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सिरजनहार को जानना आपकी ज़िंदगी को मकसद दे सकता है

सिरजनहार को जानना आपकी ज़िंदगी को मकसद दे सकता है

सिरजनहार को जानना आपकी ज़िंदगी को मकसद दे सकता है

“वे यहोवा के नाम की स्तुति करें, क्योंकि उसी ने आज्ञा दी और ये सिरजे गए।”—भजन १४८:५.

१, २. (क) हमें किस सवाल पर पूरा ध्यान देना चाहिए? (ख) यशायाह के सवाल में सृष्टि का ज़िक्र कैसे किया गया है?

 “क्या तुम नहीं जानते?” यह सिर्फ एक मामूली सवाल लग सकता है जिसे सुनकर कई लोग यूँ ही पूछ लेंगे, ‘क्या नहीं जानते?’ लेकिन, यह सवाल बहुत अहमियत रखता है। यह सवाल बाइबल में यशायाह के ४०वें अध्याय में लिखा है। जब हम पूरा अध्याय पढ़ते हैं तो हमें इसके जवाब की अहमियत भी समझ में आती है। यह सवाल बहुत पुराना है, क्योंकि इसे पुराने ज़माने में यशायाह नाम के एक इब्रानी आदमी ने लिखा था। फिर भी, यह सवाल आज के लिए भी है और इसी से आपकी ज़िंदगी का मकसद जुड़ा हुआ है।

यशायाह ४०:२८ का यह सवाल अगर इतनी अहमियत रखता है तो इस पर हमें पूरा ध्यान देना चाहिए: “क्या तुम नहीं जानते? क्या तुमने नहीं सुना? यहोवा . . . सनातन परमेश्‍वर और पृथ्वी भर का सिरजनहार है।” तो इस सवाल में सिरजनहार को ‘जानने’ की बात कही गई है, जिसने पृथ्वी की रचना की है। और जब हम इसके आस-पास की आयतें पढ़ें तो पता चलता है कि पृथ्वी के अलावा उसकी दूसरी रचनाओं की भी बात हो रही है। इससे दो आयत पहले यशायाह ने तारों के बारे में लिखा: “अपनी आंखें उठाकर देखो कि किसने इन तारागणों की सृष्टि की है, कौन उनके गणों में से एक एक की अगुवाई करता . . . है। उसके विशाल सामर्थ्य और उसकी महाशक्‍ति के कारण उनमें से एक भी न छूटेगा।”—NHT.

३. सिरजनहार के बारे में पहले से ही काफी जानकारी होने के बावजूद भी, आपको और ज़्यादा जानकारी क्यों लेनी चाहिए?

जी हाँ, यह सवाल कि “क्या तुम नहीं जानते?” दरअसल हमारे विश्‍वमंडल के सिरजनहार के बारे में पूछा गया है। आप खुद यकीन रखते होंगे कि यहोवा परमेश्‍वर “पृथ्वी भर का सिरजनहार है।” और आप उसकी शख्सियत और उसके व्यवहार के बारे में भी काफी कुछ जानते होंगे। लेकिन तब क्या जब आप किसी ऐसे व्यक्‍ति से मिलते हैं जिसे पता नहीं कि सिरजनहार है भी या नहीं और जो जानता ही नहीं कि वह कैसा है? तो आप ऐसे व्यक्‍ति को कैसे समझाएँगे? ऐसे इंसान से मिलना कोई ताज्जुब की बात नहीं है क्योंकि ऐसे करोड़ों लोग हैं जो या तो सिरजनहार को जानते नहीं या मानते ही नहीं कि वह है।—भजन १४:१; ५३:१.

४. (क) खासकर आज सिरजनहार के बारे में जानना क्यों ज़रूरी है? (ख) किन सवालों का विज्ञान के पास कोई जवाब नहीं है?

