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उसने कई देशों में ज्योति फैलायी

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जीवन कहानी

उसने कई देशों में ज्योति फैलायी

जॉर्ज यंग की कहानी—रूथ यंग निकोलसन की ज़ुबानी

“तो फिर हमारे चर्च ने चुप्पी क्यों साधी है? . . . एक इंसान अगर सच्चाई जानने के बाद भी चुप रहे तो क्या यह ठीक होगा? मैंने जाना है कि बाइबल की सही शिक्षा क्या है और इसे आपके सामने साबित भी किया है। सो हमें दूसरों को भी इसके बारे में बेझिझक बताना चाहिए!”

ये बातें पापा ने अपने तैंतीस पेज के एक खत में लिखी थीं। चर्च से अपना नाम कटवाने के लिए उन्होंने 1913 में यह खत लिखा था। इसके बाद से पापा की ज़िंदगी ने एक नया मोड़ ले लिया। वे देश-विदेश जाकर एक दीपक की तरह सच्चाई की ज्योति फैलाते रहे। (फिलिप्पियों 2:15) पापा के बारे में पूरी जानकारी मैंने बचपन से ही इकट्ठी करनी शुरू कर दी थी। मैं अपने रिश्‍तेदारों और दोस्तों से पापा के बारे में पूछती। अखबारों और मैगज़ीनों के ज़रिए भी मैंने उनके बारे में जानने की कोशिश की। जब मैं पापा के बारे में सोचती हूँ तो मुझे प्रेरित पौलुस की याद आती है जो “अन्यजातियों के लिये प्रेरित” था। उनकी ज़िंदगी पौलुस से काफी मिलती-जुलती है। प्रेरित पौलुस की तरह, पापा भी अलग-अलग देशों और द्वीपों में जाकर यहोवा का संदेश सुनाने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। (रोमियों 11:13; भजन 107:1-3) क्या आप भी मेरे पापा, जॉर्ज यंग की जीवन-कहानी सुनना चाहते हैं?

उनका बचपन

मेरे दादा जॉन यंग और दादी मार्गरेट यंग, दोनों स्कॉटलैंड के एडिनबर्ग शहर में रहते थे और वे स्कॉटिश प्रॆस्बिटेरियन चर्च के सदस्य थे। वहाँ उनके तीन बेटे एलैक्ज़ैंडर, जॉन और मैलकम पैदा हुए। बाद में वे स्कॉटलैंड से ब्रिटिश कोलंबिया के सैनिच शहर आ बसे जो पश्‍चिमी कनाडा में है। वहाँ 8 सितंबर, 1886 को पापा का जन्म हुआ और इसके दो साल बाद उनकी बहन मरीयन पैदा हुई। मरीयन सबसे छोटी और सबकी लाडली थी। सभी उसे प्यार से नॆल्ली पुकारते थे।

सभी बच्चों का बचपन सैनिच के फार्म पर हँसते-खेलते गुज़रा। और जैसे-जैसे वे बड़े होते गए उन्होंने ज़िम्मेदारी उठाना भी सीख लिया। इसलिए जब उनके मम्मी-पापा काम के सिलसिले में सैनिच के नज़दीकी शहर विक्टोरिया जाते, तो लौटने पर वे पाते कि बच्चों ने फार्म का सारा काम निपटा दिया है और घर की साफ-सफाई भी कर दी है।

बड़े होने पर पापा और उनके भाइयों ने दूसरे काम भी सीखे। उन्होंने खान में काम किया, साथ ही टिंबर का बिज़नॆस भी शुरू किया। वे लकड़ी बेचने और खरीदने में बहुत माहिर हो गए। उन्होंने बिज़नॆस में कामयाबी हासिल की और बहुत नाम कमाया। और इस बिज़नॆस में पैसों का लेन-देन पापा के ज़िम्मे था।

