कैसे दिखाएँ उन्हें प्यार जिन्हें है चिंता विकार
कैसे दिखाएँ उन्हें प्यार जिन्हें है चिंता विकार
“मेरा दिल ज़ोर से धड़कने लगता है, मुझे पसीना छूटने लगता है और मेरी साँस फूलने लगती है। मुझ पर डर और चिंता हावी हो जाती है और मैं कुछ भी सोच-समझ नहीं पाती।”—इज़ाबेला, उम्र करीब 40 साल, आतंक विकार की मरीज़।
चिंता का मतलब है किसी बात के बारे में सोच-सोचकर घबराना। क्या कभी ऐसा हुआ है कि एक कुत्ता आपके पीछे पड़ गया और आप पर भौंकने लगा? क्या उस वक्त आप डर नहीं गए? लेकिन जब वह चला गया, तब आपने कैसा महसूस किया? कुत्ते के साथ-साथ आपकी घबराहट और चिंता भी चली गयी होगी, है ना? लेकिन यही चिंता एक विकार या बीमारी बन सकती है।
जब कोई हद-से-ज़्यादा चिंता करने लगता है यानी तब भी चिंता करता रहता है जब ऐसा करने की वजह खत्म हो जाती है, तो चिंता एक बीमारी बन जाती है। अमरीका की नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ (एन.आई.एम.एच.) कहती है कि “अमरीका में हर साल, 18 और उससे ज़्यादा की उम्र के करीब चार करोड़ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें चिंता विकार है।” इज़ाबेला भी, जिसका ज़िक्र ऊपर किया गया है, इसी बीमारी की शिकार है। जब चिंता एक लंबे अरसे तक जाने का नाम ही नहीं लेती, जैसा कि इज़ाबेला के साथ होता है, तो एक इंसान की ज़िंदगी दूभर हो जाती है।
इसका असर सिर्फ मरीज़ पर ही नहीं, बल्कि उसके परिवार के लोगों और उसके करीबी दोस्तों पर भी हो सकता है। क्या इसका मतलब है कि इनके लिए उम्मीद की कोई किरण नहीं है? ऐसा नहीं है। एन.आई.एम.एच. की एक पुस्तिका कहती है: “चिंता विकारों के लिए असरदार इलाज मौजूद हैं और खोजबीन
करके नए इलाज के तरीकों का पता लगाया जा रहा है। इनकी मदद से चिंता विकार से पीड़ित ज़्यादातर लोग, आम लोगों की तरह अपनी ज़िंदगी बिता पाएँगे।”इसके अलावा, परिवारवाले और दोस्त भी इस बीमारी के शिकार लोगों की मदद कर सकते हैं। कैसे?
मदद कैसे दें
सहारा बनिए: मोनीका को सामान्यकृत चिंता विकार और सदमा-उपरांत तनाव विकार है। अकसर उसे किस परेशानी का सामना करना पड़ता है? वह कहती है, “ज़्यादातर लोग मुझे समझ ही नहीं पाते।”
जिन्हें चिंता विकार होता है, वे अकसर इसी परेशानी का सामना करते हैं या फिर उन्हें लगता है कि दूसरे उन्हें गलत समझेंगे और इसलिए वे किसी को अपनी परेशानी नहीं बताते। नतीजा यह होता है कि वे अपने आपको दोषी ठहराने लगते हैं और इससे उनकी जज़बाती हालत और भी खराब हो जाती है। इसलिए बेहद ज़रूरी है कि चिंता विकार से पीड़ित लोगों के परिवारवाले और दोस्त उन्हें सहारा दें।
ज़्यादा जानकारी लीजिए: विकार के बारे में खासकर उन लोगों को ज़्यादा जानकारी लेने की कोशिश करनी चाहिए जो चिंता विकार से पीड़ित लोगों के परिवारवाले या करीबी दोस्त हैं।