खासकर आज स्कूल की शिक्षा कई लोगों को नास्तिक बना देती है, जो यह मानने लगते हैं कि विश्‍वमंडल और जीवन की शुरूआत से जुड़े सभी सवालों के जवाब विज्ञान के पास हैं (जो नहीं हैं वे आगे चलकर मिल जाएँगे)। जीवन की शुरूआत (फ्रेंच शीर्षक: ओ ऑरीज़ीन दॆ लॉवी) किताब में लेखक आज़ाँ और लने लिखते हैं: “हम इक्कीसवीं सदी में दाखिल हो रहे हैं, मगर अब भी इसी सवाल पर बहस जारी है कि जीवन की शुरूआत कैसे हुई। इसका जवाब पाना इतना मुश्‍किल है कि इसके लिए हर क्षेत्र में खोज-बीन करने की ज़रूरत है, विशाल अंतरिक्ष से लेकर सबसे छोटे, सूक्ष्म पदार्थ तक।” मगर, इस किताब के आखिरी अध्याय, “सवाल अब भी सवाल ही है,” में यह स्वीकार किया गया है कि “विज्ञान की मदद से भले ही हमने ‘पृथ्वी पर जीवन कैसे शुरू हुआ?’ इसके कुछ जवाब ढूँढ़ निकाले हैं, लेकिन ‘जीवन क्यों शुरू हुआ?, क्या ज़िंदगी का कोई मकसद है?’ इन सवालों का विज्ञान के पास कोई जवाब नहीं है। वह सिर्फ बता सकता है कि यह सब ‘कैसे’ हुआ। ‘कैसे’ और ‘क्यों’ एकदम अलग-अलग सवाल हैं। . . . और सवाल ‘क्यों’ का जवाब फिलॉस्फी, धर्म और खुद हमें ही ढूँढ़ना होगा।”

जवाब और ज़िंदगी का मकसद ढूँढ़ना

५. खासकर किस तरह के लोगों को सिरजनहार के बारे में जानकर फायदा हो सकता है?

बेशक हम सभी यह जानना चाहेंगे कि जीवन की शुरूआत क्यों हुई और खासकर हम खुद यहाँ क्यों हैं। और हमें ऐसे लोगों की मदद करनी चाहिए जो यह नहीं मानते कि हम सबका एक बनानेवाला है, न ही वे उसके व्यवहार के बारे में जानते हैं। उन लोगों के बारे में भी सोचिए जो बचपन से ऐसे ईश्‍वरों की पूजा करते आए हैं जो बाइबल के परमेश्‍वर से एकदम अलग हैं। अरबों लोग पूर्वी देशों में या ऐसी जगहों में बड़े हुए हैं जहाँ आम तौर पर यह नहीं माना जाता कि इंसान परमेश्‍वर को अपना दोस्त बना सकता है या जिसके ऐसे अच्छे गुण हैं जो हमें उसके और करीब ले आते हैं। ऐसे लोगों के मन में शायद “ईश्‍वर” शब्द से किसी निराकार शक्‍ति या तत्त्व का ख्याल आए। ये लोग ‘सिरजनहार’ और उसके व्यवहार को नहीं ‘जानते।’ अगर इन जैसे करोड़ों लोगों को यह सिखाया जाए कि एक सिरजनहार है तो सोचिए कि उन्हें इससे कितना फायदा हो सकता है, यहाँ तक कि वे हमेशा की ज़िंदगी की आशा भी पा सकते हैं! वे कुछ ऐसा भी पा सकते हैं जो बहुत कम लोगों को मिलता है—ज़िंदगी में सच्चा अर्थ, सच्चा मकसद और मन की शांति।

६. पॉल गॉगैं की तरह ही आज कई लोग कौन-से सवाल पूछते हैं?

