे लिए कुछ और ज़रूरी काम सोचे हैं?

यीशु मसीह ने हमारे समय की तुलना नूह के दिनों से की। उसने कहा: “ठीक जैसे नूह के दिन थे, इंसान के बेटे की मौजूदगी भी वैसी ही होगी। इसलिए कि जैसे जलप्रलय से पहले के दिनों में, जिस दिन तक नूह जहाज़ के अंदर न गया, उस दिन तक लोग खा रहे थे और पी रहे थे, पुरुष शादी कर रहे थे और स्त्रियाँ ब्याही जा रही थीं। जब तक जलप्रलय आकर उन सबको बहा न ले गया, तब तक उन्होंने कोई ध्यान न दिया। इंसान के बेटे की मौजूदगी भी ऐसी ही होगी।” (मत्ती 24:37-39) यीशु ने हमारे समय की तुलना लूत के दिनों से भी की। सदोम और अमोरा के देश में, लूत के पड़ोसी “खा रहे थे, पी रहे थे, खरीदारी कर रहे थे, बिक्री कर रहे थे, बोआई कर रहे थे, घर बना रहे थे।” यीशु ने कहा: “लेकिन जिस दिन लूत सदोम से बाहर आया, उस दिन आकाश से आग और गंधक बरसी और उन सबको नाश कर दिया। जिस दिन इंसान के बेटे को प्रकट होना है, उस दिन भी ऐसा ही होगा।”—लूका 17:28-30.

खाने-पीने, शादी-ब्याह करने और खरीदने-बेचने में कोई बुराई नहीं। लेकिन ये काम तब खतरनाक हो सकते हैं, जब हम इनमें इस कदर डूब जाएँ कि वक्‍त की नज़ाकत ही भूल जाएँ। इसलिए खुद से पूछिए, ‘क्या परमेश्‍वर हम पर एहसान कर रहा होगा, अगर वह हमारी ज़िंदगी को ऐसी चीज़ों से भर दे, जो हमारा ध्यान भटका सकती हैं?’ * नहीं, बल्कि वह तो हमारा बहुत बड़ा नुकसान कर रहा होगा। और प्यार करनेवाला परमेश्‍वर हमारा नुकसान कभी नहीं कर सकता!—1 तीमुथियुस 6:17; 1 यूहन्‍ना 4:8.

यह समय है ज़िंदगी बचाने का!

इतिहास के इस नाज़ुक दौर में, परमेश्‍वर ने अपने लोगों को एक ज़रूरी काम सौंपा है। यह काम उन्हें जल्द-से-जल्द पूरा करना है। यीशु ने कहा: “राज की इस खुशखबरी का सारे जगत में प्रचार किया जाएगा ताकि सब राष्ट्रों पर गवाही हो; और इसके बाद अंत आ जाएगा।” (मत्ती 24:14) यहोवा के साक्षी इन शब्दों को गंभीरता से लेते हैं। इसलिए वे दूसरों को परमेश्‍वर के राज के बारे में सीखने का बढ़ावा देते हैं। वे उन्हें यह भी सीखने का बढ़ावा देते हैं कि परमेश्‍वर के मुताबिक हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए हमें क्या करना होगा।—यूहन्‍ना 17:3.

लेकिन परमेश्‍वर यह नहीं चाहता कि उसके वफादार लोग वैरागी बन जाएँ। इसके बजाय, वह चाहता है कि वे ज़िंदगी की बुनियादी ज़रूरतों में ही संतुष्ट रहें, ताकि वे उसकी सेवा करने पर अपना पूरा ध्यान लगा सकें। (मत्ती 6:33) बदले में वह उनकी बुनियादी ज़रूरतें पूरी करेगा। इब्रानियों 13:5 कहता है: “तुम्हारे जीने के तरीके में पैसे का प्यार न हो, और जो कुछ तुम्हारे पास है उसी में संतोष करो। क्योंकि परमेश्‍वर ने कहा है: ‘मैं तुझे कभी न छोड़ूंगा, न ही कभी त्यागूंगा।’”

वह दिन दूर नहीं जब परमेश्‍वर अपना यह वादा बहुत ही शानदार तरीके से पूरा करेगा। उस वक्‍त वह सच्चे उपासकों से बनी “एक बड़ी भीड़” को इस मौजूदा व्यवस्था के अंत से बचाएगा और उन्हें नयी दुनिया में ले जाएगा, जहाँ चारों तरफ शांति और खुशहाली होगी। (प्रकाशितवाक्य 7:9, 14) यीशु ने कहा: “मैं इसलिए आया हूँ कि वे [यानी उसके वफादार चेले] जीवन पाएँ और बहुतायत में पाएँ।” (यूहन्‍ना 10:10) ‘जीवन बहुतायत में पाने’ का यह मतलब नहीं कि अभी की ज़िंदगी में उनके पास ढेर सारा पैसा और ऐशो-आराम की चीज़ें होंगी। इसके बजाय, इसका मतलब है कि जब परमेश्‍वर का राज इस धरती पर हुकूमत करेगा और यह धरती फिरदौस बन जाएगी, तब परमेश्‍वर के सेवक हमेशा की ज़िंदगी का मज़ा उठाएँगे।—लूका 23:43.

‘धन-दौलत, ऊपरवाले की देन है,’ इस धारणा के धोखे में मत आइए। यह लोगों का ध्यान अहम बातों से भटकाती है। इसके उलट, यीशु की यह प्यार-भरी हिदायत मानिए, जिस पर आज चलना हमारे लिए निहायत ज़रूरी है: “खुद पर ध्यान दो कि हद-से-ज़्यादा खाने और पीने से और ज़िंदगी की चिंताओं के भारी बोझ से कहीं तुम्हारे दिल दब न जाएँ और वह दिन तुम पर पलक झपकते ही अचानक फंदे की तरह न आ पड़े।”—लूका 21:34, 35. (g 5/09)

[फुटनोट]

^ पहली सदी के कुछ मसीहियों की तरह, आज के कई वफादार मसीही अमीर हैं। लेकिन परमेश्‍वर उन्हें खबरदार करता है कि वे न तो अपनी धन-दौलत पर भरोसा रखें और ना ही इसे अपने ऊपर इस कदर हावी होने दें कि वे सच्चाई से ही भटक जाएँ। (नीतिवचन 11:28; मरकुस 10:25; प्रकाशितवाक्य 3:17) चाहे अमीर हों या गरीब, सभी को अपना ध्यान परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने में लगाना चाहिए।—लूका 12:31.

क्या आपने कभी सोचा है?

◼ यह क्या करने का समय है?—मत्ती 24:14.

◼ यीशु ने हमारे समय की तुलना, बाइबल में बताए किन लोगों के दिनों से की?—मत्ती 24:37-39; लूका 17:28-30.

◼ अगर हम हमेशा की ज़िंदगी पाना चाहते हैं, तो हमें किस बात से खबरदार रहना होगा?—लूका 21:34.

[पेज 25 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

‘धन-दौलत ऊपरवाले की देन है,’ यह धारणा लोगों का ध्यान अहम बातों से भटकाती है