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मेरे मम्मी-पापा मुझे मौज-मस्ती क्यों नहीं करने देते?

मेरे मम्मी-पापा मुझे मौज-मस्ती क्यों नहीं करने देते?

नौजवान पूछते हैं

मेरे मम्मी-पापा मुझे मौज-मस्ती क्यों नहीं करने देते?

ऑस्ट्रेलिया में रहनेवाली एलिसन * को स्कूल में हर सोमवार को एक ही तनाव का सामना करना पड़ता है।

वह कहती है, “हर किसी की ज़बान पर बस एक ही बात होती कि उन्होंने शनिवार-रविवार को क्या किया। वे कई दिलचस्प किस्से सुनाते, जैसे वे कितनी पार्टियों में गए और कितने लड़को को किस किया, यहाँ तक कि वे पुलिस से भी भागे . . . मुझे ये सारी बातें खतरनाक, मगर मज़ेदार लगतीं! वे सुबह पाँच बजे घर लौटते और उनके मम्मी-पापा को इसकी कोई परवाह नहीं होती। असल में उनकी रात तो तब शुरू होती थी जब मैं गहरी नींद में होती!”

“खैर, अपने किस्से सुनाने के बाद मेरी क्लास की लड़कियाँ मुझसे पूछतीं कि मैंने शनिवार-रविवार को क्या किया। मैं सोचने लगती, मैंने क्या किया: मैं मसीही सभाओं और प्रचार में गयी। मुझे लगता मानो वाकई मैं वो सारा मज़ा नहीं कर पायी जो मेरे दोस्तों ने किया। इसलिए मैं उनसे अकसर यही कहती कि मैंने कुछ नहीं किया। मेरा जवाब सुनकर वे पूछतीं तो तुम हमारे साथ क्यों नहीं आयी।”

“शायद आप सोचें कि मंगलवार को सबकुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन नहीं, मंगलवार को सब आनेवाले शनिवार-रविवार के बारे में बात करने लगते हैं! मैं बस वहाँ बैठकर उनकी बातें सुनती हूँ। मैं बहुत अकेला महसूस करती हूँ!”

स्कूल में क्या आपके भी हफ्ते की शुरूआत ऐसे ही होती है? आपको शायद लगे कि बाहर की दुनिया कितनी मौज-मस्ती भरी है, लेकिन आपके मम्मी-पापा ने आपको घर में कैद कर रखा है। या मानो आप पार्क में हैं और वहाँ बड़े-बड़े झूले हैं, लेकिन आपको किसी पर भी बैठने नहीं दिया जाता। ऐसा नहीं है कि आप हर वह काम करना चाहते हैं जो आपके दोस्त करते हैं, आप तो बस कभी-कभार थोड़ी मौज-मस्ती करना चाहते हैं! उदाहरण के लिए, इस शनिवार-रविवार आप नीचे दी किस तरह की मौज-मस्ती करना चाहेंगे?

नाच-गाना

म्यूज़िक कॉनसर्ट

फिल्म

पार्टी

कुछ और ....

आपको मौज-मस्ती की ज़रूरत है। (सभोपदेशक 3:1, 4) आपका सृष्टिकर्ता चाहता है कि आप जवानी में मज़ा करें। (सभोपदेशक 11:9) शायद आपको कभी-कभी लगे कि आपके मम्मी-पापा नहीं चाहते आप मौज-मस्ती करें, लेकिन यह सच नहीं है। आपके मम्मी-पापा शायद इन दो वजहों से चिंता करते हों: (1) आप वहाँ क्या करेंगे और (2) आपके साथ कौन-कौन होगा।

मान लीजिए कि आपके दोस्तों ने आपको कहीं साथ चलने के लिए पूछा है, लेकिन आप नहीं जानते कि आपके मम्मी-पापा आपको जाने देंगे या नहीं। ऐसे में आप क्या करेंगे? जब फैसला करने की बात आती है, तो बाइबल कहती है पहले आप यह सोचिए कि आपके सामने कौन-कौन से सही और गलत रास्ते हैं और फिर देखिए कि उन पर चलने का क्या अंजाम होगा। (व्यवस्थाविवरण 32:29; नीतिवचन 7:6-23) तो फिर दोस्तों के साथ जाने के कार्यक्रम के मामले में आपके सामने कौन-कौन से रास्ते हैं?

