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दिल में हो लगन तो सफलता चूमे कदम

दिल में हो लगन तो सफलता चूमे कदम

दिल में हो लगन तो सफलता चूमे कदम

आज के ज़माने में किसी में भी लगन का गुण दिखायी नहीं देता। कई लोग यह मानते हैं कि कामयाब होने में लगन से ज़्यादा संयोग का हाथ होता है। उनका कहना है कि अगर व्यक्‍ति सही समय पर सही जगह पर होगा तो वह कामयाब हो सकता है। अगर वे ऐसा सोचते हैं तो हम उन्हें दोष कैसे दे सकते हैं? क्योंकि अखबार, टीवी और रेडियो में ऐसे ढेर सारे विज्ञापन होते हैं जिनसे उनके विचार बदल जाते हैं और वे यह सोचने लगते हैं कि वे बहुत ही कम मेहनत में, मगर थोड़ा ज़्यादा पैसे देकर जो चाहे वो पा सकते हैं। अकसर हमें अखबारों में ऐसी रिपोर्टें पढ़ने को मिलती हैं जिनमें लिखा होता है कि रातोंरात कामयाबी ने कई लोगों के कदम चूमे। साथ ही हमें यह भी पढ़ने को मिलता है कि कई होनहार बच्चों ने स्कूल से ग्रैजुएशन करने के तुरंत बाद ही लाखों रुपए कमा लिए।

लेखक लियोनार्ड पिट्‌स कहता है: “दूसरों की कामयाबी को देखकर कई लोगों को लगता है कि बड़ा नाम कमाना या कामयाब होना बाएँ हाथ का खेल है क्योंकि उन्हें उनकी कामयाबी के पीछे लगी कड़ी मेहनत का अंदाज़ा नहीं होता। . . . वे सिर्फ कामयाबी को देखते हैं और यही सोचते हैं कि कोई भी व्यक्‍ति अगर होशियार व चालाक हो, या उसके पास काबिलियत हो और लक साथ दे, या परमेश्‍वर से उसे मदद मिल जाए, तो वह कामयाब हो सकता है।”

लगन क्या है?

लगन का मतलब है ‘समस्याओं या नाकामी के बावजूद अपने मकसद, हालात, या काम में दृढ़ता के साथ और मज़बूती से टिके या लगे रहना।’ इसका यह भी अर्थ है कि चाहे कितनी भी विपत्ति क्यों न आए, मगर हार माने बिना, दृढ़ता से अपने मकसद को पूरा करने का निश्‍चय करना और उस पर डटे रहना। इस गुण की एहमियत पर बाइबल ज़ोर देती है। मिसाल के तौर पर, परमेश्‍वर के वचन में हमें यह सलाह दी गयी है: ‘तुम पहले परमेश्‍वर के राज्य की खोज में लगे रहो,’ ‘खटखटाते रहो, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा,’ “प्रार्थना में नित्य लगे रहो,” और ‘जो अच्छा है उसे पकड़े रहो।’—मत्ती 6:33, NHT; लूका 11:9; रोमियों 12:12; 1 थिस्सलुनीकियों 5:21.

जब हम किसी लक्ष्य को पाने की कोशिश करते हैं तो अकसर नाकामी का मुँह भी देखना पड़ता है। और लगन में यह बात शामिल है कि हम नाकामी का सामना करें। नीतिवचन 24:16 कहता है: “धर्मी चाहे सात बार गिरे तौभी उठ खड़ा होता है।” (तिरछे टाइप हमारे।) जब कोई कठिनाई आती है या नाकामी हाथ लगती है तब ‘हार मान लेने’ के बजाय, डटे रहनेवाला व्यक्‍ति “उठ खड़ा होता” है, और कोशिश ‘करता रहता’ है।

मगर कई लोग कठिनाइयों और नाकामियों का सामना करने के लिए तैयार नहीं होते हैं। क्योंकि उन्होंने कभी किसी काम में डटे रहने की इच्छा-शक्‍ति ही विकसित नहीं की होती। इसलिए नाकामी हाथ लगने पर वे बहुत जल्दी हथियार डाल देते हैं। लेखक मोरली कालाघन कहता है, “नाकाम होने पर कई लोग इस तरह व्यवहार करते हैं जिससे वे खुद को बहुत हानि पहुँचाते हैं। वे खुद पर तरस खाने लगते हैं, सभी को दोषी ठहराते हैं, अपना दिल खट्टा कर लेते हैं और . . . हार मान लेते हैं।”