मिसाल के तौर पर: सन्‌ १८९१ में फ्राँसीसी चित्रकार पॉल गॉगैं, बेहतर ज़िंदगी की खोज में फ्रेंच पॉलिनेशिया गया जो एक जन्‍नत जैसी जगह है। लेकिन उसकी बीती ज़िंदगी बहुत बुरी थी और इस वज़ह से न सिर्फ उसे बल्कि दूसरों को भी बीमारियाँ लग गईं। जब उसे अपनी मौत पास आती दिखी तब उसने एक बड़ी पेंटिंग बनाई जिसके ज़रिए उसने ‘ज़िंदगी को एक बड़ा रहस्य’ बताया। क्या आपको मालूम है कि गॉगैं ने उस पेंटिंग का नाम क्या रखा? “हम कहाँ से आएँ हैं? हम क्या हैं? हम कहाँ जा रहे हैं?” आज भी कई लोग ऐसे ही सवाल पूछते हैं और शायद आपको भी ऐसे लोग मिले हों। लेकिन जब उन्हें कहीं भी सही जवाब नहीं मिलते और ज़िंदगी का सच्चा मकसद नहीं मिलता, तो वे क्या कर सकते हैं? शायद वे यही मान बैठें कि उनकी ज़िंदगी और जानवरों की ज़िंदगी में कोई फर्क है ही नहीं।—२ पतरस २:१२. *

७, ८. विज्ञान की खोज से किन सवालों के जवाब नहीं मिल सके हैं?

तो फिर, आप यह अच्छी तरह समझ सकते हैं कि क्यों फिज़िक्स के प्रोफेसर फ्रीमैन डाइसन जैसे व्यक्‍ति ने लिखा: “मैं उन सवालों को पूछनेवाला अकेला आदमी नहीं हूँ जिन्हें अय्यूब ने पूछा था, हम क्यों दुःख उठाते हैं? दुनिया में इतनी बेइंसाफी क्यों है? दुःख-दर्द और मुसीबतें आखिर क्यों आती हैं?” (अय्यूब ३:२०, २१; १०:२, १८; २१:७) जैसा पहले बताया गया है इनका जवाब पाने के लिए लोग परमेश्‍वर के बजाय विज्ञान का सहारा लेते हैं। जीव विज्ञानी, समुद्र जीव विज्ञानी, और बाकी लोग पृथ्वी पर मौजूद जीवन के बारे में हमारी जानकारी बढ़ा रहे हैं। खगोलशास्त्री और भौतिकविज्ञानी एक अलग ही दिशा में खोज कर रहे हैं। वे सौरमंडल, तारों, और दूर-दूर की मंदाकिनियों के बारे में हमें ज़्यादा जानकारी दे रहे हैं। (उत्पत्ति ११:६ से तुलना कीजिए।) लेकिन यह सारी जानकारी हमें किस नतीजे तक पहुँचाती है?

कुछ वैज्ञानिक कहते तो हैं कि विश्‍वमंडल में परमेश्‍वर का “मन” या उसकी “लिखावट” नज़र आती है। लेकिन क्या वे असली और एक ज़रूरी बात को नज़रअंदाज़ नहीं कर रहे? साइंस मैगज़ीन कहती है: “जब खोजकर्ता कहते हैं कि विश्‍वमंडल में परमेश्‍वर का ‘मन’ या उसकी ‘लिखावट’ नज़र आती है, तो दरअसल वे सिर्फ विश्‍वमंडल को बनाने का श्रेय परमेश्‍वर को देते हैं। लेकिन वे इससे भी ज़रूरी एक बात, यानी इस विश्‍वमंडल को बनाए जाने के मकसद को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।” नोबल पुरस्कार विजेता, भौतिकविज्ञानी स्टीवन वाइनबर्ग ने तो यह भी लिखा: “हम इस विश्‍वमंडल के बारे में जितनी ज़्यादा जानकारी लेते हैं उतना ज़्यादा हम सोचते हैं कि यह सब क्यों बनाया गया।”

९. सिरजनहार को जानने में कौन-से सबूत हम सभी की मदद कर सकते हैं?

