इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

जो आप पर अधिकार रखते हैं, उनकी इज़्ज़त कीजिए

जो आप पर अधिकार रखते हैं, उनकी इज़्ज़त कीजिए

जो आप पर अधिकार रखते हैं, उनकी इज़्ज़त कीजिए

“सब का आदर करो, भाइयों से प्रेम रखो, परमेश्‍वर से डरो, राजा का सम्मान करो।”1 पतरस 2:17.

1, 2. अधिकार रखनेवालों को आम तौर पर लोग किस नज़र से देखते हैं? क्यों?

 आज दुनिया में हम एक आम बात देखते हैं कि लोग किसी के अधीन नहीं रहना चाहते। इसलिए वे टीचरों, सरकारी अधिकारियों, माता-पिताओं और अपने बॉस की इज़्ज़त नहीं करते। कई देशों में ऐसे स्टिकर भी बनाए गए हैं जिन पर लिखा होता है, “अधिकार जतानेवाले, तेरा मुँह काला।” ऐसे रवैये पर खेद ज़ाहिर करते हुए एक माँ कहती है: “माँ-बाप की तो कोई इज़्ज़त ही नहीं रह गई है, अब तो सिर्फ बच्चों की चलती है।”

2 कुछ लोग शायद ऐसा कहें कि ‘जब हम पर अधिकार रखनेवाले इज़्ज़त के लायक काम ही नहीं करते तो उन्हें इज़्ज़त कौन देगा?’ यह सच है कि आज कई सरकारी अधिकारी भ्रष्ट हैं, मालिक बहुत ही लालची हैं, टीचर सिखाने के काबिल नहीं हैं और माता-पिता, बच्चों के साथ बुरा सलूक कर रहे हैं। इसके बारे में आए दिन हम खबरों में भी सुनते हैं। मगर अधिकार के मामले में सच्चे मसीहियों में ऐसा रवैया नहीं पाया जाता। वे कलीसिया में अपने पर अधिकार रखनेवालों की इज़्ज़त करते हैं।—मत्ती 24:45-47.

3, 4. मसीहियों को अधिकार रखनेवालों की इज़्ज़त क्यों करनी चाहिए?

3 सच्चे मसीही सबकी इज़्ज़त करते हैं। सरकारी अधिकारियों की इज़्ज़त करने के लिए उनके पास एक ज़रूरी “कारण” है। प्रेरित पौलुस वह कारण बताते हुए कहता है कि हरेक मसीही “प्रधान अधिकारियों के आधीन रहे; क्योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं, जो परमेश्‍वर की ओर से न हो; और जो अधिकार हैं, वे परमेश्‍वर के ठहराए हुए हैं।” (रोमियों 13:1, 2, 5, NHT; 1 पतरस 2:13-15) परिवार में माता-पिता या पति की इज़्ज़त क्यों करनी चाहिए, पौलुस इसका भी कारण बताता है: “हे पत्नियो, जैसा प्रभु में उचित है, वैसा ही अपने पति के आधीन रहो। हे बालको, सब बातों में अपने अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करो, क्योंकि प्रभु इस से प्रसन्‍न होता है।” (कुलुस्सियों 3:18, 20) कलीसिया में हमें प्राचीनों की भी इज़्ज़त करनी चाहिए क्योंकि उन्हें ‘परमेश्‍वर की कलीसिया की रखवाली करने के लिए पवित्र आत्मा ने अध्यक्ष ठहराया है।’ (प्रेरितों 20:28) जब हम अधिकार रखनेवाले सभी लोगों की इज़्ज़त करते हैं, तो दरअसल हम यहोवा की इज़्ज़त कर रहे होते हैं क्योंकि उनकी इज़्ज़त करने की आज्ञा यहोवा ने ही दी है। मगर हाँ, हमारी इज़्ज़त का सबसे पहला हकदार, यहोवा परमेश्‍वर है।—प्रेरितों 5:29.

4 आइए अब हम ऐसे लोगों से सबक सीखें जिन्होंने अधिकार रखनेवालों की इज़्ज़त की और जिन्होंने नहीं की।

इज़्ज़त न देनेवालों का अंजाम

5. मीकल ने किस तरह दाऊद की इज़्ज़त नहीं की और इसका अंजाम क्या हुआ?

