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किनके साथ दोस्ती करूँ?

किनके साथ दोस्ती करूँ?

नौजवान पूछते हैं

किनके साथ दोस्ती करूँ?

“मैं 21 साल की हूँ, और यहाँ मेरी उम्र के बहुत कम लोग हैं। इसलिए मुझे या तो स्कूल के बच्चों के साथ या शादीशुदा लोगों के साथ वक्‍त बिताना पड़ता है। स्कूल के बच्चों को अपने इम्तहान की चिंता लगी रहती है और शादीशुदा जोड़े अपने घर-बार की फिक्र में घुले जाते हैं। जबकि मेरा इन दोनों ही बातों से कोई लेना-देना नहीं। काश! मुझे अपनी उम्र के दोस्त मिल पाते।”—कारमेन। *

तकरीबन हर उम्र के लोग चाहते हैं कि दूसरे उनसे दोस्ती करें। बेशक आप भी ऐसा ही चाहते होंगे। इसलिए जब लोग हमें अनदेखा करते हैं और हमें अपने साथ शामिल नहीं करते मानो हम वहाँ मौजूद ही न हों तो दिल को बहुत ठेस पहुँचती है। पंद्रह साल की मिकेला कहती है, उस वक्‍त ऐसा लगता है मानो “आप भीड़ में भी अकेले हों।”

यह सच है कि अगर आप मसीही हैं तो आपके पास “भाइयों की सारी बिरादरी” मौजूद होती है जिनके साथ आप दोस्ती कर सकते हैं। (1 पतरस 2:17) लेकिन हो सकता है फिर भी आप अकेला महसूस करें। बीस साल की हैलेना याद करती है: “मसीही सभाओं से वापस आते वक्‍त मैं कार में पीछे बैठकर बहुत रोती थी। मैं जितना ज़्यादा लोगों के साथ दोस्ती करने की कोशिश करती उतना ही ज़्यादा मैं निराश हो जाती।”

अगर आपको लगता है कि आपके लिए दोस्ती करना मुश्‍किल हो रहा है तो आप क्या कर सकते हैं? सबसे पहले आइए हम यह पहचानने की कोशिश करें कि (1) आपको कैसे लोगों के साथ दोस्ती करना सबसे ज़्यादा मुश्‍किल लगता है और (2) जब आप उनके साथ होते हैं तो कैसे पेश आते हैं।

जिस समूह के लोगों के साथ आप बिलकुल घुल-मिल नहीं पाते, उसके सामने ✔ का निशान लगाइए।

1. उम्र

❑ आपसे छोटे ❑ हमउम्र ❑ आपसे बड़े

2. हुनरमंद

❑ खेल में ❑ किसी गतिविधि में ❑ पढ़ाई में

3. शख्सियत

लोग जो

❑ आत्म-विश्‍वास से भरे ❑ मशहूर ❑ अपना एक अलग समूह बना लेते हैं

जिस तरह के लोगों की पहचान आपने ऊपर की है, उनके साथ होने पर आप जैसा व्यवहार करते हैं उसके आगे ✔ का निशान लगाइए।

❑ मैं दिखाने की कोशिश करता हूँ कि मेरे भी शौक उनके जैसे हैं और मुझमें भी वैसी ही काबिलीयतें हैं।

❑ मैं उनकी पसंद-नापसंद को नज़रअंदाज़ करके सिर्फ अपने ही बारे में बात करता हूँ।

❑ मैं शांत रहता हूँ और मौका मिलते ही वहाँ से नौ-दो-ग्यारह हो जाता हूँ।

अब जबकि आपने पहचान लिया है कि किस समूह के लोगों के साथ दोस्ती करना आपको सबसे ज़्यादा मुश्‍किल लगता है और आप उनके साथ होते वक्‍त कैसा व्यवहार करते हैं, तो हम इस बात पर गौर करने के लिए तैयार हैं कि आप दोस्ती कैसे कर सकते हैं। लेकिन पहले हमें उन कुछ खतरों को पहचानने और उनसे दूर रहने की ज़रूरत है जो दोस्ती करने के आपके रास्ते में रुकावट बनते हैं।

पहला खतरा: खुद को अकेला कर लेना

चुनौती। जब आप ऐसे लोगों के साथ होते हैं जिनके शौक या हुनर आपसे अलग होते हैं, तो खुद को अजनबी महसूस करना लाज़िमी है खास तौर पर तब, जब आपका स्वभाव शर्मीला हो। अट्ठारह साल की अनीटा कहती है “मुझे बातचीत में पहल करना बिलकुल अच्छा नहीं लगता। मुझे डर लगता है कि कहीं मेरे मुँह से कुछ गलत बात न निकल जाए।”

