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क्या मरे हुए हमारी मदद कर सकते हैं?

क्या मरे हुए हमारी मदद कर सकते हैं?

बाइबल क्या कहती है?

क्या मरे हुए हमारी मदद कर सकते हैं?

लोगों में यह विश्‍वास काफी पुराना है कि मरे हुए हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं। यह बात हमें प्राचीन समय के एक यूनानी कवि होमर की लिखी कहानी से पता चलती है। कहानी कुछ इस तरह से है कि नायक ओडिसिअस, जो यूलिसीज़ के नाम से भी जाना जाता है, अपने घर इथाका द्वीप वापस जाने के लिए बहुत बेकरार है। इसलिए वह पाताल लोक में जाकर एक मरे हुए भविष्यवक्‍ता से इस बारे में पूछता है।

लोगों को लगता है कि उनके मुश्‍किल सवालों के जवाब मरे हुओं के पास हैं। इसलिए कई लोग जवाब पाने की उम्मीद में ओझाओं या तांत्रिकों के पास जाते हैं, पुरखों की कब्र में सोते हैं या भूत-विद्या का सहारा लेते हैं। लेकिन क्या मरे हुए वाकई हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं?

दुनिया-भर में मशहूर

कई बड़े-बड़े धर्मों में सिखाया जाता है कि जिन लोगों का देहांत हो चुका है, उनसे बात करना मुमकिन है। इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रिलिजन किताब बताती है: “जादू-टोने के ज़रिए मरे हुओं की आत्मा को बुलाना, शकुन-विचार का एक खास तरीका है।” यह किताब आगे बताती है कि दुनिया-भर में लोग यह तरीका अपनाते हैं। न्यू कैथोलिक इनसाइक्लोपीडिया इस बात को पुख्ता करते हुए कहती है, “मरे हुओं से बात करने की कोशिश करना पूरी दुनिया में बहुत आम हो गया है।” इसलिए ताज्जुब नहीं कि अपने धर्म में सच्ची आस्था रखनेवाले कई लोग भी मरे हुओं से मार्गदर्शन पाने की कोशिश करते हैं।

न्यू कैथोलिक इनसाइक्लोपीडिया कहती है, हालाँकि “चर्च ने मरे हुओं से बात करने का हमेशा से खंडन किया है, फिर भी इतिहास में कई बार यह ज़िक्र मिलता है कि मध्य युग और पुनर्जागरण युग (करीब 14वीं से 16वीं सदी का दौर, जब यूरोप के लोगों में कला, साहित्य और संगीत में दिलचस्पी बढ़ने लगी) के दौरान लोग ऐसा करते थे।” बाइबल इस बारे में क्या कहती है?

क्या मरे हुओं से बात की जानी चाहिए?

प्राचीन समय में परमेश्‍वर यहोवा ने अपने लोगों को आज्ञा दी थी, “तेरे मध्य कोई भी ऐसा न पाया जाए . . . जो मृतकों को बुलाता हो।” (व्यवस्थाविवरण 18:9-13, अ न्यू हिन्दी ट्रांस्लेशन) परमेश्‍वर ने ऐसी पाबंदी क्यों लगायी? ज़रा सोचिए, अगर मरे हुओं से बात करना मुमकिन होता तो क्या वह हमें अपने अज़ीज़ों से, जो मर गए हैं, बात करने से रोकता? कभी नहीं। लेकिन सच तो यह है कि मरे हुओं से बात करना नामुमकिन है। यह हमें कैसे पता?

शास्त्र में कई बार बताया गया है कि मरे हुए कुछ भी नहीं जानते। सभोपदेशक 9:5 पर ध्यान दीजिए, जहाँ लिखा है: “जीवते तो इतना जानते हैं कि वे मरेंगे, परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते।” भजन 146:3, 4 कहता है: “तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर, क्योंकि उस में उद्धार करने की भी शक्‍ति नहीं। उसका भी प्राण निकलेगा, वह भी मिट्टी में मिल जाएगा; उसी दिन उसकी सब कल्पनाएं नाश हो जाएंगी।” उसी तरह भविष्यवक्‍ता यशायाह ने कहा कि ‘मरने के बाद एक इंसान में कुछ भी करने की ताकत नहीं होती।’—यशायाह 26:14, एन.डब्ल्यू.

