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हेपेटाइटिस-बी दबे पाँव आनेवाला कातिल

हेपेटाइटिस-बी दबे पाँव आनेवाला कातिल

हेपेटाइटिस-बी दबे पाँव आनेवाला कातिल

“मैं 27 साल का था और मेरी नयी-नयी शादी हुई थी। मैं बहुत ही चुस्त-दुरुस्त था। मैं एक ऐसी नौकरी करता था जिसमें मेरा ढेर सारा वक्‍त और ताकत लग जाती थी। साथ ही, मैं यहोवा के साक्षियों की मंडली में कई ज़िम्मेदारियाँ भी सँभालता था। लेकिन मैं बेखबर था कि मुझे हेपेटाइटिस-बी है जो मेरे कलेजे को नुकसान पहुँचा रहा था।”—डक ग्यून

हमारा कलेजा शरीर का एक सबसे ज़रूरी अंग है। यह खून को छानकर उसमें मौजूद ज़हर को अलग करता है, साथ ही करीब 500 दूसरे ज़रूरी काम भी करता है। इसलिए हेपेटाइटिस (कलेजे में सूजन) होने पर एक इंसान की सेहत पूरी तरह बिगड़ जाती है। हद-से-ज़्यादा शराब पीने या जानलेवा पदार्थ लेने से भी हेपेटाइटिस हो सकता है। लेकिन ज़्यादातर यह बीमारी वायरस से होती है। वैज्ञानिकों ने ऐसे पाँच वायरस का पता लगाया है जो इस बीमारी के लिए ज़िम्मेदार हैं। और उनका मानना है कि तीन और वायरस भी हैं, जिनसे यह बीमारी हो सकती है।—नीचे दिया बक्स देखिए।

इन पाँच वायरस में से एक वायरस है, हेपेटाइटिस-बी। इससे हर साल कम-से-कम 6,00,000 लोगों की मौत होती है। मलेरिया से भी तकरीबन हर साल इतने ही लोग मरते हैं। दो अरब से भी ज़्यादा यानी दुनिया के एक-तिहाई लोगों में हेपेटाइटिस-बी वायरस फैल चुका है, लेकिन इनमें से ज़्यादातर लोग कुछ ही महीनों में ठीक हो गए। मगर 35 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें इस बीमारी ने पूरी तरह अपनी गिरफ्त में कर रखा है। इन लोगों में शायद बीमारी के लक्षण नज़र न आएँ, लेकिन वे ज़िंदगी-भर यह वायरस लिए जीते हैं और इससे दूसरों में यह बीमारी फैलने का खतरा रहता है। *

अगर एक इंसान में हेपेटाइटिस-बी गंभीर रूप ले लेता है तब भी अगर जल्द-से-जल्द सही इलाज करवाया जाए, तो कलेजे को नुकसान पहुँचने से बचाया जा सकता है। अफसोस, ज़्यादातर लोगों को यह मालूम ही नहीं पड़ता कि उनमें यह वायरस है क्योंकि एक खास किस्म की खून जाँच करने पर ही इसका पता चलता है। आम तौर पर कलेजे से जुड़ी कोई भी जाँच करने पर इसका पता नहीं चलता। इसलिए हेपेटाइटिस-बी दबे पाँव आनेवाला कातिल है जो अचानक वार करता है। हो सकता है, हेपेटाइटिस-बी इंफेक्शन होने के कई सालों तक इसके लक्षण नज़र न आएँ। मगर यह अंदर-ही-अंदर बढ़ सकता है और सिरोसिस या फिर कैंसर में तबदील हो सकता है। हेपेटाइटिस-बी के शिकार लोगों में से 25 प्रतिशत लोग इन्हीं दो बीमारियों से मर जाते हैं।

“मुझे हेपेटाइटिस-बी कैसे हुआ?”

डक ग्यून कहता है, “तीस साल की उम्र में मुझमें इस बीमारी के लक्षण नज़र आने लगे। एक बार मुझे दस्त लग गए और मैं डॉक्टर के पास गया। उसने दस्त रोकने के लिए मुझे कुछ अँग्रेज़ी दवाइयाँ दीं। लेकिन मुझे कोई फायदा नहीं हुआ। फिर मैं एक दूसरे डॉक्टर के पास गया जो देशी दवाइयाँ देता था। उसने मुझे आँत और पेट के लिए दवाई दी। दोनों ही डॉक्टरों में से किसी ने भी हेपेटाइटिस की जाँच करवाने के लिए नहीं कहा। मुझे लगातार दस्त होते रहे इसलिए मैं वापस पहले डॉक्टर के पास गया, जिसने मुझे अँग्रेज़ी दवाइयाँ दी थीं। * जब डॉक्टर ने मेरे पेट की दाँयी तरफ हलके से थप-थपाया, तो मुझे दर्द हुआ। फौरन उसने मुझे खून जाँच करवाने के लिए कहा। डॉक्टर का शक सही निकला, मुझे हेपेटाइटिस-बी था। यह सुनते ही मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गयी! मैं सोचने लगा, मैंने कभी खून नहीं चढ़वाया, न ही किसी के साथ नाजायज़ संबंध रखे तो फिर मुझे यह बीमारी कैसे हो गयी?”

