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यहोवा के मार्गों में साहसपूर्वक चलिए

यहोवा के मार्गों में साहसपूर्वक चलिए

यहोवा के मार्गों में साहसपूर्वक चलिए

“क्या ही धन्य है हर एक जो यहोवा का भय मानता है, और उसके मार्गों पर चलता है।”—भजन १२८:१.

१, २. यहोवा के आरंभिक गवाहों के शब्दों और कार्यों का बाइबलीय अभिलेख क्या मदद देता है?

 यहोवा का पवित्र वचन उसके निष्ठावान्‌ सेवकों की परिक्षाओं और हर्ष के वृत्तान्तों से भरा हुआ है। नूह, इब्राहीम, सारा, यहोशू, दबोरा, बाराक, दाऊद और अन्य जनों के वृत्तांत उल्लेखनीय और सजीव हैं। वे सब असली लोग थे और उन में कुछ ख़ास बात समान थी। उन्हें परमेश्‍वर में विश्‍वास था और वे उसके मार्गों में साहसपूर्वक चले।

जैसे-जैसे हम परमेश्‍वर के मार्गों में चलने की कोशिश करते हैं, यहोवा के आरंभिक गवाहों के शब्द और कार्य हमारे लिए प्रोत्साहक हो सकते हैं। इसके अलावा, अगर हम परमेश्‍वर के लिए श्रद्धा और उसे अप्रसन्‍न करने का हितकर भय प्रदर्शित करें, तो हम ख़ुश रहेंगे। हम जीवन में परीक्षाओं का सामना करते हैं फिर भी यह सच है, क्योंकि उत्प्रेरित भजनहार ने गाया: “क्या ही धन्य है हर एक जो यहोवा का भय मानता है, और उसके मार्गों पर चलता है।”—भजन १२८:१.

साहस क्या है

३. साहस क्या है?

यहोवा के मार्गों में चलने के लिए, हम में साहस होना चाहिए। दरअसल, शास्त्रवचन परमेश्‍वर के लोगों को यह गुण प्रदर्शित करने के लिए आज्ञा देते हैं। उदाहरण के लिए, भजनहार दाऊद ने गाया: “हे यहोवा पर आशा रखनेवालो, हियाव बान्धो और तुम्हारे हृदय दृढ़ रहें।” (भजन ३१:२४) “जोखिम उठाने, लगे रहने और ख़तरा, डर, या तकलीफ़ का मुकाबला करने के लिए मानसिक या नैतिक शक्‍ति” साहस है। (वेबस्टरस्‌ नाइंथ न्यू कॉलीजियेट डिक्शनरि) एक साहसी व्यक्‍ति शक्‍तिमान, बहादुर, शूरवीर होता है। अपने सहकर्मी तीमुथियुस को कहे प्रेरित पौलुस के इन शब्दों से यह स्पष्ट है कि यहोवा अपने सेवकों को साहस देता है: “परमेश्‍वर ने हमें भय की नहीं पर सामर्थ, और प्रेम, और संयम की आत्मा दी है।”—२ तीमुथियुस १:७.

४. साहस पाने का एक तरीक़ा क्या है?

परमेश्‍वर-प्रदत्त साहस पाने का एक तरीक़ा है परमेश्‍वर के वचन, बाइबल पर प्रार्थनामय विचार करना। शास्त्रवचन में दिए गए अनेक वृत्तांत हमें ज़्यादा साहसी बनने के लिए मदद कर सकते हैं। इसलिए, आइए पहले देखें कि इब्रानी शास्त्रों में यहोवा के मार्गों में साहसपूर्वक चले हुए कुछेक व्यक्‍तियों के अभिलेख से हम क्या सीख सकते हैं।

परमेश्‍वर के संदेश की घोषणा करने के लिए साहस

५. किस तरह हनोक का साहस मौजूदा-दिन के यहोवा के गवाहों को लाभ पहुँचा सकता है?

