‘सामर्थ पाने के लिए यहोवा के पास जाओ’
‘सामर्थ पाने के लिए यहोवा के पास जाओ’
“यहोवा की दृष्टि सारी पृथ्वी पर इसलिये फिरती रहती है कि जिनका मन उसकी ओर निष्कपट रहता है, उनकी सहायता में वह अपना सामर्थ दिखाए।”—2 इतिहास 16:9.
1. शक्ति के अलग-अलग रूप कौन-से हैं, और लोगों ने अधिकार का इस्तेमाल कैसे किया है?
शक्ति के अलग-अलग रूप होते हैं, जैसे अधिकार, ताकत, क्षमता, प्रभाव। जब लोगों पर अधिकार चलाने की बात आती है, तो इंसान ने कोई अच्छा नाम नहीं कमाया है। इतिहासकार लॉर्ड ऎक्टन ने नेताओं के अधिकार के बारे में कहा: “अधिकार किसी को भी अंधा बना सकता है, और अगर किसी के हाथ में पूरा अधिकार दे दो, तो वह पूरी तरह अंधा हो जाएगा।” आज के इतिहास में ऐसी ढेरों मिसालें हैं जो साबित करती हैं कि लॉर्ड ऎक्टन के शब्द शत-प्रतिशत सच हैं। सबसे ज़्यादा इस बीसवीं सदी में ‘एक मनुष्य ने दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाया है।’ (सभोपदेशक 8:9) भ्रष्ट तानाशाहों ने अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करके लाखों-करोड़ों लोगों को मौत की नींद सुला दिया है। अगर प्रेम, बुद्धि और न्याय के बगैर शक्ति का इस्तेमाल किया जाए, तो इससे हमेशा नुकसान ही होता है।
2. समझाइए कि जिस तरह से यहोवा अपनी शक्ति का इस्तेमाल करता है, उससे उसके दूसरे गुण कैसे दिखायी देते हैं।
2 लेकिन परमेश्वर इंसानों की तरह नहीं है। वह अपनी शक्ति का इस्तेमाल लोगों की भलाई के लिए करता है। “यहोवा की दृष्टि सारी पृथ्वी पर इसलिये फिरती रहती है कि जिनका मन उसकी ओर निष्कपट रहता है, उनकी सहायता में वह अपना सामर्थ दिखाए।” (2 इतिहास 16:9) यहोवा अपनी ताकत का इस्तेमाल बिना सोचे-समझे नहीं करता, बल्कि बहुत ही ध्यान से करता है। यहोवा चाहता है कि लोग पश्चाताप करें, इसलिए वह दुष्ट लोगों का नाश नहीं करता, बल्कि सब्र से काम लेता है। वह लोगों से प्रेम करता है, इसीलिए सभी लोगों पर सूरज चमकाता है, चाहे वे धर्मी हों या अधर्मी। और यहोवा न्याय से काम करता है, इसलिए सही वक्त आने पर वह अपनी अपार शक्ति का इस्तेमाल करके शैतान का नाश कर देगा, जिसकी वज़ह से इंसानों पर मृत्यु आयी है।—मत्ती 5:44, 45; इब्रानियों 2:14; 2 पतरस 3:9.
3. परमेश्वर की अपार शक्ति उस पर हमारा भरोसा कैसे बढ़ाती है?
3 हमारे स्वर्गीय पिता के पास अपार शक्ति है, इसीलिए हम उसके वादों पर पूरा भरोसा और विश्वास कर सकते हैं कि वह हमारी रक्षा करेगा। जब एक छोटा बच्चा अजनबियों से घिरा हो तो घबरा सकता है, लेकिन अगर उसने अपने पिता का हाथ पकड़ा हो, तो वह बिलकुल भी नहीं डरेगा क्योंकि उसे मालूम है कि उसका पिता उसे किसी भी खतरे से बचाएगा। उसी तरह हमारा स्वर्गीय पिता हमारा “पूरा उद्धार करने की शक्ति रखता” है और हमें हमेशा-हमेशा की हानि नहीं होने देगा, बशर्ते हम उसका हाथ पकड़कर उसके साथ चलें। (यशायाह 63:1; मीका 6:8) जैसा एक अच्छा पिता अपने वचन का पक्का होता है, यहोवा भी हमेशा अपने वादों का पक्का साबित होता है। उसकी अपार शक्ति हमें इस बात की गारंटी देती है कि यहोवा ने ‘जिस काम के लिये अपना वचन भेजा है उसे वह सुफल करेगा।’—यशायाह 55:11; तीतुस 1:2.