दिलासा देते रहिए: यीशु के शिष्य, पौलुस ने पहली सदी में यूनान के एक शहर थिस्सलुनीके में रहनेवाले अपने दोस्तों को लिखा: “एक-दूसरे को दिलासा देते रहो और एक-दूसरे की हिम्मत बंधाते रहो।” (1 थिस्सलुनीकियों 5:11) हम अपने शब्दों और बातचीत के लहज़े से दूसरों को दिलासा दे सकते हैं। उन्हें यह लगना चाहिए कि हम सच्चे दिल से उनकी परवाह करते हैं। हमें ऐसा कुछ भी नहीं कहना चाहिए जिससे उन्हें ठेस पहुँचे या ऐसा लगे कि हम उन्हें दोषी ठहरा रहे हैं।
बाइबल में अय्यूब नाम के एक इंसान के बारे में बताया गया है। उसके तीन दोस्त, जो बस नाम के दोस्त थे, उससे मिलने आए। उन्होंने उस पर इलज़ाम लगाया कि वह अपने पापों को छिपा रहा है और इसी वजह से उस पर परेशानियाँ आयी हैं।
उनकी बातों ने अय्यूब को और दुखी कर दिया। बाइबल में अय्यूब के इन दोस्तों को “निकम्मे शान्तिदाता” कहा गया है। (अय्यूब 16:2) उनकी तरह मत बनिए। चिंता विकार से ग्रस्त लोगों की भावनाओं को समझने की कोशिश कीजिए। उनकी बातें ध्यान से सुनिए। चीज़ों को उनके नज़रिए से देखिए, न कि अपने नज़रिए से। उन्हें गलत मत समझिए।
उन्हें खुलकर अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करने दीजिए। तभी आप समझ पाएँगे कि असल में उन पर क्या बीत रही है। इससे क्या फायदा होगा? आप चिंता विकार से पीड़ित लोगों को एक बेहतर ज़िंदगी जीने में मदद दे पाएँगे। (g12-E 03)
[पेज 25 पर बक्स/तसवीर]
अलग-अलग तरह के चिंता विकारों को पहचानिए
एक व्यक्ति को किस तरह का चिंता विकार है यह समझना बहुत ज़रूरी है, खासकर जब पीड़ित व्यक्ति हमारे परिवार का सदस्य हो या हमारा करीबी दोस्त हो। पाँच किस्म के विकारों पर गौर कीजिए।
आतंक विकार (पैनिक डिसॉर्डर) इस लेख की शुरूआत में इज़ाबेला का ज़िक्र किया गया था। उसकी परेशानी सिर्फ यह नहीं है कि वह अचानक किसी बात को लेकर हद-से-ज़्यादा चिंता करने लगती है। वह कहती है, “बीच-बीच में मुझे इस बात का डर सताने लगता है कि मैं फिर से चिंता के सागर में डूब जाऊँगी।” इसी डर की वजह से, ऐसे लोग उन जगहों पर नहीं जाते जहाँ पहले उन्हें आतंक का दौरा पड़ा था। कुछ तो ऐसे हैं जो इस डर की वजह से घर से बाहर तक नहीं निकलते। जिन हालात से उनके मन में भय पैदा होता है, उनका सामना शायद वे तभी करें जब उनके साथ कोई भरोसेमंद साथी हो। इज़ाबेला कहती है: “मुझे तो अकेले होने के एहसास से ही चिंता होने लगती है। मैं माँ के बिना अपने डर का सामना नहीं कर सकती। जब माँ साथ होती है, तब मुझे चैन मिलता है।”
मनोग्रस्ति-बाध्यकारी विकार (ओबसैसिव-कंपल्सिव डिसॉर्डर) जिस इंसान का मन इस सोच से ग्रस्त रहता है कि उसे कीटाणुओं और गंदगी से दूर रहना है, वह शायद बार-बार हाथ धोने को बाध्य महसूस करे। रेनन को भी इसी किस्म का विकार है। वह बताता है, “अपनी पिछली गलतियों को लेकर मेरे दिमाग में उथल-पुथल मची रहती है क्योंकि मैं उनके बारे में सोचता रहता हूँ और अलग-अलग नज़रिए से उन्हें देखता हूँ।” अपनी इसी परेशानी की वजह से रेनन दूसरों को अपनी पिछली गलतियों के बारे में बार-बार बताता रहता है। उसे लगातार यह यकीन दिलाना पड़ता है कि उसका कोई कसूर नहीं है। लेकिन दवाइयों से रेनन की हालत में काफी सुधार हुआ है। *
