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बिकाऊ है ईमान ज़माना बेईमान

बिकाऊ है ईमान ज़माना बेईमान

बिकाऊ है ईमान ज़माना बेईमान

“ईमानदारी का ज़माना अब नहीं रहा। जो कोई ईमानदारी के बलबूते बिज़नेस करना चाहता है, उसकी हार तय है।”—स्टीवन, अमरीका।

क्या आपको भी ऐसा लगता है? यह सच है कि कुछ समय के लिए ही सही, मगर बेईमानी के सहारे लोग खूब चाँदी कूटते हैं। इसलिए जब कोई ईमानदारी दिखाने की कोशिश करता है, तो उस पर कई तरह के ज़बरदस्त दबाव आते हैं। जैसे:

हमारा मन ही हमें लुभाता है। कौन नहीं चाहेगा कि उसके पास थोड़ा और पैसा हो, थोड़ी और ऐशो-आराम की चीज़ें हों? इसलिए जब बेईमानी से पैसा कमाने का मौका हाथ लगता है, तो उसे ठुकराना मुश्‍किल हो सकता है।

● “मैं अपनी कंपनी की तरफ से दूसरी कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट देने का काम करता हूँ। ठेकेदार कई बार मेरी मुट्ठी गरम करने की कोशिश करते हैं। रातों-रात अमीर बनने के लालच से बचना आसान नहीं।”—फ्राँज़, पश्‍चिम एशिया।

ज़्यादा-से-ज़्यादा मुनाफा कमाने का दबाव। हाल के सालों में आयी आर्थिक मंदी का असर दुनिया-भर में सभी कारोबार पर पड़ा है। साथ ही, उन्हें बदलती टेकनॉलजी के साथ कदम-से-कदम मिलाना होता है। इसके अलावा, पूरी दुनिया में और एक ही इलाके में कंपनियों के बीच होड़ इतनी बढ़ गयी है कि मार्केट में अपनी जगह बनाए रखना आसान नहीं। ऐसे में कर्मचारियों को लग सकता है कि मालिक या मैनेजर के ठहराए टार्गेट को पूरा करने का एक ही रास्ता है, बेईमानी करना।

● “हम ऐसा करने को मजबूर थे। . . . वरना हमारी कंपनी डूब जाती।”—राइनहार्ट सीकाचेक, जिसे रिश्‍वत लेने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया।—द न्यू यॉर्क टाइम्स।

दूसरों का दबाव। कभी-कभी आपके क्लाएंट या साथ काम करनेवाले ही इशारे करते हैं या ज़ोर डालते हैं कि आप बेईमानी करने में उनका साथ दें।

● “मेरे एक बड़े क्लाएंट का मैनेजर मेरे पास आया और कहने लगा कि अगर मैंने ‘उसका हिस्सा’ नहीं दिया तो वह इस डील को रद्द करवा देगा।”—योहान, दक्षिण अफ्रीका।

दस्तूर। कुछ जगहों में बिज़नेस करते वक्‍त एक-दूसरे को तोहफे देने का दस्तूर होता है। तोहफा जितना महँगा होता है और जिस मतलब से दिया जाता है, यह बताना उतना ही मुश्‍किल होता है कि यह वाकई एक तोहफा है या रिश्‍वत। बहुत-से देशों में भ्रष्ट अधिकारी तब तक काम नहीं करते जब तक उनकी जेब गरम न की जाए। और किसी का काम जल्दी करवाने के लिए वे खुशी-खुशी चढ़ावा लेते हैं।

● “बख्शिश और रिश्‍वत में फर्क कर पाना बहुत मुश्‍किल होता है।”—विलियम, कोलम्बिया।

माहौल। ऐसे माहौल में ईमानदार रहना बहुत बड़ी चुनौती होती है जहाँ घोर गरीबी है या जहाँ कोई कायदा-कानून नहीं। और जो चोरी-चकारी या धाँधलेबाज़ी से दूर रहते हैं, लोग समझते हैं कि उन्हें अपने बीवी-बच्चों की कोई चिंता नहीं।

