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“अपने मन की रक्षा कर”

“अपने मन की रक्षा कर”

“अपने मन की रक्षा कर”

यहोवा ने भविष्यवक्‍ता शमूएल से कहा: “यहोवा का देखना मनुष्य का सा नहीं है; मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है।” (1 शमूएल 16:7) भजनहार दाऊद ने भी मन के बारे में कहा: “मेरा मन परखने को तूने उसके बीच गहरा झाँक लिया है। तू मेरे संग रात भर रहा तूने मुझे जाँचा, और तुझे मुझ में कोई खोट न मिला। मैंने कोई बुरी योजना नहीं रची थी।”—भजन 17:3, ईज़ी-टू-रीड-वर्शन।

जी हाँ, यहोवा हमारे मन को जाँचता है ताकि यह जान सके कि हम असल में किस तरह के इंसान हैं। (नीतिवचन 17:3) इसीलिए, इस्राएल के राजा, सुलैमान ने यह सलाह दी: “सब से अधिक अपने मन की रक्षा कर; क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है।” (नीतिवचन 4:23) लेकिन हम अपने मन की रक्षा कैसे कर सकते हैं? इसका जवाब नीतिवचन अध्याय 4 में दिया गया है।

पिता की शिक्षा सुनो

नीतिवचन के चौथे अध्याय की शुरुआत में कहा गया है: “हे मेरे पुत्रो, पिता की शिक्षा सुनो, और समझ प्राप्त करने में मन लगाओ। क्योंकि मैं ने तुम को उत्तम शिक्षा दी है; मेरी शिक्षा को न छोड़ो।”नीतिवचन 4:1, 2.

यहाँ जवानों को सलाह दी गई है कि वे परमेश्‍वर के मार्ग पर चलनेवाले अपने माता-पिता और खासकर पिता की आज्ञा मानें। क्योंकि यहोवा ने ही हर पिता को यह ज़िम्मेदारी सौंपी है कि वह अपने बच्चों की परवरिश करने के साथ-साथ उनको परमेश्‍वर के मार्ग पर चलना भी सिखाए। (व्यवस्थाविवरण 6:6, 7; 1 तीमुथियुस 5:8) अगर यह मार्गदर्शन न मिले तो क्या बच्चे बड़े होकर समझदार और बुद्धिमान बन सकते हैं? नहीं। तो क्या बच्चों के लिए यह अक्लमंदी की बात नहीं होगी कि वे अपने पिता की शिक्षा को सुनें?

लेकिन जिस बच्चे का पिता ही न हो वह क्या करे? मिसाल के लिए जब जेसन सिर्फ 4 साल का था, तब वह अपने पिता को खो बैठा। * एक बार जब उससे एक प्राचीन ने पूछा कि उसे ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा किस बात का दुःख है, तो उसने फौरन जवाब दिया: “मुझे पापा की याद बहुत सताती है। कभी-कभी तो मैं बहुत निराश हो जाता हूँ।” लेकिन जेसन जैसे बच्चों को सही मार्गदर्शन देने के लिए कलीसिया के प्राचीन हमेशा तैयार रहते हैं। जिन बच्चों का कोई पिता नहीं है, उनके लिए यह सचमुच कितनी तसल्ली की बात है!—याकूब 1:27.

अपने पिता से मिली शिक्षा को याद करते हुए सुलैमान आगे कहता है: “मैं भी अपने पिता का पुत्र था, और माता का अकेला दुलारा था।” (नीतिवचन 4:3) ज़ाहिर है कि राजा को अपने बीते दिन याद करके बहुत खुशी होती थी कि उसके माता-पिता किस तरह उसे अच्छी-अच्छी बातें सिखाया करते थे। राजा सुलैमान वाकई एक आज्ञाकारी “पुत्र” था क्योंकि वह अपने पिता दाऊद की बात मानता था। इसलिए अपने पिता से उसकी बहुत गहरी दोस्ती थी। साथ ही वह अपनी माँ का “दुलारा” था। जो माता-पिता चाहते हैं कि बच्चे उनकी बात मानें, उन्हें बच्चों के साथ हमेशा दोस्ताने ढंग से व्यवहार करना चाहिए और हमेशा बातचीत करनी चाहिए।

