हम कैसे अपने विश्वास को सद्गुण प्रदान कर सकते हैं?
हम कैसे अपने विश्वास को सद्गुण प्रदान कर सकते हैं?
“अपने विश्वास को सद्गुण . . . प्रदान करते जाओ।”—२ पतरस १:५, ७, NW.
१, २. हमें क्यों यहोवा के लोगों से सद्गुणी कार्य करने की अपेक्षा करनी चाहिए?
यहोवा हमेशा सद्गुणी तरीक़े से कार्य करता है। वह धार्मिक और भले काम करता है। इसलिए, प्रेरित पतरस परमेश्वर को वह व्यक्ति कह सकता था जिसने अभिषिक्त मसीहियों को ‘अपनी महिमा और सद्गुण के अनुसार बुलाया है।’ अपने सद्गुणी स्वर्गीय पिता के बारे में यथार्थ ज्ञान से उन्होंने देखा कि सच्ची ईश्वरीय भक्ति की ज़िन्दगी व्यतीत करने के लिए किस चीज़ की ज़रूरत थी।—२ पतरस १:२, ३.
२ प्रेरित पौलुस मसीहियों से ‘बालको की नाईं परमेश्वर के सदृश्य बनने’ का आग्रह करता है। (इफिसियों ५:१) अपने स्वर्गीय पिता के समान, यहोवा के उपासकों को किसी भी स्थिति में सद्गुणी कार्य करना चाहिए। परन्तु सद्गुण है क्या?
सद्गुण क्या है
३. “सद्गुण” को कैसे परिभाषित किया गया है?
३ आधुनिक-दिन के शब्दकोश “सद्गुण” को “नैतिक श्रेष्ठता; अच्छाई” परिभाषित करते हैं। यह “सही कार्य और विचार; चरित्र की अच्छाई” है। एक सद्गुणी व्यक्ति धार्मिक होता है। सद्गुण को “न्याय के स्तर के प्रति अनुकूलता” भी परिभाषित किया गया है। निःसंदेह, मसीहियों के लिए “न्याय का स्तर” परमेश्वर द्वारा निश्चित किया जाता है और उसके पवित्र वचन, बाइबल में स्पष्ट किया जाता है।
४. मसीहियों को २ पतरस १:५-७ में उल्लिखित कौनसे गुण विकसित करने के लिए सख़्त मेहनत करनी चाहिए?
४ सच्चे मसीही लोग यहोवा परमेश्वर के धार्मिक स्तर के प्रति अनुकूल होते हैं, और विश्वास रखने के द्वारा वे उसके बहुमूल्य प्रतिज्ञाओं के प्रति प्रतिक्रिया दिखाते हैं। वे पतरस की इस सलाह पर भी ध्यान देते हैं: “तुम सब प्रकार का यत्न करके, अपने विश्वास को सद्गुण, और सद्गुण को ज्ञान, और ज्ञान को संयम, और संयम को धीरज, और धीरज को ईश्वरीय भक्ति, और ईश्वरीय भक्ति को भाईचारे की प्रीति, और भाईचारे की प्रीति को प्रेम प्रदान करते जाओ।” (२ पतरस १:५-७, NW) एक मसीही को ये गुण विकसित करने के लिए सख़्त मेहनत करनी चाहिए। इसे कुछ दिनों या वर्षों में विकसित नहीं किया जाता है बल्कि इसके लिए जीवनभर की निरंतर कोशिश की ज़रूरत पड़ती है। क्यों, अपने विश्वास को सद्गुण प्रदान करना स्वयं अपने में ही एक चुनौती है!
५. शास्त्रीय दृष्टिकोण से सद्गुण क्या है?
