साहसी हो जाइए!
साहसी हो जाइए!
‘साहसी होकर कहिए, कि प्रभु, मेरा सहायक है।’—इब्रानियों १३:६, NW.
१. सामान्य युग पहली सदी में परमेश्वर की सच्चाई सीखनेवालों द्वारा कैसी निडरता प्रदर्शित की गयी?
वह हमारे सामान्य युग की पहली सदी थी। काफी अरसे से प्रतीक्षित मसीहा आ गया था। उसने अपने शिष्यों को अच्छी तरह सिखाया था और एक अत्यावश्यक प्रचार कार्य को प्रारम्भ किया था। यह लोगों के लिए परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनने का समय था। इसलिए, जिन पुरुषों और स्त्रियों ने सच्चाई को सीखा उन्होंने निडरता से उस अद्भुत संदेश को घोषित किया।—मत्ती २८:१९, २०.
२. यहोवा के गवाहों को आज साहस की ज़रूरत क्यों है?
२ उन दिनों राज्य स्थापित नहीं हुआ था। लेकिन राजा-पदनामित, यीशु मसीह ने राज्य अधिकार में अपनी भावी अदृश्य उपस्थिति के बारे में भविष्यवाणी की थी। अतुलनीय युद्ध, अकाल, मरियाँ, भूकम्प, और सुसमाचार के विश्वव्यापी प्रचार जैसी बातों से यह चिह्नित होती। (मत्ती २४:३-१४; लूका २१:१०, ११) यहोवा के गवाहों के तौर पर, इन हालातों से और हमारे द्वारा अनुभव की जा रही सताहट का सामना करने के लिए हमें साहस की ज़रूरत है। इसलिए सामान्य युग पहली सदी के साहसी राज्य उद्घोषकों के बाइबल वृत्तांतों के बारे में विचार करना लाभदायक होगा।
मसीह का अनुकरण करने के लिए साहस
३. कौन साहस का सर्वोत्तम उदाहरण प्रदान करता है, और इब्रानियों १२:१-३ में उसके बारे में क्या कहा गया?
३ यीशु मसीह साहस का सर्वोत्तम उदाहरण प्रदान करता है। यहोवा के साहसी मसीही-पूर्व गवाहों के ‘बड़े बादल’ का ज़िक्र करने के बाद, यह कहकर प्रेरित पौलुस ने यीशु पर ध्यान केंद्रित किया: “जब कि गवाहों का ऐसा बड़ा बादल हम को घेरे हुए है, तो आओ, हर एक रोकनेवाली वस्तु, और उलझानेवाले पाप को दूर करके, वह दौड़ जिस में हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़ें। और विश्वास के कर्त्ता और सिद्ध करनेवाले यीशु की ओर ताकते रहें; जिस ने उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्जा की कुछ चिन्ता न करके, क्रूस [यातना स्तंभ, NW] का दुख सहा; और सिंहासन पर परमेश्वर के दहिने जा बैठा। इसलिये उस पर ध्यान करो, जिस ने अपने विरोध में पापियों का इतना वाद-विवाद सह लिया, कि तुम निराश होकर हियाव न छोड़ दो।”—इब्रानियों १२:१-३.
४. शैतान द्वारा प्रलोभित किए जाने पर किस तरह यीशु ने साहस प्रदर्शित किया?
