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कामयाबी की दास्तान पहला भाग

कामयाबी की दास्तान पहला भाग

कामयाबी की दास्तान पहला भाग

सजग होइए! के इस खास अंक में जैसे पहले बताया गया है, कामयाब परिवार भी समस्याओं का सामना करते हैं। इस बात से हमें ताज्जुब नहीं होता, क्योंकि हम जिस दौर में जी रहे हैं उसके बारे में बाइबल कहती है कि यह “संकटों से भरा ऐसा वक्‍त [होगा] जिसका सामना करना मुश्‍किल होगा।” (2 तीमुथियुस 3:1) हर परिवार में किसी-न-किसी किस्म की समस्याएँ उठना तो तय है।

मगर, याद रखिए कि कामयाबी पाने के लिए ज़रूरी नहीं कि हमारे हालात बिलकुल सही हों। इसके बजाय, यीशु ने कहा: “सुखी हैं वे जिनमें परमेश्‍वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है।” (मत्ती 5:3) जो परिवार बाइबल के सिद्धांतों को मानकर परमेश्‍वर के मार्गदर्शन पर चलते हैं, उन्होंने कामयाबी का राज़ जान लिया है, इसके बावजूद कि उनके हालात काफी खराब हैं। कुछ मिसालों पर गौर कीजिए।

विकलाँग बच्चे की देखभाल करना। बाइबल के मुताबिक परिवार के सदस्यों के लिए एक-दूसरे की देखभाल करना ज़रूरी है, खासकर उनकी जिन्हें खास मदद की ज़रूरत है। बाइबल कहती है: “बेशक अगर कोई अपनों की, खासकर अपने घर के लोगों की देखभाल नहीं करता, तो वह विश्‍वास से मुकर गया है और अविश्‍वासी से भी बदतर हो गया है।”—1 तीमुथियुस 5:8.

पेज 15 पर, दक्षिण अफ्रीका में रहनेवाले विक्टर की कहानी दी गयी है। वह बताता है कि कैसे वह और उसकी पत्नी पिछले चालीस से ज़्यादा साल से अपने विकलाँग बेटे की देखभाल कर रहे हैं।

गोद लेनेवाले माता-पिता के घर में पलना। जिस इंसान के माँ-बाप ने उसे जन्म देकर छोड़ दिया हो, उसे अपना आत्म-सम्मान बनाए रखने में बाइबल के सिद्धांत मदद कर सकते हैं। असल में, बाइबल यहोवा परमेश्‍वर को अनाथों का “सहायक” कहती है।—भजन 10:14.

पेज 16 पर, अमरीका की एक लड़की, केन्याटा अपनी आपबीती बताती है। वह अपने सगे माँ-बाप से कभी नहीं मिली। वह बताती है कि अपने दिल का दर्द सहने में किस बात ने उसकी मदद की।

माँ या पिता की मौत का दुख झेलना। अगर माँ या पिता की मौत हो जाए, तो बच्चे के दिल पर ऐसा घाव लगता है जो आसानी से नहीं भरता। बाइबल ऐसे में मरहम का काम करती है। बाइबल का रचनाकार यहोवा “हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्‍वर है।”—2 कुरिंथियों 1:3.

पेज 17 पर, ऑस्ट्रेलिया की एक लड़की ऐन्जला की कहानी है। वह बताती है कि परमेश्‍वर के साथ करीबी रिश्‍ता कैसे उसे अपने पिता की मौत का दुख झेलने में मदद दे रहा है।

सभी परिवारों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। आगे के पन्‍नों पर दी गयी कहानियाँ इस बात की मिसाल हैं कि जो परिवार बाइबल के सिद्धांतों पर अमल करते हैं उन्होंने इन चुनौतियों का सामना करने का सबसे ज़रूरी राज़ जान लिया है। (g09 10)

[पेज 15 पर बक्स/तसवीरें]

विकलाँग बच्चे की देखभाल करना

विक्टर मेन्स की ज़ुबानी, दक्षिण अफ्रीका

“हमारा बेटा एन्ड्रू, अपने पैदा होने के दिन से लेकर आज के दिन तक, हर काम के लिए हम पर निर्भर रहता है। उसे नहलाना-धुलाना, कपड़े पहनाना, यहाँ तक कि खाना खाने में उसकी मदद करना भी हमारा काम है। अब उसकी उम्र 44 साल है।”