यह सही नज़रिया नहीं है। इससे कोई फायदा भी नहीं होता। दरअसल, पिट्‌स कहता है, “हम यह भूल जाते हैं कि परीक्षाओं से हमें कुछ-न-कुछ फायदा होता है। हर क्लेश से हम कुछ-न-कुछ सीखते हैं।” क्या सीख सकते हैं? वह आगे कहता है, “[व्यक्‍ति] सीखता है कि नाकाम होने पर कोई मर नहीं जाता है, ना ही वह हमेशा नाकाम ही रहेगा। बल्कि इससे व्यक्‍ति के सोचने-समझने की शक्‍ति बढ़ती है। और अगली बार सामना करने के लिए वह तैयार रहता है।” इसके बारे में बाइबल सरल शब्दों में कहती है: “परिश्रम से सदा लाभ होता है।”—नीतिवचन 14:23.

माना कि नाकाम होने के बाद फिर से उसी काम को शुरू करना हमेशा आसान नहीं होता। कभी-कभी हमें ऐसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिससे हमें लगता है कि हमारी सभी कोशिशों पर पानी फिर गया है। और मंज़िल पास आने के बजाय, ऐसा लगता है कि हमारी मंज़िल तो और भी दूर खिसकती जा रही है। हमारा दिल शायद बैठ जाए, या हम खुद को किसी भी काम के काबिल न समझें, और शायद मायूस या हताश हो जाएँ। (नीतिवचन 24:10) मगर, इस बारे में बाइबल हमारा हौसला बढ़ाती है: “हम भले काम करने में हियाव न छोड़ें, क्योंकि यदि हम ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे।” (तिरछे टाइप हमारे।)—गलतियों 6:9.

कौन-सी बात हमें डटे रहने में मदद करेगी?

किसी खास मार्ग या काम में डटे रहने के लिए पहला कदम है, ऐसे फायदेमंद और कारगर लक्ष्य रखना जिन्हें हम हासिल कर सकें। प्रेरित पौलुस इस बात को अच्छी तरह समझता था। इसीलिए उसने कुरिन्थ के भाइयों से कहा: “मैं तो इसी रीति से दौड़ता हूं, परन्तु बेठिकाने नहीं, मैं भी इसी रीति से मुक्कों से लड़ता हूं, परन्तु उस की नाईं नहीं जो हवा पीटता हुआ लड़ता है।” पौलुस जानता था कि अगर उसकी मेहनत को रंग लानी है, तो उसे समझदारी से अपने लक्ष्य तय करने होंगे और पूरी मेहनत करनी होगी और हमेशा अपने लक्ष्य को ध्यान में रखना होगा, ठीक उसी तरह जैसे किसी दौड़ में धावक का पूरा-पूरा ध्यान अंतिम रेखा पर होता है। इसलिए पौलुस ने उन्हें सलाह दी, “क्या तुम नहीं जानते, कि दौड़ में तो दौड़ते सब ही हैं, परन्तु इनाम एक ही ले जाता है? तुम वैसे ही दौड़ो, कि जीतो।” (1 कुरिन्थियों 9:24, 26) हम ऐसा कैसे कर सकते हैं?

नीतिवचन 14:15 कहता है, “चतुर मनुष्य समझ बूझकर चलता है।” सो, अगर हम समय-समय पर इसकी जाँच करते रहे कि हम अपनी ज़िंदगी को कैसे चला रहे हैं, तो यह बुद्धिमानी की बात होगी। साथ ही हमें खुद से ये सवाल पूछते रहना चाहिए कि हमारी ज़िंदगी कौन-सा मोड़ ले रही है और क्या हमें कुछ फेरबदल करने की ज़रूरत है। अपने मन में यह बात साफ-साफ रखना बहुत ज़रूरी है कि हम क्या हासिल करना चाहते हैं और क्यों। अगर हमारे मन में अपनी मंज़िल एकदम साफ दिखती है तो हम इतनी जल्दी हार मानने को तैयार नहीं होंगे। परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा गया नीतिवचन हमसे आग्रह करता है, “तेरी आंखें साम्हने ही की ओर लगी रहें,” ताकि “तेरे सब मार्ग ठीक रहें।”—नीतिवचन 4:25, 26.

