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माता-पिताओ, अपने बच्चों को सही राह दिखाइए

माता-पिताओ, अपने बच्चों को सही राह दिखाइए

माता-पिताओ, अपने बच्चों को सही राह दिखाइए

“बीते समय में हमें सिर्फ यह चिंता रहती थी कि बच्चे टीवी ज़्यादा न देखें। लेकिन अब वीडियो गेम, कंप्यूटर और सेल फोन भी आ गए हैं। ये बच्चों पर गहरा असर डालते हैं और उनमें ऐसे व्यवहार पैदा करते हैं, जो कोई बुरी आदत के लगने पर देखे जा सकते हैं। . . . बच्चों का दिमाग इन चीज़ों को देखने-सुनने का इतना आदी हो जाता है कि इनके बिना वे एकदम खोए-खोए रहते हैं।” —माली मैन, एम.डी.

टेक्नॉलजी ने आज इतनी तरक्की कर ली है कि ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग “इंटरनेट से कनेक्टेड” रहते हैं। बहुत-से नौजवान अपना मीडिया प्लेयर या सेल फोन लिए बगैर घर से निकलते ही नहीं। और जिस तेज़ी से इन चीज़ों के नए-नए मॉडल सस्ते दामों पर बाज़ार में आ रहे हैं, उससे तो लगता है कि टेक्नॉलजी का सैलाब थमने का नाम नहीं लेगा। इससे बच्चों पर निगरानी रखने, उन्हें तालीम और अनुशासन देने में माँ-बाप के लिए चुनौतियाँ और बढ़ जाएँगी।

इन चुनौतियों का सामना किया जा सकता है, अगर माता-पिता इन दो अहम बातों का ध्यान रखें। पहली, बाइबल में नीतिवचन 22:15 में लिखी इस सच्चाई को समझना: “लड़के के मन में मूढ़ता बन्धी रहती है, परन्तु छड़ी की ताड़ना के द्वारा वह उस से दूर की जाती है।” दूसरी, यह समझना कि टेक्नॉलजी बच्चों पर अच्छा या बुरा असर कर सकती है और पूरी कोशिश करना कि बच्चों पर इसका अच्छा असर हो।

छुटपन से ही उनकी दिलचस्पी बढ़ाइए!

कई घरों में जब बच्चे टीवी देखना शुरू करते हैं, तो वे मानो टेक्नॉलजी की दुनिया में पहला कदम रख रहे होते हैं। अकसर देखा जाता है कि माँ-बाप को अगर कोई काम होता है, तो वे अपने बच्चों को टीवी के सामने बिठा देते हैं। लेकिन, मानसिक-स्वास्थ्य के कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इतनी कम उम्र में ज़रूरत-से-ज़्यादा टीवी देखने से बच्चों पर बुरा असर होता है। वे सुस्त रहते हैं, हकीकत और कल्पना की दुनिया में फर्क नहीं कर पाते, अपने जज़बातों को सँभालना नहीं सीखते और स्कूल जाने पर क्लास में ध्यान नहीं दे पाते हैं। इतना ही नहीं, डॉ. माली मैन कहती हैं कि कुछ बच्चों के बारे में “यह गलत नतीजा निकाला जाता है कि उन्हें अटेंशन डेफिसिट डिसऑर्डर [ए.डी.डी.] या अटेंशन डेफिसिट हाईपर एक्टिव डिसऑर्डर [ए.डी.एच.डी.] या फिर बाइपोलर डिसऑर्डर है।” इसलिए कुछ विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि दो साल से कम उम्र के बच्चों को टीवी न दिखाया जाए।

अमरीकी बाल-चिकित्सा अकादमी के प्रवक्‍ता डॉ. केनथ गिन्ज़बर्ग का कहना है: “बच्चे के शुरूआती सालों में माँ-बाप के साथ उसका जो गहरा रिश्‍ता जुड़ता है, वह उसकी ज़िंदगी की सबसे अहम घटना है।” यह रिश्‍ता तभी बनता है जब माँ-बाप अपने नन्हे-मुन्‍नों से बात करते हैं, उनके साथ खेलते हैं और उन्हें किताबें पढ़कर सुनाते हैं। और जैसा कि कई माँ-बाप जानते हैं, जिन बच्चों को लगातार पढ़कर सुनाया जाता है उनमें पढ़ने का शौक पैदा होता है, जो एक और अनमोल खज़ाना है।

