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पैरों की धूल समझा जाना

पैरों की धूल समझा जाना

पैरों की धूल समझा जाना

“प्राइमरी स्कूल में मेरा पहला साल था। मैं बाकी बच्चों से कद में छोटी थी, इसलिए वे मुझे गंदे-गंदे नाम से बुलाते थे। मैं हर दिन रोते हुए घर आती थी।”—जेनिफर, जिसका परिवार फिलीपींस से आकर स्पेन में बस गया।

“जब मैं एक नए स्कूल में गया, तो वहाँ के गोरे बच्चों ने तरह-तरह के नाम लेकर मुझे ज़लील किया। मैं जानता था कि वे मुझे लड़ने के लिए भड़का रहे हैं। मैंने अपना आपा नहीं खोया, लेकिन अंदर-ही-अंदर मुझे बहुत ठेस पहुँची और मैंने दुतकारा हुआ महसूस किया।”—टिमथी, अमरीका में रहनेवाला एक हब्शी आदमी।

“जब मैं सात साल का था, तब नाईजीरिया में इग्बो और हौसा कबीलों के बीच आपसी रंजिश छिड़ गयी। इस नफरत का मुझ पर भी असर हुआ। मैं अपनी क्लास में एक हौसा लड़के की खिल्ली उड़ाने लगा, जबकि वह मेरा दोस्त था।” —जॉन, जो इग्बो कबीले से है।

“मैं और मेरी मिशनरी साथी, लोगों को बाइबल का पैगाम सुना रही थीं कि तभी कुछ बच्चे हमारा पीछा करने लगे और हमें पत्थर मारने लगे। दरअसल वहाँ के पादरियों ने उन्हें वरगलाया था क्योंकि वे चाहते थे कि हम कसबा छोड़कर चले जाएँ।”—औल्गा।

क्या कभी आपको नीचा दिखाया गया और आपके साथ भेदभाव किया गया है? शायद आपके धर्म, समाज में आपकी हैसियत, आपके रंग, आपके स्त्री-पुरुष होने या फिर आपकी उम्र को लेकर आपके साथ भेदभाव किया गया हो। जिन लोगों के साथ आए दिन ऐसा होता है, वे घर से निकलने में डरते हैं। चाहे उन्हें सड़क पर चलना हो, दुकान में जाना हो, नए स्कूल में दाखिला लेना हो या किसी फंक्शन में जाना हो, उन्हें यह चिंता खाए जाती है कि कहीं उनके साथ भेदभाव न किया जाए।

इसके अलावा, नफरत और भेदभाव के शिकार लोगों को शायद नौकरी के लिए दर-दर भटकना पड़े, ज़रूरत पड़ने पर उनका अच्छे-से इलाज न किया जाए, उम्दा शिक्षा हासिल करने का मौका न मिले और समाज में बहुत कम सुख-सुविधाएँ और कानूनी अधिकार मिलें। जब सत्ता में बैठे लोग खुद ही ऊँच-नीच और जात-पात को मानते हैं, तो जाति-संहार जैसे घिनौने कामों को बढ़ावा मिलता है। प्राचीन समय में ऐसी ही एक जाति को मिटाने की कोशिश की गयी थी। इसके बारे में बाइबल की एस्तेर नाम की किताब में बताया गया है। गौर कीजिए कि इसके पीछे नफरत और जाति-भेद का कितना बड़ा हाथ था।—एस्तेर 3:5, 6.

जाति-भेद के खिलाफ कानून बनाए जाने के बावजूद आज भेदभाव और नफरत के शोले धधक रहे हैं। मानव अधिकारों के लिए संयुक्‍त राष्ट्र की भूतपूर्व हाई कमिश्‍नर कहती हैं: “मानव अधिकारों के विश्‍वव्यापी घोषणा-पत्र को बने 60 साल हो चुके हैं . . . मगर ऐसी दुनिया जहाँ सभी लोग एक-समान हों और उनमें भेदभाव न हो, अभी-भी हकीकत से कोसों दूर है।” यह सचमुच चिंता करनेवाली बात है क्योंकि आज कई देशों में बहुत बड़ी तबदीली आ रही है। इन देशों में वहाँ के निवासियों के अलावा, दूसरे देशों से लोग और बड़ी तादाद में शरणार्थी आकर बस रहे हैं।

तो क्या एक ऐसा समाज जहाँ जात-पात नहीं होगा, महज़ एक ख्वाब है? या क्या नफरत और भेदभाव को मिटाया जा सकता है? अगले लेखों में इन सवालों पर चर्चा की जाएगी। (g09-E 08)