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यहोवा किस तरह हमारी अगुवाई कर रहा है

यहोवा किस तरह हमारी अगुवाई कर रहा है

यहोवा किस तरह हमारी अगुवाई कर रहा है

“मुझ को चौरस [धर्म के] रास्ते पर ले चल।”—भजन 27:11.

1, 2. (क) आज यहोवा किस तरह अपने लोगों की अगुवाई कर रहा है? (ख) सभाओं से पूरा फायदा उठाने में कौन-सी बातें शामिल हैं?

 हमने पिछले लेख में पढ़ा कि हमें सच्चाई और ज्योति सिर्फ यहोवा से मिलती है। जब हम धर्म के मार्ग पर चलते हैं तो उसका वचन हमारे मार्ग को रौशन करता है। यहोवा अपने मार्गों के बारे में हमें शिक्षा देकर हमारी अगुवाई करता है। (भजन 119:105) पुराने ज़माने के भजनहार की तरह आज हम भी खुशी-खुशी यहोवा की अगुवाई को स्वीकार करते हैं और प्रार्थना करते हैं: “हे यहोवा, अपने मार्ग में मेरी अगुवाई कर, और मेरे द्रोहियों के कारण मुझ को चौरस [धर्म के] रास्ते पर ले चल।”—भजन 27:11.

2 एक तरीका जिससे यहोवा हमें शिक्षा देता है, वह है मसीही सभाएँ। यहोवा ने प्यार से यह इंतज़ाम किया है तो क्या हम उसका पूरा फायदा उठाते हैं: (1) हमेशा हाज़िर होकर, (2) कार्यक्रम को ध्यान से सुनकर और (3) सवाल-जवाबवाले कार्यक्रमों में खुशी से भाग लेकर? इसके अलावा जब हमें ‘धर्म के रास्ते’ पर चलते रहने के लिए सलाह दी जाती है, तो क्या हम उसे खुशी से कबूल करते हैं?

क्या आप हर सभा में हाज़िर होते हैं?

3. पूर्ण समय सेवा करनेवाली एक बहन ने किस तरह सभाओं में जाने की एक अच्छी आदत डाली?

3 कुछ राज्य प्रचारक बचपन से ही हमेशा सभाओं में हाज़िर होते रहे हैं। पूर्ण समय सेवा करनेवाली एक यहोवा की साक्षी कहती है, “1930 के दशक की बात मुझे याद है, मैं और मेरी बहनें अभी छोटी ही थीं, मगर फिर भी हम कभी मम्मी-पापा से यह नहीं पूछती थीं कि क्या आज हम मीटिंग जानेवाले हैं। अगर तबियत खराब नहीं है, तो हम ना जाने के बारे सोच ही नहीं सकते थे। हमारा परिवार हर मीटिंग में हाज़िर होता था।” नबिया हन्‍नाह की तरह आज भी यह बहन यहोवा की उपासना की जगह को कभी “नहीं छोड़ती” है।—लूका 2:36, 37.

4-6. (क) कुछ राज्य प्रचारक सभाओं से क्यों चूक जाते हैं? (ख) सभाओं में हाज़िर होना क्यों बहुत ज़रूरी है?

4 क्या आप भी हर सभा में हाज़िर होते हैं? या क्या आप इस मामले में थोड़े ढीले हैं? कुछ मसीही सोचते थे कि सभाओं में जाने का उनका रिकॉर्ड बहुत अच्छा है, मगर उन्होंने इसके बारे में जाँच करने की सोची। कुछ हफ्तों के लिए वे नोट करते रहे कि वे कितनी सभाओं में हाज़िर हुए हैं। उन हफ्तों के आखिर में जब उन्होंने नोट को जाँचा तो वे हैरान रह गए कि वे तो कितनी सभाओं में नहीं गए थे!

