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यहोवा का भवन ‘मनभावनी वस्तुओं’ से भर रहा है

यहोवा का भवन ‘मनभावनी वस्तुओं’ से भर रहा है

यहोवा का भवन ‘मनभावनी वस्तुओं’ से भर रहा है

“मैं [यहोवा] सारी जातियों को कम्पकपाऊंगा, और सारी जातियों की मनभावनी वस्तुएं आएंगी; और मैं इस भवन को अपनी महिमा के तेज से भर दूंगा।”—हाग्गै २:7.

1. खतरे के समय सबसे पहले हम अपने अज़ीज़ों की चिंता क्यों करते हैं?

 आपके घर में कौन-कौन-सी मनभावनी और कीमती चीज़ें हैं? क्या आपके पास सुंदर, बेशकीमती फर्नीचर है, लेटेस्ट कंप्यूटर है, नई कार है? अगर आपके पास ये सारी चीज़ें हैं, तो भी क्या आप इस बात से इंकार कर सकते हैं कि आपके घर में सबसे अनमोल चीज़ इंसान यानी आपके परिवार के सदस्य हैं? मान लीजिए एक रात अचानक आपकी नींद खुलती है और आपको कुछ जलने की गंध आती है। अरे! घर में तो आग लग गई! अब आपको फौरन यहाँ से भाग निकलना है वरना जान नहीं बचेगी। तो ऐसे वक्‍त पर आप सबसे पहले किसकी चिंता करेंगे? अपने फर्नीचर की? कंप्यूटर की? कार की? या अपने परिवार के सदस्यों की? इसमें कोई शक नहीं कि आप सबसे पहले अपने अज़ीजों की चिंता करेंगे क्योंकि इंसान की कीमत, दुनिया की किसी भी चीज़ से बढ़कर है।

2. यहोवा ने कौन-कौन-सी चीज़ें बनाईं और उनमें से यीशु को सबसे ज़्यादा क्या पसंद था?

2 अब आप यहोवा परमेश्‍वर और उसके बेटे यीशु मसीह के बारे में सोचिए। यहोवा ने ही “स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जो कुछ उन में है बनाया।” (प्रेरितों 4:24) उसका बेटा जो एक कुशल “कारीगर” है, उसी के ज़रिए यहोवा ने और भी कई चीजें बनायीं। (नीतिवचन 8:30, 31; यूहन्‍ना 1:3; कुलुस्सियों 1:15-17) बेशक, यहोवा और यीशु की नज़रों में उनकी बनाई हुई हर चीज़ बहुत ही मूल्यवान होगी। (उत्पत्ति 1:31 से तुलना कीजिए।) लेकिन ज़रा सोचिए, सभी चीज़ों में से कौन-सी चीज़ उनके लिए सबसे अनमोल है—वस्तुएँ या इंसान? नीतिवचन किताब में “बुद्धि” यानी यीशु ने कहा: “मेरा सुख मनुष्यों की संगति से होता था।” ईज़ी-टू-रीड बाइबल कहती है कि “मेरी खुशी समूची मानवता थी।”

3. यहोवा ने हाग्गै के ज़रिए कौन-सी भविष्यवाणी की?

3 इसमें दो राय नहीं कि यहोवा इंसानों को सबसे मूल्यवान समझता है। इसका एक सबूत हमें उसके इस वचन से मिलता है जो उसने हाग्गै भविष्यवक्‍ता से सा.यु.पू. 520 में कहा था। यहोवा ने कहा था: “मैं सारी जातियों को कम्पकपाऊंगा, और सारी जातियों की मनभावनी वस्तुएं आएंगी; और मैं इस भवन को अपनी महिमा के तेज से भर दूंगा . . .। इस भवन की पिछली महिमा इसकी पहिली महिमा से बड़ी होगी।”—हाग्गै 2:7, 9.