मगर, लाखों लोगों की तरह शायद आपने भी इस मामले की गहराई तक जाँच की हो और इस नतीजे पर पहुँचे हों कि ज़िंदगी का असली मकसद पाने के लिए सिरजनहार को जानना ज़रूरी है। याद कीजिए कि प्रेरित पौलुस ने क्या लिखा: “इंसान नहीं कह सकता कि वह परमेश्‍वर को नहीं जानता। दुनिया की शुरूआत से ही, जो वस्तुएँ परमेश्‍वर ने रचीं है उन्हें देखकर इंसान यह जान सकता है कि परमेश्‍वर कैसा है। इससे उसकी अनंत शक्‍ति दिखाई देती है। यह दिखाता है कि वही परमेश्‍वर है।” (रोमियों १:२०, होली बाइबल, न्यू लाइफ वर्शन) जी हाँ, यह दुनिया और हम खुद जिस तरह बनाए गए हैं, इस बात का सबूत देते हैं कि कोई सिरजनहार ज़रूर है और उसका एक मकसद भी है। आइए इस बारे में तीन बातों पर गौर करें: हमारा विश्‍वमंडल, जीवन की शुरूआत और हमारी दिमागी काबिलीयत।

विश्‍वास करने के कारण

१०. उत्पत्ति में बताए सृष्टि के वृत्तांत पर विचार करना क्यों ठीक रहेगा? (उत्पत्ति १:१; भजन १११:१०)

१० हमारा विश्‍वमंडल कहाँ से आया? टेलिस्कोप और अंतरिक्ष में भेजे गए उपकरणों द्वारा मिली जानकारी से आपको शायद मालूम होगा कि ज़्यादातर वैज्ञानिक यह मानते हैं कि हमारा विश्‍वमंडल हमेशा से मौजूद नहीं था। इसकी शुरूआत हुई थी और तब से यह लगातार बढ़ता जा रहा है। लेकिन इससे हम किस नतीजे पर पहुँचते हैं? अंतरिक्षयात्री सर बर्नार्ड लोवल की बात सुनिए: “किसी समय पर हमारा विश्‍वमंडल बहुत ही छोटा और एक बिंदु में समाया हुआ था, तो सवाल आता है कि इस बिंदु से पहले क्या था। . . . तो हमें यह मानना पड़ेगा कि ‘आदि’ में इसे बनाया गया था।”

११. (क) यह विश्‍वमंडल कितना विशाल है? (ख) विश्‍वमंडल में नज़र आनेवाले तालमेल से क्या पता लगता है?

११ विश्‍वमंडल को साथ ही हमारी पृथ्वी को जिस तरह बनाया गया है, उसमें अद्‌भुत तालमेल नज़र आता है। मिसाल के तौर पर सूर्य और इसके जैसे ही दूसरे तारों की खासियत यह है कि ये अरबों-खरबों सालों से काम करते रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे। अनुमान है कि आज हमारे इस विशाल विश्‍वमंडल में करीब ५० अरब (५०,००,००,००,०००) से १२५ अरब मंदाकिनियाँ देखी जा सकती हैं। और हमारी ही आकाशगंगा में अरबों-खरबों की तादाद में तारे हैं। अब इस बात पर गौर कीजिए: हम जानते हैं कि एक गाड़ी का इंजिन चलाने के लिए हवा और ईंधन के मिश्रण की बिलकुल सही मात्रा होनी चाहिए। अगर आपके पास एक कार है, तो इसके इंजिन में हवा और ईंधन की सही मात्रा लाने के लिए शायद आप एक कुशल मैकेनिक की मदद लें। इससे आपकी कार ज़्यादा आसानी से चलेगी और बहुत समय तक काम करती रहेगी। अगर एक छोटे-से इंजिन को चलाने के लिए इतनी कुशलता ज़रूरी है, तो सोचिए सदियों से चल रहे या “जल” रहे हमारे सूर्य के बारे में क्या? बेशक, पृथ्वी पर जीवन को कायम रखने के लिए जो-जो तत्त्व ज़रूरी हैं उनमें बड़ी कुशलता से तालमेल बिठाया गया है। क्या यह सब अपने आप ही हो गया? पुराने ज़माने के अय्यूब से पूछा गया: “क्या आकाश को चलानेवाले नियम तू ने बनाए हैं, या क्या पृथ्वी पर कुदरत के नियम तू ने बनाए हैं?” (अय्यूब ३८:३३, द न्यू इंग्लिश बाइबल) ये नियम किसी इंसान ने नहीं बनाए। तो फिर ये नियम और इनकी वज़ह से बना यह तालमेल कहाँ से आया?—भजन १९:१.