5 कुछ लोग शायद कहें कि ‘इसमें हैरानी की बात क्या है? आजकल तो ज़िंदगी में इतनी परेशानियाँ हैं कि हर सभा में जाना मुमकिन ही नहीं होता।’ यह सच है कि आज हम तनाव भरे संसार में जी रहे हैं। इसमें शक नहीं कि आगे चलकर ये तनाव और भी बढ़ेंगे। (2 तीमुथियुस 3:13) लेकिन यही बात क्या हमारे लिए और भी ज़रूरी नहीं बना देती कि हम हर सभा में जाएँ? अगर हम लगातार पौष्टिक आध्यात्मिक आहार नहीं लेंगे, तो हम इस दुनिया से आनेवाले दबावों का सामना कैसे कर पाएँगे? यही नहीं, अगर हम हमेशा भाई-बहनों की संगति न करें तो ऐसा भी वक्‍त आ सकता है, जब हम ‘धर्म की चाल’ ही चलना छोड़ दें। (नीतिवचन 4:18) माना कि दिन भर मेहनत करके जब हम शाम को घर लौटते हैं तो शायद सभाओं में जाने का मन न करे। लेकिन जब हम सभाओं में जाते हैं तो थके होने के बावजूद हम तरो-ताज़ा महसूस करते हैं, इसके अलावा हमें हाज़िर देखकर दूसरे भाई-बहनों का भी हौसला बढ़ाता है।

6 इब्रानियों 10:25 में हमें एक और कारण बताया गया है कि सभाओं में हमेशा क्यों जाना चाहिए। वहाँ प्रेरित पौलुस मसीहियों को समझाता है कि “ज्यों ज्यों उस दिन को निकट आते देखो” और भी एक-दूसरे के साथ इकट्ठा होते रहो। जी हाँ, यह बात हमारे मन से कभी न निकलने पाए कि ‘यहोवा का दिन’ करीब आ रहा है। (2 पतरस 3:12) अगर हम यह सोचने लगते हैं कि इस दुनिया का अंत आने में अभी काफी देर है, तो हम शायद अपने ही कामों में उलझ जाएँ और हमें आध्यात्मिक कामों के लिए जो बहुत ज़रूरी हैं, जैसे कि सभाओं में जाने के लिए वक्‍त ही नहीं होगा। फिर जैसा कि यीशु ने कहा था, ‘वह दिन हम पर फन्दे की नाईं अचानक आ पड़ेगा।’—लूका 21:34.

अच्छी तरह सुननेवाले बनिए

7. बच्चों को सभाओं में ध्यान देना क्यों ज़रूरी है?

7 सभाओं में सिर्फ हाज़िर होना ही काफी नहीं है। वहाँ जो बताया जाता है, उस पर मन लगाना चाहिए यानी हमें ध्यान से सुनना भी चाहिए। (नीतिवचन 7:24) हमारे बच्चों को भी ध्यान से सुनना चाहिए। बच्चों से स्कूल में यही उम्मीद की जाती है कि वे अपने टीचर की बात ध्यान से सुनें, फिर चाहे विषय उनकी पसंद का हो या न हो, और उन्हें समझ में आए या न आए। टीचर जानती है कि अगर बच्चे मन लगाकर सुनते हैं तो वे कुछ न कुछ तो ज़रूर सीखेंगे। तो स्कूल जानेवाले ऐसे बच्चों से, क्या सभाओं में भी यही उम्मीद नहीं की जा सकती कि सभाएँ शुरू होते ही सो जाने के बजाय, बतायी जा रही बातों को ध्यान से सुनें? यह सच है कि बाइबल में दी गई अनमोल सच्चाइयों में, कुछ ऐसी बातें हैं “जिनका समझना कठिन है।” (2 पतरस 3:16) लेकिन हमें यह बात कभी नज़रअंदाज़ नहीं करनी चाहिए कि यही उनके सीखने की उम्र होती है। इसीलिए परमेश्‍वर यहोवा ने इस्राएली बच्चों को भी हिदायत दी थी कि वे ‘सुनकर सीखें और उसका भय मानकर, व्यवस्था के सारे वचनों के पालन करने में चौकसी करें,’ जबकि इनमें से कुछ बातें ज़रूर उनके लिए समझने में मुश्‍किल रही होंगी। (व्यवस्थाविवरण 31:12; लैव्यव्यवस्था 18:1-30 से तुलना कीजिए।) तो क्या आज भी यहोवा बच्चों से उतने की ही उम्मीद नहीं करेगा?

8. बच्चे सभाओं में ध्यान देकर सुनें इसके लिए कुछ माता-पिता क्या करते हैं?