बीमारी का पता चलने के बाद डक ग्यून की पत्नी, उसके माता-पिता और भाई-बहनों ने भी अपने खून की जाँच करवायी। उन सभी के खून में हेपेटाइटिस-बी से लड़नेवाले वायरस (एंटीबॉडीज़) पाए गए। लेकिन उनके शरीर ने हेपेटाइटिस-बी के वायरस से लड़कर उन्हें खत्म कर दिया था। क्या डक ग्यून को अपने परिवार के किसी सदस्य से यह बीमारी लगी थी? या पूरे परिवार में यह वायरस किसी और से फैला था? इस बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। वैसे भी 35 प्रतिशत मामलों में यह एक राज़ ही बना रहता है कि आखिर यह वायरस आया कहाँ से। पता लगाया गया है कि हेपेटाइटिस-बी एक खानदानी बीमारी नहीं है। और पीड़ित व्यक्‍ति को छूने या उसके साथ खाना खाने से इसके होने की गुंजाइश बहुत कम है। इसके बजाय, हेपेटाइटिस-बी के शिकार व्यक्‍ति के खून और शरीर के दूसरे तरल, जैसे शुक्राणु, योनि से निकलनेवाला पदार्थ या लार से भी यह दूसरे व्यक्‍ति में फैल सकता है। यह वायरस कटी त्वचा, घाव या श्‍लेष्मा की परत (नाक, कान के अंदर की नाज़ुक त्वचा) से खून की नली में जा मिलता है।

कई लोगों को खून चढ़वाने से हेपेटाइटिस-बी हो जाता है, खासकर उन देशों में जहाँ खून में हेपेटाइटिस-बी वायरस की जाँच करने की सुविधा बहुत कम होती है या बिलकुल नहीं होती। हेपेटाइटिस-बी वायरस, एड्‌स के वायरस के मुकाबले 100 गुना ज़्यादा जल्दी फैलता है। हेपेटाइटिस-बी से संक्रमित खून की छोटी-सी बूँद भी बड़ी घातक हो सकती है। जैसे, रेज़र पर लगे हल्के से खून से भी यह वायरस दूसरों में फैल सकता है। यही नहीं, सूखे हुए खून के दाग में भी यह वायरस एक हफ्ते या उससे ज़्यादा समय तक ज़िंदा रह सकता है। *

हेपेटाइटिस की सही समझ रखिए

डक ग्यून याद करता है, “जब मेरे काम की जगह पर लोगों को पता चला कि मुझे हेपेटाइटिस-बी है, तो मुझे कोने में एक छोटा-सा ऑफिस दे दिया गया जो बाकियों से दूर था।” इस बीमारी के बारे में सुनकर लोग आम तौर पर इसी तरह पेश आते हैं। क्योंकि उन्हें इस वायरस के फैलने के बारे में गलतफहमी होती है। यहाँ तक कि कुछ समझदार लोग भी हेपेटाइटिस-बी को हेपेटाइटिस-ए समझ बैठते हैं। हेपेटाइटिस-ए बड़ी आसानी से फैलता है, मगर हेपेटाइटिस-बी जितना जानलेवा नहीं होता। यौन-संबंध से भी हेपेटाइटिस-बी वायरस फैल सकता है, इसलिए अच्छा चालचलन रखनेवाले उन लोगों को भी शक की निगाहों से देखा जाता है जिन्हें यह बीमारी होती है।

गलतफहमी और शक की वजह से कई गंभीर समस्याएँ खड़ी हो सकती हैं। मिसाल के लिए, कई जगहों पर लोग बेवजह हेपेटाइटिस-बी वायरस के वाहकों (यानी जिनमें यह वायरस मौजूद होता है) से दूरियाँ बना लेते हैं, फिर चाहे वे जवान हों या बुज़ुर्ग। पड़ोसी अपने बच्चों को उनके साथ खेलने नहीं देते, स्कूल में उन्हें दाखिला नहीं मिलता और मालिक उन्हें नौकरी पर नहीं रखते। भेदभाव के डर से लोग हेपेटाइटिस-बी की जाँच नहीं करवाते या दूसरों से छिपाते हैं कि उन्हें यह बीमारी है। यह सच्चाई छिपाकर कुछ लोग न सिर्फ अपनी सेहत बल्कि अपने परिवारवालों की सेहत भी दाँव पर लगा देते हैं। इसलिए बीमारी का यह खतरनाक सिलसिला पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है।