पहला रास्ता: पूछिए मत, बस चले जाइए।

आप ऐसा करने की क्यों सोच सकते हैं: शायद आप अपने दोस्तों को दिखाना चाहते हों कि आप अपनी मरज़ी के मालिक हैं और इस तरह उन पर अपनी धाक जमाना चाहते हों। आपको लग सकता है कि मम्मी-पापा से ज़्यादा आप जानते हैं, या आपकी नज़र में उनके फैसले की कोई अहमियत नहीं।—नीतिवचन 15:5.

अंजाम: आपके दोस्त जान जाएँगे कि आप उन्हें भी धोखा दे सकते हैं। जब आप अपने मम्मी-पापा को धोखा दे सकते हैं तो दोस्तों की क्या बिसात। अगर आपके मम्मी-पापा को आपकी हरकतों का पता चला, तो वे दुखी होंगे और आप पर से उनका भरोसा उठ जाएगा। हो सकता है वे आप पर पाबंदियाँ लगा दें। अपने मम्मी-पापा की बात न मानकर दोस्तों के साथ चले जाना, बेवकूफी होगी।—नीतिवचन 12:15.

दूसरा रास्ता: न पूछिए और न जाइए।

आप ऐसा करने की क्यों सोच सकते हैं: आप अपने दोस्तों की पेशकश पर गौर करते हैं और आपको पता चलता है कि वे जिस काम में हिस्सा लेनेवाले हैं वह आपके सिद्धांतों के खिलाफ है, या वहाँ कुछ ऐसे लोग भी आएँगे जिनका साथ आपके लिए बुरा साबित हो सकता है। (1 कुरिंथियों 15:33; फिलिप्पियों 4:8) दूसरी ओर, हो सकता है आपका जाने का मन हो पर आपके पास मम्मी-पापा से पूछने की हिम्मत नहीं।

अंजाम: अगर आपने ना जाने का फैसला इसलिए किया है क्योंकि आप जानते हैं कि यह गलत है, तो आप ज़्यादा यकीन के साथ अपने दोस्तों को मना कर पाएँगे। लेकिन अगर आप सिर्फ इसलिए नहीं जा रहे क्योंकि आपमें मम्मी-पापा से पूछने की हिम्मत नहीं, तो आप पूरे समय इसी बात को लेकर उदास रहेंगे और सोचेंगे कि दुनिया में आपके अलावा सभी मौज-मस्ती कर रहे हैं।

तीसरा रास्ता: पूछकर देखिए।

आप ऐसा करने की क्यों सोच सकते हैं: आप समझते हैं कि आप पर आपके मम्मी-पापा का अधिकार है और आप उनके फैसले की इज़्ज़त करते हैं। (कुलुस्सियों 3:20) आप उनसे प्यार करते हैं और चोरी-छिपे अपने दोस्तों के साथ जाकर उन्हें ठेस नहीं पहुँचाना चाहते। (नीतिवचन 10:1) साथ ही, यह रास्ता अपनाने से आपको उनके सामने अपनी बात रखने का मौका भी मिलेगा।

अंजाम: आपके मम्मी-पापा को लगेगा कि आप उनसे प्यार करते हैं और आपके दिल में उनके लिए इज़्ज़त है। और अगर उन्हें आपकी गुज़ारिश वाजिब लगी तो वे हाँ कह सकते हैं।

मम्मी-पापा क्यों मना कर सकते हैं

अगर मम्मी-पापा आपको दोस्तों के साथ जाने से मना कर देते हैं, तब आप क्या करेंगे? शायद आपको बुरा लगे। फिर भी, अगर आप उनके नज़रिए को समझने की कोशिश करें, तो आपको अपने ऊपर लगी पाबंदियों को मानने में आसानी होगी। माता-पिता किसी काम के लिए ‘ना’ क्यों कहते हैं, इसके कुछ कारण नीचे दिए गए हैं।