यह सच है कि बहुत-से बच्चों के लिए कंप्यूटर और उससे जुड़ी टेक्नॉलजी के बारे में जानकारी हासिल करना ज़रूरी ही नहीं, अच्छा भी है। लेकिन अगर आप देखते हैं कि आपके बच्चे हर समय कंप्यूटर, कंप्यूटर गेम, इंटरनेट वगैरह से चिपके रहते हैं, तो क्यों न दूसरी चीज़ों में भी उनकी दिलचस्पी बढ़ाने की कोशिश करें? पर कैसे? आप उन्हें कोई दिलचस्प कला या साज़ सीखने का बढ़ावा दे सकते हैं। या ऐसा कोई भी काम जो हटकर हो, जिसे करने में बच्चों को मज़ा आए और वे जोश से भर जाएँ।

इस तरह के काम बच्चों के मन को बहलाने के साथ-साथ उन्हें ताज़गी भी पहुँचाते हैं। ये आपके बच्चों को ऐसे गुण बढ़ाने में मदद देते हैं जैसे सब्र, बुलंद इरादा, संयम और कुछ नया कर दिखाने का जज़्बा। ज़िंदगी में खुशी और कामयाबी पाने के लिए इन गुणों का होना बेहद ज़रूरी है, जबकि टेक्नॉलजी की मदद से हर समस्या का हल नहीं हो सकता।

बच्चों को चाहिए बुद्धि और सोचने-समझने की शक्‍ति

बाइबल में बच्चों और बड़ों को उकसाया गया है कि वे अपने अंदर “सोचने-समझने की शक्‍ति” पैदा करें। (रोमियों 12:1; नीतिवचन 1:8, 9; 3:21) इससे हम न सिर्फ सही-गलत में फर्क कर पाएँगे बल्कि यह भी देख पाएँगे कि क्या बुद्धिमानी है और क्या मूर्खता। मिसाल के लिए, घंटों तक कंप्यूटर गेम खेलना या टीवी देखना गलत नहीं, लेकिन क्या ऐसा करना बुद्धिमानी है? उसी तरह, नयी-नयी इलेक्ट्रॉनिक चीज़ें या कंप्यूटर प्रोग्राम खरीदना गलत नहीं, मगर क्या ऐसा करना बुद्धिमानी है? तो फिर, आप अपने बच्चों को टेक्नॉलजी के मामले में सही फैसले करने में क्या मदद दे सकते हैं?

खतरों के बारे में समझाइए। जब टेक्नॉलजी और इंटरनेट की बात आती है, तो बच्चे शायद उन्हें चुटकियों में सीख लें। लेकिन उनमें समझ और तजुरबे की कमी होती है, जिस वजह से वे हर किसी पर आसानी से भरोसा कर लेते हैं। इसलिए उन्हें खतरों के बारे में समझाइए और उनसे बचने का तरीका भी बताइए। ऑनलाइन सोशल नेटवर्क की मिसाल लीजिए। माना कि ऐसी वेब साइटें नौजवानों को अपने बारे में बताने और दूसरे जवानों से जान-पहचान बढ़ाने का मौका देती हैं। लेकिन यह भी सच है कि इस तरह की वेब साइटें “खुली दुकान” की तरह हैं, जहाँ पर बुरी नीयतवाले और बच्चों को अपनी हवस के शिकार बनानेवाले लोग भी घूमते हैं। * (1 कुरिंथियों 15:33) इसलिए समझदार माता-पिता अपने बच्चों को ज़ोर देकर बताते हैं कि वे इंटरनेट पर किसी को अपने बारे में जानकारी न दें। *