बुद्धि और समझ प्राप्त कर

सुलैमान बताता है कि उसका पिता उसे किस तरह प्यार से समझाया करता था: “मेरा पिता मुझे यह कहकर सिखाता था, कि तेरा मन मेरे वचन पर लगा रहे; तू मेरी आज्ञाओं का पालन कर, तब जीवित रहेगा। बुद्धि को प्राप्त कर, समझ को भी प्राप्त कर; उनको भूल न जाना, न मेरी बातों को छोड़ना। बुद्धि को न छोड़, वह तेरी रक्षा करेगी; उस से प्रीति रख, वह तेरा पहरा देगी। बुद्धि श्रेष्ठ है इसलिये उसकी प्राप्ति के लिये यत्न कर; जो कुछ तू प्राप्त करे उसे प्राप्त तो कर परन्तु समझ की प्राप्ति का यत्न घटने न पाए।”नीतिवचन 4:4-7.

यहाँ बुद्धि को “श्रेष्ठ” क्यों बताया गया है? बुद्धि का मतलब है, ज्ञान और समझ को इस तरह काम में लाना कि उससे हमें लाभ हो। बुद्धि पाने के लिए ज्ञान का होना बेहद ज़रूरी है। ज्ञान का मतलब है, किसी विषय के बारे में जानकारी। यह जानकारी हम किताबें पढ़कर या अपने तजुर्बे से हासिल करते हैं। लेकिन इस जानकारी से हमें तभी लाभ होगा जब उसे अमल करने की बुद्धि हमारे पास होगी। इससे यही ज़ाहिर होता है कि हमें बाइबल और “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” से मिलनेवाली किताबों से न सिर्फ जानकारी हासिल करनी चाहिए बल्कि उस जानकारी को अमल में लाने की कोशिश भी करनी चाहिए—मत्ती 24:45.

इसके अलावा समझ हासिल करना भी ज़रूरी है। अगर हमारे पास समझ न हो तो हम किसी विषय के बारे में दी गई जानकारी को ठीक-ठीक नहीं जान पाएँगे और इस तरह हम पूरी बात को नहीं समझ पाएँगे। जी हाँ, किसी बात की पूरी तस्वीर जानने के लिए हमें समझ की ज़रूरत है।—दानिय्येल 9:22, 23.

सुलैमान बताता है कि उसके पिता ने उसे और क्या-क्या सिखाया: “[बुद्धि की] बड़ाई कर, वह तुझ को बढ़ाएगी; जब तू उस से लिपट जाए, तब वह तेरी महिमा करेगी। वह तेरे सिर पर शोभायमान भूषण बान्धेगी; और तुझे सुन्दर मुकुट देगी।” (नीतिवचन 4:8, 9) जो लोग परमेश्‍वर से बुद्धि पाते हैं, बुद्धि उनकी रक्षा करती है। बुद्धि से उनकी महिमा होती है और वे परमेश्‍वर की नज़रों में खूबसूरत बनते हैं। इसलिए आइए हम बुद्धि हासिल करने की पूरी कोशिश करें।

“शिक्षा को पकड़े रह”

अपने पिता का उपदेश दोहराते हुए सुलैमान कहता है: “हे मेरे पुत्र, मेरी बातें सुनकर ग्रहण कर, तब तू बहुत वर्ष तक जीवित रहेगा। मैं ने तुझे बुद्धि का मार्ग बताया है; और सीधाई के पथ पर चलाया है। चलने में तुझे रोक टोक न होगी, और चाहे तू दौड़े, तौभी ठोकर न खाएगा। शिक्षा [अनुशासन] को पकड़े रह, उसे छोड़ न दे; उसकी रक्षा कर, क्योंकि वही तेरा जीवन है।”नीतिवचन 4:10-13.

