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क्या किसी पर भरोसा किया जा सकता है?

क्या किसी पर भरोसा किया जा सकता है?

क्या किसी पर भरोसा किया जा सकता है?

दर्द से राहत पाने के सिलसिले में एक डॉक्टर ने बहुत ही ज़रूरी खोज की। लोग उसका लोहा मानने लगे। लेकिन सन्‌ 1996 से लेकर, दस से भी ज़्यादा सालों तक यह नामी डॉक्टर लोगों की आँखों में धूल झोंकता रहा। वह असल में जाने-माने खोजकर्ताओं की छपी जानकारी में फेरबदल कर उसे अपना नाम देकर पेश करता था।

डॉक्टर स्टीवन एल. शैफअर ने इस बारे में एनीस्थीसियोलोजी न्यूज़ में कहा: “मुझे समझ नहीं आता कि क्यों एक इंसान ऐसा रास्ता अपनाता है?”

दूसरों को धोखा देने के लिए इस इज़्ज़तदार और पेशेवर डॉक्टर को किस बात ने उभारा होगा? आइए इसकी चार वजहों पर गौर करें।

लालच। द न्यू यॉर्क टाइम्स अखबार के एक लेख में डॉक्टर जेरॉम कैसियर, जो न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के संपादक रह चुके हैं कहते हैं, “खोजकर्ताओं की ज़्यादातर आमदनी दवा कंपनियों से होती है इसलिए वे जो भी खोज करते हैं उससे कंपनी का मुनाफा ही होता है।”

हर हाल में कामयाब होने का जुनून। कहा जाता है कि जर्मनी में, विज्ञान के विद्यार्थी डोकटोर नाम की उपाधि “पाने” के लिए टीचरों को लाखों रुपए रिश्‍वत देते हैं। वहाँ इस उपाधि को कामयाबी की निशानी माना जाता है। द न्यू यॉर्क टाइम्स में छपा एक अध्ययन बताता है, नैतिक स्तरों को ताक पर रखनेवाले कई विद्यार्थियों का कहना है कि कामयाबी हासिल कर लेने के बाद वे “ईमानदारी के उसूलों का सख्ती से पालन करेंगे।”

अच्छी मिसाल रखनेवालों की कमी। द न्यू यॉर्क टाइम्स अखबार में एक प्रोफेसर ने हाई स्कूल के विद्यार्थियों के बारे में कहा, “यह कहने के बजाय कि उन्होंने सही-गलत की समझ खो दी है। . . . शायद यह कहना बेहतर होगा कि उनके शिक्षक, सलाहकार और समाज ने, न तो कभी उन्हें ईमानदारी की राह दिखायी, न ही उस पर चलने का बढ़ावा दिया।”

आदतें जो उसूलों के खिलाफ हैं। करीब तीस हज़ार विद्यार्थियों पर किए गए अध्ययन में 98 प्रतिशत का मानना है कि दूसरों के साथ एक अच्छा रिश्‍ता कायम करने के लिए ईमानदार होना बेहद ज़रूरी है। मगर अफसोस 10 में से 8 विद्यार्थियों ने कबूल किया कि कई मौकों पर उन्होंने अपने माँ-बाप से झूठ बोला है और 64 प्रतिशत ने माना कि पिछले साल उन्होंने इम्तहान में नकल की थी।

ऊँचे नैतिक उसूल

जैसा कि इस पेज पर दिए बक्स में बताया गया है, इंसान को इस तरह बनाया गया है कि वह दूसरों पर भरोसा करता है। लेकिन बाइबल यह सच्चाई बयान करती है, “मनुष्य के मन में बचपन से जो कुछ उत्पन्‍न होता है सो बुरा ही होता है।” (उत्पत्ति 8:21) आप अपने अंदर की बुरी फितरत और दुनिया में चल रही बुराई की आँधी का कैसे सामना कर सकते हैं? इस सिलसिले में आगे दिए बाइबल सिद्धांत आपकी मदद कर सकते हैं:

“जबकि तेरा पड़ोसी तुझ पर भरोसा रख कर तेरे पास रहता है, तो तू उसके विरुद्ध कुटिल योजना न बनाना।”नीतिवचन 3:29, NHT.

अपने पड़ोसी के लिए प्यार ही हमें उनकी भलाई करने के लिए उकसाता है और हमें उनका भरोसा तोड़ने से रोकता है। अगर बाइबल के इस सिद्धांत को माना जाए, तो लालच की वजह से इंसानों पर हो रहे तरह-तरह के अत्याचार खत्म किए जा सकते हैं। मिसाल के लिए, पहले लेख में बताए नकली दवाइयों का व्यापार बंद किया जा सकता है।

“सच्चाई सदा बनी रहेगी, परन्तु झूठ पल ही भर का होता है।”नीतिवचन 12:19.

कई लोगों का मानना है कि सीधे और ईमानदार लोग हमेशा घाटे में रहते हैं। लेकिन खुद से पूछिए, ‘सबसे ज़रूरी क्या है, इनाम पाने से मिलनेवाली पल भर की खुशी या फिर हमेशा कायम रहनेवाले फायदे जैसे खुद की नज़रों में इज़्ज़त बनाए रखना?’ स्कूल में पढ़नेवाला एक बच्चा इम्तहान में नकल कर अच्छे नंबर ला सकता है और खुद को बड़ा होशियार और काबिल दिखा सकता है, लेकिन क्या नौकरी की जगह वह अपना हुनर दिखा पाएगा?

“धर्मी जो खराई से चलता रहता है, उसके पीछे उसके लड़केबाले धन्य होते हैं।”नीतिवचन 20:7.

अगर आप एक माँ या पिता हैं, तो अपने बच्चों के आगे ‘खराई से चलने’ की अच्छी मिसाल रखिए। उन्हें बताइए कि ईमानदार बने रहने से आपको क्या-क्या फायदे हुए हैं। जब आपके बच्चे आपको ईमानदारी की राह पर चलते देखेंगे, तो वे भी अपनी ज़िंदगी में ईमानदारी का रास्ता अपनाएँगे।—नीतिवचन 22:6.

क्या बाइबल के ये सिद्धांत वाकई कारगर हैं? क्या आज दुनिया में ईमानदार और भरोसेमंद लोग हैं? (g10-E 10)

[पेज 4 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

ला फीगारो अखबार के मुताबिक फ्रांस के ज़्यादातर लोगों का “सोचना है कि जब राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र की जानी-मानी हस्तियाँ ईमानदार नहीं, तो फिर हम क्यों ईमानदार बने रहें।”

[पेज 5 पर बक्स]

भरोसा करना—क्या यह हममें पैदाइशी है?

जर्मनी की फ्रैंकफर्ट यूनिवर्सिटी में बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन के प्रोफेसर, मीकाएल कोसफेल्ट ने कई परीक्षण किए और वे इस नतीजे पर पहुँचे कि भरोसा करने का “रुझान इंसान में पैदाइशी होता है।” कोसफेल्ट ने पता लगाया कि जब दो लोग आपस में बातचीत करते हैं, तो दिमाग में ऑक्सीटॉसिन हार्मोन पैदा होता है। यह हार्मोन हमें दूसरों पर भरोसा करने के लिए उभारता है। वे आगे कहते हैं, “दरअसल इंसान में इस हार्मोन का होना उसे अपने आप में अनोखा बनाता है। अगर हमें दूसरों पर भरोसा न हो, तो हम अपनी शख्सियत का एक ज़रूरी पहलू खो देंगे।”