१२. यह मानना क्यों उचित है कि किसी अनदेखे, शक्‍तिशाली और बुद्धिमान व्यक्‍ति ने सबकुछ सिरजा है?

१२ क्या ऐसा हो सकता है कि इस तालमेल के लिए कोई तत्त्व या कोई व्यक्‍ति जिसे इंसान नहीं देख सकता, ज़िम्मेदार है? आधुनिक विज्ञान के नज़रिये से इस सवाल पर गौर कीजिए। आकाश में होनेवाली घटनाओं का अध्ययन करनेवाले ज़्यादातर वैज्ञानिक अब मानते हैं कि आकाश में बहुत बड़े-बड़े ऐसे पिंड हैं जिन्हें ब्लैक होल्स्‌ कहा जाता है। ये ब्लैक होल्स्‌ हमें नज़र नहीं आते, मगर वैज्ञानिकों को पूरा यकीन है कि ये आकाश में मौजूद हैं। इसी तरह, बाइबल बताती है कि एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ बहुत ही शक्‍तिशाली और बुद्धिमान प्राणी रहते हैं मगर उन्हें देखा नहीं जा सकता। अगर ऐसे प्राणी हैं तो क्या यह उचित नहीं कि ऐसे ही एक शक्‍तिशाली और बुद्धिमान व्यक्‍ति ने सारे विश्‍वमंडल में नज़र आनेवाला तालमेल बिठाया हो?—नहेमायाह ९:६.

१३, १४. (क) जीवन की शुरूआत के बारे में विज्ञान ने क्या साबित किया है? (ख) पृथ्वी पर मौजूद जीवन क्या दिखाता है?

१३ एक और कारण जो लोगों को सिरजनहार पर विश्‍वास करने में मदद दे सकता है वह है, जीवन की शुरूआत। लुई पैस्चर के परीक्षणों के बाद से, यह साबित हो चुका है कि जीवन किसी निर्जीव चीज़ से अपनेआप ही पैदा नहीं हो जाता। तो फिर पृथ्वी पर जीवन की शुरूआत कैसे हुई? १९५० के दशक में वैज्ञानिकों ने यह साबित करना चाहा कि आदिकाल के किसी सागर में जीवन का विकास धीरे-धीरे हुआ होगा। उनके मुताबिक यह तब हुआ होगा जब शुरू-शुरू के वायुमंडल में बार-बार बिजलियाँ कौंधी होंगी। मगर, हाल में पाए गए सबूत दिखाते हैं कि पृथ्वी पर जीवन की शुरूआत इस तरह नहीं हो सकती क्योंकि ऐसा कोई खास वायुमंडल कभी था ही नहीं। इसलिए, अब कुछ वैज्ञानिक इसे समझाने के लिए एक नया तरीका ढूँढ़ रहे हैं जो सही लगे। लेकिन, क्या वे भी असलियत को नज़रअंदाज़ नहीं कर रहे?