पापा को आध्यात्मिक बातों में भी काफी दिलचस्पी थी इसलिए उन्होंने पादरी बनने का फैसला किया। उस समय, वॉच टावर सोसाइटी के पहले अध्यक्ष चार्ल्स टी. रसल के भाषण अखबारों में छपते थे। जब पापा ने उनके भाषण पढ़े, तो इसका उन पर बड़ा असर हुआ और उन्होंने चर्च को इस्तीफा देने का फैसला किया। इस्तीफा के उसी खत का कुछ अंश आपने शुरू में देखा।

खत में पापा ने साफ-साफ लिखा कि चर्च की शिक्षाएँ सरासर गलत हैं। बाइबल के वचन के ज़रिए उन्होंने साबित किया कि अमर-आत्मा की शिक्षा एकदम झूठी है और यह भी झूठ है कि सज़ा देने के लिए परमेश्‍वर लोगों को नरक की आग में हमेशा के लिए तड़पाता है। पापा ने यह भी लिखा कि त्रियेक की शिक्षा का ज़िक्र बाइबल में बिलकुल भी नहीं और यह दूसरे धर्मों की उपज है। चर्च छोड़ने के बाद से, पापा सारी ज़िंदगी यीशु मसीह के नक्शेकदम पर चलते हुए परमेश्‍वर की सेवा बड़े ज़ोर-शोर से करने लगे। उन्होंने अपना तन-मन-धन, सब कुछ परमेश्‍वर की महिमा के लिए न्यौछावर कर दिया।

सन्‌ 1917 में वॉच टावर सोसाइटी ने पापा को पिलग्रीम यानी सफरी ओवरसियर बनाया। पापा ने पूरे कनाडा का दौरा किया। उन्होंने कई भाषण दिए, साथ ही “फोटो ड्रामा ऑफ क्रिएशन” के चलचित्र और स्लाइड शो भी दिखाए। वे जहाँ कहीं भी स्लाइड शो दिखाते, थियेटर हमेशा दर्शकों से खचाखच भरा रहता। उनको किस शहर में कब जाना है, इसका शैड्यूल द वॉचटावर पत्रिका में 1921 तक छपता रहा।

एक बार विन्‍नीपॆग अखबार में यह खबर छपी कि प्रचारक यंग का भाषण सुनने के लिए बहुत बड़ी भीड़ जमा हुई थी। मगर हॉल में तिल रखने की भी जगह नहीं थी। इसलिए लगभग 2,500 लोग ही उनका भाषण सुन पाए और बाकी लोगों को निराश लौटना पड़ा। इसके बाद ओटावा में पापा ने एक दिलचस्प विषय पर भाषण दिया: “नरक से लौट आना।” इसके बारे में एक बुज़ुर्ग आदमी ने बताया: “जब भाषण खत्म हुआ तो जॉर्ज यंग ने एक कतार में बैठे पादरियों को नरक के विषय पर चर्चा करने के लिए स्टेज पर बुलाया। मगर उनमें से एक भी अपनी कुर्सी से हिला तक नहीं! तभी मुझे यकीन हो गया कि मुझे सच्चा धर्म मिल गया है।”

पापा सफरी काम में हमेशा व्यस्त रहते थे और उन्हें जो भी समय मिलता उसे वे परमेश्‍वर की सेवा और पर्सनल स्टडी में लगा देते थे। इसलिए जब उन्हें अगले इलाके में जाना होता तो वे ट्रेन पकड़ने के लिए अकसर भाग-भागकर जाते थे। जब उन्हें कार से जाना होता, तो वे तड़के ही निकल जाते थे। वे प्रचार काम में काफी जोशीले थे, साथ ही दूसरों की बहुत परवाह करते थे और बड़े ही दिलदार इंसान थे।

पापा कई अधिवेशनों में हाज़िर हुए। मगर सन्‌ 1918 का अधिवेशन उनके लिए एक यादगार अधिवेशन था। यह एलबरटा के एडमन्टन शहर में हुआ था और उसमें परिवार के सभी सदस्य नॆल्ली के बपतिस्मा पर आए थे। यहीं आखिरी दफा सभी भाई एक-साथ इकट्ठे हुए थे। क्योंकि दो साल बाद निमोनिया की वज़ह से मैलकम की मौत हो गई। दादाजी और उनके तीनों बेटों की तरह मैलकम को भी स्वर्ग में जीने की आशा थी। इन सभी लोगों ने अपनी आखिरी साँस तक परमेश्‍वर की सेवा वफादारी से की।—फिलिप्पियों 3:14.

