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एक सिद्ध ज़िंदगी कोई ख्वाब नहीं!

एक सिद्ध ज़िंदगी कोई ख्वाब नहीं!

एक सिद्ध ज़िंदगी कोई ख्वाब नहीं!

एक ऐसी दुनिया की कल्पना कीजिए जहाँ सभी इंसान अपने हर काम में कामयाब होंगे। उनके किसी भी काम में ज़रा-भी खोट नहीं होगी। और वहाँ का माहौल भी अलग होगा, वहाँ अपराध, गरीबी, अन्याय, दुःख-तकलीफ, तनाव, यहाँ तक कि मौत भी नहीं होगी। इंसान अपने सभी लक्ष्यों को हासिल कर सकेंगे। दरअसल, ऐसी दुनिया में जीना हम सभी की दिली ख्वाहिश है।

मगर क्या ऐसी दुनिया लाना इंसानों के बस की बात है? हमेशा से इंसानों का यह सपना रहा है कि वे एक ऐसी दुनिया लाएँ जहाँ सुख-शांति हो और जहाँ गरीबी, बीमारी और समस्याएँ न हों। उन्होंने साइंस और टॆक्नॉलॉजी में भी काफी तरक्की की है। इसके बावजूद उनका सपना साकार नहीं हो पाया है। उनकी हर कोशिश नाकाम रही है। क्यों?

क्योंकि इंसान असिद्ध और पापी हैं। उनकी हर कोशिश ‘व्यर्थ’ ही होती है। वे एक सिद्ध दुनिया ला ही नहीं सकते। मगर परमेश्‍वर ने ऐसा इंतज़ाम किया है जिससे इंसान पाप और असिद्धता से छुटकारा पा सकता है। इस आशा के बारे में प्रेरित पौलुस कहता है: ‘सृष्टि [इंसान] बड़ी आशाभरी दृष्टि से परमेश्‍वर की बाट जोह रही है क्योंकि वह उन्हें व्यर्थता की आधीनता से और विनाश के दासत्व से छुटकारा पाने की आशा देता है।’ (रोमियों 8:19-21) सो, परमेश्‍वर ही ऐसी दुनिया ला सकता है जहाँ हर व्यक्‍ति सिद्ध होगा और उसके किसी भी काम में खोट नहीं होगी। उसकी हर कोशिश कामयाब होगी।

दरअसल, जब परमेश्‍वर ने शुरुआत में दुनिया बनायी थी, तब सब कुछ सिद्ध था, माहौल भी सिद्ध था। उसने पहले इंसान, आदम और हव्वा को अपने स्वरूप में बनाया और उन्हें हमेशा जीने की आशा दी। उस समय वे जो भी करते, उसमें उन्हें कामयाबी ज़रूर मिलती। मगर, उन्होंने पाप किया और सब कुछ खो दिया। उन्होंने हमेशा के लिए जीने का मौका और वहाँ का सिद्ध माहौल भी खो दिया। (उत्पत्ति 3:1-6) लेकिन परमेश्‍वर ने उनकी संतान के दिल में हमेशा जीने की आशा बरकरार रखी। इस बारे में सभोपदेशक 3:11 कहता है: ‘परमेश्‍वर ने मनुष्यों के मन में अनन्त काल का ज्ञान उत्पन्‍न किया है, तौभी जो काम परमेश्‍वर ने किया है, वह आदि से अन्त तक मनुष्य बूझ नहीं सकता।’ अनंत और सिद्ध जीवन जीने की इंसानों की ख्वाहिश को परमेश्‍वर ज़रूर पूरा करेगा। और ऐसा जीवन वह यीशु मसीह के ज़रिए देगा।—यूहन्‍ना 3:16; 17:3.