8 मसीही माता-पिता जानते हैं कि सभाओं के ज़रिए काफी हद तक बच्चों की आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी हो जाती है। इसलिए कुछ माता-पिता, बच्चों को सभाओं में ले जाने से पहले थोड़ी देर सोने के लिए कहते हैं ताकि वे तरो-ताज़ा होकर किंगडम हॉल जाएँ और वहाँ ध्यान लगाकर सुनें। कुछ माता-पिता मीटिंगवाली शाम, बच्चों को टी.वी. पर चंद प्रोग्राम ही देखने की इज़ाज़त देते हैं या फिर बिलकुल भी देखने नहीं देते, जो कि अच्छी बात है। (इफिसियों 5:15, 16) इन माता-पिताओं की कोशिश यही रहती है कि बच्चों का ध्यान दूसरी बातों में न भटके। वे उनकी उम्र और काबिलीयत के हिसाब से उन्हें परमेश्‍वर के बारे में सुनने या सीखने के लिए उकसाते हैं।—नीतिवचन 8:32.

9. अपनी सुनने की काबिलियत को बढ़ाने में कौन-सी बातें हमारी मदद करेंगी?

9 यीशु ने जब कहा कि “चौकस रहो, कि तुम किस रीति से सुनते हो,” तो यह बात दरअसल वह बड़ों से कह रहा था। (लूका 8:18) आज के ज़माने में ऐसी बातें कहना तो आसान है मगर करना मुश्‍किल। माना कि ध्यान देकर सुनना बहुत ही मुश्‍किल होता है मगर ध्यान देकर सुनने की काबिलीयत को बढ़ाया तो जा सकता है। जब आप सभाओं में बाइबल टॉक या कोई अन्य कार्यक्रम सुनते हैं तो उसका मुख्य मुद्दा समझने की कोशिश कीजिए। पहले से ही अंदाज़ा लगाइए कि वक्‍ता आगे क्या बोलनेवाला है। और ऐसी बातों पर ध्यान दीजिए कि आप किन बातों को प्रचार में या अपनी ज़िंदगी में लागू कर सकते हैं। जब उन बातों पर चर्चा की जाती है तो मन ही मन उन्हें दोहराने की कोशिश कीजिए। छोटे-छोटे नोटस्‌ भी लीजिए।

10, 11. बच्चे सभाओं में मन लगाकर सुन सकें इसके लिए कुछ माता-पिता ने किस तरह से उनकी मदद की है और आपने कौन-सा कारगर तरीका अपनाया है?

10 सुनने की अच्छी आदत डालने का सबसे सही वक्‍त है बचपन। कुछ बच्चों की जब स्कूल जाने की उम्र भी नहीं होती यानी उन्हें पढ़ना-लिखना भी नहीं आता, तभी से उनके माता-पिता उन्हें सभाओं के दौरान “नोट्‌स” लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। सभाओं में जब कुछ जाने-माने शब्दों को बोला जाता है, जैसे “यहोवा,” “यीशु,” या “राज्य” तो बच्चे उन्हें अपनी किताब में निशान लगाते हैं। इस तरह प्लैटफॉर्म से जो कहा जाता है, बच्चे उसे ध्यान से सुनना सीखते हैं।

11 कभी-कभी बड़े बच्चों को भी ध्यान से सुनने के लिए कहना पड़ता है। एक बार एक पिता ने अधिवेशन के दौरान देखा कि उसके 11 बरस के बेटे का ध्यान कार्यक्रम पर न होकर कहीं और है। तो पिता ने उसके हाथ में बाइबल देते हुए कहा कि जब वक्‍ता कोई वचन बोलेगा तो वह उसे खोले। पिता नोट्‌स लिख रहा था और जब लड़का बाइबल खोलता तो उसके साथ पिता भी वचन को देखता था। इसके बाद उस लड़के ने पूरे कार्यक्रम को बड़े ध्यान से सुना।

लोग आपकी आवाज़ सुनें

12, 13. कलीसिया में भाई-बहनों के साथ मिलकर गीत गाना क्यों इतना ज़रूरी है?