१४ विश्‍वमंडल और उसमें मौजूद जीवन की जाँच करते हुए कई साल बिता चुके ब्रिटिश वैज्ञानिक सर फ्रेड हॉइल ने कहा: “कुदरत की एक घटना से अंधाधुंध ही जीवन की शुरूआत हो गयी, ऐसा होने की संभावना न के बराबर है। इसे मानने के बजाय यह मानना ज़्यादा बेहतर लगता है कि किसी ने एक उद्देश्‍य से, सोच-समझकर जीवन की शुरूआत की।” जी हाँ, जितना ज़्यादा हम जीवन में होनेवाली हैरतअंगेज़ बातों के बारे में सोचते हैं, उतना ही ज़्यादा यह उचित लगता है कि जीवन किसी बुद्धिमान व्यक्‍ति की देन है।—अय्यूब ३३:४; भजन ८:३, ४; ३६:९; प्रेरितों १७:२८.

१५. हम क्यों कह सकते हैं कि आप बेमिसाल हैं?

१५ तो पहला कारण है हमारा विश्‍वमंडल और दूसरा पृथ्वी पर जीवन की शुरूआत। अब तीसरे कारण पर गौर कीजिए—हमारी बेमिसाल काबिलीयत। कई तरीकों से सभी इंसान बेमिसाल होते हैं, जिसका मतलब है कि आप भी बेमिसाल हैं? वह कैसे? आपने शायद सुना हो कि दिमाग की बराबरी एक शक्‍तिशाली कंप्यूटर से की जाती है। मगर, हाल की खोज के मुताबिक सच तो यह है कि यह बराबरी बिलकुल गलत है। मैसाचूसेट्‌स्‌ इंस्टिट्यूट ऑफ टॆक्नॉलजी के एक वैज्ञानिक ने कहा: “चार साल का बच्चा अपनी दिमागी काबिलीयत से देख-बोल सकता है, चल-फिर सकता है या सोच-समझकर काम कर सकता है। मगर आज के कंप्यूटर इस बच्चे की दिमागी काबिलीयत की ज़रा-सी भी बराबरी नहीं कर सकते। . . . अनुमान लगाया गया है कि सबसे शक्‍तिशाली सूपर-कंप्यूटर में जानकारी लेने की जितनी काबिलीयत होती है वह एक घोंघे [snail] के दिमाग की काबिलीयत के बराबर है, जबकि आपकी दिमागी काबिलीयत इन दोनों से लाखों-करोड़ों गुना ज़्यादा है।”

१६. भाषा बोलने की आपकी काबिलीयत क्या दिखाती है?

१६ हम अपनी दिमागी काबिलीयत की वज़ह से भाषा बोल पाते हैं। कुछ लोग दो, तीन या उससे भी ज़्यादा भाषाएँ बोलते हैं, मगर एक भाषा बोलने की हमारी काबिलीयत ही बेमिसाल है। (यशायाह ३६:११; प्रेरितों २१:३७-४०) प्रोफेसर आर. एस. और डी. एच. फाउट्‌स्‌ ने पूछा: “क्या सिर्फ इंसान ही है जो भाषा के ज़रिये बातचीत करता है? . . . बेशक, जानवर भी बातचीत करते हैं, . . . वे हाव-भाव, खुशबू, आवाज़ और गीतों के ज़रिये बातचीत करते हैं, यहाँ तक कि मक्खियों का मँडराना भी एक किस्म की बातचीत होती है। मगर इंसान के अलावा कोई और जीव ऐसा नहीं है जो व्याकरण के साथ और वाक्य बनाकर भाषा बोले। एक और बहुत ही अहम सच्चाई यह है कि जानवर किसी का चित्र नहीं बना सकते। ज़्यादा-से-ज़्यादा वे बस लकीरें ही खींच सकते हैं।” सचमुच, सिर्फ इंसान ही भाषा बोलने और तस्वीर बनाने की दिमागी काबिलीयत रखता है।—यशायाह ८:१; ३०:८; लूका १:३ से तुलना कीजिए।

१७. इंसान के आइना देखने और जानवर के आइना देखने में क्या फर्क है?