ज़्यादा जानकारी और तजुरबा। अगर आप समंदर में तैरने गए हैं, तो बेशक आप ऐसी जगह ही तैरना पसंद करेंगे जहाँ लाइफगार्ड हों। क्यों? क्योंकि जब आप पानी में मज़े कर रहे होते हैं, तो आप खतरे को जल्दी भाँप नहीं पाते। लेकिन लाइफगार्ड एक ऊँची जगह पर बैठे होते हैं और वहाँ से वे खतरे को जल्दी भाँप लेते हैं।

ठीक इसी तरह, मम्मी-पापा को आपसे ज़्यादा जानकारी और तजुरबा है। इसलिए वे उन खतरों के बारे में जानते हैं, जो आपको दिखायी नहीं देते। समंदर के किनारे तैनात लाइफगार्ड की तरह, आपके मम्मी-पापा का मकसद आपका मज़ा किरकिरा करना नहीं, बल्कि आपको ऐसे खतरों से बचाना है जो आपकी ज़िंदगी की खुशियाँ छीन सकते हैं।

आपके लिए प्यार। आपके मम्मी-पापा आपकी हिफाज़त करना चाहते हैं। वे आपसे प्यार करते हैं, इसलिए जब उन्हें कोई काम सही लगता है तो वे आपको ‘हाँ’ कहते हैं, मगर कभी-कभी उन्हें ‘ना’ भी कहना पड़ता है। जब आप किसी काम के लिए उनसे इजाज़त माँगते हैं, तो वे खुद से पूछते हैं कि क्या वे इजाज़त देकर आगे होनेवाले बुरे अंजामों को भुगतने के लिए तैयार हैं? वे खुद को और आपको तभी हाँ कहेंगे जब उन्हें पूरी तसल्ली हो जाएगी कि आपको किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं होगा।

जानकारी की कमी। प्यार करनेवाले माता-पिता आपको किसी खतरे में नहीं डालना चाहते इसलिए कभी-कभी वे मना कर देते हैं। आप जिस बात के लिए उनसे इजाज़त माँग रहे हैं, अगर वह बात उन्हें साफ-साफ न समझायी गयी या अगर उन्हें लगता है कि आप उन्हें ज़रूरी जानकारी नहीं दे पा रहे हैं, तो उनका ‘ना’ कहना लाज़िमी है।

ऐसा क्या करूँ, जिससे मम्मी-पापा हाँ कह दें

चार बातें ध्यान रखिए।

ईमानदारी: सबसे पहले आपको खुद से ईमानदारी के साथ पूछना होगा: ‘दोस्तों के साथ जाने की असल वजह क्या है? क्या मैं इसलिए जाना चाहता हूँ कि वहाँ मैं अपने मनपसंद काम में हिस्सा ले पाऊँगा या फिर मैं अपने दोस्तों की तरह बनना चाहता हूँ? कहीं मैं इसलिए तो नहीं जाना चाहता कि वहाँ वह भी होगी जिसे मैं पसंद करता हूँ?’ इसके बाद ईमानदारी से अपने मम्मी-पापा के सवालों का जवाब दीजिए। मत भूलिए कि वे भी एक समय पर आपकी उम्र के थे और वे आपको अच्छी तरह जानते हैं। इसलिए वे किसी-न-किसी तरह आपके असली इरादे भाँप ही जाएँगे। लेकिन अगर आप उन्हें सबकुछ सच-सच बताएँगे तो वे इसकी कदर करेंगे और आपको उनकी बुद्धि भरी सलाहों से फायदा होगा। (नीतिवचन 7:1, 2) मगर दूसरी तरफ, अगर आप उनसे झूठ बोलेंगे तो मम्मी-पापा का आप पर से भरोसा उठ जाएगा और फिर शायद वे आपको इजाज़त न दें।

समय: अगर मम्मी-पापा अभी-अभी काम से घर लौटे हों या दूसरे मामलों में व्यस्त हों, तो उस वक्‍त जाने के लिए पूछ-पूछकर उनकी नाक में दम मत कीजिए। जब वे फुरसत में हों, तब बात कीजिए। लेकिन ऐन वक्‍त तक इंतज़ार करके अपने मम्मी-पापा पर हाँ कहने का दबाव मत डालिए। आपके मम्मी-पापा हड़बड़ी में कोई फैसला लेना पसंद नहीं करेंगे। पहले से पूछिए और वे इस बात की ज़रूर कदर करेंगे कि आपने उन्हें सोचने का वक्‍त दिया।

