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हुड़दंग खत्म किया जा सकता है

हुड़दंग खत्म किया जा सकता है

हुड़दंग खत्म किया जा सकता है

लेखक जेन नॉरमन और माइरॉन डब्ल्यू. हैरिस कहते हैं, “किशोर जब उत्पात या हुड़दंग मचाते हैं तो हमेशा यही समझा जाता है कि वे बड़ों की और उनके स्तरों की इज़्ज़त नहीं करते और प्रतिरोध की भावना व्यक्‍त कर रहे हैं।” हालाँकि कई युवा मानते हैं कि इस स्थिति को बदलने के लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता, लेकिन ये लेखक कहते हैं कि “तीन में से एक युवा सोचता है कि अगर माँ-बाप अपने बच्चों की ओर थोड़ा ज़्यादा ध्यान दें और अगर किशोर इतनी बोरियत महसूस न करें, तो वे हुड़दंग मचाना कम कर देंगे।” सो, अगर युवकों को खाली नहीं रखा जाता है और अगर माँ-बाप उन पर अच्छा नियंत्रण रखते हैं, तो उत्पात मचना शायद कम हो जाए। लेकिन क्या युवकों को व्यस्त रखने और उन पर अच्छा नियंत्रण रखने से यह समस्या जड़ से ही खत्म हो जाएगी?

दरअसल, युवजन जब अकेले होते हैं, तब वे इतनी परेशानियाँ खड़ी नहीं करते। लेकिन जब वे एक टोली में होते हैं, या दो-तीन दोस्तों के साथ होते हैं, तब वे शायद बेतुके और बुरे काम करके अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करते हैं। नॆलसन के साथ ऐसा ही हुआ। ड्रग्स या शराब के नशे में चूर होकर वह अकसर उत्पात मचाता था और इस तरह अपना गुस्सा और असंतुष्टि व्यक्‍त करता था। झूज़े को लीजिए। कैथोलिक चर्च ने मज़दूरों के हक और ज़मीन के बँटवारे को लेकर कई भाषण दिए। इससे वह भड़क उठा और उसे लगा कि उसे भी आवाज़ उठाने के लिए हड़तालों में और उपद्रव मचाने में भाग लेना चाहिए। लेकिन नॆलसन और झूज़े, दोनों को आगे चलकर कुछ ऐसी चीज़ हाथ लगी जो दंगे-फसाद या गुंडागर्दी से लाख गुना बेहतर थी।

हुड़दंग मचाने की कुछ छिपी वज़हें

आइए ज़रा और करीब से देखें कि कुछ युवक उत्पात क्यों मचाते हैं? कई किशोरों के मन में उलझन होती है और वे “इस दुनिया को एक पागलखाना कहते हैं जो सनकी लोगों से भरा पड़ा है।” कई लोग मानते हैं कि इन युवकों को किसी भी बात की फिकर नहीं होती, लेकिन एक रिपोर्ट ने कहा: “किशोरों को इस बात की चिंता ज़रूर होती है कि उनकी ज़िंदगी किस ओर जा रही है। बड़े समझते हैं कि उन्हें दुनिया की कोई चिंता नहीं होती लेकिन असल में उन्हें दुनिया की ज़्यादा चिंता लगी रहती है।” सो असल में जब युवक जानबूझकर या अनजाने में उपद्रव मचाते हैं तो वे अपनी मायूसी ज़ाहिर कर रहे होते हैं क्योंकि वे शायद नाखुश हों, शायद उनकी समस्याएँ अब तक सुलझी न हों, या उनकी ज़रूरतें अब तक पूरी नहीं की गयीं हों। शुरू में हमने जिस अध्ययन का ज़िक्र किया, उससे पता चला कि “जिन-जिन लोगों से इस बारे में पूछा गया था, उनमें से एक ने भी नहीं कहा कि उत्पात मचाना सही या उचित है। यहाँ तक कि जो खुद उत्पात मचाते हैं उन्होंने भी यह नहीं कहा कि उत्पात मचाना सही है।”

अकसर ऐसा होता है कि युवाओं को मुश्‍किल से ही तारीफ के कोई बोल या प्रोत्साहन के कोई शब्द सुनने को मिलते हैं। दूसरी तरफ, पढ़ना-लिखना बहुत ज़रूरी होता जा रहा है और ज़्यादातर नौकरियों के लिए विशेष ज्ञान या किसी खास क्षेत्र में डिग्री की माँग की जाती है, तो इससे युवजनों का हौसला शायद कम हो जाता है। उस पर, माँ-बाप, शिक्षक या साथी बहुत नुकताचीनी करने लगते हैं और उनसे बड़ी-बड़ी उम्मीदें लगाने लगते हैं। ऐसा करने से ध्यान बस इस ओर रहता है कि वह युवक क्या हासिल कर रहा है और यह नज़रअंदाज़ हो जाता है कि वह दिल का कैसा इंसान है। ऐसे में कई युवा बगावत करते हैं या फिर उपद्रव मचाते हैं क्योंकि वे अपने आपसे निराश हो चुके होते हैं। अगर माँ-बाप अपने युवा बच्चों को प्यार दें और उनकी ओर ध्यान दें तो क्या यह समस्या काफी कम नहीं हो जाएगी?