बाइबल क्या कहती है। “जो औरों से अलग हो जाता है, वह अपनी ही इच्छा पूरी करने के लिए ऐसा करता है, और सब प्रकार की खरी बुद्धि से बैर करता है।” (नीतिवचन 18:1) साफ है कि दूसरों से दूरी बनाए रखने से बात बिगड़ जाती है। होता यह है कि जब आप खुद को दूसरों से अलग कर लेते हैं तो आप एक तरीके से चक्रव्यूह में फँस जाते हैं: आपका अकेलापन आपको यकीन दिलाता है कि आप किसी से दोस्ती नहीं कर सकते, जिस वजह से आप दूसरों से अलग रहने लगते हैं, अकेलापन महसूस करते हैं और फिर आपको यकीन हो जाता है कि आप किसी से दोस्ती नहीं कर सकते। और आप इसी चक्रव्यूह में फँसे रहते हैं और तब तक इससे नहीं निकल सकते जब तक कि आप कोई कदम नहीं उठाते!

“लोग आपका मन नहीं पढ़ सकते। जब तक आप अपने मन की बात कहेंगे नहीं, लोग आपको समझेंगे नहीं। अगर आप अपने अंदर ही सिमटे रहेंगे तो आप कभी दोस्त नहीं बना पाएँगे। दोस्त बनाने के लिए आपको मेहनत करनी पड़ेगी। यह सोचना कि अगले को ही आपकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहिए ठीक नहीं है। दोस्ती का मतलब दोनों तरफ से पहल करना होता है।”—मेलिन्डा, 19.

दूसरा खतरा: बेचैनी

चुनौती। कुछ लोग दोस्ती करने के लिए इतने बेचैन रहते हैं कि वे गलत लोगों से दोस्ती कर बैठते हैं। उन्हें लगता है कि दोस्त होने से ज़्यादा बेहतर है कोई तो दोस्त हो। पंद्रह साल की रेने कहती है: “मैं अपने स्कूल के जाने-माने समूह का हिस्सा नहीं थी। इस बात से मैं इतनी दुखी थी कि कभी-कभी मुझे लगता था कि मैं कोई तो गलती करूँ ताकि वे मुझे अपना दोस्त बना लें।”

बाइबल क्या कहती है? “मूर्खों का साथी नाश हो जाएगा।” (नीतिवचन 13:20) यह मत समझिए कि यहाँ जिन मूर्खों की बात की गयी है वे वाकई में मूर्ख हैं। इसके उलट हो सकता है वे पढ़ाई-लिखाई में बहुत तेज़ हों। लेकिन अगर वे बाइबल के स्तरों की ज़रा भी कदर नहीं करते तो परमेश्‍वर की नज़र में वे मूर्ख हैं। अगर आप उनके साथ दोस्ती करने के लिए गिरगिट की तरह रंग बदलेंगे, तो नुकसान आपको ही होगा।—1 कुरिंथियों 15:33.

“आप हर किसी के साथ वक्‍त नहीं बिता सकते। आप ऐसे दोस्त नहीं चाहेंगे जो आपको एहसास कराएँ कि उनकी संगति में आपको उनके जैसा बनने की ज़रूरत है। आप ऐसे दोस्त चाहेंगे जो आपको वाकई प्यार करें और जो हमेशा ज़रूरत में आपका साथ दें।”—पाउला, 21.

पहल कीजिए

इस इंतज़ार में मत रहिए कि लोग आपके पास आकर दोस्ती का हाथ बढ़ाएँगे। इक्कीस साल की जीन कहती है “हम हमेशा यह उम्मीद नहीं कर सकते कि लोग हमारे पास आएँ, हमें दूसरों के पास जाने की ज़रूरत है।” आगे दिए दो सुझाव ऐसा करने में आपकी मदद करेंगे:

अपने से बड़े या छोटों से दोस्ती कीजिए। बाइबल में दाविद और योनातन के बारे में बताया गया है, दोनों की उम्र में करीब 30 साल का फर्क था, फिर भी वे दोनों “अभिन्‍न मित्र” थे। * (1 शमूएल 18:1, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इससे हम क्या सबक सीखते हैं? यही कि बड़ों से दोस्ती की जा सकती है! खुद ही सोचिए, अगर आप सिर्फ अपनी उम्र के लोगों के साथ दोस्ती करना चाहेंगे और फिर शिकायत करेंगे कि आपके दोस्त नहीं हैं, तो क्या यह सही होगा? यह ऐसा होगा मानो आप एक बंजर द्वीप पर भूख से तड़प रहे हैं, जबकि द्वीप के चारों तरफ पानी में मछलियाँ तैर रही हैं। उसी तरह आपके चारों तरफ अच्छे लोग हैं, जिनसे आप दोस्ती कर सकते हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि आप अपनी उम्र के दायरे से बाहर निकलें।

“मेरी माँ ने मुझे बढ़ावा दिया कि मैं मंडली में अपने से बड़ी उम्र के लोगों से बात करने की कोशिश करूँ। उसने कहा कि यह देखकर तुम्हें हैरानी होगी कि तुममें और उनमें कितनी बातें मिलती-जुलती हैं। माँ ने बिलकुल सही कहा था। अब मेरे बहुत-से दोस्त हैं।”हेलेना, 20.

