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सनातन राजा की स्तुति कीजिए!

सनातन राजा की स्तुति कीजिए!

सनातन राजा की स्तुति कीजिए!

“यहोवा सदा सर्वदा के लिए महाराजा है।”—भजन १०:१६, NHT.

१. सनातनता के संबंध में कौन-से सवाल उठते हैं?

 सनातनता—आप इसका अर्थ क्या बताएँगे? क्या आप सोचते हैं कि समय वास्तव में हमेशा के लिए चल सकता था? इस विषय में कोई सवाल नहीं उठता कि समय अतीत में अन्तहीन है। सो भविष्य में अन्तहीन क्यों नहीं? वास्तव में, बाइबल का नया संसार अनुवाद (अंग्रेज़ी) “अनिश्‍चित काल से अनिश्‍चित काल तक” परमेश्‍वर की स्तुति किए जाने का ज़िक्र करता है। (भजन ४१:१३) इस अभिव्यक्‍ति का क्या अर्थ है? इसे समझने में हमें मदद मिल सकती है यदि हम एक संबंधित विषय पर ध्यान दें—अंतरिक्ष।

२, ३. (क) अंतरिक्ष के बारे में ऐसी कौन-सी बात है जो हमें सनातनता का मूल्यांकन करने में मदद देती है? (ख) सनातन राजा की उपासना करने की हमारी इच्छा क्यों होनी चाहिए?

अंतरिक्ष कितना विस्तृत है? क्या उसकी कोई सीमा है? अब से ४०० साल पहले तक, हमारी पृथ्वी को विश्‍व-मंडल का केंद्र समझा जाता था। फिर गॆलीलियो ने टॆलीस्कोप का विकास किया जिसने आसमान का एक बहुत ही विस्तृत नज़ारा प्रदान किया। अब गॆलीलियो और भी ज़्यादा तारे देख सका और यह दिखा सका कि पृथ्वी और अन्य ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। दुग्ध-मेखला अब उतनी दूधिया नहीं दिख रही थी। यह तारों की एक मंदाकिनी साबित हुई, जिनकी गिनती क़रीब सौ अरब थी। हम कभी इतने सारे वास्तविक तारे नहीं गिन पाते, एक जीवनकाल में भी नहीं। बाद में, खगोलशास्त्रियों ने करोड़ो मंदाकिनियों का पता लगाया। वे अंतरिक्ष में दूर-दूर तक फैली हुई हैं, जितनी दूर तक सबसे शक्‍तिशाली टॆलीस्कोप देख सकता है। ऐसा लगता है कि अंतरिक्ष की कोई सीमाएँ नहीं हैं। यही सनातनता के बारे में भी सच है—उसकी कोई सीमाएँ नहीं हैं।

सनातनता का विचार हमारे सीमित मानवी मस्तिष्क की समझ से परे प्रतीत होता है। लेकिन, एक ऐसा व्यक्‍ति है जो उसे पूरी तरह समझता है। वह हज़ारों-करोड़ों तारों को उनकी अरबों मंदाकिनियों में गिन सकता है, और हाँ उनको नाम लेकर भी बुला सकता है! वह व्यक्‍ति कहता है: “अपनी आंखें ऊपर उठाकर देखो, किस ने इनको सिरजा? वह इन गणों को गिन गिनकर निकालता, उन सब को नाम ले लेकर बुलाता है? वह ऐसा सामर्थी और अत्यन्त बली है कि उन में से कोई बिना आए नहीं रहता। क्या तुम नहीं जानते? क्या तुम ने नहीं सुना? यहोवा जो सनातन परमेश्‍वर और पृथ्वी भर का सिरजनहार है, वह न थकता, न श्रमित होता है, उसकी बुद्धि अगम है।” (यशायाह ४०:२६, २८) क्या ही अद्‌भुत परमेश्‍वर! निश्‍चय ही, वही परमेश्‍वर है जिसकी उपासना करने की हमारी इच्छा होनी चाहिए!

“सदा सर्वदा के लिए महाराजा”

४. (क) दाऊद ने सनातन राजा के लिए मूल्यांकन कैसे व्यक्‍त किया? (ख) इतिहास के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों में से एक वैज्ञानिक ने विश्‍व-मंडल के उद्‌गम के बारे में क्या निष्कर्ष निकाला?