हनोक का साहस मौजूदा-दिन के यहोवा के गवाहों को परमेश्‍वर का संदेश साहसपूर्वक बोलने के लिए मदद कर सकता है। हनोक के जन्म से पहले, “लोग यहोवा से प्रार्थना करने लगे” थे। कुछ विद्वान कहते हैं कि मनुष्य “अपवित्र रूप से” यहोवा से प्रार्थना करने लगे। (उत्पत्ति ४:२५, २६; ५:३, ६) वह परमेश्‍वरीय नाम शायद इंसानों के लिए या मूर्तियों के लिए इस्तेमाल किया गया हो। इसलिए, झूठा धर्म फल-फूल रहा था जब हनोक का जन्म सा.यु.पू. ३४०४ में हुआ। दरअसल, ऐसा प्रतीत होता है कि यहोवा की प्रकट सच्चाई के अनुकूल एक धर्मी मार्ग का पीछा करते हुए वह ‘परमेश्‍वर के साथ-साथ चलने’ में अकेला था।—उत्पत्ति ५:१८, २४.

६. (क) हनोक ने कौनसा कड़ा संदेश घोषित किया? (ख) हमें क्या भरोसा हो सकता है?

हनोक ने परमेश्‍वर के संदेश को साहसपूर्वक पहुँचाया, संभवतः प्रचार के द्वारा। (इब्रानियों ११:५; साथ ही २ पतरस २:५ से तुलना कीजिए.) इस एकमात्र गवाह ने घोषणा की, “देखो, प्रभु [यहोवा, NW] अपने लाखों पवित्रों के साथ आया। कि सब का न्याय करे, और सब भक्‍तिहीनों को उन के अभक्‍ति के सब कामों के विषय में, जो उन्हों ने भक्‍तिहीन होकर किए हैं, और उन सब कठोर बातों के विषय में जो भक्‍तिहीन पापियों ने उसके विरोध में कही हैं, दोषी ठहराए।” (यहूदा १४, १५) भक्‍तिहीन जनों की निन्दा करने का संदेश पहुँचाने के समय, हनोक के पास यहोवा नाम इस्तेमाल करने का साहस था। और जिस तरह परमेश्‍वर ने हनोक को वह कड़ा संदेश घोषित करने के लिए साहस दिया, उसी तरह यहोवा ने अपने मौजूदा-दिन के गवाहों को निडरता से उसका वचन सेवकाई में, स्कूल में, और अन्य जगहों में बोलने के लिए शक्‍ति दी है।—प्रेरितों ४:२९-३१ से तुलना कीजिए.

परीक्षा में साहस

७. नूह साहस का कौनसा उदाहरण प्रदान करता है?

नूह का उदाहरण हमें परीक्षा के समय धर्मी कार्य करने में साहसी होने के लिए हमारी मदद कर सकता है। साहस और विश्‍वास के साथ, उसने विश्‍वव्यापी जलप्रलय की ईश्‍वरीय चेतावनी पर कार्य किया और “अपने घराने के बचाव के लिये जहाज़ बनाया।” आज्ञाकारी और धर्मी कार्यों से, नूह ने अविश्‍वासी संसार की उसके दुष्ट कृत्य के लिए निन्दा की और उसे विनाश के योग्य ठहराया। (इब्रानियों ११:७; उत्पत्ति ६:१३-२२; ७:१६) नूह के मार्ग पर मनन करना परमेश्‍वर के आधुनिक-दिन के सेवकों को मसीही सेवकाई जैसे धर्मी कार्यों में साहसपूर्वक भाग लेने के लिए मदद करता है।

८. (क) एक साहसी “धर्म के प्रचारक” के तौर पर नूह ने किस बात का सामना किया? (ख) अगर हम धर्म के साहसी प्रचारक हैं, तो यहोवा हमारे लिए क्या करेगा?

