क्या अकेले में कुछ पल बिताने की चाहत रखना गलत है?
नौजवान पूछते हैं
क्या अकेले में कुछ पल बिताने की चाहत रखना गलत है?
नीचे बताए हालात में आप क्या करेंगे, उस पर सही (✓) का निशान लगाइए।
1. आप अपने कमरे में हैं और दरवाज़ा बंद है। तभी अचानक आपका छोटा भाई या बहन बिना खटखटाए अंदर आ धमकता है।
❍ ‘कोई बात नहीं . . . मैं भी अपने भाई-बहन के कमरे में ऐसे ही घुस जाता हूँ।’
❍ ‘ये क्या बदतमीज़ी है! अगर मैं कपड़े पहन रहा होता तो?’
2. आप फोन पर अपने दोस्त से बात कर रहे हैं और मम्मी कुछ दूर खड़ी आपकी हर बात कान लगाकर सुन रही हैं।
❍ ‘तो क्या हुआ . . . छिपानेवाली कोई बात ही नहीं है।’
❍ ‘ओह हो! यह मम्मी भी ना! हर वक्त मेरी जासूसी करती रहती हैं!’
3. आपने अभी-अभी घर में कदम रखा है और मम्मी-पापा आप पर सवालों की छड़ी लगा देते हैं। “तुम कहाँ गए थे? क्या कर रहे थे? किसके साथ गए थे?”
❍ ‘कोई बात नहीं . . . वैसे भी मैं उन्हें सारी बात बताता हूँ।’
❍ ‘उफ! मम्मी-पापा को मुझ पर ज़रा भी भरोसा नहीं!’
जब आप छोटे थे तो शायद ही आपको अकेले में कुछ पल बिताने की ज़रूरत महसूस हुई होगी। अगर आपका छोटा भाई या बहन अचानक आपके कमरे में आ-धमकता था, तो आप उसके आने से खुश होते थे। आपके मम्मी-पापा आपसे कुछ भी पूछते थे, तो आप बेझिझक सारी बातें बता देते थे। उस वक्त आपकी ज़िंदगी एक खुली किताब थी। मगर आज शायद आपको लगे कि आपकी हर बात सबको मालूम हो, ये ज़रूरी नहीं। चौदह साल का करन कहता है, “मुझे कुछ बातें अपने तक रखना पसंद है।” *
लेकिन अचानक आपको अकेले में कुछ पल बिताने की इच्छा क्यों होने लगी? क्योंकि आप बड़े हो रहे हैं। जवानी में कदम रखने पर शरीर में जो बदलाव आते हैं, उस वजह से आप अपने रंग-रूप को लेकर कुछ ज़्यादा ही फिक्र करने लगते हैं। यहाँ तक कि नीतिवचन 1:1, 4; व्यवस्थाविवरण 32:29) यहाँ तक कि यीशु मसीह भी गहराई से सोचने के लिए एक “सुनसान जगह में” गया था।—मत्ती 14:13.
अपने परिवार के लोगों के सामने भी आप शर्म और हिचक महसूस करते हैं। जैसे-जैसे आप बड़े होते हैं आप एक और नयापन महसूस करते हैं। आप ज़िंदगी के कुछ मामलों पर अकेले में सोचना चाहते हैं। और यह इस बात की निशानी है कि आप अपने “विवेक” यानी सोचने-समझने की काबिलीयत को बढ़ा रहे हैं। बाइबल आप जैसे जवानों की तारीफ करती है। (याद रखिए, आप अभी-भी अपने मम्मी-पापा के अधीन हैं और उन्हें यह जानने का पूरा हक है कि आपकी ज़िंदगी में क्या हो रहा है। (इफिसियों 6:1) लेकिन एक तरफ आप बड़े हो रहे हैं और अकेले रहना पसंद करते हैं, वहीं दूसरी तरफ आपके माँ-बाप आपके बारे में हर चीज़ जानना चाहते हैं, ऐसे में आपके बीच कुछ मतभेद हो सकते हैं। आप इनसे कैसे निपट सकते हैं? आइए ऐसे दो हालात पर गौर करें, जब आपके सामने चुनौती आ सकती है।
जब आप तनहाई चाहते हैं
तनहाई चाहने के बहुत-से वाजिब कारण हो सकते हैं। शायद आप “थोड़ा आराम” करना चाहते हों। (मरकुस 6:31) या हो सकता है आप परमेश्वर से प्रार्थना करना चाहते हों। ठीक जैसा यीशु ने अपने चेलों को सलाह दी थी, “अपने घर के अंदर के कमरे में जा और दरवाज़ा बंद करने के बाद अपने पिता से . . . प्रार्थना कर।” (मत्ती 6:6; मरकुस 1:35) लेकिन समस्या तब आती है जब प्रार्थना करने के लिए आप अपने कमरे का (अगर आपका खुद का एक कमरा है तो) दरवाज़ा बंद कर लेते हैं, और आपके मम्मी-पापा को नहीं पता होता है कि आप प्रार्थना कर रहे हैं। या जब आप तनहाई चाहते हैं और आपके भाई-बहन आपकी यह ज़रूरत नहीं समझ पाते।