भविष्य के लिए तो हमारे पास यह शानदार आशा है। उस समय हमें अपने काम से खुशी और संतुष्टि मिलेगी, मगर आज भी हम अपने काम से काफी हद तक खुशी पा सकते हैं। वो कैसे? इसका जवाब हमें यीशु की बात से मिलता है।

परमेश्‍वर के गुणों को पैदा कीजिए

यीशु मसीह ने कहा: “तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता [परमेश्‍वर] सिद्ध है।” (मत्ती 5:48) क्या उसके कहने का मतलब यह था कि हम अपने हर काम में सिद्ध बनें, जिसमें कि बिलकुल भी खोट न हो? ऐसा हो ही नहीं सकता क्योंकि हम पापी हैं। इस बारे में यीशु के एक प्रेरित ने लिखा: “यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्‍वासयोग्य और धर्मी है। यदि कहें कि हम ने पाप नहीं किया, तो उसे झूठा ठहराते हैं, और उसका वचन हम में नहीं है।” (1 यूहन्‍ना 1:9, 10) सो, पापी होने की वज़ह से आज हम इस असिद्ध दुनिया में अपने हर काम में परफैक्ट होने की उम्मीद नहीं कर सकते। दरअसल, जब यीशु ने कहा कि परमेश्‍वर की तरह सिद्ध बनो तो उसका मतलब था कि हमें परमेश्‍वर के गुणों को अपने अंदर पैदा करना चाहिए।

जब हम परमेश्‍वर के प्यार और दया जैसे गुणों को पैदा करेंगे तो हम न खुद से और ना ही दूसरों से किसी भी काम में हद से ज़्यादा की उम्मीद करेंगे। बाइबल में प्रेरित पौलुस हमें अच्छी सलाह देता है: “प्रभु में सदा आनन्दित रहो; मैं फिर कहता हूं, आनन्दित रहो। तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो।” (फिलिप्पियों 4:4, 5) यहाँ कोमल होने का मतलब है कि हम बहुत सख्ती से पेश न आएँ। इसके बजाय जब हम प्यार और दया जैसे गुण दिखाते हैं तो हम अपने जीवन-साथी, माता-पिता, अपने बच्चों और सहकर्मियों के साथ अच्छी तरह से पेश आएँगे और अपने बाकी के कामों से भी खुशी और संतुष्टि पाएँगे।

हद से ज़्यादा की उम्मीद न करने के फायदे

जब परमेश्‍वर ने आदम और हव्वा को बनाया तो वह यही चाहता था कि वे अपने काम से खुशी और संतुष्टि पाएँ। (उत्पत्ति 2:7-9) आज भी परमेश्‍वर लोगों से यही चाहता है। मगर ये खुशी पाने के लिए ज़रूरी है कि आपको अपनी काबिलीयत का सही अंदाज़ा हो। फिर जब आप अपनी काबिलीयत के मुताबिक लक्ष्य रखते हैं तो आप निराशा और मायूसी से बच सकते हैं।

अगर आपको हद से ज़्यादा उम्मीदें लगाने की आदत हो, तो इस पर काबू पाने के लिए आप यहोवा परमेश्‍वर से भी प्रार्थना कर सकते हैं। क्योंकि यहोवा हमारी बनावट को अच्छी तरह जानता है। वह यह उम्मीद नहीं करता कि हम अपने हर काम को एकदम ठीक-ठीक करें। वह बहुत दयालु है, और गलती करने पर वह हमें माफ भी करता है। उसकी दया के बारे में भजनहार कहता है: “जैसे पिता अपने बालकों पर दया करता है, वैसे ही यहोवा अपने डरवैयों पर दया करता है। क्योंकि वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही हैं।” (भजन 103:13, 14) हमारी असिद्धता को जानते हुए भी वह हमें तुच्छ नहीं बल्कि अनमोल समझता है। तो उसका यह नज़रिया जानकर हमारे दिल को कितना सुकून पहुँचता है!

सो हमें भी हर काम में हद से ज़्यादा उम्मीद करने के बजाय यहोवा का ही नज़रिया अपनाना चाहिए। साथ ही, हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा अपने राज्य में सभी इंसानों को पूरी तरह से सिद्ध या परफैक्ट ज़रूर करेगा। उस समय हालात कैसे होंगे?