4, 5. (क) हाग्गै के समय में “मनभावनी वस्तुएं” सोना-चाँदी क्यों नहीं हो सकती थीं जिनसे यहोवा अपने भवन को भरता? (ख) “मनभावनी वस्तुएं” क्या हैं और आप ऐसा क्यों कहते हैं?

4 ऐसी किन ‘मनभावनी वस्तुओं’ से यहोवा अपने भवन को भरता जिसकी वज़ह से इस भवन की महिमा, पहले भवन की महिमा से बड़ी होती? क्या महँगी-महँगी सजावट की चीज़ों से? सोने, चाँदी या बहुमोल पत्थरों से? ज़रा याद कीजिए कि हाग्गै के समय से लगभग 500 साल पहले सुलैमान ने जो मंदिर बनाया था वह कैसा था। वह बहुत ही आलीशान और महँगी इमारत थी, जिसकी शान के क्या कहने! * लेकिन अब, हाग्गै के समय में ऐसा मंदिर बनाना मुमकिन नहीं था। क्यों? क्योंकि जो यहूदी इस मंदिर को बनानेवाले थे वे अभी-अभी बाबुल की बंधुआई से लौटे थे और उनकी गिनती भी बहुत कम थी। इसलिए यहोवा इस बार उनसे सोने-चाँदी और बहुमूल्य पत्थरों से मंदिर बनाने की उम्मीद नहीं कर सकता था।

5 तो फिर वे “मनभावनी वस्तुएं” क्या हैं जो यहोवा के भवन को भरतीं? ये कुछ और नहीं बल्कि इंसान हैं। यहोवा का मन सोने-चाँदी से नहीं बल्कि इंसानों से खुश होता है जो उससे प्यार करते हैं और दिल से उसकी सेवा करते हैं। (नीतिवचन 27:11; 1 कुरिन्थियों 10:26) जी हाँ, वह ऐसे हर स्त्री, पुरुष और बच्चे को बेशकीमती समझता है, जो उसकी इच्छा के मुताबिक उसकी उपासना करते हैं। (यूहन्‍ना 4:23, 24) ये इंसान ही यहोवा की नज़रों में “मनभावनी वस्तुएं” हैं और सुलैमान के मंदिर में सजाए गए कीमती आभूषण, इंसान के आगे कुछ भी नहीं।

6. पुराने ज़माने में परमेश्‍वर के मंदिर का क्या मकसद था?

6 बाबुल से लौटे यहूदियों ने कई विरोधों के बावजूद आखिरकार, सा.यु.पू 515 में मंदिर को बनाकर तैयार कर ही दिया। तब से लेकर यीशु के बलिदान होने तक यह मंदिर परमेश्‍वर की सच्ची उपासना की जगह रही। यहाँ “मनभावनी वस्तुएं” यानी यहूदी और यहूदी धर्म अपनानेवाले गैर-यहूदी उपासना के लिए आया करते थे। मगर इस मंदिर का एक लाक्षणिक मतलब भी है। आइए देखें वह क्या है।

पहली सदी में

7. (क) यरूशलेम के मंदिर का लाक्षणिक मतलब क्या है? (ख) प्रायश्‍चित्त के दिन महायाजक क्या काम करता था?

7 यरूशलेम का मंदिर एक लाक्षणिक मंदिर को सूचित करता है। यह लाक्षणिक मंदिर यहोवा की उपासना करने का एक ऐसा इंतज़ाम है जिसे उसने सा.यु. 29 में शुरू किया गया। यहोवा ने सा.यु. 29 में यीशु मसीह को इस लाक्षणिक मंदिर का महायाजक बनाया। (इब्रानियों 5:4-10; 9:11, 12) आइए अब देखें कि इस्राएल के महायाजक का काम और यीशु का काम कैसे मिलता-जुलता है। हर साल प्रायश्‍चित्त दिन में महायाजक मंदिर के आंगन में जाकर वहाँ की वेदी पर याजकों के पापों के लिए बछड़े की बलि चढ़ाता था। फिर वह बछड़े का लहू लेकर आंगन और पवित्र स्थान के बीच के पर्दे से होते हुए पवित्र स्थान में जाता था। इसके बाद एक और पर्दे को पार करके वह अति-पवित्र स्थान में जाता था, जहाँ अंदर वह वाचा के संदूक पर बलि का लहू छिड़कता। ठीक इसी तरह, बाद में वह एक बकरे की बलि भी चढ़ाता था जो इस्राएल के 12 गोत्रों के पापों के प्रायश्‍चित्त के लिए होता था। (लैव्यव्यवस्था 16:5-15) मगर यही काम लाक्षणिक मंदिर का महायाजक यीशु किस तरह करता है?