४ अपना बपतिस्मा और विराने में ४० दिन के मनन, प्रार्थना, और उपवास के बाद, यीशु ने निडरता से शैतान का विरोध किया। पत्थर को रोटी बनाने के लिए शैतान द्वारा प्रलोभित किए जाने पर, यीशु ने इनकार किया क्योंकि व्यक्तिगत अभिलाषा को पूरी करने के लिए चमत्कार करना ग़लत था। यीशु ने कहा, “लिखा है कि मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा।” जब शैतान ने उसे मंदिर के कंगूरे पर से नीचे गिरने की चुनौती दी, यीशु ने इनकार किया क्योंकि संभावित आत्महत्या से उसे बचाने के लिए परमेश्वर की परीक्षा लेना पाप होता। मसीह ने कहा, “यह भी लिखा है, कि तू प्रभु अपने परमेश्वर की परीक्षा न कर।” उसे शैतान ने एक “उपासना के कार्य” (NW) के लिए सारे जगत के राज्य देने का प्रस्ताव रखा, लेकिन यीशु धर्मत्याग करके शैतान की चुनौती का समर्थन नहीं करता कि परीक्षा के अधीन इंसान परमेश्वर के प्रति वफ़ादार नहीं रहेंगे। अतः यीशु ने घोषित किया: “हे शैतान दूर हो जा, क्योंकि लिखा है, कि तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर।” इस पर, परखनेवाला “कुछ समय के लिये उसके पास से चला गया।”—मत्ती ४:१-११; लूका ४:१३.
५. प्रलोभन का मुकाबला करने के लिए क्या बात हमारी मदद कर सकती है?
५ यीशु यहोवा के अधीन था और शैतान के विरोध में था। अगर हम समान रूप से ‘परमेश्वर के आधीन होते हैं और शैतान का साम्हना करते हैं, तो वह हमारे पास से भाग निकलेगा।’ (याकूब ४:७) यीशु की तरह, हम प्रलोभन का साहसपूर्वक मुकाबला कर सकते हैं अगर हम शास्त्रवचनों को अमल में लाएँ, शायद उस समय इन्हें उद्धृत भी करना पड़े जब हम कोई पापमय कार्य करने के लिए प्रलोभित होते हैं। क्या यह संभाव्य है कि हम चोरी करने के प्रलोभन के सामने झुक जाएँ अगर हम उस समय अपने आप से परमेश्वर का नियम दोहराएँ: “चोरी न करना”? क्या यह संभव है कि दो मसीही लैंगिक अनैतिकता करने के शिकार बने अगर उन में से एक जन इन शब्दों को साहसपूर्वक कहे: “व्यभिचार न करना”?—रोमियों १३:८-१०; निर्गमन २०:१४, १५.
६. किस तरह यीशु एक साहसी विश्व विजेता था?
६ इस संसार द्वारा घृणा किए जानेवाले मसीहियों के तौर पर, हम इसकी आत्मा और पापमय आचरण से बचे रह सकते हैं। यीशु ने अपने अनुयायियों से कहा: “संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है।” (यूहन्ना १६:३३) इस संसार की तरह नहीं बनने के द्वारा उसने संसार पर जीत हासिल की। एक विजेता के तौर पर उसका उदाहरण और उसके ख़राई रखनेवाले मार्ग का परिणाम हमें इस संसार से अलग रहने और उससे अदूषित रहने के द्वारा उसका अनुकरण करने के लिए साहस से भर सकता है।—यूहन्ना १७:१६.
प्रचार करते रहने के लिए साहस
७, ८. सताहट के बावजूद प्रचार करते रहने के लिए क्या चीज़ हमारी मदद करेगी?
७ सताहट के बावजूद प्रचार करते रहने के लिए यीशु और उसके शिष्य साहस के लिए परमेश्वर पर निर्भर थे। सताहट के बावजूद यीशु ने अपनी सेवकाई निडरतापूर्वक पूरी की, और पिन्तेकुस्त सा.यु. ३३ के बाद, उसके सताए गए अनुयायी सुसमाचार की घोषणा करते रहे हालाँकि यहूदी धार्मिक नेताओं ने उन्हें रोकने की कोशिश की। (प्रेरितों ४:१८-२०; ५:२९) शिष्यों ने प्रार्थना की: “हे प्रभु, उन की धमकियों को देख; और अपने दासों को यह बरदान दे, कि तेरा वचन बड़े हियाव से सुनाएं।” और क्या हुआ? वृत्तांत कहता है, “जब वे प्रार्थना कर चुके, तो वह स्थान जहां वे इकट्ठे थे हिल गया, और वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गए, और परमेश्वर का वचन हियाव से सुनाते रहे।”—प्रेरितों ४:२४-३१.