सुलैमान को अपने पिता से मिले अनुशासन का बहुत फायदा हुआ इसलिए वह अनुशासन की अहमियत जानता था। अगर हमें सही तरीके से अनुशासन न दिया जाए, तो क्या हम सच्चाई में तरक्की कर पाएँगे और ज़िंदगी में कामयाब होंगे? अगर हम अपनी गलतियों से सबक न सीखें या अपने गलत विचारों को न सुधारें तो हम सच्चाई में तरक्की नहीं कर पाएँगे। इसलिए जब कोई हमें अनुशासन देता है तो हमें उसे कबूल करना चाहिए। तभी हमारा चालचलन सही होगा और हम “सीधाई के पथ पर” चल पाएँगे।

अगर हम “बहुत वर्ष तक जीवित” रहना चाहते हैं, तो हमें एक और तरीके से अनुशासित रहना चाहिए। उसके बारे में यीशु मसीह ने कहा: “जो थोड़े से थोड़े में सच्चा है, वह बहुत में भी सच्चा है: और जो थोड़े से थोड़े में अधर्मी है, वह बहुत में भी अधर्मी है।” (लूका 16:10) यीशु की यह बात कितनी सच है, क्योंकि अगर हम छोटी-छोटी बातों में अनुशासन से रहना सीखेंगे, तभी हम बड़ी-बड़ी बातों में भी अनुशासित रहेंगे जिन पर हमारी ज़िंदगी निर्भर है। मिसाल के लिए, अगर हम अपनी आँख पर काबू रखें और ‘किसी भी स्त्री को बुरी नज़र से देखते न रहें’ तो हम व्यभिचार करने के फंदे से बच सकेंगे। (मत्ती 5:28) बाइबल का यह उसूल सिर्फ पुरुषों के लिए नहीं बल्कि स्त्रियों के लिए भी है। अगर हम अपने मन पर काबू रखें और “हर एक भावना को कैद” करें, तो हम कोई भी बुरी बात कहने या पाप करने से दूर रह सकेंगे।—2 कुरिन्थियों 10:5.

यह सच है कि जब हमें अनुशासन दिया जाता है, तो उसे मानना बहुत मुश्‍किल हो और शायद हमें लगे कि हम पर बंदिशें लगाई जा रही हैं। (इब्रानियों 12:11) लेकिन बुद्धिमान राजा सुलैमान हमें यकीन दिलाता है कि अगर हम अनुशासन को मानें तो हम ज़िंदगी में ज़रूर कामयाब होंगे। मिसाल के लिए, जब एक धावक को अच्छी ट्रेनिंग दी जाती है, तो वह सही रफ्तार से दौड़ पाता है और गिरता नहीं, उसे चोट नहीं लगती। उसी तरह अगर हम खुद को अच्छी तरह अनुशासित करते रहें तो हम जीवन के मार्ग पर सही रफ्तार से चलते रहेंगे और ठोकर नहीं खाएँगे। लेकिन हाँ, इसके लिए हमें होशियार रहना होगा कि हम किस तरह के लोगों की संगति कर रहे हैं।

“दुष्टों की बाट” छोड़ दे

सुलैमान अब एक चेतावनी देता है: “दुष्टों की बाट में पांव न धरना, और न बुरे लोगों के मार्ग पर चलना। उसे छोड़ दे, उसके पास से भी न चल, उसके निकट से मुड़कर आगे बढ़ जा। क्योंकि दुष्ट लोग यदि बुराई न करें, तो उनको नींद नहीं आती; और जब तक वे किसी को ठोकर न खिलाएं, तब तक उन्हें नींद नहीं मिलती। वे तो दुष्टता से कमाई हुई रोटी खाते, और उपद्रव के द्वारा पाया हुआ दाखमधु पीते हैं।”नीतिवचन 4:14-17.

दुष्ट लोग अपने बुरे कामों के सहारे ही जीते हैं। बुराई करना उनके लिए भोजन जैसा है। अगर वे हिंसा न करें तो चैन की नींद नहीं सो सकते। बुराई करने की इच्छा उनकी रग-रग में बसी हुई है। इसलिए अगर हम उनके साथ दोस्ती करें, तो क्या हम कह सकते हैं कि हम अपने मन की रक्षा कर रहे हैं? आज टीवी और फिल्मों में खूब हिंसा दिखाई जाती है। अगर हम ऐसे कार्यक्रमों से मन बहलाने लगें तो हम “बुरे लोगों के मार्ग पर” चल रहे होंगे और यह कितनी बेवकूफी की बात होगी! अगर हम प्यार और नम्रता जैसे अच्छे गुण पैदा करने की कोशिश करते हैं मगर साथ ही टीवी और फिल्मों के ज़रिए गंदी बातों से अपना दिमाग भरते रहते हैं तो अच्छे गुण पैदा हो ही नहीं सकते।