अगर हम एक धर्मी मार्ग का पीछा कर रहे हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि एक परीक्षा से कैसे निपटा जाए, तो आइए हम इसका सामना करने के लिए बुद्धि के वास्ते प्रार्थना करें। (याकूब १:५-८) परीक्षा के अंतर्गत परमेश्‍वर के प्रति नूह की निष्ठा दिखाती है कि साहस और वफ़ादारी के साथ परिक्षाओं का सामना करना सम्भव है। एक दुष्ट संसार से और मानव रूप लिए हुए स्वर्गदूतों से और उनकी संकर सन्तान से आए दबाव का उसने मुकाबला किया। जी हाँ, विनाश की ओर बढ़ रहे “प्रथम युग के संसार” के लिए नूह साहसी ‘धर्म का प्रचारक’ था। (२ पतरस २:४, ५; उत्पत्ति ६:१-९) हालाँकि वह प्रलयपूर्व लोगों को परमेश्‍वर की चेतावनी घोषित करते हुए एक उद्‌घोषक की तरह निडरतापूर्वक बोला, फिर भी “जब तक जल-प्रलय आकर उन सब को बहा न ले गया, तब तक उन्होंने ध्यान नहीं दिया।” (मत्ती २४:३६-३९NW) लेकिन हम यह याद रखें कि सताहट और आज अधिकांश लोगों द्वारा हमारे बाइबल-आधारित संदेश की अस्वीकृति के बावजूद, अगर हम धर्म के प्रचारक के तौर पर समान विश्‍वास और साहस प्रदर्शित करेंगे तो यहोवा हमारा समर्थन करेगा जैसे उसने नूह का समर्थन किया।

परमेश्‍वर की आज्ञा पालन करने का साहस

९, १०. इब्राहीम, सारा, और इसहाक ने किन विषयों में साहसी आज्ञाकारिता दिखायी?

परमेश्‍वर के प्रति साहसी आज्ञाकारिता का बढ़िया उदाहरण “परमेश्‍वर का मित्र” इब्राहीम है। (याकूब २:२३) यहोवा की आज्ञा पालन करने और भौतिक लाभों से भरे हुए कस्‌दियों के ऊर शहर को छोड़ने के लिए इब्राहीम को विश्‍वास और साहस की ज़रूरत थी। उसने परमेश्‍वर के वादे पर भरोसा किया कि “भूमण्डल के सारे कुल” उसके द्वारा आशीष पाएँगे और कि उसकी सन्तान को एक देश दिया जाएगा। (उत्पत्ति १२:१-९; १५:१८-२१) विश्‍वास से इब्राहीम ने “प्रतिज्ञा किए हुए देश में जैसे पराए देश में परदेशी रहकर” और “स्थिर नेववाले नगर” की राह देखी—अर्थात्‌ परमेश्‍वर का स्वर्गीय राज्य, जिसके अधीन उसे पृथ्वी पर जीवन के लिए पुनरुत्थित किया जाता।—इब्रानियों ११:८-१६.

१० ऊर छोड़ने, पराए देश जाने में अपने पति का साथ देने, और वहाँ उन पर आनेवाली किसी भी कठिनाइयों को सहने के लिए इब्राहीम की पत्नी, सारा के पास ज़रूरी विश्‍वास और साहस था। और परमेश्‍वर के प्रति अपनी साहसी आज्ञाकारिता के लिए उसे क्या ही प्रतिफल मिला! हालाँकि वह तक़रीबन ९० साल की उम्र तक बांझ और “बूढ़ी” थी, सारा ‘गर्भ धारण करने के लिए’ समर्थ की गयी, “क्योंकि उस ने प्रतिज्ञा करनेवाले को सच्चा जाना था।” समय आने पर, उसने इसहाक को जन्म दिया। (इब्रानियों ११:११, १२; उत्पत्ति १७:१५-१७; १८:११; २१:१-७) सालों बाद, इब्राहीम ने परमेश्‍वर की आज्ञा का साहसपूर्वक पालन किया और “इसहाक का मानो बलिदान चढ़ाया।” एक स्वर्गदूत द्वारा रोके जाने पर, कुलपिता को अपना साहसी और आज्ञाकारी पुत्र मृत्यु से “दृष्टान्त की रीति पर” मिला। इस प्रकार उसने और इसहाक ने भविष्यसूचक रूप से चित्रित किया कि यहोवा परमेश्‍वर अपने पुत्र, यीशु मसीह को एक छुड़ौती के रूप में प्रदान करेगा ताकि उस में विश्‍वास करनेवालों को अनन्त जीवन मिल सके। (इब्रानियों ११:१७-१९, NW; उत्पत्ति २२:१-१९; यूहन्‍ना ३:१६) यक़ीनन, इब्राहीम, सारा और इसहाक की साहसी आज्ञाकारिता को हमें यहोवा की आज्ञा पालन करने और हमेशा उसकी इच्छा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

