इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

विश्‍वास से आपकी ज़िंदगी सँवर सकती है

विश्‍वास से आपकी ज़िंदगी सँवर सकती है

विश्‍वास से आपकी ज़िंदगी सँवर सकती है

“परमेश्‍वर में विश्‍वास किए बिना अच्छे नैतिक मूल्य विकसित करना वाकई मुमकिन है।” यह दावा एक अज्ञेयवादी यानी एक ऐसी स्त्री ने किया जो मानती है कि ईश्‍वर नाम की कोई चीज़ नहीं होती। उसके बच्चे भी ऐसा ही मानते हैं। मगर इसके बावजूद वह स्त्री अपने बच्चों को अच्छे नैतिक मूल्य सिखा पायी और आगे जाकर उसके बच्चों ने भी अपने बच्चों को इसी तरह के उच्च नैतिक स्तर सिखाए।

तो क्या इसका मतलब यह है कि परमेश्‍वर में विश्‍वास करना ज़रूरी नहीं है? ज़ाहिर है कि इस स्त्री ने ऐसा ही सोचा था। और ज़रूरी भी नहीं कि जो व्यक्‍ति परमेश्‍वर में विश्‍वास नहीं करता वह बुरा ही हो। प्रेरित पौलुस ने उन ‘अन्यजाति के लोगों’ के बारे में बात की जो परमेश्‍वर को जानते तो नहीं थे, मगर “स्वभाव ही से व्यवस्था की बातों पर चलते” थे। (रोमियों 2:14) हर व्यक्‍ति के पास, चाहे वह अज्ञेयवादी ही क्यों न हो, एक विवेक होता है। कई लोग अपने विवेक के मुताबिक चलने की कोशिश करते हैं, मगर जिसने उन्हें यह विवेक दिया यानी सही-गलत में भेद करने की जन्मजात समझ दी है, वे उस परमेश्‍वर में विश्‍वास नहीं करते।

लेकिन, परमेश्‍वर पर विश्‍वास होना बहुत ज़रूरी है। क्योंकि यह हमारे विवेक को बेहतर रीति से मार्गदर्शित कर सकता है। और परमेश्‍वर पर यह विश्‍वास बाइबल में दी गई जानकारी पर आधारित होना चाहिए। बाइबल पर आधारित विश्‍वास से विवेक को अच्छी जानकारी मिलती है जिससे वह सही और गलत के बीच बेहतर रूप से भेद कर सकता है। (इब्रानियों 5:14) और तो और, विश्‍वास से लोगों को हर हाल में और हर तरह के दबाव में अपने उच्च स्तरों को बनाए रखने की ताकत मिलती है। मिसाल के तौर पर, 20वीं सदी के दौरान कई देशों में भ्रष्ट राजनैतिक शासकों का राज चलता था और इन शासकों की वज़ह से आम लोग भयंकर और क्रूर काम करने के लिए मजबूर हो गये थे। मगर, जान का खतरा रहने के बावजूद परमेश्‍वर में सच्चा विश्‍वास रखनेवालों ने अपने उसूलों से कभी समझौता नहीं किया। इतना ही नहीं, बाइबल पर आधारित विश्‍वास लोगों की ज़िंदगी को बदल सकता है। यह मानो भटके हुए लोगों को सही रास्ता दिखा सकता है और गंभीर गलतियाँ करने से रोक सकता है। आइए इसकी कुछ मिसाल देखते हैं।

विश्‍वास से पारिवारिक ज़िंदगी सँवर सकती है

“अपने विश्‍वास की वज़ह से आपने नामुमकिन को मुमकिन बना दिया है।” एक अंग्रेज़ जज ने यूँ कहते हुए जॉन और तान्या को उनके बच्चों की देखभाल करने का हक उन्हें वापस दिया। शुरू-शुरू में जब अधिकारियों को जॉन और तान्या के बारे में मालूम हुआ, तब इन दोनों की आपस में शादी नहीं हुई थी। और उनका घरेलू जीवन भी बहुत ही अस्त-व्यस्त और अशांत था। जॉन एक नशेड़ी था और उसे जुआ खेलने की लत थी। इन बुरी आदतों का खर्च पूरा करने के लिए उसने अपराध की दुनिया में कदम रखा। वह तान्या और अपने बच्चों की तरफ बिलकुल भी ध्यान नहीं देता था। मगर, अब ऐसा कौन-सा “चमत्कार” हो गया था?

