ईश्वरीय शिक्षाओं को सीने से लगाए रखिए
ईश्वरीय शिक्षाओं को सीने से लगाए रखिए
“तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।”—नीतिवचन 3:5, 6.
1. पहले दिनों के मुकाबले में आज इंसान के पास कितनी जानकारी है?
हर दिन दुनिया भर में करीब 9000 अखबार छपते हैं। अकेले अमरीका में ही हर साल करीब 2,00,000 नयी किताबें निकलती हैं। इतना ही नहीं, यह अनुमान लगाया गया है कि इंटरनॆट में, सन् 1998 तक करीब 27.5 करोड़ वेब पेज के बराबर जानकारी पायी जा सकती थी और हर महीने इसमें दो करोड़ पेज के बराबर और ज़्यादा जानकारी भर दी जाती है। इतनी बेशुमार जानकारी से मिलनेवाले फायदों से इनकार नहीं किया जा सकता, मगर यही जानकारी खतरनाक भी साबित हुई है!
2. आज की इस बेशुमार जानकारी ने क्या-क्या खतरे पैदा किए हैं?
2 कुछ लोगों पर इंटरनॆट की इतनी दीवानगी छा गई है कि वे सारे ज़रूरी कामों को छोड़कर दिन-रात बस इसी में लगे रहते हैं। दूसरी तरफ कुछ लोग बड़े-बड़े विषयों के बारे में थोड़ा-सा क्या जान लेते हैं कि बस खुद को पंडित मानने लगते हैं। कुछ तो इसी जानकारी की बिनाह पर अपनी ज़िंदगी में बड़े-बड़े फैसले कर डालते हैं और कई बार इससे ना सिर्फ उनका नुकसान हुआ है बल्कि दूसरों को भी तकलीफ पहुँची है। यह जानने का कोई भरोसेमंद तरीका नहीं है कि ये सारी जानकारी सही है या गलत। इसलिए यह खतरा हमेशा मंडराता रहता है कि कब, कहाँ, ना जाने कौन ऐसा कुछ पढ़ ले जिसके लिए उसे ज़िंदगी भर पछताना पड़े।
3. बाइबल दुनियावी जानकारी के बारे में क्या चेतावनियाँ देती है?
3 बेशक, पैदा होने के वक्त से ही इंसान के अंदर हर बात जानने की ख्वाहिश होती है। मगर इंसान बहुत पहले यह भी जान गया था कि अगर वह बेकार, फालतू या खतरनाक बातें सीखने में अपना वक्त बरबाद करेगा तो उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। इस्राएल के राजा सुलैमान ने यही कहा था: “चौकस रह। बहुत पुस्तकों की रचना का अन्त नहीं है तथा पुस्तकों में अत्यधिक मन लगाना शरीर को थकाता है।” (सभोपदेशक 12:12, NHT) कई सदियों बाद, प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस को भी यही बताया था: “इस थाती की रखवाली कर और जिस ज्ञान को ज्ञान कहना ही भूल है, उसके अशुद्ध बकवाद और विरोध की बातों से परे रह। कितने इस ज्ञान का अंगीकार करके विश्वास से भटक गए हैं।” (1 तीमुथियुस 6:20, 21) साफ ज़ाहिर है कि आज मसीहियों को भी चौकस रहना चाहिए ताकि वे नुकसान पहुँचानेवाली खतरनाक जानकारी से बचे रहें।
4. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमारा भरोसा यहोवा और उसके वचन पर है?
4 इतना ही नहीं, यहोवा के हर सेवक को नीतिवचन 3:5, 6 में दी गयी यह सलाह भी ज़रूर माननी चाहिए, जो कहता है: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।” यहोवा पर भरोसा रखने का मतलब है कि हम अपने और दूसरे इंसानों के ऐसे विचारों को मन में न आने दें, जो बाइबल की शिक्षाओं से टकराते हैं। नुकसानदेह और गलत सोच-विचार से दूर रहने के लिए और सही-गलत में फर्क जानने के लिए हमारी ज्ञानेन्द्रियों का पक्का होना बेहद ज़रूरी है। तभी हम आध्यात्मिक रूप से सुरक्षित रह सकेंगे। (इब्रानियों 5:14) लेकिन, पहले आइए यह जानें कि नुकसानदेह जानकारी कहाँ-कहाँ से आ सकती है।
शैतान के शिकंजे में फँसी दुनिया
5. खतरनाक विचारों और जानकारी का अड्डा कहाँ है और इसके पीछे कौन है?