१७ इसके अलावा, आप खुद को पहचानते हैं; आप जानते हैं कि आप कौन हैं। (नीतिवचन १४:१०) क्या आपने किसी पक्षी, कुत्ते या बिल्ली को आइने में देखकर, चोंच मारते, गुर्राते या हमला करते देखा है? उन्हें लगता है कि वे किसी और को देख रहे हैं, वे खुद को पहचान नहीं पाते। मगर, जब आप आइना देखते हैं तो आप जानते हैं कि यह आपकी ही परछाईं है। (याकूब १:२३, २४) आप अपना चेहरा ध्यान से देखते हैं और यह सोचते हैं कि कुछ साल बाद आप कैसे दिखेंगे। जानवर ऐसा नहीं करते। जी हाँ, अपने दिमाग की वज़ह से आप बेमिसाल हैं। यह किसकी देन है? अगर आपका दिमाग परमेश्‍वर ने नहीं बनाया तो यह कहाँ से आया?

१८. आपके दिमाग की कौन-सी काबिलीयत दिखाती है कि आप जानवरों से अलग हैं?

१८ अपने दिमाग की वज़ह से ही आप कला और संगीत की कदर कर पाते हैं और आपको अच्छे-बुरे की पहचान होती है। (निर्गमन १५:२०; न्यायियों ११:३४; १ राजा ६:१, २९-३५; मत्ती ११:१६, १७) ज़रा सोचिए कि आप ऐसा कर पाते हैं, तो जानवर क्यों नहीं? उन्हें जितना दिमाग मिला है उसका इस्तेमाल वे अपनी मौजूदा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए करते हैं, जैसे खाना ढूँढ़ने, साथी ढूँढ़ने या अपना बसेरा बनाने के लिए। सिर्फ इंसान ही भविष्य के बारे में सोचता है। कुछ लोग तो यह भी सोचते हैं कि आज वे जो कुछ करते हैं उसका असर वातावरण पर या भविष्य में उनकी संतान पर कैसे पड़ेगा। क्यों? सभोपदेशक ३:११ इंसान के बारे में कहता है: “[सिरजनहार] ने मनुष्यों के मन में अनादि-अनन्त काल का ज्ञान उत्पन्‍न किया है।” जी हाँ, अनंत जीवन का मतलब समझने या बिना मौत के जीवन की कल्पना करने की काबिलीयत सिर्फ आपमें, इंसान में ही है।

सिरजनहार से ज़िंदगी का मकसद जानिए

१९. किन तीन सवालों के ज़रिये हम लोगों को सही नतीजे तक पहुँचने में मदद कर सकते हैं?

१९ हमने सिर्फ तीन कारणों पर चर्चा की है: इस विशाल विश्‍वमंडल में नज़र आनेवाला तालमेल, पृथ्वी पर जीवन की शुरूआत और इंसान के दिमाग की बेमिसाल काबिलीयत जिन्हें हम नकार नहीं सकते। इन तीन कारणों से हम किस नतीजे पर पहुँचते हैं? सही नतीजे पर पहुँचने में दूसरों की मदद करने के लिए आप इन तीन सवालों का इस्तेमाल कर सकते हैं। पहले पूछिए: क्या इस विश्‍वमंडल की शुरूआत हुई थी? ज़्यादातर लोग कहेंगे कि हाँ, हुई थी। तो फिर उनसे पूछिए: क्या यह अपनेआप शुरू हो गया या इसे शुरू किया गया? ज़्यादातर लोग मानते हैं कि इसे शुरू किया गया। तब हम यह आखिरी सवाल पूछ सकते हैं: तो फिर इस विश्‍वमंडल की शुरूआत किसी निराकार शक्‍ति से हुई या किसी बुद्धिमान व्यक्‍ति ने की? जब इन सवालों को इस तरह साफ-साफ और एक-के-बाद-एक पूछा जाए तो बहुत से लोग इसी नतीजे पर पहुँचेंगे: एक सिरजनहार ज़रूर है! और अगर एक सिरजनहार है तो क्या हमारी ज़िंदगी का एक मकसद नहीं होना चाहिए?

२०, २१. ज़िंदगी का मकसद पाने के लिए सिरजनहार को जानना क्यों ज़रूरी है?