८ चूँकि आज अधिकांश लोग सुसमाचार के प्रति ग्रहणशील नहीं हैं, उन्हें प्रचार करते रहने के लिए निडरता की अक़सर ज़रूरत होती है। ख़ास तौर पर सताए जाने के समय यहोवा के सेवकों को पक्की गवाही देने के वास्ते परमेश्वर-प्रदत्त साहस की ज़रूरत है। (प्रेरितों २:४०; २०:२४) इसलिए राज्य के साहसी उद्घोषक पौलुस ने युवा, कम-अनुभवी सहकर्मी को कहा: “परमेश्वर ने हमें भय की नहीं पर सामर्थ, और प्रेम, और संयम की आत्मा दी है। इसलिये हमारे प्रभु की गवाही से, और मुझ से जो उसका कैदी हूं, लज्जित न हो, पर उस परमेश्वर की सामर्थ के अनुसार सुसमाचार के लिये मेरे साथ दुख उठा।” (२ तीमुथियुस १:७, ८) अगर हम साहस के लिए प्रार्थना करें, हम प्रचार करते रह सकेंगे, और राज्य उद्घोषक के तौर पर हमारे हर्ष को सताहट भी हम से छीन नहीं सकती।—मत्ती ५:१०-१२.
यहोवा के पक्ष में रहने के लिए साहस
९, १०. (क) मसीह के बपतिस्मा-प्राप्त अनुयायी बनने के लिए पहली-सदी के यहूदी और अन्यजाति के लोगों ने क्या किया? (ख) मसीही बनने के लिए साहस क्यों लगता था?
९ मसीह के बपतिस्मा-प्राप्त अनुयायी बनने के लिए पहली-सदी के अनेक यहूदी और अन्यजाति के लोगों ने ग़ैर-शास्त्रवचनीय परम्पराओं को साहसपूर्वक त्यागा। सामान्य युग ३३ के पिन्तेकुस्त के तुरन्त बाद, “यरूशलेम में चेलों की गिनती बहुत बढ़ती गई; और याजकों का एक बड़ा समाज इस मत के आधीन हो गया।” (प्रेरितों ६:७) उन यहूदियों में धार्मिक बंधन तोड़ने और यीशु को मसीहा के तौर पर स्वीकार करने का साहस था।
१० सामान्य युग ३६ में शुरू होते हुए, अनेक अन्यजाति के लोग विश्वास करनेवाले बन गए। जब कुरनेलियुस, उसके परिवार के सदस्य, और अन्य अन्यजाति के लोगों ने सुसमाचार को सुना, उन्होंने तुरन्त इसे स्वीकार किया, पवित्र आत्मा प्राप्त की, और “यीशु मसीह के नाम में बपतिस्मा” लिया। (प्रेरितों १०:१-४८) फिलिप्पी में एक अन्यजाति का दारोगा और उसके घराने ने शीघ्रता से मसीहियत को स्वीकार किया और “उस ने अपने सब लोगों समेत तुरन्त बपतिस्मा लिया।” (प्रेरितों १६:२५-३४) ऐसे क़दम उठाने के लिए साहस की ज़रूरत थी क्योंकि मसीही लोग सताए गए, अलोकप्रिय, अल्पसंख्यक लोग थे। वे अभी भी ऐसे ही हैं। लेकिन अगर आपने परमेश्वर को समर्पण नहीं किया है और यहोवा के एक गवाह के तौर पर बपतिस्मा नहीं लिया है, तो क्या यह आपके लिए ऐसे साहसी क़दम उठाने का समय नहीं है?
विभाजित घरानों में साहस
११. यूनीके और तीमुथियुस ने साहस के कौनसे बढ़िया उदाहरणों को प्रदान किया?