परमेश्‍वर के लोगों के साथ खड़े रहने के लिए साहस

११, १२. (क) यहोवा के लोगों के सम्बन्ध में, मूसा ने किस तरह साहस प्रदर्शित किया? (ख) मूसा के साहस को ध्यान में रखते हुए, क्या सवाल पूछा जा सकता है?

११ मूसा ने साहसपूर्वक परमेश्‍वर के उत्पीड़ित लोगों के साथ अपनी स्थिति ली। सामान्य युग पूर्व १६वीं सदी में, मूसा के माता-पिता ने स्वयं साहस दिखाया। नवजात इब्रानी लड़कों को मार डालने के राजा के हुक़्म से नहीं डरते हुए, उन्होंने मूसा को छिपाया और फिर उसे नील नदी के तीर पर कांसों के बीच एक टोकरी में डाल दिया। वह फिरौन की बेटी द्वारा पाया गया, और उसी के बेटे की तरह पाला-पोसा गया, हालाँकि पहले उसे अपने माता-पिता के घर में आध्यात्मिक प्रशिक्षण प्राप्त हुआ। फ़िरौन के घराने के भाग के तौर पर, मूसा को “मिसरियों की सारी विद्या पढ़ाई गई, और वह बातों और कामों में सामर्थी,” मानसिक और शारीरिक क्षमताओं में सामर्थी बन गया।—प्रेरितों ७:२०-२२; निर्गमन २:१-१०; ६:२०.

१२ शाही घराने के भौतिक लाभों के बावजूद, मूसा ने यहोवा के उपासकों के साथ अपनी स्थिति लेने का साहसपूर्वक चुनाव किया, जो तब मिस्रियों द्वारा ग़ुलामी में रखे गए थे। एक इस्राएली की रक्षा करने में, उसने एक मिस्री को मार डाला और फिर मिद्यान देश को भाग गया। (निर्गमन २:११-१५) तक़रीबन ४० साल बाद, परमेश्‍वर ने उसे इस्राएलियों को ग़ुलामी से निकलने में अगुआई करने के लिए इस्तेमाल किया। फिर मूसा ने “राजा के क्रोध से न डरकर . . . मिसर को छोड़ दिया,” जिसने इस्राएल के पक्ष में यहोवा का प्रतिनिधित्व करने के लिए उसे मौत की धमकी दी। मूसा ऐसे चला मानो वह “अनदेखे” को, यहोवा परमेश्‍वर को देखता था। (इब्रानियों ११:२३-२९; निर्गमन १०:२८) क्या आपके पास ऐसा विश्‍वास और साहस है कि आप यहोवा और उसके लोगों के साथ कठिनाई और सताहट के बावजूद भी लगे रहेंगे?

‘यहोवा के पीछे पूरी रीति से हो लेने’ के लिए साहस

१३. किस तरह यहोशू और कालेब ने साहस के उदाहरण पेश किए?

१३ साहसी यहोशू और कालेब ने प्रमाण प्रदान किया कि हम परमेश्‍वर के मार्गों में चल सकते हैं। वे ‘यहोवा के पीछे पूरी रीति से हो लिये’ थे। (गिनती ३२:१२) यहोशू और कालेब उन १२ पुरुषों में से थे जिन्हें प्रतिज्ञात देश की जासूसी करने के लिए भेजा गया था। उस देश के निवासियों से डरते हुए, दस जासूसों ने इस्राएल को कनान में प्रवेश करने से मना करने की कोशिश की। लेकिन, यहोशू और कालेब ने साहसपूर्वक कहा: “यदि यहोवा हम से प्रसन्‍न हो, तो हम को उस देश में, जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, पहुंचाकर उसे हमें दे देगा। केवल इतना करो कि तुम यहोवा के विरुद्ध बलवा न करो; और न तो उस देश के लोगों से डरो, क्योंकि वे हमारी रोटी ठहरेंगे; छाया उनके ऊपर से हट गई है, और यहोवा हमारे संग है; उन से न डरो।” (गिनती १४:८, ९) विश्‍वास और साहस की कमी के कारण, इस्राएलियों की वह पीढ़ी कभी प्रतिज्ञात देश नहीं पहुँची। लेकिन यहोशू और कालेब ने, एक नयी पीढ़ी के साथ, प्रवेश किया।