एक दिन, जब जॉन का युवा भान्जा किसी से परादीस के बारे में बात कर रहा था तो जॉन ने सुन लिया। उसकी दिलचस्पी बढ़ गयी, इसलिए उसने अपने भाई और भाभी से इस बारे में सवाल पूछे। जॉन के भाई और भाभी यहोवा के साक्षी थे और उन्होंने बाइबल की बातें सीखने में उसकी मदद की। धीरे-धीरे जॉन और तान्या के दिल में बाइबल पर आधारित विश्‍वास ने जड़ पकड़ ली और इस विश्‍वास ने उनकी ज़िंदगी बदल दी। उन दोनों ने कानूनी तौर पर विवाह किया और अपनी बुरी आदतें छोड़ दीं। जब अधिकारी उनके घर की जाँच करने आए थे तो उन्हें ऐसा नज़ारा देखने को मिला जिसकी कल्पना करना भी शायद कुछ समय पहले मुमकिन नहीं लगता था। वहाँ साफ-सुथरे घर में एक खुशहाल परिवार था। ऐसा माहौल था, जहाँ बच्चों की अच्छी तरह से परवरिश की जा सकती थी। इसलिए, जब उस जज ने इस “चमत्कार” का श्रेय जॉन और तान्या के नए विश्‍वास को दिया, तो यह सोलह आने सही था।

इंग्लैंड से हज़ारों किलोमीटर दूर, नियर ईस्ट के एक देश में रहनेवाली एक जवान पत्नी बहुत ही गंभीर फैसला करनेवाली थी। वह तलाक लेकर अपनी शादीशुदा ज़िंदगी को तबाह कर देना चाहती थी। ऐसा करके, हर साल तलाक ले रहे लाखों लोगों की संख्या में वह भी जुड़ जाती। उसका एक बच्चा था। और उसका पति उम्र में उससे काफी बड़ा था, इसलिए उसके नाते-रिश्‍तेदारों ने उसे तलाक लेने के लिए उकसाया। इस स्त्री ने तलाक लेने के कदम भी उठा लिए थे। मगर, उस समय के दरमियान वह एक यहोवा के साक्षी के साथ बाइबल का अध्ययन कर रही थी। जब उस साक्षी ने उसके इस फैसले के बारे में जाना, तो उसने उसे समझाया कि विवाह के बारे में बाइबल क्या बताती है। उसने कहा कि विवाह परमेश्‍वर की तरफ से एक आशीष है और इस आशीष को हमें यूँ ही नहीं ठोकर मार देनी चाहिए। (मत्ती 19:4-6, 9) उस स्त्री ने मन-ही-मन सोचा, ‘यह तो बड़ी अजीब बात है कि यह स्त्री जो मेरे लिए एक अजनबी है, हमारे परिवार को बचाने की कोशिश कर रही है जबकि मेरे सारे अज़ीज़ रिश्‍तेदार मेरे विवाह को तोड़ने पर तुले हैं।’ आखिर में, उसके इस नए विश्‍वास ने उसके विवाह को बरकरार रखने में उसकी मदद की।

गर्भपात भी एक ऐसा खतरनाक कदम है जिससे परिवार पर बहुत बुरा असर होता है। संयुक्‍त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने अंदाज़ा लगाया कि हर साल लोग कम-से-कम 4.5 करोड़ अजन्मे बच्चों का जानबूझकर गर्भपात कराते हैं। और हर गर्भपात बड़ी भयानक और दिल चीर देनेवाली घटना है। फिलीपींस में रहनेवाली एक स्त्री ने गर्भपात करवाने का फैसला किया था, मगर बाइबल से मिले ज्ञान ने उसे ऐसा गलत कदम उठाने से रोक दिया।

इस स्त्री के पास यहोवा के साक्षी आए थे जिनसे उसने परमेश्‍वर हमसे क्या माँग करता है? * ब्रोशर लिया और बाइबल का अध्ययन करना शुरू किया। कुछ महीनों बाद वह बताती है कि क्यों वह बाइबल का अध्ययन करने के लिए तैयार हुई थी। जब पहली बार साक्षी इस स्त्री के घर आए थे तब उसका पैर भारी था मगर उसने और उसके पति ने बच्चा गिरा देने का फैसला किया था। लेकिन, माँग ब्रोशर के पेज 24 पर दिए गए एक अजन्मे शिशु की तस्वीर ने स्त्री के दिल को छू लिया। साथ ही, जब उसे बाइबल से समझाया गया कि जीवन पवित्र है क्योंकि ‘जीवन का सोता परमेश्‍वर है,’ तो उसने अपना बच्चा गिराने का ख्याल ही मन से निकाल दिया। (भजन 36:9) अब वह एक तंदुरुस्त और खूबसूरत बच्चे की माँ है।