विदेश की ओर रवाना

सन्‌ 1921 के सितंबर में, जब कनाडा में पापा का सफरी भेंट खत्म हुआ तो वॉच टावर सोसाइटी के उस समय के अध्यक्ष जोसेफ एफ. रदरफर्ड ने उन्हें कैरिबियन द्वीप जाने को कहा। इस द्वीप पर पापा ने जहाँ कहीं भी “फोटो-ड्रामा ऑफ क्रिएशन” का शो दिखाया, लोगों को बहुत पसंद आया। उन्होंने ट्रिनिडाड से लिखा: “थियेटर इतना भरा हुआ था कि कई लोगों को निराश लौटना पड़ा। दूसरी रात तो और भी भीड़ लगी थी, थियेटर अंदर-बाहर से पूरी तरह ठसाठस भरा था।”

फिर 1923 में पापा को ब्राज़ील भेजा गया। वहाँ उनका भाषण सुनने के लिए बहुत बड़ी भीड़ जमा हुई थी। भाषण का अनुवाद करने के लिए कई बार उन्होंने बाहर से अनुवादक बुलाए थे। दिसंबर 15, 1923 के द वॉचटावर में लिखा है: “जून 1 से सितंबर 30 तक भाई यंग ने 21 जगह भाषण दिए। इस दौरान कुल 3,600 लोग जमा हुए। 48 बार कलीसिया की सभाएँ आयोजित कीं जिनमें कुल 1,100 लोग जमा हुए। और पुर्तगाली भाषा में तकरीबन 5,000 साहित्य मुफ्त में बाँटे।” “आज ज़िंदा करोड़ों लोग, कभी नहीं मरेंगे” इस विषय पर जब पापा ने भाषण दिया तो कई लोगों में सच्चाई के लिए दिलचस्पी जगी।

ब्राज़ील में 8 मार्च, 1997 को जब ब्राँच की नई इमारत का समर्पण हुआ तो एक समर्पण-ब्रोशर निकाली गई। उसमें लिखा था: 1923 में जॉर्ज यंग ब्राज़ील आए। उन्हीं के निर्देशन में रियो द जेनीरो के बीच शहर में एक ब्राँच ऑफिस बनवाया गया।” उस समय ब्राज़ील में स्पैनिश भाषा में बाइबल समझानेवाली किताबें मिलती थीं। मगर पुर्तगाली भाषा में पत्रिकाओं की सख्त ज़रूरत थी क्योंकि वहाँ ज़्यादातर लोग पुर्तगाली बोलते थे। इसलिए 1 अक्‍तूबर, 1923 से द वॉचटावर पुर्तगाली भाषा में भी छपने लगा।

पापा ने ब्राज़ील में जो सेवा की वह उनकी सुनहरी यादों में से है। वहाँ उनको अच्छे अनुभव हुए। उनकी मुलाकात एक रईस पुर्तगाली आदमी से हुई जिसका नाम था जासीन्टू पीमन्टल कॉब्राल। इस आदमी ने अपने घर में सभाएँ आयोजित करने की इजाज़त दी और फिर कुछ समय बाद उसने बाइबल की सच्चाई भी स्वीकार कर ली। बाद में वह ब्राज़ील के बेथेल परिवार का सदस्य बन गया। पापा की मुलाकात एक और पुर्तगाली जवान, मैनवॆल डा सील्वा जोर्डाओ से हुई जो माली का काम करता था। पापा का एक भाषण सुनने के बाद उसमें ऐसा जोश पैदा हुआ कि वह कॉलपोर्टर यानी पायनियर बनकर परमेश्‍वर की पूर्ण-समय सेवा करने के लिए अपने देश पुर्तगाल लौट गया।