भजन १०:१६ (NHT) में, दाऊद सृजनहार, परमेश्‍वर के बारे में कहता है: “यहोवा सदा सर्वदा के लिए महाराजा है।” और भजन २९:१० में वह दोहराता है: “यहोवा सर्वदा के लिये राजा होकर विराजमान रहता है।” जी हाँ, यहोवा सनातन राजा है! इसके अलावा, दाऊद प्रमाण देता है कि यही महान राजा अंतरिक्ष में हम जो कुछ देखते हैं उसका अभिकल्पक और रचयिता है, और भजन १९:१ में वह कहता है: “आकाश ईश्‍वर की महिमा वर्णन कर रहा है; और आकाशमण्डल उसकी हस्तकला को प्रगट कर रहा है।” क़रीब २,७०० साल बाद, विख्यात वैज्ञानिक सर आइज़क न्यूटन ने यह लिखते हुए दाऊद के साथ सहमति व्यक्‍त की: “सूर्यों, ग्रहों, और धूमकेतुओं की यह अति मनोहर व्यवस्था एक प्रबुद्ध और सामर्थी व्यक्‍ति के उद्देश्‍य और सर्वसत्ता से ही उत्पन्‍न हो सकती थी।”

५. यशायाह और पौलुस ने बुद्धि के स्रोत के बारे में क्या लिखा?

यह जानकर हमें कितना नम्र होना चाहिए कि सर्वसत्ताधारी प्रभु यहोवा, जो विस्तृत “स्वर्ग में वरन सब से ऊंचे स्वर्ग में भी . . . नहीं समाता,” अनन्तकाल तक जीता है! (१ राजा ८:२७) यहोवा, जिसका वर्णन यशायाह ४५:१८ में ‘आकाश के सृजनहार’ के तौर पर किया गया है, जिसने “पृथ्वी को रचा और बनाया,” वही ऐसी बुद्धि का स्रोत है जो नश्‍वर मनुष्यों के मस्तिष्क के अंदाजा लगाने से कहीं ज़्यादा विस्तृत है। जैसे १ कुरिन्थियों १:१९ में विशिष्ट किया गया है, यहोवा ने कहा: “मैं ज्ञानवानों के ज्ञान को नाश करूंगा, और समझदारों की समझ को तुच्छ कर दूंगा।” इस विषय में प्रेरित पौलुस ने आगे आयत २० में जोड़ा: “कहां रहा ज्ञानवान? कहां रहा शास्त्री? कहां इस संसार का विवादी? क्या परमेश्‍वर ने संसार के ज्ञान को मूर्खता नहीं ठहराया?” जी हाँ, जैसे पौलुस ने आगे अध्याय ३, आयत १९ में कहा, “इस संसार का ज्ञान परमेश्‍वर के निकट मूर्खता है।”

६. “अनन्तता” के बारे में सभोपदेशक ३:११ क्या सूचित करता है?

खगोलीय पिंड उस सृष्टि का भाग हैं जिसका ज़िक्र राजा सुलैमान ने किया: “[परमेश्‍वर] ने प्रत्येक वस्तु को अपने समय के लिए उपयुक्‍त बनाया है। उसने उनके मनों में अनन्तता का ज्ञान भी उत्पन्‍न किया है, फिर भी वे उन कामों को समझ नहीं सकते जो परमेश्‍वर ने आदि से अन्त तक किए हैं।” (सभोपदेशक ३:११, NHT) वास्तव में, यह मनुष्य के मन में डाला गया है कि वह “अनन्तता” अर्थात्‌, सनातनता के अर्थ का पता लगाने की कोशिश करे। परन्तु क्या वह कभी ऐसा ज्ञान प्राप्त कर सकता है?

जीवन की अद्‌भुत प्रत्याशा

७, ८. (क)मनुष्यजाति के लिए जीवन की कौन-सी अद्‌भुत प्रत्याशा भविष्य में रखी है, और उसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है? (ख) हमें क्यों हर्षित होना चाहिए कि ईश्‍वरीय शिक्षा संपूर्ण सनातनता तक जारी रहेगी?