8. (क) हम क्यों कह सकते हैं कि सा.यु. 29 में यीशु ने लाक्षणिक तौर पर खुद की बलि चढ़ाई? (ख) पृथ्वी पर अपनी सेवकाई के दौरान यीशु का परमेश्‍वर के साथ कौन-सा एक खास रिश्‍ता था?

8 यरूशलेम में आँगन की वेदी का लाक्षणिक मतलब अपने सेवकों के लिए परमेश्‍वर की इच्छा है। जिस तरह वेदी पर महायाजक पशुओं की बलि चढ़ाता था, उसी तरह यीशु ने परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने के लिए सा.यु. 29 में बपतिस्मा लेकर परमेश्‍वर की पवित्र-आत्मा से अभिषिक्‍त हुआ, और लाक्षणिक तौर पर खुद की बलि चढ़ाई। (लूका 3:21, 22) क्योंकि उसी समय से वह ऐसे मार्ग पर निकल पड़ा जो साढ़े तीन साल बाद आखिर में उसकी मौत पर खत्म होता। (इब्रानियों 10:5-10) परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा से अभिषिक्‍त होने के बाद, यीशु परमेश्‍वर का आत्मिक पुत्र बन गया। तब से साढ़े तीन साल के दौरान उसकी इस अभिषिक्‍त स्थिति में परमेश्‍वर के साथ उसका कैसा रिश्‍ता था, उसे कोई इंसान पूरी तरह समझ नहीं सका। ठीक उसी तरह जैसे महायाजक को पवित्र स्थान में प्रवेश करने के बाद पर्दे की वज़ह से कोई देख नहीं सकता था।—निर्गमन 40:28.

9. जब यीशु एक इंसान था तब वह स्वर्ग में प्रवेश क्यों नहीं कर सकता था और यह रुकावट कैसे दूर हुई?

9 परमेश्‍वर के साथ ऐसा अभिषिक्‍त रिश्‍ता होने के बावजूद यीशु स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सकता था। क्यों नहीं? क्योंकि मांस और लहू का शरीर परमेश्‍वर के स्वर्गीय राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता। (1 कुरिन्थियों 15:44, 50) इसलिए जब तक यीशु एक इंसान रहता वह स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सकता था। ठीक जैसे पवित्र और अति-पवित्र स्थान के बीच एक पर्दा था, उसी तरह लाक्षणिक मंदिर के अति-पवित्र स्थान यानी स्वर्ग में प्रवेश करने के लिए यीशु का शरीर एक पर्दे के समान रुकावट थी। (इब्रानियों 10:20) लेकिन यीशु के मरने के तीन दिन बाद जब परमेश्‍वर ने उसे आत्मिक प्राणी के रूप में ज़िंदा किया तब वह स्वर्ग में प्रवेश कर सकता था। (1 पतरस 3:18) और उसने ऐसा किया भी। क्योंकि पौलुस ने लिखा: “मसीह ने उस हाथ के बनाए हुए पवित्र स्थान में जो सच्चे पवित्र स्थान का नमूना है, प्रवेश नहीं किया, पर स्वर्ग ही में प्रवेश किया, ताकि हमारे लिये अब परमेश्‍वर के साम्हने दिखाई दे।”—इब्रानियों 9:24.

