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छुटपन से जवानी की दहलीज़ तक ले जाना

छुटपन से जवानी की दहलीज़ तक ले जाना

छुटपन से जवानी की दहलीज़ तक ले जाना

“पाँच साल की उम्र तक बच्चे घर के खुशनुमा माहौल में रहते हैं और उस वक्‍त उनके अंदर अच्छे गुण डालना आसान होता है। लेकिन जब वे घर की चार-दीवारी से बाहर कदम रखते हैं और स्कूल जाने लगते हैं, तो वे काम करने और बात करने के अलग-अलग तरीकों पर गौर करने लगते हैं।”—वॉल्टर, इटली।

बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते हैं, उनकी दुनिया का दायरा बढ़ता जाता है और वे उसकी छानबीन करने लगते हैं। उनका मिलना-जुलना और लोगों से होता है, जैसे कि साथ खेलनेवाले दोस्त, स्कूल में पढ़नेवाले बच्चे और नाते-रिश्‍तेदार। जब तक बच्चे छोटे थे उनके लिए आप ही सबकुछ थे, लेकिन अब उनकी ज़िंदगी पर दूसरों का भी असर होने लगता है, जैसा कि ऊपर बतायी वॉल्टर की बात से पता चलता है। इसलिए ज़रूरी है कि इन सालों के दौरान आप अपने बच्चे को कहना मानना और तमीज़ दिखाना सिखाएँ। उन्हें यह भी सिखाना ज़रूरी है कि सही क्या है और गलत क्या।

लेकिन ये गुण बच्चों में रातों-रात अपने-आप नहीं आ जाते। शायद आपको ‘पूरी सहनशीलता और सिखाने की कला के साथ ताड़ना देनी पड़े, डाँट और सीख देकर उकसाना पड़े।’ (2 तीमुथियुस 4:2) इसराएली माता-पिताओं को परमेश्‍वर के नियमों के बारे में यह आज्ञा दी गयी थी: “तू इन्हें अपने बालबच्चों को समझाकर सिखाया करना, और घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते, इनकी चर्चा किया करना।” (व्यवस्थाविवरण 6:6, 7) जैसा यह वचन बताता है, बच्चों को लगातार सिखाते रहना बेहद ज़रूरी है।

बच्चों की परवरिश करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। आइए कुछ पर गौर करें।

सुनने का समय

बाइबल कहती है कि “बोलने का भी समय है” और सुनने का भी। (सभोपदेशक 3:7) आप अपने बच्चे को कैसे सिखा सकते हैं कि जब आप या दूसरे उससे बात कर रहे हों, तो वह ध्यान से सुने? एक तरीका है, उसके सामने अच्छा उदाहरण रखना। क्या आप दूसरों की, यहाँ तक कि अपने बच्चे की बात ध्यान से सुनते हैं?

बच्चों का मन बड़ा चंचल होता है, इसलिए हो सकता है कि उनसे बात करते वक्‍त आपको बहुत सब्र रखना पड़े। हर बच्चा अपने-आप में अलग होता है, इसलिए अपने बच्चे पर गौर कीजिए और तय कीजिए कि उसके साथ बातचीत करने के लिए कौन-सा तरीका सबसे बढ़िया रहेगा। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन में रहनेवाले डेविड ने बताया: “मैं अपनी बेटी से कहता हूँ कि मैंने अभी-अभी उससे जो कहा, उसे वह अपने शब्दों में दोहराए। नतीजा यह हुआ है कि जैसे-जैसे वह बड़ी हो रही है वह हमारी बात ध्यान से सुनने लगी है।”

जब यीशु अपने चेलों को सिखा रहा था, तो उसने उनसे कहा: “ध्यान दो कि तुम कैसे सुनते हो।” (लूका 8:18) सोचिए अगर बड़ों को ऐसा करने के लिए कहा गया है तो बच्चों के लिए यह और भी कितना ज़रूरी है!

“एक-दूसरे को दिल खोलकर माफ करो”

बाइबल कहती है: “अगर किसी के पास दूसरे के खिलाफ शिकायत की कोई वजह है, तो एक-दूसरे की सहते रहो और एक-दूसरे को दिल खोलकर माफ करो।” (कुलुस्सियों 3:13) बच्चों को माफ करना सिखाया जा सकता है। कैसे?