आराम कीजिए

डक ग्यून बताता है, “हालाँकि मेरे डॉक्टर ने मुझे घर पर रहकर आराम करने के लिए कहा था, लेकिन दो महीने बाद ही मैं फिर से काम पर जाने लगा। खून जाँच और सीटी स्कैन से पता चला कि मुझे सिरोसिस नहीं है, तो मैंने सोचा कि अब मैं बिलकुल ठीक हूँ।” तीन साल बाद, डक ग्यून की कंपनी ने उसका तबादला एक बड़े शहर में कर दिया जहाँ वह और भी तनाव से घिर गया। घर का खर्च चलाने और परिवार की ज़रूरतें पूरी करने के लिए उसने नौकरी जारी रखी।

कुछ ही महीनों में डक ग्यून के खून में वायरस की मात्रा बढ़ गयी और कुछ भी काम करने से वह जल्दी थकने लगा। वह कहता है, “मुझे नौकरी छोड़नी पड़ी। मैं यह सोचकर पछताया कि अगर मैंने थोड़ा आराम कर लिया होता, तो मेरी तबियत इतनी नहीं बिगड़ती और मेरे कलेजे को नुकसान नहीं पहुँचता।” डक ग्यून ने एक ज़रूरी सबक सीखा। उसने ठान लिया कि वह कुछ ही घंटे काम करेगा और अपने खर्चे भी कम कर देगा। यही नहीं, घर चलाने में उसका पूरा परिवार सहयोग देने लगा। उसकी पत्नी भी एक छोटी नौकरी करने लगी।

हेपेटाइटिस-बी के साथ जीना

डक ग्यून की सेहत में थोड़ा सुधार आया, मगर उसके कलेजे में खून बराबर नहीं पहुँच रहा था, जिस वजह से उसका ब्लड प्रेशर बढ़ने लगा। ग्यारह साल बाद, उसके भोजन की नली में एक नस फट गयी और उसके गले से खून का फुहारा निकल पड़ा। डक ग्यून को फौरन अस्पताल ले जाया गया और वह एक हफ्ते तक भरती रहा। इसके चार साल बाद, उसका दिमागी संतुलन थोड़ा बिगड़ गया क्योंकि कलेजे के ठीक तरह काम न करने से दिमाग में अमोनिया की मात्रा बढ़ गयी। फिर कुछ दिन तक उसका इलाज चला और वह ठीक हो गया।

आज डक ग्यून 54 साल का है। अगर उसकी तबीयत खराब होती है, तो ज़्यादा कुछ नहीं किया जा सकता। दवाइयाँ देकर वायरस को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता, और-तो-और दवाइयों से सेहत पर दूसरे बुरे असर भी हो सकते हैं। अब सिर्फ एक ही रास्ता बचा है, वह है लिवर ट्रान्सप्लांट। लेकिन यह इतना आसान नहीं क्योंकि गिने-चुने लोग ही कलेजा दान करते हैं और वहीं दूसरी तरफ, ऐसे बहुत-से हैं जिन्हें इसकी ज़रूरत है। डक ग्यून कहता है, “मेरी मौत कभी-भी हो सकती है। मगर इस बारे में चिंता करने का कोई फायदा नहीं। क्योंकि फिलहाल मैं ज़िंदा हूँ, मेरा अपना एक परिवार है और आराम करने के लिए मेरे पास एक घर है, एक इंसान को और क्या चाहिए। दरअसल मेरी हालत कई मायनों में मेरे लिए बरकत साबित हुई है। मैं अपने परिवार के लोगों के साथ ज़्यादा वक्‍त बिता पाता हूँ। मेरे पास बाइबल का अध्ययन करने के लिए ज़्यादा वक्‍त है। इस वजह से मैं बेवक्‍त आनेवाली मौत के डर पर काबू कर पाया हूँ और आनेवाली उस ज़िंदगी की आस लगाए रखता हूँ, जब बीमारी का कोई नामो-निशान नहीं होगा।” *

डक ग्यून के सही नज़रिया बनाए रखने से वह और उसका परिवार खुश है। यही नहीं, उसकी पत्नी और उसके तीन बच्चे पूरे समय की सेवा कर रहे हैं। (g10-E 08)

