मसूड़ों की बीमारी—कहीं आपको तो नहीं?
दु निया-भर में, मुँह में होनेवाली यह एक आम बीमारी है। शुरू-शुरू में शायद इस बीमारी के लक्षण पता न चलें। मगर ध्यान रखिए मसूड़ों की बीमारी की खासियत है कि यह दबे पाँव वार करती है। इंटरनेशनल डैन्टल पत्रिका मुँह की बीमारियों की सूची में मसूड़ों की बीमारी का भी ज़िक्र करती है और कहती है ‘इसका हमारी सेहत पर बुरा असर हो सकता है।’ साथ ही, मुँह में होनेवाली बीमारी से ‘न सिर्फ एक इंसान को, बल्कि समाज को काफी दर्द और तकलीफ से गुज़रना पड़ता है और लोग खाने का और ज़िंदगी का पूरा मज़ा नहीं ले पाते।’ दुनिया-भर में फैली इस समस्या पर चर्चा करने से मसूड़ों की बीमारी से बचने में आपको मदद मिल सकती है।
क्या है मसूड़ों की बीमारी?
इस बीमारी के कई चरण होते हैं। शुरूआती चरण को जिंजिवाइटिस कहते हैं। इस दौरान मसूड़ों में सूजन आ जाती है और उनसे खून बहने लगता है। खून ब्रश या फ्लॉस करते समय या फिर यूँ ही निकल सकता है। डॉक्टर से मसूड़ों की जाँच कराते वक्त अगर खून बहता है तो यह भी जिंजिवाइटिस का लक्षण हो सकता है।
इस बीमारी का अगला चरण है परिदंतिका (पेरिओडोन्टाइटिस)। इसमें दाँतों को मज़बूती देनेवाली चीज़ें जैसे, मसूड़ों के ऊतक (टिशु) और हड्डियाँ खराब होने लगते हैं। शुरू-शुरू में इसका पता नहीं चलता। जब यह पूरी तरह फैल जाती है, तभी मालूम होती है। इसकी कुछ निशानियाँ हैं, मसूड़ों में जगह (गम-पॉकेट) बनना, दाँतों का हिलना, दाँतों के बीच जगह बनना, मुँह से बदबू आना, मसूड़ों का दाँतों से अलग होना जिससे दाँतों का लंबा दिखायी देना और मसूड़ों से खून बहना वगैरह।
मसूड़ों की बीमारी—कारण और इसका असर
मसूड़ों की बीमारी कई कारणों से हो सकती है। दाँतों पर मैल (प्लाक) इसका सबसे बड़ा कारण होता है। यह असल में बैक्टीरिया (जीवाणुओं) की पतली परत होती है, जो दाँतों पर लगातार जमती रहती है। अगर इसे साफ न किया जाए, तो जीवाणु मसूड़ों में सूजन पैदा कर सकते हैं। आगे चलकर इससे मसूड़े दाँतों से अलग होने लगते हैं। नतीजा, मसूड़ों के नीचे प्लाक बढ़ने लगता है और उसमें जीवाणु अपना अड्डा बनाने लगते हैं। एक बार जब
जीवाणु यहाँ बस जाते हैं, तो धीरे-धीरे मसूड़ों की सूजन हड्डी और मसूड़ों के ऊतक (टिशु) को गलाने लगती है। प्लाक चाहे मसूड़ों से ऊपर हो या नीचे, जब यह सख्त हो जाता है, तो यह पत्थर जैसा बन जाता है, जिसे कैलकुलस (या आम तौर पर टारटर) कहते हैं। कैलकुलस को भी जीवाणु पूरी तरह ढक लेते हैं। सख्त होने और दाँतों से मज़बूती से चिपके होने की वजह से इसे प्लाक की तरह आसानी से नहीं हटाया जा सकता। इसलिए जीवाणु मसूड़ों को और ज़्यादा सड़ाते रहते हैं।मसूड़ों की बीमारी के दूसरे कारण भी हो सकते हैं। जैसे, मुँह, दाँत और मसूड़ों की अच्छी तरह सफाई न करना, लगातार दवाइयाँ लेते रहना जिससे शरीर में बीमारियों से लड़ने की ताकत कम हो जाती है, वायरल इन्फेक्शन, तनाव, डायबिटीज़ या शुगर का ज़्यादा बढ़ना, ज़्यादा शराब पीना, तंबाकू का सेवन करना और गर्भावस्था के दौरान हार्मोन में गड़बड़ी होना।
मसूड़ों की बीमारी का आप पर और भी बुरा असर हो सकता है। इससे मुँह में दर्द हो सकता है या दाँत टूट सकते हैं जिससे न तो आप खाना ठीक से चबा पाएँगे, न ही उसका मज़ा ले पाएँगे। आपकी बातचीत और शक्ल-सूरत पर भी असर पड़ सकता है। खोजबीन यह भी दिखाती है कि अगर दाँत और मसूड़े तंदुरुस्त न हों, तो पूरा शरीर तंदुरुस्त नहीं रहेगा।
कैसे छुड़ाएँ पीछा?
कैसे पता लगेगा कि आपको मसूड़ों की बीमारी है? क्या आपको इस लेख में बताए कुछ लक्षण नज़र आते हैं? अगर हाँ, तो बेहतर होगा कि आप दाँतों के अच्छे डॉक्टर के पास जाएँ और अपने मसूड़ों की जाँच कराएँ।
क्या इस बीमारी का इलाज है? जब यह शुरूआती चरण में होती है, तब इसे पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। लेकिन अगर यह बढ़कर परिदंतिका (पेरिओडोन्टाइटिस) के चरण में पहुँच गयी है, तो इसे बढ़ने से रोका जाता है, ताकि दाँतों की हड्डी और आस-पास के ऊतक (टिशु) नष्ट न हों। डॉक्टर कुछ खास औज़ारों से मसूड़ों से ऊपर और नीचे जमा प्लाक और कैलकुलस साफ कर सकते हैं।
अगर आपके इलाके में दाँतों के अच्छे डॉक्टर आसानी से नहीं मिलते, या बिलकुल नहीं हैं, तो दबे पाँव आनेवाली इस घातक बीमारी से बचने का तरीका है इसे फैलने से रोकना। दाँतों और मसूड़ों की सही तरह से और नियमित तौर पर खुद साफ-सफाई करना, इसे रोकने का सबसे बढ़िया तरीका है। ▪ (g14-E 06)