११ यूनीके और उसके पुत्र तीमुथियुस ने धार्मिक रूप से विभाजित घराने में साहसी विश्वास के बढ़िया उदाहरणों को रखा। हालाँकि यूनीके का पति मूर्तिपूजक था, उसने अपने पुत्र को उसके बालकपन से “पवित्र शास्त्र” सिखाया। (२ तीमुथियुस ३:१४-१७) मसीही बनने पर, यूनीके ने “निष्कपट विश्वास” ज़ाहिर किया। (२ तीमुथियुस १:५) अपने अविश्वासी पति के मुखियापन के लिए आदर दिखाते हुए उसमें तीमुथियुस को मसीही शिक्षा प्रदान करने का साहस भी था। यक़ीनन, उसके विश्वास और साहस को प्रतिफल मिला जब उसके सुशिक्षित पुत्र को मिशनरी यात्राओं पर पौलुस के साथ जाने के लिए चुना गया। ख़ुद को समान हालातों में पानेवाले मसीही माता-पिताओं के लिए यह क्या ही प्रोत्साहन देता है!
१२. तीमुथियुस किस तरह का व्यक्ति बना, और अब कौन उसकी तरह होने का प्रमाण दे रहे हैं?
१२ हालाँकि तीमुथियुस एक धार्मिक रूप से विभाजित घराने में रहा, उसने मसीहियत को साहसपूर्वक स्वीकार किया और एक आध्यात्मिक व्यक्ति बन गया, जिसके बारे में पौलुस कह सका: “मुझे प्रभु यीशु में आशा है, कि मैं तीमुथियुस को तुम्हारे [फिलिप्पियों] पास तुरन्त भेजूंगा, ताकि तुम्हारी दशा सुनकर मुझे शान्ति मिले। क्योंकि मेरे पास ऐसे स्वभाव का कोई नहीं, जो शुद्ध मन से तुम्हारी चिन्ता करे। . . . पर उसको तो तुम ने परखा और जान भी लिया है [उसने अपनी योग्यता का प्रमाण दिया है, NW], कि जैसा पुत्र पिता के साथ करता है, वैसा ही उस ने सुसमाचार के फैलाने में मेरे साथ परिश्रम किया।” (फिलिप्पियों २:१९-२२, NW) आज, धार्मिक रूप से विभाजित घरों में अनेक लड़के-लड़कियाँ बहादुरी से सच्चे मसीहियत को स्वीकार करते हैं। तीमुथियुस की तरह वे अपनी योग्यता का प्रमाण दे रहे हैं, और हम क्या ही आनन्द मनाते हैं कि वे यहोवा के संगठन का भाग हैं!
‘जीवन जोखिम में डालने’ के लिए साहस
१३. किस तरह अक्विला और प्रिस्किल्ला ने साहस प्रदर्शित किया?
१३ अक्विला और उसकी पत्नी, प्रिस्किल्ला (प्रिसका), ने एक संगी विश्वासी के लिए साहसपूर्वक ‘अपना जीवन जोखिम में डालकर’ एक उदाहरण रखा। उन्होंने पौलुस को अपने घर में आमंत्रित किया, उसके साथ तम्बू बनाने के कार्य में काम किया, और कुरिन्थुस में नई कलीसिया के निर्माण में उसकी सहायता की। (प्रेरितों १८:१-४) उनकी १५-साल की दोस्ती के दौरान, उन्होंने पौलुस की ख़ातिर एक अप्रकट तरीक़े से अपनी जान को भी आफ़त में डाला। वे रोम में रहते थे जब पौलुस ने वहाँ के मसीहियों को कहा: “प्रिसका और अक्विला को जो यीशु में मेरे सहकर्मी हैं, मेरा नमस्कार। उन्हों ने मेरे प्राण की रक्षा के लिये अपना जीवन जोखिम में डाला था और केवल मैं ही नहीं, वरन् अन्याजातियों की सारी कलीसियाएँ भी उन का धन्यवाद करती हैं।”—रोमियों १६:३, ४, NW.