आपने शायद गौर किया होगा कि कुछ अधिकारियों ने ग्रैफिटी या दीवारों पर ऊलझलूल बातें लिखना और युवाओं द्वारा मचाए जानेवाले दूसरे उपद्रवों को रोकने की कोशिश कम कर दी है। लेकिन दूसरे लोग जो इस समस्या को दूर करना चाहते हैं, वे हुड़दंगे को कम करने के लिए आम तौर पर शिक्षकों और स्कूल के अधिकारियों की ओर आस लगाते हैं। हुड़दंग मचाने पर होनेवाली कानूनी कार्यवाही के बारे में, द वर्ल्ड बुक एनसाइक्लोपीडिया कहती है: “हुड़दंग करने पर जुर्माना भरना पड़ सकता है या फिर कैद की सज़ा मिल सकती है। कुछ-कुछ सरकारों ने ऐसे नियम निकाले हैं जो बच्चों द्वारा हुड़दंग मचाए जाने पर माँ-बाप को ज़िम्मेदार ठहराते हैं। लेकिन इन सब के बावजूद ज़्यादातर करतूतों के लिए सज़ा नहीं दी जाती। क्योंकि ऐसे मामलों में कानून लागू करना मुश्‍किल होता है और व्यक्‍ति का नुकसान इतना ज़्यादा नहीं होता कि उस पर कोई कानूनी कार्यवाही की जाए।” एक रिपोर्ट ने कहा कि उपद्रवियों में से मुश्‍किल से ३ प्रतिशत अपराधी ही पकड़े जाते हैं।

आप शायद सहमत होंगे कि अगर माँ-बाप अपने बच्चों की सही-सही परवरिश करें तो वे अपराध नहीं करेंगे और यह इस समस्या को जड़ से मिटाने का सबसे बेहतरीन तरीका होगा। लेकिन जब परिवार का माहौल ही बिगड़ जाता है, तो इसका अंजाम समाज को भी भुगतना पड़ता है। साओं पाउलू यूनिवर्सिटी, ब्राज़ील की प्रॉफेसर एना लूईज़ा याएईरा दी माट्टोस कहती हैं कि युवजन समस्याएँ इसलिए खड़ी करते हैं क्योंकि “माँ-बाप सही तरह से उन पर निगरानी नहीं रखते, परिवार में कोई कायदे-कानून नहीं होते, सदस्यों के बीच बातचीत नहीं होती, बच्चों की उपेक्षा की जाती है, और उन से हमदर्दी या प्यार नहीं जताया जाता।”

और आज हमने सच में यीशु के इन शब्दों की पूर्ति देखी है: “अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा।” (मत्ती २४:१२) साथ ही कौन इनकार करेगा कि २ तीमुथियुस ३:१-४ में लिखी बातें पूरी नहीं हो रही हैं? वहाँ प्रेरित पौलुस ने लिखा: “यह जान रख, कि अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे। क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी, लोभी, डींगमार, अभिमानी, निन्दक, माता-पिता की आज्ञा टालनेवाले, कृतघ्न, अपवित्र। मयारहित, क्षमारहित, दोष लगानेवाले, असंयमी, कठोर, भले के बैरी। विश्‍वासघाती, ढीठ, घमण्डी, और परमेश्‍वर के नहीं बरन सुखविलास ही के चाहनेवाले होंगे।” दरअसल बात यह है कि इस तरह के बुरे लोगों के बीच सिर्फ रहना ही बाल-अपराध को बढ़ावा देता है। लेकिन इन सब के बावजूद हमें हथियार नहीं डालने चाहिए। हालाँकि पूरा समाज मिलकर हुड़दंगे को खत्म करने में सफल नहीं हुआ है, लेकिन समाज में ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने जीने का अपना तरीका बदल दिया है और अब वे पहले की तरह अशिष्टता से पेश नहीं आते ना ही वे गैर-ज़िम्मेदार हैं। अब वे उत्पात भी नहीं मचाते।