यीशु मसीह ने यहोवा को अपनी प्रार्थना में कहा: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।” (यूहन्‍ना १७:३) हम ऐसा ज्ञान कैसे प्राप्त कर सकते हैं? हमें परमेश्‍वर के वचन, पवित्र बाइबल का अध्ययन करने की ज़रूरत है। इस प्रकार हम परमेश्‍वर के महान उद्देश्‍यों के बारे में यथार्थ ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं, जिसमें एक परादीस पृथ्वी पर अनन्त जीवन के लिए उसके पुत्र द्वारा किया गया प्रबंध भी शामिल है। वह “सत्य जीवन” होगा जिसका ज़िक्र १ तीमुथियुस ६:१९ में किया गया है। यह उस बात के सामंजस्य में होगा जिसका वर्णन इफिसियों ३:११ (NHT) में इस तरह किया गया है: ‘अनन्त अभिप्राय जो परमेश्‍वर ने यीशु मसीह हमारे प्रभु में पूरा किया।’

जी हाँ, हम पापी मनुष्य ईश्‍वरीय शिक्षा और यीशु के छुड़ौती बलिदान पर विश्‍वास से अनन्त जीवन प्राप्त कर सकते हैं। यह शिक्षा कब तक जारी रहेगी? यह अनन्तकाल तक चलेगी जैसे-जैसे मनुष्यजाति को हमारे सृष्टिकर्ता की बुद्धि में क्रमिक रूप से प्रशिक्षित किया जाता है। यहोवा की बुद्धि की कोई सीमाएँ नहीं हैं। इस बात को समझते हुए, प्रेरित पौलुस ने कहा: “आहा! परमेश्‍वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गंभीर है! उसके विचार कैसे अथाह, और उसके मार्ग कैसे अगम हैं!” (रोमियों ११:३३) यह वास्तव में उपयुक्‍त है कि १ तीमुथियुस १:१७ यहोवा को “सनातन राजा” कहता है!

यहोवा की सृजनात्मक बुद्धि

९, १०. (क) मनुष्यजाति के लिए अपनी भेंट के रूप में पृथ्वी को तैयार करने में यहोवा ने कौन-से महान कार्य पूरे किए? (ख) यहोवा की उत्कृष्ट बुद्धि उसकी सृष्टि में कैसे दिखायी देती है? (बक्स देखिए।)

उस अद्‌भुत विरासत के बारे में विचार कीजिए जो सनातन राजा ने हम मनुष्यों को प्रदान की है। भजन ११५:१६ हमें बताता है: “स्वर्ग तो यहोवा का है, परन्तु पृथ्वी उस ने मनुष्यों को दी है।” क्या आपको नहीं लगता कि यह एक अद्‌भुत अमानत है? निश्‍चय ही! और पृथ्वी को हमारे घर के तौर पर तैयार करने में हम अपने सृष्टिकर्ता की उत्कृष्ट पूर्वदृष्टि का कितना मूल्यांकन करते हैं!—भजन १०७:८.

१० उत्पत्ति अध्याय १ के छः सृजनात्मक “दिनों” में, जिनमें से हर दिन हज़ारों वर्ष लम्बा था, पृथ्वी पर अद्‌भुत घटनाएँ हुईं। परमेश्‍वर की ये सृष्टियाँ अंततः पूरी पृथ्वी को हरे-भरे घासमय कालीन, विशाल जंगलों और रंग-बिरंगे फूलों से भर देतीं। यह लाखों आकर्षक समुद्री जीवों, सुन्दर पंखवाले पक्षियों के झुंड, और पालतू तथा जंगली जानवरों के एक विशाल समूह से भरी हुई होती, जिनमें से हरेक “एक एक की जाति के अनुसार” प्रजनन करता। पुरुष और स्त्री की सृष्टि के वर्णन के बाद, उत्पत्ति १:३१ बताता है: “तब परमेश्‍वर ने जो कुछ बनाया था, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है।” उन प्रथम मनुष्यों के आस-पास क्या ही आनन्दपूर्ण परिवेश था! क्या हम इन सभी सृष्टियों में एक प्रेममय सृष्टिकर्ता की बुद्धि, पूर्वदृष्टि, और परवाह नहीं देखते?—यशायाह ४५:११, १२, १८.

११. सुलैमान ने यहोवा की रचनात्मक बुद्धि को कैसे महिमान्वित किया?

