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क्या आप यीशु के नक्शे-कदम पर चलते हैं?

क्या आप यीशु के नक्शे-कदम पर चलते हैं?

क्या आप यीशु के नक्शे-कदम पर चलते हैं?

“उस ने . . . बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिन का कोई रखवाला न हो; और वह उन्हें . . . सिखाने लगा।”—मरकुस 6:34.

1. इंसान अच्छे गुण क्यों दिखा सकता है?

 आपने ऐसे कई लोगों के बारे में सुना होगा जिन्होंने अपने कामों के द्वारा बहुत ही बढ़िया गुण दिखाए हैं। इंसान ऐसे गुण क्यों दिखा सकता है? क्योंकि इंसान को यहोवा के स्वरूप में बनाया गया है। खुद परमेश्‍वर में प्रेम, हमदर्दी, उदारता, और दूसरे कई गुण हैं, जो उसके व्यवहार से झलकते हैं, इसलिए हममें भी उसके कुछ गुण मौजूद हैं। हम भी लोगों से प्यार करते हैं, दया दिखाते हैं, हमदर्दी दिखाते हैं और अपने ज़मीर की आवाज़ सुनते हैं। (उत्पत्ति 1:26; रोमियों 2:14, 15) लेकिन कुछ लोग इन गुणों को ज़्यादा दिखाते हैं और कुछ लोग कम।

2. मसीह के नक्शे-कदम पर चलने के लिए कुछ लोग कौन-कौन-से भले काम करते हैं?

2 आप शायद ऐसे लोगों को जानते होंगे जिनके दिल में लोगों के लिए प्यार होता है, हमदर्दी होती है। इसलिए वे अस्पतालों में बीमारों की मदद करने जाते हैं, उनसे मिलने जाते हैं, या अपाहिजों की अलग-अलग तरीके से सहायता करते हैं। कुछ दरिया-दिल होते हैं, इसलिए गरीबों को दिल खोलकर दान देते हैं। कुछ लोग कोढ़ियों, अनाथों, शरणार्थियों या बेघरों की मदद करने में ही अपना जीवन समर्पित कर देते हैं। उन्हें लगता है कि इस तरह वे यीशु के नक्शे-कदम पर चल रहे हैं और ईसाई होने का अपना फर्ज़ निभा रहे हैं, क्योंकि खुशखबरी की किताबों में लिखा है कि खुद यीशु ने बीमार लोगों को चंगा किया और भूखों को खिलाया-पिलाया। (मरकुस 1:34; 8:1-9; लूका 4:40) ऐसे काम करके यीशु स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता की नकल कर रहा था, और उसके इन कामों से उसका मन भी झलकता है।—1 कुरिन्थियों 2:16.

3. यीशु के भले कामों के बारे में सही-सही नज़रिया रखने के लिए हमें किन सवालों के जवाब पाने होंगे?

3 मगर क्या आपने एक बात पर गौर किया है कि यीशु के प्यार और हमदर्दी की नकल करनेवाले आज कई लोग मसीह के मन की एक खास बात को नज़रअंदाज़ कर देते हैं? आइए देखें कि वह कौन-सी बात है। इसके बारे में मरकुस के 6 अध्याय में बताया गया है, जहाँ लिखा है कि लोग यीशु के पास बीमार लोगों को ला रहे थे, ताकि वह उन्हें चंगा करे। साथ ही, इसमें यह भी बताया गया है कि जब यीशु ने देखा कि उसके पास हज़ारों की तादाद में उमड़ी भीड़ भूखी है, तो उसने चमत्कार करके सभी लोगों को खाना खिलाया। (मरकुस 6:35-44, 54-56) हाँ, बीमारों को चंगा करके और भूखों को खाना खिलाकर यीशु ने अपना प्यार, अपनी हमदर्दी ज़ाहिर की। मगर क्या यीशु ने लोगों की मदद करने के लिए सिर्फ यही काम किए? और यहोवा की नकल करके जैसे यीशु ने ये गुण दिखाए, हम यीशु की नकल करके ये गुण कैसे दिखा सकते हैं?

आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करना

4. मरकुस 6:30-34 में किस घटना का ज़िक्र किया गया है?

4 यीशु को लोगों पर खासकर इसलिए तरस आया क्योंकि वे आध्यात्मिक तौर पर भूखे-प्यासे थे। उसके लिए उनकी आध्यात्मिक ज़रूरतें उनकी शारीरिक ज़रूरतों से ज़्यादा अहमियत रखती थीं। मरकुस 6:30-34 में दी गयी एक घटना पर गौर कीजिए, जो लगभग सा.यु. 32 के फसह के समय गलील सागर के तट पर हुई थी। सभी प्रेरित दूर-दूर तक प्रचार करके अभी-अभी लौटे थे, और यीशु को अपना-अपना अनुभव सुनाने के लिए उतावले थे। मगर जल्द ही वहाँ एक भीड़ इकट्ठी हो जाती है। भीड़ इतनी ज़्यादा थी कि यीशु और उसके प्रेरित न तो खा-पी सकते थे, ना ही आराम कर सकते थे। इसलिए यीशु ने अपने प्रेरितों से कहा: “आओ और एकान्त में चलकर कुछ देर विश्राम करो।” (मरकुस 6:31, NHT) वे कफरनहूम के पास से एक नाव पर चढ़कर गलील सागर के उस पार गए ताकि किसी सुनसान जगह पर जा सकें। लेकिन जब भीड़ ने उन्हें जाते देखा तो वह तट पर दौड़ने लगी और नाव से भी आगे निकलकर उनसे पहले पहुँच गयी। यह देखकर यीशु ने क्या किया? क्या वह उन पर नाराज़ हो गया कि लोगों ने उन्हें यहाँ भी अकेला नहीं छोड़ा? बिलकुल नहीं!

5. यीशु ने उस भीड़ को किस नज़र से देखा, और उसने उनकी भलाई के लिए क्या किया?

5 जब यीशु ने देखा कि हज़ारों की यह भीड़, जिसमें बीमार लोग भी हैं, बड़ी बेसब्री से यीशु का इंतज़ार कर रही है, तो उस दृश्‍य ने उसका दिल छू लिया, और उसे उन पर तरस आया। (मत्ती 14:14; मरकुस 6:44) मरकुस ने बताया कि यीशु को उन लोगों पर किस वज़ह से तरस आया, और इसकी वज़ह से उसने क्या किया। मरकुस कहता है: “उस ने . . . बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिन का कोई रखवाला न हो; और वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा।” (मरकुस 6:34) यीशु ने वहाँ सिर्फ एक भीड़ ही नहीं देखी, बल्कि उसे ऐसे इंसान दिखायी दिए जो आध्यात्मिक रूप से भूखे और प्यासे हैं। यीशु की नज़रों में वे ऐसी भेड़ें थीं जिनका कोई चरवाहा नहीं था। ऐसा कोई नहीं था जो उनकी मदद करे, उन्हें सही राह दिखाए, उनकी भूख मिटाए या उनकी रक्षा करे। उस समय के धर्मगुरुओं को यह सब करना चाहिए था, मगर यीशु जानता था कि ये पत्थर-दिल धर्मगुरु आम लोगों को तुच्छ समझते हैं और उनकी आध्यात्मिक भूख नहीं मिटाते। (यहेजकेल 34:2-4; यूहन्‍ना 7:47-49) लेकिन यीशु ऐसा नहीं था। वह उनकी ज़्यादा-से-ज़्यादा भलाई करना चाहता था और इसलिए वह उन्हें परमेश्‍वर के राज्य के बारे में सिखाने लगा।

6, 7. (क) खुशखबरी की किताबों के मुताबिक यीशु ने लोगों की किन ज़रूरतों को पूरा करने में सबसे ज़्यादा ध्यान दिया? (ख) यीशु ने प्रचार करने और सिखाने का काम किस वज़ह से किया?

