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“कल की चिन्ता न करो”

“कल की चिन्ता न करो”

“कल की चिन्ता न करो”

रीना के लिए हालात का सामना करना मुश्‍किल हो रहा था। तीन साल से भी ज़्यादा समय से उसके पति मोहित को कहीं पक्की नौकरी नहीं मिल रही थी। रीना उस बुरे वक्‍त को याद करके कहती है, “मैं चिंता के मारे अंदर-ही-अंदर घुली जा रही थी। कल न जाने क्या होगा, यह सोचकर मैं निराश हो जाती थी।” मोहित ने अपनी पत्नी की चिंता कम करने की कोशिश की और उसे समझाया कि उनकी ज़रूरतें हमेशा पूरी हुई हैं। यह सुनकर रीना ने जवाब दिया, “लेकिन अभी भी आपके पास कोई नौकरी नहीं है! और बिना बँधी तनख्वाह के हमारा गुज़ारा बहुत मुश्‍किल है!”

नौकरी छूट जाने पर एक इंसान न चाहते हुए भी चिंता के समंदर में डूब जाता है। बेरोज़गार व्यक्‍ति सोचता है, ‘अगली नौकरी ढूँढ़ने में न जाने मुझे कितना वक्‍त लगेगा? इस बीच मैं अपने परिवार का खर्चा कैसे चलाऊँगा?’

ऐसी चिंताएँ लाज़िमी हैं। मगर यीशु मसीह ने कुछ ऐसे बढ़िया सुझाव दिए हैं, जिनकी मदद से हम अपनी चिंता कम कर सकते हैं। उसने कहा: “कल की चिन्ता न करो, . . . आज के लिए आज ही का दुख बहुत है।”—मत्ती 6:34, NHT.

अपने डर को पहचानिए

यीशु यह नहीं कह रहा था कि हमें ऐसे जीना चाहिए मानो हमें कोई समस्या है ही नहीं। लेकिन अगर हम इस बात की चिंता करेंगे कि कल क्या होगा तो हम आज की ही चिंता बढ़ा रहे होंगे। सीधे-सीधे कहा जाए, तो कल क्या होगा इस पर हमारा कोई बस नहीं, फिर चाहे वह अच्छा हो या बुरा। मगर आज हमारे सामने जो परेशानियाँ हैं, उनका सामना करने के लिए हम कदम ज़रूर उठा सकते हैं।

यह सच है कि चिंता न करो, यह कहना आसान है, मगर ऐसा करना मुश्‍किल। रोहिणी का पति 12 साल से जहाँ काम करता था, जब वहाँ से उसे निकाल दिया गया तो वह कहती है: “जब सिर पर हज़ार चिंताएँ हों, तो उस वक्‍त समझ-बूझ से फैसला करना बड़ा मुश्‍किल होता है। मगर ऐसा करना बहुत ज़रूरी है। इसलिए मैंने खुद पर काबू रखने की कोशिश की। मैं अकसर डरती थी कि कहीं ऐसा हो गया तो, या वैसा हो गया तो? लेकिन जब मैंने देखा कि जिन बातों से मैं डरती थी वे हकीकत में कभी हुई ही नहीं, तो मुझे एहसास हुआ कि कल के बारे में चिंता करने से कोई फायदा नहीं। आज के दिन और अभी की चिंताओं पर ध्यान देने से हम कई तरह के तनाव को दूर कर पाए।”

खुद से पूछिए: ‘मुझे किस बात से सबसे ज़्यादा डर लगता है? वह बात हकीकत में बदल जाए इसकी कितनी गुंजाइश है? कल क्या होगा या क्या नहीं मैं इसकी चिंता करने में अपनी कितनी शक्‍ति खर्च करता हूँ?’

जितना है उतने में संतुष्ट रहना सीखिए

हमारे रवैए का असर हमारी भावनाओं पर हो सकता है। इसलिए परमेश्‍वर का वचन बाइबल हमें यह रवैया अपनाने के लिए उकसाता है: “अगर हमारे पास खाना, कपड़ा और सिर छिपाने की जगह है, तो उसी में संतोष करना चाहिए।” (1 तीमुथियुस 6:8) संतोष करने का मतलब है, अपनी इच्छाओं को सीमित रखना और जब हमारी रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी हो जाती हैं तो उसमें खुश रहना। अगर आप अपनी ख्वाहिशें पूरी करने के पीछे भागेंगे तो सादगी-भरी ज़िंदगी जीने की आपकी कोशिशों पर पानी फिर जाएगा।—मरकुस 4:19.