११ एक व्यक्‍ति जिसने सनातन राजा की बुद्धि पर अचंभा किया वह सुलैमान था। उसने सृष्टिकर्ता की बुद्धि की ओर बार-बार ध्यान आकर्षित किया। (नीतिवचन १:१, २; २:१, ६; ३:१३-१८) सुलैमान हमें यक़ीन दिलाता है कि “पृथ्वी सर्वदा बनी रहती है।” उसने सृष्टि के अनेक आश्‍चर्यों का मूल्यांकन किया, जिसमें वह भूमिका भी शामिल है जो पृथ्वी को हरा-भरा करने में बादल निभाते हैं। अतः, उसने लिखा: “सब नदियां समुद्र में जा मिलती हैं, तौभी समुद्र भर नहीं जाता; जिस स्थान से नदियां निकलती हैं, उधर ही को वे फिर जाती हैं।” (सभोपदेशक १:४, ७) अतः ऐसा होता है कि वर्षा और नदियों के पृथ्वी को हरा-भरा करने के बाद, उनका पानी महासागरों से फिर बादलों में पुनःचालित किया जाता है। पानी के इस शुद्धीकरण और पुनःचालन के बिना यह पृथ्वी कैसी होती, और हम कहाँ होते?

१२, १३. हम परमेश्‍वर की सृष्टि के लिए मूल्यांकन कैसे दिखा सकते हैं?

१२ सृष्टि के संतुलन के प्रति हमारे मूल्यांकन को कार्यों द्वारा समर्थित होना चाहिए, जैसे राजा सुलैमान ने सभोपदेशक के आख़िरी शब्दों में बताया: “सब कुछ सुना गया; अन्त की बात यह है कि परमेश्‍वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है। क्योंकि परमेश्‍वर सब कामों और सब गुप्त बातों का, चाहे वे भली हों या बुरी, न्याय करेगा।” (सभोपदेशक १२:१३, १४) हमें परमेश्‍वर को नाख़ुश करनेवाले किसी भी कार्य को करने से डरना चाहिए। इसके बजाय, हमें श्रद्धामय भय के साथ उसकी आज्ञा मानने की कोशिश करनी चाहिए।

१३ निश्‍चित ही, उसकी सृष्टि के अद्‌भुत कार्यों की वजह से हम में सनातन राजा की स्तुति करने की इच्छा होनी चाहिए! भजन १०४:२४ घोषित करता है: “हे यहोवा तेरे काम अनगिनित हैं! इन सब वस्तुओं को तू ने बुद्धि से बनाया है; पृथ्वी तेरी सम्पत्ति से परिपूर्ण है।” आनन्दपूर्वक, स्वयं अपने से और दूसरों से यह कहने के द्वारा आइए हम इस भजन की आख़िरी आयत का समर्थन करें: “हे मेरे मन यहोवा को धन्य कह! याह की स्तुति करो!”

पृथ्वी की परम सृष्टि

१४. किन तरीक़ों से परमेश्‍वर की मानवी सृष्टि पशुओं से अधिक श्रेष्ठ है?

१४ यहोवा की सारी सृष्टि अत्युत्तम है। लेकिन सबसे उत्कृष्ट पार्थिव सृष्टि है हम—मनुष्यजाति। आदम और फिर हव्वा यहोवा के छठवें सृजनात्मक दिन की पराकाष्ठा के तौर पर सृष्ट किए गए थे—एक ऐसी सृष्टि जो मछलियों, पक्षियों और जानवरों से अधिक श्रेष्ठ है! जबकि इनमें से अनेक स्वाभाविक रूप से बुद्धिमान हैं, मनुष्यजाति तर्क-शक्‍ति, एक अंतःकरण जो सही और ग़लत के बीच भेद कर सकता है, भविष्य के लिए योजना बनाने की क्षमता, और उपासना करने की अंतर्जात इच्छा से सज्जित है। यह सब कैसे हुआ? तर्कहीन जानवरों से क्रमविकास के बजाय, मनुष्य परमेश्‍वर के स्वरूप में सृजा गया था। अतः केवल मनुष्य ही हमारे सृष्टिकर्ता के गुणों को प्रतिबिंबित कर सकता है जिसने अपनी पहचान इस प्रकार करायी, “यहोवा, यहोवा, ईश्‍वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य।”—निर्गमन ३४:६.

१५. हमें नम्रतापूर्वक यहोवा की स्तुति क्यों करनी चाहिए?