4, 5. (क) जब राजा आसा ने यहोवा पर अपना पूरा भरोसा रखा, तब क्या हुआ? (ख) अगर हम इंसानों की शक्ति पर भरोसा रखें, तो क्या होगा?
4 यहोवा हमारी रक्षा ज़रूर करेगा, यह विश्वास रखना क्यों बेहद ज़रूरी है? क्योंकि कभी ऐसा हो सकता है कि हमारे बुरे हालात का हम पर इतना असर हो कि हम भूल जाएँ कि परमेश्वर हमारी रक्षा करेगा। राजा आसा के साथ ऐसा ही हुआ था। वह अकसर यहोवा पर भरोसा रखता था। जब दस लाख कूशियों की ताकतवर सेना ने यहूदा पर हमला किया, तो आसा जान गया कि यह युद्ध लड़ना उसके बस की बात नहीं है। इसलिए उसने यहोवा से प्रार्थना की: “हे यहोवा! जैसे तू सामर्थी की सहायता कर सकता है, वैसे ही शक्तिहीन की भी; हे हमारे परमेश्वर यहोवा! हमारी सहायता कर, क्योंकि हमारा भरोसा तुझी पर है और तेरे नाम का भरोसा करके हम इस भीड़ के विरुद्ध आए हैं। हे यहोवा, तू हमारा परमेश्वर है; मनुष्य तुझ पर प्रबल न होने पाएगा।” (2 इतिहास 14:11) यहोवा ने आसा की प्रार्थना सुनी और उसे एक भारी जीत दिलायी।
5 लेकिन कई साल यहोवा का वफादार रहने के बाद, यहोवा की बचाने की शक्ति पर से आसा का विश्वास उठ गया। जब इस्राएल के उत्तरी राज्य की सेनाओं से उसे खतरा महसूस हुआ, तब वह मदद के लिए यहोवा के बजाय अराम के राजा की ओर दौड़ा। (2 इतिहास 16:1-3) हालाँकि अरामी राजा बेन्हदद ने राजा आसा से रिश्वत लेकर इस्राएल का खतरा टाल दिया, लेकिन आसा का अरामी राजा से मदद लेना यह दिखाता है कि यहोवा पर से उसका विश्वास बिलकुल खत्म हो चुका था। भविष्यवक्ता हनानी ने उससे सीधे-सीधे पूछा: “क्या कूशियों और लूबियों की सेना बड़ी न थी, और क्या उस में बहुत ही रथ, और सवार न थे? तौभी तू ने यहोवा पर भरोसा रखा था, इस कारण उस ने उनको तेरे हाथ में कर दिया।” (2 इतिहास 16:7, 8) लेकिन राजा आसा के कान पर जूँ तक नहीं रेंगी, उसने उस फटकार को अनसुना कर दिया। (2 इतिहास 16:9-12) सो, इस घटना से हम यही सीख सकते हैं कि जब हम पर कोई मुसीबत आती है, तो हम इंसानों के बजाय यहोवा पर भरोसा रखें कि वही हमारे लिए रास्ता निकालेगा। अगर हम इंसानों की शक्ति पर भरोसा रखेंगे, तो हमें आखिर में निराशा ही हाथ लगेगी।—भजन 146:3-5.
‘सामर्थ पाने के लिए यहोवा के पास जाओ’
6. हमें क्यों ‘यहोवा और उसकी सामर्थ की खोज’ करनी चाहिए?
6 यहोवा अपने सेवकों को शक्ति दे सकता है और उनकी रक्षा भी कर सकता है। बाइबल हमसे कहती है कि “सामर्थ पाने को तुम यहोवा के पास जाओ।” (भजन 105:4, ईज़ी टू रीड वर्शन) क्यों? क्योंकि जब परमेश्वर हमें शक्ति देता है, तो हम उसे दूसरों का नुकसान पहुँचाने के लिए नहीं, बल्कि उनका भला करने के लिए उसे इस्तेमाल करते हैं। इस मामले में यीशु मसीह से अच्छी और कोई मिसाल नहीं है, जिसने “प्रभु [यहोवा] की सामर्थ” से कई चमत्कार किए। (लूका 5:17) अगर यीशु चाहता, तो वह उस शक्ति से खुद के लिए नाम और शोहरत हासिल कर सकता था, और सबसे शक्तिशाली राजा बन सकता था। (लूका 4:5-7) लेकिन उसने परमेश्वर की शक्ति का लोगों को सिखाने, उनकी मदद करने और उन्हें चंगा करने के लिए इस्तेमाल किया। (मरकुस 7:37; यूहन्ना 7:46) यह हमारे लिए कितनी बढ़िया मिसाल है!