विश्‍वास से उन्हें मदद मिली, जिन्हें तुच्छ समझा जाता है

ईथिओपिया में, मैले-कुचैले कपड़े पहने हुए दो व्यक्‍ति यहोवा के साक्षियों की उपासना करनेवाली जगह में आए। सभा खत्म होने पर, एक साक्षी ने मुस्कुराते हुए उन्हें अपना परिचय दिया। तब उन दोनों व्यक्‍तियों ने साक्षी से भीख माँगी। मगर साक्षी ने उन्हें पैसे देने के बजाय उससे कुछ बेहतर दिया। उसने उन्हें परमेश्‍वर में विश्‍वास करने के लिए उकसाया, जो “सोने से भी कहीं अधिक बहुमूल्य है।” (1 पतरस 1:7) उनमें से एक व्यक्‍ति बाइबल का अध्ययन करने लगा। इससे उसकी ज़िंदगी सँवर गयी। जैसे-जैसे उसका विश्‍वास बढ़ता गया, वैसे-वैसे उसने सिग्रॆट और शराब पीनी बंद कर दी, खाट (एक नशीला पदार्थ) खानी और अनैतिक चाल-चलन भी छोड़ दिया। उसने दूसरों से भीख माँगकर गुज़र-बसर करने के बजाय अपने पैरों पर खड़ा होना सीखा और अब वह एक शुद्ध और बढ़िया जीवन बिता रहा है।

इटली में एक 47 साल के व्यक्‍ति को दस साल कैद की सज़ा सुनाई गयी थी और उसे जेल के मनोविकार अस्पताल में रखा गया था। यहोवा के एक साक्षी के पास आध्यात्मिक मदद देने के लिए इस तरह के कैदखानों में आने-जाने का अधिकार था। उसने इस व्यक्‍ति के साथ बाइबल का अध्ययन शुरू किया। और यह व्यक्‍ति सच्चाई के रास्ते पर तेज़ी से आगे बढ़ने लगा। विश्‍वास ने उसकी ज़िंदगी इस कदर बदल दी कि अब दूसरे कैदी अपनी समस्याओं के बारे में सलाह-मशविरे के लिए उसके पास आने लगे। बाइबल पर आधारित उसके विश्‍वास की वज़ह से लोग अब उसकी इज़्ज़त करते हैं, उसे मान देते हैं और कैदखाने के अधिकारी भी उस पर भरोसा करते हैं।

हाल के सालों में अफ्रीका में हो रहे गृह-युद्धों के बारे में अखबारों में छापा गया। इनमें खासकर उन छोटे बच्चों के बारे में खबरें पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं जिन्हें सैनिक बनने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है। इन बच्चों को नशा दिया जाता है, उनके साथ बेरहमी से सलूक किया जाता है और यह पता लगाने के लिए कि वे अपने दल के प्रति पूरी तरह से वफादार हैं या नहीं, उन्हें अपने रिश्‍तेदारों के साथ क्रूरता से सलूक करने के लिए ज़बरदस्ती की जाती है। क्या बाइबल पर आधारित विश्‍वास इतना मज़बूत है कि वह इस तरह के बच्चों की ज़िंदगी भी बदल दे? कम-से-कम दो मामलों में तो यह सच साबित हुआ है।

लाइबेरिया में, एलिक्स एक कैथोलिक चर्च में ऑल्टर बॉय था। मगर 13 साल की उम्र में वह एक लड़ाकू-दल में शामिल हो गया और एक कुख्यात बाल-सैनिक बन गया। लड़ाई करने का साहस जुटाने के लिए उसने जादू-टोने का सहारा लिया। एलिक्स ने अपने कई साथियों को अपनी जान गँवाते देखा मगर वह खुद बचता रहा। सन्‌ 1997 में उसकी मुलाकात यहोवा के साक्षियों से हुई। उसने देखा कि वे उसे तुच्छ नहीं समझते थे। इसके बजाय उन्होंने उसे हिंसा के बारे में बाइबल का दृष्टिकोण जानने में मदद दी। एलिक्स ने सेना की नौकरी छोड़ दी। क्योंकि जैसे-जैसे उसका विश्‍वास बढ़ता गया, उसने बाइबल की यह आज्ञा मानी: “वह बुराई का साथ छोड़े, और भलाई ही करे; वह मेल मिलाप को ढूंढ़े, और उसके यत्न में रहे।”—1 पतरस 3:11.