एक साल का होने के बाद भी जब एन्ड्रू ने चलना शुरू नहीं किया, तो हमें शक हुआ कि कहीं कुछ गड़बड़ है। फिर, उसी वक्‍त के आस-पास एन्ड्रू को दौरा पड़ा। हम फौरन उसे लेकर अस्पताल भागे। वहाँ हमें पता चला कि उसे मिरगी का रोग है। मगर उसे सिर्फ यही रोग नहीं था। आगे की जाँच से पता चला कि एन्ड्रू का दिमाग कमज़ोर है।

अलग-अलग किस्म के इलाज आज़माने के बाद, हम एन्ड्रू के दौरों पर कुछ हद तक काबू कर पाए। कुछ वक्‍त तक, उसे चार अलग-अलग दवाएँ दिन में तीन-तीन बार लेनी होती थीं। मगर दवाओं से उसकी दिमाग की कमज़ोरी सुधारी नहीं जा सकती थी। आज एन्ड्रू 44 साल का है, मगर उसका दिमाग पाँच-छ: साल के बच्चे जैसा है।

डॉक्टरों की सलाह थी कि हम एन्ड्रू को किसी ऐसे अस्पताल में डालें जहाँ ऐसे मरीज़ों की खास देखभाल की जाती है। मगर हमने फैसला किया कि एन्ड्रू को अपने पास ही रखेंगे। हम उसकी ज़रूरतों को पूरा कर सकते थे, इसलिए हमने फैसला किया कि हम घर पर ही उसकी देखभाल करेंगे, फिर चाहे इसके लिए कितनी ही चुनौतियों का सामना करना पड़े।

हमने तय किया कि पूरा परिवार मिल-जुलकर एन्ड्रू की देखभाल करेगा। हमारे दूसरे बच्चे, यानी दो बेटियाँ और एक बेटा हमारे साथ रहते थे और उन सबने एन्ड्रू की देखभाल में हाथ बँटाया, जिसके लिए मैं उनका शुक्रगुज़ार हूँ! और यहोवा के साक्षी होने की वजह से, हमें अपनी मंडली के सदस्यों से बहुत बढ़िया मदद मिलती रही है। कभी-कभी, वे हमारे लिए खाना बनाकर लाते हैं और जब हम प्रचार में जाते हैं या दूसरे काम-काज करते हैं तो वे एन्ड्रू का ध्यान रखते हैं।

यशायाह 33:24 के शब्द हमारे दिल के बहुत करीब रहे हैं, जिसमें परमेश्‍वर का यह वादा है कि वह दिन आएगा जब “कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूं।” हमें पक्का यकीन है कि परमेश्‍वर ज़रूर नयी दुनिया लाने का अपना मकसद पूरा करेगा, जहाँ हर तरह की बीमारी मिटा दी जाएगी। (2 पतरस 3:13) इसलिए हम उस दिन की राह देख रहे हैं जब एन्ड्रू बिलकुल ठीक हो जाएगा। उस दिन के आने तक, हम यीशु के इन शब्दों पर विश्‍वास रखते हैं कि अगर हम परमेश्‍वर के राज के काम को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दें, तो हमारी हर ज़रूरत पूरी की जाएगी। (मत्ती 6:33) हमने इस बात को अपने मामले में हमेशा सच पाया है। हमें कभी किसी चीज़ की कमी नहीं हुई।