पापा पूरे ब्राज़ील में ट्रेन से दूर-दूर तक सफर करते थे और दिलचस्पी दिखानेवालों को ढूँढ़ निकालते थे। एक बार उन्हें बोनी और काटारीना ग्रीन मिले। वे उनके साथ दो हफ्ते तक रहकर उन्हें बाइबल से सच्चाइयाँ बताते रहे। इसके बाद उनके खानदान से सात लोगों ने यहोवा को समर्पण करके बपतिस्मा लिया।

पापा का एक और दिलचस्प अनुभव सेराह बेलोना फरगीसन के बारे में है। वह पहले अमरीका में रहती थी, मगर 1867 में अपने बड़े भाई इरामुस फुलटन स्मिथ और परिवार के बाकी सदस्यों के साथ ब्राज़ील में आकर बस गई। 1899 से उसे हर महीने डाक द्वारा वॉचटावर पत्रिका मिलती थी। 1923 में उसकी मुलाकात पापा से हुई। तब तक वह और उसके चार बेटे साथ ही एक और स्त्री जिसे पापा, आंटी सैली कहते थे, बपतिस्मा के लिए तैयार थे। सेराह तो बस इसी इंतज़ार में थी कि कोई साक्षी आकर उसे मिले। पापा से मिलकर वह बेहद खुश हुई। और 11 मार्च, 1924 को उन सभी ने बपतिस्मा ले लिया।

इसके बाद पापा दक्षिण अमरीका की ओर रवाना हो गए। नवंबर 8, 1924 को उन्होंने पेरू से यह खत लिखा: “मैंने अब तक लीमा और कायाओ शहरों में 17,000 ट्रैक्ट बाँट दिए हैं।” फिर वे ट्रैक्ट बाँटने के लिए बोलिविया रवाना हो गए। वहाँ के बारे में उन्होंने लिखा: “परमेश्‍वर की आशीष से हमारी मेहनत रंग ला रही है। एमॆज़ोन के रहनेवाले एक आदमी ने मेरी बहुत मदद की। जाते वक्‍त वह अपने साथ 1,000 ट्रैक्ट और कुछ किताबें भी ले जा रहा है।”

पापा की कड़ी मेहनत की वज़ह से मध्य और दक्षिण अमरीका के कई देशों में सच्चाई का बीज बोया गया। इस बारे में दिसंबर 1, 1924 के वॉचटावर में लिखा था: “हमारे प्यारे भाई जॉर्ज यंग दो साल से ज़्यादा समय से दक्षिण अमरीका में सेवा कर रहे हैं। . . . उन्हें स्ट्रेट्‌स ऑफ मैगलन के पुन्टा एरेना में भी सच्चाई के बीज बोने का सुअवसर मिला।” पापा ने कोस्टा रिका, पनामा और वेनज़ुएला जैसे देशों में भी जाकर राज्य संदेश सुनाया। इस दरमियान मलेरिया की वज़ह से पापा की तबियत बहुत खराब हो गई थी, मगर फिर भी उन्होंने प्रचार करना नहीं छोड़ा।

यूरोप में प्रचार

मार्च 1925 में पापा जहाज़ से यूरोप के लिए चल पड़े। उनकी बहुत-सी योजनाएँ थीं। वे स्पेन और पुर्तगाल देश में कम-से-कम 3,00,000 ट्रैक्ट बाँटना चाहते थे और भाई रदरफर्ड के जन भाषण के लिए कुछ इंतज़ाम करना चाहते थे। मगर स्पेन में आकर उन्हें पता चला कि वहाँ के लोग, किसी और धर्म के बारे में कुछ भी सुनना पसंद नहीं करते। इसलिए पापा ने भाई रदरफर्ड को अपने भाषण की योजना रद्द करने के लिए कहा।