7. जब हम अपनी नहीं, बल्कि परमेश्वर की शक्ति से सब काम करते हैं, तो हममें कौन-सा महत्त्वपूर्ण गुण पैदा होता है?
7 इतना ही नहीं, जब हम अपने सभी काम ‘उस शक्ति से करें जो परमेश्वर देता है,’ तो हम नम्र भी बने रहेंगे। (1 पतरस 4:11) जो लोग अपने लिए अधिकार चाहते हैं, वे घमंडी और अक्खड़ बन जाते हैं। इसका एक बढ़िया उदाहरण है अराम का राजा एसर्हद्दोन, जिसने सीना तानकर कहा: “मैं शक्तिशाली हूँ, मैं सर्वशक्तिमान हूँ, मैं वीर हूँ, मैं महान हूँ, मैं विशाल हूँ।” लेकिन, हमें उससे बिलकुल अलग होना चाहिए क्योंकि यहोवा ने “जगत के निर्बलों को चुन लिया है, कि बलवानों को लज्जित करे।” सो, अगर कोई सच्चा मसीही घमंड करता है, तो उसे यहोवा में घमंड करना चाहिए, क्योंकि वह जानता है कि उसने जो भी किया है, वह उसे अपनी ताकत से नहीं कर सकता था। जब हम खुद को “परमेश्वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता” से रखेंगे, तो वह हमें सचमुच बढ़ाएगा।—1 कुरिन्थियों 1:26-31; 1 पतरस 5:6.
8. यहोवा की शक्ति पाने के लिए हमें सबसे पहले क्या करना होगा?
8 तो फिर अब सवाल आता है कि हम परमेश्वर से शक्ति कैसे पा सकते हैं? सबसे पहले तो हमें इसके लिए परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए। यीशु ने अपने चेलों को भरोसा दिलाया कि जो उसके पिता से पवित्र आत्मा माँगेंगे, वह उन्हें ज़रूर देगा। (लूका 11:10-13) और उन्होंने परमेश्वर की शक्ति पाकर क्या किया? जब उस समय के धर्मगुरुओं ने उन्हें यीशु के बारे में सुसमाचार सुनाने से रोकने का हुक्म दिया, तो उन्होंने उनकी सुनने के बजाय परमेश्वर की आज्ञा मानना ज़्यादा ज़रूरी समझा। और यहोवा से मदद माँगने पर यहोवा ने उनकी प्रार्थना का जवाब दिया। उसने उन्हें अपनी पवित्र शक्ति दी, जिससे ताकत पाकर वे हिम्मत के साथ सुसमाचार सुनाते रहे।—प्रेरितों 4:19, 20, 29-31, 33.
9. यहोवा से शक्ति पाने का दूसरा ज़रिया कौन-सा है, और इसमें कितना असर है, यह दिखाने के लिए बाइबल से एक उदाहरण बताइए।
9 दूसरा, हम बाइबल से शक्ति पा सकते हैं। (इब्रानियों 4:12) परमेश्वर के वचन में कितनी ताकत है, यह राजा योशिय्याह के दिनों में पता चला था। हालाँकि यहूदा के इस राजा ने अपने राज्य में से झूठी उपासना में इस्तेमाल होनेवाली मूर्तियों को कुछ हद तक निकाल दिया था, लेकिन जब उसे मंदिर में यहोवा की व्यवस्था की पुस्तक मिली, तो उसमें उन मूर्तियों का पूरी तरह से सफाया करने के लिए जोश भर गया। * फिर योशिय्याह ने अपने लोगों को खुद यहोवा की व्यवस्था पढ़कर सुनायी, जिसकी वज़ह से लोगों ने यहोवा से वाचा बांधी और उस देश में मूर्तिपूजा को जड़ से निकाल फेंकने का काम फिर एक दफा शुरू किया गया। राजा ने ये जो अच्छे काम किए थे, इसकी वज़ह से “जीवन भर उन्हों ने . . . परमेश्वर यहोवा के पीछे चलना न छोड़ा।”—2 इतिहास 34:33.