रोशनी में बना रह

एक रास्ते पर चलने की ही मिसाल देते हुए सुलैमान बताता है: “परन्तु धर्मियों की चाल उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक अधिक बढ़ता रहता है।” (नीतिवचन 4:18) जब हम बाइबल का अध्ययन करना और उस पर अमल करना शुरू करते हैं, तो यह सुबह के अंधेरे में ही सफर पर निकलने जैसा है। शुरू-शुरू में तो अँधेरे में कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता लेकिन जब धीरे-धीरे अंधेरा कम होने लगता है, तो हमें आस-पास का नज़ारा कुछ धुँधला-सा दिखाई देने लगता है। और जब सूरज चमकने लगता है तो हमें एक-एक चीज़ साफ नज़र आने लगती है। उसी तरह सच्चाई की बातें भी हमें धीरे-धीरे समझ आएँगी, लेकिन इसके लिए हमें पूरी लगन के साथ बाइबल का अध्ययन करना चाहिए। इस तरह अगर हम अपने मन को आध्यात्मिक बातों से हमेशा भरते रहें तो हम गलत सोच-विचारों से अपने मन की रक्षा कर सकते हैं।

हमें बाइबल की भविष्यवाणियाँ भी धीरे-धीरे समझ आने लगती हैं। जब भविष्यवाणियाँ पूरी होने लगती हैं तब यहोवा अपनी पवित्र आत्मा के ज़रिए उन्हें समझने में हमारी मदद करता है। इसलिए भविष्यवाणियों का मतलब समझने के लिए हमें ‘ज्योति के अधिक अधिक बढ़ने’ यानि यहोवा के ठहराए हुए वक्‍त का इंतज़ार करना चाहिए। हमें उतावले होकर उनके बारे में अटकलें नहीं लगानी चाहिए।

लेकिन कुछ लोग परमेश्‍वर की हिदायतों को ठुकराकर ज्योति से मुँह फेर लेते हैं। उनके बारे में सुलैमान कहता है: “दुष्टों का मार्ग घोर अन्धकारमय है; वे नहीं जानते कि वे किस से ठोकर खाते हैं।” (नीतिवचन 4:19) दुष्ट लोग एक ऐसे आदमी की तरह हैं जो अँधेरे में ठोकर खाकर गिर जाता है और उसे यह भी मालूम नहीं होता कि उसे ठोकर कैसे लगी। हो सकता है कि दुष्ट लोग बुराई करके भी बहुत कामयाब होते हुए दिखाई दें, मगर सच तो यह है कि उनकी खुशी बस कुछ पलों की होती है। उनके बारे में भजनहार ने एक भजन में कहा: “निश्‍चय तू [यहोवा] उन्हें फिसलनेवाले स्थानों में रखता है; और गिराकर सत्यानाश कर देता है।”—भजन 73:18.

जागते रहिए

सुलैमान आगे कहता है: “हे मेरे पुत्र मेरे वचन ध्यान धरके सुन, और अपना कान मेरी बातों पर लगा। इनको अपनी आंखों की ओट न होने दे; वरन अपने मन में धारण कर। क्योंकि जिनको वे प्राप्त होती हैं, वे उनके जीवित रहने का, और उनके सारे शरीर के चंगे रहने का कारण होती हैं। सब से अधिक अपने मन की रक्षा कर; क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है।”नीतिवचन 4:20-23.