12 राजा दाऊद ने भजन में गाया: “हे यहोवा मैं तेरी वेदी की प्रदक्षिणा करूंगा, ताकि तेरा धन्यवाद ऊंचे शब्द से करूं।” (भजन 26:6, 7) यहोवा के साक्षियों की सभाओं में हमें बढ़िया मौका मिलता है कि हम अपना विश्‍वास लोगों के सामने ज़ाहिर करें। कलीसिया में गीत गाकर भी हम ऐसा कर सकते हैं। गीत गाना हमारी उपासना का एक अहम भाग है मगर इसे भी बड़ी आसानी से नज़रअंदाज़ किया जा सकता है।

13 कुछ छोटे बच्चे जिन्हें भले ही पढ़ना-लिखना नहीं आता, वे हर हफ्ते सभाओं में गाए जानेवाले राज्य गीतों को मुँह ज़बानी याद कर लेते हैं। जब वे देखते हैं कि वे भी बड़ों के साथ-साथ गा लेते हैं तो उन्हें बहुत खुशी मिलती है। लेकिन जब बच्चे थोड़े बड़े होने लगते हैं तो वे शायद राज्य गीत गाने में इतनी दिलचस्पी न लें। यही नहीं, बड़ी उम्र के कुछ भाई-बहन भी सभाओं में गाने से हिचकिचाते हैं। लेकिन जिस तरह प्रचार करना हमारी उपासना का भाग है, उसी तरह गीत गाना भी हमारी उपासना का एक भाग है। (इफिसियों 5:19) हम प्रचार में यहोवा की स्तुति करने के लिए अपना भरसक करते हैं। तो क्या हम अपनी बुलंद आवाज़ में, तहे दिल से भजन गाकर उसकी महिमा नहीं कर सकते, चाहे हमारी आवाज़ इतनी सुरीली न भी हो?—इब्रानियों 13:15.

14. सभाओं में चर्चा किए जानेवाले विषयों की पहले से अच्छी तैयारी करना इतना ज़रूरी क्यों है?

14 ऐसे कार्यक्रम जिनमें श्रोता हिस्सा ले सकते हैं, उनमें हम भी अपने जवाब देकर परमेश्‍वर की महिमा कर सकते हैं। लेकिन ऐसा हम तभी कर सकते हैं जब हम पहले से तैयारी करें। हमें समय निकालकर परमेश्‍वर के वचन की गहरी बातों को समझने के लिए मनन करना चाहिए। इस बात को प्रेरित पौलुस अच्छी तरह समझता था, जो परमेश्‍वर के वचन का बड़ी लगन से अध्ययन करता था। उसने लिखा: “आहा! परमेश्‍वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गंभीर है!” (रोमियों 11:33) बाइबल बताती है कि घर के हर सदस्य को परमेश्‍वर की बुद्धि की जाँच-परख करने में मदद करना परिवार के मुखिया की ज़िम्मेदारी है। आप फैमिली बाइबल स्टडी के दौरान कठिन मुद्दे समझाने और सभाओं की तैयारी में परिवार की मदद करने के लिए कुछ समय अलग रखिए।

15. सभाओं में जवाब देने के लिए कौन-सी बातें मदद कर सकती हैं?

15 अगर आप सभाओं में ज़्यादा जवाब देना चाहते हैं, तो क्यों न आप अपने जवाब पहले से ही तैयार करें? बहुत लंबा-चौड़ा बोलने की ज़रूरत नहीं है। अगर आप विषय से जुड़े बाइबल के वचन जोश के साथ पढ़ते हैं या फिर चंद शब्दों में अपने विचार ज़ाहिर करते हैं तो भी आपकी सराहना की जाएगी। कुछ प्रचारक स्टडी लेनेवाले भाई को पहले से ही बता देते हैं कि अमुक पैराग्राफ पर वे पहले जवाब देना चाहेंगे ताकि वे अपने विश्‍वास को लोगों के सामने ज़ाहिर करने का मौका न गँवाएँ।

साधारण इंसान, बने बुद्धिमान

16, 17. एक प्राचीन ने सहायक सेवक को कौन-सी सलाह दी और वह फायदेमंद क्यों थी?

16 यहोवा के साक्षियों की सभाओं में अकसर याद दिलाया जाता है कि हमें रोज़ाना परमेश्‍वर का वचन पढ़ना चाहिए। एक तो बाइबल पढ़ने से हमें ताज़गी मिलती है। साथ ही, इससे हमें कोई भी फैसला सोच-समझकर करने में मदद मिलती है, हम अपनी कमियों को दूर कर पाते हैं, प्रलोभनों का विरोध कर सकते हैं और अगर हम किसी गलत राह पर चल पड़े हैं, तो आध्यात्मिक रूप से दोबारा सही राह पर आने में मदद मिलती है।—भजन 19:7.