10. यहोवा से शक्ति पाने का तीसरा तरीका कौन-सा है, और यह क्यों बहुत ही ज़रूरी है?
10 तीसरा, अपने भाई-बहनों की संगति से हमें यहोवा से शक्ति मिलती है। पौलुस ने मसीहियों से लगातार सभाओं में जाने के लिए कहा ताकि वे एक दूसरे को “प्रेम, और भले कामों में उस्काने” में लगे रहें। (इब्रानियों 10:24, 25) मिसाल के तौर पर, जब पतरस को चमत्कार के द्वारा कैद से रिहा किया गया, तो वह अपने भाई-बहनों के साथ होना चाहता था। इसलिए वह सीधे यूहन्ना मरकुस की माँ के घर गया जहाँ “बहुत लोग इकट्ठे होकर प्रार्थना कर रहे थे।” (प्रेरितों 12:12) अगर वे चाहते, तो अपने-अपने घर बैठकर भी प्रार्थना कर सकते थे, मगर उन्होंने उस कठिन समय में इकट्ठा मिलकर प्रार्थना करना और एक दूसरे का हौसला बढ़ाना ज़्यादा बेहतर समझा। रोम के अपने लंबे और खतरनाक सफर के लगभग अंत में प्रेरित पौलुस पुतियुली के कुछ भाइयों से, और दूसरे भाइयों से भी मिला जो बहुत दूर से आए थे। पौलुस ने क्या किया? दूर-दराज़ से आए उन भाइयों को “देखकर पौलुस ने परमेश्वर का धन्यवाद किया, और ढाढ़स बान्धा।” (प्रेरितों 28:13-15) अपने संगी मसीहियों के साथ फिर से मिलकर उसे बहुत हौसला मिला। हमें भी अपने भाइयों से मिलकर बहुत हौसला मिलता है। सो, जब तक हमारे पास एक दूसरे से मिलने की आज़ादी है और एक दूसरे से मिल सकते हैं, आइए हम कभी भी जीवन की ओर जानेवाले उस सँकरे मार्ग में अकेले चलने की कोशिश न करें।—नीतिवचन 18:1; मत्ती 7:14.
11. कुछ ऐसे हालात के बारे में बताइए जिनमें खासकर हमें “असीम सामर्थ” की ज़रूरत होती है।
11 सो, प्रार्थना में लगे रहने से, बाइबल का अध्ययन करने से और अपने भाई-बहनों के साथ संगति करने से हम “प्रभु में और उस की शक्ति के प्रभाव में बलवन्त” बनते जाएँगे। (इफिसियों 6:10) बेशक हम सभी को ‘प्रभु की शक्ति’ की ज़रूरत है। क्यों? क्योंकि कुछ लोगों को बहुत खतरनाक बीमारी है, कुछ लोगों पर बुढ़ापा कहर ढा रहा है, और कुछ लोगों का जीवन-साथी गुज़र गया है, जिसकी वज़ह से वे बहुत निराश हैं। (भजन 41:3) दूसरे ऐसे हैं जिनका जीवन-साथी सच्चाई में नहीं है और काफी विरोध करता है। माता-पिता को, खासकर ऐसे माता या पिता को जिनका साथी नहीं है, उन्हें दिन-भर काम करने के बाद अपने परिवार की देखभाल करने में बहुत ही मुश्किल होती है। फिर ऐसे जवान मसीही भी हैं, जिन्हें अपने दोस्तों के दबाव का सामना करना पड़ता है और नशीली दवाओं और बदचलनी को ना कहने के लिए हिम्मत जुटानी पड़ती है। सो, ऐसी मुसीबतों का सामना करने के लिए किसी को भी यहोवा से “असीम सामर्थ” माँगने से कभी नहीं हिचकिचाना चाहिए।—2 कुरिन्थियों 4:7.
“वह थके हुए को बल देता है”
12. यहोवा हमें सेवकाई में कैसे मदद करता है?