परमेश्‍वर के राज्य में हालात

परमेश्‍वर के राज्य में लोगों का रवैया एकदम अलग होगा। वे ऐसे लोग होंगे जो न खुद से, ना ही दूसरों से हद से ज़्यादा की उम्मीद करेंगे। वे इस बात को कबूल करेंगे कि वे अपने बलबूते पर नहीं, बल्कि यीशु के छुड़ौती बलिदान पर विश्‍वास करने की वज़ह से ही बड़े क्लेश से बचकर परमेश्‍वर के राज्य में पहुँच पाए। (यूहन्‍ना 3:16) और उस राज्य में उनकी आज की कमज़ोरियाँ, खामियाँ, हद से ज़्यादा उम्मीद करने का रवैया हमेशा के लिए दूर हो जाएगा। उन्हें एक सिद्ध ज़िंदगी मिलेगी। (रोमियों 8:21, 22) इसलिए वे यहोवा परमेश्‍वर और यीशु का एहसान मानते हुए कहेंगे: “उद्धार के लिये हमारे परमेश्‍वर का जो सिंहासन पर बैठा है, और मेम्ने का जय-जय-कार हो।”—प्रकाशितवाक्य 7:9, 10, 14.

परमेश्‍वर के राज्य में रहनेवाले लोगों में एक दूसरे से आगे बढ़ निकलने का भूत सवार नहीं होगा। उनमें हीनभावना नहीं होगी, वे किसी काम को लेकर हद से ज़्यादा चिंता नहीं करेंगे। इसके बजाय वे एक-दूसरे की मदद करेंगे और प्यार-मुहब्बत से जीएँगे। बाइबल में उस खूबसूरत नयी दुनिया के बारे में सारी जानकारी तो नहीं दी है मगर यह ज़रूर बताया गया है कि उस समय हर व्यक्‍ति अपने काम में कामयाब होगा। यशायाह 65:21-23 कहता है: “वे घर बनाकर उन में बसेंगे; वे दाख की बारियां लगाकर उनका फल खाएंगे। ऐसा नहीं होगा कि वे बनाएं और दूसरा बसे; वा वे लगाएं, और दूसरा खाए; क्योंकि मेरी प्रजा की आयु वृक्षों की सी होगी, और मेरे चुने हुए अपने कामों का पूरा लाभ उठाएंगे। उनका परिश्रम व्यर्थ न होगा, न उनके बालक घबराहट के लिये उत्पन्‍न होंगे।”

इसके अलावा, उस नयी दुनिया के माहौल के बारे में यशायाह 65:25 कहता है: “भेड़िया और मेम्ना एक संग चरा करेंगे, और सिंह बैल की नाईं भूसा खाएगा; और सर्प का आहार मिट्टी ही रहेगा। मेरे सारे पवित्र पर्वत पर न तो कोई किसी को दुःख देगा और न कोई किसी की हानि करेगा, यहोवा का यही वचन है।” आज की दुनिया के मुकाबले वो दुनिया कितनी हसीन होगी! उस समय हर व्यक्‍ति ‘यहोवा को अपने सुख का मूल जानेगा, और यहोवा उनके मनोरथों को पूरा करेगा।’—भजन 37:4.

वो नयी दुनिया एक ख्वाब नहीं है। यहोवा अपने मकसद को ज़रूर पूरा होगा। इस बारे में बाइबल भविष्यवाणी करती है: “धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।” (भजन 37:29) उस नयी दुनिया में सभी इंसानों को सिद्ध या परफैक्ट किया जाएगा और आप और आपका परिवार उनमें से एक हो सकता है।

[पेज 6 पर तसवीर]

हम खुद से और दूसरों से हद से ज़्यादा उम्मीद करने के बजाय अपना नज़रिया बदल सकते हैं

[पेज 7 पर तसवीर]

क्यों न आप अभी से कल्पना करें कि आप उस खूबसूरत दुनिया में ज़िंदगी का मज़ा लूट रहे हैं?