17 कलीसियाओं में अनुभवी प्राचीन हमारी ज़रूरत के हिसाब से बाइबल के मुताबिक सलाह देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। बस हमें यह करना होता है कि बाइबल पर आधारित सलाह को उनसे ‘निकलवाने’ या पाने के लिए हमें उनके पास जाने की ज़रूरत होती है। (नीतिवचन 20:5) एक जवान सहायक सेवक जो बहुत ही जोशीला था, उसने एक बार एक प्राचीन से सलाह माँगी कि वह कलीसिया के लिए किस तरह ज़्यादा मददगार हो सकता है। प्राचीन उस भाई को अच्छी तरह जानता था। उसने 1 तीमुथियुस 3:3 का वचन खोला जहाँ बताया गया है कि कलीसिया में जिन पुरुषों को ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है, उन्हें कोमल (समझदार) होना चाहिए। फिर उसने बड़े प्यार से समझाया कि वह किन तरीकों से दूसरों के साथ समझदारी से पेश आ सकता है। क्या ऐसी सलाह पाकर वह भाई बुरा मान गया? बिलकुल नहीं! उसने बताया, “भाई ने जब बाइबल खोली तो मैंने यह समझा कि दरअसल यहोवा मुझे सलाह दे रहा है।” इस सहायक सेवक ने खुशी से सलाह के मुताबिक काम किया और अब वह अच्छी प्रगति कर रहा है।

18. (क) स्कूल में आए प्रलोभनों का सामना करने के लिए एक बहन को किस बात ने मदद की? (ख) जब आप पर कोई प्रलोभन आता है तो आपके मन में बाइबल के कौन-से वचन आते हैं?

18 परमेश्‍वर का वचन जवानों को अपनी “जवानी की अभिलाषाओं से भाग” निकलने में भी मदद करता है। (2 तीमुथियुस 2:22) एक जवान साक्षी की बात लीजिए जिसने हाल ही में हाई स्कूल पास किया। वह हमेशा बाइबल के कुछ खास वचनों पर मनन करती थी और उन्हें लागू करती थी, जिसकी वज़ह से वह स्कूल में आए प्रलोभनों को ठुकरा सकी। वह अकसर नीतिवचन 13:20 में लिखी बात पर विचार करती, “बुद्धिमानों की संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा।” इसलिए वह सिर्फ ऐसे बच्चों के साथ दोस्ती करती थी जो बाइबल के सिद्धांतों की दिल से कदर करते थे। उसने कहा: “अगर मैं बुरे बच्चों के साथ दोस्ती करती तो उनमें और मुझमें कोई फर्क ही नहीं रह जाता। मैं उन्हीं को खुश करने की धुन में रहती और आखिर में मुसीबत मोल लेती।” 2 तीमुथियुस 1:8 में दी गयी पौलुस की सलाह ने भी उसकी मदद की। वहाँ लिखा है: “हमारे प्रभु की गवाही से, . . . . लज्जित न हो, पर उस परमेश्‍वर की सामर्थ के अनुसार सुसमाचार के लिये मेरे साथ दुख उठा।” इस सलाह को ध्यान में रखते हुए उसने जब भी मौका मिला अपने क्लास के बच्चों को बड़ी हिम्मत के साथ बाइबल के बारे में अपने विश्‍वास की गवाही दी। जब कभी क्लास के सामने किसी विषय पर उसे बोलने के लिए कहा जाता था तो वह ऐसे विषय चुनती जिससे किसी-न-किसी तरह परमेश्‍वर के राज्य के बारे में गवाही दे सके।

19. एक नौजवान पहले क्यों इस दुनिया के प्रलोभनों का विरोध नहीं कर पाया मगर बाद में कैसे वह आध्यात्मिक रूप से मज़बूत हो गया?