5 दरअसल, परमेश्वर से दूर जा चुकी पूरी दुनिया ही खतरनाक विचारों और जानकारी का अड्डा है। (1 कुरिन्थियों 3:19) यीशु मसीह ने अपने चेलों के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की थी: “मैं यह बिनती नहीं करता, कि तू उन्हें जगत से उठा ले, परन्तु यह कि तू उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख।” (यूहन्ना 17:15) यीशु का इस तरह प्रार्थना करना कि “उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख” दिखाता है कि उसे मालूम था कि इस दुनिया में शैतान की मरज़ी चलती है। जी हाँ, यह मान लेना सही नहीं कि हम यहोवा के सेवक बन गए हैं तो इस दुनिया के बुरे विचारों का हम पर कोई असर नहीं होगा और हम हर आफत से बचे रहेंगे। ध्यान दीजिए कि प्रेरित यूहन्ना ने क्या कहा था: “हम जानते हैं, कि हम परमेश्वर से हैं, और सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (1 यूहन्ना 5:19) यह समझना मुश्किल नहीं है कि आज शैतान और उसके दुष्ट दूत दुनिया में चारों तरफ खतरनाक और भ्रष्ट विचारों का जाल फैला रहे हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि उनकी यह दुनिया अब अपनी अंतिम साँसें गिन रही है।
6. मनोरंजन की दुनिया हमारे ज़मीर को कैसे सुन्न कर सकती है?
6 इतना ही नहीं, शैतान की कोशिश रहती है कि इन खतरनाक विचारों को ऐसे पेश करे कि हमें उनमें कोई खतरा नज़र न आए। (2 कुरिन्थियों 11:14) मनोरंजन की दुनिया के टीवी कार्यक्रमों, फिल्मों, संगीत और पत्रिकाओं को लीजिए। ज़्यादातर लोगों का मानना है कि इनमें दिन-ब-दिन गिरावट आती जा रही है। इनमें दिखाया जाता है कि अनैतिकता, हिंसा और नशाखोरी जैसे कामों में कोई बुराई नहीं है। जब इंसान पहली बार ऐसी चीज़ें देखता है तो उसे घृणा आती है और बहुत बुरा लगता है। लेकिन कुछ समय बाद उसे ऐसी बातों में कोई बुराई नज़र नहीं आती। खबरदार! गिरा हुआ और घृणित मनोरंजन आपके ज़मीर को भी सुन्न और सख्त बना सकता है। ऐसे मनोरंजन से हमें नफरत करनी चाहिए।—भजन 119:37.
7. किस तरह के इंसानी विचार, बाइबल पर हमारे विश्वास को कमज़ोर कर सकते हैं?
7 दूसरी तरफ, बाइबल को परमेश्वर का वचन न माननेवाले कुछ वैज्ञानिक और विद्वान, ऐसे विचार फैला रहे हैं जो हमारे लिए घातक साबित हो सकते हैं। (याकूब 3:15 से तुलना कीजिए।) ये लोग बड़ी-बड़ी पत्रिकाओं और मशहूर किताबों का सहारा लेकर सारी दुनिया को अपने विचारों से भर देना चाहते हैं। ऐसा करके वे बाइबल के बारे में शक पैदा कर रहे हैं। इनमें से कुछ तत्वज्ञानी तो अपनी अटकलों और तत्वज्ञान से, परमेश्वर के वचन को झूठा साबित करने में फख्र महसूस करते हैं। प्रेरित पौलुस ने जो चेतावनी दी उससे पता लगता है कि ऐसे लोग पहली सदी में भी मौजूद थे। उसने कहा था: “चौकस रहो कि कोई तुम्हें उस तत्व-ज्ञान और व्यर्थ धोखे के द्वारा अहेर न कर ले, जो मनुष्यों के परम्पराई मत और संसार की आदि शिक्षा के अनुसार है, पर मसीह के अनुसार नहीं।”—कुलुस्सियों 2:8.