आप क्या कर सकते हैं। अपने कमरे को जंग का मैदान बनाने के बजाय अच्छा होगा अगर आप आगे दिए कुछ कदम उठाएँ।
● जहाँ तक आपके भाई-बहनों की बात है, तो सोच-समझकर ऐसे नियम बनाइए जिससे आप अकेले में अपने लिए कुछ वक्त निकाल सकें। और अगर ज़रूरत पड़ती है तो इस सिलसिले में अपने मम्मी-पापा की मदद लीजिए।
● जब माँ-बाप की बात आती है, तो उनके नज़रिए को समझने की कोशिश कीजिए। सोलह साल की रेनू का कहना है, “कभी-कभी मम्मी-पापा चुपके से मेरे बारे में पूछताछ करते हैं। लेकिन सच कहूँ तो अगर मैं उनकी जगह होती तो मैं भी ऐसा ही करती। क्योंकि आजकल दुनिया में कई चीज़ें हैं जो जवानों को बुरे काम करने के लिए लुभाती है।” रेनू की तरह, क्या आप भी अपने मम्मी-पापा का नज़रिया और चिंता की वजह समझने की कोशिश करते हैं?—नीतिवचन 19:11.
● खुद से ईमानदारी से पूछिए: ‘जब मैं अकेले कमरे में होता हूँ तो क्या मेरे मम्मी-पापा शक करते हैं कि मैं कुछ गलत काम कर रहा हूँ? ऐसा मैंने क्या किया जिस वजह से उन्हें मुझ पर भरोसा *
नहीं? क्या मैं उनसे कुछ छिपाता हूँ कि उन्हें मेरी जासूसी करनी पड़ती है?’ आप मम्मी-पापा से जितना खुल्लम-खुल्ला बात करेंगे, उतना ही कम वे आप पर शक करेंगे।आपकी योजनाएँ। नीचे लिखिए कि आप इस विषय पर अपने मम्मी-पापा से बात करने के लिए क्या कहेंगे।
.....
जब आप नए दोस्त बनाते हैं
किशोरावस्था में यह आम बात है कि आप घर से बाहर नए दोस्त बनाते हैं। और आपके माता-पिता के लिए भी यह फिक्र करना आम है कि आपके दोस्त कौन हैं और उनके साथ मिलकर आप क्या करते हैं। याद रखिए कि हर माँ-बाप का यह फर्ज़ है कि वे अपने बच्चों की खैर-खबर रखें। लेकिन आपको मम्मी-पापा का ऐसा करना ठीक न लगे और आप शायद सोचें कि वे कुछ ज़्यादा ही शक्की हैं। इस सिलसिले में सोलह साल की अनोरा कहती है: “मुझे बस मेरा मोबाइल और कंप्यूटर चाहिए। और मैं नहीं चाहती कि हर दस मिनट में मम्मी-पापा आकर मुझसे पूछें कि मैं किससे गुफ्तगू कर रही हूँ।”
आप क्या कर सकते हैं। अगर आप नहीं चाहते कि आपके दोस्तों की वजह से मम्मी-पापा और आपके बीच दीवार खड़ी हो, तो आगे दिए सुझाव अपनाइए।
● मम्मी-पापा को साफ-साफ बताइए कि आपके दोस्त कौन हैं और उनसे उनकी जान-पहचान करवाइए। बेशक आप नहीं चाहते कि आपके मम्मी-पापा सी.आई.डी की तरह आपकी जासूसी करें। लेकिन अगर उन्हें पता ही नहीं होगा कि आप किन लोगों के साथ मिलते-जुलते हैं तो क्या उनके पास कोई चारा बचेगा? याद रखिए, आपके मम्मी-डैडी अच्छी तरह जानते हैं कि आप जिस तरह के दोस्त चुनेंगे, उसका आप पर गहरा असर होगा। (1 कुरिंथियों 15:33) इसलिए अगर आपके मम्मी-पापा उन लोगों से वाकिफ हैं जिनके साथ आप उठते-बैठते हैं, तो उन्हें यकीन रहेगा कि आपकी संगति अच्छे लोगों से है।
● इस बारे में अपने माँ-बाप से इज़्ज़त से बात कीजिए। यह कहकर उन पर इलज़ाम मत लगाइए कि वे आपकी ज़िंदगी में दखलअंदाज़ी कर रहे हैं। इसके बजाय, शायद आप कुछ ऐसा कह सकते हैं, “मुझे लगता है कि मैं अपने दोस्तों से जो भी बात करता हूँ, उसकी बाल की खाल निकाली जाती है और मुझे कसूरवार ठहराया जाता है। मेरा दोस्तों से बात करना मुश्किल हो गया है।” अगर इस तरह आप मम्मी-डैडी से अपनी इच्छा ज़ाहिर करें, तो हो सकता है, वे आपको अपने दोस्तों के साथ अकेले में कुछ वक्त बिताने की छूट दे दें।—नीतिवचन 16:23.