१५ आइए हम अपने शरीर की असाधारण अभिकल्पना के लिए यहोवा की स्तुति और उसका धन्यवाद करें। हमारा रक्‍तप्रवाह, जो जीवन के लिए अनिवार्य है, प्रति ६० सेकण्डों में शरीर का दौरा करता है। जैसे व्यवस्थाविवरण १२:२३ बताता है, “लहू जो है वह प्राण ही है”—हमारा जीवन—परमेश्‍वर की नज़रों में बहुमूल्य। इन मज़बूत हड्डियों, नम्य मांस पेशियों, और एक अनुक्रियात्मक स्नायु-तंत्र को एक ऐसे मस्तिष्क द्वारा पूरा किया गया है जो किसी पशु के मस्तिष्क से अधिक श्रेष्ठ है और जिसकी क्षमताएँ एक गगनचुंबी भवन जितने बड़े कम्प्यूटर में भी नहीं समा सकतीं। क्या यह आपको नम्र महसूस नहीं कराता? कराना चाहिए। (नीतिवचन २२:४) और इस पर भी विचार कीजिए: हमारे फेफड़े, कंठ, जीभ, दाँत, और मुँह एक साथ कार्य करते हैं जिससे हज़ारों भाषाओं में से किसी भी भाषा में मानव वाणी उत्पन्‍न होती है। दाऊद ने यह कहते हुए यहोवा के लिए एक उपयुक्‍त गीत बनाया: “मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इसलिये कि मैं भयानक और अद्‌भुत रीति से रचा गया हूं। तेरे काम तो आश्‍चर्य के हैं, और मैं इसे भली भांति जानता हूं।” (भजन १३९:१४) आइए हम दाऊद के साथ मिलकर हमारे अद्‌भुत अभिकल्पक और परमेश्‍वर, यहोवा की कृतज्ञता से स्तुति करें!

१६. यहोवा की स्तुति में एक प्रसिद्ध संगीतकार ने कौन-सा गीत बनाया, और किस प्रभावशाली आमंत्रण के प्रति हम प्रतिक्रिया दिखा सकते हैं?

१६ योसॆफ़ हेडन द्वारा १८वीं-शताब्दी की गीत-पुस्तक का एक संकीर्तन यहोवा की स्तुति में कहता है: “हे उसकी सब रचनाओं जो इतनी अद्‌भुत हो, उसको धन्यवाद दो! उसके आदर के गीत गाओ, उसकी महिमा के गीत गाओ, उसके नाम को धन्य मानो और महिमान्वित करो! यहोवा की स्तुति सदा सर्वदा बनी रहती है, आमीन, आमीन!” भजन संहिता में बार-बार दोहरायी गयी उत्प्रेरित अभिव्यक्‍तियाँ और भी सुंदर हैं, जैसे कि वह आमंत्रण जो १०७वें भजन में चार बार दिया गया है: “लोग यहोवा की करुणा के कारण, और उन आश्‍चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें!” क्या आप इस स्तुति में भाग लेते हैं? आपको लेना चाहिए, क्योंकि उस हर वस्तु का स्रोत जो सचमुच सुंदर है, यहोवा, अर्थात्‌ सनातन राजा है।

और भी सामर्थी कार्य

१७. “मूसा का गीत, और मेम्ने का गीत” यहोवा की महिमा किस तरह करता है?

१७ पिछले छः हज़ार सालों के दौरान, सनातन राजा ने और भी सामर्थी कार्यों की शुरूआत की है। बाइबल की आख़िरी किताब में, प्रकाशितवाक्य १५:३, ४ में हम उन स्वर्गीय लोगों के बारे में पढ़ते हैं जिन्होंने पैशाचिक शत्रुओं पर विजय प्राप्त की है: “वे परमेश्‍वर के दास मूसा का गीत, और मेम्ने का गीत गा गाकर कहते थे, कि हे सर्वशक्‍तिमान प्रभु परमेश्‍वर, तेरे कार्य्य बड़े, और अद्‌भुत हैं, हे युग युग के राजा, तेरी चाल ठीक और सच्ची है। हे प्रभु, कौन तुझ से न डरेगा? और तेरे नाम की महिमा न करेगा? क्योंकि केवल तू ही पवित्र है, और सारी जातियां आकर तेरे साम्हने दण्डवत करेंगी, क्योंकि तेरे न्याय के काम प्रगट हो गए हैं।” इसे “मूसा का गीत, और मेम्ने का गीत” क्यों कहा गया है? आइए देखें।

१८. निर्गमन अध्याय १५ में किस सामर्थी कार्य को गीत में याद किया गया है?