सच्चाई के दुश्मन
8, 9. आज धर्मत्याग कैसे-कैसे माध्यमों के ज़रिए फैल रहा है?
8 ऐसे लोग भी हमारे विश्वास के लिए खतरा हैं जो सच्चाई को छोड़कर धर्मत्यागी बन चुके हैं। प्रेरित पौलुस ने भविष्यवाणी की थी कि मसीही होने का दावा करनेवालों में से ही धर्मत्यागी निकलेंगे। (प्रेरितों 20:29, 30; 2 थिस्सलुनीकियों 2:3) प्रेरितों की मौत के बाद ऐसा ही हुआ। कलीसिया के अंदर ही धर्मत्याग फूला-फला और आगे चलकर इसी से ईसाईजगत का जन्म हुआ। आज परमेश्वर की कलीसिया में ऐसा धर्मत्याग तो नहीं हो रहा, लेकिन हाँ, कुछ लोग हैं जो पहले हमारे भाई थे मगर अब वे कलीसिया को छोड़कर धर्मत्यागी बन गए हैं। ये लोग यहोवा के साक्षियों के बारे में झूठी और गलत बातें फैलाकर उन्हें बदनाम करने पर तुले हुए हैं। इनमें से कुछ ऐसे दलों में शामिल हो गए हैं जो साक्षियों का विरोध करने के लिए ही बने हैं। इनके ऐसे काम दिखा रहे हैं कि वे शैतान के साथी हैं, जो सबसे पहला धर्मत्यागी था।
9 कुछ धर्मत्यागी, यहोवा के साक्षियों के बारे में अफवाहें फैलाने के लिए इंटरनॆट जैसे माध्यमों का इस्तेमाल कर रहे हैं, ताकि वे ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों तक पहुँच सकें। ऐसी झूठी जानकारी का उन लोगों पर बहुत बुरा असर होता है जो सच्चे दिल से यह जानना चाहते हैं कि यहोवा के साक्षियों के विश्वास क्या हैं। और-तो-और इंटरनॆट इस्तेमाल करनेवाले कुछ साक्षी भी अनजाने ही इस झूठी जानकारी के फँदे में फँस जाते हैं। इसके अलावा, ये धर्मत्यागी टीवी और रेडियो कार्यक्रमों में आए दिन हिस्सा लेते रहते हैं। यह सब जानते हुए हमें क्या करना चाहिए?
10. धर्मत्यागियों के विचार जब चारों तरफ फैल रहे हैं, तो हमारे लिए क्या करना अक्लमंदी होगी?
10 पहली सदी में प्रेरित यूहन्ना ने मसीहियों को यह हिदायत दी थी कि वे धर्मत्यागियों को अपने घर के अंदर आने ही न दें। उसने लिखा: “यदि कोई तुम्हारे पास आए, और यही शिक्षा न दे, उसे न तो घर में आने दो, और न नमस्कार करो। क्योंकि जो कोई ऐसे जन को नमस्कार करता है, वह उसके बुरे कामों में साझी होता है।” (2 यूहन्ना 10, 11) सच्चाई के ऐसे विरोधियों से कोसों दूर रहने से ही हम उनके भ्रष्ट सोच-विचार से बचे रहेंगे। इंटरनॆट, टीवी, रेडियो या पत्रिकाओं के ज़रिए ऐसे धर्मत्यागियों के विचारों को जानना हमारे लिए उतना ही खतरनाक होगा जितना कि किसी धर्मत्यागी को अपने घर में बुलाना। भूलकर भी ऐसा मत सोचिए कि उनके बारे में थोड़ा-बहुत जानने में कोई हर्ज़ नहीं, ऐसा करना मुसीबत को दावत देना होगा।—नीतिवचन 22:3.