10. स्वर्ग में प्रवेश करने पर यीशु ने क्या किया?

10 जिस तरह महायाजक अति-पवित्र स्थान में वाचा के संदूक के सामने पापों के प्रायश्‍चित्त के लिए लहू छिड़कता था, उसी तरह यीशु ने स्वर्ग में परमेश्‍वर के सामने अपने बहाए गए लहू की कीमत अदा की ताकि इंसानों को पाप से मुक्‍त कर सके और उन्हें बदले में ज़िंदगी दे सके। लेकिन यीशु ने इससे भी बढ़कर कुछ काम किया। उसने अपने चेलों के लिए स्वर्ग जाने का रास्ता खोल दिया। अपनी मौत के कुछ समय पहले उसने अपने चेलों से कहा था: “मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूं। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूं, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहां ले जाऊंगा, कि जहां मैं रहूं वहां तुम भी रहो।” (यूहन्‍ना 14:2, 3) इस तरह जब यीशु ने अति-पवित्र स्थान या स्वर्ग में प्रवेश किया तो उसने चेलों के लिए भी स्वर्ग जाने का रास्ता तैयार कर दिया। (इब्रानियों 6:19, 20) स्वर्ग में जानेवाले चेलों की संख्या 1,44,000 होती। वे यहोवा के लाक्षणिक मंदिर में याजकों का काम करते। (प्रकाशितवाक्य 7:4; 14:1; 20:6) जिस तरह इस्राएल का महायाजक पहले याजकों के पापों की प्रायश्‍चित्त के लिए बछड़े की बलि चढ़ाता था, उसी तरह यीशु के लहू से सबसे पहले इन 1,44,000 याजकों को फायदा होता। *

हमारे दिनों में “मनभावनी वस्तुएं”

11. इस्राएल का महायाजक बकरे की बलि किन लोगों के लिए चढ़ाता था और आज लाक्षणिक मंदिर में इसका मतलब क्या है?

11 अभिषिक्‍त लोगों को इकट्ठा किए जाने का काम सन्‌ 1935 तक लगभग पूरा हो चुका था। * लेकिन लाक्षणिक मंदिर को महिमा की तेज से भरने का काम पूरा नहीं हुआ था क्योंकि उसमें अभी तक “मनभावनी वस्तुएं” नहीं आई थीं। ये “मनभावनी वस्तुएं” क्या हैं, आइए इसे समझने के लिए एक बार फिर गौर करें कि इस्राएल का महायाजक मंदिर में क्या करता था। वह दो पशुओं की बलि चढ़ाता था। पहले बछड़े की बलि, याजकों के लिए और इसके बाद बकरे की बलि 12 गोत्रों के लिए। यह हमने देखा कि लाक्षणिक मंदिर के याजक, अभिषिक्‍त लोग हैं जो यीशु के साथ स्वर्ग में राज्य करेंगे। तो इस मंदिर में 12 गोत्र के लोग कौन हैं? इसका जवाब हमें यीशु के इन शब्दों से मिलता है जो यूहन्‍ना 10:16 में लिखा है: “मेरी और भी [अन्य, NW] भेड़ें हैं, जो इस भेड़शाला की नहीं: मुझे उन का भी लाना अवश्‍य है, वे मेरा शब्द सुनेंगी; तब एक ही झुण्ड और एक ही चरवाहा होगा।” इसलिए लाक्षणिक मंदिर में 12 गोत्र के लोग “अन्य भेड़ें” हैं। इस तरह यीशु के बहाए गए खून से दो वर्गों को फायदा होता है। पहले उन अभिषिक्‍त मसीहियों को जो स्वर्ग जाने की आशा रखते हैं और दूसरे ‘अन्य भेड़’ के लोगों को जो सुंदर पृथ्वी पर अमन-चैन से हमेशा तक जीने की आशा रखते हैं। इसलिए हाग्गै की भविष्यवाणी में बताई गई “मनभावनी वस्तुएं” ‘अन्य भेड़’ के लोग हैं।—मीका 4:1, 2; 1 यूहन्‍ना 2:1, 2.