सुलैमान की ज़िंदगी खुद इस बात का एक सबूत है कि हमेशा मन की रक्षा न करना कितना खतरनाक हो सकता है। यह सच है कि वह जवानी में अपने पिता की आज्ञा माननेवाला “पुत्र” था और काफी उम्र तक यहोवा का वफादार बना रहा। लेकिन आगे क्या हुआ, इसके बारे में बाइबल बताती है: “जब सुलैमान बूढ़ा हुआ, तब उसकी [पराई] स्त्रियों ने उसका मन पराये देवताओं की ओर बहका दिया, और उसका मन अपने पिता दाऊद की नाईं अपने परमेश्‍वर यहोवा पर पूरी रीति से लगा न रहा।” (1 राजा 11:4) अगर हमेशा अपने मन पर कड़ी नज़र न रखे तो कोई भी इंसान बुरे कामों में फँस सकता है। (यिर्मयाह 17:9) इसलिए हमें परमेश्‍वर के वचन से मिलनेवाली चेतावनियों को हमेशा सीने से लगाए रखना चाहिए, उन्हें “मन में धारण” करना चाहिए। उन चेतावनियों में नीतिवचन चौथे अध्याय में दी गई सलाह भी शामिल है।

अपने मन की जाँच कीजिए

क्या हम सचमुच अपने मन की रक्षा कर रहे हैं? हम कैसे जान सकते हैं कि हम अंदर से किस तरह के इंसान हैं? यीशु मसीह ने कहा था कि “जो मन में भरा है, वही मुंह पर आता है।” (मत्ती 12:34) उसने यह भी कहा: “कुचिन्ता, हत्या, परस्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्दा मन ही से निकलती हैं।” (मत्ती 15:19, 20) जी हाँ, हम जिस तरह की बातें करते हैं और काम करते हैं, उनसे यह साफ ज़ाहिर होगा कि हम अंदर से किस तरह के इंसान हैं।

इसलिए सुलैमान की यह सलाह मानना बहुत ज़रूरी है: “टेढ़ी बात अपने मुंह से मत बोल, और चालबाज़ी की बातें कहना तुझ से दूर रहे। तेरी आंखें साम्हने ही की ओर लगी रहें, और तेरी पलकें आगे की ओर खुली रहें। अपने पांव धरने के लिये मार्ग को समथर कर, और तेरे सब मार्ग ठीक रहें। न तो दहिनी ओर मुड़ना, और न बाईं ओर; अपने पांव को बुराई के मार्ग पर चलने से हटा ले।”नीतिवचन 4:24-27.

सुलैमान की इस सलाह के मुताबिक, हमें यह देखना चाहिए कि हम किस तरह की बातें करते हैं और हमारे काम कैसे हैं। अगर हम अपने मन की रक्षा करना और परमेश्‍वर को खुश करना चाहते हैं तो हमें टेढ़ी-मेढ़ी बातें करने और कपटी चालचलन से दूर रहना चाहिए। (नीतिवचन 3:32) इस बारे में हमें परमेश्‍वर से प्रार्थना करनी चाहिए और देखना चाहिए कि हमारी बातचीत और चालचलन हमारे बारे में क्या ज़ाहिर करते हैं। और जब हमें कोई कमज़ोरी नज़र आती है तो हमें परमेश्‍वर से मदद माँगनी चाहिए कि वह हमें अपनी कमज़ोरियों को दूर करने में मदद करे।—भजन 139:23, 24.

सबसे ज़्यादा हमें इस बात का खयाल रखना चाहिए कि हमारी “आंखें साम्हने ही की ओर लगी रहें।” इसका मतलब है हमें पूरी तरह से अपनी नज़र स्वर्ग में रहनेवाले पिता यहोवा की सेवा करने पर ही लगाए रखनी चाहिए। (कुलुस्सियों 3:23) जब हम सच्चाई के मार्ग पर चलेंगे और “अपने मन की रक्षा” करेंगे तो यहोवा हमें ‘सब मार्गों’ में कामयाबी और आशीष देगा।

[फुटनोट]

^ नाम बदल दिया गया है।

[पेज 21 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

बड़े लोग जो सलाह देते हैं उस पर चलने से आपको ही फायदा होगा

[पेज 22 पर तसवीर]

क्या आप ऐसे कार्यक्रमों से दूर रहते हैं जिनमें हिंसा दिखाई जाती है?

[पेज 23 पर तसवीर]

अनुशासन आपकी तरक्की में रुकावट नहीं डालता

[पेज 24 पर तसवीर]

पूरी लगन के साथ बाइबल का अध्ययन करते रहिए