अपने लक्ष्य तय कर लेने के बाद, अगला कदम है यह तय करना कि आप उन तक पहुँचेंगे कैसे। यीशु ने पूछा था: “तुम में से कौन है कि गढ़ बनाना चाहता हो, और पहिले बैठकर खर्च न जोड़े?” (लूका 14:28) इस बात के मुताबिक ही एक मॆंटल हैल्थ चिकित्सक ने कहा: “जो एक बात मैंने कामयाब लोगों में देखी है वह है कि वे किस्मत में विश्‍वास नहीं करते। वे मानते हैं कि हर बात के पीछे कोई-न-कोई वज़ह होती है। आदमी जैसे काम करेगा वैसा ही पाएगा। इसलिए वे जानते हैं कि अगर उन्हें कुछ पाना है तो उसे हासिल करने के लिए उन्हें सभी ज़रूरी काम भी करने होंगे।” जब यह बात अच्छी तरह समझ ली जाती है कि अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए कौन-कौन-से ज़रूरी काम करने हैं, तब यह बात हमें अपने लक्ष्य को हमेशा ध्यान में रखने में मदद देती है। और अगर हम बीच में नाकाम हो भी जाते हैं, तो यह हमें निराश होकर हार मान जाने नहीं देगा, बल्कि यह हमें फिर से उस काम में लग जाने या जुट जाने में मदद करेगा। ऑरविल और विलबर ने ऐसा ही तो किया था और इसी वज़ह से कामयाबी ने उनका कदम चूमा।

इसलिए, जब आप नाकाम हो जाते हैं तो ये मत समझिए कि अब सब कुछ खत्म हो गया है, बल्कि इनसे जितना हो सके उतना सीखने की पूरी कोशिश कीजिए। स्थिति का जायज़ा लीजिए, पता लगाइए कि आपने कहाँ-कहाँ गलती की और फिर अपनी गलती या कमज़ोरी को सुधारिए। दूसरों से बात करने से भी मदद मिलती है क्योंकि “सब कल्पनाएं सम्मति ही से स्थिर होती हैं।” (नीतिवचन 20:18) यह तो स्वाभाविक है कि हर कोशिश के साथ आप और ज़्यादा तज़ुर्बा और कौशल हासिल करते हैं जो आपको अगली बार कामयाब होने में मदद कर सकते हैं।

लगन में जो तीसरी बात बहुत ज़रूरी है, वह है जितना हो सके उतना करना मगर लगातार करना, उसे करने में लगे रहना। इस बारे में प्रेरित पौलुस हमें सलाह देता है: “जहां तक हम पहुंचे हैं, उसी के अनुसार [आगे चलते रहें]।” (फिलिप्पियों 3:16) एक शिक्षक ने इसे इस तरह कहा, “अगर व्यक्‍ति लगातार उतना करता है जितना उससे हो सकता है, तो समय आने पर उसे इसके अच्छे नतीजे मिलेंगे।” यह बात कछुए और खरगोश की जानी-मानी कहानी के द्वारा हमें अच्छी तरह समझायी गयी है। हालाँकि कछुए की चाल खरगोश से बहुत ही धीमी थी, मगर वह दौड़ जीत गया। क्यों? क्योंकि अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए कछुआ अंत तक लगातार, एक ही रफ्तार से चलता रहा और उसने अपनी मंज़िल को आँखों से ओझल होने नहीं दिया। उसने हार नहीं मानी मगर अपनी हैसियत के हिसाब से एक ऐसी रफ्तार तय की जिस पर वह अंत तक टिका रह सकता था। उसी तरह व्यक्‍ति भी अगर अपने लक्ष्य को पाने के लिए लगातार, बिना हारे कोशिश करता ही रहेगा, तो वह ज़रूर प्रगति करेगा। और उसमें लगे रहने की वज़ह से उसमें हमेशा जोश भरा रहता है। इसलिए उसके हारने की या दौड़ से निकाल दिए जाने की गुंजाइश कम रहती है। जी हाँ, आप भी ‘ऐसे दौड़िए’ कि आप अपनी मंज़िल तक पहुँचकर जीत हासिल कर सकें।