12. परमेश्‍वर के भवन में किस तरह “मनभावनी वस्तुएं” लायी जा रही हैं?

12 इन ‘मनभावनी वस्तुओं’ से यहोवा का भवन अब भी भरता जा रहा है। हाल में, कई देशों ने साक्षियों के काम पर से पाबंदी हटा दी है। इस तरह उन देशों में भी सुसमाचार सुनाने की छूट मिली है जहाँ पहले कभी सुसमाचार नहीं सुनाया गया था। पूर्वी यूरोप, अफ्रीका के कुछ देशों और कई अन्य देशों में परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार पहुँचा है जिसका नतीजा बहुत ही शानदार रहा। वहाँ से आज बड़ी तादाद में “मनभावनी वस्तुएं” यहोवा के भवन में इकट्ठी की जा रही हैं। ये “मनभावनी वस्तुएं” यीशु की आज्ञा मानते हुए और भी चेले बनाने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रही हैं। (मत्ती 28:19, 20) और उनकी मेहनत ज़रूर रंग लाएगी क्योंकि उनके संदेश पर जवान, बूढ़े, हर उम्र के लोग कान दे रहे हैं जो आगे चलकर “मनभावनी वस्तुएं” साबित होंगे। इस तरह यहोवा के भवन की महिमा और भी बढ़ जाएगी। आइए कुछ उदाहरणों पर गौर करें कि यह कैसे हो रहा है।

13. राज्य का प्रचार करने में बोलिविया की नन्हीं-सी लड़की ने किस तरह जोश दिखाया?

13 बोलिविया देश में पाँच साल की एक बच्ची पर गौर कीजिए, जिसके माता-पिता साक्षी हैं। उस बच्ची ने अपने स्कूल की टीचर से सर्किट ओवरसियर के विज़िट के दौरान एक हफ्ते की छुट्टी माँगी। क्यों? क्योंकि वह उस खास सप्ताह के दौरान, हर दिन प्रचार में जाना चाहती थी। यह जानकर उसके माता-पिता को बहुत ताज्जुब हुआ मगर वे अपनी बेटी का यह जोश देखकर बहुत खुश भी हुए। हमारी यह नन्हीं-सी बहन अब पाँच बाइबल अध्ययन कर रही है और इनमें से कुछ तो सभाओं में भी आते हैं। वह अपने स्कूल टीचर को भी किंगडम हॉल लायी थी। हो सकता है, उसके कुछ बाइबल अध्ययन, बाद में “मनभावनी वस्तुएं” बनकर यहोवा के भवन की महिमा को तेज़ कर दें।

14. कोरिया में जब एक बहन ने दिलचस्पी न दिखानेवाले लड़के से बात करने में हार नहीं मानी तो क्या नतीजा निकला?

14 कोरिया में एक बहन जब एक बार रेल्वे स्टेशन पर ट्रेन का इंतज़ार कर रही थी तब उसने एक विद्यार्थी को देखा जो हैड्‌फोन लगाए संगीत सुन रहा था। बहन ने उसके पास जाकर पूछा: “आप किस धर्म को मानते हैं?” लड़के ने जवाब दिया: “मुझे धर्म में कोई दिलचस्पी नहीं।” ऐसा जवाब सुनकर बहन पीछे नहीं हटी बल्कि उसने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा: “ज़िंदगी में कभी ऐसा मुकाम आ सकता है जब एक इंसान कोई धर्म अपनाना चाहे। लेकिन, अगर उसे धर्म के बारे में सही जानकारी न हो तो हो सकता है कि वह गलत धर्म अपना ले।” अब लड़के की दिलचस्पी बढ़ी और वह बहन की बात ध्यान से सुनने लगा। बहन ने उसे क्या एक सिरजनहार है जो आपकी परवाह करता है? किताब दी और कहा कि जब धर्म चुनने की बात आएगी तो यह किताब आपकी बहुत मदद करेगी। उसने बड़ी खुशी से वह किताब ले ली। अगले ही हफ्ते वह यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन करने लगा और सभी सभाओं में जाने लगा।

15. जापान में एक छोटी लड़की बाइबल अध्ययन शुरू करने के लिए किस तरह कोशिश करती है और उसकी कोशिश कैसे कामयाब हुई?