6 लूका ने अपनी खुशखबरी की किताब में इसी घटना का ज़िक्र किया। ध्यान दीजिए कि इस घटना में वह सबसे ज़्यादा अहमियत किस बात पर देता है। लूका एक वैद्य था और लाज़िमी है कि दूसरों की सेहत में उसे बेहद दिलचस्पी थी। लेकिन लूका कहता है कि “भीड़ [यीशु के] पीछे हो ली: और वह आनन्द [दया] के साथ उन से मिला, और उन से परमेश्‍वर के राज्य की बातें करने लगा: और जो चंगे होना चाहते थे, उन्हें चंगा किया।” (तिरछे टाइप हमारे।) (लूका 9:11; कुलुस्सियों 4:14) हालाँकि हर चमत्कार के मामले में ऐसा नहीं था, मगर इस मामले में ध्यान दीजिए कि लूका ने सबसे पहले किसके बारे में लिखा? यही कि यीशु ने लोगों को राज्य के बारे में सिखाया।

7 मरकुस 6:34 में जिस बात पर ज़ोर दिया गया है, लूका 9:11 में भी उसी बात पर ज़ोर दिया गया है। यह आयत साफ-साफ दिखाती है कि वह लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतों को देखते हुए उन्हें सिखाता था और इस तरह उनके लिए अपनी हमदर्दी दिखाता था। उसने एक बार कहा था: “मुझे और और नगरों में भी परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार सुनाना अवश्‍य है, क्योंकि मैं इसी लिये भेजा गया हूं।” (लूका 4:43) लेकिन हमारा यह सोचना गलत होगा कि यीशु ने सिर्फ अपना फर्ज़ समझकर राज्य का संदेश सुनाया, मानो उसे प्रचार करना था, इसलिए उसने किया। नहीं, ऐसी बात नहीं है, बल्कि लोगों के लिए उसके दिल में प्यार और हमदर्दी थी, और इसी वज़ह से उसने प्रचार करने और सिखाने का काम किया। बीमारों, पिशाच-ग्रस्त लोगों, गरीबों, या भूखों की सबसे बढ़िया मदद करने का एकमात्र तरीका था उन्हें परमेश्‍वर के राज्य की सच्चाई के बारे में बताना, और उसे कबूल करने और उससे प्यार करने में उनकी मदद करना। यीशु ने यही सच्चाई लोगों को सिखायी। और यह सच्चाई लोगों को सिखाना ज़रूरी भी था क्योंकि इसी राज्य के ज़रिए यहोवा साबित करेगा कि वही इस पूरे जहाँ का मालिक और महाराजा है और इसी राज्य के द्वारा लोगों को हमेशा-हमेशा की खुशियाँ मिलेंगी।

8. अपने प्रचार और सिखाने के काम के बारे में यीशु का नज़रिया कैसा था?

8 यीशु पृथ्वी पर इसीलिए आया था ताकि पूरे तन-मन से राज्य का प्रचार करे। उसने एक बार पीलातुस से कहा: “मैं ने इसलिये जन्म लिया, और इसलिये जगत में आया हूं कि सत्य पर गवाही दूं; जो कोई सत्य का है, वह मेरा शब्द सुनता है।” (यूहन्‍ना 18:37) हमने पहले के दो लेखों में देखा कि यीशु का स्वभाव कैसा था, कि वह दूसरों की बहुत परवाह करता था, कोई भी उसके पास बेझिझक आ सकता था, वह दूसरों की भावनाओं और ज़रूरतों का लिहाज़ करता था, दूसरों पर भरोसा करता था और सबसे बढ़कर, वह लोगों से बेहद प्यार करता था। सो, अगर हम मसीह के मन को समझना चाहते हैं तो हमें यीशु के स्वभाव की इन बातों को अच्छी तरह समझना चाहिए। लेकिन हमारे लिए यह भी समझना उतना ही ज़रूरी है कि उसके लिए प्रचार और सिखाने का काम करना सबसे ज़्यादा अहमियत रखता था।

प्रचार करने के लिए उसने दूसरों को भी उकसाया

9. यीशु के अलावा, और किसे प्रचार करने और सिखाने के काम को ज़्यादा अहमियत देनी थी?

