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मैं मम्मी या पापा की मौत का गम कैसे सहूँ?

मैं मम्मी या पापा की मौत का गम कैसे सहूँ?

नौजवान पूछते हैं

मैं मम्मी या पापा की मौत का गम कैसे सहूँ?

“जब मम्मी चल बसी, तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ। मुझे लगा जैसे मेरी दुनिया ही उजड़ गयी हो। वह हमारे परिवार की मज़बूत डोर थी जिसने हम सबको एक-दूसरे से बाँधे रखा था।”—किरन। *

अपने पापा या मम्मी के गुज़र जाने पर आपको जो सदमा और दुख पहुँचता है, उससे बड़ा दुख शायद ही कोई हो। आपको न सिर्फ उन्हें खोने का गहरा दर्द महसूस हो, बल्कि आपका आनेवाला कल भी कुछ हद तक बदल जाए।

हो सकता है, आपका अरमान था कि जब आप स्कूल से पास होंगे, आपको अपनी पहली नौकरी मिलेगी या आपकी शादी होगी, तो आपके प्यारे पापा या मम्मी आपकी खुशी में शरीक होंगे। लेकिन अब अपने अरमानों को खाक में मिलते देख आपके अंदर तरह-तरह की भावनाएँ उठें। आप दुखी या निराश महसूस करें, यहाँ तक कि आपको गुस्सा भी आए। आप इन भावनाओं का सामना करने में कैसे कामयाब हो सकते हैं?

‘क्या ऐसा महसूस करना सही है?’

जब आपको पूरी तरह एहसास होता है कि आपकी मम्मी या पापा नहीं रहे, तो आपको शायद कई तरह की भावनाओं से जूझना पड़े, जिन्हें आपने पहले कभी महसूस नहीं किया था। बंटी सिर्फ 13 साल का था जब उसके पापा को दिल का दौरा पड़ा और वे चल बसे। बंटी कहता है: “जिस रात हमें पता चला कि पापा नहीं रहे, हम एक-दूसरे से लिपटकर बस रोते ही रहे।” नताशा 10 साल की थी जब उसके पापा की मौत कैंसर से हुई। वह उस घड़ी को याद करते हुए कहती है: “मुझे मालूम ही नहीं था कि मुझे कैसा महसूस करना चाहिए। इसलिए मैं सुन्‍न पड़ गयी। मेरी आँख से एक आँसू तक नहीं गिरा।”

मौत का हर किसी पर एक-जैसा असर नहीं होता। बाइबल कहती है, ‘हर मनुष्य’ को ‘अपना दुख और अपनी पीड़ा’ होती है। (2 इतिहास 6:29, NHT) इस बात को ध्यान में रखते हुए, ज़रा सोचिए कि आपकी मम्मी या पापा की मौत का आप पर क्या असर हुआ है। नीचे दी जगह पर बताइए कि (1) जब आपको पहली बार पता चला कि आपकी मम्मी या पापा की मौत हो गयी है, तो आपको कैसा लगा और (2) अब आप कैसा महसूस करते हैं। *

(1) .....

(2) .....

शायद आपके जवाबों से ज़ाहिर हो कि आपका गम कुछ हद तक कम हो रहा है। यह बिलकुल स्वाभाविक है। इसका मतलब यह नहीं कि आप अपनी मम्मी या पापा को भूल गए हैं। लेकिन दूसरी तरफ, शायद आपको लगे कि आपकी भावनाएँ वैसी की वैसी हैं या फिर आपका दुख और बढ़ गया है। हो सकता है, आपका गम समुद्र की लहरों की तरह हो जो एक पल शांत लगती हैं तो दूसरे ही पल किनारे से जा “टकराती” हैं। यह भी स्वाभाविक है, फिर चाहे आपकी मम्मी या पापा को गुज़रे कई साल क्यों न हो गए हों। अपनों को खोने का गम आप पर चाहे जो भी असर करे, आप उससे कैसे उबर सकते हैं?

गम से उबरने के तरीके

अपने आँसुओं को मत रोकिए! रोने से दुख हलका होता है। लेकिन शायद आप अलीशा की तरह महसूस करें, जो सिर्फ 19 साल की थी जब उसकी मम्मी गुज़र गयी। वह कहती है: “मुझे लगा कि अगर मैं अपना दुख खुलकर ज़ाहिर करूँ, तो सबको लगेगा कि मुझमें विश्‍वास की कमी है।” लेकिन ज़रा सोचिए: यीशु मसीह एक परिपूर्ण इंसान था और उसे परमेश्‍वर पर मज़बूत विश्‍वास था। फिर भी, अपने अज़ीज़ दोस्त लाज़र की मौत पर उसके “आंसू बहने लगे।” (यूहन्‍ना 11:35) इसलिए अपने आँसुओं को मत रोकिए, उन्हें बहने दीजिए। इसका मतलब यह हरगिज़ नहीं कि आपमें विश्‍वास की कमी है। अलीशा कहती है: “आखिरकार मेरे आँसुओं का बाँध टूट गया। मैं फूट-फूटकर रोयी। ऐसा एक भी दिन नहीं गया जब मेरी आँखें छलछला न आयी हों।” *

