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‘हे परमेश्‍वर अपना प्रकाश भेज’

‘हे परमेश्‍वर अपना प्रकाश भेज’

‘हे परमेश्‍वर अपना प्रकाश भेज’

“अपने प्रकाश और अपनी सच्चाई को भेज; वे मेरी अगुवाई करें।”—भजन 43:3.

1. यहोवा किस तरह अपने मकसद ज़ाहिर करता है?

 यहोवा अपने सेवकों पर अपने मकसद जिस तरीके से ज़ाहिर करता है, उससे उसकी समझदारी बखूबी नज़र आती है। वह हमें सारी सच्चाइयाँ एक-साथ प्रकट करके चकाचौंध कर देने के बजाय धीरे-धीरे सच्चाई की रौशनी प्रकट करता है। हम जीवन के मार्ग पर निकल पड़े हैं और अपनी तुलना ऐसे मुसाफिर के साथ कर सकते हैं जो एक लंबे सफर पर निकलता है। वह बहुत तड़के ही उठकर अपनी राह लेता है और तब उसे कुछ भी साफ नज़र नहीं आता। जैसे-जैसे सूरज उदय होने लगता है, उसे आस-पास की चीज़ें साफ नज़र आने लगती हैं। मगर दूर की चीज़ें अब भी धुंधली नज़र आती हैं। जब तेज़ धूप निकल आती है तो उसे दूर-दूर की चीज़ें भी बिलकुल साफ नज़र आने लगती हैं। इसी तरह परमेश्‍वर से मिलनेवाले आध्यात्मिक ज्ञान की रौशनी भी धीरे-धीरे बढ़ती गयी है। यहोवा ने हमें अपनी बातों की समझ धीरे-धीरे दी है। उसके पुत्र यीशु मसीह ने भी आध्यात्मिक ज्ञान का प्रकाश एकदम ही नहीं चमका दिया था। अब आइए देखें कि यहोवा ने किस तरह पुराने ज़माने में अपने लोगों को प्रकाश दिया था और आज भी वह कैसे दे रहा है।

2. इस्राएलियों के ज़माने में यहोवा ने अपना प्रकाश कैसे प्रकट किया था?

2 कोरह के पुत्र जो लेवी के वंश के थे, उन्हें लोगों को परमेश्‍वर की व्यवस्था सिखाने की विशेष आशीष मिली थी। (मलाकी 2:7) शायद उन्होंने ही 43वाँ भजन लिखा था। बेशक लेवी बुद्धि पाने के लिए यहोवा की ओर देखते थे क्योंकि यहोवा ही सभी का महान उपदेशक था। (यशायाह 30:20) भजनहार ने प्रार्थना की: “हे परमेश्‍वर, . . . अपने प्रकाश और अपनी सच्चाई को भेज; वे मेरी अगुवाई करें।” (भजन 43:1, 3) यहोवा इस्राएलियों की अगुवाई तब तक करता रहा जब तक वे यहोवा के वफादार रहे। सदियों बाद यहोवा ने उन पर अनुग्रह करके ऐसी ज्योति और सच्चाई प्रकट की जो बहुत ही अनोखी और खास थी। यह उसने अपने बेटे के ज़रिए किया जब वह पृथ्वी पर आया था।

3. यीशु की शिक्षा ने यहूदियों के बारे में क्या ज़ाहिर किया?

3 परमेश्‍वर का बेटा, यीशु मसीह जब पृथ्वी पर था तो वह वाकई “जगत की ज्योति” था। (यूहन्‍ना 8:12) उसने लोगों को “दृष्टान्तों में बहुत सी बातें” सिखायीं, जी हाँ नयी-नयी बातें। (मरकुस 4:2) उसने पुन्तियुस पीलातुस से कहा: “मेरा राज्य इस जगत का नहीं।” (यूहन्‍ना 18:36) यह बात रोमियों के लिए बिलकुल नई थी और बेशक देशभक्‍त यहूदियों के लिए भी, क्योंकि वे सोचते थे कि मसीहा, रोमी साम्राज्य को अपने कदमों तले कुचल देगा और इस्राएल देश की पहली महिमा फिर से लौटा देगा। यीशु ने सच्चाई की यह रौशनी यहोवा की ओर से ही दी थी, मगर यहूदी शासकों को उसके बोल रास नहीं आए क्योंकि वे ‘मनुष्यों की प्रशंसा को परमेश्‍वर की प्रशंसा से अधिक प्रिय जानते थे।’ (यूहन्‍ना 12:42, 43) परमेश्‍वर से मिलनेवाली आध्यात्मिक ज्योति और सच्चाई को कबूल करने के बजाए कई लोगों ने बाप-दादों की परंपरा के मुताबिक ही चलना पसंद किया।—भजन 43:3; मत्ती 13:15.