15 जापान में 12 साल की एक बहन मेगूमी को प्रचार करने और सिखाने के लिए अपना स्कूल सबसे अच्छा लगता है। वहाँ उसने कई बाइबल अध्ययन स्टडी भी शुरू किए हैं। यह कैसे मुमकिन हुआ? जब उसे खाने की छुट्टी मिलती है, तब वह अपनी बाइबल पढ़ाई करती है या मीटिंग की तैयारी करती है। यह देखकर अकसर उसके क्लास के बच्चे उससे पूछते हैं कि वह क्या कर रही है। कुछ बच्चे मेगूमी से यह भी पूछते हैं कि वह स्कूल के कुछ खास प्रोग्रामों में क्यों भाग नहीं लेती। मेगूमी उनके जवाब देती है और फिर यह भी बताती है कि परमेश्‍वर का एक नाम है। उसकी बात से सुननेवालों की दिलचस्पी बढ़ जाती है। फिर वह उनसे बाइबल का अध्ययन करने के लिए कहती है। इस तरह मेगूमी फिलहाल 20 बाइबल अध्ययन कर रही है जिनमें से 18 तो उसके क्लास के बच्चे हैं।

16. कैमरून के भाई ने एक ग्रुप के कुछ लोगों के साथ किस तरह बाइबल अध्ययन शुरू किया जो उसे नीचा दिखाना चाहते थे?

16 कैमरून में एक भाई सड़क पर प्रचार कर रहा था और वहीं पास में आठ आदमी मिलकर कुछ काम कर रहे थे। उस भाई को नीचा दिखाने के इरादे से उन लोगों ने भाई को बुलाया और पूछा कि वह त्रियेक, नरकाग्नि और अमर आत्मा जैसी शिक्षाएँ क्यों नहीं मानता। तब भाई ने बाइबल से उनके सभी सवालों का जवाब दिए और इसका नतीजा यह हुआ कि उनमें से तीन लोगों ने बाइबल का अध्ययन करना शुरू कर दिया। इन तीनों में से एक का नाम है डैनियेल। उसने सभाओं में भी जाना शुरू कर दिया और जादू-टोना से संबंध रखनेवाली अपनी सभी चीज़ों को नष्ट कर दिया। (प्रकाशितवाक्य 21:8) और एक साल भी पूरा नहीं हुआ था कि उसने बपतिस्मा ले लिया।

17. ऐल सैल्वाडोर में भाइयों ने किस तरह चतुराई दिखाते हुए ऐसे आदमी को प्रचार किया जो राज्य संदेश नहीं सुनना चाहता था?

17 ऐल सैल्वाडोर में एक आदमी जब भी यहोवा के साक्षियों को आस-पास देखता, तो वह अपने दरवाज़े पर एक बहुत ही खूँखार कुत्ता बाँध देता। फिर साक्षियों के वहाँ से निकलते ही वह कुत्ते को वापस घर में ले आता। भाइयों को इस आदमी से बात करने का कभी मौका ही नहीं मिला था। सो एक बार उन्होंने एक तरकीब अपनायी। उन्होंने सोचा क्यों न कुत्ते को ही प्रचार कर दिया जाए क्योंकि वे जानते थे कि इससे वह आदमी भी उनकी बात सुन लेगा। वे उसके दरवाज़े पर गए और कुत्ते को नमस्ते करते हुए कहा कि हमें बड़ी खुशी हो रही है कि तुमसे बात करने का हमें मौका मिला है। इसके बाद उन्होंने नई दुनिया के बारे में बताया, जब सारी धरती बगीचे की तरह सुंदर होगी और सब लोग सुख-शांति से रहेंगे। किसी को भी गुस्सा नहीं आएगा, यहाँ तक कि जानवरों में भी शांति होगी। फिर वे बड़े अदब से कुत्ते को अलविदा कहते हुए अपनी राह चले। मगर फिर वे हैरान रह गए जब उस घर का आदमी उनके पीछे आया और उसने कहा कि वह इस बात के लिए माफी चाहता है कि उसने साक्षियों को आज तक बात करने का मौका नहीं दिया। फिर उसने पत्रिकाएँ ली और उसके साथ बाइबल अध्ययन शुरू हुआ। यह आदमी अब हमारा भाई है यानी एक और ‘मनभावनी वस्तु।’

