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संसार के सम्बन्ध में बुद्धिमानी से चलना

संसार के सम्बन्ध में बुद्धिमानी से चलना

संसार के सम्बन्ध में बुद्धिमानी से चलना

“बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी से बर्ताव करो।”—कुलुस्सियों ४:५.

१. प्रारंभिक मसीहियों को किन चीज़ों का सामना करना पड़ा, और पौलुस ने कुलुस्से की कलीसिया को क्या सलाह दी?

 रोमी संसार के नगरों में रहनेवाले प्रारंभिक मसीहियों को मूर्तिपूजा, अनैतिक सुख-विलास, और विधर्मी विधियों और प्रथाओं का निरंतर सामना करना पड़ता था। जो पश्‍चिमी-केंद्रीय एशिया माइनर के एक नगर, कुलुस्से में रहते थे, उन्हें निःसन्देह देशीय फ्रूगियाई लोगों की माता-देवी पूजा तथा प्रेतात्मवाद, यूनानी अधिवासियों के विधर्मी तत्त्वज्ञान, और यहूदी उपनिवेश के यहूदी मत, का सामना करना पड़ा। प्रेरित पौलुस ने मसीही कलीसिया को ऐसे “बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी से बर्ताव” करने की सलाह दी।—कुलुस्सियों ४:५.

२. आज यहोवा के गवाहों को बाहरवालों के साथ क्यों बुद्धिमानी से बर्ताव करने की ज़रूरत है?

आज, यहोवा के गवाह समान बुरे अभ्यासों का, और उससे भी अधिक चीज़ों का सामना करते हैं। इसलिए, सच्ची मसीही कलीसिया के बाहर के लोगों के साथ अपने सम्बन्ध में उन्हें भी बुद्धिमानी दिखाने की ज़रूरत है। धार्मिक और राजनीतिक संस्थापनों में, और संचार-माध्यम में भी बहुत से लोग उनके विरुद्ध हैं। इनमें से कुछ विरोधी, स्पष्ट रीति से आक्रमण के द्वारा, या अक़सर, परोक्ष संकेत द्वारा यहोवा के गवाहों के नाम पर धब्बा लगाने और उनके विरुद्ध प्रतिकूल प्रभाव उकसाने की कोशिश करते हैं। जिस तरह प्रारंभिक मसीहियों को अन्यायपूर्ण रीति से हठधर्मी और यहाँ तक कि ख़तरनाक “कुपन्थ” भी समझा जाता था, उसी तरह आज यहोवा के गवाह अक़सर पूर्वधारणा और ग़लतफ़हमी का विषय बनते हैं।—प्रेरितों २४:१४; १ पतरस ४:४.

पूर्वधारणा को पराजित करना

३, ४. (क) क्यों संसार कभी भी सच्चे मसीहियों से प्रेम नहीं करेगा, लेकिन हमें क्या करने की कोशिश करनी चाहिए? (ख) एक लेखिका ने नात्सी नज़रबन्दी-शिविर में क़ैद यहोवा के गवाहों के विषय में क्या लिखा?

सच्चे मसीही अपेक्षा नहीं करते कि संसार उनसे प्रेम करेगा, जो प्रेरित यूहन्‍ना के अनुसार, “उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (१ यूहन्‍ना ५:१९) फिर भी, बाइबल मसीहियों को प्रोत्साहित करती है कि वे यहोवा और उसकी शुद्ध उपासना के पक्ष में व्यक्‍तियों को जीतने का यत्न करें। यह हम प्रत्यक्ष गवाही कार्य और अपने अच्छे आचरण से भी करते हैं। प्रेरित पतरस ने लिखा: “अन्यजातियों में तुम्हारा चालचलन भला हो; इसलिये कि जिन जिन बातों में वे तुम्हें कुकर्मी जानकर बदनाम करते हैं, वे तुम्हारे भले कामों को देखकर; उन्हीं के कारण कृपा दृष्टि के दिन परमेश्‍वर की महिमा करें।”—१ पतरस २:१२.