4. हम कैसे जानते हैं कि चेलों की समझ और भी बढ़नेवाली थी?

4 फिर भी, कुछ नेकदिल स्त्री-पुरुषों ने यीशु द्वारा सिखाई गई सच्चाइयों को बड़ी खुशी-खुशी कबूल किया। परमेश्‍वर के मकसद को समझने की उनकी काबिलीयत बढ़ती गयी और उन्होंने यीशु से कई बातें सीख लीं। मगर उन्हें और भी बहुत कुछ सीखना बाकी था। अपनी मौत से कुछ ही समय पहले यीशु ने चेलों से कहा: “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते।” (यूहन्‍ना 16:12) जी हाँ, परमेश्‍वर की सच्चाइयों के बारे में चेलों की समझ और भी बढ़नेवाली थी।

प्रकाश बढ़ता जाता है

5. पहली सदी में कौन-सा प्रश्‍न खड़ा हुआ और उसे हल करने की ज़िम्मेदारी किन लोगों पर थी?

5 यीशु की मौत और पुनरुत्थान के बाद परमेश्‍वर का प्रकाश और भी तेज़ होता गया। यहोवा ने पतरस को एक दर्शन में एक नई सच्चाई ज़ाहिर की। वह यह थी कि अब से अन्यजाति के लोग भी मसीह के चेले बन सकते हैं। (प्रेरितों 10:9-17) वाकई एक नई बात! लेकिन इसके बाद यह सवाल भी उठा: क्या यहोवा चाहता है कि अन्यजाति के लोग मसीही बनने के बाद खतना करवाएँ? इस सवाल का जवाब दर्शन में नहीं दिया गया था और यह विषय मसीहियों में एक ज़बरदस्त बहस का मुद्दा बन गया। इस मसले का हल करना बेहद ज़रूरी था, वरना उनमें फूट पड़ जाती। इसलिए यरूशलेम में, “प्रेरित और प्राचीन इस बात के विषय में विचार करने के लिये इकट्ठे हुए।”—प्रेरितों 15:1, 2, 6.

6. खतना पर उठे प्रश्‍न के बारे में प्रेरितों और प्राचीनों ने किस तरीके से फैसला किया?

6 उस सभा में हाज़िर लोग यह कैसे पता लगाते कि मसीही बने अन्यजातियों से यहोवा क्या चाहता है? इस चर्चा की अगुवाई करने के लिए परमेश्‍वर ने ना तो कोई स्वर्गदूत भेजा और ना ही मौजूद लोगों को कोई दर्शन दिया। लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि प्रेरितों और प्राचीनों को कोई मार्गदर्शन नहीं दिया गया। उन्होंने उन यहूदी मसीहियों द्वारा दिए गए सबूतों पर गौर किया जो इस बात के चश्‍मदीद गवाह थे कि परमेश्‍वर ने खतना न किए हुए अन्यजातियों पर भी अपनी पवित्र आत्मा उँडेली थी। उन्होंने मार्गदर्शन के लिए शास्त्रवचनों में भी खोज-बीन की। इन सभी बातों को मद्देनज़र रखते हुए और एक शास्त्रवचन से नई समझ पाकर शिष्य याकूब ने सलाह दी। सारे सबूतों पर विचार करने के बाद उन्हें परमेश्‍वर की यह इच्छा साफ-साफ समझ में आयी: अन्यजाति के लोगों को यहोवा का अनुग्रह पाने के लिए खतना करवाने की ज़रूरत नहीं है। तब प्रेरितों और प्राचीनों ने तुरंत इस फैसले को लिख डाला ताकि दूसरे मसीही भाइयों को भी इससे मार्गदर्शन मिले।—प्रेरितों 15:12-29; 16:4.

7. पहली सदी के मसीहियों ने किस तरह से प्रगति की?