12 इन सब के अलावा, यहोवा अपने लोगों को सेवकाई पूरा करने के लिए भी शक्ति देता है। यशायाह की पुस्तक में यह भविष्यवाणी की गयी है: “वह थके हुए को बल देता है और शक्तिहीन को बहुत सामर्थ देता है। . . . जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वे नया बल प्राप्त करते जाएंगे, वे उकाबों की नाईं उड़ेंगे, वे दौड़ेंगे और श्रमित न होंगे, चलेंगे और थकित न होंगे।” (यशायाह 40:29-31) खुद प्रेरित पौलुस को भी अपनी सेवकाई पूरी करने के लिए शक्ति मिली थी, जिसकी वज़ह से उसे सेवकाई में अच्छे नतीजे मिले थे। थिस्सलुनीके के मसीहियों को उसने लिखा: “हमारा सुसमाचार तुम्हारे पास न केवल वचन मात्र ही में बरन सामर्थ और पवित्र आत्मा . . . के साथ पहुंचा है।” (1 थिस्सलुनीकियों 1:5) उसके प्रचार करने और सिखाने में इतनी ताकत थी कि वह अपने सुननेवालों की ज़िंदगी बदल देता था।
13. विरोध के बावजूद भी अपने काम में लगे रहने के लिए यिर्मयाह को किस बात से शक्ति मिली?
13 लेकिन अगर हमारे इलाके में लोग हमारी बात न सुनें तो क्या? शायद हमने अपने इलाके में कई सालों से प्रचार किया होगा, और बहुत ही थोड़ा फल मिला होगा। तो ऐसे में हम निराश हो सकते हैं। यिर्मयाह भी निराश हुआ था जब लोगों ने उसकी बात नहीं सुनी और उल्टे उसका ठट्टा उड़ाया और विरोध किया। उसने तो यहाँ तक सोचा कि “मैं उसकी चर्चा न करूंगा न उसके नाम से बोलूंगा।” लेकिन यिर्मयाह खामोश न रह सका क्योंकि उसका संदेश उसकी “हड्डियों में धधकती हुई आग” का सा हो गया। (यिर्मयाह 20:9) सो, इतने विरोध का सामना करने के लिए उसे ताकत कहाँ से मिली? यिर्मयाह ने कहा: “परन्तु यहोवा मेरे साथ है, वह भयंकर वीर के समान है।” (यिर्मयाह 20:11) सो, जब यिर्मयाह ने समझा कि परमेश्वर ने उसे संदेश सुनाने का जो काम दिया है, वह कितना महत्त्वपूर्ण है, तो उसने यहोवा द्वारा दी गयी शक्ति को कबूल किया और उसी के मुताबिक काम किया।
ज़ख्मी करने और ज़ख्मों को भरने की शक्ति
14. (क) ज़ुबान में कितनी ताकत होती है? (ख) ज़ुबान के गलत इस्तेमाल से कितना नुकसान हो सकता है, इसकी मिसाल दीजिए।
14 हमारे पास एक ऐसी क्षमता है जिसका लोगों पर काफी प्रभाव हो सकता। मिसाल के तौर पर, हमारी जीभ में ऐसी शक्ति है, जिससे हम किसी को ज़ख्मी कर सकते हैं और किसी के ज़ख्मों को भर भी सकते हैं। सुलैमान चेतावनी देता है कि “जीभ के वश में मृत्यु और जीवन दोनों होते हैं।” (नीतिवचन 18:21) हमारी बातों का प्रभाव कितना बुरा हो सकता है, इसकी मिसाल तो हम शैतान और हव्वा के बीच हुई छोटी सी बातचीत से ही देख सकते हैं। (उत्पत्ति 3:1-5; याकूब 3:5) उसी तरह, अगर हम अपनी ज़ुबान पर लगाम न दें, तो बहुत नुकसान कर सकते हैं। जैसे, किसी जवान लड़की के वज़न को लेकर अगर उसे कुछ अनाप-शनाप बोल दिया जाए, तो वह इतनी मायूस हो सकती है कि खाने को छूने से ही कतराने लगे। अगर हम किसी के बारे में बिना सोचे-समझे कोई उल्टी-सीधी बात कह देते हैं, तो ज़िंदगी भर के लिए उसके साथ हमारी दोस्ती टूट सकती है। जी हाँ, ये सब यही दिखाता है कि हमें अपनी ज़ुबान पर लगाम देना चाहिए।
15. हम अपनी ज़ुबान का इस्तेमाल लोगों का हौसला बढ़ाने के लिए और उन्हें तसल्ली देने के लिए कैसे कर सकते हैं?