१४, १५. (क) जब यहोशू ने यहोशू १:७, ८ के शब्दों को लागू किया, तो उसने और इस्राएलियों ने क्या अनुभव किया? (ख) साहस सम्बन्धी कौनसा सबक़ हम यहोशू और कालेब से सीखते हैं?

१४ परमेश्‍वर ने यहोशू से कहा: “तू हियाव बान्धकर और बहुत दृढ़ होकर जो व्यवस्था मेरे दास मूसा ने तुझे दी है उन सब के अनुसार करने में चौकसी करना; और उस से न तो दहिने मुड़ना और न बाएं, तब जहां जहां तू जाएगा वहां वहां तेरा काम सुफल होगा। व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए [तेरे मुंह से न हटे, फुटनोट], इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, इसलिये कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे; क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सुफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा।”—यहोशू १:७, ८.

१५ जैसे-जैसे यहोशू ने इन शब्दों को लागू किया, यरीहो और अन्य शहर इस्राएलियों के हाथ आ गए। परमेश्‍वर ने सूर्य को ठहरा दिया ताकि वह तब तक चमकता रहा जब तक इस्राएल गिबोन में विजयी नहीं हुआ। (यहोशू १०:६-१४) “समुद्र के किनारे की बालू के किनकों के समान बहुत” शत्रु की संयुक्‍त शक्‍ति द्वारा ख़तरे में होने पर, यहोशू ने साहसपूर्वक कार्य किया, और परमेश्‍वर ने इस्राएल को फिर से विजयी किया। (यहोशू ११:१-९) हालाँकि हम अपरिपूर्ण इंसान हैं, यहोशू और कालेब की तरह, हम पूरी रीति से यहोवा के पीछे हो सकते हैं, और परमेश्‍वर हमें उसके मार्गों में साहसपूर्वक चलने के लिए सामर्थ दे सकता है।

परमेश्‍वर पर भरोसा करने के लिए साहस

१६. दबोरा, बाराक, और याएल ने किन तरीक़ों से साहस दिखाया?

१६ परमेश्‍वर पर साहसी भरोसे का प्रतिफल मिलता है, जैसे उन दिनों की घटनाओं से दिखाया गया जब न्यायी इस्राएल में न्याय प्रदान करते थे। (रूत १:१) उदाहरण के लिए, न्यायी बाराक और नबिया दबोरा ने परमेश्‍वर पर साहसपूर्वक भरोसा किया। कनानी राजा याबीन ने इस्राएल को २० साल के लिए उत्पीड़ित किया था जब बाराक को ताबोर पहाड़ पर १०,००० आदमी इकट्ठे करने का सुझाव देने के लिए यहोवा ने दबोरा को प्रेरित किया। याबीन का सेनापति सीसरा, किशोन नदी की ओर तेज़ी से आया क्योंकि उसे यक़ीन था कि इस समतल भूमि पर इस्राएल के पुरुष उसकी सेना और उसके ९०० रथों का मुकाबला नहीं कर सकते जिनके पहियों पर लोहे की दरांतियाँ लगी हुई थीं। जब इस्राएली पुरुष घाटी की समतल भूमि में आए, परमेश्‍वर ने उनके पक्ष में कार्य किया, और एक आकस्मिक बाढ़ ने रणभूमि को दलदल में बदल दिया जिससे सीसरा के रथ गतिहीन हो गए। बाराक के पुरुष अभिभावी हुए, जिससे “तलवार से सीसरा की सारी सेना नष्ट की गई।” सीसरा याएल के डेरे को भाग गया, लेकिन जब वह सोया हुआ था, तब याएल के पास साहस था कि तम्बू की एक खूंटी उसकी कनपटियों के आर-पार करके उसे मार डाले। बाराक को कहे गए दबोरा के भविष्यसूचक कथन के ठीक अनुसार, इस प्रकार इस जीत की ‘बड़ाई’ की बात एक स्त्री को गयी। क्योंकि दबोरा, बाराक, और याएल ने परमेश्‍वर में साहसपूर्वक भरोसा किया, इस्राएल में “चालीस वर्ष तक शान्ति रही।”—न्यायियों ४:१-२२; ५:३१.