“तुम मत डरो”

18. कई मसीही किस तरह की भावनाओं से लड़ रहे हैं लेकिन यहोवा अपने उपासकों को किस नज़र से देखता है?

18 आज प्रचार करना और चेला बनाना एक बहुत ही ज़रूरी काम है। क्या आप भी इस काम में हाथ बँटा रहे हैं? अगर हाँ, तो आपको बहुत खुश होना चाहिए क्योंकि इसी काम के ज़रिए तो यहोवा के भवन में “मनभावनी वस्तुएं” आ रही हैं। (यूहन्‍ना 6:44) हो सकता है यह काम करते-करते आप कई बार निराश हो जाएँ या थक जाएँ। औरों की तरह शायद यहोवा के कुछ वफादार सेवक भी कभी-कभी खुद को एकदम बेकार समझें। मगर हिम्मत मत हारिए! यहोवा की नज़रों में उसका हर उपासक बहुत ही मनभावना है और वह उसके उद्धार में गहरी दिलचस्पी रखता है।—2 पतरस 3:9.

19. यहोवा ने हाग्गै के ज़रिए यहूदियों की हिम्मत कैसे बढ़ाई थी और उन शब्दों से आज हमारी हिम्मत कैसे बढ़ती है?

19 चाहे विरोध की वज़ह से या किसी बुरे हालात की वज़ह से, जब हम निराश हो जाते हैं तब यहोवा के उन शब्दों से हमें भी वाकई हिम्मत मिल सकती है, जो उसने बंधुआई से निकले यहूदियों से कहे थे। हाग्गै 2:4-6 में हम पढ़ते हैं: “अब यहोवा की यह वाणी है, हे जरुब्बाबेल, हियाव बान्ध; और हे यहोसादाक के पुत्र यहोशू महायाजक, हियाव बान्ध; और यहोवा की यह भी वाणी है कि हे देश के सब लोगों हियाव बान्धकर काम करो, क्योंकि मैं तुम्हारे संग हूं, सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है। तुम्हारे मिस्र से निकलने के समय जो वाचा मैं ने तुम से बान्धी थी, उसी वाचा के अनुसार मेरा आत्मा तुम्हारे बीच में बना है; इसलिये तुम मत डरो। क्योंकि सेनाओं का यहोवा यों कहता है, अब थोड़ी ही देर बाकी है कि मैं आकाश और पृथ्वी और समुद्र और स्थल सब को कम्पित करूंगा।” ध्यान दीजिए कि यहोवा न सिर्फ हियाव बांधने के लिए कहता है बल्कि सहारा भी देता है। कैसे? उसने कहा, “मैं तुम्हारे संग हूं।” यह जानना ही हमारा हौसला बुलंद कर देता है और विश्‍वास मज़बूत करता है कि चाहे कोई भी मुसीबत क्यों न आए यहोवा हमेशा हमारे संग है!—रोमियों 8:31.

20. किस तरह यहोवा के लाक्षणिक मंदिर की महिमा बढ़ रही है जो पहले कभी नहीं हुई थी?