दोष की भावनाओं को पहचानिए। किरन 13 साल की थी जब उसकी मम्मी चल बसी। वह कहती है: “मैं हर रात मम्मी को ‘गुड-नाइट किस’ देती थी। लेकिन एक रात मैंने ऐसा नहीं किया। अगली सुबह मम्मी इस दुनिया में नहीं रही। मैं जानती हूँ कि यह बात बेतुकी है लेकिन मैं खुद को मम्मी की मौत का ज़िम्मेदार मानती हूँ। मैंने उसे आखिरी बार नहीं देखा। ऊपर से पापा ने मुझे और दीदी को मम्मी का खयाल रखने के लिए कहा था क्योंकि वे बिज़नेस के सिलसिले में बाहर जा रहे थे। लेकिन उस दिन हम देर से उठे। और जब मैं मम्मी के बैडरूम में गयी, तो देखा कि उनकी साँसें रुक गयी हैं। मुझे बहुत बुरा लगा क्योंकि जब पापा घर से गए थे, तब मम्मी बिलकुल ठीक थी।”

किरन की तरह शायद आपको भी लगे कि आपकी किसी लापरवाही की वजह से आपके पापा या मम्मी की मौत हुई है। आप यह सोच-सोचकर खुद को तकलीफ भी दें कि ‘काश! मैंने पापा से डॉक्टर के पास जाने की ज़िद की होती।’ ‘काश! मैं मम्मी के पास थोड़ा पहले गया होता।’ अगर ऐसे खयाल रह-रहकर आपको परेशान करते हैं, तो याद रखिए: इस तरह अफसोस करना स्वाभाविक है। सच तो यह है कि अगर आपको पहले से पता होता कि क्या होनेवाला है, तो आप ज़रूर वही करते जिससे आपके पापा या मम्मी की जान बच जाती। लेकिन आपको पता नहीं था। इसलिए उनकी मौत के लिए खुद को दोष देना ठीक नहीं। आप अपने पापा या मम्मी की मौत के ज़िम्मेदार नहीं हैं! *

अपनी भावनाएँ ज़ाहिर कीजिए। नीतिवचन 12:25 कहता है: “प्यार-भरे शब्दों से आपका दिल खुश हो जाएगा।” (टुडेज़ इंग्लिश वर्शन) अपनी भावनाओं को दिल में दबाए रखने से गम से उबरना मुश्‍किल हो सकता है। दूसरी तरफ, एक भरोसेमंद इंसान को अपनी भावनाएँ बताने का फायदा यह होगा कि जब आप बिलकुल मायूस हो जाते हैं, तो वह “प्यार-भरे शब्दों” से आपकी हौसला-अफज़ाई करेगा। तो क्यों न आप इनमें से कुछेक सुझाव आज़मा कर देखें?

आपके मम्मी-पापा में से जो जीवित हैं, उनसे बात कीजिए। हालाँकि आपके पापा या मम्मी के लिए यह एक मुश्‍किल घड़ी है, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि वे आपकी मदद करना चाहते/ती हैं। इसलिए उन्हें बताइए कि आप कैसा महसूस करते हैं। इस तरह की बातचीत सचमुच आपके दुख को हलका करेगी और आप दोनों को एक-दूसरे के करीब लाएगी।

बातचीत कैसे शुरू करें, इसके लिए यह आज़माइए: ऐसी दो या तीन बातें लिखिए जो आपको लगता है कि काश! मैं अपनी मम्मी या पापा के बारे में जान पाता। फिर आपके मम्मी-पापा में से जो जीवित हैं, उनसे इस बारे में बात करने को कहिए। *

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करीबी दोस्तों से बात कीजिए। बाइबल बताती है कि सच्चा दोस्त “मुसीबत के दिन के लिए पैदा हुआ है।” (नीतिवचन 17:17, किताब-ए-मुकद्दस) अलीशा कहती है, “कभी-कभी आप जिस इंसान से उम्मीद नहीं करते, वही आपकी मदद करता है। इसलिए अपनी भावनाओं के बारे में बात करने से मत घबराइए।” माना कि इस तरह की बातें करना थोड़ा अजीब लगे क्योंकि आपको और आपके दोस्त को पता न हो कि क्या कहें या कैसे कहें। लेकिन दूसरों के साथ अपना गम बाँटने से आपको आगे चलकर बहुत मदद मिलेगी। देव सिर्फ 9 साल का था जब उसके पापा की हार्ट अटैक से मौत हो गयी। उन दिनों को याद करते हुए वह कहता है: “मैंने अपनी सारी भावनाएँ अपने दिल में बंद कर ली थीं। लेकिन अगर मैंने उनके बारे में बात की होती, तो यह मेरे तन और मन दोनों के लिए अच्छा होता। मैं और भी अच्छी तरह अपने गम से उबर पाता।”