१८ क़रीब ३,५०० साल पहले, जब फ़िरौन की सामर्थी सेना लाल समुद्र में नाश हुई, तब इस्राएलियों ने गीत के द्वारा कृतज्ञतापूर्वक यहोवा की स्तुति की। हम निर्गमन १५:१, १८ में पढ़ते हैं: “तब मूसा और इस्राएलियों ने यहोवा के लिये यह गीत गाया। उन्हों ने कहा, मैं यहोवा का गीत गाऊंगा, क्योंकि वह महाप्रतापी ठहरा है; घोड़ों समेत सवारों को उस ने समुद्र में डाल दिया है। यहोवा सदा सर्वदा राज्य करता रहेगा।” उसकी सर्वसत्ता को चुनौती देनेवाले शत्रुओं का न्याय करने और उनको मार डालने में इस सनातन राजा के धर्मी कानून प्रकट हुए।

१९, २०. (क) यहोवा ने इस्राएल की जाति को क्यों बनाया? (ख) मेम्ने और अन्य लोगों ने शैतान की चुनौती का कैसे उत्तर दिया है?

१९ यह क्यों ज़रूरी बन गया था? अदन की वाटिका में वह धूर्त सर्प हमारे प्रथम माता-पिता को पाप की ओर ले गया। इसके परिणामस्वरूप पूरी मानवजाति को पापमय अपरिपूर्णता मिली। लेकिन, सनातन राजा ने अपने मूल उद्देश्‍य के सामंजस्य में तुरन्त क़दम उठाए, जिससे पृथ्वी के परिवेश से उसके सभी शत्रु हटाए जाते और परादीसीय परिस्थितियाँ पुनःस्थापित होतीं। सनातन राजा ने यह पूर्वसंकेत करने के लिए कि वह इसे कैसे निष्पन्‍न करता, इस्राएल की जाति बनायी और उसे अपनी व्यवस्था दी।—गलतियों ३:२४.

२० लेकिन अंततः, इस्राएल स्वयं अविश्‍वास में गिर गया, और यह खेदजनक परिस्थिति पराकाष्ठा पर पहुँची जब परमेश्‍वर के एकलौते पुत्र को उनके अगुवों ने क्रूरतापूर्वक सताने और मार डाले जाने के लिए रोमियों के हाथों सौंप दिया। (प्रेरितों १०:३९; फिलिप्पियों २:८) परन्तु, ‘परमेश्‍वर के’ बलिदानी ‘मेम्ने’ के रूप में, मृत्यु तक यीशु की खराई ने परमेश्‍वर के प्राचीन शत्रु, शैतान की चुनौती को उल्लेखनीय रूप से झूठा साबित किया—कि कठिन परीक्षा में पृथ्वी पर कोई भी मनुष्य परमेश्‍वर के प्रति वफ़ादार नहीं रह सकता। (यूहन्‍ना १:२९, ३६; अय्यूब १:९-१२; २७:५) विरासत में आदम से अपरिपूर्णता प्राप्त करने के बावजूद, परमेश्‍वर का भय माननेवाले लाखों अन्य मनुष्य शैतानी आक्रमणों का सामना करते समय वफ़ादारी बनाए रखने के द्वारा यीशु के पदचिन्हों पर चले हैं।—१ पतरस १:१८, १९; २:१९, २१.

२१. प्रेरितों १७:२९-३१ के सामंजस्य में, आगे किस बात पर चर्चा की जाएगी?

२१ अब वह दिन आ गया है जब यहोवा इन वफ़ादार जनों को प्रतिफल देगा और सत्य तथा धार्मिकता के सभी शत्रुओं का न्याय करेगा। (प्रेरितों १७:२९-३१) यह कैसे होगा? हमारा अगला लेख बताएगा।

पुनर्विचार बक्स

यहोवा को उचित ही “सनातन राजा” क्यों कहा गया है?

यहोवा की बुद्धि उसकी सृष्टि में कैसे प्रदर्शित होती है?