9 प्यार और हमदर्दी की वज़ह से सिर्फ यीशु ने ही प्रचार और सिखाने का काम नहीं किया। उसने अपने चेलों को भी वही करने के लिए कहा जिससे वे देख सकें कि वह क्या-क्या करता है, किस बात को सबसे ज़्यादा अहमियत देता है, और जो भी करता है, किस उद्देश्‍य से करता है। इसकी मिसाल के लिए, देखिए जब यीशु ने अपने 12 प्रेरितों को चुना, तब उसने क्या किया। मरकुस 3:14, 15 कहता है: “उस ने बारह पुरुषों को नियुक्‍त किया, कि वे उसके साथ साथ रहें, और वह उन्हें भेजे, कि प्रचार करें। और दुष्टात्माओं के निकालने का अधिकार रखें।” (तिरछे टाइप हमारे।) क्या आपने इसमें देखा कि प्रेरितों को यहाँ किस बात पर ज़्यादा अहमियत देनी थी?

10, 11. (क) यीशु ने प्रेरितों से जाकर क्या करने के लिए कहा? (ख) जब प्रेरितों को भेजा गया तो उन्हें किस बात पर ज़्यादा ध्यान देना था?

10 यीशु ने अपने 12 प्रेरितों को चंगा करने और दुष्टात्माओं को निकालने का अधिकार भी दिया। (मत्ती 10:1; लूका 9:1) उसके बाद उसने उन्हें “इस्राएल के घराने ही की खोई हुई भेड़ों के पास” भेजा। क्या करने के लिए? यीशु ने उन्हें बताया: “चलते चलते प्रचार कर कहो कि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है। बीमारों को चंगा करो: मरे हुओं को जिलाओ: कोढ़ियों को शुद्ध करो: दुष्टात्माओं को निकालो।” (मत्ती 10:5-8; लूका 9:2) और उन्होंने क्या किया? “और उन्हों ने जाकर [1] प्रचार किया, कि मन फिराओ। और [2] बहुतेरे दुष्टात्माओं को निकाला, और बहुत बीमारों पर तेल मलकर उन्हें चंगा किया।”—मरकुस 6:12, 13.

11 माना कि हर घटना में यह नहीं बताया गया है कि जाकर पहले लोगों को सिखाओ और फिर चंगा करो, तो क्या इसका मतलब यह है सिखाने का काम कोई अहमियत नहीं रखता? (लूका 10:1-8) नहीं, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भले ही हर घटना में ऐसा नहीं किया गया हो, मगर कई मामलों में सिखाने के काम का ज़िक्र पहले किया गया था। जिस मिसाल पर हमने अभी चर्चा की, एक बार फिर उस पर गौर कीजिए। अपने 12 प्रेरितों को भेजने से पहले, भीड़ की दशा देखकर यीशु को उन पर तरस आया था। इसके बारे में यूँ लिखा है: “यीशु सब नगरों और गांवों में फिरता रहा और उन की सभाओं में उपदेश करता, और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता, और हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता को दूर करता रहा। जब उस ने भीड़ को देखा तो उस को लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेड़ों की नाईं जिनका कोई रखवाला न हो, ब्याकुल और भटके हुए से थे। तब उस ने अपने चेलों से कहा, पक्के खेत तो बहुत हैं पर मजदूर थोड़े हैं। इसलिये खेत के स्वामी से बिनती करो कि वह अपने खेत काटने के लिये मजदूर भेज दे।”—मत्ती 9:35-38.

12. यीशु और प्रेरितों के चमत्कार के कामों से और कौन-सा मकसद पूरा हुआ?