5 यहोवा ने जिस व्यक्‍ति को अधिकार दिया है, उसे अगर कोई तुच्छ समझे तो इसका अंजाम बहुत ही बुरा होगा। आइए हम राजा दाऊद की पत्नी मीकल पर गौर करें। जब वाचा का संदूक यरूशलेम लाया जा रहा था, तब मीकल ने “खिड़की में से झांककर [दाऊद को] यहोवा के सम्मुख नाचते कूदते देखा, और उसे मन ही मन तुच्छ जाना।” फिर उसने दाऊद को ताना कसते हुए कहा: “आज इस्राएल का राजा जब अपना शरीर अपने कर्मचारियों की लौंडियों के साम्हने ऐसा उघाड़े हुए था, जैसा कोई निकम्मा अपना तन उघाड़े रहता है, तब क्या ही प्रतापी देख पड़ता था!” मीकल को दाऊद की इज़्ज़त करनी चाहिए थी, क्योंकि वह ना सिर्फ उसका पति था, बल्कि पूरे इस्राएल का राजा भी। मगर उसने ऐसा नहीं किया। इसका अंजाम क्या हुआ? मीकल हमेशा के लिए बाँझ हो गई।—2 शमूएल 6:14-23.

6. जब कोरह ने यहोवा के चुने हुओं का अपमान किया तो यहोवा को कैसा लगा?

6 एक और बहुत ही बुरा उदाहरण कोरह का है। लेवी के वंश से होने के नाते कोरह को यहोवा के तंबू में सेवा करने का बहुत बड़ा सम्मान मिला था। मगर अधिकार के प्रति उसका रवैया ठीक नहीं था। उसने उन व्यक्‍तियों की बिलकुल भी इज़्ज़त नहीं की जिन्हें यहोवा ने अधिकार दिया था। उसने इस्राएल के दूसरे प्रधानों को अपने साथ मिला लिया और मूसा और हारून का अपमान करते हुए कहा: “सारी मण्डली का एक एक मनुष्य पवित्र है, और यहोवा उनके मध्य में रहता है; इसलिये तुम यहोवा की मण्डली में ऊंचे पदवाले क्यों बन बैठे हो?” उनका यह रवैया यहोवा को कैसा लगा? यहोवा को ऐसा लगा मानो वे उसी का अपमान कर रहे हैं। नतीजा यह हुआ कि कोरह का साथ देनेवाले लोगों को कोरह की आँखों के सामने ही धरती निगल गई। और फिर यहोवा ने कोरह और उसके साथ 250 प्रधानों को भी आग से भस्म कर दिया।—गिनती 16:1-3, 28-35.

7. खुद को ‘बड़ा प्रेरित’ समझनेवालों का पौलुस की नुक्‍ताचीनी करना क्यों वाजिब नहीं था?

7 पहली सदी की मसीही कलीसियाओं में भी कुछ लोगों ने परमेश्‍वर द्वारा ठहराए गए अधिकार को तुच्छ जाना था। मसलन, कुरिन्थ की कलीसिया में कुछ लोग खुद को ‘बड़ा प्रेरित’ समझते थे और वे पौलुस की बिलकुल इज़्ज़त नहीं करते थे। उन्होंने उसके बोलने की क्षमता की बुराई करते हुए कहा: ‘वह शरीर से कमज़ोर है और उसकी बातों में दम नहीं है।’ (2 कुरिन्थियों 10:10; 11:5) पौलुस की बातों में दम था या नहीं, यह अलग बात है मगर उसकी इज़्ज़त करना सभी का फर्ज़ था क्योंकि वह यीशु द्वारा ठहराया गया एक प्रेरित था। लेकिन क्या सचमुच पौलुस की बातों में कोई दम नहीं था? बाइबल में पौलुस के ऐसे कई भाषण दर्ज़ हैं, जिनसे यह साबित होता है कि वह बहुत ही ज़बरदस्त भाषण देता था। एक बार पौलुस ने हेरोदेस अग्रिप्पा II से बात की, जो ‘यहूदियों के सब विवादों को जानता’ था। हालाँकि पौलुस ने उससे थोड़ी देर ही बात की थी, पर उसकी बातों का हेरोदेस पर ऐसा असर हुआ कि उसने पौलुस से कहा: ‘तू तो मुझे थोड़े ही समय में मसीही बनने को फुसला लेगा!’ (प्रेरितों 13:15-43; 17:22-34; 26:1-28, NHT) लेकिन खुद को ‘बड़ा प्रेरित’ समझनेवालों ने पौलुस को नीचा दिखाते हुए कहा कि उसकी बातों में दम नहीं है। यहोवा ने उनको किस नज़र से देखा? यहोवा को उनका रवैया पसंद नहीं आया। यह हमें यीशु की बातों से पता चलता है, जब उसने इफिसुस की कलीसिया के ऐसे मसीहियों की निंदा की जो ‘अपने आप को प्रेरित समझते थे मगर थे नहीं।’—प्रकाशितवाक्य 2:2.