अपने हालात को सही नज़र से देखने के ज़रिए हम अपने अंदर संतोष पैदा कर सकते हैं और इसी बात ने रीना की मदद की। वह कहती है: “हमें बिजली-पानी और रसोई गैस के बगैर कभी रहना नहीं पड़ा और न ही कभी ऐसे हालात आए कि हमारे सिर पर छत न हो। असली परेशानी यह थी कि हम कम पैसे में गुज़ारा करने के आदी नहीं थे, साथ ही मेरे अंदर पहली जैसी ठाठ-बाट बरकरार रखने की इच्छा थी, जो कि एक बेवकूफी थी और जिससे मेरा तनाव ज़्यादा बढ़ गया।”

रीना को जल्द-ही एहसास हो गया कि उसकी मुश्‍किलें इसलिए बढ़ गयी हैं, क्योंकि गड़बड़ी उसके नज़रिए में है न कि हालात में। वह कहती है, “मुझे नए हालात को कबूल करना था और हर समय यह सोचने से दूर रहना था कि मैं क्या चाहती हूँ। हर दिन परमेश्‍वर हमें जो भी देता है, जब एक बार मैंने उसमें संतुष्ट रहना सीख लिया, तो मैंने देखा कि मैं पहले से कहीं ज़्यादा खुश थी।”

खुद से पूछिए: ‘क्या मेरी आज की ज़रूरतें पूरी हुई हैं? अगर हाँ, तो क्या ऐसा हो सकता है कि कल की चिंता करने के बजाय मैं सिर्फ आज के बारे में सोचूँ और भरोसा रखूँ कि मेरी कल की ज़रूरतें भी पूरी हो जाएँगी?’

कम पैसे में गुज़ारा करने के लिए सबसे पहले हमें सही नज़रिया रखने की ज़रूरत है। लेकिन अब सवाल है कि अगर बेरोज़गारी की वजह से आपकी आमदनी कम हो गयी है तो आप कौन-से कारगर कदम उठा सकते हैं? (g10-E 07)

[पेज 5 पर बक्स]

मेहनत रंग लाती है!

जब कई हफ्तों तक नौकरी की तलाश करने पर भी कुछ फायदा नहीं हुआ तो कपिल की आस टूट गयी और उसे लगा कि सारे रास्ते बंद हो चुके हैं। वह कहता है, “यह ऐसा था मानो आप बस स्टॉप पर खड़े इंतज़ार कर रहे हैं कि कोई आपके लेने आएगा, लेकिन कोई नहीं आता।” कपिल ने देखा कि बाकी चीज़ों पर तो उसका कोई काबू नहीं, लेकिन एक चीज़ को वह अपने काबू में रख सकता है और वह है उसके अपने काम। उसने नौकरी के लिए हर उस कंपनी में अर्ज़ी दी जहाँ उसके हुनर की थोड़ी-बहुत भी ज़रूरत थी। उसे जहाँ से भी जवाब मिलता था वह वहाँ जाता था, हर इंटरव्यू के लिए अच्छी तैयारी करता था और उसे यकीन था कि “कामकाजी की कल्पनाओं से केवल लाभ होता है।” (नीतिवचन 21:5) कपिल कहता है, “एक कंपनी में मुझे दो बार इंटरव्यू देना पड़ा जिसमें वहाँ के बड़े-बड़े अधिकारियों ने मुझसे कई सवाल पूछे।” आखिरकार कपिल की मेहनत रंग लायी। वह कहता है, “मुझे नौकरी मिल गयी!”

[पेज ६ पर बक्स/ तसवीर]

आमदनी से भी ज़्यादा ज़रूरी क्या है?

क्या चीज़ ज़्यादा अहमियत रखती है—आपका अच्छा चालचलन या आपकी आमदनी? बाइबल में दिए दो नीतिवचनों पर ध्यान दीजिए।

“टेढ़ी चाल चलनेवाले धनी मनुष्य से खराई से चलनेवाला निर्धन पुरुष ही उत्तम है।”—नीतिवचन 28:6.

“घृणा के साथ अधिक भोजन से, प्रेम के साथ थोड़ा भोजन उत्तम है।”—नीतिवचन 15:17, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

यह बात साफ है कि नौकरी चले जाने का मतलब यह नहीं कि इससे उस व्यक्‍ति की अहमियत और उसके नैतिक स्तर घट गए हैं। इसलिए जब रीना के पति की नौकरी छूट गयी, तब उसने अपने बच्चों से कहा: “कई बार पिता अपने परिवारों को छोड़कर चले जाते हैं, लेकिन तुम्हारे पापा अभी-भी तुम्हारे पास हैं। तुम जानते हो कि पापा तुमसे कितना प्यार करते हैं और तुम्हें सारी परेशानियों से बचाते हैं। तुम्हारे पापा वाकई बहुत अच्छे हैं।”