अगर परिवार में कोई बीमार है, तो बेशक हर मामले में यह मुमकिन नहीं कि उसका परिवार घर पर ही उसकी देखभाल करे। जो इस तरह देखभाल करते हैं, उन्हें मैं सबसे पहली सलाह यह दूँगा कि सच्चे दिल से, बार-बार प्रार्थना करते रहें। (1 पतरस 5:6, 7) दूसरी यह कि अपने बच्चे की देखभाल करने के साथ-साथ उसे ढेर सारा प्यार दें और इस बात पर शक न करें कि वह यहोवा परमेश्‍वर से प्यार करने के काबिल है भी या नहीं। (इफिसियों 6:4) तीसरी, देखभाल करने में पूरे परिवार को शामिल कीजिए और उन्हें मदद करने दीजिए। चौथी, याद रखिए कि आपके बच्चे को आपके अपने घर में ही सबसे ज़्यादा प्यार मिलेगा। बेशक, हर किसी के हालात अलग होते हैं। जहाँ तक हमारी बात है, तो हमें कभी इस बात का अफसोस नहीं हुआ कि हमने घर पर ही एन्ड्रू की देखभाल की। जी हाँ, मेरी नज़र में वह दुनिया का सबसे प्यारा बच्चा और सबसे प्यारा इंसान है। (g09 10)

[पेज 16 पर बक्स/तसवीरें]

गोद लेनेवाले माता-पिता के घर में पलना

केन्याटा यंग की ज़ुबानी, अमरीका

“माँ-बाप में से कोई एक सौतेला हो, तो भी दूसरे के साथ आपका खून का रिश्‍ता होता है। मगर मुझे गोद लिया गया था, इसलिए जिन्हें मैं अपने मम्मी-डैडी मानती हूँ उनके साथ मेरा खून का रिश्‍ता नहीं है। मुझे तो यह भी नहीं पता कि क्या मेरा कोई सगा रिश्‍तेदार है जो मेरे जैसा दिखता हो।”

मैं नहीं जानती कि मेरा पिता कौन है और मैं कभी अपनी जन्म देनेवाली माँ से नहीं मिली। जब मैं उसके पेट में थी, तो वह शराब और ड्रग्स के नशे में चूर रहती थी। जब मेरा जन्म हुआ तो मुझे एक सरकारी अनाथ-आश्रम में डाल दिया गया। फिर मैं कई अनाथालयों में रही। जब मैं दो साल की भी नहीं हुई थी, तब मुझे गोद ले लिया गया।

मेरे डैडी, जिन्होंने मुझे गोद लिया, बताते हैं कि जब एक समाज-सेविका ने उन्हें मेरी तसवीर दिखायी तो उन्होंने फौरन मुझे गोद लेने का फैसला कर लिया। मेरी नयी माँ मुझे पसंद आ गयीं। मैंने उससे कहा कि वह मेरी नयी माँ है और मैं उसके साथ घर जाना चाहती हूँ।

लेकिन मुझे याद है कि जब मैं छोटी थी तो मुझे यह डर सताता रहता था कि अगर मैं कोई गलत काम करूँगी तो मुझे वापस अनाथ-आश्रम भेज दिया जाएगा। मुझे लगता था कि अगर मैं दूसरे बच्चों की तरह गुस्सा करूँगी, रूठ जाऊँगी या फिर बीमार पड़ूँगी तो मेरे लिए अच्छा नहीं होगा। यहाँ तक कि मैं कोशिश करती थी कि मुझे सर्दी-ज़ुकाम तक न हो! मेरे माता-पिता मुझे हमेशा अपने प्यार का भरोसा दिलाते और कहते कि हम तुम्हें अनाथ-आश्रम में नहीं छोड़ेंगे।

बड़े होने के बाद भी, मुझे कभी-कभी इस भावना से जूझना पड़ता है कि मेरी उन बच्चों की तरह कदर नहीं की जाती जिनके सगे माँ-बाप उन्हें पाल-पोसकर बड़ा करते हैं। जब मैं खुद को समझा-बुझा लेती हूँ, तब कोई मुझसे यह कह देता है, “तुम्हें कितना एहसानमंद होना चाहिए कि तुम्हें इतने अच्छे माँ-बाप मिले जिन्होंने तुम्हें गोद लिया और खून-पसीना एक कर तुम्हें पाला-पोसा।” मैं वाकई उनकी एहसानमंद हूँ, मगर ऐसी बातें सुनकर मुझे लगता है कि मेरे अंदर कोई भारी कमी है। इसलिए मुझसे प्यार करने के लिए किसी को बहुत ज़्यादा जतन करना पड़ा होगा।