खामियाँ देखने के बावजूद इज़्ज़त देना

8. दाऊद ने आदर दिखाने में किस तरह एक अच्छा उदाहरण रखा?

8 आइए अब हम कुछ अच्छे उदाहरणों पर गौर करें। कुछ लोगों ने हमेशा अपने पर अधिकार रखनेवालों की, तब भी इज़्ज़त की जब उन्होंने अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल किया। इनमें एक बढ़िया उदाहरण दाऊद का है। दाऊद बहुत ही बहादुर था और उसने बड़े-बड़े काम किए थे। इसलिए राजा शाऊल उससे बहुत जलने लगा और उसे जान से मार डालना चाहता था। (1 शमूएल 18:8-12; 19:9-11; 23:26) दाऊद को भी कई बार शाऊल की हत्या करने का मौका मिला था मगर फिर भी उसने कभी शाऊल पर हाथ नहीं उठाया। क्यों? इसका कारण उसने बताया: “यहोवा न करे कि मैं अपना हाथ यहोवा के अभिषिक्‍त पर बढ़ाऊं।” (1 शमूएल 24:3-6; 26:7-13) हालाँकि दाऊद अच्छी तरह जानता था कि शाऊल जो कर रहा है, वह बिलकुल गलत है, मगर फिर भी उसने सब कुछ यहोवा के हाथ में छोड़ दिया। (1 शमूएल 24:12, 15; 26:22-24) दाऊद ने पीठ पीछे भी कभी शाऊल की बुराई नहीं की।

9. (क) जब शाऊल ने दाऊद के साथ बुरा सलूक किया तो दाऊद ने कैसा महसूस किया? (ख) यह कहना क्यों ठीक है कि दाऊद दिल से शाऊल की इज़्ज़त करता था?

9 लेकिन शाऊल ने जब दाऊद से इतना बुरा सलूक किया तो क्या दाऊद को ज़रा-भी दुःख नहीं हुआ? ज़रूर हुआ था। तभी तो उसने यहोवा से फरियाद की कि ‘खूंखार मनुष्य मेरी जान के पीछे पड़े हैं,’ इसलिए “हे मेरे परमेश्‍वर, मुझे मेरे शत्रुओं से बचा; . . . हिंसक मनुष्य मेरे विरुद्ध इकट्ठे होते हैं। परन्तु हे यहोवा, मेरा कोई दोष व पाप नहीं है। मेरा कोई दोष नहीं, फिर भी वे दौड़कर मेरे विरुद्ध धावा करने को तैयार हो जाते हैं। मुझे बचाने के लिए जाग उठ और देख!” (भजन 54:3, NHT; 59:1-4, NHT) क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है? क्या जिनका आप पर अधिकार है उन्होंने बेवज़ह आपके साथ बुरा सलूक किया है? दाऊद के किस्से में हम देखते हैं कि उसने हमेशा शाऊल की इज़्ज़त की। शाऊल की मौत पर दाऊद को खुशी नहीं मगर इतना दुःख हुआ कि उसने एक विलापगीत बनाया: “शाऊल और योनातन . . . जीवनकाल में तो प्रिय और मनभाऊ थे, . . . वे उकाब से भी वेग चलनेवाले, और सिंह से भी अधिक पराक्रमी थे। हे इस्राएली स्त्रियो, शाऊल के लिये रोओ।” (2 शमूएल 1:23, 24) दाऊद वाकई हमारे लिए एक बढ़िया उदाहरण है, क्योंकि उसने शाऊल के बुरे सलूक के बावजूद सच्चे दिल से उसकी इज़्ज़त की। वह जानता था कि शाऊल को यहोवा ने ही राजा बनाया था।

10. शासी निकाय का आदर करने में पौलुस ने कौन-सा अच्छा उदाहरण रखा और इसका नतीजा क्या हुआ?