५ कोशकार एम. आर. विनसेन्ट कहता है कि जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “सद्गुण” किया गया है, उसका मूल क्लासिकी अर्थ “किसी प्रकार की श्रेष्ठता” का अर्थ रखता था। पतरस ने इस शब्द का बहुवचन रूप प्रयोग किया जब उसने कहा कि मसीहियों को परमेश्वर की “श्रेष्ठताओं,” या सद्गुणों को प्रकट करना है। (१ पतरस २:९, NW) शास्त्रीय दृष्टिकोण से, सद्गुण को निष्क्रिय नहीं बल्कि इसे “नैतिक शक्ति, नैतिक ऊर्जा, आत्मा की कर्मशक्ति,” वर्णित किया गया है। सद्गुण का ज़िक्र करते समय, पतरस के मन में वह साहसी नैतिक श्रेष्ठता थी जिसे परमेश्वर के सेवकों को व्यक्त करने और बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है। लेकिन, चूँकि हम अपरिपूर्ण हैं, क्या हम वास्तव में परमेश्वर की दृष्टि में सद्गुणी कार्य कर सकते हैं?
अपरिपूर्ण लेकिन सद्गुणी
६. हालाँकि हम अपरिपूर्ण हैं, यह क्यों कहा जा सकता है कि हम परमेश्वर की दृष्टि में सद्गुणी कार्य कर सकते हैं?
६ हम ने अपरिपूर्णता और पाप को विरासत में पाया है, इसलिए हम शायद सोचें कि परमेश्वर की दृष्टि में सद्गुणी कार्य को हम वास्तव में कैसे कर सकते हैं? (रोमियों ५:१२) यदि हम शुद्ध हृदय रखना चाहते हैं जिससे सद्गुणी विचार, बोली और कार्य उत्पन्न हो सकें, तो यक़ीनन हमें यहोवा की मदद की ज़रूरत है। (लूका ६:४५ से तुलना कीजिए.) बतशेबा से सम्बन्धित पाप करने के बाद, पश्चात्तापी भजनहार दाऊद ने बिनती की: “हे परमेश्वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा नये सिरे से उत्पन्न कर।” (भजन ५१:१०) दाऊद ने परमेश्वर की क्षमा प्राप्त की और सद्गुणी मार्ग पर चलने के लिए ज़रूरी मदद प्राप्त की। इसलिए, यदि हम ने गंभीर पाप किया है लेकिन पश्चात्तापी रूप से परमेश्वर और कलीसिया के प्राचीनों की मदद स्वीकार की है, तो हम सद्गुणी मार्ग पर लौट सकते हैं और उस पर बने रह सकते हैं।—भजन १०३:१-३, १०-१४; याकूब ५:१३-१५.
७, ८. (क) यदि हमें सद्गुणी बने रहना है, तो क्या ज़रूरी है? (ख) सद्गुणी होने के लिए मसीहियों को कौनसी मदद उपलब्ध है?
७ जन्मजात पापमयता के कारण, सद्गुण के मार्ग की जो हम से माँग है, उसे पूरा करने के लिए हमें निरंतर आंतरिक लड़ाई लड़ते रहना है। यदि हमें सद्गुणी बने रहना है, तो हम अपने आपको कभी भी पाप के दास बनने की अनुमति नहीं दे सकते हैं। इसके बजाय, हमें हमेशा सद्गुणी तरीक़े से सोचते, बोलते, और कार्य करते हुए “धर्म के दास” बनना है। (रोमियों ६:१६-२३) निःसंदेह, हमारी शारीरिक अभिलाषाएँ और पापमय प्रवृत्तियाँ शक्तिशाली हैं, और हम इनके और उन सद्गुणी बातों के बीच संघर्ष का सामना करते हैं जिनकी परमेश्वर हम से माँग करता है। सो, क्या किया जाना चाहिए?