20 यहोवा ने वाकई यह साबित कर दिया है कि वह अपने लोगों के साथ है। उसने हाग्गै भविष्यवक्‍ता के ज़रिए जो कहा था, ठीक वैसा ही हुआ है: “इस भवन की पिछली महिमा इसकी पहिली महिमा से बड़ी होगी, . . . और इस स्थान में मैं शान्ति दूंगा।” (हाग्गै 2:9) जी हाँ, यहोवा के पहले मंदिर की महिमा से इस लाक्षणिक मंदिर की महिमा कहीं बढ़कर है। हर साल सैकड़ों-हज़ारों लोग सच्ची उपासना करने के लिए इसमें चले आ रहे हैं। ये लोग बहुतायत में आध्यात्मिक भोजन का आनंद ले रहे हैं और इस अशांत संसार में भी शांति पा रहे हैं। परमेश्‍वर की नई दुनिया में तो वे ऐसी खुशी और शांति पाएँगे जिसका अभी बयान ही नहीं किया जा सकता!—यशायाह 9:6, 7; लूका 12:42.

21. हमें कौन-सा दृढ़ संकल्प करना चाहिए?

21 अरमगिदोन में राष्ट्रों को कंपकंपाने का समय बहुत ही करीब आ रहा है। (प्रकाशितवाक्य 16:14, 16) इसलिए आइए इस बचे हुए समय में हम ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की जान बचाने की कोशिश करें। हम हिम्मत न हारें और यहोवा पर पूरा भरोसा रखें। और यह संकल्प करें कि उसके महान लाक्षणिक मंदिर में हमेशा उसकी उपासना करते रहेंगे और उसमें “मनभावनी वस्तुएं” भरते रहेंगे, जब तक कि यहोवा नहीं कह देता, बस अब काम हो गया।

[फुटनोट]

^ सुलैमान द्वारा बनाए गए मंदिर के लिए जितना दान मिला था, उसकी कीमत अगर आज के हिसाब से आँकी जाए तो लगभग ४0 अरब डालर होगी। मंदिर बनाने के बाद जो कुछ बच गया था उसे मंदिर के भंडार में डाल दिया गया।—1 राजा 7:51.

^ इस्राएल के महायाजक को, न सिर्फ दूसरे याजकों के पापों के लिए बल्कि अपने पापों के लिए भी बलि चढ़ानी होती थी। यीशु में कोई पाप नहीं था जिसके लिए प्रायश्‍चित्त की ज़रूरत होती। लेकिन उसके चेले जो उसके साथ याजक बनते वे पापपूर्ण मानवजाति से लिए गए थे इसलिए यीशु को उनकी खातिर प्रायश्‍चित्त की बलि चढ़ाना ज़रूरी था।—प्रकाशितवाक्य 5:9, 10.

^ फरवरी 15, 1998 के प्रहरीदुर्ग के पेज 17-22 देखिए।

क्या आपको याद है?

यहोवा की नज़रों में क्या सबसे अनमोल है?

यीशु के बहाए हुए लहू से किन दो वर्गों के लोगों को फायदा होता है?

“मनभावनी वस्तुएं” क्या हैं जो यहोवा के भवन को महिमा से भरती हैं?

क्या सबूत है कि आज हमारे दिनों में हाग्गै की भविष्यवाणी पूरी हो रही है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 16 पर रेखाचित्र]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

क्या आप जानते हैं कि यहोवा के प्राचीन मंदिर का आज लाक्षणिक मतलब क्या है?

पर्दा

पवित्र-स्थान

वेदी

अति पवित्र-स्थान

ओसारा

आँगन

[पेज 17 पर तसवीर]

महायाजक लेवियों के पापों के लिए बछड़े की बलि चढ़ाता और गैर-याजकीय इस्राएलियों के पापों के लिए बकरे की बलि चढ़ाता था

[पेज 18 पर तसवीर]

संसार भर में राज्य के प्रचार काम के ज़रिए बड़ी तादाद में लोगों को यहोवा के भवन की ओर लाया जा रहा है