कलीसिया के अंदर
11, 12. (क) पहली सदी की मसीही कलीसिया में गलत सोच-विचार किसके ज़रिए आ रहे थे? (ख) कैसे कुछ मसीही, ईश्वरीय शिक्षाओं को छोड़कर व्यर्थ बातों में पड़ गए थे?
11 कलीसिया में भी गलत सोच-विचार पनप सकते हैं। यह सच है कि परमेश्वर को समर्पित हमारे भाई-बहन दूसरों को गलत बातें सिखाने का इरादा तो नहीं रखते, लेकिन कुछ लोगों को बिना सोचे-समझे बहुत ज़्यादा बकबक करने की आदत पड़ सकती है। (नीतिवचन 12:18) असिद्ध होने की वज़ह से हम सभी अपनी बातों से कभी-न-कभी तो दूसरों को तकलीफ ज़रूर पहुँचाते हैं। (नीतिवचन 10:19; याकूब 3:8) प्रेरित पौलुस के ज़माने में भी, कलीसिया में कुछ लोग ऐसे थे जो अपनी ज़ुबान पर लगाम नहीं लगा सके और बेकार के वाद-विवाद में एक-दूसरे से उलझ गए। (1 तीमुथियुस 2:8) कुछ लोग ऐसे भी थे जो अपने आगे दूसरों की चलने नहीं देते थे, यहाँ तक कि उन्होंने पौलुस पर भी उंगली उठायी, मानो कह रहे हों कि हमें बतानेवाला वह कौन होता है, हम अपनी मरज़ी के मालिक हैं। (2 कुरिन्थियों 10:10-12) ऐसे लोगों की वज़ह से कलीसिया में बेवज़ह फूट पड़ गयी।
12 कभी-कभी इन भाइयों में मामूली या “व्यर्थ” बातों को लेकर इस हद तक ठन जाती थी कि इस “रगड़े झगड़े” में वे मरने-मारने पर उतारू हो जाते थे। भला ऐसे में कलीसिया में शांति कैसे रहती। (1 तीमुथियुस 6:5; गलतियों 5:15) ऐसे बकवादियों के बारे में पौलुस ने लिखा: “यदि कोई और ही प्रकार का उपदेश देता है; और खरी बातों को, अर्थात् हमारे प्रभु यीशु मसीह की बातों को और उस उपदेश को नहीं मानता, जो भक्ति के अनुसार है। तो वह अभिमानी हो गया, और कुछ नहीं जानता, बरन उसे विवाद और शब्दों पर तर्क करने का रोग है, जिन से डाह, और झगड़े, और निन्दा की बातें, और बुरे बुरे सन्देह . . . उत्पन्न होते हैं।”—1 तीमुथियुस 6:3-5.
13. पहली सदी के ज़्यादातर मसीही, वफादारी से किस काम में लगे रहे?
13 मगर शुक्र है कि प्रेरितों के ज़माने में कलीसिया के सभी भाई ऐसे नहीं थे। इसके बजाय ज़्यादातर मसीही, वफादारी से अपना काम करने में लगे हुए थे। उनके लिए सबसे ज़रूरी काम था लोगों तक परमेश्वर के राज्य की खुशखबरी पहुँचाना। वे शब्दों को लेकर बहस में नहीं पड़े, बल्कि अपना वक्त “अनाथों और विधवाओं के क्लेश में” उनकी मदद करने में लगाया और खुद को “संसार से निष्कलंक” रखा। (याकूब 1:27) अपनी आध्यात्मिकता की रक्षा करने के लिए, उन्होंने मसीही कलीसिया में भी खुद को “बुरी संगति” से बचाए रखा।—1 कुरिन्थियों 15:33; 2 तीमुथियुस 2:20, 21.