10 अब चलिए, पहली सदी के अच्छे उदाहरणों पर गौर करें। पौलुस को ही ले लीजिए। एक बार पौलुस यरूशलेम गया था, तो शासी निकाय ने उसे आज्ञा दी कि वह यरूशलेम के मंदिर में जाकर व्यवस्था के मुताबिक खुद को शुद्ध करके यह साबित करे कि वह मूसा की व्यवस्था के खिलाफ नहीं है। शासी निकाय की इस माँग के बारे में पौलुस सोच सकता था कि ‘पिछली बार इन्हीं भाइयों ने मुझे यरूशलेम छोड़कर भाग जाने के लिए कहा था क्योंकि मेरी जान को खतरा था। अब ये लोग ही मुझे फिर से वहीं सबके सामने मंदिर में जाकर व्यवस्था के मुताबिक शुद्ध होने के लिए कह रहे हैं। दूसरी बात यह कि मैंने गलतिया के मसीहियों को लिख दिया है कि उन्हें मूसा की व्यवस्था का पालन करने की कोई ज़रूरत नहीं। अब अगर मैं मंदिर जाऊँ तो क्या लोग यह नहीं सोचेंगे कि मैंने यहूदियों के साथ समझौता कर लिया है?’ लेकिन पौलुस ने ऐसा नहीं सोचा बल्कि आदर दिखाते हुए उसने शासी निकाय की बात मानी। पौलुस जानता था कि व्यवस्था के इस नियम का पालन करना, किसी मसीही सिद्धांत के खिलाफ नहीं है। इसलिए उसने शासी निकाय के कहे अनुसार ही किया। इसकी वज़ह से पौलुस पर मुसीबत आई क्योंकि यहूदियों की भीड़ उसे मार डालने के लिए उस पर टूट पड़ी और आखिरकार उसे दो साल जेल में भी गुज़ारने पड़े। मगर इससे आगे जाकर परमेश्‍वर का ही मकसद पूरा हुआ। पौलुस ने कैसरिया के बड़े-बड़े अधिकारियों को परमेश्‍वर के बारे में गवाही दी। बाद में उसे रोम ले जाया गया, जहाँ उसे कैसर को भी गवाही देने का मौका मिला।—प्रेरितों 9:26-30; 21:20-26; 23:11; 24:27; गलतियों 2:12; 4:9, 10.

क्या आप आदर दिखाते हैं?

11. हम सरकारी अधिकारियों के लिए कैसे इज़्ज़त दिखा सकते हैं?

11 अब ज़रा अपने बारे में सोचिए, क्या आप अधिकार के प्रति आदर दिखाते हैं? मसीहियों को आज्ञा दी गई है कि “हर एक का हक्क चुकाया करो, . . . जिस का आदर करना चाहिए उसका आदर करो।” जब “प्रधान अधिकारियों” के अधीन रहने की बात आती है तो यह सिर्फ कर चुकाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें अच्छे चालचलन और अच्छी बोली के ज़रिए उनकी इज़्ज़त करना भी शामिल है। (रोमियों 13:1-7) लेकिन अगर कोई सरकारी अधिकारी हमारे साथ कठोरता से पेश आता है तब हम क्या करेंगे? गौर कीजिए कि मैक्सिको के चीऑपस राज्य में क्या हुआ। वहाँ के अधिकारियों ने 57 साक्षी परिवारों की खेती की ज़मीन हड़प ली क्योंकि वे कुछ त्योहारों में हिस्सा नहीं लेते थे। इस मामले को सुलझाने के लिए जब सभाएँ रखी जातीं तो साक्षी हमेशा अदब से पेश आते और उनका पहनावा भी शालीन होता था। एक साल बाद साक्षियों के पक्ष में फैसला लिया गया। और लोगों को साक्षियों का व्यवहार इतना अच्छा लगा कि उनमें से कुछ तो यहोवा के साक्षी बनना चाहते थे!

12. अविश्‍वासी पति के लिए गहरा ‘आदर’ दिखाना क्यों ज़रूरी है?