८ एक बात तो यह है कि हमें यहोवा की पवित्र आत्मा, या सक्रिय शक्ति के मार्गदर्शन का अनुसरण करने की ज़रूरत है। इसलिए हमें पौलुस की इस सलाह पर ध्यान देना चाहिए: “आत्मा के अनुसार चलो, तो तुम शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी न करोगे। क्योंकि शरीर आत्मा के विरोध में, और आत्मा शरीर के विरोध में लालसा करती है, और ये एक दूसरे के विरोधी हैं; इसलिये कि जो तुम करना चाहते हो वह न करने पाओ।” (गलतियों ५:१६, १७) जी हाँ, धार्मिकता के लिए शक्ति के तौर पर हमारे पास परमेश्वर की आत्मा है, और सही आचरण की ओर मार्गदर्शक के तौर पर हमारे पास उसका वचन है। हमारे पास यहोवा के संगठन की प्रेममय मदद और “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” की सलाह भी है। (मत्ती २४:४५-४७) इस प्रकार, हम पापमय प्रवृत्तियों के विरुद्ध एक सफल लड़ाई लड़ सकते हैं। (रोमियों ७:१५-२५) निःसंदेह, यदि कोई अशुद्ध विचार मन में आए तो हमें तुरन्त उसे निकाल देना चाहिए और कोई भी अवगुणी कार्य करने के प्रलोभन का प्रतिरोध करने के लिए परमेश्वर की मदद के लिए प्रार्थना कीजिए।—मत्ती ६:१३.
सद्गुण और हमारे विचार
९. सद्गुणी आचरण किस प्रकार के विचार की माँग करता है?
९ सद्गुण एक व्यक्ति के सोचने के ढंग के साथ शुरू होता है। ईश्वरीय अनुग्रह का आनन्द लेने के लिए, हमें धार्मिक, भली, सद्गुणी बातों के बारे में सोचना है। पौलुस ने कहा: “हे भाइयो, जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरनीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, निदान, जो जो सद्गुण और प्रशंसा की बातें हैं उन्हीं पर ध्यान लगाया करो।” (फिलिप्पियों ४:८) हमें अपने मनों को उचित, पवित्र बातों पर लगाने की ज़रूरत है, और कोई भी अवगुणी बात से हमें आकर्षित नहीं होना चाहिए। पौलुस यह कह सकता था: “जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण की, और सुनीं, और मुझ में देखीं, उन्हीं का पालन किया करो।” यदि हम पौलुस की तरह हैं—विचार, बोली, और कार्य में सद्गुणी—तब हम अच्छे साथी और मसीही जीवन में बढ़िया उदाहरण होंगे, और ‘परमेश्वर जो शान्ति का सोता है हमारे साथ रहेगा।’—फिलिप्पियों ४:९.
१०. किस प्रकार १ कुरिन्थियों १४:२० का व्यक्तिगत अनुप्रयोग हमें सद्गुणी बने रहने के लिए मदद करेगा?
१० यदि विचार में सद्गुणी बने रहने की हमारी इच्छा है ताकि अपने स्वर्गीय पिता को प्रसन्न करें, तो यह ज़रूरी है कि हम पौलुस की सलाह को लागू करें: “तुम समझ में बालक न बनो: तौभी बुराई में तो बालक रहो, परन्तु समझ में सियाने बनो।” (१ कुरिन्थियों १४:२०) इसका अर्थ है कि मसीही होने के नाते हम दुष्टता के विषय में ज्ञान या उसमें अनुभव की खोज नहीं करते हैं। इस तरह अपने मन को भ्रष्ट होने देने के बजाय, हम इस विषय में बालक की नाईं अनुभवहीन और मासूम बने रहने का बुद्धिमत्ता से चुनाव करते हैं। साथ ही, हम पूरी तरह से समझते हैं कि अनैतिकता और दुराचार यहोवा की दृष्टि में पापमय हैं। सद्गुणी होने के द्वारा उसे प्रसन्न करने की तीव्र हार्दिक इच्छा हमें लाभ पहुँचाएगी, क्योंकि यह हमें शैतान के वश में पड़े संसार के अशुद्ध प्रकार के मनोरंजन और अन्य मानसिक रूप से भ्रष्ट करनेवाले प्रभावों से दूर रहने के लिए प्रेरित करेगा।—१ यूहन्ना ५:१९.