युवजनों के लिए बढ़िया मार्गदर्शन

किस बात ने इन उपद्रवियों को और दूसरे लोगों को अपना व्यवहार बदलने में मदद की है? बाइबल की बातों ने। क्योंकि बाइबल ही ऐसी सलाह देती है जो सबसे बढ़िया और हर ज़माने के लोगों के लिए असरदार है। यह सच है कि इस सच्चाई को मानना शायद कुछ शिक्षकों और माँ-बाप को मुश्‍किल लगे। लेकिन बाइबल के मार्गदर्शन के मुताबिक चलने की वज़ह से, उत्पात मचानेवाले जन अब उत्पात मचाना छोड़कर परमेश्‍वर की इस खास आज्ञा को मानने के लिए प्रेरित हुए हैं: “तू बुराई करने के लिए भीड़ के पीछे न हो लेना।” (निर्गमन २३:२, NHT) कई लोगों को परमेश्‍वर के वचन से ऐसे कई विश्‍वासों और धर्म-सिद्धांतों के बारे में सच्चाई मालूम हुई, जिन्हें वे पहले नहीं समझ पाते थे। सो इन बातों के बारे में मिली सच्चाई की वज़ह से वे परमेश्‍वर की ओर खिंचे चले आए और उन्होंने जो कुछ भी सीखा है उससे उनकी भलाई ही हुई है। साओं पाउलू में रहनेवाले युवक, झूज़े के अनुभव पर विचार कीजिए। उसकी परवरिश ऐसे परिवार में हुई जो उपासना में मूर्तियों का इस्तेमाल करता था। जब उसे पता चला कि परमेश्‍वर का एक नाम है और उसका नाम यहोवा है और उसे मूर्तिपूजा पसंद नहीं, तो उसने अपने जीवन में बदलाव किए ताकि वह ऐसे काम करे जिससे परमेश्‍वर खुश हो।—निर्गमन २०:४, ५; भजन ८३:१८; १ यूहन्‍ना ५:२१; प्रकाशितवाक्य ४:११.

नॆलसन का मन अपने गैंग की एक-के-बाद-एक भयंकर लड़ाइयों और हड़तालों को देखकर बहुत दुःखी होता था। लेकिन वैसे माहौल में जीवन बिताने के बजाय, उसे भविष्य के लिए सच्ची आशा मिली और इससे उसे काफी राहत भी महसूस हुई। वह कहता है: “बुरी संगति और लगातार नशीले पदार्थों के सेवन की वज़ह से अपने परिवार में मेरी कोई अहमियत नहीं थी, लेकिन अब, घर पर मुझे ही सबसे ज़्यादा इज़्ज़त दी जाती है। अकसर मेरे पिता मुझसे कहते कि मैं अपने बड़े भाइयों को समझाया करूँ। जबसे मैं यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन करने लगा हूँ, मुझे सच्ची खुशी मिली है क्योंकि अब मेरे जीवन को मकसद मिल गया है।” दूसरी तरफ, मारकू एक ऐसे शहर में रहता है जहाँ बात-बात पर हिंसा भड़क उठती है। उसे जब पता चला कि परमेश्‍वर का राज्य इस ज़मीन को बगीचे-समान सुंदर जगह बना देगा, तो उसका दिल खुशी से झूम उठा।—प्रकाशितवाक्य २१:३, ४.

वाल्टर पर विचार कीजिए। वह पहले एक सड़क-छाप गुंडा और उत्पात मचानेवाला लड़का था, साथ ही वह एक गुट का सदस्य भी था। वह बचपन से ही अनाथ था जिसकी वज़ह से उसे कदम-कदम पर दुःख उठाना पड़ा। वाल्टर को यह बात बहुत अच्छी लगी कि इस भ्रष्ट और दुष्ट दुनिया में भी परमेश्‍वर के अपने लोग हैं। परमेश्‍वर के ये लोग पूरे दिल से बाइबल के उसूलों पर चलने की कोशिश करते हैं और साथ ही वे दूसरों के साथ करुणा, आदर और दया से पेश आते हैं। वाल्टर कहता है: “यीशु ने जैसे वादा किया था, वैसा ही हुआ है। अब मेरे पास बहुत बड़ा परिवार है जिसमें ढेर सारे ‘भाई-बहन, माता-पिता’ हैं। मैं उस समय का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा हूँ जब सभी लोग परमेश्‍वर की धर्मी सरकार के अधीन खुशी-खुशी और एकता में ज़िंदगी बिताएँगे।”—मरकुस १०:२९, ३०; भजन ३७:१०, ११, २९.

सबके लिए एक सच्ची आशा

पहले के इन उपद्रवियों ने अपने आस-पास के लोगों के प्रति सिर्फ आदर और प्यार दिखाना ही नहीं बल्कि ‘बुराई से घृणा करना’ भी सीखा है। (भजन ९७:१०; मत्ती ७:१२) आपके बारे में क्या? चाहे आप तोड़-फोड़ करने में शामिल रहे हों, या फिर ऐसे लोगों के शिकार बने हों, अगर आप परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करते हैं तो इससे आपको पता चलेगा कि यहोवा जीवित परमेश्‍वर है और वह प्यार करनेवाला स्वर्गीय पिता है और वह आपकी परवाह करना चाहता है। (१ पतरस ५:६, ७) चाहे आपमें कोई कमज़ोरी हो या फिर आप गरीबी के शिकार हों, फिर भी आध्यात्मिक तौर पर बढ़ने के लिए परमेश्‍वर आपकी मदद कर सकता है। यह अपने आप में एक शानदार अनुभव है!