किन तरीक़ों से मनुष्यजाति सर्वोत्कृष्ट सृष्टि है?

कौन-से कार्य ‘मूसा के गीत, और मेम्ने के गीत’ की माँग करते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 12 पर बक्स]

यहोवा की उत्कृष्ट बुद्धि

सनातन राजा की बुद्धि अनेक तरीक़ों से पृथ्वी पर उसकी सृष्टि में प्रतिबिंबित होती है। आगूर के शब्दों पर ध्यान दीजिए: “ईश्‍वर का एक एक वचन ताया हुआ है; वह अपने शरणागतों की ढाल ठहरा है।” (नीतिवचन ३०:५) फिर आगूर परमेश्‍वर की बड़ी और छोटी, अनेक सजीव सृष्टियों का ज़िक्र करता है। उदाहरणार्थ, आयत २४ से २८ में वह ‘चार छोटे जन्तुओं’ का वर्णन करता है “जो स्वाभाविक रूप से बुद्धिमान है।” (NW) वे हैं च्यूँटी, शापान, टिड्डी, और छिपकली।

“स्वाभाविक रूप से बुद्धिमान”—जी हाँ, जानवरों को इसी तरह बनाया गया है। वे मनुष्यों की तरह बातों पर विचार नहीं करते परन्तु अंतर्जात बुद्धि पर निर्भर रहते हैं। क्या आपने इस पर कभी आश्‍चर्य किया है? वे क्या ही व्यवस्थित सृष्टि हैं! उदाहरण के लिए, च्यूँटियाँ बस्तियों में व्यवस्थित होती हैं, जिनमें रानी, सेवक, और नर च्यूँटियाँ होती हैं। कुछ जातियों में, सेवक च्यूँटियाँ एक ख़ास जाति के कीड़ों को उनके बनाए हुए फ़ार्म के बाड़े के अन्दर लाती हैं। वहाँ वे उनका दूध निकालती हैं, जबकि सैनिक च्यूँटियाँ किसी भी आक्रमणकारी दुशमन को भगाती हैं। नीतिवचन ६:६ में सलाह दी गयी है: “हे आलसी, च्यूंटियों के पास जा; उनके काम पर ध्यान दे, और बुद्धिमान हो।” क्या ऐसे उदाहरणों से हम मनुष्यों को प्रोत्साहित नहीं होना चाहिए कि हम भी ‘प्रभु के काम में हमेशा काफ़ी कुछ करते’ रहें?—१ कुरिन्थियों १५:५८, NW.

मनुष्य ने बड़े हवाई जहाज़ बनाए हैं। लेकिन पक्षी कितने ज़्यादा नम्य हैं जिनमें मर्मर-पक्षी भी शामिल है जिसका वज़न ३० ग्राम से भी कम है! एक बोइंग ७४७ को एक समुद्र पार करने के लिए १,८०,००० लीटर ईंधन ले जाना, एक प्रशिक्षित परिचालक-दल द्वारा चलाया जाना, और पेचीदा पथ-संचालन यंत्रों का उपयोग करना ज़रूरी है। लेकिन छोटा मर्मर-पक्षी उत्तर अमरीका से मॆक्सिको की खाड़ी को पार करते हुए दक्षिण अमरीका तक पहुँचने के लिए केवल एक ग्राम चरबी के ईंधन पर निर्भर रहता है। ईंधन का कोई भारी बोझ नहीं, संचालन में कोई प्रशिक्षण नहीं, कोई जटिल चार्ट या कम्प्यूटर नहीं! क्या यह योग्यता क्रमविकास की सांयोगिक प्रक्रिया से परिणित हुई? शायद ही! यह छोटा पक्षी स्वाभाविक रूप से बुद्धिमान है, उसके सृजनहार, यहोवा परमेश्‍वर ने उसके मन में इसी प्रकार बिठाया है।

[पेज 10 पर तसवीरें]

“सनातन राजा” की विभिन्‍न सृष्टियाँ उसकी महिमा का गुणगान करती हैं

[पेज 15 पर तसवीरें]

जिस तरह मूसा और सारे इस्राएल ने लाल समुद्र पर यहोवा की विजय का उत्सव मनाया, उसी तरह हरमगिदोन के बाद महान हर्षोल्लास होगा