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जच्चा स्वस्थ तो बच्चा स्वस्थ

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जच्चा स्वस्थ तो बच्चा स्वस्थ

एक स्वस्थ नया जन्मा बच्चा अपनी माँ की बाँहों में सिमटा हुआ है। पिता का चेहरा खुशी से खिला हुआ है और वह गर्व से उसे निहार रहा है। हर साल ऐसे खुशहाल नज़ारे हज़ारों बार देखने को मिलते हैं। और इसलिए बच्चे का जन्म लोगों के लिए आए दिन की बात हो गयी है। वे सोचते हैं कि यह तो कुदरती चीज़ है, इसमें इतनी चिंता करनेवाली कौन-सी बात है?

हाँ, यह सच है कि बहुत-से शिशुओं का जन्म ठीक तरह से हो जाता है, लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता। इसलिए समझदार पति-पत्नी एहतियात बरतते हैं, ताकि वे बच्चे के जन्म के वक्‍त बेवजह की परेशानियों से बच सकें। उदाहरण के लिए, वे शिशु जन्म से जुड़ी समस्याओं की वजह जानने की कोशिश करते हैं और गर्भावस्था में की जानेवाली देखभाल के लिए अच्छे-से-अच्छे विशेषज्ञों की मदद लेते हैं। साथ ही, वे कुछ ऐसे कदम भी उठाते हैं जिससे प्रसव और डिलीवरी के वक्‍त खतरा कम होता है। आइए इन बातों पर खुलकर चर्चा करें।

शिशु जन्म से जुड़ी समस्याओं की वजह

शिशु जन्म से जुड़ी समस्याओं का एक कारण है, गर्भावस्था के दौरान माँ और बच्चे की देखभाल में कमी। बच्चों के विशेषज्ञ डॉक्टर चूंग कामलॉ, हाँग काँग के प्रिंस ऑफ वेल्स अस्पताल में शिशुओं की देखभाल करनेवाले विभाग में काम करते हैं। उनका कहना है: “अगर बच्चे के जन्म से पहले माँ की अच्छी देखभाल के लिए विशेषज्ञ की मदद न ली जाए, तो पेट में पल रहे बच्चे की जान को खतरा हो सकता है।” वे आगे कहते हैं: “ज़्यादातर माएँ चाहती हैं कि उन्हें गोल-मटोल और तंदुरुस्त बच्चा पैदा हो। लेकिन अकसर ऐसा नहीं होता।”

जिन समस्याओं का असर माँ पर पड़ सकता है, उनके बारे में अमेरिका मेडिकल वूमन्स असोसिएशन की पत्रिका कहती है: “जन्म देते वक्‍त माएँ क्यों दम तोड़ देती हैं इसकी कुछ खास वजह हैं,” हद से ज़्यादा खून का बहना, प्रसव के वक्‍त होनेवाली दिक्कतें, इंफेक्शन और हॉइ बल्ड प्रेशर का एकाएक बढ़ना। पत्रिका आगे बताती है: असरदार इलाज मौजूद है लेकिन ज़्यादातर मामलों में “ऐसे इलाज कराने की ज़रूरत नहीं पड़ती, जिनमें पेचीदा उपकरण इस्तेमाल किए जाते हैं।”

इस तरह की सुविधाओं से कई शिशुओं की जान बचायी जा सकती है। यूएन क्रोनिकल पत्रिका बताती है कि “जितने भी नए जन्मे बच्चों की मौत होती है, उनमें से दो-तिहाई बच्चों की जानें बचायी जा सकती है। अगर सभी माँओं और नए जन्मे बच्चों” को बढ़िया इलाज मुहैया कराया जाए, जो “जाना माना हो, किफायती हो और जिसमें पेचीदा टेक्नॉलजी या उपकरणों की ज़रूरत न पड़े।” इसी सिलसिले में ‘फिलिपाईन्स समाचार एजेंसी’ का कहना है, दुख की बात है कि आजकल माँओं का गर्भावस्था के दौरान लापरवाही दिखाना और इस बारे में बहुत कम जानकारी रखना बहुत आम बात हो गयी है।

गर्भवती माँ और बच्चे की बेहतरीन देखभाल

यूएन क्रोनिकल पत्रिका कहती है: “स्वस्थ माएँ स्वस्थ बच्चों को जन्म देती हैं।” यह पत्रिका आगे कहती है कि गर्भावस्था के दौरान, शिशु जन्म से पहले और बाद में जब एक महिला की सेहत का सही तरह से या बिलकुल भी ध्यान नहीं रखा जाता, तो इसका असर बच्चे पर भी पड़ता है क्योंकि उसे भी सही देखरेख नहीं मिल पाती।