२० हमारी ज़िंदगी और अच्छे-बुरे की हमारी समझ सबकुछ सिरजनहार से जुड़ी हुई है। डॉ. रॉलो मे ने लिखा: “ज़िंदगी का मकसद जानकर ही हम अच्छे-बुरे की सही समझ हासिल कर सकते हैं।” यह मकसद हम कैसे जान पाएँगे? वह आगे कहता है: “परमेश्‍वर को जानकर ही हम ज़िंदगी का मकसद समझ सकते हैं। क्योंकि परमेश्‍वर के उसूल सृष्टि की शुरूआत से उसके अंत तक, सब बातों की बुनियाद हैं।”

२१ इसलिए, हम समझ सकते हैं कि क्यों भजनहार ने नम्रता और समझदारी दिखाते हुए सिरजनहार से बिनती की: “हे यहोवा अपने मार्ग मुझ को दिखला; अपना पथ मुझे बता दे। मुझे अपने सत्य पर चला और शिक्षा दे, क्योंकि तू मेरा उद्धार करनेवाला परमेश्‍वर है।” (भजन २५:४, ५) सिरजनहार के बारे में और ज़्यादा ज्ञान पाकर भजनहार को अपनी ज़िंदगी का मकसद मिला। हम सबके साथ ऐसा हो सकता है।—निर्गमन ३३:१३.

२२. सिरजनहार के “मार्ग” जानने के लिए क्या ज़रूरी है?

२२ सिरजनहार के “मार्ग” जानने के लिए यह जानना ज़रूरी है कि वह कैसा व्यक्‍ति है, उसमें कौन-कौन-से गुण हैं और वह किस तरह व्यवहार करता है। मगर जिस सिरजनहार को हम देख नहीं सकते और जो बहुत महान और शक्‍तिशाली है, उसे हम कैसे जान सकते हैं? अगला लेख इस पर चर्चा करेगा।

[फुटनोट]

^ नात्ज़ी यातना शिविरों के बारे में बताते हुए, डॉ. विकटोर ई. फ्रांगल इस नतीजे पर पहुँचा: “इंसान ज़िंदगी में जो कुछ करता है उसमें वह अपनी ज़िंदगी के मकसद की खोज करता है। वह [उन जानवरों की तरह] नहीं है जो बिना सोचे-समझे अपने सारे काम यूँ ही करते जाते हैं।” उसने बताया कि दूसरे विश्‍वयुद्ध के कई सालों बाद भी फ्रांस में लिए गए सर्वे ने दिखाया कि “८९% लोगों ने यह माना कि इंसान को ज़िंदगी में ‘कुछ’ तो चाहिए जिससे उसकी ज़िंदगी को एक मकसद मिले।”

आप कैसे जवाब देंगे?

◻ हमारे विश्‍वमंडल के बारे में हमें सिर्फ विज्ञान की जानकारी तक ही क्यों सीमित नहीं रहना चाहिए?

◻ सिरजनहार को जानने में आप दूसरों की मदद कैसे कर सकते हैं?

◻ क्यों सिर्फ सिरजनहार को जानकर ही हम ज़िंदगी का असली मकसद पा सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 18 पर रेखाचित्र/तसवीर]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

आप किस नतीजे पर पहुँचे?

हमारे विश्‍वमंडल की शुरूआत

↓ ↓

नहीं हुई

हुई थी थी

↓ ↓

अपनेआप हो गयी थी किसी ने की थी

↓ ↓

किसी निराकार शक्‍ति किसी बुद्धिमान

से हुई थी व्यक्‍ति ने की थी

[पेज 15 पर तसवीर]

विशाल विश्‍वमंडल और उसमें नज़र आनेवाले तालमेल की वज़ह से कई लोग कबूल करने लगे हैं कि एक सिरजनहार है

[चित्र का श्रेय]

पेज १५ और १८: Jeff Hester (Arizona State University) and NASA