दूसरों की बात ध्यान से सुनने की तरह, इस मामले में भी आपको अपने बच्चों के आगे उदाहरण रखने की ज़रूरत है। अपने बच्चों को दिखाइए कि आप दूसरों को माफ करने के लिए तैयार रहते हैं। रूस में रहनेवाली मरीना भी ऐसा करने की कोशिश करती है। वह बताती है: “दूसरों को माफ करने, उनके साथ नरमी से पेश आने और जल्दी गुस्सा न होने के मामले में हम अपने बच्चों के आगे एक अच्छा उदाहरण रखने की कोशिश करते हैं।” वह आगे कहती है: “अगर गलती मेरी है तो मैं बच्चों से माफी माँगती हूँ। मैं चाहती हूँ कि वे भी दूसरों के साथ इसी तरह पेश आना सीखें।”

बच्चों को झगड़े सुलझाना और दूसरों को माफ करना आना चाहिए, क्योंकि बड़े होने पर ये गुण दिखाना ज़रूरी होता है। इसलिए अपने बच्चों को अभी से सिखाइए कि वे दूसरों की भावनाएँ समझें और अपनी गलती मानें। इस तरह आप उन्हें एक कीमती तोहफा दे रहे होंगे जो सारी ज़िंदगी उनके काम आएगा।

‘दिखाओ कि तुम एहसानमंद हो’

आज ‘संकटों से भरे इस वक्‍त’ में बहुत-से लोग “सिर्फ खुद से प्यार करनेवाले” हो गए हैं। (2 तीमुथियुस 3:1, 2) अभी जब आपके बच्चे छोटे हैं, तो आप उनमें एहसान मानने का गुण डाल सकते हैं। प्रेषित पौलुस ने लिखा: ‘दिखाओ कि तुम एहसानमंद हो।’—कुलुस्सियों 3:15.

बच्चे छुटपन से ही तमीज़ से पेश आना और दूसरों का खयाल रखना सीख सकते हैं। कैसे? पेरेंटस्‌ नाम की पत्रिका में डॉ. काइल प्रुएट ने कहा: “अगर आप बच्चों को दूसरों का एहसान मानना सिखाना चाहते हैं, तो इसका सबसे अच्छा तरीका है कि आप घर पर ऐसा लगातार करें। इसका मतलब है कि अगर घर का कोई सदस्य आपकी मदद करता है या आपका लिहाज़ करता है, तो आप उसे शुक्रिया कहें . . . ऐसी आदत डालने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है।”

ब्रिटेन में रहनेवाला रिचर्ड ऐसा करने की कोशिश करता है। वह बताता है: “मैं और मेरी पत्नी, बच्चों को यह दिखाते हैं कि हम उन लोगों को अपनी एहसानमंदी कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं, जिन्होंने हमारे लिए बहुत कुछ किया है, जैसे स्कूल के टीचर, दादा-दादी और नाना-नानी। जब भी हम किसी के यहाँ खाने पर जाते हैं, तो हम उन्हें धन्यवाद कहने के लिए एक कार्ड बनाते हैं और बच्चों से कहते हैं कि वे उसमें अपना नाम लिखें या कोई तसवीर बनाएँ।” दूसरों के साथ तहज़ीब से पेश आने और उनका एहसान मानने से आपके बच्चे बड़े होकर ऐसे करीबी रिश्‍ते बना पाएँगे, जो ज़िंदगी-भर कायम रहेंगे।

“ताड़ना देने से न रुकना”

जैसे-जैसे आपके बच्चे बड़े होते हैं, उन्हें यह सीखना ज़रूरी है कि हमारे हर काम का एक अंजाम होता है, या तो अच्छा या बुरा। बच्चे छोटी उम्र से ही बड़ों के आगे जवाबदेह होते हैं, न सिर्फ घर में बल्कि स्कूल और समाज में भी। हम जो बोते हैं, वही काटते हैं। (गलातियों 6:7) आप अपने बच्चों को यह सिद्धांत कैसे सिखा सकते हैं?

बाइबल कहती है: “ताड़ना देने से न रुकना।” (नीतिवचन 23:13, अ न्यू हिन्दी ट्रांस्लेशन) अपने बच्चे को पहले से साफ-साफ बता दीजिए कि फलाँ गलती करने पर उसे क्या सज़ा दी जाएगी और अगर वह गलती करता है तो सज़ा देने से पीछे मत हटिए। नॉर्मा जो अर्जण्टिना में रहती है एक माँ है। वह कहती है: “अपनी बात पर बने रहना बहुत ज़रूरी है। अगर हम अपनी बात के पक्के नहीं होते, तो इससे बच्चे को मनमानी करने का मौका मिल जाता है।”

माता-पिता अगर पहले से बच्चों को समझा देते हैं कि बात न मानने का अंजाम क्या होगा, तो गलती करने के बाद उन्हें उनके साथ बेवजह बहस नहीं करनी पड़ेगी। बच्चों को अगर घर के नियम पता हैं और अगर वे जानते हैं कि नियम तोड़ने पर क्या सज़ा मिलेगी, साथ ही सज़ा किसी भी हाल में कम नहीं की जाएगी, तो हो सकता है कि वे माँ-बाप के साथ ज़बान न लड़ाएँ।