अपनी पुस्तक फ़ॉर्गिव—बट डू नॉट फ़ॉर्गेट (Forgive—But Do Not Forget) में, लेखिका सिलविया सालवेसन ने उन महिला गवाहों के विषय में कहा, जो एक नात्सी नज़रबन्दी-शिविर में उसकी संगी निवासी थीं: “उन दोनों, कैटे और मारगारेथे ने, और अनेक अन्य गवाहों ने मेरी बहुत मदद की, न केवल अपने विश्‍वास द्वारा बल्कि व्यावहारिक मामलों में भी। उन्होंने हमारे घावों के लिए पहले साफ़ लत्ते प्राप्त किए . . . संक्षेप में, हम ने अपने आपको ऐसे लोगों के बीच पाया जो हमारी भलाई चाहते थे, और जिन्होंने अपनी स्नेही अनुभूति को अपने कामों द्वारा दिखाया।” “बाहरवालों” से क्या ही बढ़िया साक्ष्य!

५, ६. (क) वर्तमान समय में मसीह कौन सा कार्य पूरा कर रहा है, और हमें क्या नहीं भूलना चाहिए? (ख) संसार के लोगों के प्रति हमारी कैसी मनोवृत्ति होनी चाहिए, और क्यों?

जिस बुद्धिमान रीति से हम बाहरवालों के प्रति आचरण करते हैं, उससे हम काफ़ी हद तक पूर्वधारणा को तोड़ सकते हैं। यह सच है कि हम ऐसे समय में जी रहे हैं जब हमारा सत्तारूढ़ राजा, मसीह यीशु, राष्ट्रों के लोगों को अलग कर रहा है, “जैसा चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग कर देता है।” (मत्ती २५:३२) लेकिन कभी न भूलिए कि न्यायाधीश मसीह है; वही है जो निश्‍चित करता है कि कौन “भेड़” हैं और कौन “बकरी।”—यूहन्‍ना ५:२२.

इस बात से उन लोगों के प्रति हमारी मनोवृत्ति पर प्रभाव पड़ना चाहिए, जो यहोवा के संगठन के भाग नहीं हैं। हम शायद सोचें कि वे सांसारिक लोग हैं, लेकिन वे मानवजाति के उस जगत का भाग हैं जिससे “परमेश्‍वर ने . . . ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्‍वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” (यूहन्‍ना ३:१६) अक्खड़ रीति से यह निर्णय करने के बजाय कि वे लोग बकरी हैं, ज़्यादा बेहतर तो यह है कि हम उन्हें प्रत्याशित भेड़ समझें। कुछ लोग जो पहले ज़बरदस्त रीति से सच्चाई के विरुद्ध थे, अब समर्पित गवाह हैं। और इससे पहले कि किसी प्रत्यक्ष गवाही कार्य के प्रति उन्होंने अनुक्रिया दिखाई, इनमें से अनेक जनों को सबसे पहले दयालुता के कार्यों द्वारा जीता गया था। उदाहरण के लिए, पृष्ठ १५ पर दिए चित्र को देखिए।

उत्साही हैं, आक्रमणशील नहीं

७. पोप ने क्या आलोचना व्यक्‍त की, लेकिन हम क्या प्रश्‍न पूछ सकते हैं?

पोप जॉन पॉल II ने संप्रदायों की आम तौर पर आलोचना की, और ख़ासकर यहोवा के गवाहों की, जब उसने कहा: “प्रायः जिस आक्रमणशील उत्साह के साथ कुछ लोग घर-घर जाकर, या सड़कों के नुक्कड़ पर राहगीरों को रोककर नए समर्थकों की खोज करते हैं, वह धर्मप्रचार और मिशनरी जोश का साम्प्रदायिक स्वाँग है।” यह पूछा जा सकता है, यदि हमारा उत्साह “धर्मप्रचार और मिशनरी जोश का स्वाँग है,” तो असली सुसमाचार प्रचार का उत्साह कहाँ पाया जा सकता है? निश्‍चय ही कैथोलिक लोगों में नहीं और, देखा जाए तो, प्रोटेस्टेंट या ऑर्थोडॉक्स गिरजाओं के सदस्यों में भी नहीं।

८. हमें अपना घर-घर का गवाही कार्य कैसे करना चाहिए, और किस परिणाम की आशा के साथ?