19 अगर कभी हम ‘धर्म की राह’ से भटक जाते हैं, तो परमेश्‍वर का वचन हमारे कदमों को फिर से सही राह पर ले आने में मदद करेगा। (नीतिवचन 4:18) अफ्रीका में रहनेवाले एक नौजवान ने इस बात को अपनी ज़िंदगी में सच होते देखा। एक बार जब एक यहोवा के साक्षी ने उससे मुलाकात की तो वह बाइबल अध्ययन करने के लिए तैयार हुआ। वह जो सीख रहा था उसे बहुत ही अच्छा लगा, लेकिन कुछ समय बाद वह स्कूल में बुरी संगति में फँस गया। बाद में वह अनैतिक ज़िंदगी भी जीने लगा। उसने कहा: “अपनी बुरी ज़िंदगी की वज़ह से मेरा विवेक मुझे कचोटने लगा इसलिए मैंने सभाओं में जाना ही बंद कर दिया।” मगर बाद में वह फिर से सभाओं में आने लगा। उसने एक बात कबूल की: “मैं प्रलोभनों का सामना खासकर इसलिए नहीं कर पाया क्योंकि मैं आध्यात्मिक भोजन नहीं ले रहा था। मैं कभी अकेले बैठकर अध्ययन नहीं करता था। इसलिए मैंने प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! पत्रिका पढ़नी शुरू कर दी। धीरे-धीरे मैं फिर से आध्यात्मिक रूप से मज़बूत होता गया और अपनी ज़िंदगी को सँवारने लगा। जिन लोगों ने मुझे इस तरह बदलते देखा, उनके लिए यह एक अच्छी गवाही थी। मैंने बपतिस्मा लिया और आज मैं बेहद खुश हूँ।” यह जवान अपनी कमज़ोरियों पर काबू क्यों पा सका? क्योंकि उसने नियमित रूप से बाइबल अध्ययन करके आध्यात्मिक शक्‍ति पायी।

20. मसीही नौजवान, शैतान के हमलों का मुकाबला किस तरह कर सकते हैं?

20 मसीही नौजवानो, आज शैतान का निशाना आप हैं! अगर आप उसका मुकाबला करना चाहते हैं तो आपको हमेशा आध्यात्मिक भोजन लेते रहना चाहिए। भजनहार जब शायद जवान था, इस बात को समझ सका। उसने यहोवा को धन्यवाद कहा कि उसने अपना वचन दिया है, जिससे ‘जवान अपनी चाल को शुद्ध’ रख सकता है।—भजन 119:9.

परमेश्‍वर जहाँ ले चले, हम वहीं चलेंगे

21, 22. हमें क्यों कभी ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि सच्चाई का रास्ता बहुत कठिन है?

21 यहोवा इस्राएलियों को मिस्र से निकालकर वादा किए गए देश में ले गया। यहोवा जिस रास्ते से उन्हें ले गया, वह रास्ता एक इंसान की नज़रों में शायद बहुत ही मुश्‍किल लगे। क्योंकि भूमध्य सागर के तट से सीधे ले जाने के बजाय जो कि एक आसान रास्ता था, यहोवा ने उन्हें रेगिस्तानी रास्ते से चलने को कहा, जो बहुत ही कठिन था। लेकिन इसमें तो दरअसल यहोवा की मेहरबानी नज़र आती है। अगर वे समुद्र का रास्ता लेते तो भले ही वे जल्दी पहुँच जाते, मगर रास्ते में उन्हें खतरनाक फिलिस्तियों का सामना करना पड़ता और खामखाह मुसीबतें मोल लेते। इसलिए यहोवा उन्हें दूसरे रास्ते से ले गया।

22 आज हमें भी यहोवा जिस रास्ते से ले जा रहा है, वह शायद हमें बहुत कठिन लगे। हम मसीहियों को हर हफ्ते सभाओं में जाना, व्यक्‍तिगत अध्ययन करना और प्रचार में जाना, जैसे कई काम होते हैं। इसलिए दूसरे रास्ते शायद हमें आसान दिखाई दें। लेकिन अगर हमें अपनी मंज़िल तक पहुँचना है, तो हमें आगे भी इसी तरह परमेश्‍वर के मार्ग पर चलते हुए जी-तोड़ मेहनत करनी होगी। इसलिए आइए हम यहोवा से ज़रूरी हिदायतें लेते रहें और हमेशा ‘धर्म के रास्ते’ पर चलते रहें।—भजन 27:11.

क्या आप समझा सकते हैं?

हमें क्यों यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारे लिए हर मसीही सभा में जाना बहुत ज़रूरी है?

सभाओं में मन लगाकर सुनने में माता-पिता बच्चों की मदद कैसे कर सकते हैं?

अच्छी तरह सुनने का मतलब क्या है?

सभाओं में जवाब देने के लिए कौन-सी बातें हमारी मदद कर सकती हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 16, 17 पर तसवीर]

कलीसिया की हर सभा में हाज़िर होने से हमें यहोवा के दिन को मन में रखना आसान होता है

[पेज 18 पर तसवीरें]

मसीही सभाओं में यहोवा की स्तुति करने के कई तरीके हैं