12 परमेश्‍वर ने परिवार में अधिकार का जो प्रबंध किया है उसके प्रति हम कैसे आदर दिखा सकते हैं? पतरस इसके लिए यीशु की मिसाल देता है जिसने तकलीफों के बावजूद अपने अधिकारी को अधीनता दिखाई और फिर कहता है: “इसी प्रकार हे पत्नियो! अपने अपने पतियों के प्रति समर्पित रहो। ताकि यदि उनमें से कोई परमेश्‍वर के वचन का पालन नहीं करते हों तो तुम्हारे पवित्र और आदरपूर्ण चाल चलन को देखकर बिना किसी बातचीत के ही अपनी-अपनी पत्नियों के व्यवहार से जीत लिये जायें।” (1 पतरस 3:1, 2; ईज़ी टू रीड वर्शन, इफिसियों 5:22-24) पतरस यहाँ इस बात पर ज़ोर दे रहा है कि पति चाहे आदर के योग्य हो या न हो फिर भी पत्नी को दिल से उसका ‘आदर’ करना चाहिए और उसके अधीन रहना चाहिए। अगर पत्नी अपने अविश्‍वासी पति के लिए गहरा आदर दिखाएगी, तो अपने अच्छे व्यवहार से ही पति को सच्चाई की तरफ आकर्षित कर सकती है।

13. पत्नी अपने पति का आदर कैसे कर सकती है?

13 जिनके पति विश्‍वासी हैं, उनके बारे में क्या? अगर हम आगे की आयत पढ़ें तो वहाँ पतरस सारा की बेहतरीन मिसाल देता है, जिसका पति इब्राहीम विश्‍वासी था। सारा ने हमेशा अपने पति का आदर किया। (रोमियों 4:16, 17; गलतियों 3:6-9; 1 पतरस 3:6) इसी तरह पत्नियाँ भी अपने-अपने विश्‍वासी पति को गहरा आदर दिखा सकती हैं। लेकिन तब क्या जब आप किसी बात पर अपने पति से सहमत नहीं होतीं? क्या तब भी आपको गहरा आदर दिखाना चाहिए? ऐसे समय में यीशु की इस सलाह को ध्यान में रखा जा सकता है: “तुझ पर अधिकार रखनेवाला अगर तुझे कोस भर चलने को कहे, तो उसके साथ दो कोस चला जा।” (मत्ती 5:41, NW) क्या आप अपने पति का आदर करते हुए उसकी मर्ज़ी के मुताबिक चलने को तैयार होती हैं? अगर कभी आपको ऐसा करना बहुत मुश्‍किल लगता है, तो क्यों न अपने पति को अपने दिल की बात बताएँ? जब तक आप उसे अपने दिल की बात नहीं बताएँगी तो वह उसे कैसे जानेगा? और अपने पति से बात करते वक्‍त आप यह ध्यान रखिए कि आप उसके साथ इज़्ज़त से पेश आएँ और सही लहज़े में बात करें। बाइबल हमें सलाह देती है: “तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सलोना हो, कि तुम्हें हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए।”—कुलुस्सियों 4:6.

14. माता-पिता का आदर करने का मतलब क्या है?

14 और बच्चो, आप कैसे अधीनता दिखा सकते हैं? परमेश्‍वर का वचन आपको यह आज्ञा देता है: “हे बालको, प्रभु में अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बनो, क्योंकि यह उचित है। अपनी माता और पिता का आदर कर यह पहिली आज्ञा है, जिस के साथ प्रतिज्ञा भी है।” (इफिसियों 6:1-3) ध्यान दीजिए कि माता-पिता की आज्ञा मानना, ‘उनका आदर’ करने के बराबर है। यहाँ “आदर” के लिए जो यूनानी शब्द इस्तेमाल किया गया है उसका मतलब है, उन्हें “अनमोल जानना,” “बहुमूल्य समझना।” इसलिए माता-पिता की कोई बात पसंद न आने पर भी, उसे खुशी से मान लेना चाहिए, मुँह बनाकर नहीं। परमेश्‍वर आपसे यही चाहता है कि आप अपने माता-पिता की इज़्ज़त करें और उनसे मिले मार्गदर्शन को अनमोल समझें।—नीतिवचन 15:5.