15 इस तरह हमने देखा कि हमारी ज़ुबान किसी का हौसला बढ़ा सकती है तो किसी को फाड़ भी सकती है। बाइबल का एक नीतिवचन कहता है: “ऐसे लोग हैं जिनका बिना सोचविचार का बोलना तलवार की नाईं चुभता है, परन्तु बुद्धिमान के बोलने से लोग चंगे होते हैं।” (नीतिवचन 12:18) बुद्धिमान मसीही अपनी ज़ुबान का इस्तेमाल दुखियों को और जिनका कोई अपना गुज़र गया है, उन्हें तसल्ली देने के लिए करते हैं। दोस्तों के दबाव से लड़नेवाले किशोरों का भी हम अपनी बातों से हौसला बढ़ा सकते हैं। बुज़ुर्ग भाई-बहनों से बात करके जब हम उनकी हिम्मत बंधाएँगे, तो उन्हें भी लगेगा कि उन्हें कोई प्यार करनेवाला है, लोगों को उनकी ज़रूरत है। प्यार के दो मीठे बोल बोलकर हम बीमार लोगों की खुशियाँ बढ़ा सकते हैं। और सबसे बढ़कर, हम अपनी ज़ुबान का इस्तेमाल उन लोगों को राज्य का शक्तिशाली संदेश सुनाने के लिए कर सकते हैं जो उसे सुनना चाहते हैं। बाइबल कहती है: “जिनका भला करना चाहिये, यदि तुझ में शक्ति रहे, तो उनका भला करने से न रुकना।” (नीतिवचन 3:27) सो, हम सब परमेश्वर के वचन का प्रचार कर सकते हैं क्योंकि हम सब के पास प्रचार करने की शक्ति है, बशर्ते हमारे पास यह काम करने की इच्छा हो।
अधिकार का सही इस्तेमाल
16, 17. प्राचीन, माता-पिता, पति और पत्नी, यहोवा द्वारा दिए गए अधिकार का कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं?
16 हालाँकि यहोवा सर्वशक्तिमान परमेश्वर है, फिर भी वह अपनी कलीसिया पर प्यार से अधिकार चलाता है। (1 यूहन्ना 4:8) सो यहोवा की तरह, मसीही ओवरसियर भी परमेश्वर की भेड़ों की देखभाल प्यार से करते हैं। वे अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि उसका इस्तेमाल कलीसिया की भलाई के लिए ही करते हैं। हाँ, कभी-कभी ओवरसियरों को कलीसिया को ‘उलाहना देना, डांटना, और समझाना’ पड़ता है, लेकिन वे ऐसा “धैर्य के साथ समझाते हुए” (ईज़ी टू रीड वर्शन) करते हैं। (2 तीमुथियुस 4:2) सो, प्राचीन अकसर प्रेरित पौलुस की उन बातों को ध्यान में रखते हैं, जो उसने कलीसिया में अधिकार के पद रखनेवालों को लिखी थीं: “परमेश्वर के उस झुंड की, जो तुम्हारे बीच में है रखवाली करो; और यह दबाव से नहीं, परन्तु परमेश्वर की इच्छा के अनुसार आनन्द से, और नीच-कमाई के लिये नहीं, पर मन लगा कर। और जो लोग तुम्हें सौंपे गए हैं, उन पर अधिकार न जताओ, बरन झुंड के लिये आदर्श बनो।”—1 पतरस 5:2, 3; 1 थिस्सलुनीकियों 2:7, 8.
17 यहोवा ने माता-पिताओं को और पतियों को भी अधिकार दिया है, और उन्हें इसका इस्तेमाल अपने परिवार की मदद करने और उनका पालन-पोषण करने के लिए करना चाहिए। (इफिसियों 5:22, 28-30; 6:4) यीशु ने अपने कार्यों से दिखाया कि कैसे अधिकार का इस्तेमाल अच्छी तरह और प्यार से किया जा सकता है। जब ज़रूरी हो तब अगर सही ढंग से और सही वक्त ताड़ना दी जाए, तो बच्चों का दिल नहीं टूटेगा। (कुलुस्सियों 3:21) जब मसीही पति अपने मुखियापन के अधिकार का इस्तेमाल प्यार से करते हैं और पत्नी अपने पति का दिल से आदर करती है, और परमेश्वर द्वारा ठहराए गए दायरे से बाहर जाकर उस पर अपना हुक्म नहीं चलाती या अपनी बात नहीं मनवाती, तो विवाह का बंधन भी मज़बूत होता है।—इफिसियों 5:28, 33; 1 पतरस 3:7.