7 अन्यजाति के लोगों के बारे में परमेश्‍वर के उद्देश्‍य की नयी समझ पाकर कई यहूदी मसीही बहुत खुश हुए। वे उन धार्मिक अगुओं की तरह नहीं थे जो सिर्फ अपने पूर्वजों की परंपराओं से चिपके रहना पसंद करते थे। हालाँकि इस नयी समझ के लिए उन यहूदियों को अन्यजातियों के बारे में अपनी धारणाएँ बदलनी पड़ीं, मगर यहोवा ने ऐसी नम्रता दिखाने के लिए उन्हें आशीष दी और “कलीसिया विश्‍वास में स्थिर होती गईं और गिनती में प्रति दिन बढ़ती गईं।”—प्रेरितों 15:31; 16:5.

8. (क) हम कैसे जानते हैं कि पहली सदी के खत्म होने के बाद भी और ज़्यादा प्रकाश मिलनेवाला था? (ख) इससे संबंधित कौन-से सवालों पर हम गौर करेंगे?

8 पहली सदी के दौरान आध्यात्मिक प्रकाश चमकता रहा। मगर यहोवा ने उन मसीहियों को अपने मकसद की सारी बातें बारीकियों से नहीं बतायी थीं। प्रेरित पौलुस ने संगी विश्‍वासियों से कहा: “अब हमें [धातु के, NW] दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है।” (1 कुरिन्थियों 13:12) धातु के बने दर्पणों में छाया साफ नज़र नहीं आती है। उसी तरह शुरू-शुरू में आध्यात्मिक बातों को समझने की काबिलीयत कम थी। और प्रेरितों की मृत्यु के बाद, कुछ समय के लिए यह रौशनी तो बिलकुल बुझ-सी गई थी। मगर हाल के समय में सच्चाई की रौशनी फिर से तेज़ हो गयी है। (दानिय्येल 12:4) आज यहोवा अपने लोगों को किस तरह प्रकाश दे रहा है? और जब वह शास्त्रवचनों के बारे में हमारी समझ बढ़ाता है तो हमारा रवैया कैसा होना चाहिए?

प्रकाश और भी दमक उठता है

9. बाइबल विद्यार्थियों ने बाइबल का अध्ययन करने का कौन-सा अनोखा और असरदार तरीका अपनाया?

9 नए ज़माने में प्रकाश की पहली किरण 19वीं सदी के आखिर में चमकी। यह उन मसीही स्त्री-पुरुषों पर चमकी जो बड़ी मेहनत और लगन के साथ मिलकर बाइबल का अध्ययन कर रहे थे। उन्होंने बाइबल अध्ययन करने का एक बहुत ही अच्छा तरीका अपनाया। पहले उनमें से एक व्यक्‍ति कोई सवाल खड़ा करता, फिर सभी लोग मिलकर उससे जुड़े सारे शास्त्रवचनों पर खोज-बीन करके उस पर चर्चा करते। अगर उन्हें ज़रा भी शक होता कि उनमें से कोई वचन, दूसरे के विरोध में है, तो ये सच्चे मसीही उस पर ज़्यादा खोजबीन करते थे ताकि उनका शक दूर हो। बाइबल विद्यार्थी (आज जिन्हें यहोवा के साक्षी कहा जाता है) अपने समय के धार्मिक अगुओं से बिलकुल अलग थे। बाइबल विद्यार्थी इस बात पर अटल थे कि वे किसी परंपरा या इंसान के विचारों से नहीं बल्कि बाइबल के आधार पर ही फैसला करेंगे। जब उन्हें शास्त्रवचनों के आधार पर अपने सवालों के जवाब मिलते, तो वे उन्हें लिखकर रख देते थे। इस तरह उन्होंने बाइबल की कई बुनियादी शिक्षाएँ अच्छी तरह समझ ली थीं।

10. चार्ल्स टेज़ रस्सल ने बाइबल की समझ देनेवाली कौन-सी किताब लिखी?

10 इन बाइबल विद्यार्थियों में सबसे खास थे, चार्ल्स टेज़ रस्सल। उन्होंने बाइबल को समझाने के लिए स्टडीज़ इन द स्क्रिपचर्स नामक किताब लिखी जिसके छः खंड थे। भाई रस्सल इस किताब का 7वाँ खंड भी लिखना चाहते थे और उसमें यहेजकेल और प्रकाशितवाक्य की किताबों को समझाना चाहते थे। उन्होंने कहा, “जब मुझे इन किताबों की समझ मिलेगी तब मैं सातवाँ खंड लिखूँगा।” मगर उन्होंने आगे यह भी कहा: “लेकिन अगर प्रभु इसकी समझ किसी और को देंगे तो फिर वह व्यक्‍ति लिख सकता है।”

11. परमेश्‍वर के मकसद की समझ पाने का, समय के साथ क्या ताल्लुक है?