मेरे लिए यह हकीकत कबूल करना बहुत मुश्‍किल है कि मैं शायद कभी-भी अपने असली पिता से नहीं मिल पाऊँगी। कभी-कभी मुझे इस बात का दुख होता है कि मुझे जन्म देनेवाली माँ ने अपनी ज़िंदगी में सुधार नहीं किया ताकि वह मुझे अपने पास रख सकती और पालती। ऐसा लगता है जैसे उसकी नज़र में मेरा कोई मोल ही नहीं था, फिर वह मेरे लिए ऐसी कोशिश क्यों करती। कभी-कभी मुझे उसके बारे में सोचकर दुख भी होता है। मैं अकसर सोचती हूँ कि अगर मैं उससे कभी मिली, तो मैं उसे बताना चाहूँगी कि मैं ज़िंदगी में कामयाब रही और मुझे जन्म देकर छोड़ देने के लिए उसे दुखी महसूस नहीं करना चाहिए।

मुझे गोद लेनेवाले मेरे माता-पिता यहोवा के साक्षी हैं। उन्होंने मुझे जो सबसे बेहतरीन तोहफा दिया है, वह है बाइबल का ज्ञान। मैं ने हमेशा ही भजन 27:10 के इन शब्दों से दिलासा पाया है: “मेरे माता-पिता ने तो मुझे छोड़ दिया है, परन्तु यहोवा मुझे सम्भाल लेगा।” मेरे मामले में यह बात वाकई सच साबित हुई है। गोद लिए जाने के कुछ अच्छे नतीजे भी निकले हैं। मिसाल के लिए, अलग-अलग भाषा और संस्कृति के लोग और उनकी ज़िंदगी देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है, शायद इसलिए कि मैं कभी उन लोगों से नहीं मिली जिनसे मेरा खून का रिश्‍ता है। मुझे लोगों से मिलना-जुलना अच्छा लगता है और मसीही सेवा के लिए यह बात वाकई बहुत ज़रूरी है। मैं यहोवा की साक्षी हूँ और दूसरों को बाइबल का संदेश सुनाने से मुझे लगता है कि मेरी ज़िंदगी का भी एक मकसद है और मेरी भी अपनी इज़्ज़त है। जब मैं मायूस हो जाती हूँ, तो मैं बाहर निकलकर दूसरों की मदद करती हूँ। जब मैं लोगों को बाइबल के बारे में सिखाती हूँ, तो मुझे लगता है कि मैं उनके साथ वाकई जुड़ पाती हूँ। हर किसी की अपनी एक दास्तान है, जो वह दूसरों को सुनाना चाहता है। (g09 10)

[पेज 17 पर बक्स/तसवीरें]

माँ या पिता की मौत का दुख झेलना

ऐन्जला रटगर्ज़ की ज़ुबानी, ऑस्ट्रेलिया

“जब मेरे डैडी चल बसे, तो मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे सिर पर छत नहीं रही और मैं बिलकुल बेसहारा हो गयी। वह शख्स जो सबकुछ जानता था, मेरी हर बिगड़ी बना सकता था अब मेरे पास नहीं था।”

दस साल पहले, मेरे डैडी की मौत हुई थी। उस वक्‍त मैंने बचपन से निकलकर होश संभाला ही था। डैडी की मौत के छः महीने पहले, उनका ऑपरेशन हुआ था और ऑपरेशन के बाद की देखभाल चल ही रही थी, जब डॉक्टर ने हमसे कहा कि इससे आगे और कुछ नहीं हो सकता। मेरी माँ किसी तरह और जानकारी पाना चाहती थीं, मेरा भाई यह सुनकर बेहोश हो गया और मैं यह समझ नहीं पा रही थी कि क्या महसूस करूँ। जैसे मानो मेरे चारों तरफ आँधी-तूफान चल रहा हो और मेरे पास बचने का कोई रास्ता नहीं था। छः महीने बाद डैडी चल बसे।