14. अगर हम ध्यान न रखें, तो कैसे साफ मन से छेड़ी गयी बातचीत भी बिगड़कर ऐसी बहस बन सकती है जिससे सिर्फ नुकसान ही होगा?
14 आज यहोवा के साक्षियों की कलीसियाओं में वह सब नहीं होता जो पैराग्राफ 11 में बताया गया है। फिर भी, हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि आज भी ऐसे हालात पैदा हो सकते हैं। बाइबल में लिखी बातों पर चर्चा करने या नयी दुनिया कैसी होगी यह कल्पना करने में कोई बुराई नहीं है। इसके अलावा, कपड़ों और बनाव-श्रृंगार या मनोरंजन जैसे निजी मामलों पर अपनी-अपनी राय ज़ाहिर करने में भी कोई बुराई नहीं है। लेकिन, समस्या तब पैदा होती है जब हम अपने विचार दूसरों पर थोपने की कोशिश करते हैं या उन लोगों से गुस्सा हो जाते हैं जिनके विचार हमसे मेल नहीं खाते। इसका नतीजा यही होगा कि छोटी-मोटी बातों को लेकर कलीसिया में फूट पड़ जाएगी। जी हाँ, किसी विषय पर साफ मन से छेड़ी गयी बातचीत, बिगड़कर ऐसी बहस बन सकती है जिससे सिर्फ नुकसान ही होगा!
हमें सौंपी गयी अमानत की रखवाली करना
15. किस तरह ‘दुष्टात्माओं की शिक्षाएँ’ हमारे विश्वास के लिए खतरा बन सकती हैं और इस मामले में बाइबल क्या सलाह देती है?
15 प्रेरित पौलुस ने यह चेतावनी दी थी: “आत्मा स्पष्टता से कहता है, कि आनेवाले समयों में कितने लोग भरमानेवाली आत्माओं, और दुष्टात्माओं की शिक्षाओं पर मन लगाकर विश्वास से बहक जाएंगे।” (1 तीमुथियुस 4:1) जी हाँ, ऐसी हानिकारक शिक्षाएँ हमारे विश्वास के लिए सचमुच बहुत बड़ा खतरा हैं। इसीलिए, पौलुस ने अपने प्यारे दोस्त तीमुथियुस से यह गुज़ारिश की: “हे तीमुथियुस इस थाती की रखवाली कर और जिस ज्ञान को ज्ञान कहना ही भूल है, उसके अशुद्ध बकवाद और विरोध की बातों से परे रह। कितने इस ज्ञान का अंगीकार करके विश्वास से भटक गए हैं।”—1 तीमुथियुस 6:20, 21.
16, 17. परमेश्वर ने हमें कौन-सी अमानत सौंपी है और हमें इसकी रखवाली कैसे करनी चाहिए?
16 पौलुस की इस नसीहत से हम कैसे लाभ उठा सकते हैं? जैसे तीमुथियुस को एक थाती या अमानत दी गयी थी वैसे ही हमें भी एक अमानत सौंपी गयी है। अमानत किसी ऐसी चीज़ को कहा जाता है जो हमारी अपनी नहीं होती बल्कि कोई दूसरा हमें सौंपता है और उम्मीद करता है कि हम उसे सँभालकर रखें और उसकी हिफाज़त करें। तीमुथियुस को कौन-सी अमानत सौंपी गयी थी? पौलुस जवाब देता है: “जो खरी बातें तू ने मुझ से सुनी हैं उन को उस विश्वास और प्रेम के साथ जो मसीह यीशु में है, अपना आदर्श बनाकर रख। और पवित्र आत्मा के द्वारा जो हम में बसा