परमेश्‍वर से बात कीजिए। प्रार्थना में यहोवा परमेश्‍वर से ‘अपने मन की बातें खोलकर कहने’ से शायद आप अच्छा महसूस करें। (भजन 62:8) मगर यह सिर्फ आपको अच्छा महसूस कराने का फार्मूला नहीं है। प्रार्थना में आप ‘हर तरह का दिलासा देनेवाले परमेश्‍वर’ से दुआ करते हैं, जो सही मायनों में “हमारी सब दुःख-तकलीफों में हमें दिलासा देता है।”—2 कुरिंथियों 1:3, 4.

एक तरीका जिससे परमेश्‍वर दिलासा देता है, वह है अपनी पवित्र शक्‍ति के ज़रिए। यह आपमें “वह ताकत” भर सकती है “जो आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर है,” ताकि आप धीरज के साथ अपना दुख झेल सकें। (2 कुरिंथियों 4:7) परमेश्‍वर हमें “शास्त्र से [भी] दिलासा” देता है। (रोमियों 15:4) तो फिर, परमेश्‍वर से उसकी शक्‍ति माँगिए और उसके वचन, बाइबल में दी हिम्मत बढ़ानेवाली बातें पढ़ने के लिए समय निकालिए। (2 थिस्सलुनीकियों 2:16, 17) क्यों न आप ऐसे वचनों की फेहरिस्त बनाएँ जो खासकर आपको दिलासा देते हैं? *

क्या यह दर्द कभी खत्म होगा?

किसी की मौत के गम से उबरने में वक्‍त लगता है। बरखा 16 साल की थी जब उसकी मम्मी मर गयी। वह कहती है: “शोक मनाना ऐसा नहीं कि आपने तय किया और आप ‘उससे उबर आए।’ कई दिन ऐसे थे जब मैं रोते-रोते सो जाती। और कई दिन ऐसे थे जब मैं मम्मी को खोने के बारे में नहीं, बल्कि यहोवा के उन वादों के बारे में सोचने की कोशिश करती थी जिन्हें मैं फिरदौस में मम्मी के साथ पूरा होते देखूँगी।”

बरखा ने जिस फिरदौस की बात कही, बाइबल यकीन दिलाती है कि उस फिरदौस में “न मौत रहेगी, न मातम, न रोना-बिलखना, न ही दर्द रहेगा।” (प्रकाशितवाक्य 21:3, 4) अगर आप ऐसे वादों के बारे में मनन करें, तो आपको भी अपनी मम्मी या पापा की मौत का गम सहने में मदद मिलेगी। (g09-E 08)

“नौजवान पूछते हैं” के और भी लेख, वेब साइट www.watchtower.org/ype पर उपलब्ध हैं

[फुटनोट]

^ पैरा. 3 इस लेख में नाम बदल दिए गए हैं।

^ पैरा. 8 अगर फिलहाल इन सवालों के जवाब देना आपको मुश्‍किल लग रहा है, तो आप इनके जवाब बाद में भी दे सकते हैं।

^ पैरा. 13 यह मत सोचिए कि दुख ज़ाहिर करने के लिए आपको रोना ही पड़ेगा। लोग अलग-अलग तरीकों से अपना दुख ज़ाहिर करते हैं। ज़रूरी बात यह है कि अगर आपको रोने का दिल कर रहा है, तो समझ लीजिए कि यह “रोने का समय” है।—सभोपदेशक 3:4.

^ पैरा. 15 अगर फिर भी आपको ऐसे खयाल सताते हैं, तो आपके मम्मी-पापा में से जो जीवित हैं, उनसे या किसी बड़े से बात कीजिए। हो सकता है, समय के गुज़रते आपमें से दोष की भावना जाती रहे।

^ पैरा. 18 अगर आपकी परवरिश अकेले आपके पापा या मम्मी ने की है या किसी वजह से आपके मम्मी-पापा में से जो जीवित हैं, वे आपके साथ नहीं रहते, तो आप किसी बड़े से अपने दिल की बात कह सकते हैं।

^ पैरा. 22 कुछ लोगों को इन आयतों से दिलासा मिला है: भजन 34:18; 102:17; 147:3; यशायाह 25:8; यूहन्‍ना 5:28, 29.

इस बारे में सोचिए

◼ इस लेख में दिए किन सुझावों को आप अमल करेंगे?