इसके बाद मेरी ज़िंदगी में कशमकश का ऐसा दौर शुरू हुआ जब मैं खुद नहीं जानती थी कि मुझे कैसा महसूस करना चाहिए। मैं चाहती थी कि मेरे दोस्त इस बात को समझें कि मेरे अंदर कैसा हाहाकार मचा हुआ है। मगर साथ ही मैं यह भी नहीं चाहती थी कि वे मुझे “बेचारी” समझें। इसलिए मेरी कोशिश यही रहती थी कि अपने दोस्तों पर अपने दिल का हाल ज़ाहिर न होने दूँ। दूसरी तरफ, मुझे यह भी लगता था कि अगर मैं उनके साथ ऐसे हँसती-बोलती हूँ जैसे मानो कुछ भी नहीं हुआ तो इसका यह मतलब निकलेगा कि मेरी ज़िंदगी में सबकुछ ठीक चल रहा है, जबकि ऐसा नहीं था। उस वक्‍त को याद करती हूँ, तो सोचती हूँ कि मेरे दोस्तों ने मेरी वजह से क्या-क्या सहा!

डैडी की मौत के बाद मैं खुद को कसूरवार मानने लगी। काश मैंने उनसे और ज़्यादा बार कहा होता, ‘आप मेरे अच्छे डैडी हो, प्यारे डैडी हो।’ काश मैंने उन्हें कई बार गले लगाया होता या उनके साथ ज़्यादा वक्‍त बिताया होता। चाहे मैं खुद को कितनी ही बार समझाऊँ, ‘डैडी कभी नहीं चाहेंगे कि तुम ऐसा सोचो,’ फिर भी ये बातें मुझे परेशान करती रहती हैं।

मैं यहोवा की एक साक्षी हूँ और इस नाते मैं बाइबल में बतायी इस उम्मीद से बहुत दिलासा पाती हूँ कि मरे हुए फिर से जी उठेंगे। (यूहन्‍ना 5:28, 29) मैं खुद को इस तरह समझाने की कोशिश करती हूँ कि मेरे डैडी विदेश के सफर पर निकले हैं और एक दिन वे ज़रूर घर वापस लौट आएँगे, मगर ठीक किस तारीख को बस यह हम नहीं जानते। अजीब बात यह थी कि लोगों ने मुझसे कहा, ‘जब पुनरुत्थान होगा तो तुम्हारे डैडी लौट आएँगे’ तो शुरू-शुरू में मुझे इस बात से हिम्मत नहीं मिली। मुझे लगता था, ‘मुझे अभी अपने डैडी वापस चाहिए!’ मगर विदेश के सफर की मिसाल से मुझे मदद मिली। इससे मुझे एहसास होता था कि भविष्य में मरे हुए फिर से जी उठेंगे, साथ ही इसकी वजह से मैं अपना दुख झेल पा रही थी।

मसीही भाई-बहनों का बहुत बड़ा सहारा रहा है। खासकर मुझे एक भाई याद है जिसने मुझसे कहा ‘आपके डैडी की मौत के बारे में मैं क्या कहूँ नहीं जानता, मगर मैं हर वक्‍त आपके और आपके परिवार के बारे में सोचता रहता हूँ।’ मैं इन शब्दों को बार-बार याद करती रही। क्योंकि जब ऐसे दिन निकलते थे जब कोई कुछ नहीं कहता था, तो इन शब्दों की वजह से मैं सोचती कि चाहे उन्होंने कुछ नहीं कहा, फिर भी वे मेरे और मेरे परिवार के बारे में चिंता ज़रूर करते हैं। इस एहसास से मुझे बहुत दिलासा मिला!

डैडी की मौत के चार महीने बाद, मम्मी दूसरों को राज की खुशखबरी सुनाने के काम में और ज़्यादा वक्‍त देने लगीं। और यह साफ पता लगता था कि उसे इस काम से बहुत खुशी मिल रही थी। इसलिए मैं भी मम्मी के साथ प्रचार में निकलने लगी। दूसरों की मदद करने से आप अपना दुख जिस आसानी से झेल पाते हैं, यह देखकर बड़ी हैरानी होती है। इसकी वजह से यहोवा के वचन, बाइबल पर और उसके वादों पर मेरा विश्‍वास और भी मज़बूत हुआ है और इसकी मदद से अब मैं सिर्फ अपने दुख के बारे में नहीं बल्कि दूसरों के दुख के बारे में भी सोचती हूँ। (g09 10)