● खुद से ईमानदारी से पूछिए: असली मुद्दा क्या है, क्या मैं वाकई अपने दोस्तो के साथ अकेले में कुछ वक्त बिताना चाहता हूँ या चोरी-छिपे कुछ करना चाहता हूँ? बाईस साल की बरखा कहती है, “अगर आप अपने मम्मी-पापा के साथ रहते हैं और उन्हें हमेशा आपकी चिंता सताती है, तो ऐसे में आपको खुद से पूछना चाहिए, ‘मैं जो कर रही हूँ अगर वह गलत नहीं है, तो फिर इसमें छिपानेवाली क्या बात है?’ लेकिन अगर आपको लगता है कि आपको कोई बात छिपानी चाहिए, तो ज़रूर दाल में कुछ काला है।”
आपकी योजनाएँ नीचे लिखिए कि आप इस विषय पर अपने मम्मी-पापा से बात करने के लिए क्या कहेंगे।
.....
अकेले में कुछ वक्त बिताने की चाहत और आप
अब ज़रा अपने दिमाग पर ज़ोर दीजिए और सोचिए कि किस मामले में आप छूट चाहते हैं या आप अकेले में कुछ वक्त बिताना चाहते हैं और इसके लिए आप क्या कर सकते हैं।
पहला कदम: मुद्दे को पहचानिए।
आप किस मामले में और ज़्यादा छूट चाहते हैं?
.....
दूसरा कदम: अपने मम्मी-पापा का नज़रिया समझने की कोशिश कीजिए।
आपको क्या लगता है उनकी चिंता का कारण क्या हो सकता है?
.....
तीसरा कदम: समस्या का हल ढूँढ़िए
(क) सोचिए कि कहीं आप अनजाने में समस्या को बढ़ा तो नहीं रहे। अगर हाँ, तो किस तरह? नीचे लिखिए।
.....
(ख) हालात को सुधारने के लिए आप क्या कर सकते हैं?
.....
(ग) आप किस तरह चाहते हैं कि आपके मम्मी-पापा आपकी परेशानी हल करें?
.....
चौथा कदम: अपने दिल की बात खुलकर बताइए
सही वक्त ढूँढ़कर मम्मी-पापा के साथ ऊपर लिखी बातों पर चर्चा कीजिए। (g10-E 03)
“नौजवान पूछते हैं” के और भी लेख, वेब साइट www.watchtower.org/ype पर उपलब्ध हैं
[फुटनोट]
^ पैरा. 13 इस लेख में कुछ नाम बदल दिए गए हैं।
^ पैरा. 21 अगर आपके मम्मी-पापा आप पर भरोसा नहीं करते, तो इत्मीनान से और अदब के साथ उन्हें बताइए कि आप कैसा महसूस करते हैं। जब वे अपनी राय बताते हैं तो ध्यान से सुनिए। और यह जानने की कोशिश कीजिए कि जो भी समस्या है कहीं उसमें आपका हाथ तो नहीं।—याकूब 1:19.
इस बारे में सोचिए
● क्यों आपके माँ-बाप को आपकी निजी ज़िंदगी के बारे में जानने का हक है?
● माँ-बाप से बातचीत करने का हुनर बढ़ाने से आगे चलकर आपको ज़िंदगी में बड़े और उम्रदराज़ लोगों से बात करने में कैसे मदद मिलेगी?
[पेज १३ पर बक्स/तसवीरें]
आपके हमउम्र क्या कहते हैं
“अगर जवान बच्चे माँ-बाप से खुलकर बात करें, तो बच्चों की ज़िंदगी में क्या चल रहा है, यह पता लगाने के लिए उन्हें बच्चों के ई-मेल और मेसेज पढ़ने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।”
“अगर मेरे मम्मी-पापा मेरे ई-मेल पढ़ भी लेते हैं, तो मुझे बुरा नहीं लगता। जब एक बॉस को अपने ऑफिस में काम करनेवाले के ई-मेल पढ़ने का पूरा हक होता है, तो फिर माँ-बाप को बच्चों के ई-मेल पढ़ने का हक क्यों नहीं होना चाहिए?”