लेकिन अनुशासन तभी असरदार होता है, जब वह गुस्से में न दिया जाए। बाइबल कहती है: “हर तरह की जलन-कुढ़न, गुस्सा, क्रोध, चीखना-चिल्लाना और गाली-गलौज . . . को खुद से दूर करो।” (इफिसियों 4:31) अनुशासन का मतलब बेरहमी से सज़ा देना नहीं है, न ही मार-मारकर बच्चे को अधमरा करना या उलटी-सीधी बातें बोलकर उसके कोमल मन को चोट पहुँचाना है।

लेकिन जब आपका बच्चा आपकी नाक में दम कर देता है, तब आप अपने गुस्से को काबू में कैसे रख सकते हैं? न्यू ज़ीलैंड में रहनेवाला पीटर कबूल करता है: “ऐसा करना हमेशा आसान नहीं होता। लेकिन बच्चों को यह सीखना होगा कि अनुशासन उनकी गलती की वजह से दिया जा रहा है, न कि इस वजह से कि माँ-बाप अपने गुस्से को काबू में नहीं रख पा रहे हैं।”

पीटर और उसकी पत्नी अपने बच्चों को यह सिखाने की कोशिश करते हैं कि अनुशासन कबूल करने से आगे चलकर उन्हीं को फायदा होगा। वह कहता है: “अगर बच्चों ने कुछ ऐसा किया है जिसे बिलकुल भी बरदाश्‍त नहीं किया जा सकता, तब भी हम उनकी गलती पर भाषण देने के बजाय, यह समझाते हैं कि उन्हें कैसा इंसान बनना चाहिए।”

“सब लोग यह जान जाएँ कि तुम लिहाज़ करनेवाले इंसान हो”

परमेश्‍वर अपने लोगों को किस तरह का अनुशासन देगा, इस बारे में उसने कहा: “मैं तेरी ताड़ना विचार करके करूंगा।” (यिर्मयाह 46:28) अगर आप बच्चे को सही तरह का और उसकी गलती के हिसाब से अनुशासन देंगे, तो अच्छे नतीजे निकलेंगे। पौलुस ने मसीहियों को लिखा: “सब लोग यह जान जाएँ कि तुम लिहाज़ करनेवाले इंसान हो।”—फिलिप्पियों 4:5.

लिहाज़ दिखाने में यह भी शामिल है कि बच्चों को अनुशासन इस तरह से दिया जाए कि उनकी गरिमा बनी रहे। इटली में रहनेवाला सोन्टी दो बच्चों का पिता है, वह कहता है: “मैं कभी अपने बच्चों की बेइज़्ज़ती नहीं करता। इसके बजाय मैं समस्या की जड़ तक जाने की कोशिश करता हूँ और बच्चों को अपने अंदर सुधार लाने में मदद देता हूँ। जहाँ तक मुमकिन हो मैं उन्हें बाहरवालों के सामने, यहाँ तक कि दोनों को एक-दूसरे के सामने भी ताड़ना नहीं देता। मैं कभी भी उनकी गलतियों का मज़ाक नहीं उड़ाता।”

रिचर्ड, जिसका ज़िक्र पहले भी किया गया है, मानता है कि लिहाज़ दिखाने में समझदारी है। वह कहता है: “सज़ा कभी भी इस तरह नहीं दी जानी चाहिए मानो पिछली सारी गलतियों की कसर आप एक ही बार में निकाल रहे हों। एक बार आपने अनुशासन दे दिया है, तो ज़रूरी है कि आप बच्चे की गलती के बारे में बार-बार बात न करें, न ही उसे इसकी याद दिलाते रहें।”

बच्चों की परवरिश करना कोई मामूली बात नहीं है इसमें माँ-बाप को बहुत त्याग करने पड़ते हैं, लेकिन इससे ढेरों आशीषें भी मिलती हैं। रूस में रहनेवाली एक माँ जिसका नाम येलेना है, उसने भी यही महसूस किया। वह कहती है: “मैं दिन में सिर्फ कुछ ही घंटे काम करती हूँ ताकि मैं अपने बेटे के साथ ज़्यादा वक्‍त बिता सकूँ। यह आसान नहीं है और इससे मैं ज़्यादा पैसे भी नहीं कमा पाती। लेकिन जब मैं अपने बेटे का खिलखिलाता चेहरा देखती हूँ और महसूस करती हूँ कि इस वजह से हम एक-दूसरे के कितने करीब आ गए हैं, तो मेरी सारी मुश्‍किलें ओझल हो जाती हैं।” (g11-E 10)

[पेज 11 पर तसवीर]

बच्चे दूसरों का खयाल रखना सीख सकते हैं

[पेज 12 पर तसवीर]

बच्चों को अनुशासन इस तरह से दीजिए कि उनकी गरिमा बनी रहे