● “लोग कहते हैं कि जब तक आप पकड़े नहीं जाते, बेईमानी करने में कोई बुराई नहीं। बल्कि यह वक्‍त की माँग है और हर कोई ऐसा कर रहा है।”—टोमासी, काँगो किन्शासा।

ईमानदारी किस तरह दम तोड़ रही है

बेईमानी करने का दबाव इतना ज़बरदस्त है कि ज़रूरत पड़ने पर लोग इससे पीछे नहीं हटते। ऑस्ट्रेलिया में बिज़नेस मैनेजरों का एक सर्वे लिया गया जिसमें 10 में से 9 ने कहा कि रिश्‍वतखोरी और भ्रष्टाचार “गलत है मगर इसके बिना काम भी नहीं चलता।” उन्होंने यह भी कहा कि कोई कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने या कंपनी के फायदे के लिए वे अपने उसूलों की बलि चढ़ाने को भी तैयार हैं।

लेकिन बेईमानी करनेवाले खुद को बड़ा ईमानदार समझते हैं। जर्नल ऑफ मार्केटिंग रिसर्च रिपोर्ट करती है: “लोग अपने मुनाफे के लिए बेईमानी करने से नहीं चूकते, फिर भी खुद को इस धोखे में रखते हैं कि वे सच्चे और ईमानदार हैं।” अगर उनका ज़मीर उन्हें कचोटता भी है, तो वे अलग-अलग तरीकों से अपने कामों को जायज़ ठहराने की कोशिश करते हैं।

उदाहरण के लिए, झूठ बोलने या हेराफेरी करने को वे छोटी-मोटी बात समझते हैं। वे कहते हैं कि यह काम जल्दी कराने का आसान तरीका है और ऐसा करके ही हम मार्केट में अपनी जगह बनाए रख सकते हैं। घूस लेने-देने को “नज़राना” या “सुविधा शुल्क” का नाम दिया जाता है।

कुछ लोगों ने तो बेईमानी को सही ठहराने के लिए ईमानदारी की परिभाषा ही बदल दी। वित्तीय कारोबार में काम करनेवाला टॉम कहता है: “लोगों के हिसाब से ईमानदारी का मतलब सच का साथ देना नहीं है, बल्कि इस तरह बेईमानी करना है कि पकड़े न जाओ।” डेविड जो पहले एक कंपनी में बड़े पद पर काम करता था, कहता है: “बेईमानी करनेवाले का जब भाँडा फूटता है, तो सब उस पर थू-थू करते हैं। लेकिन अगर वही इंसान कानून से साफ बच जाए तो कोई कुछ नहीं कहता। उलटा लोग दाद देते हैं: ‘मानना पड़ेगा उसे, कमाल का दिमाग पाया है!’”

बहुत-से लोग तो यह तक दावा करते हैं कि सफलता की सीढ़ी चढ़ने के लिए बेईमानी करना ज़रूरी है। एक अनुभवी बिज़नेसमैन कहता है: “लोग एक-दूसरे से आगे निकलना चाहते हैं इसलिए कहते हैं, ‘काम पूरा करने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ, किसी भी हद तक जाने को तैयार हूँ।’” लेकिन क्या यह सोच सही है? या फिर जो बेईमानी को जायज़ ठहराते हैं, वे ‘झूठी दलीलों से खुद को धोखा दे रहे हैं’? (याकूब 1:22) आइए देखें कि ईमानदारी दिखाने के क्या फायदे होते हैं। (g12-E 01)

[पेज 5 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“लोगों के हिसाब से ईमानदारी का मतलब सच का साथ देना नहीं है, बल्कि इस तरह बेईमानी करना है कि पकड़े न जाओ”

[पेज 5 पर तसवीर]

बहुत-से लोग दावा करते हैं कि सफलता की सीढ़ी चढ़ने के लिए बेईमानी करना ज़रूरी है