सद्गुण और हमारी बोली
११. सद्गुणी होना किस प्रकार की बोली की माँग करता है, और इस सम्बन्ध में, हमारे पास यहोवा परमेश्वर तथा यीशु मसीह में कौनसे उदाहरण हैं?
११ यदि हमारे विचार सद्गुणी हैं, तो हम क्या बोलते हैं, उस पर इसका गहरा प्रभाव पड़ना चाहिए। सद्गुणी होना शुद्ध, हितकर, सत्यनिष्ठ, प्रोत्साहक बोली की माँग करता है। (२ कुरिन्थियों ६:३, ४, ७) यहोवा “सत्यवादी ईश्वर” है। (भजन ३१:५) वह अपने सभी व्यवहारों में विश्वासयोग्य है, और उसकी प्रतिज्ञाएँ निश्चित हैं क्योंकि वह झूठ नहीं बोल सकता। (गिनती २३:१९; १ शमूएल १५:२९; तीतुस १:२) परमेश्वर का पुत्र, यीशु मसीह “अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण” है। जब वह पृथ्वी पर था, उसने हमेशा सत्य कहा जैसा सत्य उसने अपने पिता से प्राप्त किया था। (यूहन्ना १:१४; ८:४०) इसके अतिरिक्त, “न तो [यीशु] ने पाप किया, और न उसके मुंह से छल की कोई बात निकली।” (१ पतरस २:२२) यदि हम वास्तव में परमेश्वर और मसीह के सेवक हैं, तो हम बोली में सत्यनिष्ठ और आचरण में सीधे होंगे, मानो “सत्य से अपनी कमर कस” ली हो।—इफिसियों ५:९; ६:१४.
१२. यदि हमें सद्गुणी होना है, तो किस प्रकार की बोली से हमें बचे रहना है?
१२ यदि हम सद्गुणी हैं, तो हम कई प्रकार की बोली से बचे रहेंगे। हम पौलुस की इस सलाह से नियंत्रित होंगे: “सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा सब बैरभाव समेत तुम से दूर की जाए।” “जैसा पवित्र लोगों के योग्य है, वैसा तुम में व्यभिचार, और किसी प्रकार अशुद्ध काम, या लोभ की चर्चा तक न हो। और न निर्लज्जता, न मूढ़ता की बातचीत की, न ठट्ठे की, क्योंकि ये बातें सोहती नहीं, बरन धन्यवाद ही सुना जाए।” (इफिसियों ४:३१; ५:३, ४) अन्य लोग हमारी संगति में रहना स्फूर्तिदायक पाएँगे क्योंकि हमारा धार्मिक हृदय हमें ग़ैर-मसीही बोली से बचे रहने के लिए प्रेरित करता है।
१३. मसीहियों को ज़बान पर क्यों नियंत्रण रखना चाहिए?
१३ परमेश्वर को प्रसन्न करने और सद्गुणी बातें बोलने की इच्छा, ज़बान पर नियंत्रण रखने में हमारी मदद करेगी। पापमय प्रवृत्ति के कारण, हम सब कभी-कभार बातों में चूक जाते हैं। फिर भी, अनुयायी याकूब कहता है कि “जब हम . . . घोड़ों के मुंह में लगाम लगाते हैं,” तब वे आज्ञाकारी रूप से वहाँ जाते हैं जहाँ हम उन्हें निर्देशित करते हैं। इसलिए, हमें ज़बान को लगाम लगाने के लिए सख़्त मेहनत करनी चाहिए और उसे केवल सद्गुणी तरीक़ों में प्रयोग करने की कोशिश करनी चाहिए। एक अनियंत्रित ज़बान “अधर्म का एक लोक है।” (याकूब ३:१-७) इस अधर्मी संसार के हर प्रकार की दुष्ट विशेषता का सम्बन्ध अनियंत्रित ज़बान के साथ है। यह झूठी गवाही, गाली-गलौज, और निंदा जैसी हानिकर चीज़ों के लिए ज़िम्मेदार है। (यशायाह ५:२०; मत्ती १५:१८-२०) और जब एक बेक़ाबू ज़बान अपमानजनक, कटु, या निंदात्मक बातें बोलती है, तब यह प्राणनाशक विष से भरी हुई होती है।—भजन १४०:३; रोमियों ३:१३; याकूब ३:८.