१४. पौलुस के लिए अपना जीवन जोखिम में डालकर, अक्विला और प्रिसका किस आज्ञा के सामंजस्य में कार्य कर रहे थे?
१४ पौलुस के लिए अपना जीवन जोखिम में डालकर, अक्विला और प्रिसका ने यीशु के शब्दों के अनुसार कार्य किया: “मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं, कि एक दूसरे से प्रेम रखो: जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो।” (यूहन्ना १३:३४) इस बात में यह आज्ञा “नई” थी कि यह आज्ञा एक व्यक्ति को अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखने के मूसा के नियम की माँग से भी ज़्यादा की माँग करती थी। (लैव्यव्यवस्था १९:१८) इस आज्ञा ने आत्म-बलिदानी प्रेम की माँग की जो दूसरों के लिए अपना जीवन देने की हद तक जाता, जैसे यीशु ने किया। सामान्य युग दूसरी और तीसरी सदी का लेखक टर्टूलियन ने मसीहियों के विषय में सांसारिक लोगों के शब्दों को उद्धृत किया जब उसने लिखा: “‘देखो,’ वे कहते हैं, ‘किस तरह मसीही लोग एक दूसरे से प्रेम करते हैं . . . और किस तरह वे एक दूसरे की ख़ातिर मरने के लिए भी तैयार हैं।’” [अपॉलोजि, अध्याय ३९, ७] ऐसा हो कि ख़ास तौर पर सताहट के समय, दुश्मनों के हाथों अपने संगी विश्वासियों को क्रूरता या मृत्यु के ख़तरे में पड़ने से बचने के लिए हम साहसपूर्वक अपने जीवन को जोखिम में डालकर भाईचारे का प्रेम प्रदर्शित करने के लिए बाध्यकारी हों।—१ यूहन्ना ३:१६.
साहस हर्ष लाता है
१५, १६. जैसे प्रेरितों अध्याय १६ में दिखाया गया है, किस तरह साहस और हर्ष जोड़ा जा सकता है?
१५ पौलुस और सीलास सबूत प्रदान करते हैं कि परीक्षाओं के समय साहस प्रदर्शित करना हर्ष ला सकता है। फिलिप्पी शहर में न्यायाधीशों की आज्ञा पर, उन्हें सरेआम बेत मारा गया और बन्दीगृह के काठ में ठोंक दिया गया। फिर भी, वे डर के कारण उदासीनता में नहीं डूब गए। उनके कष्टकर हालातों के बावजूद, उनके पास तब भी परमेश्वर-प्रदत्त साहस था और वह हर्ष था जो साहस विश्वासी मसीहियों में लाता है।
१६ आधी रात को, पौलुस और सीलास प्रार्थना कर रहे थे और परमेश्वर की स्तुति गा रहे थे। एकाएक, एक भुईंडोल से बन्दीगृह हिल गया, जिससे उन के बन्धन खुल पड़े, और सब द्वार खुल गए। डरे हुए दारोगा और उसके परिवार को एक निडर गवाही दी गयी जिससे यहोवा के सेवकों के तौर पर उनका बपतिस्मा हुआ। उस दारोगा ने ख़ुद अपने “सारे घराने समेत परमेश्वर पर विश्वास करके आनन्द किया।” (प्रेरितों १६:१६-३४) इससे पौलुस और सीलास को क्या ही आनन्द मिला होगा! साहस के इस और अन्य शास्त्रवचनीय उदाहरणों पर ग़ौर करने पर, हम यहोवा के सेवकों के तौर पर कैसे साहसी रह सकते हैं?
साहसी रहिए
१७. जैसे भजन २७ में दिखाया गया है, किस तरह यहोवा की बाट जोहना साहस से संबंधित है?