फिर भी, अपने गवाही कार्य में आक्रमकता के किसी भी आरोप को झूठा साबित करने के लिए, हमें लोगों से बात करते समय हमेशा कृपालु, आदरपूर्ण, और शिष्ट होना चाहिए। शिष्य याकूब ने लिखा: “तुम में ज्ञानवान और समझदार कौन है? जो ऐसा हो वह अपने कामों को अच्छे चालचलन से उस नम्रता सहित प्रगट करे जो ज्ञान से उत्पन्‍न होती है।” (याकूब ३:१३) प्रेरित पौलुस हमें ‘झगड़ालू न होने’ का प्रोत्साहन देता है। (तीतुस ३:२) उदाहरण के लिए, जिस व्यक्‍ति को हम गवाही दे रहे हैं, उसके विश्‍वासों की सीधा निन्दा करने के बजाय, क्यों न उसके विचारों में सच्ची दिलचस्पी दिखाएँ? फिर उस व्यक्‍ति को सुसमाचार सुनाइए जैसा बाइबल में पाया जाता है। एक सकारात्मक तरीक़ा अपनाने से और भिन्‍न धर्म-विश्‍वास रखनेवाले लोगों के लिए उचित आदर दिखाने से हम उन्हें सुनने के प्रति एक बेहतर मनोवृत्ति रखने में मदद करेंगे, और हो सकता है कि वे बाइबल संदेश के महत्त्व को समझ लें। परिणामस्वरूप कुछ लोग शायद “परमेश्‍वर की महिमा” करने लगें।—१ पतरस २:१२.

९. हम कैसे पौलुस द्वारा (क) कुलुस्सियों ४:५ में (ख) कुलुस्सियों ४:६ में दी गई सलाह को लागू कर सकते हैं?

प्रेरित पौलुस ने सलाह दी: “अवसर को बहुमूल्य समझकर बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी से बर्ताव करो।” (कुलुस्सियों ४:५) इस आख़री अभिव्यक्‍ति को स्पष्ट करते हुए, जे. बी. लाइटफ़ुट ने लिखा: “जो परमेश्‍वर के उद्देश्‍य को आगे बढ़ाए, उसे कहने और करने के किसी भी अवसर को हाथ से न निकलने देना।” (तिरछे टाइप हमारे.) जी हाँ, हमें उपयुक्‍त अवसर पर शब्दों और कार्यों के साथ तैयार रहना चाहिए। ऐसी बुद्धि में यह भी सम्मिलित है कि हम भेंट करने के लिए दिन का उपयुक्‍त समय चुनें। यदि हमारा संदेश अस्वीकार हुआ, तो क्या यह इसलिए हुआ कि लोग मूल्यांकन नहीं करते, या इसलिए कि हम ऐसे समय पर गए जो शायद अनुचित है? पौलुस ने यह भी लिखा: “तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सलोना हो, कि तुम्हें हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए।” (कुलुस्सियों ४:६) इसके लिए पूर्वविचार और पड़ोसी के लिए सच्चे प्रेम की ज़रूरत है। आइए हम राज्य संदेश को हमेशा अनुग्रह सहित पेश करें।

आदरपूर्ण और “हर एक अच्छे काम के लिये तैयार”

१०. (क) क्रेते में रहनेवाले मसीहियों को प्रेरित पौलुस ने क्या सलाह दी? (ख) पौलुस की सलाह का अनुसरण करने में यहोवा के गवाह कैसे अनुकरणीय रहे हैं?

१० हम बाइबल सिद्धांतों पर समझौता नहीं कर सकते हैं। दूसरी तरफ़, हमें व्यर्थ में ऐसे प्रश्‍नों पर बहस नहीं करना चाहिए जो मसीही ख़राई को सम्मिलित नहीं करते हैं। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “लोगों को [क्रेते में रहनेवाले मसीहियों को] सुधि दिला, कि हाकिमों और अधिकारियों के आधीन रहें, और उन की आज्ञा मानें, और हर एक अच्छे काम के लिये तैयार रह। किसी को बदनाम न करें; झगड़ालू न हों; पर कोमल स्वभाव के हों, और सब मनुष्यों के साथ बड़ी नम्रता के साथ रहें।” (तीतुस ३:१, २) बाइबल विद्वान ई. ऐफ. स्कॉट ने इस परिच्छेद के विषय में लिखा: “ईसाइयों को न केवल अधिकारियों की आज्ञा का पालन करना था, बल्कि उन्हें हर अच्छे काम के लिए तैयार रहना था। इसका . . . यह अर्थ हुआ कि, जब अवसर माँग करे, तो ईसाइयों को सार्वजनिक भावना दिखाने में सबसे पहले आगे आनेवालों में शामिल होना चाहिए। निरंतर ऐसी आग लगेंगी, महामारी, विभिन्‍न प्रकार की विपत्तियाँ फैलेंगी, जब सब अच्छे नागरिक अपने पड़ोसी की मदद करने को इच्छुक होंगे।” संसारभर में ऐसी बहुत-सी घटनाएँ हुई हैं जब महाविपत्तियाँ आईं और यहोवा के गवाह राहत कार्य करने के लिए सबसे पहले आए। उन्होंने केवल अपने भाइयों की ही नहीं बल्कि बाहरवालों की भी मदद की है।

११, १२. (क) मसीहियों को अधिकारियों के प्रति कैसा व्यवहार करना चाहिए? (ख) जब राज्यगृहों के निर्माण की बात आती है, तब अधिकारियों के प्रति अधीनता में क्या सम्मिलित होता है?