१४. मसीहियों को बोली में कौनसे दोतरफ़े स्तर से बचे रहना है?
१४ जैसे याकूब बताता है, यह असंगत होगा कि परमेश्वर की प्रशंसा करने के द्वारा ‘[यहोवा] की स्तुति करना’ परन्तु फिर मनुष्यों को बददुआएँ देने के द्वारा ‘मनुष्यों को स्राप देने’ के लिए ज़बान का दुरुपयोग करना। सभाओं में परमेश्वर की प्रशंसा करना और फिर बाहर जाकर संगी विश्वासियों के बारे में बुरा-भला कहना कितना ही पापमय है! मीठा और खारा जल दोनों एक ही सोते से नहीं निकल सकते। यदि हम यहोवा की सेवा कर रहे हैं, तो अन्य लोगों को हम से यह अपेक्षा करने का अधिकार है कि हम अप्रिय शब्द कहने के बजाय सद्गुणी बातें कहें। इसलिए आइए हम दुष्ट बोली से दूर रहें और उन बातों को बोलने की कोशिश करें जो हमारे साथियों को लाभ देंगी और उन्हें आध्यात्मिक रूप से प्रोत्साहित करेंगी।—याकूब ३:९-१२.
सद्गुण और हमारे कार्य
१५. कुटिल तरीक़ों की मदद लेने से बचे रहना क्यों इतना महत्त्वपूर्ण है?
१५ जबकि मसीही विचार और बोली सद्गुणी होना चाहिए, हमारे कार्य के बारे में क्या? आचरण में सद्गुणी होना ही, परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करने का एकमात्र तरीक़ा है। यहोवा का कोई भी सेवक सद्गुण को त्यागकर, और कुटिल तथा धोखेबाज़ बनकर, उचित रीति से नहीं सोच सकता कि ऐसी चीज़ें परमेश्वर को स्वीकार्य होंगी। नीतिवचन ३:३२ कहता है: “यहोवा कुटिल से घृणा करता है, परन्तु वह अपना भेद सीधे लोगों पर खोलता है।” यदि हम यहोवा परमेश्वर के साथ अपने सम्बन्ध को प्रिय समझते हैं, तो इन विचारणीय शब्दों को हमें हानिकर योजना बनाने या कुछ भी कुटिल काम करने से रोकना चाहिए। क्यों, यहोवा को घृणित सात वस्तुओं में से एक वस्तु “अनर्थ कल्पना गढ़नेवाला मन” है! (नीतिवचन ६:१६-१९) फलस्वरूप, आइए हम अपने संगी मनुष्यों के लाभ और अपने स्वर्गीय पिता की महिमा के लिए ऐसे कार्यों से दूर रहें और सद्गुणी कार्य करें।
१६. मसीहियों को क्यों किसी कपटी कार्य में भाग नहीं लेना है?