इसमें कोई शक नहीं कि जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं, उन्हें प्राइवेसी यानी अकेले में कुछ वक्‍त बिताने की आज़ादी देना ज़रूरी है। लेकिन माँ-बाप होने के नाते, आपको परमेश्‍वर से यह ज़िम्मेदारी और अधिकार मिला है कि आप अपने बच्चों को सही मार्ग की शिक्षा दें और उनकी निगरानी करें। (नीतिवचन 22:6; इफिसियों 6:4) उम्मीद है कि बच्चे आपकी परवाह को दखलअंदाज़ी नहीं, बल्कि आपके निस्वार्थ प्यार का सबूत समझेंगे।

आप शायद सोचें, “मेरे बच्चे जिन इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों का इस्तेमाल करते हैं, उनके बारे में मुझे कुछ पता नहीं, तो भला मैं उनकी मदद कैसे कर सकता हूँ?” ऐसी बात है, तो क्यों न आप उन चीज़ों के बारे में थोड़ा-बहुत जान लें? मैल्बा नाम की एक स्त्री की बात लीजिए जिसकी उम्र 90 साल से ऊपर है। उसने अपनी ज़िंदगी में कभी कंप्यूटर को हाथ तक नहीं लगाया था, लेकिन 80 की उम्र पार करने के बाद उसने इसे इस्तेमाल करना शुरू किया। वह बताती है: “जब मैंने पहली बार कंप्यूटर चलाने की कोशिश की, तो मन किया कि इसे उठाकर खिड़की से बाहर फेंक दूँ। लेकिन कुछ महीने बाद, मैं इसका इस्तेमाल करना सीख गयी। अब मैं आसानी से ई-मेल भेज और पढ़ सकती हूँ, साथ ही इस पर दूसरे काम भी कर सकती हूँ।”

आपके बच्चे किस हद तक टेक्नॉलजी का इस्तेमाल कर सकते हैं, इस पर मुनासिब बंदिशें लगाइए। अगर आपका बच्चा टीवी देखने, इंटरनेट पर रहने या कंप्यूटर गेम खेलने के लिए घंटों कमरे में बंद रहता है, तो क्यों न आप यह तय करें कि घर की फलाँ-फलाँ जगह और समय पर इन चीज़ों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा? इससे आपका बेटा या बेटी बाइबल के इस सिद्धांत की अहमियत समझ पाएगा/गी: “हर एक बात का. . . एक समय [होता] है।” इसका मतलब, परिवार और दोस्तों के साथ वक्‍त बिताने, होमवर्क करने, खाना खाने, कसरत वगैरह करने का एक समय होता है। (सभोपदेशक 3:1) सोच-समझकर नियम बनाइए और उन्हें लागू करने में ढिलाई मत बरतिए। इससे आपका परिवार एक रहेगा और आपके बच्चों को मदद मिलेगी कि वे दूसरों के साथ अदब से पेश आएँ, उनके लिए लिहाज़ दिखाएँ और उनसे घुल-मिल जाएँ। (g09-E 11)

[फुटनोट]

^ पैरा. 12 माता-पिताओं को जनवरी-मार्च 2009 की सजग होइए! के पेज 12 पर दिए लेख से काफी मदद मिलेगी। इसका शीर्षक है, “इंटरनेट की दुनिया में नन्हे कदम—माता-पिताओं को क्या जानने की ज़रूरत है।” इसी पत्रिका के जनवरी-मार्च 2008 और अँग्रेज़ी में मार्च और दिसंबर 2007 के अंकों में वीडियो गेम, पोर्नोग्राफी और इंटरनेट के बारे में काफी जानकारी दी गयी है।

^ पैरा. 12 कुछ किशोर बच्चे, दोस्तों को अपनी अश्‍लील तसवीरें भेजने के लिए सेल फोन का भी इस्तेमाल करते हैं। यह न सिर्फ बड़ा ओछा काम है, बल्कि मूर्खता भी है। क्योंकि एक बच्चा चाहे जिस मकसद से इन तसवीरों को भेजे, ये अकसर उसके दोस्तों तक ही नहीं रहतीं बल्कि दूसरों के हाथ भी लग जाती हैं।

[पेज 17 पर तसवीर]

दूसरी कई चीज़ों में भी बच्चों की दिलचस्पी बढ़ायी जानी चाहिए ताकि उनकी समझ बढ़े, उनमें सब्र और बुलंद इरादा पैदा हो