१७. न्यायी गिदोन द्वारा यहोवा में साहसी भरोसा का कौनसा उदाहरण प्रदान किया गया?

१७ न्यायी गिदोन ने यहोवा परमेश्‍वर पर साहसपूर्वक भरोसा किया जब मिद्यानियों और अन्य लोगों ने इस्राएल पर हमला किया। हालाँकि हमलावरों की संख्या उनकी संख्या से तक़रीबन १,३५,००० अधिक थी, फिर भी इस्राएल के ३२,००० सैनिक परमेश्‍वर-प्रदत्त जीत का श्रेय अपने पराक्रम को देने के लिए शायद प्रवृत्त हो सकते थे। यहोवा के निर्देशन पर, गिदोन ने अपनी सेना को सौ-सौ पुरुषों के तीन झुण्ड तक कम किया। (न्यायियों ७:१-७, १६; ८:१०) जब ३०० पुरुषों ने रात को मिद्यानियों की छावनी को घेर लिया, हरेक के पास एक नरसिंगा था और एक घड़ा जिसमें एक मशाल थी। संकेत मिलने पर, उन्होंने नरसिंगों को फूंका, घड़ों को तोड़ डाला, जलती मशालों को ऊँचा उठाया, और चिल्लाया: “यहोवा की तलवार और गिदोन की तलवार।” (न्यायियों ७:२०) आतंकित मिद्यानी लोग भागने लगे और उन्हें पराजित किया गया। ऐसी घटनाओं को हमें क़ायल करना चाहिए कि परमेश्‍वर में साहसी भरोसे का आज भी प्रतिफल दिया जाता है।

यहोवा का आदर करने और शुद्ध उपासना को बढ़ाने के लिए साहस

१८. जब दाऊद ने गोलियत को मार डाला, उसने साहसपूर्वक क्या किया?

१८ यहोवा का आदर करने और शुद्ध उपासना को बढ़ाने के लिए बाइबल के कुछ उदाहरण साहस प्रदान करते हैं। युवा दाऊद, जिसने अपने पिता के भेड़ों को साहसपूर्वक बचाया था, पलिश्‍ती दानव गोलियत के सामने साहसी ठहरा। दाऊद ने कहा, “तू तो तलवार और भाला और सांग लिए हुए मेरे पास आता है; परन्तु मैं सेनाओं के यहोवा के नाम से तेरे पास आता हूं, जो इस्राएली सेना का परमेश्‍वर है, और उसी को तू ने ललकारा है। आज के दिन यहोवा तुझ को मेरे हाथ में कर देगा, और मैं तुझ को मारूंगा, और तेरा सिर तेरे घड़ से अलग करूंगा; . . . तब समस्त पृथ्वी के लोग जान लेंगे कि इस्राएल में एक परमेश्‍वर है। और यह समस्त मण्डली जान लेगी कि यहोवा तलवार वा भाले के द्वारा जयवन्त नहीं करता, इसलिये कि संग्राम तो यहोवा का है।” (१ शमूएल १७:३२-३७, ४५-४७) परमेश्‍वरीय सहायता के साथ, दाऊद ने साहसपूर्वक यहोवा को आदर दिया, गोलियत को मार डाला, और इस प्रकार शुद्ध उपासना के लिए पलिश्‍ती ख़तरे को निकालने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।

१९. सुलैमान को कौनसी परियोजना के लिए साहस की ज़रूरत थी, और उसके तरीक़े को हमारे दिनों में कैसे लागू किया जा सकता है?

