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हुड़दंग—क्यों मचाया जाता है?

हुड़दंग—क्यों मचाया जाता है?

हुड़दंग—क्यों मचाया जाता है?

“मुझे कुछ नहीं कहना है।” ये शब्द साओं पाउलू के एक शांत इलाके में बड़े-बड़े अक्षरों में एक दीवार पर लिखे हुए थे, जिसे हाल ही में पेंट किया गया था। यह आपको हुड़दंगियों या उपद्रव मचानेवालों की बस एक छोटी-सी करतूत लगे। ग्रैफिटी यानी दीवारों पर कुछ ऊलझलूल बातें लिखना एक किस्म का हुड़दंग है।

हुड़दंगियों में ज़िम्मेदारी नाम की कोई चीज़ नहीं होती। मान लीजिए कि, हुड़दंगियों ने आपकी नयी-नवेली कार तोड़-फोड़ दी है। या फिर उन्होंने आम जनता के उपयोग में आनेवाली चीज़ों को तहस-नहस कर दिया है या फिर उन्हें बरबाद कर दिया है। यह सब देखकर मन में सवाल उठता है कि उन्होंने आखिर ऐसा क्यों किया? क्यों? क्या आपने कभी सोचा है कि इन तोड़-फोड़ मचानेवालों की करतूतें क्यों बढ़ती जा रही हैं? कई जगहों पर तो देखा गया है कि हुड़दंगियों ने टेलिफोन बूथ का हुलिया बदल दिया है या फिर उसे पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया है। अकसर ये उपद्रवी खासकर यातायात के साधनों, जैसे ट्रेन या बस को तोड़-फोड़कर बरबाद कर देते हैं। इन सब हरकतों से ऐसा लगता है कि हुड़दंगियों को किसी भी चीज़ की फिकर नहीं होती और उन्हें उत्पात मचाने में बहुत मज़ा आता है। मगर, चारों तरफ जो हुड़दंग मच रहा है, और जिससे शायद हमें भी परेशानी हो रही हो, उसकी वज़ह क्या है?

युवा मारकू * रियो डॆ जनॆरो में रहता है। उसकी टीम फुटबॉल मैच हार गयी थी जिसकी वज़ह से वह बहुत मायूस हो गया और अचानक उसका पारा चढ़ गया। और जब उसने पास से उस बस को गुज़रते हुए देखा जिसमें जीतनेवाली टीम के दीवाने बैठे हुए थे, तो वह गुस्से में इतना बौखला गया कि उसने बस पर पत्थर फेंकने शुरू कर दिए। दूसरी तरफ क्लाउस को लीजिए। जब क्लास में उसके अच्छे अंक नहीं आए तो वह गुस्से से इतना आग-बबूला हो गया कि उसने पत्थर फेंक-फेंककर खिड़कियों के शीशे फोड़ डाले। शीशे फोड़ते वक्‍त तो उसे बहुत मज़ा आ रहा था लेकिन उसका “मज़ा” तब उड़नछू हो गया जब उसके पिता को नुकसान के लिए पैसे भरने पड़े। एक और युवक एरवीन पढ़ाई के साथ-साथ काम भी करता था। हालाँकि लोग उसे और उसके दोस्तों को अच्छा समझते थे, लेकिन टाइमपास करने के लिए वे मोहल्ले में उत्पात मचाते थे और ऐसा करना उन्हें बहुत पसंद था। एरवीन के माँ-बाप को उसकी इन करतूतों की भनक भी नहीं पड़ती थी। वाल्टर एक ऐसा अनाथ है जिसके पास साओं पाउलू की सड़कों को ही अपना घर समझने के सिवा और कोई चारा नहीं था। गुंडों की एक टोली के लड़के उसके पक्के दोस्त थे और वह उनके साथ ही घूमता-फिरता था। साथ ही, उसने मार्शल आट्‌र्स भी सीख ली। ये सभी किस्से दिखाते हैं कि उत्पात मचाने की वज़हें अलग-अलग होती हैं और ऐसे लोग ही उत्पात मचाते हैं जिनमें भावनाएँ दबी हुई होती हैं।