11 सी. टी. रस्सल के कहे गए वो शब्द एक खास बात ज़ाहिर करते हैं कि बाइबल की कुछ बातों की समझ पाने के लिए सही समय का इंतज़ार करना बहुत ज़रूरी है। जिस तरह वह मुसाफिर सूरज को समय से पहले उदय होने के लिए मजबूर नहीं कर सकता था, उसी तरह भाई रस्सल जानते थे कि प्रकाशितवाक्य किताब की समझ हासिल करने के लिए वे ज्ञान की रौशनी पर ज़बरदस्ती नहीं कर सकते थे।

प्रकाश चमका—मगर परमेश्‍वर के नियत समय पर

12. (क) बाइबल की भविष्यवाणियाँ कब सबसे अच्छी तरह समझ में आती हैं? (ख) कौन-सा उदाहरण दिखाता है कि बाइबल की भविष्यवाणियों को हम परमेश्‍वर के नियत समय पर ही समझ सकते हैं? (फुटनोट देखिए।)

12 प्रेरितों ने, मसीहा के बारे में की गई कई भविष्यवाणियों को उनके पूरा होने के बाद यानी, यीशु की मौत और पुनरुत्थान के बाद समझा था। उसी तरह आज मसीही भी बाइबल की भविष्यवाणियों को एकदम अच्छी तरह तभी समझ पाते हैं, जब वे पूरी होती हैं। (लूका 24:15, 27; प्रेरितों 1:15-21; 4:26, 27) अब प्रकाशितवाक्य तो भविष्यवाणियों की किताब है, इसलिए इसमें शक नहीं कि हम उसमें लिखी गई भविष्यवाणियों को तभी अच्छी तरह से समझ पाएँगे, जब वे पूरी हो जाएँगी। उदाहरण के लिए, सी. टी. रस्सल प्रकाशितवाक्य 17:9-11 में बताए गए किरमिजी रंग के पशु के बारे में ठीक से समझ ही नहीं पाते क्योंकि उस पशु का मतलब राष्ट्र संघ और संयुक्‍त राष्ट्र संघ नाम के संगठन हैं, और ये संगठन रस्सल के मरने के बाद ही बने थे। *

13. जब बाइबल के किसी खास विषय पर समझ की रौशनी पड़ती है तब अकसर क्या होता है?

13 जब पहली सदी के मसीहियों ने जाना कि अन्यजाति के लोग भी मसीह के चेले बन सकते हैं, तब यह सवाल उठ खड़ा हुआ कि क्या अन्यजातियों को खतना करवाना ज़रूरी है? इसलिए प्रेरितों और प्राचीनों को खतना के मामले में एक बार फिर अच्छी तरह जाँच-परख करने की ज़रूरत पड़ी। आज भी ऐसा ही होता है। अकसर जब बाइबल के किसी एक विषय पर नई रौशनी मिलती है, तब परमेश्‍वर के अभिषिक्‍त मसीहियों को यानी “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को उससे संबंधित दूसरे विषयों पर भी काफी जाँच-परख करनी पड़ती है। हाल में हुए एक ऐसे ही उदाहरण पर गौर कीजिए।—मत्ती 24:45.

14-16. लाक्षणिक मंदिर के बारे में हमने जो समझा, वह किस तरह यहेजकेल अध्याय 40 से 48 के बारे में हमारी समझ को बढ़ाती है?

14 सन्‌ 1971 में यहेजकेल की भविष्यवाणियों को समझाने के लिए एक किताब छापी गई थी जिसका नाम था, “सब जातियाँ जान जाएँगी कि मैं यहोवा हूँ”—कैसे? (अँग्रेज़ी) इसके एक अध्याय में, यहेजकेल द्वारा देखे गए मंदिर के दर्शन के बारे में थोड़ी-सी चर्चा की गई थी। (यहेजकेल, अध्याय 40-48) उसमें इस बात पर ज़्यादा ध्यान दिया गया था कि मंदिर के दर्शन की पूर्ति नई दुनिया में कैसे होगी।—2 पतरस 3:13.