११ पौलुस का तीतुस को लिखे पत्र के इस परिच्छेद ने अधिकारियों के प्रति एक आदरपूर्ण मनोवृत्ति अपनाने के महत्त्व को भी रेखांकित किया। जो मसीही युवक तटस्थता पर अपनाई स्थिति के कारण न्यायाधीशों के सामने पेश होते हैं, उन्हें ख़ासकर ध्यान रखना चाहिए कि वे बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी के साथ बर्ताव करें। वे अपने दिखाव-बनाव, अपने आचरण, और जिस प्रकार वे ऐसे अधिकारियों से बात करते हैं, उससे वे यहोवा के लोगों के नाम को सुधारने या बिगाड़ने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। उन्हें चाहिए कि “जिस का आदर करना चाहिए उसका आदर” करें, और गहरे आदर के साथ अपनी सफ़ाई पेश करें।—रोमियों १३:१-७; १ पतरस २:१७; ३:१५.

१२ “अधिकारियों” में स्थानीय सरकारी अफ़सर सम्मिलित हैं। अब जब कि अधिकाधिक राज्यगृहों का निर्माण हो रहा है, स्थानीय अधिकारियों से सम्पर्क करना अनिवार्य है। अक़सर, प्राचीनों को पूर्वधारणा का सामना करना पड़ता है। लेकिन यह देखा गया है कि जहाँ कलीसिया के प्रतिनिधि अधिकारियों के साथ अच्छा सम्बन्ध बनाते हैं और नगर योजना आयोग को सहयोग देते हैं, वहाँ इस पूर्वधारणा को तोड़ा जा सकता है। अक़सर ऐसे लोगों को बढ़िया गवाही दी जाती है जिन्हें पहले यहोवा के गवाहों के बारे में और उनके संदेश के बारे में थोड़ा ज्ञान था या कुछ भी ज्ञान नहीं था।

‘जहां तक हो सके, सब के साथ मेल मिलाप रखो’

१३, १४. पौलुस ने रोम के मसीहियों को क्या सलाह दी, और हम इसे बाहरवालों के साथ अपने सम्बन्ध में कैसे लागू कर सकते हैं?

१३ पौलुस ने विधर्मी रोम में रहनेवाले मसीहियों को निम्नलिखित सलाह दी: “बुराई के बदले किसी से बुराई न करो; जो बातें सब लोगों के निकट भली हैं, उन की चिन्ता किया करो। जहां तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो। हे प्रियो अपना पलटा न लेना; परन्तु क्रोध को अवसर दो, क्योंकि लिखा है, पलटा लेना मेरा काम है, प्रभु कहता है मैं ही बदला दूंगा। परन्तु यदि तेरा बैरी भूखा हो, तो उसे खाना खिला; यदि प्यासा हो, तो उसे पानी पिला; क्योंकि ऐसा करने से तू उसके सिर पर आग के अंगारों का ढेर लगाएगा। बुराई से न हारो परन्तु भलाई से बुराई को जीत लो।”—रोमियों १२:१७-२१.

१४ बाहरवालों के साथ अपने सम्बन्ध में, सच्चे मसीहियों के तौर पर हमारा अनिवार्य रीति से विरोधियों के साथ सामना होता है। उपरोक्‍त परिच्छेद में, पौलुस ने दिखाया कि विरोध को दयालुता के कार्यों द्वारा पराजित करने की कोशिश करना ही बुद्धिमानी का मार्ग है। अंगारों के समान, ये दयालुता के कार्य शत्रुता को पिघला सकते हैं और विरोधी को यहोवा के लोगों के प्रति ज़्यादा कृपालु मनोवृत्ति दिखाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं, शायद सुसमाचार में उसकी दिलचस्पी भी जगा सकते हैं। जब ऐसा होता है, तब बुराई को भलाई से जीत लिया जाता है।

१५. मसीहियों को बाहरवालों के साथ बर्ताव करने में ख़ासकर कब सावधान रहना चाहिए?