यहोवा और उसका बेटा यीशु मसीह सचमुच यही चाहते हैं कि सब प्रकार के लोगों को बाइबल सच्चाई सीखने का मौका मिले। क्योंकि परमेश्‍वर का वचन अभी लोगों को हुड़दंगी बनने से रोकने के अलावा और भी कुछ करता है। यह उन पर ऐसा असर कर सकता है कि वे परमेश्‍वर के उसूलों के मुताबिक चलने में आगे बढ़ते रहें। नतीजा यह होता है कि वे ऐसे अंतर्राष्ट्रीय भाईचारे के सदस्य बनते हैं जो साफ-सफाई रखने और शिष्टता से पेश आने के लिए मशहूर हैं। और ये अंतर्राष्ट्रीय भाईचारा यहोवा के साक्षियों की दुनिया भर की कलीसियाओं से ही बनता है। इफिसियों ४:२४ के मुताबिक इन नेकदिल मसीहियों ने ‘नये मनुष्यत्व को पहिन लिया है, जो परमेश्‍वर के अनुसार सत्य की धार्मिकता, और पवित्रता में सृजा गया है।’ जल्द ही यह दुनिया ऐसे लोगों से भर जाएगी क्योंकि सिर्फ ये लोग ही बचकर नयी दुनिया में जाएँगे और हमेशा-हमेशा की ज़िंदगी पाएँगे।—लूका २३:४३ से तुलना कीजिए।

उपद्रव बिना एक नयी दुनिया मुमकिन है

क्या आप विश्‍वास करते हैं कि हुड़दंग या उत्पात सचमुच हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा? अगर हाँ, तो फिर इतना बड़ा और ज़रूरी बदलाव कैसे होगा? परमेश्‍वर का राज्य जल्द ही सभी दुष्ट लोगों को खत्म कर देगा। और इसके बाद इस ज़मीन पर रहनेवाला कोई व्यक्‍ति अगर जानबूझकर परमेश्‍वर का कोई भी धर्मी नियम तोड़ेगा, तो उसे ही इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। (यशायाह २४:५, ६ से तुलना कीजिए।) हालाँकि “अपराधी एक साथ सत्यानाश किए जाएंगे,” लेकिन जो लोग धार्मिकता के काम पसंद करते हैं उन्हें बचाया जाएगा। क्योंकि ‘यहोवा उनकी सहायता करके उनको बचाएगा; वह उनको दुष्टों से छुड़ाकर उनका उद्धार करेगा, इसलिये कि उन्हों ने उस में अपनी शरण ली है।’—भजन ३७:३८-४०.

सच में हुड़दंग को पूरी तरह जड़ से खत्म कर दिया जाएगा। सिर्फ इतना ही नहीं, सारे अपराध, ज़ुल्म, दुःख-तकलीफ और दुष्टता भी खत्म कर दी जाएगी। इसके बदले नयी दुनिया में चारों तरफ शांति, सच्ची धार्मिकता, अमन-चैन और सुरक्षा होगी। यशायाह ३२:१८ इस हकीकत का ब्योरा देता है: “मेरे लोग शान्ति के स्थानों में निश्‍चिन्त रहेंगे, और विश्राम के स्थानों में सुख से रहेंगे।” जी हाँ, पूरी पृथ्वी एक बगीचे की तरह खूबसूरत जगह बन जाएगी और उसमें ऐसे लोग रहेंगे जो दूसरों के लिए प्यार और आदर दिखाते हैं।

दूसरे लाखों-हज़ारों लोगों की तरह, आज पहले के हुड़दंगियों या गुंड़ों ने यहोवा के साथ एक नज़दीकी रिश्‍ता बना लिया है। अब वे पहले की तरह कभी तोड़-फोड़ या उत्पात नहीं मचाते। क्या आप भी नहीं चाहेंगे कि नयी दुनिया में ज़िंदगी पाने के लिए आपको परमेश्‍वर का वचन यानी बाइबल मार्ग दिखाए? अगर हाँ, तो फिर हम क्यों न पुराने ज़माने के उस भजनहार की तरह यहोवा की बातों से मार्गदर्शित हों जिससे यहोवा ने कहा: “मैं तुझे बुद्धि दूंगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूंगा; मैं तुझ पर कृपादृष्टि रखूंगा और सम्मति दिया करूंगा।”—भजन ३२:८.

[पेज 7 पर तसवीर]

माँ-बाप की देखरेख से और प्यार से युवजनों की रक्षा होती है