सही और फायदेमंद लक्ष्य चुनना

बेशक, अगर लगन से कुछ फायदा पाना है तो हमें सही लक्ष्य रखना ज़रूरी है। कई लोग ऐसी-ऐसी चीज़ों के पीछे भागते हैं जिनसे खुशी नहीं मिलती। मगर बाइबल बताती है: “जो व्यक्‍ति स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था पर ध्यान करता रहता है, वह अपने काम में इसलिये आशीष [खुशी] पाएगा कि . . . वैसा ही काम करता है।” (याकूब 1:25) जी हाँ, बाइबल में लिखी परमेश्‍वर की व्यवस्था को समझने का लक्ष्य बहुत ही फायदेमंद लक्ष्य है। वह क्यों? क्योंकि परमेश्‍वर की व्यवस्था उसके सिद्ध और धर्मी स्तरों पर आधारित है। और चूँकि उसने हम सब को बनाया है, इसलिए वह जानता है कि उसकी सृष्टि के लिए सबसे अच्छा क्या है। सो अगर हम परमेश्‍वर के उपदेशों को लगन से सीखते रहते हैं और उन पर अमल करते रहते हैं तो इससे हमें ज़रूर खुशी मिलेगी। नीतिवचन 3:5, 6 हमसे वादा करता है, “तू . . . सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।”

और तो और, यीशु ने कहा कि उसका और परमेश्‍वर का ज्ञान लेने का मतलब है “अनन्त जीवन” पाना। (यूहन्‍ना 17:3) बाइबल की भविष्यवाणी दिखाती है कि आज हम दुनिया के “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं। (2 तीमुथियुस 3:1-5; मत्ती 24:3-13) जल्द ही परमेश्‍वर का राज्य यानी उसकी धर्मी सरकार ज़मीन पर हुकूमत करना शुरू करेगी। (दानिय्येल 2:44; मत्ती 6:10) और उस वक्‍त किसी को किसी भी चीज़ की कमी नहीं होगी, चारों तरफ खुशियों की बहार होगी और अमन-चैन होगा। (भजन 37:10, 11; प्रकाशितवाक्य 21:4) प्रेरितों 10:35 कहता है, “परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता।” जी हाँ, परमेश्‍वर की सरकार हर इंसान को खुशी और आशीष पाने का मौका दे रही है!

बाइबल बहुत ही पुरानी किताब है मगर इसमें बुद्धि और मतलब की बातें दी गयी हैं। इसे समझने में वक्‍त और मेहनत लगती है। मगर परमेश्‍वर की मदद से और इसका ज्ञान पाने में लगे रहने से, हम इसे समझ सकते हैं। (नीतिवचन 2:4, 5; याकूब 1:5) यह सच है कि इसकी बातों को अमल में लाना एक चुनौती साबित हो सकती है। क्योंकि शायद हमें अपने सोच-विचार या आदतों को बदलने की ज़रूरत पड़े। हमारे करीबी दोस्तों या परिवार के सदस्यों को शायद हमारा बाइबल पढ़ना पसंद न आए और इसलिए शायद वे हमारा विरोध करें। मगर इन सब मुश्‍किलों के बावजूद हमें बाइबल का अध्ययन करना बंद नहीं करना चाहिए बल्कि इसमें लगे रहना चाहिए। क्योंकि प्रेरित पौलुस हमें याद दिलाता है कि परमेश्‍वर सिर्फ उन लोगों को अनंत जीवन देगा जो ‘भले कार्यों में स्थिर रहते’ हैं। (रोमियों 2:7, NHT) यह लक्ष्य हासिल करने के लिए यहोवा के साक्षियों को आपकी मदद करने में बेहद खुशी होगी।

इस बात पर पूरा भरोसा रखिए कि अगर आप परमेश्‍वर और उसकी इच्छा के बारे में सीखने में लगे रहते हैं और सीखी हुई बातों को अमल में लाने में डटे रहते हैं, तो आप ज़रूर कामयाब होंगे।—भजन 1:1-3.

[पेज 6 पर तसवीर]

अगर आप परमेश्‍वर और उसकी इच्छा के बारे में सीखने में लगे रहते हैं तो आप ज़रूर कामयाब होंगे

[पेज 4 पर चित्र का श्रेय]

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