12 यीशु के साथ रहकर प्रेरितों ने मसीह के मन के बारे में यह सीखा कि अगर लोगों को दिल से प्यार करना है और उनसे हमदर्दी रखनी है, तो उन्हें राज्य के बारे में प्रचार करना और सिखाना बहुत ज़रूरी है। भलाई करने का यही सबसे बढ़िया रास्ता था। इसलिए, जब यीशु ने लोगों को चंगा किया, तो वह सिर्फ भलाई का एक काम या ज़रूरतमंदों के लिए मदद नहीं थी। आप समझ सकते हैं कि यीशु ने जब लोगों को चंगा किया और चमत्कार के द्वारा खाना खिलाया, तो इसकी वज़ह से कुछ लोग उसकी ओर ज़रूर खिंचे चले आए होंगे। (मत्ती 4:24, 25; 8:16; 9:32, 33; 14:35, 36; यूहन्‍ना 6:26) मगर, शारीरिक तौर पर मदद मिलने के अलावा, उन चमत्कार के कामों को देखकर कई लोगों ने यह कबूल किया होगा कि यीशु ही परमेश्‍वर का बेटा और “वह भविष्यद्वक्‍ता” है जिसके बारे में मूसा ने भविष्यवाणी की थी।—यूहन्‍ना 6:14; व्यवस्थाविवरण 18:15.

13. व्यवस्थाविवरण 18:18 में दी गयी भविष्यवाणी में आनेवाले “भविष्यद्वक्‍ता” के किस काम पर ज़्यादा ज़ोर दिया गया था?

13 यीशु के “वह भविष्यद्वक्‍ता” होने का क्या मतलब था? इस भविष्यवक्‍ता को कौन-कौन-से खास काम करने थे? क्या इस “भविष्यद्वक्‍ता” को चमत्कार करके लोगों को चंगा करना था या भूखों के लिए भोजन देना था? व्यवस्थाविवरण 18:18 में उसके बारे में भविष्यवाणी की गयी थी: “मैं उनके लिये उनके भाइयों के बीच में से तेरे [मूसा के] समान एक नबी को उत्पन्‍न करूंगा; और अपना वचन उसके मुंह में डालूंगा; और जिस जिस बात की मैं उसे आज्ञा दूंगा वही वह उनको कह सुनाएगा।” सो जैसे-जैसे प्रेरितों ने यीशु से प्यार करना, हमदर्दी दिखाना सीखा, उन्होंने यह भी सीखा कि मसीह का मन ज़ाहिर करने का मतलब है प्रचार करना और चेला बनाना। ऐसा करके ही वे लोगों की ज़्यादा-से-ज़्यादा भलाई कर सकते थे। क्यों? क्योंकि वे बीमारों को चंगा करके या गरीबों को दो वक्‍त की रोटी देकर सिर्फ थोड़ी ही देर के लिए उनका भला कर सकते थे। मगर उन्हें राज्य का प्रचार करके और चेला बनाकर वे उनका हमेशा-हमेशा के लिए भला कर सकते थे।—यूहन्‍ना 6:26-30.

आज मसीह का मन पैदा कीजिए

14. प्रचार करते वक्‍त हममें मसीह का मन होना क्यों ज़रूरी है?

14 ऐसी बात नहीं है कि मसीह का मन सिर्फ यीशु के पास और पहली सदी में उन चेलों के पास ही था, जिनके बारे में प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हम में मसीह का मन है।” (1 कुरिन्थियों 2:16) हममें भी मसीह का मन होना ज़रूरी है क्योंकि यीशु के चेलों की तरह, हमें भी सुसमाचार सुनाने और चेले बनाने की ज़िम्मेदारी दी गयी है। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) सो, हमारे लिए यह देखना फायदेमंद होगा कि हम किस मकसद से प्रचार करते हैं। हमें इसे सिर्फ अपना फर्ज़ समझकर नहीं करना चाहिए, बल्कि इसीलिए करना चाहिए क्योंकि हम परमेश्‍वर से प्यार करते हैं। इसके अलावा, सही मायने में यीशु की नकल करने का मतलब है लोगों से प्यार करना, उनके लिए हमदर्दी रखना, और इसी उद्देश्‍य से प्रचार करना और सिखाना।—मत्ती 22:37-39.