15. जब माता-पिता कुछ ऐसा करते हैं, जो बच्चों के हिसाब से ठीक नहीं है तो बच्चे क्या कर सकते हैं?

15 अगर आपके माता-पिता कुछ ऐसा करते हैं जिससे आपके दिल में उनके लिए इज़्ज़त कम हो जाती है तब क्या? ऐसे वक्‍त पर, उनका नज़रिया समझने की कोशिश कीजिए। साथ ही यह कभी मत भूलिए कि वे ही आपके “जन्मानेवाले” हैं। (नीतिवचन 23:22) और आपसे प्यार करते हैं। (इब्रानियों 12:7-11) इसलिए जब आपको उनकी कोई बात पसंद नहीं आती तो इज़्ज़त के साथ और नम्रता से उन्हें समझाने की कोशिश कीजिए। अगर वे फिर भी नहीं समझते हैं, तो भी उलटा जवाब मत दीजिए। (नीतिवचन 24:29) दाऊद को याद कीजिए जिसने हमेशा शाऊल की इज़्ज़त की, तब भी जब शाऊल परमेश्‍वर के खिलाफ हो चुका था। अगर आपको अपनी भावनाओं पर काबू पाना मुश्‍किल लगता है, तो यहोवा से प्रार्थना कीजिए, वह आपकी मदद करेगा। दाऊद ने कहा था: “उस से अपने अपने मन की बातें खोलकर कहो; परमेश्‍वर हमारा शरणस्थान है।”—भजन 62:8; विलापगीत 3:25-27.

अपने अगुवों की इज़्ज़त कीजिए

16. हम झूठे शिक्षकों और स्वर्गदूतों के उदाहरण से क्या सीख सकते हैं?

16 यह सच है कि कलीसिया के प्राचीनों को पवित्र आत्मा द्वारा नियुक्‍त किया जाता है, मगर फिर भी वे असिद्ध इंसान हैं और गलतियाँ करते हैं। (भजन 130:3; सभोपदेशक 7:20; प्रेरितों 20:28; याकूब 3:2) हो सकता है कि हम में से कुछ भाई-बहन प्राचीनों से खुश न हों। कभी-कभी शायद हमें उनके कुछ फैसले पसंद न आएँ, तब हमारा रवैया कैसा होना चाहिए? आइए ज़रा स्वर्गदूतों और पहली सदी के झूठे शिक्षकों के रवैये पर विचार करें। “[झूठे शिक्षक] ढीठ, और हठी हैं, और ऊंचे पदवालों को बुरा भला कहने से नहीं डरते। तौभी स्वर्गदूत जो शक्‍ति और सामर्थ में उन से बड़े हैं, प्रभु के साम्हने उन्हें बुरा भला कहकर दोष नहीं लगाते।” (2 पतरस 2:10-13) झूठे शिक्षक “ऊंचे पदवालों” यानी उन प्राचीनों को बुरा-भला कहते थे, जिन्हें कलीसिया में अधिकार दिया गया था। मगर स्वर्गदूतों ने उन झूठे शिक्षकों की भी कोई निंदा नहीं की जो भाइयों में फूट डाल रहे थे। स्वर्गदूत, जिनका दर्ज़ा इंसानों से बहुत ऊँचा है, अच्छी तरह जानते थे कि कलीसिया में क्या हो रहा है। इसलिए वे कलीसिया का न्याय किसी भी इंसान से बेहतर कर सकते थे। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि वे “[यहोवा] के साम्हने” उन पर दोष नहीं लगाना चाहते थे। उन्होंने न्याय करने का काम यहोवा के हाथ में छोड़ दिया।—इब्रानियों 2:6, 7; यहूदा 9.

17. जब हमें लगता है कि प्राचीनों ने गलत फैसला लिया है, तब हमारे विश्‍वास की परीक्षा कैसे होती है?

17 मान लीजिए कि प्राचीनों का कोई फैसला गलत है, तब हमारा रवैया कैसा होना चाहिए? ऐसे समय पर हमारे विश्‍वास की परीक्षा होती है। उस वक्‍त हमें यकीन रखना चाहिए कि कलीसिया का सिर यीशु मसीह है। क्या यीशु अच्छी तरह से नहीं जानता कि संसार भर में उसकी कलीसियाओं में क्या हो रहा है? किसी मामले को कब और कैसे सुलझाना है, क्या ये सब उसके हाथ में नहीं है? तो क्या हमें उसके इस अधिकार का आदर नहीं करना चाहिए? आखिर ‘हम कौन होते हैं, जो अपने पड़ोसी पर दोष लगाएँ?’ (याकूब 4:12; 1 कुरिन्थियों 11:3; कुलुस्सियों 1:18) इसलिए अगर कोई चिंता हमें वाकई खाए जा रही है तो क्यों न उसके बारे में यहोवा से प्रार्थना करें?