जानकारी: मम्मी-पापा को अपने प्रोग्राम की पूरी जानकारी दीजिए। साफ-साफ बताइए कि आप क्या करनेवाले हैं। अगर मम्मी-पापा आपसे पूछते हैं कि “वहाँ कौन-कौन होगा?”, “क्या कोई ज़िम्मेदार व्यक्‍ति वहाँ मौजूद होगा?” या “प्रोग्राम कब खत्म होगा?” ऐसे में अगर आप जवाब देते हैं कि “मुझे नहीं मालूम” तो उन्हें अजीब लगेगा।

रवैया: अपने माता-पिता को अपना दुश्‍मन मत समझिए। यानी उन्हें विरोधी टीम का नहीं बल्कि अपनी टीम का ही सदस्य समझिए, क्योंकि देखा जाए तो यही सच्चाई है। अगर आप अपने माता-पिता को अपना दोस्त समझेंगे तो फिर आप उनसे झगड़ा करने के लहज़े में बात नहीं करेंगे और वे भी शायद आपकी बात समझने की कोशिश करें। अगर वे किसी काम के लिए ‘ना’ कहते हैं, तो आदर के साथ पूछिए कि इसकी क्या वजह है। उदाहरण के लिए, अगर वे आपको किसी कॉनसर्ट में जाने से मना करते हैं, तो जानने की कोशिश कीजिए कि इसकी वजह क्या है। क्या वे कार्यक्रम पेश करनेवाले अदाकार, कार्यक्रम की जगह, आप जिनके साथ जा रहे हैं, टिकट के दाम, वगैरह बातों को लेकर परेशान हैं? अपने मम्मी-पापा से ऐसी बातें मत कहिए जैसे, “क्या आपको मुझ पर बिलकुल भरोसा नहीं,” “मेरे सारे दोस्त जा रहे हैं,” या “मेरे दोस्तों के मम्मी-पापा ने तो उन्हें कुछ नहीं कहा!” उन्हें दिखाइए कि आप समझदार हैं और उनका फैसला मानने और उसकी इज़्ज़त करने के लिए तैयार हैं। यह देखकर वे भी आपकी इज़्ज़त करेंगे। और अगली बार, वे शायद आपको हाँ कह दें। (g11-E 02)

“नौजवान पूछते हैं” के और भी लेख, वेब साइट www.watchtower.org/ype पर उपलब्ध हैं

[फुटनोट]

^ नाम बदल दिया गया है।

[पेज 13 पर बक्स/तसवीर]

“मैं पूरी ज़िम्मेदारी से अपने काम करती हूँ इसलिए मेरे मम्मी-पापा मुझ पर भरोसा करते हैं। मैं अपने दोस्तों के बारे में उन्हें खुलकर बताती हूँ। अगर किसी पार्टी में मुझे कुछ गलत लगता है, तो मैं बेझिझक वहाँ से निकल जाती हूँ।”

[तसवीर]

किमबर्ली

[पेज 14 पर बक्स]

क्यों ना आप मम्मी-पापा से पूछें?

क्या आप जानना चाहेंगे कि इस लेख में उठाए मुद्दों के बारे में आपके मम्मी-पापा की क्या राय है? यह जानने का एक ही तरीका है, उनसे पूछना! मौका देखकर उनसे बातचीत कीजिए और पूछिए कि आपकी मौज-मस्ती और घूमने-फिरने के सिलसिले में वे किस बात को लेकर परेशान रहते हैं। आप अपने मम्मी-पापा से कौन-सा सवाल पूछना चाहेंगे, इसके बारे में सोचिए और नीचे लिखिए।

....

[पेज 14 पर तसवीर]

समंदर के किनारे तैनात लाइफगार्ड की तरह आपके मम्मी-पापा खतरों को जल्दी भाँपकर आपको खबरदार कर सकते हैं