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आप अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी कर सकते हैं

आप अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी कर सकते हैं

बाइबल क्या कहती है?

आप अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी कर सकते हैं

जिस तरह खाना-पीना हम इंसानों की एक ज़रूरत है, ठीक उसी तरह हममें आध्यात्मिक ज़रूरत भी है, यानी परमेश्‍वर और उसके मकसद के बारे में जानने की ललक। खाने के मामले में देखा जाए, तो परमेश्‍वर ने कई तरह की अच्छी-अच्छी चीज़ें दी हैं जिनमें से हम अपनी पसंद का कुछ भी खा सकते हैं। क्या यही बात आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी करने के बारे में भी सच है? आज दुनिया में संस्कृति और धर्म से जुड़े अनगिनत रीति-रिवाज़ हैं और कहा जाता हैं कि इन्हें मानने से हम अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी कर सकते हैं।

कई लोगों का कहना है, अगर आप इस तरह के रीति-रिवाज़ मानते हैं, तो यह बात कोई मायने नहीं रखती कि आप क्या विश्‍वास करते हैं या किस तरह उपासना करना पसंद करते हैं। इस बारे में आपकी क्या राय है? क्या इससे कोई फर्क पड़ता है कि आप किस तरह अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी करते हैं? इस बारे में बाइबल क्या कहती है?

सच्ची आध्यात्मिकता में क्या शामिल है

सच्ची आध्यात्मिकता में परमेश्‍वर के जैसा बनना शामिल है। बाइबल की किताब, उत्पत्ति 1:27 में बताया गया है कि हम इंसानों में क्यों परमेश्‍वर की शख्सियत ज़ाहिर करने की काबिलीयत है। उस आयत में लिखा है: “परमेश्‍वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्‍न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्‍वर ने उसको उत्पन्‍न किया, नर और नारी करके उस ने मनुष्यों की सृष्टि की।” इस आयत का मतलब यह नहीं कि इंसान देखने में हू-ब-हू यहोवा परमेश्‍वर के जैसा है, क्योंकि परमेश्‍वर आत्मा है और इंसान हाड़-माँस का बना है। इसके बजाय, इस आयत का मतलब है कि इंसान में परमेश्‍वर के जैसे गुण दिखाने की काबिलीयत है। सबसे पहला इंसान आदम अपने सृष्टिकर्ता की तरह निस्वार्थ प्यार, कृपा, करुणा, न्याय और संयम जैसे गुणों की अहमियत समझ सकता था और इन गुणों को ज़ाहिर भी कर सकता था। इसके अलावा, परमेश्‍वर ने उसे खुद चुनाव करने की आज़ादी दी। मगर साथ ही, उसने उसे ज़मीर यानी सही-गलत के बीच फर्क करने की अंदरूनी समझ भी दी, ताकि वह परमेश्‍वर के कानूनों को ध्यान में रखकर अपनी आज़ादी का सही इस्तेमाल कर सके। इन्हीं खासियतों की वजह से आदम, जानवरों से एकदम जुदा था और अपने बनानेवाले की मरज़ी पूरी करने के काबिल था।—उत्पत्ति 1:28; रोमियों 2:14.

बाइबल बताती है कि आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी करने के लिए एक चीज़ ज़रूरी है। वह क्या है? पहला कुरिंथियों 2:12-15 के मुताबिक, आध्यात्मिक इंसान उसे कहा जाता है, जिस पर परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति होती है। पवित्र शक्‍ति परमेश्‍वर की सक्रिय शक्‍ति है। जब यह शक्‍ति एक इंसान पर काम करती है, तब वह परमेश्‍वर के बारे में जान पाता है। वह हर मामले को परमेश्‍वर की नज़र से देख और समझ पाता है। दूसरी तरफ, जिस इंसान पर परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति नहीं होती, उसे शारीरिक इंसान कहा जाता है और उसे परमेश्‍वर से जुड़ी बातें मूर्खता लगती है। नतीजा, वह सिर्फ इंसानी बुद्धि के आधार पर फैसला करता है।

हालाँकि हममें परमेश्‍वर की तरह सोचने और काम करने की काबिलीयत है क्योंकि हमें उसके स्वरूप में बनाया गया है, फिर भी हम खुद की ताकत, बुद्धि और दौलत से अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी नहीं कर सकते। इसके लिए ज़रूरी है कि हम परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति को खुद पर काम करने दें। दरअसल, जो कोई पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन पर नहीं चलता, बल्कि अपनी मनमानी करता है और अपनी बुरी ख्वाहिशों के मुताबिक काम करता है, उसके बारे में कहा गया है कि वह एक आध्यात्मिक इंसान नहीं है। उस पर सिर्फ अपनी बुरी लालसाओं को पूरा करने का जुनून सवार रहता है।—1 कुरिंथियों 2:14; यहूदा 18, 19.

अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत कैसे पूरी करें?

परमेश्‍वर से मार्गदर्शन पाने की भूख मिटाने के लिए सबसे पहले हमें यह कबूल करने की ज़रूरत है कि यहोवा ही हमारा सिरजनहार है और उसी की बदौलत हम वजूद में हैं। (प्रकाशितवाक्य 4:11) ऐसा करने पर हमें एहसास होता है कि जीने का एक मकसद पाने के लिए परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करना ज़रूरी है। (भजन 115:1) परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने पर ही हम उसके साथ एक करीबी रिश्‍ता कायम कर सकते हैं। यह ठीक वैसे ही है जैसे अपनी भूख मिटाने के लिए खाना खाना ज़रूरी है। इसलिए यीशु ने, जिसका परमेश्‍वर के साथ मज़बूत रिश्‍ता था, कहा: “मेरा खाना यह है कि मैं अपने भेजनेवाले की मरज़ी पूरी करूँ और उसका काम पूरा करूँ।” (यूहन्‍ना 4:34) जी हाँ, परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने से यीशु को ताकत मिलती थी। वह तरो-ताज़ा और संतुष्ट महसूस करता था।

हमें परमेश्‍वर के स्वरूप में बनाया गया है, इसलिए अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी करने के लिए हमें अपनी शख्सियत परमेश्‍वर की शख्सियत के मुताबिक ढालने की भी ज़रूरत है। (कुलुस्सियों 3:10) जब हम ऐसा करते हैं, तो हम ऐसे चालचलन से दूर रहते हैं जिससे हमारी इज़्ज़त घट सकती है या दूसरों के साथ हमारा रिश्‍ता खराब हो सकता है। (इफिसियों 4:24-32) यहोवा के स्तरों के मुताबिक जीने से ज़िंदगी के बारे में हमारा नज़रिया और चालचलन बेहतर होता जाता है। यही नहीं, हमें मन का सुकून भी मिलता है क्योंकि हमारा ज़मीर हमें नहीं कोसता।—रोमियों 2:15.

आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी करने के बारे में यीशु ने एक और अहम सच्चाई बतायी। उसने कहा: “इंसान सिर्फ रोटी से ज़िंदा नहीं रह सकता, बल्कि उसे यहोवा के मुँह से निकलनेवाले हर वचन से ज़िंदा रहना है।” (मत्ती 4:4) जी हाँ, हमें अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी करने पर लगातार ध्यान देने की ज़रूरत है। यहोवा परमेश्‍वर बाइबल के ज़रिए ज़िंदगी से जुड़े उन सवालों के जवाब देता है, जो लगभग सभी लोग पूछते हैं।—2 तीमुथियुस 3:16, 17.

सच्ची खुशी का राज़

एक इंसान अपनी भूख मिटाने के लिए कुछ भी अगड़म-बगड़म खा सकता है, जो खाने में भले ही चटपटा हो मगर पौष्टिक नहीं। उसी तरह, हम भी ऐसे कामों या फलसफों में उलझ सकते हैं जिससे हमें लगे कि हम अपनी आध्यात्मिक भूख मिटा रहे हैं। लेकिन जिस तरह सही खाना न खाने की वजह से एक इंसान को पोषण नहीं मिलता, उलटा वह बीमार हो जाता है या उसका उससे भी बुरा हाल हो जाता है, उसी तरह परमेश्‍वर से मार्गदर्शन पाने की भूख सही तरह से न मिटाने से हमें भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

लेकिन अगर हम यहोवा परमेश्‍वर के साथ एक रिश्‍ता कायम करें, उसकी मरज़ी पूरी करें और उसके मार्गदर्शन पर चलें, तो हम पाएँगे कि बाइबल की यह बात कितनी सच है: “सुखी हैं वे जिनमें परमेश्‍वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है।”—मत्ती 5:3. (g09-E 12)

क्या आपने कभी सोचा है?

◼ हममें क्यों परमेश्‍वर की शख्सियत ज़ाहिर करने की काबिलीयत है?—उत्पत्ति 1:27.

◼ क्या हम खुद के बल पर अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी कर सकते हैं?—1 कुरिंथियों 2:12-15.

◼ अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी करने के लिए हमें क्या करने की ज़रूरत है? —मत्ती 4:4; यूहन्‍ना 4:34; कुलुस्सियों 3:10.

[पेज 21 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

परमेश्‍वर से मार्गदर्शन पाने की भूख सही तरह से न मिटाने से हमें भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है