द वर्ल्ड बुक एनसाइक्लोपीडिया कहती है, “जिस व्यक्‍ति की मनोवृत्ति नष्ट करने की होती है, वह अपने बदले की भावना निकालने के लिए या सत्ता के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए उत्पात या तोड़-फोड़ मचाता है। चाहे जवान हों या बड़े, कभी-कभी दोनों ही बस ‘मज़े’ के लिए अपराध करते हैं।” लेकिन हुड़दंग सिर्फ मज़ाक ही नहीं होता, बल्कि वह बहुत ही नुकसानदेह, यहाँ तक कि जानलेवा हो सकता है। मिसाल के तौर पर, कुछ युवक “थोड़ा मज़ा उठाना” चाहते थे। सो जब उन्होंने एक सोते हुए आदमी को देखा, तो उन्होंने उस पर मिट्टी का तेल डालकर उसे आग लगा दी। वह आदमी ब्राज़ील का रहनेवाला एक आदिवासी था और उस बेचारे ने बाद में अस्पताल में दम तोड़ दिया। इस बारे में एक रिपोर्ट ने कहा, “उन युवकों से पूछे जाने पर उन्होंने यही कहा कि कई भिखारियों को सड़कों पर जला दिया गया था और किसी ने भी अपराधियों के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की थी। सो उन्होंने सोचा कि इस आदमी को जलाने पर किसी को कोई फरक नहीं पड़ेगा।” हुड़दंगे में चाहे कोई व्यक्‍ति शिकार हो या न हो, लेकिन इसके लिए बहुत बड़ी आर्थिक और भावात्मक कीमत चुकानी पड़ती है। तो फिर, हुड़दंग पर कौन काबू पा सकता है? कौन इसे खत्म कर सकता है?

कौन हुड़दंग रोक सकता है?

क्या पुलिस या स्कूल हुड़दंग को रोक सकते हैं? यहाँ एक समस्या यह है कि पुलिस अधिकारी, ज़्यादा गंभीर और बड़े-बड़े अपराधों को, जैसे नशीले पदार्थों की तस्करी या फिर हत्या के मामलों को निपटाने में व्यस्त रहते हैं। सो, उनके पास ऐसे जुर्मों से निपटने के लिए वक्‍त कहाँ है, जिनमें शायद किसी “को चोट नहीं पहुँची” हो? दूसरी तरफ, एक पुलिस अफसर कहता है कि जब कोई युवा पकड़ा जाता है, तो उसके माँ-बाप अकसर इसका दोष उसके “साथियों के मत्थे या फिर उसके स्कूल पर या उन्हें पकड़ने के लिए पुलिस के मत्थे ही मढ़ देते हैं।” अगर इन उत्पातियों को अच्छी तालीम दी जाए और उन पर कानूनी कार्यवाही की जाए तो उत्पात मचाना कम हो सकता है। लेकिन तब क्या जब माँ-बाप अपने सोच-विचार नहीं बदलते? बाल-अपराध की तहकीकात करनेवाली एक अफसर कहती हैं: “इसकी वज़ह है बोरियत और मौका हाथ लगना। [बच्चे] देर रात तक बाहर ही रहते हैं और उनके पास करने को कुछ नहीं रहता। और शायद उन पर निगरानी रखनेवाला भी कोई नहीं होता। अगर होता, तो वे इतनी रात को बाहर नहीं होते।”

माना कि कई जगहों में हुड़दंग या उपद्रव एक गंभीर समस्या है, लेकिन ध्यान दीजिए कि इस हालात को कैसे बदला जा सकता है। जिन युवा उपद्रवियों के बारे में हमने शुरू में ज़िक्र किया, वे सब बदल चुके हैं। वे ऐसे किसी भी काम में अब बिलकुल भी हिस्सा नहीं लेते जो समाज के खिलाफ है। पहले के इन बाल-अपराधियों ने किस वज़ह से अपनी-अपनी जीवनशैली बदल डाली? और, क्या आपको यह जानकर हैरानी होगी कि उत्पात या हुड़दंग सिर्फ कम ही नहीं बल्कि पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा? इनके जवाब के लिए हम आपको अगला लेख पढ़ने के लिए आमंत्रित करते हैं।

[फुटनोट]

^ नाम बदल दिए गए हैं।