१५ बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी से बर्ताव करना ख़ासकर ऐसे घरों में महत्त्वपूर्ण है जहाँ एक विवाह साथी ने अभी तक सच्चाई को स्वीकार नहीं किया है। बाइबल सिद्धांतों पर अमल करना, बेहतर पति, बेहतर पत्नी, बेहतर पिता, बेहतर माता, और ऐसे बच्चे उत्पन्‍न करता है जो ज़्यादा आज्ञाकारी होते हैं और स्कूल में लिखाई-पढ़ाई में ज़्यादा परिश्रम करते हैं। एक अविश्‍वासी को नज़र आना चाहिए कि बाइबल सिद्धांत एक विश्‍वासी पर कितना हितकर प्रभाव डालते हैं। इस प्रकार, “बिना वचन के” कुछ लोग शायद परिवार के समर्पित सदस्यों “के चालचलन के द्वारा खिंच जाएं।”—१ पतरस ३:१, २.

‘सब के साथ भलाई करना’

१६, १७. (क) परमेश्‍वर किन बलिदानों से प्रसन्‍न होता है? (ख) हमें कैसे अपने भाइयों के प्रति और बाहरवालों के प्रति भी भलाई करनी चाहिए?

१६ अपने पड़ोसी को जीवन का संदेश देना और उसे यीशु मसीह के द्वारा यहोवा से मेल करने के बारे में सिखाना, एक सबसे अच्छा कार्य है जो हम उसके लिए कर सकते हैं। (रोमियों ५:८-११) इसलिए प्रेरित पौलुस हमें कहता है: “हम उसके [मसीह] द्वारा स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात्‌ उन होठों का फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्‍वर के लिये सर्वदा चढ़ाया करें।” (इब्रानियों १३:१५) पौलुस आगे कहता है: “पर भलाई करना, और उदारता न भूलो; क्योंकि परमेश्‍वर ऐसे बलिदानों से प्रसन्‍न होता है।” (इब्रानियों १३:१६) हमारे सार्वजनिक गवाही कार्य के साथ-साथ, हमें “भलाई करना” भी नहीं भूलना चाहिए। यह उन बलिदानों का एक अनिवार्य भाग है जिनसे परमेश्‍वर प्रसन्‍न होता है।

१७ अवश्‍य, हम अपने आध्यात्मिक भाइयों के साथ भलाई करते हैं, जो शायद भावात्मक, आध्यात्मिक, शारीरिक, या भौतिक रीति से ज़रूरतमंद हैं। पौलुस ने इस बात का संकेत दिया जब उसने लिखा: “जहां तक अवसर मिले हम सब के साथ भलाई करें; विशेष करके विश्‍वासी भाइयों के साथ।” (गलतियों ६:१०; याकूब २:१५, १६) लेकिन, हमें इन शब्दों को नहीं भूलना चाहिए, “हम सब के साथ भलाई करें।” एक रिश्‍तेदार, एक पड़ोसी, या एक सहकर्मी के प्रति दयालुता का एक कार्य हमारे विरुद्ध पूर्वधारणा को तोड़ने और सच्चाई के प्रति उस व्यक्‍ति के हृदय को खोलने में बहुत मदद कर सकता है।

१८. (क) हमें किन ख़तरों से बचना चाहिए? (ख) हम कैसे अपनी मसीही भलाई को सार्वजनिक गवाही कार्य के लिए सहायक के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं?

१८ ऐसा करने के लिए, हमें बाहरवालों को घनिष्ठ मित्र बनाने की ज़रूरत नहीं है। ऐसी संगति प्रभावी रीति से ख़तरनाक होती हैं। (१ कुरिन्थियों १५:३३) और संसार के साथ मित्रता करना अर्थहीन है। (याकूब ४:४) लेकिन हमारी मसीही भलाई हमें प्रचार कार्य में मदद कर सकती है। कुछ देशों में लोगों के घरों में उनके साथ बात करना अधिक कठिन होता जा रहा है। कुछ इमारतें ऐसे यंत्रों से सुरक्षित हैं जो हमें वहाँ रहनेवाले लोगों से मिलने से रोकते हैं। विकसित देशों में प्रचार करने का एक साधन टेलिफोन है। अधिकतर देशों में सड़क गवाही कार्य किया जा सकता है। फिर भी, सभी देशों में, रुचिर, शिष्ट, कृपालु, और सहायक होना पूर्वधारणा को तोड़ने और एक अच्छी गवाही देने के अवसर खोल देते हैं।

विरोधियों का मुँह बंद करना

१९. (क) क्योंकि हम मनुष्यों को प्रसन्‍न करने की कोशिश नहीं करते, हम किस बात की अपेक्षा कर सकते हैं? (ख) हमें किस तरह दानिय्येल के उदाहरण का अनुकरण करने और पतरस की सलाह को लागू करने की कोशिश करनी चाहिए?