१७ यहोवा की बाट जोहना साहसी रहने के लिए हमारी मदद करेगा। दाऊद ने गाया: “यहोवा की बाट जोहता रह; हियाव बान्ध और तेरा हृदय दृढ़ रहे; हां, यहोवा ही की बाट जोहता रह!” (भजन २७:१४) भजन २७ दिखाता है कि दाऊद अपने जीवन के “दृढ़ गढ़” के तौर पर यहोवा पर निर्भर था। (आयत १) यह देखते हुए कि किस तरह परमेश्वर अतीत में दाऊद के विरोधियों से निपटा, उसे साहस मिला। (आयत २, ३) यहोवा की उपासना के केंद्र के लिए क़दरदानी एक और तत्त्व था। (आयत ४) यहोवा की मदद, रक्षा, और उद्धार में भरोसा करने से भी दाऊद का साहस बढ़ गया। (आयत ५-१०) यहोवा के धर्मी मार्ग के सिद्धांतों में लगातार शिक्षण भी सहायक था। (आयत ११) विश्वास और आशा के साथ, अपने विरोधियों से बचाव के लिए विश्वस्त प्रार्थना ने, साहसी होने के लिए दाऊद की मदद की। (आयत १२-१४) हम अपने साहस को समान तरीक़ों से बढ़ा सकते हैं, और इस प्रकार दिखाते हैं कि हम सचमुच ‘यहोवा की बाट जोहते’ हैं।
१८. (क) क्या दिखाता है कि यहोवा के संगी उपासकों के साथ नियमित संगति साहसी रहने में हमारी मदद कर सकती है? (ख) मसीही सभाएँ साहस बढ़ाने में कौनसी भूमिका अदा करती हैं?
१८ यहोवा के संगी उपासकों के साथ नियमित संगति साहसी रहने के लिए हमारी मदद कर सकती है। जब पौलुस ने कैसर को अपील की और रोम जा रहा था, संगी विश्वासी उसे अप्पियुस के चौक और तीन-सराए पर मिले। वृत्तांत कहता है, उन्हें “देखकर पौलुस ने परमेश्वर का धन्यवाद किया, और ढाढ़स बान्धा।” (प्रेरितों २८:१५) जैसे-जैसे हम नियमित रूप से मसीही सभाओं में उपस्थित होते हैं, हम पौलुस की सलाह का पालन कर रहे हैं: “प्रेम, और भले कामों में उस्काने के लिये एक दूसरे की चिन्ता किया करें। और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसे कि कितनों की रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहें [प्रोत्साहन दें, NW]; और ज्यों ज्यों उस दिन को निकट आते देखो, त्यों त्यों और भी अधिक यह किया करो।” (इब्रानियों १०:२४, २५) एक दूसरे को प्रोत्साहन देने का मतलब क्या है? प्रोत्साहन का मतलब है “साहस, जोश, या आशा के साथ प्रेरित करना।” (वेबस्टरस् नाइंथ न्यू कॉलीजियेट डिक्शनरि) साहस के साथ अन्य मसीहियों को प्रेरित करने के लिए हम काफी कुछ कर सकते हैं, और उसी तरह उनका प्रोत्साहन हम में यह गुण बढ़ा सकता है।
१९. कैसे शास्त्रवचन और मसीही प्रकाशन हमारे साहसी रहने से संबंधित हैं?