“माँ-बाप नहीं चाहते कि आपके साथ कुछ भी बुरा हो। इसलिए कभी-कभी आपको लग सकता है कि वे आपकी ज़िंदगी में दखल दे रहे हैं और यह शायद आपको अच्छा न लगे। लेकिन सच कहूँ तो अगर मैं उनकी जगह होती, तो मैं भी कुछ ऐसा ही करती।”
[तसवीरें]
ईडन
केविन
ऐलाना
[पेज 13 पर बक्स]
माता-पिता के लिए एक पैगाम
● आपका बेटा अपने कमरे में है और दरवाज़ा बंद है। क्या आपको बिना खटखटाए अंदर घुस जाना चाहिए?
● स्कूल जाने की जल्दबाज़ी में आपकी बेटी अपना मोबाइल घर पर ही भूल गयी है। क्या आपको उसके मेसेज पढ़ने चाहिए?
इन सवालों के जवाब देना आसान नहीं। क्योंकि एक तरफ, आपको यह जानने का पूरा हक है कि आपके बेटे या बेटी की ज़िंदगी में क्या चल रहा है और उनकी हिफाज़त करना आपकी ज़िम्मेदारी है। वहीं दूसरी तरफ, आप चौबीसों घंटे उनकी हरेक हरकत पर नज़र नहीं रख सकते। तो फिर ऐसे में आप एक सही तालमेल कैसे बनाए रख सकते हैं? आगे दिए तीन कदम उठाइए।
पहला: जब कभी एक किशोर अकेले में कुछ पल बिताना चाहता है, तो यह मत सोचिए कि वह हमेशा कुछ गलत काम करेगा। दरअसल जैसे-जैसे बच्चे बढ़े होते हैं, वे अकेले रहना चाहते हैं। और यह ज़रूरी भी है क्योंकि तभी वे अपने फैसले खुद लेना सीखेंगे और नए दोस्त बना पाएँगे। साथ ही, अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए “अपनी सोचने-समझने की शक्ति” का इस्तेमाल कर पाएँगे। (रोमियों 12:1, 2) अकेले में समय बिताना जवानों के लिए ज़रूरी है, क्योंकि तभी वे अपनी सोचने की काबिलीयत बढ़ा पाएँगे और आगे चलकर एक ज़िम्मेदार इंसान बन पाएँगे। (1 कुरिंथियों 13:11) साथ ही, उन्हें मुश्किल सवालों के जवाब देने से पहले सोचने का मौका भी मिलेगा।—नीतिवचन 15:28.
दूसरा: इस बात को समझिए कि अपने बच्चे को हर छोटी-छोटी बात पर टोकने से वह चिढ़ सकता है और बगावती बन सकता है। (इफिसियों 6:4; कुलुस्सियों 3:21) तो क्या इसका मतलब है, आपको नसीहत देना छोड़ देना चाहिए? नहीं, क्योंकि आप उनके माँ-बाप हैं और यह आपकी ज़िम्मेदारी है। लेकिन सलाह देते वक्त आपका लक्ष्य होना चाहिए कि आपका बेटा तालीम पाया हुआ विवेक हासिल कर सके। (व्यवस्थाविवरण 6:6, 7; नीतिवचन 22:6) असल में देखा जाए तो अपने बच्चों को हिदायत देना, उन पर बाज़ की तरह नज़र रखने से ज़्यादा फायदेमंद है।
तीसरा: अपने जवान बेटे-बेटी से मामलों पर खुलकर बात कीजिए। उनके विचारों को सुनिए। क्या उनकी कुछ बातों के लिए आप लिहाज़ दिखा सकते हैं? (फिलिप्पियों 4:5) अपने बच्चे से कहिए कि आप उसे कुछ हद तक छूट देंगे, बशर्ते वह आपके भरोसे को नहीं तोड़ेगा। उसे बताइए कि अगर वह आपका कहा नहीं मानेगा, तो उसे क्या सज़ा मिलेगी और ज़रूरत पड़ने पर सज़ा देने से पीछे मत हटिए। इस बात का यकीन रखिए कि अपने जवान बच्चों को छूट देकर आप प्यार करनेवाले माँ-बाप होने की ज़िम्मेदारी के साथ समझौता नहीं कर रहे हैं।
[पेज 12 पर तसवीर]
पैसे की तरह भरोसा भी कमाया जाना चाहिए