मगर भाई रदरफर्ड ने जवाब में यशायाह 51:15, 16 का यह वचन लिखा: ‘मैं तुझे अपना वचन दूँगा। मैं तुझे अपने हाथों से ढक कर तेरी रक्षा करूँगा। मैं तुझसे नया आकाश और नयी धरती बनवाऊँगा। मैं तुम्हारे द्वारा सिय्योन को यह कहलवाने के लिए कि “तुम मेरे लोग हों,” तेरा उपयोग करूँगा।’ (ईज़ी-टू-रीड-वर्शन) तब पापा ने यह तय किया: “बेशक प्रभु की यही इच्छा है कि मैं अपना काम जारी रखूँ और अंजाम उसके हाथ में छोड़ दूँ।”

सन्‌ 1925, 10 मई के दिन भाई रदरफर्ड ने स्पेन में बारकीलोना शहर के नोवाडॉडॆस थियेटर में भाषण दिया जिसका अनुवाद भी किया गया। कुल 2,000 से ज़्यादा लोग हाज़िर हुए जिसमें एक सरकारी अधिकारी और एक बॉडीगॉर्ड भी था। मेड्रिड में भी ऐसा ही हुआ और वहाँ भाषण सुनने के लिए 1,200 लोग इकट्ठे हुए थे। भाषण का लोगों पर बढ़िया असर हुआ। बहुत लोगों ने सच्चाई में दिलचस्पी दिखाई। नतीजा यह हुआ कि स्पेन में एक ब्राँच ऑफिस बनाया गया। 1978 इयरबुक ऑफ जॆहोवाज़ विट्‌नेसेस कहता है कि ब्राँच “जॉर्ज यंग के निर्देशन में बनाया गया।”

मई 13, 1925 को भाई रदरफर्ड ने पुर्तगाल के लिसबोन शहर में भाषण दिया। हालाँकि वहाँ के पादरियों ने कुर्सियाँ तोड़-फोड़कर और हंगामा मचाकर कार्यक्रम में खलल डालने की पूरी कोशिश की, मगर फिर भी कार्यक्रम सफल रहा। स्पेन और पुर्तगाल में रदरफर्ड के भाषणों के बाद पापा ने “फोटो-ड्रामा” के शो दिखाना जारी रखा। उन्होंने इन शहरों में बाइबल की किताबें छापने और उसे बँटवाने का भी इंतज़ाम किया। और 1927 में उन्होंने रिपोर्ट दी कि सुसमाचार “स्पेन के हरेक शहर और नगर में पहुँचा दिया गया है।”

सोवियत संघ के देशों में प्रचार

इसके बाद प्रचार काम के लिए पापा को सोवियत संघ भेजा गया। वे 28 अगस्त, 1928 को रूस पहुँचे। उन्होंने 10 अक्‍तूबर, 1928 में एक खत लिखा, जिसका अंश यूँ है:

“रूस की हालत देखकर मुझे वाकई यह एहसास हुआ कि परमेश्‍वर का राज्य आना कितना ज़रूरी है। मैं तहे दिल से यह प्रार्थना करता हूँ कि ‘तेरा राज्य आए।’ मैं अभी रूसी भाषा सीख रहा हूँ। हाँ, इसमें ज़रा वक्‍त लग रहा है। यहाँ मेरा अनुवादक बड़ा ही अनोखा इंसान है। वह यहूदी है मगर यीशु में बहुत विश्‍वास रखता है और बाइबल से बेहद प्यार करता है। मुझे यहाँ कुछ अच्छे अनुभव हुए हैं। मगर पता नहीं, लोग मुझे यहाँ और कितने दिन रहने देंगे। पिछले हफ्ते ही मुझे नोटिस मिली कि 24 घंटे के अंदर यहाँ से निकल जाओ। मगर जैसे-तैसे मामले को ठीक किया गया है इसलिए मुझे कुछ और समय तक रहने की इजाज़त मिल गई है।”

यूक्रेन के एक बड़े शहर, खार्कोव में कुछ बाइबल विद्यार्थी रहते थे। पापा जब उन लोगों से मिलने गए तो उन्हें इतनी खुशी हुई कि उनकी आँखों में आँसू भर आए। फिर हर रात, एक छोटा-सा अधिवेशन होता था, जो आधी रात तक चलता था। वहाँ के भाइयों के बारे में पापा ने लिखा: “यहाँ हमारे भाइयों के पास जो थोड़ी-बहुत किताबें थीं, उन्हें भी वहाँ के अधिकारियों ने छीन ली। वे भाइयों के साथ बहुत ही रूखा व्यवहार करते हैं, इसके बावजूद हमारे भाई यहोवा की सेवा में खुश हैं।”