लेकिन कई लोग दावा करते हैं कि भूत-विद्या के ज़रिए वे अपने मरे हुए अज़ीज़ों से संपर्क कर पाए हैं। हमें कई बार ऐसे अनुभव सुनने को मिलते हैं, जिनसे ज़ाहिर होता है कि लोगों ने किसी आत्मिक प्राणी से बात की है। लेकिन जैसा कि ऊपर दिए बाइबल वचनों से साबित होता है, ये आत्मिक प्राणी मरे हुओं की आत्मा नहीं हैं। तो फिर वे कौन हैं?

असल में वे कौन हैं?

परमेश्‍वर ने शुरूआत में करोड़ों आत्मिक प्राणियों यानी स्वर्गदूतों को बनाया था। बाइबल बताती है कि इनमें से कुछ ने परमेश्‍वर के खिलाफ बगावत की और दुष्ट स्वर्गदूत बन गए। (उत्पत्ति 6:1-5; यहूदा 6, 7) इन दुष्ट स्वर्गदूतों ने ही यह झूठ फैलाया है कि इंसान मरने के बाद भी ज़िंदा रहता है। और अपने इस झूठ को सच साबित करने के लिए वे मरे हुओं की आवाज़ में लोगों से बात करते हैं।

इसका एक उदाहरण हमें इसराएल के राजा शाऊल की ज़िंदगी से मिलता है। बाइबल बताती है कि जब उसने यहोवा की आज्ञा माननी छोड़ दी, तो यहोवा ने उसे ठुकरा दिया। एक बार जब उसके सामने एक बड़ी समस्या खड़ी हुई, तो उसने एक भूतसिद्धि करनेवाली के ज़रिए मरे हुए भविष्यवक्‍ता शमूएल से संपर्क करने की कोशिश की। शाऊल को अपने सवाल का जवाब मिला, पर शमूएल से नहीं। यह हम कैसे कह सकते हैं? क्योंकि शमूएल जब ज़िंदा था तो उसने राजा शाऊल से मिलने से इनकार कर दिया था और वह भूतसिद्धि करनेवालों का कड़ा विरोध भी करता था। असल में एक दुष्ट स्वर्गदूत ने शमूएल का रूप धरकर शाऊल से बात की थी।—1 शमूएल 28:3-20.

दुष्ट स्वर्गदूत परमेश्‍वर के दुश्‍मन हैं और उनसे किसी भी तरह का संपर्क रखना खतरनाक है। इसलिए बाइबल में आज्ञा दी गयी है: “ओझाओं और भूत साधने वालों की ओर न फिरना, और ऐसों की खोज करके उनके कारण अशुद्ध न हो जाना।” (लैव्यव्यवस्था 19:31) व्यवस्थाविवरण 18:11, 12 (अ न्यू हिन्दी ट्रांस्लेशन) खबरदार करता है: “जो [कोई] मृतकों को बुलाता हो, . . . वह यहोवा के सामने घृणित है।” इसलिए राजा शाऊल का “भूतसिद्धि करनेवाली से पूछकर सम्मति” लेना, यहोवा की नज़रों में विश्‍वासघात था और यह एक वजह थी कि यहोवा ने उसे मौत की सज़ा दी।—1 इतिहास 10:13, 14.

तो फिर मार्गदर्शन, मुश्‍किल सवालों के जवाब जानने या सही चुनाव करने में मदद पाने के लिए हमें किसके पास जाना चाहिए? बाइबल यहोवा परमेश्‍वर को “महान उपदेशक” (एन.डब्ल्यू.) कहती है। अगर आप और आपके अज़ीज़ परमेश्‍वर का वचन बाइबल पढ़ें और उसकी सलाह को अपने जीवन में लागू करें, तो यह ऐसा होगा मानो ‘आपके पीछे से यह वचन आपके कानों में पड़ रहा है, मार्ग यही है, इसी पर चलो।’ (यशायाह 30:20, 21) मसीही यह नहीं उम्मीद करते कि उन्हें सचमुच में परमेश्‍वर की आवाज़ सुनायी देगी, मगर वे मानते हैं कि परमेश्‍वर उन्हें बाइबल के ज़रिए मार्गदर्शन देता है। जी हाँ, यहोवा खुद एक तरह से कह रहा है, ‘आओ, मैं तुम्हें रास्ता दिखाऊँगा।’ (g12-E 06)

क्या आपने कभी सोचा है?

● मरे हुओं से संपर्क करने के बारे में परमेश्‍वर का क्या नज़रिया है?व्यवस्थाविवरण 18:9-13.

● क्या मरे हुए लोग हमारी मदद कर सकते हैं? अपने जवाब की वजह बताइए।सभोपदेशक 9:5.

● मार्गदर्शन के लिए हम पूरे भरोसे के साथ किसके पास जा सकते हैं?यशायाह 30:20, 21.