◼ नीचे कुछ ऐसी आयतें लिखिए जो आपको तब दिलासा देंगी जब अपना दुख सहना आपके बस के बाहर हो जाता है।

[पेज 11 पर बक्स]

रोना गलत नहीं . . . वे भी रोए थे!

अब्राहम—उत्पत्ति 23:2.

यूसुफ—उत्पत्ति 50:1.

दाविद—2 शमूएल 1:11, 12; 18:33.

लाज़र की बहन मरियम—यूहन्‍ना 11:32, 33.

यीशु—यूहन्‍ना 11:35.

मरियम मगदलीनी—यूहन्‍ना 20:11.

[पेज 12 पर बक्स/तसवीर]

एक डायरी रखिए

अपनी भावनाओं को कागज़ पर उतारने से आपको अपने पापा या मम्मी की मौत का गम सहने में मदद मिलेगी। ऐसी बहुत-सी बातें हैं जिनके बारे में आप लिख सकते हैं। नीचे चंद सुझाव दिए गए हैं।

◼ अपने पापा या मम्मी से जुड़ी कुछ मीठी यादें लिखिए।

◼ लिखिए कि अगर वे ज़िंदा होते तो आप उनसे क्या कहते।

◼ मान लीजिए, आपका एक छोटा भाई या बहन है जो मम्मी या पापा की मौत के लिए खुद को दोषी ठहराता/ती है। लिखिए कि आप उसे दिलासा देने के लिए क्या कहेंगे। इससे आपको अपने अंदर दोष की भावना पर काबू पाने में मदद मिलेगी।

[पेज 13 पर बक्स]

मम्मी-पापा में से जो जीवित हैं, उनके लिए एक पैगाम

अपने जीवन-साथी को खोने का गम बहुत दर्दनाक होता है। मगर ऐसे वक्‍त में आपके किशोर बच्चे को आपकी ज़रूरत है। आप अपनी भावनाओं को नज़रअंदाज़ किए बगैर अपने बच्चे को उसका गम सहने में कैसे मदद दे सकते हैं?

अपनी भावनाओं को दबाने की कोशिश मत कीजिए। आपका बच्चा ज़िंदगी के कई अनमोल सबक आपको देखकर सीखा है। अपने गम से उबरने के लिए भी वह आपकी ओर देखेगा। इसलिए यह मत सोचिए कि आपको अपने बच्चे की खातिर अपना दुख छिपाना होगा और उसके लिए मज़बूत बनना होगा। अगर आप ऐसा करेंगे तो आपका बच्चा भी आपकी देखा-देखी करेगा। इसके उलट, जब आप अपना दुख ज़ाहिर करते हैं, तो वह सीखेगा कि भावनाओं को दबाए रखने से अच्छा है उन्हें ज़ाहिर करना। वह यह भी सीखेगा कि ऐसे वक्‍त में दुखी होना, खीझ उठना या गुस्सा करना स्वाभाविक है।

अपने किशोर बच्चे को उकसाइए कि वह आपसे बात करे। अपने बच्चे पर दबाव डाले बगैर उसे प्यार से उकसाइए कि वह अपने दिल की बात आपसे कहे। अगर वह झिझक महसूस करता है, तो क्यों न इस लेख पर उसके साथ चर्चा करें? इसके अलावा, अपने गुज़रे साथी के संग बिताए खूबसूरत पलों के बारे में उसे बताइए। कबूल कीजिए कि अपने साथी के बिना जीना आपके लिए मुश्‍किल होगा। आपकी बातें सुनकर आपका बच्चा भी अपनी भावनाओं को ज़ाहिर करना सीखेगा।

अपनी सीमाएँ पहचानिए। बेशक, इस मुश्‍किल दौर में आप अपने बच्चे के लिए एक मज़बूत सहारा बनना चाहेंगे। लेकिन याद रखिए, आपने भी अपने प्यारे साथी को खोया है। इसलिए जज़बाती, मानसिक और शारीरिक तौर पर आप कुछ समय के लिए कमज़ोर हैं। (नीतिवचन 24:10) शायद आपको अपने परिवार के बड़े-बुज़ुर्गों और दोस्तों की मदद लेनी पड़े। मदद माँगना समझदारी है। नीतिवचन 11:2 कहता है: “नम्र [“मर्यादाशील,” NW] लोगों में बुद्धि होती है।”

लेकिन आपको सबसे बढ़िया सहारा सिर्फ यहोवा परमेश्‍वर ही दे सकता है। वह अपने सेवकों से वादा करता है: “मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा, तेरा दहिना हाथ पकड़कर कहूंगा, मत डर, मैं तेरी सहायता करूंगा।”—यशायाह 41:13.

[पेज 11 पर तसवीर]

आपका गम ऐसी लहरों की तरह हो सकता है जो अचानक किनारे से जा टकराती हैं