जून 21, 1997 के दिन जब रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में एक नया ब्राँच समर्पित किया गया, तब एक नया ब्रोशर लोगों में बाँटा गया। उसमें सोवियत संघ के देशों में पापा के प्रचार काम के बारे में कुछ बातें छापी गई। उसमें लिखा है कि पापा को मॉस्को भेजा गया और तब उन्हें “रूस में दो अंग्रेज़ी पुस्तिकाओं की 15,000 कॉपियाँ छापने और बाँटने की इजाज़त मिली। एक का नाम था, लोगों के लिए स्वतंत्रता और दूसरा, मरे हुए कहाँ हैं?”

रूस से लौटने के बाद पापा को सफरी काम के लिए अमरीका भेजा गया। दक्षिण दकोटा में वे नलीना और वर्डा पूल नामक दो सगी बहनों के घर गए। यहोवा की सेवा में पापा की लगन और मेहनत देखकर दोनों बहनें बहुत प्रभावित हुईं। ये दोनों बहनें बाद में पेरू में मिशनरी बनीं। एक बार जब मैंने उनसे पापा के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा: “उन दिनों भले ही भाइयों को बहुत कम में गुज़ारा करना पड़ता था, मगर फिर भी पायनियरिंग के लिए उनका जोश वाकई देखते बनता था! वे दुनिया के किसी भी कोने में जाकर सेवा करने को तैयार रहते थे। यहोवा के लिए उनके दिल में प्यार हमेशा उमड़ता रहता था। इसलिए तो वे अपने मिशनरी काम में इतने सफल रहे।”

शादी और दूसरा दौरा

सन्‌ 1931 में कोलंबस, ओहायो में जिस अधिवेशन में बाइबल विद्यार्थियों ने ‘यहोवा के साक्षी’ नाम अपनाया था, उसमें पापा भी हाज़िर हुए थे। (यशायाह 43:10-12) वहाँ उनकी दोस्त क्लारा हब्बर्ट भी थी जो ओन्टारियो, मनाटूलॆन द्वीप में रहती थी। दोनों ही कई सालों से एक दूसरे को खत लिखा करते थे। और उस अधिवेशन के एक हफ्ते बाद उन्होंने शादी कर ली। और फिर कुछ समय बाद पापा कैरिबियन द्वीपों में अपने दूसरे मिशनरी दौरे पर निकल पड़े। वहाँ उन्होंने भाइयों को सभाएँ आयोजित करना और घर-घर जाकर प्रचार करना सिखाया।

पापा ने मम्मी को सुरीनाम, सेंट किटस्‌ और कई दूसरी जगहों की तस्वीरें और पोस्टकार्ड भेजे थे। वे जिस देश में प्रचार के लिए जाते थे, वहाँ हो रही तरक्की के बारे में, साथ ही कभी-कभी वहाँ के पक्षियों, जानवरों और पेड़-पौधों के बारे में भी खत में लिखते थे। जून 1932 में उन्होंने कैरिबियन में अपना मिशनरी काम खत्म किया और जहाज़ से कनाडा लौट आए। सफर के दौरान वे हमेशा कम दामोंवाली टिकट ही खरीदा करते थे। उनके कनाडा लौटने के बाद, मम्मी ने भी पूर्ण समय की सेवा शुरू कर दी। उन दोनों ने 1932/33 के ठंड के मौसम में ओटावा में जाकर प्रचार किया। उनके साथ पूर्ण समय सेवा करनेवाले भाई-बहनों का बहुत बड़ा ग्रूप भी था।