18. (क) अपने गुस्से पर काबू रखने के मामले में हम यहोवा की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? (ख) अधिकार रखनेवालों का उद्देश्य क्या होना चाहिए?
18 परिवार में और कलीसिया में जिन लोगों को अधिकार दिया गया है, उन्हें खासकर सावधान रहना चाहिए कि वे अपने गुस्से पर काबू रखें, क्योंकि गुस्सा करने से लोगों में डर पैदा होता है, प्यार नहीं। भविष्यवक्ता नहूम ने कहा: “यहोवा विलम्ब से क्रोध करनेवाला और बड़ा शक्तिमान है।” (नहूम 1:3; कुलुस्सियों 3:19) अपना आपा बनाए रखना हमारी ताकत का एक सबूत है, जबकि आपा खो बैठना हमारी कमज़ोरी है। (नीतिवचन 16:32) परिवार में और कलीसिया में, दोनों जगह हमारा उद्देश्य होना चाहिए लोगों में प्यार पैदा करना, यहोवा के लिए प्यार, एक दूसरे के लिए प्यार और सच्चे उसूलों के लिए प्यार। प्रेम ही एकता का सबसे मज़बूत जोड़ है और इसी प्रेम की वज़ह से हम सही काम करते हैं।—1 कुरिन्थियों 13:8, 13; कुलुस्सियों 3:14.
19. यहोवा हमें क्या यकीन दिलाता है और उसके अपार प्रेम के बदले में हमें क्या करना चाहिए?
19 यहोवा की शक्ति के बारे में जानने का मतलब है यहोवा को जानना। यशायाह के ज़रिए यहोवा ने कहा: “क्या तुम नहीं जानते? क्या तुम ने नहीं सुना? यहोवा जो सनातन परमेश्वर और पृथ्वी भर का सिरजनहार है, वह न थकता, न श्रमित होता है।” (यशायाह 40:28) जी हाँ, यहोवा की शक्ति कभी खत्म नहीं होगी। अगर हम अपने पर निर्भर होने के बजाय यहोवा पर निर्भर रहें, तो वह हमारी रक्षा ज़रूर करेगा। वह हमें यकीन दिलाता है: “मत डर, क्योंकि मैं तेरे संग हूं, इधर उधर मत ताक, क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर हूं; मैं तुझे दृढ़ करूंगा और तेरी सहायता करूंगा, अपने धर्ममय दहिने हाथ से मैं तुझे सम्हाले रहूंगा।” (यशायाह 41:10) सो, यहोवा के इस अपार प्रेम के बदले में हमें क्या करना चाहिए? हमें जो भी शक्ति यहोवा से मिली है, आइए हम उसे यीशु की तरह दूसरों की मदद करने और उनका हौसला बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करें। हम अपनी ज़ुबान पर लगाम दें, ताकि इससे दूसरों को नुकसान न हो, बल्कि उन्नति हो। और आइए हम हमेशा आध्यात्मिक रूप से जागते रहें, विश्वास में दृढ़ रहें, और अपने महान सृजनहार, यहोवा परमेश्वर से शक्ति पाकर बलवन्त बनें।—1 कुरिन्थियों 16:13.
[फुटनोट]
^ शायद यहूदियों को मूसा की व्यवस्था की वह पुस्तक मिली थी जिसे खुद मूसा ने अपने हाथों से लिखा था और जो कई सदियों पहले मंदिर में रखी गयी थी।
क्या आप समझा सकते हैं?
• यहोवा अपनी शक्ति का इस्तेमाल कैसे करता है?
• यहोवा हमें किन तरीकों से शक्ति देता है?
• हमारी ज़ुबान में जो ताकत है, उसका इस्तेमाल कैसे किया जाना चाहिए?
• परमेश्वर द्वारा दिया गया अधिकार लोगों के लिए आशीष कब साबित होगा?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 15 पर तसवीर]
यीशु ने यहोवा की शक्ति का इस्तेमाल दूसरों की मदद करने के लिए किया
[पेज 17 पर तसवीरें]
हम सब परमेश्वर के वचन का प्रचार कर सकते हैं क्योंकि हम सब के पास प्रचार करने की शक्ति है, बशर्ते हमारे पास यह काम करने की इच्छा हो