हुआ है, इस अच्छी थाती [या, अमानत] की रखवाली कर।” (2 तीमुथियुस 1:13, 14) तो फिर, तीमुथियुस को सौंपी गयी अमानत में वे “खरी बातें” और “उपदेश” शामिल थे, “जो [परमेश्वर की] भक्ति के अनुसार” हैं। (1 तीमुथियुस 6:3) उसी तरह आज मसीहियों को परमेश्वर से अमानत मिली है। जी हाँ, हमारे मसीही विश्वास और बाइबल के खरे उपदेशों की अमानत, जिसकी हम दिलोजान से रखवाली करते हैं।
17 इस अमानत की रखवाली करने के लिए ज़रूरी है कि हम बाइबल का गहरा अध्ययन करने की आदत डालें और नित्य प्रार्थना में लगे रहें, साथ ही “सब के साथ भलाई करें; विशेष करके विश्वासी भाइयों के साथ।” (गलतियों 6:10; रोमियों 12:11-17) साथ ही पौलुस की यह सलाह भी मानें: “धर्म, भक्ति, विश्वास, प्रेम, धीरज और नम्रता का पीछा कर। विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़; और उस अनन्त जीवन को धर ले, जिस के लिये तू बुलाया गया, और बहुत गवाहों के साम्हने अच्छा अंगीकार किया था।” (1 तीमुथियुस 6:11, 12) पौलुस ने कहा, “अच्छी कुश्ती लड़” और “धर ले,” इन ज़बरदस्त शब्दों से पता चलता है कि हमें अपनी आध्यात्मिकता को हर बुरे प्रभाव से बचाए रखने के लिए पूरा ज़ोर लगाकर और लगातार लड़ते रहना है।
समझ की ज़रूरत
18. दुनियावी जानकारी के मामले में, मसीही किस तरह समझदारी से काम लेते हैं?
18 विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़ने के लिए समझ की ज़रूरत है। (नीतिवचन 2:11; फिलिप्पियों 1:9) जैसे कि सारी दुनियावी जानकारी को गलत मान लेना भी समझदारी नहीं है। (फिलिप्पियों 4:5; याकूब 3:17) ऐसा नहीं कि इंसान का सारा ज्ञान ही परमेश्वर के वचन बाइबल के खिलाफ है। मिसाल के तौर पर, यीशु ने कहा कि बीमारों को एक काबिल वैद्य की ज़रूरत होती है, जिसने दुनियावी शिक्षा पाकर ही यह काबिलीयत हासिल की है। (लूका 5:31) यीशु के ज़माने में लोगों का जिस तरह इलाज किया जाता था, वह आज के मुकाबले बहुत ही पुराने किस्म का था। फिर भी, यीशु ने माना कि वैद्य के इलाज से थोड़ा-बहुत फायदा तो मिल ही सकता है। इसलिए, मसीही भी दुनियावी ज्ञान के मामले में समझदारी से काम लेते हैं, और वे ऐसी किसी भी जानकारी से दूर रहते हैं जिससे उनकी आध्यात्मिकता पर बुरा असर पड़ सकता है।
19, 20. (क) जिन लोगों को बिना सोचे-समझे बोलने की आदत पड़ गयी है, उनकी मदद करते वक्त प्राचीन कैसे समझदारी से काम लेते हैं? (ख) बार-बार सलाह दिए जाने के बाद भी झूठी शिक्षाएँ फैलाने में लगे रहनेवालों के साथ कलीसिया को क्या करना चाहिए?