इसी तरह सैमसन नाम का एक लड़का भी पहले बाल-सैनिक था। वह उसी शहर में आया जहाँ एलिक्स रहता था। वह चर्च में पहले एक कोएर बॉय था, मगर सन्‌ 1993 में वह एक बाल-सैनिक बन गया। तब से वह नशीले पदार्थ खाने लगा और प्रेतात्मवाद और अनैतिकता में शामिल हो गया। सन्‌ 1997 में उसे सेना की नौकरी से निकाल दिया गया। सैमसन एक खास सुरक्षा दल में भर्ती होने के लिए मनरोवीया शहर जा रहा था कि उसके एक दोस्त ने उसे यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन करने के लिए राज़ी किया। नतीजा यह हुआ कि वह बाइबल पर विश्‍वास करने लगा। इस विश्‍वास से उसे हिम्मत मिली और उसने लड़ाई-झगड़े और युद्ध का रास्ता छोड़ दिया। आज एलिक्स और सैमसन दोनों ही शांतिपूर्ण और शुद्ध नैतिक जीवन जी रहे हैं। क्या बाइबल पर आधारित विश्‍वास को छोड़ कोई दूसरी चीज़ ऐसे लोगों की ज़िंदगी बदल सकती है, जिनके साथ इतनी बेरहमी से सलूक किया गया था?

सही तरह का विश्‍वास

यहाँ तो सिर्फ चंद मिसालें दी गई हैं। मगर ऐसी और भी कई मिसालें हैं जो दिखाती हैं कि अगर बाइबल पर आधारित सच्चा विश्‍वास हो तो यह कितना ताकतवर होता है। यह सच है कि परमेश्‍वर में विश्‍वास करने का दावा करनेवाले सभी लोग बाइबल में दिए गए ऊँचे स्तरों के अनुसार नहीं जीते। यह भी सच है कि कुछ नास्तिक तो उन लोगों से बेहतर ज़िंदगी गुज़ारते हैं जो खुद को ईसाई कहते हैं। लेकिन सिर्फ बाइबल या परमेश्‍वर में विश्‍वास करने के दावा से ही एक व्यक्‍ति मसीही नहीं बन जाता। सच्चा मसीही बनने के लिए विश्‍वास के अलावा कुछ और बात की भी ज़रूरत होती है।

प्रेरित पौलुस ने विश्‍वास को “आशा की हुई वस्तुओं का निश्‍चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण” कहा। (इब्रानियों 11:1) इसलिए विश्‍वास में यह बात शामिल है कि ऐसी अनदेखी वस्तुओं पर गहरी आस्था रखना जिनका ठोस प्रमाण हो। इसका मतलब यह है कि चाहे जो हो, एक इंसान इस बात पर पूरा यकीन रखता है कि परमेश्‍वर अस्तित्त्व में है, उसे इंसानों में दिलचस्पी है और जो उसकी इच्छा पूरी करेंगे उन्हें परमेश्‍वर आशीष ज़रूर देगा। और इसीलिए प्रेरित ने कहा था: “परमेश्‍वर के पास आनेवाले को विश्‍वास करना चाहिए, कि वह है; और अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।”—इब्रानियों 11:6.

इस तरह के विश्‍वास ने ही जॉन, तान्या और इस लेख में बताये गये दूसरे लोगों की ज़िंदगी सँवारी थी। इस विश्‍वास की वज़ह से वे परमेश्‍वर के वचन, बाइबल पर पूरा-पूरा भरोसा करने लगे और इसके आधार पर उन्हें अपने फैसले करने में मदद मिली। गलत रास्ते पर चलना बहुत ही सुविधाजनक और आसान होता है मगर बाइबल पर आधारित विश्‍वास की वज़ह से ही वे चंद दिनों की मौज-मस्ती का त्याग कर पाए। यहाँ दिया गया हर अनुभव अलग-अलग था मगर सबकी शुरूआत एक जैसी थी। इनमें से हरेक व्यक्‍ति के साथ यहोवा के एक साक्षी ने बाइबल का अध्ययन किया और उन्होंने बाइबल की उस सच्चाई को अनुभव किया जो कहती है: “परमेश्‍वर का वचन जीवित, और प्रबल [है]।” (इब्रानियों 4:12) परमेश्‍वर के वचन की शक्‍ति ने हर व्यक्‍ति को एक मज़बूत विश्‍वास विकसित करने में मदद दी जिससे उनकी ज़िंदगी सँवर गयी।

यहोवा के साक्षी आज 230 से भी ज़्यादा देशों और द्वीपों में प्रचार का काम कर रहे हैं। वे आपको भी बाइबल का अध्ययन करने के लिए न्योता देते हैं। क्यों? क्योंकि उन्हें यकीन है कि बाइबल पर आधारित विश्‍वास से आपकी ज़िंदगी में भी बड़े-बड़े सुधार हो जाएँगे।

[फुटनोट]

^ वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित।

[पेज 3 पर तसवीरें]

बाइबल पर आधारित विश्‍वास ज़िंदगी को सँवारता है

[पेज 2 पर चित्र का श्रेय]

Title card of Biblia nieświeska by Szymon Budny, 1572