परिवार का सुख, सिर्फ कुछ दिनों का

सन्‌ 1934 में मेरे भैया डेविड पैदा हुए। जब वे छोटे थे, तब से ही मम्मी के हैट रखनेवाले बक्स पर खड़े होकर “भाषण” देने की प्रैक्टिस करते थे। पापा की तरह भैया ने भी पूरी ज़िंदगी जोश के साथ यहोवा की सेवा की। जब पापा सफरी काम के लिए कार से कनाडा के पूर्व से पश्‍चिम तक की सभी कलीसियाओं में भेंट करने के लिए जाते, तो अकसर मम्मी और भैया भी उनके साथ सफर करते थे। कार के ऊपर लाउडस्पीकर लगा होता था। 1938 में पापा ब्रिटिश कोलंबिया में मिशनरी काम कर रहे थे और उसी साल मैं पैदा हुई। डेविड भैया मुझे बताते थे कि किस तरह पापा मुझे बिस्तर पर लिटाते, फिर भैया और मम्मी के साथ पापा घुटनों के बल बैठकर मेरे लिए प्रार्थना करते।

सन्‌ 1939 के जाड़े में हम वैनकूवर शहर में रहते थे और पापा वहाँ की अलग-अलग कलीसियाओं को भेंट करने के लिए जाते थे। उन सालों के दौरान पापा ने हमें कई चिट्ठियाँ लिखीं। एक चिट्ठी थी, 14 जनवरी 1939 की जब वे वर्नन शहर में थे। पापा ने मम्मी, भैया और मुझे लिखा, “तुम सबको मेरा बहुत-बहुत प्यार।” उस चिट्ठी में हम सभी के लिए एक-एक संदेश था। उन्होंने यह भी लिखा था कि वहाँ कटनी के लिए काम तो बहुत है, मगर मज़दूर थोड़े हैं।—मत्ती 9:37, 38.

अपना सफरी काम खत्म करने के बाद पापा जब वैनकूवर लौटे तो एक हफ्ते बाद, एक दिन अचानक ही मीटिंग के दौरान गिर पड़े। जाँच करने पर पता चला कि उन्हें कैंसर है। उन्हें ब्रेन ट्यूमर हो गया था। और फिर 1 मई, 1939 के दिन, उनका धरती पर का जीवन समाप्त हो गया। तब मैं सिर्फ नौ महीने की थी और भैया करीब पाँच साल के। कुछ साल बाद जून 19, 1963 में हमारी प्यारी माँ भी चल बसीं। पापा की तरह उन्हें भी स्वर्ग में जीने की आशा थी। वे मरते दम तक यहोवा की वफादार रहीं।

पापा को अलग-अलग देशों में जाकर सुसमाचार सुनाना कैसा लगता था, इसके बारे में हमें कुछ अंदाज़ा, मम्मी को लिखे उनके एक खत से मिलता है। उन्होंने लिखा: “यह सचमुच यहोवा की कृपा है कि उसने मुझे अलग-अलग देशों में जाकर सच्चाई की ज्योति फैलाने के लिए चुना। उसके पवित्र नाम की महिमा होती रहे। यहोवा हम जैसे मामूली, कमज़ोर इंसानों के ज़रिए भी अपनी स्तुति करवाता है। और इससे उसकी महिमा और भी बढ़ती है।”

अब हम यानी उनके बच्चे, नाती-पोते और परपोते भी दिलो-जान से यहोवा की सेवा कर रहे हैं। मुझे बताया गया कि पापा अकसर इब्रानियों 6:10 की बात कहा करते थे कि “परमेश्‍वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये . . . दिखाया।” हम भी अपने पापा का काम नहीं भूले हैं।

[पेज 23 पर तसवीर]

अपने तीन भाइयों के साथ, पापा दायीं ओर खड़े हैं

[पेज 25 पर तसवीरें]

भाई वुडवर्थ, रदरफर्ड और मैकमिलन; पापा पीछे खड़े हैं

नीचे: भाई रसल के साथ ग्रूप में; पापा बायीं ओर खड़े हैं

[पेज 26 पर तसवीरें]

मम्मी और पापा

नीचे: उनकी शादी के दिन

[पेज 27 पर तसवीर]

पापा की मौत के कुछ साल बाद मैं और भैया, मम्मी के साथ