19 कलीसिया के प्राचीनों को भी समझदारी से काम लेने की ज़रूरत है, खासकर जब उन्हें ऐसे लोगों की मदद करने के लिए कहा जाता है जिन्हें बिना सोचे-समझे बोलने की आदत पड़ जाती है। (2 तीमुथियुस 2:7) हो सकता है कि अनजाने में कलीसिया के भाई-बहन छोटी बातों पर बहस करने में उलझ जाएँ या अपनी अटकलों को लेकर वाद-विवाद करने लगें। ऐसे में कलीसिया में एकता बनाए रखने की खातिर, प्राचीनों को जल्द-से-जल्द इन समस्याओं को सुलझाना चाहिए। लेकिन, ऐसा करते वक्त वे अपने भाइयों को शक की निगाह से नहीं देखेंगे, और जल्दबाज़ी में उन्हें धर्मत्यागी का नाम नहीं दे देंगे।
20 पौलुस ने बताया कि जब प्राचीन, ऐसे भाइयों की मदद करें तो उनमें कैसी भावना होनी चाहिए। उसने कहा: “हे भाइयो, यदि कोई मनुष्य किसी अपराध में पकड़ा भी जाए, तो तुम जो आत्मिक हो, नम्रता के साथ ऐसे को संभालो।” (गलतियों 6:1) और यहूदा ने भी खास तौर पर ऐसे मसीहियों की मदद करने के बारे में लिखा, जिन्हें बाइबल की शिक्षाओं के बारे में शंकाएँ हैं। उसने कहा: “उन पर जो शंका में हैं दया करो। और बहुतों को आग में से झपटकर निकालो।” (यहूदा 22, 23) लेकिन अगर कोई बार-बार सलाह दिए जाने के बाद भी झूठी शिक्षाएँ फैलाने से बाज़ नहीं आता, तो प्राचीनों को कलीसिया की रक्षा करने के लिए सख्त कार्यवाही करनी चाहिए।—1 तीमुथियुस 1:20; तीतुस 3:10, 11.
मन को प्रशंसा की बातों से भरना
21, 22. किस मामले में हमें सोच-समझकर काम करना चाहिए और किन बातों से हमें अपने दिलो-दिमाग को भरना चाहिए?
21 मसीही कलीसिया ऐसी खतरनाक बातों से दूर ही रहती है जो “सड़े-घाव” की तरह फैलती जाती हैं। (2 तीमुथियुस 2:16, 17; तीतुस 3:9) चाहे ये बातें भरमानेवाली दुनियावी “बुद्धि” के बारे में हों, धर्मत्यागियों की बातें हों या फिर कलीसिया के भाई-बहनों द्वारा बिना सोचे-समझे कही गयी बातें हों। नयी-नयी जानकारी पाना एक अच्छी आदत है, लेकिन अगर इस इच्छा को काबू में न रखा गया तो हम खतरनाक जानकारी की चपेट में आ सकते हैं। शैतान की चालों से हम अनजान तो नहीं हैं। (2 कुरिन्थियों 2:11) हमें पता है कि वह परमेश्वर की सेवा में हमारा जोश कम करने और हमारा ध्यान दूसरी बातों में लगाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहा है।
22 परमेश्वर के वफादार सेवकों के नाते, आइए हम ईश्वरीय शिक्षाओं को सीने से लगाए रखें। (1 तीमुथियुस 4:6) हम बुद्धिमानी से अपने वक्त का इस्तेमाल करें और बहुत सोच-समझकर जानकारी हासिल करें। ऐसा करने पर हम शैतान द्वारा फैलायी जा रही झूठी बातों के बहकावे में नहीं आएँगे। जी हाँ, आइए “जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरनीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, निदान, जो जो सद्गुण और प्रशंसा की बातें हैं उन्हीं पर [हम] ध्यान” लगाए रहें। अगर हम अपने दिलो-दिमाग को ऐसी ही प्रशंसा की बातों से भरते रहें, तो शांति का परमेश्वर, यहोवा हमारे साथ रहेगा।—फिलिप्पियों 4:8, 9.
हमने क्या सीखा?
• दुनियावी बुद्धि, परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते के लिए कैसे एक खतरा है?
• धर्मत्यागियों के नुकसान पहुँचानेवाले विचारों से खुद को बचाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
• कलीसिया में किस किस्म की बातचीत नहीं की जानी चाहिए?
• आज दुनियावी जानकारी के अंबार के मामले में एक मसीही कैसे समझदारी से काम लेगा?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 9 पर तसवीर]
बहुत-सी मशहूर पत्रिकाओं और किताबों में दी गयी जानकारी, बाइबल के उसूलों से मेल नहीं खाती
[पेज 10 पर तसवीर]
अपने विचार ज़ाहिर करने में कोई बुराई नहीं, मगर मसीहियों को इन्हें दूसरों पर थोपने की कोशिश नहीं करनी चाहिए