15. हमदर्दी का गुण हमारे प्रचार के काम में इतनी अहमियत क्यों रखता है?

15 माना कि जब लोग हमारे विश्‍वास के बारे में सुनना नहीं चाहते, या हमारा विरोध करते हैं, तो उनके लिए अपने दिल में हमदर्दी पैदा करना आसान नहीं है। लेकिन अगर हमारे दिल में लोगों के लिए प्यार और हमदर्दी नहीं होगी, तो हमारे प्रचार-कार्य का सबसे बड़ा मकसद ही विफल हो जाएगा। तो फिर हम हमदर्दी कैसे पैदा कर सकते हैं? हमें भी लोगों को यीशु की नज़र से देखना चाहिए कि वे ‘उन भेड़ों की नाईं हैं जिनका कोई रखवाला नहीं है।’ (मत्ती 9:36) क्या आज कई लोग ऐसे ही नहीं हैं? वे यहाँ-वहाँ भटक रहे हैं, और धर्मगुरुओं को भी उनकी परवाह नहीं है, यहाँ तक कि उन्होंने उन्हें आध्यात्मिक अंधकार में रखा है। इसकी वज़ह से वे नहीं जानते कि बाइबल में क्या-क्या सलाह दी गयी हैं, और ना ही वे यह जानते हैं कि परमेश्‍वर का राज्य जल्द ही हमारी पृथ्वी को पूरी तरह से बदलकर एक सुंदर बगीचा बना देगा। उन्हें रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कितनी समस्याओं से जूझना पड़ता है, गरीबी है, परिवार में अनबन है, बीमारी है, मौत है। फिर भी उन्हें राज्य के बारे में नहीं पता है, जो इन सारी समस्याओं को निकाल देगा। और हमारे पास एक ऐसा संदेश है जिसे उन्होंने कभी नहीं सुना है, और वह है राज्य का संदेश, जो उनकी ज़िंदगी सुधार सकता है।

16. हम क्यों दूसरों को सुसमाचार सुनाना चाहते हैं?

16 जब आप अपने आस-पास नज़र दौड़ाते हैं, और लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरत को देखते हैं, तो क्या आपका दिल नहीं करता कि आप उन्हें परमेश्‍वर के प्रेम-भरे उद्देश्‍यों के बारे में बताएँ? हाँ, ज़रूर करता है, क्योंकि हम भी लोगों से हमदर्दी रखते हैं और इसीलिए प्रचार का काम करते हैं। जब हम लोगों को यीशु की नज़र से देखते हैं, तो यह हमारे बात करने के अंदाज़ से, हमारे चेहरे के हावभाव से और हमारे सिखाने के तरीके से ज़ाहिर होगा। और जब ऐसा होगा तो राज्य का हमारे संदेश उन लोगों को पसंद आएगा जो “अनन्त जीवन के लिये ठहराए गए” हैं।—प्रेरितों 13:48.

17. (क) हम किन-किन तरीकों से दूसरों के लिए अपना प्यार और हमदर्दी दिखा सकते हैं? (ख) हमें सिर्फ लोगों की भलाई करने पर या सिर्फ प्रचार करने पर ही ध्यान क्यों नहीं देना चाहिए?