कुछ देशों में एक गर्भवती महिला की अच्छी देखभाल करना मुश्‍किल हो सकता है। शायद उसे इलाज के लिए लंबा सफर तय करना पड़े या फिर उसे पैसे की तंगी हो। फिर भी जहाँ तक मुमकिन हो, एक औरत जो माँ बननेवाली है उसे कोशिश करनी चाहिए कि वह कुछ अच्छे विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा करे और मदद ले। यह खासकर उन महिलाओं के लिए और भी ज़रूरी है, जो पवित्र बाइबल में दी शिक्षाओं के मुताबिक जीती हैं। क्योंकि बाइबल बताती है कि इंसान का जीवन पवित्र है यहाँ तक की अजन्मे बच्चे का भी।—निर्गमन 21:22, 23; * व्यवस्थाविवरण 22:8.

क्या अच्छी देखरेख करने का मतलब है कि हर हफ्ते डॉक्टर के पास जाकर जाँच करवानी चाहिए? नहीं, ऐसा ज़रूरी नहीं है। गर्भावस्था और बच्चे के जन्म के दौरान होनेवाली कुछ आम समस्याओं के बारे में विश्‍व स्वास्थ्य संगठन ने पाया है कि “जो महिलाएँ गर्भावस्था के दौरान सिर्फ चार बार डॉक्टर के पास जाँच करवाने गयीं” उन्हें उतना ही फायदा हुआ जितना कि “उन महिलाओं को जो 12 या उसे ज़्यादा बार डॉक्टर के पास जाँच करवाने गयी थीं।”

डॉक्टर क्या कर सकते हैं

गर्भवती महिला और अजन्मे बच्चे की अच्छी सेहत के लिए हेल्थ केयर पेशेवर खासकर प्रसूति-विशेषज्ञ आगे दिए कुछ कदम उठाते हैं:

◼ वे मरीज़ की सेहत से जुड़ी पिछली रिपोर्टों को पढ़ते हैं और मरीज़ की डॉक्टरी जाँच करते हैं कि कोई खतरे की बात तो नहीं। साथ ही, वे उन खतरों को रोकने की कोशिश करते हैं जो माँ और पेट में पल रहे बच्चे के लिए जानलेवा हो सकते हैं।

◼ वे शायद महिला के खून और मूत्र नमूनों की जाँच करें ताकि पता लगाया जा सके कि कहीं उसे एनीमिया (खून की कमी), इंफेक्शन, आर-एच की गड़बड़ी या दूसरी कोई बीमारी तो नहीं। इन बीमारियों में डायबिटीज़, हलका खसरा (रुबेला), लैंगिक संबंध से होनेवाली बीमारियाँ और गुर्दे की बीमारी, जिससे ब्लेड प्रेशर बढ़ने का खतरा हो सकता है, भी शामिल हैं।

◼ जब ज़रूरी होता है और मरीज़ भी राज़ी होता है तब विशेषज्ञ टिके लगवाने की सलाह देते हैं ताकि इनफ्लूएन्ज़ा, टिटनस जैसी बीमारी न हो और आर-एच का सही तालमेल बना रहे।

◼ वे शायद कुछ विटामिन की दवाइयाँ लेने की सलाह भी दें, जिसमें फॉलिक ऐसिड होता है।

इस तरह डॉक्टर गर्भवती महिला में होनेवाले खतरों की जाँच करते हैं और उन्हें रोकने के लिए ज़रूरी कदम उठाते हैं। साथ ही, वे एहतियात बरतने में उस महिला की मदद भी करते हैं और इस बात को पक्का करते हैं कि आगे चलकर माँ और होनेवाले बच्चे की सेहत अच्छी हो।

प्रसव और डिलीवरी से जुड़े खतरों को कम करना

विश्‍व स्वास्थ्य संगठन में ‘परिवार और समाज की सेहत’ विभाग के भूतपूर्व सहायक निर्देशक जॉय पियुमॉपे का कहना है: “प्रसव और डिलीवरी का समय एक गर्भवती महिला के लिए सबसे खतरनाक और नाज़ुक समय होता है।” ऐसे नाज़ुक वक्‍त में कोई गंभीर या जानलेवा समस्या खड़ी न हो इसके लिए क्या किया जा सकता है? कुछ आसान से कदम उठाने ज़रूरी हैं जो पहले से लिए जाने चाहिए। * और खासकर उन लोगों को जो बाइबल पर आधारित विश्‍वास की वजह से खून चढ़वाने से इनकार करते हैं या जो मेडिकल खतरों की वजह से खून नहीं लेना चाहते।—प्रेषितों 15:20, 28, 29.