१९ साहसी रहने के लिए, हम को परमेश्वर के वचन को नियमित रूप से पढ़ना और अपने जीवन में इसकी सलाह को अमल में लाना है। (व्यवस्थाविवरण ३१:९-१२; यहोशू १:८) हमारे नियमित अध्ययन में शास्त्रवचनों पर आधारित मसीही प्रकाशन शामिल होने चाहिए, क्योंकि इस प्रकार प्रदान की गयी ठोस सलाह परमेश्वर-प्रदत्त साहस के साथ विश्वास की परीक्षाओं का सामना करने में हमारी मदद करेगी। बाइबल वृत्तांतों से, हम ने देखा है कि किस तरह यहोवा के सेवक विभिन्न स्थितियों में साहसी रहे हैं। अभी, हम शायद यह नहीं जानते हों कि कैसे यह जानकारी हमारी मदद कर सकती है, लेकिन परमेश्वर का वचन प्रबल है, और उससे सीखी हुई बातें हमेशा हमारे लाभ के लिए हो सकती हैं। (इब्रानियों ४:१२) उदाहरण के लिए, अगर मनुष्य के डर से हमारी सेवकाई पर असर पड़ने लगे, हम याद कर सकते हैं कि कैसे भक्तिहीन लोगों तक परमेश्वर का संदेश पहुँचाने के लिए हनोक के पास साहस था।—यहूदा १४, १५.
२०. यह क्यों कहा जा सकता है कि यहोवा के सेवकों के तौर पर साहसी रहने के लिए प्रार्थना अत्यावश्यक है?
२० यहोवा के सेवकों के तौर पर साहसी रहने के लिए, हमें प्रार्थना में लगे रहना है। (रोमियों १२:१२) यीशु ने अपनी परीक्षाओं को साहसपूर्वक सहा क्योंकि उसने “ऊंचे शब्द से पुकार पुकारकर, और आंसू बहा बहाकर उस से जो उस को मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थनाएं और बिनती की और भक्ति के कारण उस की सुनी गई।” (इब्रानियों ५:७) प्रार्थना में परमेश्वर के क़रीब रहने के द्वारा, हम सांसारिक डरपोकों की तरह नहीं होंगे जो “दूसरी मृत्यु” का अनुभव करने के लिए नियत हैं, जिस में से कोई पुनरुत्थान नहीं है। (प्रकाशितवाक्य २१:८) ईश्वरीय रक्षा और परमेश्वर के नए संसार में जीवन उसके साहसी सेवकों के लिए है।
२१. यहोवा के निष्ठावान् गवाह क्यों साहसी हो सकते हैं?
२१ यहोवा के निष्ठावान् गवाहों के तौर पर, हमें पिशाच और मानवी शत्रुओं से डरने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि हमारे पास परमेश्वर का समर्थन और विश्व विजेता के तौर पर यीशु का साहसी उदाहरण है। इसी तरह यहोवा के लोगों के साथ आध्यात्मिक रूप से प्रोत्साहक संगति साहसी होने में हमारी मदद करती है। शास्त्रवचन और मसीही प्रकाशनों के मार्गदर्शन और सलाह के ज़रिये भी हमारा साहस बढ़ता है। परमेश्वर के अतीत काल के सेवकों के बाइबल वृत्तांत हमें उसके मार्गों में साहसपूर्वक चलने के लिए मदद करते हैं। इसलिए, इन कठिन अन्तिम दिनों में, आइए हम पवित्र सेवा में निडरतापूर्वक तेज़ी से आगे बढ़ें। जी हाँ, यहोवा के सभी लोग साहसी हों!
आप कैसे जवाब देंगे?
▫ किस तरह यीशु का उदाहरण हमें साहस से भर सकता है?
▫ यीशु और उसके शिष्यों को प्रचार करते रहने के लिए किस बात ने साहस दिया?
▫ यहोवा के पक्ष में रहने के लिए यहूदियों और अन्यजाति के लोगों को साहस की ज़रूरत क्यों थी?
▫ यूनीके और तीमुथियुस द्वारा साहस के कौनसे उदाहरण प्रदान किए गए?
▫ सताहट के समय भी साहस हर्ष लाता है, इस बात का क्या सबूत है?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 28 पर बक्स]
यीशु की तरह, हम प्रलोभन का मुक़ाबला कर सकते हैं अगर हम शास्त्रवचनों को अमल में लाएँ और उन्हें उद्धृत करें