१६ सद्गुण प्रदर्शित करना यह माँग करती है कि हम ईमानदार हों। (इब्रानियों १३:१८) एक कपटी व्यक्ति, जिसका कार्य उसके वचन के अनुकूल नहीं है, सद्गुणी नहीं है। जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “कपटी” (हिपोक्रिटस्, hy·po·kri·tesʹ) किया गया है, उसका अर्थ है “वह व्यक्ति जो उत्तर देता है” और साथ ही यह एक मंच अभिनेता को भी सूचित करता है। चूँकि यूनानी और रोमी अभिनेता नक़ाब पहनते थे, इस शब्द को उस व्यक्ति के लिए लाक्षणिक रूप से प्रयोग किया जाने लगा जो दिखावा करता है। कपटी लोग ‘अविश्वासी’ होते हैं। (लूका १२:४६ की तुलना मत्ती २४:५०, ५१ से कीजिए.) कपट (हिपोक्रिसिस्, hy·poʹkri·sis) दुष्टता और चतुराई को भी सूचित कर सकता है। (मत्ती २२:१८; मरकुस १२:१५; लूका २०:२३) क्या ही दुःख की बात जब एक विश्वासी व्यक्ति उन मुसकानों, ख़ुशामदों, और कार्यों का शिकार बन जाता है जो केवल दिखावा ही हैं! दूसरी ओर यह हृदय को प्रफुल्लित करता है जब हम जानते हैं कि हम विश्वासयोग्य मसीहियों के साथ सम्बन्ध रख रहे हैं। और परमेश्वर हमें सद्गुणी तथा निष्कपट होने के लिए आशिष देता है। उसकी स्वीकृति उन लोगों पर है जो “भाईचारे की निष्कपट प्रीति” प्रदर्शित करते हैं और “कपटरहित विश्वास” रखते हैं।—१ पतरस १:२२; १ तीमुथियुस १:५.
सद्गुण सक्रिय भलाई है
१७, १८. जैसे-जैसे हम आत्मा का फल, भलाई प्रदर्शित करते हैं, हम दूसरों के साथ कैसे व्यवहार करेंगे?
१७ यदि हम अपने विश्वास को सद्गुण प्रदान करते हैं, तो हम उन बातों को सोचने, बोलने, और करने से दूर रहने की कोशिश करेंगे जो परमेश्वर को अस्वीकार्य हैं। फिर भी, मसीही सद्गुण प्रदर्शित करना यह भी माँग करता है कि हम सक्रिय भलाई करें। वास्तव में, सद्गुण को भलाई परिभाषित किया गया है। और भलाई यहोवा की पवित्र आत्मा का एक फल है, न कि केवल मानव प्रयास का परिणाम। (गलतियों ५:२२, २३) जैसे-जैसे हम आत्मा का फल, भलाई व्यक्त करते हैं, दूसरों की अपरिपूर्णता के बावजूद, हम उनके बारे में अच्छा सोचने और उनके अच्छे गुणों की सराहना करने के लिए प्रेरित होंगे। क्या उन्होंने वर्षों से निष्ठापूर्वक यहोवा की सेवा की है? तब हमें उन्हें आदर दिखाना चाहिए और उनके बारे में तथा परमेश्वर के प्रति उनकी सेवा के बारे में प्रशंसा करनी चाहिए। हमारा स्वर्गीय पिता उस प्रेम पर, जो वे उसके नाम के लिए दिखाते हैं, और उनके विश्वास के सद्गुणी कार्य पर ध्यान देता है, और हमें भी देना चाहिए।—नहेमायाह १३:३१ख; इब्रानियों ६:१०.
१८ सद्गुण हमें धैर्यवान, सहानुभूतिशील, संवेदनशील बनाता है। यदि यहोवा का एक संगी उपासक दुःख या हताशा महसूस कर रहा है, तो हम ढाढ़स बँधाने के तरीक़े से बात करेंगे और उसे कुछ सांत्वना देने की कोशिश करेंगे, जैसे हमारा प्रेममय स्वर्गीय पिता हमें सांत्वना देता है। (२ कुरिन्थियों १:३, ४; १ थिस्सलुनीकियों ५:१४) हम उन लोगों को सहानुभूति व्यक्त करते हैं जो शायद किसी प्रिय जन की मौत पर दुःखी हैं। यदि हम दुःख को कम करने के लिए कुछ कर सकते हैं, तो हम इसे करेंगे, क्योंकि एक सद्गुणी भावना प्रेममय, परोपकारी कार्य को प्रेरित करती है।
१९. यदि हम विचार, बोली, और कार्य में सद्गुणी हैं, तो संभवतः अन्य लोग हम से कैसे व्यवहार करेंगे?