१९ जब राजा दाऊद का पुत्र सुलैमान परमेश्‍वर के मंदिर को बनानेवाला था, उसके बूढ़े पिता ने उससे आग्रह किया: “हियाव बान्ध और दृढ़ होकर इस काम में लग जा। मत डर, और तेरा मन कच्चा न हो, क्योंकि यहोवा परमेश्‍वर जो मेरा परमेश्‍वर है, वह तेरे संग है; और जब तक यहोवा के भवन में जितना काम करना हो वह न हो चुके, तब तक वह न तो तुझे धोखा देगा और न तुझे त्यागेगा।” (१ इतिहास २८:२०) साहसी कार्यवाही करते हुए, सुलैमान ने सफ़लातपूर्वक मंदिर का निर्माण पूरा किया। जब एक ईश्‍वरशासित निर्माण कार्यक्रम आज चुनौती प्रस्तुत करता है, तो आइए हम दाऊद के शब्दों को याद करें: “हियाव बान्ध और दृढ़ होकर इस काम में लग जा।” यहोवा का आदर करने और शुद्ध उपासना को बढ़ाने का क्या ही बढ़िया तरीक़ा!

२०. राजा आसा ने कौनसे विषय में हियाव बान्धा?

२० परमेश्‍वर का आदर करने और शुद्ध उपासना को बढ़ाने की राजा आसा की चाह के कारण, उसने यहूदा से मूरतों और मंदिर के पुरुषगामियों को निकाल दिया। उसने अपनी धर्मत्यागी दादी को उसके उच्च पद से उतार दिया, और उसकी “घिनौनी मूरत” को जला दिया। (१ राजा १५:११-१३) जी हाँ, आसा “ने हियाव बान्धकर यहूदा और बिन्यामीन के सारे देश में से, और उन नगरों में से भी जो उस ने एप्रैम के पहाड़ी देश में ले लिये थे, सब घिनौनी वस्तुएं दूर कीं, और यहोवा की जो वेदी यहोवा के ओसारे के साम्हने थी, उसको नये सिरे से बनाया।” (२ इतिहास १५:८) क्या आप भी धर्मत्याग को साहसपूर्वक अस्वीकार करते हैं और शुद्ध उपासना को बढ़ाते हैं? क्या आप अपने भौतिक साधनों को राज्य हितों को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं? और यहोवा के एक गवाह के तौर पर क्या आप सुसमाचार की घोषणा करने में एक नियमित भाग लेने के द्वारा यहोवा का आदर करना चाहते हैं?

२१. (क) किस तरह मसीही-पूर्व ख़राई रखनेवालों के वृत्तांत हमारी मदद कर सकते हैं? (ख) अगले लेख में किस बात पर विचार किया जाएगा?

२१ हम कितने एहसानमंद हैं कि परमेश्‍वर ने मसीही-पूर्व साहसी ख़राई रखनेवालों के विषय में शास्त्रवचनीय वृत्तांतों को सम्भाले रखा है! यक़ीनन, उनके बढ़िया उदाहरण हमें यहोवा को साहस, परमेश्‍वरीय भय, और विस्मय के साथ पवित्र सेवा देने के लिए मदद कर सकते हैं। (इब्रानियों १२:२८) लेकिन मसीही यूनानी शास्त्रों में भी क्रियाशील परमेश्‍वरीय साहस के उदाहरण हैं। किस तरह इन में से कुछेक वृत्तांत हमें यहोवा के मार्गों में साहसपूर्वक चलने के लिए मदद कर सकते हैं?

आप कैसे जवाब देंगे?

साहस क्या है?

हनोक और नूह ने किस तरह साहस प्रदर्शित किया?

इब्राहीम, सारा, और इसहाक ने किन विषयों में साहसपूर्वक कार्य किया?

मूसा, यहोशू, और कालेब द्वारा कौनसे साहसपूर्वक उदाहरण रखे गए?

किस तरह अन्य जनों ने दिखाया कि उनमें परमेश्‍वर पर भरोसा करने का साहस था?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 26 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

गिदोन और उसके योद्धाओं के छोटे झुण्ड ने यहोवा पर साहसपूर्वक भरोसा रखा