सदमा-उपरांत तनाव विकार (पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रैस डिसॉर्डर) हो सकता है कि किसी के साथ कोई बड़ा हादसा हुआ हो, जिसमें उसे शारीरिक तौर पर नुकसान पहुँचा हो, या नुकसान पहुँचने का खतरा रहा हो। ऐसी घटना की वजह से शायद उसे गहरा सदमा पहुँचे। सदमे का अलग-अलग लोगों पर अलग-अलग असर हो सकता है और इसे हाल के सालों में सदमा-उपरांत तनाव विकार कहा जाने लगा है। इस विकार की वजह से एक इंसान बड़ी आसानी से घबरा जाता है, चिढ़ जाता है या जज़बाती तौर पर सुन्न पड़ जाता है। जिन बातों में पहले उसकी दिलचस्पी थी, अब उसे वे नीरस लगने लगती हैं। ऐसे लोग दूसरों के लिए अपने अंदर प्यार की भावना नहीं पैदा कर पाते, उन लोगों के लिए भी नहीं जिनके वह पहले बहुत करीब हुआ करते थे। कुछ लोग कई बार इस कदर भड़क जाते हैं कि हिंसा पर उतर आते हैं। वे ऐसे हर हालात से दूर रहते हैं जो उन्हें उस हादसे की याद दिला सकता है।
सामाजिक चिंता विकार (सोशल एन्ग्ज़ाइटी डिसॉर्डर) कुछ लोग जब दूसरों के बीच होते हैं, जैसे किसी समारोह या सभा में, तो बहुत ज़्यादा तनाव या चिंता महसूस करते हैं। उन्हें लगता है जैसे सबकी नज़र सिर्फ उन्हीं पर है। इस तरह की चिंता को सामाजिक चिंता विकार कहते हैं। जिन लोगों को यह विकार होता है वे किसी समारोह में जाने की बात सोच-सोचकर दिनों या हफ्तों पहले से चिंता करने लगते हैं। उनका डर उन पर इस कदर हावी हो जाता है कि इसका असर उनकी नौकरी, उनकी पढ़ाई और रोज़मर्रा के दूसरे कामों पर पड़ने लगता है। इस वजह से उनके लिए दूसरों से दोस्ती करना और दोस्ती बनाए रखना बहुत मुश्किल होता है।
सामान्यकृत चिंता विकार (जेनरलाइज़्ड एन्ग्ज़ाइटी डिसॉर्डर) मोनीका, जिसका ज़िक्र पहले किया गया था, इसी तरह के विकार से पीड़ित है। पूरे दिन उस पर चिंता हावी रहती है, फिर चाहे इसकी कोई वजह ना भी हो। इस विकार से पीड़ित लोग चिंता करते रहते हैं कि उनके साथ कुछ बुरा हो जाएगा। वे सेहत, पैसे, घरेलू समस्याओं और नौकरी में होनेवाली परेशानियों को लेकर हद-से-ज्यादा चिंता करते हैं। हर रोज़ उन्हें यह सोच-सोचकर चिंता हो जाती है कि कहीं आज के दिन कुछ गड़बड़ न हो जाए। *
[फुटनोट]
^ सजग होइए! इलाज के किसी खास तरीके की सिफारिश नहीं करती।
^ ऊपर दी जानकारी अमरीका के स्वास्थ्य और मानवीय सेवा विभाग के नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के एक प्रकाशन पर आधारित है।
[पेज 24 पर तसवीर]
“एक-दूसरे को दिलासा देते रहो”