विश्वास ने उसे कार्य करने के लिए प्रेरित किया
विश्वास ने उसे कार्य करने के लिए प्रेरित किया
जब यहोवा ने मूसा को इस्राएल की जाति को मिस्र की दासता से बाहर निकालने में अगुवाई लेने को नियुक्त किया, तब मूसा ने पहले तो यह कहते हुए माफ़ी माँगी: “हे मेरे प्रभु, मैं बोलने में निपुण नहीं, न तो पहिले था, और न जब से तू अपने दास से बातें करने लगा; मैं तो मुंह और जीभ का भद्दा हूं।” (निर्गमन ४:१०) जी हाँ, मूसा ने एक ऐसी भारी कार्य-नियुक्ति के लिए ख़ुद को अयोग्य महसूस किया।
उसी तरह आज भी, यहोवा के अनेक सेवक कभी-कभी उन्हें नियुक्त किए गए कार्यों को पूरा करने के लिए अयोग्य महसूस करते हैं। उदाहरण के लिए, थीयोडोर नामक एक मसीही ओवरसियर कहता है: “यहोवा मुझसे जो कुछ करने के लिए कहता है उन सब बातों में क्षेत्र सेवकाई सबसे मुश्किल है। जब मैं जवान था, तो मैं जल्दी से दरवाज़े पर जाता, घंटी बजाने का ढोंग करता, और चुपचाप चला जाता, इस आशा के साथ कि किसी ने भी मुझे न सुना या न देखा। जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ, मैंने ऐसा करना छोड़ दिया, लेकिन दर-दर जाने का विचार ही मुझे शारीरिक रूप से बीमार कर देता था। आज तक, मैं क्षेत्र में जाने से पहले परेशान हो जाता हूँ, लेकिन फिर भी मैं चला जाता हूँ।”
ऐसी कौन-सी बात है जिसने मूसा को और थीयोडोर जैसे आधुनिक-दिन साक्षियों को ऐसे डर का सामना करने में समर्थ किया? बाइबल उत्तर देती है: “विश्वास ही से . . . उस ने [मूसा ने] मिसर को छोड़ दिया, क्योंकि वह अनदेखे को मानो देखता हुआ दृढ़ रहा।”—इब्रानियों ११:२७.
वाक़ई, यहोवा में विश्वास रखने के द्वारा ही मूसा अयोग्यता की अपनी भावनाओं पर क़ाबू पा सका और न्यायी, भविष्यवक्ता, जातीय नेता, व्यवस्था वाचा के मध्यस्थ, सेनापति, इतिहासकार, और बाइबल लेखक के अपने नियुक्त कार्यों को पूरा कर सका।
उसी तरह, जब हमारे पास मूसा के समान विश्वास होगा, हम ‘अनदेखे को मानो देखते हुए’ चलेंगे। ऐसा विश्वास साहस जगाता है, और अपनी मसीही ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के लिए हमें समर्थ करता है—तब भी जब हम शायद अयोग्य महसूस करें।