[फुटनोट]

^ अगर शरीर छ: महीने के अंदर इस वायरस से लड़कर इसे पूरी तरह खत्म नहीं कर पाता, तो यह बीमारी गंभीर मानी जाती है।

^ सजग होइए! इलाज के किसी खास तरीके का बढ़ावा नहीं देती।

^ जहाँ कहीं हेपेटाइटिस-बी से पीड़ित व्यक्‍ति का खून गिरता है उसे तुरंत अच्छी तरह साफ कर दीजिए। सफाई के लिए एक कप ब्लीच में दस कप पानी मिलाकर घोल तैयार कीजिए। ऐसा करते वक्‍त रबर या प्लास्टिक के दस्ताने पहनिए।

^ बाइबल वादा करती है कि एक ऐसा वक्‍त आएगा जब कोई बीमारी नहीं रहेगी। इस बारे में और जानने के लिए प्रकाशितवाक्य 21:3, 4 और बाइबल असल में क्या सिखाती है? किताब देखिए।

[पेज 15 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

जल्द-से-जल्द इलाज करवाया जाए, तो नुकसान से बचा जा सकता है

[पेज 16 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

भेदभाव के डर से लोग जाँच नहीं करवाते या दूसरों से छिपाते हैं कि उन्हें हेपेटाइटिस-बी है

[पेज 14, 15 पर बक्स]

हेपेटाइटिस कितने तरह के होते हैं?

ऐसे पाँच किस्म के वायरस हैं जिनसे हेपेटाइटिस फैलता है। इनमें से तीन बहुत आम हैं, हेपेटाइटिस-ए, बी और सी। और ऐसा मानना है कि कुछ और वायरस भी हैं, जो यह बीमारी फैलाते हैं। किसी भी तरह का हेपेटाइटिस होने पर मरीज़ में फ्लू के लक्षण दिखायी दे सकते हैं जैसे बुखार, सिरदर्द, थकान वगैरह। मरीज़ को पीलिया भी हो सकता है लेकिन यह ज़रूरी नहीं। कई लोगों में, खास तौर से बच्चों में इस बीमारी के कोई लक्षण नज़र नहीं आते। इससे पहले कि मरीज़ में हेपेटाइटिस-बी और सी के लक्षण नज़र आएँ, उसके कलेजे को शायद काफी नुकसान पहुँच चुका होता है।

हेपेटाइटिस-ए वायरस (एच.ए.वी)

हेपेटाइटिस-ए वायरस, इस बीमारी से पीड़ित व्यक्‍ति के मल में मौजूद होता है। यह वायरस खारे या मीठे पानी में और बर्फ के टुकड़े में भी ज़िंदा रह सकता है। एक व्यक्‍ति को इन वजहों से हेपेटाइटिस-ए हो सकता है:

बिना पकाए ऐसी मछली, केकड़े या दूसरे जीव खाने से, जो मल वगैरह से दूषित पानी में से पकड़े गए हों

हेपेटाइटिस-ए से पीड़ित व्यक्‍ति को छूने से, उसका जूठा खाने से या उसके बर्तनों में खाना खाने या पानी पीने से

शौचालय (टॉयलेट) जाने के बाद, हेपेटाइटिस-ए से पीड़ित बच्चों के गंदे पोतड़े (डायपर) बदलने के बाद या फिर खाना बनाने से पहले अच्छी तरह हाथ न धोने से

हेपेटाइटिस-ए होने पर एक इंसान काफी बीमार हो सकता है, लेकिन आम तौर पर यह बीमारी लंबे समय तक नहीं रहती। ज़्यादातर मामलों में शरीर कुछ ही हफ्तों या महीनों में इसके वायरस का सफाया कर देता है। इस बीमारी का कोई खास इलाज नहीं है, लेकिन पौष्टिक खाना खाने से और भरपूर आराम करने से यह दूर हो सकती है। जब तक डॉक्टर यह नहीं बताता कि आपका कलेजा पूरी तरह ठीक हो चुका है, तब तक शराब या दूसरी दवाइयाँ जैसे एसीटामीनोफेन मत लीजिए जिससे कलेजे पर ज़ोर पड़ता है। एक व्यक्‍ति जिसे हेपेटाइटिस-ए हो चुका है, उसे शायद यह दोबारा न हो लेकिन उसे दूसरे किस्म का हेपेटाइटिस हो सकता है। टीके लगवाने से हेपेटाइटिस-ए से बचा जा सकता है।