बातचीत करने की कला पैदा कीजिए। बातचीत शुरू करने में मेहनत लगती है, खास तौर पर जब आपका स्वभाव शर्मीला हो। लेकिन आप यह कर सकते हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि आप (1) सुनें, (2) सवाल पूछें और (3) सच्ची दिलचस्पी दिखाएँ।

“खुद ही बात करते रहने के बजाय मैं दूसरों को बात करने का मौका देती हूँ। और खयाल रखती हूँ कि मैं अपने ही बारे में न बोलती रहूँ या दूसरों की बुराई न करूँ।”सरीना, 18.

“अगर सामनेवाला किसी ऐसे विषय पर बात करना चाहता है, जिसके बारे में मुझे ज़्यादा जानकारी नहीं है तो मैं उससे कहता हूँ कि वह मुझे खुलकर उस बारे में बताए, इस तरह हमारी बातचीत आगे बढ़ती है।”जैरेड, 21.

शायद आप मिलनसार ना हों, मगर इसमें कोई बुराई नहीं है। आपको अपना स्वभाव बदलने की ज़रूरत नहीं। लेकिन अगर आपको लगता है कि आप दूसरों से दोस्ती नहीं कर सकते तो इस लेख में दिए सुझावों पर अमल कीजिए। फिर आप लिया की तरह महसूस करेंगे जो कहती है: “मेरा स्वभाव शर्मीला है। इसलिए दूसरों से बात करने के लिए मुझे खुद पर ज़ोर डालना पड़ता है। लेकिन दोस्त बनाने के लिए दोस्ताना होना ज़रूरी है। इसलिए मैं बात करने में पहल करती हूँ।” (g11-E 04)

“नौजवान पूछते हैं” के और भी लेख, वेब साइट www.watchtower.org/ype पर उपलब्ध हैं

[फुटनोट]

^ इस लेख में नाम बदल दिए गए हैं।

^ जब दाविद ने योनातन से दोस्ती की तब वह शायद किशोर रहा होगा।

[पेज 21 पर बक्स/तसवीरें]

आपके हमउम्र क्या कहते हैं

“मैं मसीही सभा में किसी ऐसे शख्स से बात करने की कोशिश करती हूँ, जिससे बात करने की मैंने कभी नहीं सोची थी। मैंने देखा है कि एक छोटे-से हैलो से दोस्ती शुरू हो सकती है!”

“मेरे लिए कुछ ना करना और यह कहना आसान था कि लोग मुझे पसंद नहीं करते हैं, इसलिए मैं उनके साथ दोस्ती नहीं कर सकता। लेकिन पहल मुझे अपनी तरफ से करनी थी। आखिर में इसका अच्छा नतीजा निकला और मेरी शख्सियत में सुधार आया।”

“मैं धीरे-धीरे बड़े लोगों की बातचीत में शामिल हुई। शुरू में यह बहुत अजीब था! पर इससे मुझे ही फायदा हुआ, क्योंकि मैं कम उम्र में ज़िंदगी-भर के लिए ऐसे दोस्त बना पायी, जो हमेशा मेरा साथ देते हैं।”

[तसवीरें]

लॉरेन

रेयॉन

कैरिसा

[पेज 22 पर बक्स]

क्यों ना अपने माता-पिता से पूछें?

जब आप मेरी उम्र के थे तो क्या आपको भी दूसरों से दोस्ती करने में परेशानी होती थी? किस तरह के लोगों के साथ दोस्ती करना आपको सबसे मुश्‍किल लगता था? आपने इस मुश्‍किल को दूर कैसे किया?

....

[पेज 22 पर रेखाचित्र]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

अकेलेपन का चक्रव्यूह

मेरे दोस्त नहीं हैं 

जिससे मुझे

लगता है . . . ↓

. . . लोगों

ने मुझे अलग-थलग 

कर दिया है, जिससे मैं . . .

. . . लोगों से और

दूर चला जाता हूँ,

जिससे मुझे लगता है कि . . .