१९ यदि हम विचार, बोली, और कार्य में सद्गुणी हैं, तो ठीक जिस प्रकार हम यहोवा को धन्य कहने के द्वारा उसे आशिष देते हैं, उसी प्रकार संभवतः अन्य लोग हमें धन्य कहेंगे। (भजन १४५:१०) एक बुद्धिमत्तापूर्ण कहावत कहती है: “धर्मी पर बहुत से आशीर्वाद होते हैं, परन्तु उपद्रव दुष्टों का मुंह छा लेता है।” (नीतिवचन १०:६) एक दुष्ट और हिंसात्मक व्यक्ति में वह सद्गुण नहीं है जिससे दूसरों में उसके लिए प्रेम उत्पन्न हो। वह वही काटता है जो वह बोता है, क्योंकि लोग ईमानदारी से उसकी प्रशंसा करने के द्वारा उसे अपनी आशिष नहीं दे सकते हैं। (गलतियों ६:७) उन लोगों के लिए कितना ही बेहतर जो यहोवा के सेवक के तौर पर सद्गुणी तरीक़े से सोचते, बोलते, और कार्य करते हैं! वे अन्य लोगों का प्रेम, भरोसा, और आदर प्राप्त करते हैं, जो उन्हें आशिष देने और उनकी प्रशंसा करने के लिए प्रेरित हुए हैं। इसके अतिरिक्त, उनका ईश्वरीय सद्गुण यहोवा के अमूल्य आशिष में परिणित होता है।—नीतिवचन १०:२२.
२०. सद्गुणी विचार, बोली, और कार्य यहोवा के लोगों की कलीसिया में क्या प्रभाव डाल सकते हैं?
२० सद्गुणी विचार, बोली, और कार्य निःसंदेह यहोवा के लोगों की कलीसिया को लाभ पहुँचाएंगे। जब संगी विश्वासी एक दूसरे के प्रति स्नेही, आदरपूर्ण विचार रखते हैं, तब भाईचारे का प्रेम उनमें प्रफुल्लित होता है (यूहन्ना १३:३४, ३५) सद्गुणी बोली, जिसमें सत्हृदय सराहना और प्रोत्साहन सम्मिलित है, सहकारिता और एकता की स्नेही भावना विकसित करती है। (भजन १३३:१-३) और आनन्ददायी, सद्गुणी कार्य दूसरों को समान रूप से प्रतिक्रिया दिखाने के लिए उत्तेजित करता है। सबसे बढ़कर, मसीही सद्गुण का अभ्यास हमारे सद्गुणी स्वर्गीय पिता, यहोवा की स्वीकृति और आशिष में परिणित होता है। इसलिए ऐसा हो कि हम विश्वास रखने के द्वारा परमेश्वर की बहुमूल्य प्रतिज्ञाओं के प्रति प्रतिक्रिया दिखाने को अपना लक्ष्य बनाएँ। और निश्चय ही आइए हम अपने विश्वास को सद्गुण प्रदान करने की गंभीर कोशिश करें।
आपके उत्तर क्या हैं?
▫ आप “सद्गुण” को किस प्रकार परिभाषित करेंगे, और क्यों अपरिपूर्ण लोग सद्गुणी हो सकते हैं?
▫ सद्गुण किस प्रकार के विचारों की माँग करता है?
▫ किस प्रकार सद्गुण को हमारी बोली को प्रभावित करना चाहिए?
▫ सद्गुण को हमारे कार्यों पर क्या प्रभाव डालना चाहिए?
▫ सद्गुणी होने के कुछ लाभ क्या हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 29 पर तसवीरें]
जबकि मीठा और खारा जल एक ही स्रोत से नहीं निकल सकते हैं, अन्य लोग उचित रीति से यहोवा के सेवकों से केवल सद्गुणी बातें कहने की अपेक्षा करते हैं