हेपेटाइटिस-बी वायरस (एच.बी.वी)

हेपेटाइटिस-बी वायरस इस बीमारी से पीड़ित व्यक्‍ति के खून, शुक्राणु, योनि से निकलनेवाले तरल पदार्थ में मौजूद होता है। जब ये पदार्थ किसी ऐसे व्यक्‍ति के शरीर में जाते हैं, जिसमें बीमारियों से लड़ने की ताकत कम होती है तब यह वायरस उसमें फैल जाता है। यह वायरस इस तरह फैलता है:

जन्म के वक्‍त (एक माँ से उसके बच्चे में यह वायरस आ सकता है)

दाँतों के इलाज, शरीर में गुदायी-छिदायी या दूसरे किसी इलाज में इस्तेमाल होनेवाले औज़ारों से, जिन्हें खौलते पानी में डालकर कीटाणु रहित न किया गया हो

इस्तेमाल की गयी सुई (इंजेक्शन), रेज़र, नेलकटर, क्लिपर या टूथ-ब्रश से, जिनके ज़रिए खून का ज़रा-सा कतरा शरीर की किसी कटी या फटी जगह से अंदर जा सकता है

यौन संबंध से

स्वास्थ्य अधिकारियों का मानना है कि कीड़े-मकोड़ों के काटने, खाँसने, हाथ पकड़ने, गले लगाने, गाल पर चूमने, स्तनपान से, किसी का जूठा खाने या पीने से, दूसरों के चॉपस्टिक्स या खाने के बर्तनों का इस्तेमाल करने से हेपेटाइटिस-बी नहीं फैलता। जिन स्त्री-पुरुषों को हेपेटाइटिस-बी हो चुका है, उन्हें यह दोबारा नहीं होता क्योंकि उनके शरीर में इससे लड़ने की ताकत रहती है। छोटे बच्चों में यह वायरस होने का ज़्यादा खतरा रहता है। अगर हेपेटाइटिस-बी का इलाज नहीं कराया जाए, तो एक व्यक्‍ति का कलेजा काम करना बंद कर सकता है और उसकी मौत हो सकती है। टीका लगवाने से हेपेटाइटिस-बी से बचा जा सकता है।

हेपेटाइटिस-सी वायरस (एच.सी.वी)

हेपेटाइटिस-सी भी हेपेटाइटिस-बी की तरह ही फैलता है। आम तौर पर यह बीमारी दूसरों में उन इंजेक्शन के ज़रिए फैलती है जिनका इस्तेमाल हेपेटाइटिस के मरीज़ों पर किया जाता है। हेपेटाइटिस-सी के लिए कोई टीका नहीं है। *

[फुटनोट]

^ ज़्यादा जानने के लिए विश्‍व स्वास्थ्य संगठन की वेब साइट www.who.int देखिए, जहाँ कई भाषाओं में हेपेटाइटिस के बारे में जानकारी दी गयी है।

[पेज 16 पर बक्स]

हेपेटाइटिस-बी का चक्रव्यूह तोड़ना

हेपेटाइटिस-बी दुनिया-भर में फैला हुआ है, लेकिन इस बीमारी के करीब 78 प्रतिशत मरीज़ एशिया और प्रशांत महासागर के द्वीपों में हैं। इन इलाकों में, दस में से एक व्यक्‍ति के अंदर यह वायरस मौजूद है। कइयों को यह बीमारी जन्म के वक्‍त अपनी माँ से या बचपन में उन बच्चों के खून के संपर्क में आने से मिली है, जिन्हें हेपेटाइटिस-बी था। एक असरदार टीका तैयार किया गया है, जिससे नए-जन्मे बच्चों और दूसरों को हेपेटाइटिस-बी के चक्रव्यूह से निकाला जा सकता है। * जिन इलाकों में यह टीका लगाया गया है, वहाँ हेपेटाइटिस-बी के मरीज़ों की गिनती में तेज़ी से गिरावट आयी है।

[फुटनोट]

^ कभी-कभी हेपेटाइटिस के कुछ टीके खून के पदार्थों से भी तैयार किए जाते हैं। इसलिए कृपया 15 जून 2000 और 1 अक्टूबर 1994 की प्रहरीदुर्ग का लेख “पाठकों के प्रश्‍न” देखिए। इस सिलसिले में किताब खुद को परमेश्‍वर के प्यार के लायक बनाए रखो के पेज 246 पर भी जानकारी मिल सकती है। इन्हें यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

[पेज 17 पर तसवीर]

डक ग्यून अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ

[पेज 14 पर चित्र का श्रेय]

© Sebastian Kaulitzki/Alamy