15 लेकिन दिसंबर 1, 1972 की द वॉचटावर में दो लेख प्रकाशित किए गए थे जिनमें प्रेरित पौलुस द्वारा इब्रानियों अध्याय 10 में बताए गए महान लाक्षणिक मंदिर पर चर्चा की गई थी। इससे यहेजकेल के दर्शन के बारे में हमारी समझ बढ़ी। उन लेखों में समझाया गया था कि महान लाक्षणिक मंदिर का पवित्र स्थान और भीतरी आँगन, पृथ्वी पर सच्चे मसीहियों के अभिषिक्‍त होने की स्थिति को दर्शाता है। सालों बाद जब यहेजकेल अध्याय 40 से 48 पर फिर से गौर किया गया, तो पता चला कि यहेजकेल, इब्रानियों 10 में बताए गए लाक्षणिक मंदिर के बारे में बात कर रहा था जो आज काम कर रहा है। इसलिए कहा जा सकता है कि यहेजकेल के दर्शन का मंदिर भी आज काम कर रहा है। कैसे?

16 यहेजकेल के दर्शन में, याजकों को मंदिर के आँगनों में गैर-याजकीय कुलों की सेवा में करते देखा गया। इसमें शक नहीं कि ये याजक “राज-पदधारी” यानी यहोवा के अभिषिक्‍त सेवकों को सूचित करते हैं। (1 पतरस 2:9) तो हम कह सकते हैं कि यहेजकेल के दर्शन की पूर्ति भी आज हमारे दिनों में हो रही है क्योंकि आज कुछ अभिषिक्‍त मसीही बाहरी आँगन यानी पृथ्वी पर सेवा कर रहे हैं। लेकिन ये अभिषिक्‍त जन, मसीह के पूरे हज़ार साल के राज्य के दौरान पृथ्वी पर ही सेवा नहीं करते रहेंगे। (प्रकाशितवाक्य 20:4) क्योंकि जिन अभिषिक्‍त मसीहियों का पुनरुत्थान, हज़ार साल का राज्य शुरू होने से पहले ही हो जाता है, वे पूरे हज़ार साल के दौरान लाक्षणिक मंदिर के अति पवित्र स्थान यानी “स्वर्ग ही में” सेवा करेंगे। (इब्रानियों 9:24) इसके बारे में मार्च 1, 1999 की पत्रिका में और अच्छी तरह समझाया गया था। तो हम देख सकते हैं कि 20वीं सदी का अंत होते-होते यहेजकेल की भविष्यवाणी पर आध्यात्मिक प्रकाश चमकाया गया।

अपने नज़रिए में फेरबदल करने के लिए तैयार रहिए

17. सच्चाई का ज्ञान पाने के बाद आपने अपने विचारों में कौन-से फेरबदल किए और इससे आपको क्या फायदा हुआ?

17 सच्चाई का ज्ञान चाहनेवालों को अपनी “हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी” बनने के लिए तैयार रहना चाहिए। (2 कुरिन्थियों 10:5) मगर ऐसा करना हमेशा आसान नहीं होता, खासकर तब, जब ऐसे किसी विचार को बदलने की बात आती है जो हमारे दिलो-दिमाग में घर कर गया हो। उदाहरण के लिए, परमेश्‍वर के बारे में सच्चाई सीखने से पहले आप शायद अपने परिवारवालों के साथ कुछ धार्मिक त्यौहारों का मज़ा लेते रहे हों। मगर बाइबल से अध्ययन करने के बाद आपने समझा कि ये त्यौहार तो दरअसल झूठे धर्मों से निकले हैं। फिर भी, शुरू-शुरू में आपका मन सीखी हुई बातों पर अमल करने के लिए तैयार नहीं हुआ होगा। लेकिन जब आपके दिल में परमेश्‍वर के लिए प्यार बढ़ता गया, तो आपका लगाव अपने धर्म से कम होता गया और आपने परमेश्‍वर को नाखुश करनेवाले त्यौहारों को मनाना छोड़ दिया। क्या परमेश्‍वर ने आपके इस फैसले पर आशीष नहीं दी?—इब्रानियों 11:25 से तुलना कीजिए।

18. बाइबल के विषय पर जब हमारी समझ बढ़ती है तो हमारा रवैया कैसा होना चाहिए?