१९ यहोवा के गवाह न तो मनुष्यों को ख़ुश करनेवाले हैं और न ही मनुष्यों से डरनेवाले। (नीतिवचन २९:२५; इफिसियों ६:६) उन्हें यह पूरा एहसास है कि कर चुकाने में अनुकरणीय होने और अच्छे नागरिक होने की उनकी सब कोशिशों के बावजूद, विरोधी उनके बारे में विद्वेषपूर्ण झूठ फैलाएंगे और उनका अपमान करेंगे। (१ पतरस ३:१६) यह जानते हुए, वे दानिय्येल का अनुसरण करने की कोशिश करते हैं, जिसके विषय में उसके शत्रुओं ने कहा: “हम उस दानिय्येल के परमेश्‍वर की व्यवस्था को छोड़, और किसी विषय में उसके विरुद्ध कोई दोष न पा सकेंगे।” (दानिय्येल ६:५) हम मनुष्यों को ख़ुश करने के लिए बाइबल सिद्धांतों का कभी समझौता नहीं करेंगे। दूसरी तरफ़, हम शहीद होना नहीं चाहते हैं। हम शान्तिपूर्वक रहने की और प्रेरितों की सलाह को मानने की कोशिश करते हैं: “परमेश्‍वर की इच्छा यह है, कि तुम भले काम करने से निर्बुद्धि लोगों की अज्ञानता की बातों को बन्द कर दो।”—१ पतरस २:१५.

२०. (क) हम किस बात पर विश्‍वस्त हैं, और यीशु ने हमें क्या प्रोत्साहन दिया? (ख) हम कैसे निरंतर रूप से बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी से बर्ताव कर सकते हैं?

२० हम विश्‍वस्त हैं कि संसार से अलग रहने की हमारी स्थिति पूर्ण रूप से बाइबल के सामन्जस्य में है। पहली-सदी के मसीहियों का इतिहास इस बात का समर्थन करता है। हम यीशु के शब्दों से प्रोत्साहित होते हैं: “संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है।” (यूहन्‍ना १६:३३) हमें कोई भय नहीं। “यदि तुम भलाई करने में उत्तेजित रहो तो तुम्हारी बुराई करनेवाला फिर कौन है? और यदि तुम धर्म के कारण दुख भी उठाओ, तो धन्य हो; पर उन के डराने से मत डरो, और न घबराओ। पर मसीह को प्रभु जानकर अपने अपने मन में पवित्र समझो, और जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे, तो उसे उत्तर देने के लिये सर्वदा तैयार रहो, पर नम्रता और भय के साथ।” (१ पतरस ३:१३-१५) इस तरह कार्य करते हुए, हम बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी से बर्ताव करते रहेंगे।

पुनर्विचार के लिए

यहोवा के गवाहों को बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी से बर्ताव करने की क्यों ज़रूरत है?

▫ सच्चे मसीही क्यों कभी आशा नहीं कर सकते कि संसार उन से प्रेम करेगा, लेकिन उन्हें क्या करने की कोशिश करनी चाहिए?

▫ संसार के लोगों के प्रति हमारी कैसी मनोवृत्ति होनी चाहिए, और क्यों?

▫ हमें क्यों केवल अपने भाइयों के प्रति ही नहीं बल्कि बाहरवालों के प्रति भी “भलाई” करनी चाहिए?

▫ हमारा बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी से बर्ताव करना हमारे सार्वजनिक गवाही कार्य में कैसे मदद करेगा?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 15 पर तसवीरें]

फ्राँस में सच्चे मसीही एक बाढ़ के पश्‍चात्‌ अपने पड़ोसियों की मदद करते हुए

[पेज 17 पर तसवीरें]

मसीही दयालुता के कार्य पूर्वधारणा को तोड़ने में बहुत मदद कर सकते हैं

[पेज 20 पर तसवीरें]

मसीहियों को “हर एक अच्छे काम के लिये तैयार” रहना चाहिए