ऐसे लोगों को चाहिए कि वे इस बात का पूरा ध्यान रखें कि वे एक ऐसे अनुभवी और जानकार डॉक्टर मदद लें, जिसे बिना खून के इलाज करना मालूम हो। इसके अलावा, माँ-बाप बननेवाले जोड़े के लिए बुद्धिमानी होगी कि वे पहले से ही देख लें कि अस्पताल में उनकी इच्छाओं का मान रखते हुए इलाज किया जाएगा। * यहाँ दो सवाल दिए गए हैं, जिन्हें पहले ही डॉक्टर से पूछना फायदेमंद होगा: 1. अगर माँ या बच्चे का खून बहुत बह जाए या कुछ और तकलीफें आ खड़ी हों, तो ऐसे में आप क्या करेंगे? 2. आपकी गैर-हाज़िरी में अगर बच्चा होता है तो आप क्या इंतज़ाम करेंगे ताकि मेरी इच्छा के मुताबिक इलाज किया जा सके?

बेशक एक समझदार स्त्री जाँच के लिए डॉक्टर के पास जाएगी और यह पक्का करेगी कि प्रसव से पहले उसके शरीर में खून की मात्रा ठीक तरह से बनी रहे। शरीर में खून की मात्रा बनाए रखने के लिए डॉक्टर शायद उसे फॉलिक एसिड और बी-ग्रुप विटामिन या दूसरी आयरन की दवाइयाँ लेने की सलाह दे।

डॉक्टर कुछ और बातें भी ध्यान में रखते हैं। जैसे, जब एक गर्भवती महिला जाँच के लिए आती है तो क्या उसमें सेहत से जुड़ी कोई समस्या है जिस पर ध्यान देने की ज़रूरत है? क्या उसे ऐसे कामों से दूर रहना चाहिए जिसमें लगातार खड़े रहना पड़ता है? क्या उसे और आराम की ज़रूरत है? क्या उसके लिए अपना वज़न कम करना या बढ़ाना सही होगा? या क्या उसे कुछ कसरत करने की ज़रूरत है? क्या उसे अपने शरीर की साफ-सफाई पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए, अपनी मौखिक साफ-सफाई पर भी?

अध्ययन दिखाते हैं कि गर्भवती महिलाओं में मसूड़ों की बीमारी की वजह से प्रीएक्लेंपसिया होने का ज़्यादा खतरा रहता है। प्रीएक्लेंपसिया एक गंभीर बीमारी है जिसमें अचानक ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है, ज़बरदस्त सिरदर्द होता है और एडीमा (ऊतकों में ज़्यादा पानी भर जाना) भी हो जाता है। * इस बीमारी की वजह से समय से पहले ही डिलीवरी हो जाती है और शिशु पेट में पूरी तरह बढ़ नहीं पाता। आज खासकर विकासशील देशों में यह बीमारी माँ और भ्रूण की मौत की सबसे बड़ी वजह बन गयी है।

एक होशियार डॉक्टर गर्भवती महिला में दिखनेवाले किसी भी इंफेक्शन पर फौरन ध्यान देगा। और अगर समय से पहले ही प्रसव पीड़ा होने लगे, तो वह फौरन महिला को अस्पताल में भरती होने के लिए कहेगा, जिससे उसकी जान को कोई खतरा न हो।

विश्‍व स्वास्थ्य संगठन में ‘गर्भावस्था को सुरक्षित बनाना,’ विभाग के निर्देशक डॉक्टर काज़ी मोनीरूल इस्लाम का कहना है कि “बच्चे को जन्म देने के लिए स्त्रियाँ मौत को भी गले लगाने के लिए तैयार रहती हैं।” लेकिन अगर गर्भावस्था के दौरान, शिशु जन्म से पहले और बाद में अच्छी मेडिकल देखरेख दी जाए, तो बहुत-सी समस्याओं को यहाँ तक कि मौत को भी रोका जा सकता है। गर्भवती महिलाओं के लिए सबसे ज़रूरी है कि वे अच्छी सेहत बनाए रखें। क्योंकि अगर आपको एक तंदुरुस्त बच्चा चाहिए तो खुद आपको तंदुरुस्त बने रहने की हर कोशिश करनी चाहिए। (g09-E 11)

[फुटनोट]

^ पैरा. 10 मूल इब्रानी शास्त्र की इस आयत में ऐसे हादसे का ज़िक्र किया गया है जिसमें माँ या अजन्मे बच्चे की मौत हो जाती है।