18, 19. जब आपको लगे कि किसी प्राचीन ने गलती की है तो आप क्या कर सकते हैं?

18 सभी इंसान असिद्ध हैं, तो ज़ाहिर है कि इस वज़ह से समस्याएँ खड़ी होंगी ही। ऐसा भी हो सकता है कि प्राचीन की गलती से दूसरों को तकलीफ पहुँचे। लेकिन ऐसे में झट-से कोई कदम उठा लेना अकलमंदी नहीं होगी। इससे समस्या सुधर नहीं जाएगी। कहीं ऐसा न हो कि उलटे समस्या और बढ़ जाए! इसलिए आध्यात्मिक और समझदार व्यक्‍ति जल्दबाज़ी में कदम उठाने के बजाय यहोवा पर भरोसा रखेगा कि अपने समय पर वही मामले को ठीक करेगा और जिसे ताड़ना देनी है, उसे ताड़ना देगा।—2 तीमुथियुस 3:16; इब्रानियों 12:7-11.

19 लेकिन अगर उनका कोई फैसला आपको इतना परेशान और दुःखी कर दे कि सहना मुश्‍किल हो जाए, तब आप क्या करेंगे? क्या इसके बारे में दूसरे भाई-बहनों से बात करना ठीक होगा? नहीं। इससे अच्छा होगा कि आप सीधे प्राचीनों के पास जाएँ। किसी पर दोष लगाए बिना उन्हें बताइए कि आप पर क्या बीत रही है। साथ ही, प्यार, नम्रता और इज़्ज़त के साथ उन्हें अपनी परेशानी बताइए। (1 पतरस 3:8) और प्राचीनों पर भरोसा रखिए क्योंकि उन्हें काफी तजुर्बा है। जब वे बाइबल से आपकी हिम्मत बढ़ाते हैं तो उसकी कदर कीजिए। इसके बाद भी अगर आपको लगता है कि समस्या को सुलझाने के लिए उन्हें और भी कुछ करना चाहिए, तो भरोसा रखिए कि यहोवा एक सही फैसला करने में ज़रूर उनकी मदद करेगा।—गलतियों 6:10; 2 थिस्सलुनीकियों 3:13.

20. अगले लेख में हम क्या चर्चा करनेवाले हैं?

20 जब अधिकार रखनेवालों का आदर-मान करने की बात होती है, तो एक और ज़रूरी सवाल उठता है। वह यह है कि जिन्हें अधिकार मिला है, उन्हें अपने अधीन रहनेवालों के साथ कैसे पेश आना चाहिए? आइए इस बारे में हम अगले लेख पर गौर करें।

आप क्या जवाब देंगे?

• अधिकार रखनेवालों का आदर करने के लिए हमारे पास कौन-सा ज़रूरी कारण है?

• जो लोग परमेश्‍वर के चुने हुओं की इज़्ज़त नहीं करते, उन्हें यहोवा और यीशु किस नज़र से देखते हैं?

• अधिकार रखनेवालों का आदर करने में किन लोगों ने बढ़िया उदाहरण रखा?

• हम क्या कर सकते हैं जब हमें लगता है कि अधिकार रखनेवालों ने कोई गलती की है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 12 पर तसवीर]

सारा इब्राहीम के अधिकार की दिल से इज़्ज़त करती थी और इससे खुश थी

[पेज 13 पर तसवीर]

मीकल ने दाऊद की इज़्ज़त नहीं की जबकि वह ना सिर्फ उसका पति था, बल्कि पूरे इस्राएल का राजा भी

[पेज 15 पर तसवीर]

‘यहोवा न करे कि मैं उसके अभिषिक्‍त पर हाथ बढ़ाऊं!’

[पेज 16 पर तसवीर]

क्यों न अपनी चिंताओं के बारे में यहोवा से प्रार्थना करें?