17 इसका मतलब है कि लोगों के लिए हमारा प्यार, हमारी हमदर्दी हमारे स्वभाव में ही होनी चाहिए। हम ये गुण कैसे दिखा सकते हैं? हमें गरीबों की, बीमारों की मदद करनी चाहिए और उनका दुख-दर्द कम करने के लिए हमसे जो भी बन पड़े, उसे करना चाहिए। मिसाल के तौर पर, जब किसी व्यक्‍ति का कोई अपना गुज़र जाता है, तो हमें अपनी बातों और कामों से उनका दर्द कम करना चाहिए। (लूका 7:11-15; यूहन्‍ना 11:33-35) लेकिन हमें ध्यान देना चाहिए कि ऐसे काम ही हमारी ज़िंदगी का मकसद न बन जाएँ, जैसे कुछ लोग होते हैं जो सिर्फ दूसरों की सेवा करना ही अपनी ज़िंदगी का मकसद बना लेते हैं। जब हम अपने प्रचार करने के द्वारा और लोगों को सिखाने के द्वारा परमेश्‍वर के ऐसे गुण ज़ाहिर करेंगे, तो वह ज़्यादा अहमियत रखेगा। याद कीजिए यीशु ने यहूदी धर्मगुरुओं के बारे में क्या कहा था: “तुम पोदीने और सौंफ और जीरे का दसवां अंश देते हो, परन्तु तुम ने व्यवस्था की गम्भीर बातों को अर्थात्‌ न्याय, और दया, और विश्‍वास को छोड़ दिया है; चाहिये था कि इन्हें भी करते रहते, और उन्हें भी न छोड़ते।” (मत्ती 23:23) यीशु ने कभी ऐसा नहीं किया कि लोगों की सिर्फ भौतिक ज़रूरतों पर ध्यान दिया हो और उनकी आध्यात्मिक ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ किया हो, या उनकी सिर्फ आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करते-करते उनकी भौतिक ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ किया हो। नहीं, यीशु दोनों बातों की ओर बराबर ध्यान देता था। फिर भी, यह साफ ज़ाहिर है कि उसके सिखाने की वज़ह से लोगों को सबसे ज़्यादा फायदा हुआ, क्योंकि ऐसा करके ही वह उन्हें हमेशा-हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए मदद कर सकता था।—यूहन्‍ना 20:16.

18. हमें अपने अंदर मसीह का मन पैदा करने के लिए क्या करना चाहिए?

18 सो, हम यहोवा के कितने शुक्रगुज़ार हैं कि उसने हमारे लिए मसीह का मन ज़ाहिर किया है! खुशखबरी की किताबों को पढ़कर हम सर्वश्रेष्ठ इंसान के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं, जैसे उसके विचार क्या थे, उसकी भावनाएँ क्या थीं, उसमें कौन-कौन-से गुण थे, उसने कौन-कौन-से काम किए और कौन-सी बातें उसकी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत रखती थीं। लेकिन अब यह हमारा फर्ज़ बनता है कि हम उन बातों को पढ़ें, उन पर गहरायी से विचार करें और उन पर अमल करें। याद रखिए, अगर हमें सचमुच यीशु की तरह बनना है, तो हमें सबसे पहले उसकी तरह सोचना होगा, अपने अंदर उसकी भावनाएँ पैदा करनी होंगी, और सभी बातों को उसी नज़र से देखना होगा जिस नज़र से वह देखता था। साथ ही हमें यीशु की तरह ही लोगों के साथ बर्ताव करना होगा। हालाँकि हम असिद्ध होने की वज़ह से पूरी तरह यीशु की नकल नहीं कर सकते, लेकिन हम जितना कुछ कर सकते हैं, उसे करना चाहिए। सो आइए, हम मसीह का मन पैदा करने और उसे अपने कामों के द्वारा ज़ाहिर करने का फैसला करें। इससे बेहतर कोई और ज़िंदगी नहीं है, लोगों के साथ व्यवहार करने का इससे बेहतर तरीका और कोई नहीं है। इस तरह हम यहोवा के और उस इंसान के और भी करीब आएँगे, जिसने हमारे प्रेमी परमेश्‍वर, यहोवा की पूरी तरह से नकल की।—2 कुरिन्थियों 1:3; इब्रानियों 1:3.

आपका क्या जवाब होगा?

• यीशु ज़रूरतमंद लोगों की मदद कैसे करता था, इसके बारे में बाइबल क्या कहती है?

• यीशु ने प्रचार के बारे में अपने चेलों को समझाते वक्‍त किस बात पर ज़ोर दिया?

• हम अपने कामों से कैसे दिखा सकते हैं कि हममें “मसीह का मन” है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 23 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]

[पेज 24 पर तसवीर]

मसीही, दूसरों की ज़्यादा-से-ज़्यादा भलाई कैसे कर सकते हैं?