^ पैरा. 20 “गर्भावस्था के दौरान की जानेवाली तैयारियाँ” बक्स देखिए।

^ पैरा. 21 एक जोड़ा जो यहोवा का साक्षी है उसे बच्चे के जन्म से पहले अपने इलाके की अस्पताल संपर्क समिति (HLC) से सलाह लेनी चाहिए। इस समिति के सदस्य अस्पतालों में और डाक्टरों से भेंट करते हैं, और उन्हें बिना खून के इलाज के बारे में ताज़ा-तरीन जानकारी देते हैं। इसके अलावा, यह समिति एक ऐसे डॉक्टर को ढूँढ़ने में मदद देती है जो मरीज़ के विश्‍वास की कदर करता है और जिसे बिना खून के इलाज करने का अनुभव है।

^ पैरा. 24 मसूड़ों की बीमारी की वजह से प्रीएक्लेंपसिया होने का ज़्यादा खतरा रहता है या नहीं, इस बारे में और भी अध्ययन करना बाकी है। लेकिन अच्छा होगा अगर आप हमेशा अपने दाँतों और मसूड़ों की अच्छी देखभाल करें।

[पेज 27 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

अक्टूबर 2007 में छपे आँकड़े के मुताबिक, गर्भावस्था से जुड़ी समस्याओं की वजह से हर एक मिनट में करीब एक औरत की मौत होती है यानी एक साल में 5,36,000 औरतें मरती हैं।—संयुक्‍त राष्ट्र जनसंख्या निधि

[पेज 28 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“हर साल 33 लाख बच्चे मरे हुए पैदा होते हैं और 40 लाख से भी ज़्यादा बच्चे पैदा होने के बाद 28 दिन के अंदर ही मर जाते हैं।” —यूएन क्रोनिकल

[पेज 29 पर बक्स]

गर्भावस्था के दौरान की जानेवाली तैयारियाँ

1. अच्छी जाँच-पड़ताल करने के बाद ही किसी अस्पताल, डॉक्टर, या दाई को चुनिए।

2. नियमित रूप से अपने डॉक्टर या दाई से जाकर मुलाकात कीजिए और उनके साथ एक दोस्ताना और भरोसेमंद रिश्‍ता बनाइए।

3. अपनी सेहत का खयाल रखिए। अगर मुमकिन हो तो विटामिन की दवाइयाँ लीजिए। अपनी मरज़ी से कोई भी दवाई मत लीजिए जब तक कि डॉक्टर आपको इसकी सलाह न दे। शराब मत पीजिए। इस बारे में ‘नेशनल इंस्टिटीयूट ऑफ एलकोहल अब्यूस एंड एलकोहोलिज़्म’ का कहना है: “हालाँकि जिन बच्चों की माएँ बहुत ज़्यादा शराब पीती हैं उन बच्चों की जान को सबसे ज़्यादा खतरा होता है। लेकिन अब तक यह पता नहीं चल पाया है कि एक औरत गर्भावस्था के दौरान शराब का किस हद तक सेवन कर सकती है, जिससे उसे और उसके बच्चे को कोई नुकसान न हो।”

4. अगर आपको वक्‍त से पहले ही (37 हफ्तों से पहले) प्रसव पीड़ा होने लगती है तो फौरन अपने डॉक्टर से संपर्क कीजिए। तुरंत कदम उठाने से, समय से पहले डिलीवरी और उससे जुड़ी समस्याओं को रोका जा सकता है। *

5. इलाज से जुड़े निजी फैसलों को लिखकर रखिए। मिसाल के लिए, कइयों ने पाया है कि पहले से DPA कार्ड (ड्यूरबल पावर ऑफ अटॉरनी या स्थायी अधिकार पत्र) भरकर रखना फायदेमंद होता है। पता लगाइए कि आपके देश में कौन-सा कार्ड इस्तेमाल होता है, जिसे कानून मंजूर करता है।

6. जन्म के बाद, अपना और अपने बच्चे का खयाल रखिए, खासकर जब बच्चा वक्‍त से पहले पैदा होता है। अगर कुछ भी समस्याएँ आती हैं, तो फौरन बच्चों के विशेषज्ञ की सलाह लीजिए।

[फुटनोट]

^ पैरा. 41 आम तौर पर जो शिशु वक्‍त से पहले पैदा होते हैं और जिन्हें एनिमिया होता है, उन्हें ही खून चढ़ाया जाता है। क्योंकि उसके अंग सही मात्रा में लाल रक्‍त कोशिकाएँ पैदा नहीं कर पाते।