18 परमेश्‍वर के मार्ग पर चलना हमेशा फायदेमंद होता है। (यशायाह 48:17, 18) इसलिए जब बाइबल के किसी विषय पर हमारी समझ बढ़ती है तो हमें उससे खुश होना चाहिए क्योंकि हम सच्चाई में आगे बढ़ रहे होते हैं! इस तरह जब हम ज्ञान के प्रकाश में बढ़ते रहते हैं, तो साबित होता है कि हम सही मार्ग पर चल रहे हैं। “धर्मियों की चाल” तो हमेशा “उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक अधिक बढ़ता रहता है।” (नीतिवचन 4:18) यह सच है कि परमेश्‍वर के मकसद के बारे में अभी भी कुछ ऐसी बातें हैं, जो हमारे लिए ‘धुंधली सी’ हैं। लेकिन जब परमेश्‍वर का सही समय आएगा तब वे बातें भी हमें साफ नज़र आएँगी। लेकिन इसके लिए हमारी “चाल” हमेशा सही होनी चाहिए। इस बीच, यहोवा ने हमें जिन सच्चाइयों का प्रकाश दिया है, आइए उसके लिए हम खुश हों। और जो बातें हमारे लिए अभी तक धुंधली-सी हैं, उन पर यहोवा की रौशनी पाने का इंतज़ार करें।

19. हम सच्चाई की कदर करते हैं, यह दिखाने का एक तरीका कौन-सा है?

19 हम किस तरह दिखा सकते हैं कि हम सच्चाई की रौशनी की कदर करते हैं? एक तरीका है कि हम नियमित रूप से परमेश्‍वर के वचन को पढ़ें, हो सके तो हर रोज़। क्या आपने नियमित रूप से बाइबल पढ़ने का कार्यक्रम बनाया है और क्या आप उसके मुताबिक पढ़ते हैं? आप प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! पत्रिका पढ़कर भी भरपूर मात्रा में पौष्टिक आध्यात्मिक खुराक ले सकते हैं। साथ ही किताबों, ब्रोशरों और दूसरे साहित्यों को भी पढ़िये जो हमारे फायदे के लिए बनाए गए हैं। और क्या आप इयर बुक ऑफ जेहोवाज़ विट्‌नेसिस किताब भी पढ़ते हैं जिसमें राज्य-प्रचार काम के बारे में हिम्मत बढ़ानेवाली रिपोर्ट दी जाती है?

20. मसीही सभाओं में हाज़िर होने और यहोवा से मिलनेवाले प्रकाश और सच्चाई के बीच क्या ताल्लुक है?

20 जी हाँ, भजन 43:3 में की गई प्रार्थना का जवाब यहोवा ने बड़े ही अद्‌भुत तरीके से दिया है। उस आयत के अंत में यह लिखा है: “[तेरा प्रकाश और तेरी सच्चाई] ही मुझ को तेरे पवित्र पर्वत पर और तेरे निवास स्थान में पहुंचाएं।” क्या आप भी उन लाखों-हज़ारों में एक होना चाहते हैं, जो आज यहोवा की उपासना कर रहे हैं? आज यहोवा खासकर मसीही सभाओं के ज़रिए हमें शिक्षा देकर आध्यात्मिक प्रकाश और सच्चाई देता है। इन सभाओं के लिए हम अपनी कदरदानी किस तरह बढ़ा सकते हैं? यह जानने के लिए आइए हम दूसरे लेख पर ध्यान दें।

[फुटनोट]

^ सी. टी. रस्सल की मौत के बाद स्टडीज़ इन द स्क्रिपचर्स का सातवाँ खंड छापने की तैयारी हो रही थी जिसमें यहेजकेल और प्रकाशितवाक्य किताबों को समझाया गया था। इन किताबों में रस्सल के विचार भी छापे गए थे। लेकिन तब तक उन भविष्यवाणियों को अच्छी तरह समझने का समय नहीं आया था इसलिए स्टडीज़ इन द स्क्रिपचर्स में दी गई जानकारी इतनी स्पष्ट नहीं थी। बहरहाल, समय के गुज़रते, यहोवा के अनुग्रह से और संसार में होनेवाली घटनाओं को देखकर, मसीहियों ने भविष्यवाणियों की उन किताबों के बारे में और भी अच्छी और सही समझ हासिल की।

क्या आप जवाब दे सकते हैं?

• यहोवा अपने मकसद एक-एक करके क्यों प्रकट करता है?

• यरूशलेम में प्रेरित और दूसरे प्राचीनों ने खतना के मसले को कैसे निपटाया?

• शुरू में बाइबल विद्यार्थियों ने बाइबल का अध्ययन करने का कौन-सा तरीका अपनाया और वह अनोखा क्यों था?

• बताइए कि परमेश्‍वर के नियत समय में उसकी सच्चाई का प्रकाश कैसे बढ़ा?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 12 पर तसवीर]

चार्ल्स टेज़ रस्सल जानते थे कि प्रकाशितवाक्य किताब पर ज़्यादा रौशनी परमेश्‍वर के नियत समय पर ही मिलेगी