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पूरे उत्साह से सुसमाचार का प्रचार कीजिए

पूरे उत्साह से सुसमाचार का प्रचार कीजिए

पूरे उत्साह से सुसमाचार का प्रचार कीजिए

“आत्मिक उत्साह से परिपूर्ण रहो, और प्रभु की सेवा करते रहो।”रोमियों 12:11, NHT.

1, 2. हमें प्रचार का काम किस तरह करना चाहिए?

 एक युवक को एक नयी नौकरी मिलती है। वह बहुत ही खुश है। नौकरी के पहले दिन वह बेसब्री से इस इंतज़ार में है कि कब उसका मालिक उसे कुछ हिदायतें देगा। जब उसका मालिक उसे पहला काम देता है, तो वो उसे पूरे उत्साह और जोश के साथ और मन लगाकर करता है।

2 उस युवक की तरह हम मसीहियों को भी पहला काम मिला है। और वो है राज्य के सुसमाचार का प्रचार करना। (1 थिस्सलुनीकियों 2:4) लेकिन हम यह क्यों कहते हैं कि प्रचार करना हमारा पहला काम है? क्योंकि हमें तो हमेशा-हमेशा जीने की आशा है, जिस दौरान यहोवा हमें और भी बहुत से काम देगा। इस हिसाब से हमने तो अभी-अभी यहोवा की सेवा करनी शुरू की है। सो, उस युवक की तरह हम भी अपने पहले काम को, यानी प्रचार के काम को पूरे उत्साह और जोश के साथ और मन लगाकर करना चाहते हैं!

3. मसीही ज़िंदगी जीने के लिए हमें क्या करना होगा?

3 लेकिन प्रचार के काम में हमेशा अपना जोश बरकरार रखना इतना आसान नहीं है। क्योंकि इसके अलावा हमारी और भी कई ज़िम्मेदारियाँ होती हैं, जिन्हें पूरा करते-करते हम थककर पस्त हो जाते हैं। हालाँकि हम इन ज़िम्मेदारियों को, साथ ही प्रचार के काम को भी पूरा कर ही लेते हैं, मगर यह तो मानना होगा कि हमेशा ऐसा करते रहना मुश्‍किल है। (मरकुस 8:34) यीशु यह बात अच्छी तरह जानता था, इसीलिए उसने कहा कि मसीही ज़िंदगी जीने के लिए हमें बहुत यत्न करना होगा।—लूका 13:24.

4. परमेश्‍वर की हमारी सेवा पर “जीवन की चिन्ताओं” का क्या असर हो सकता है?

4 हम पर बहुत सारी ज़िम्मेदारियाँ हैं और हमें “जीवन की चिन्ताओं” से भी जूझना पड़ता है। इन सबकी वज़ह से हम परमेश्‍वर की सेवा में सुस्त पड़ सकते हैं और हमारा जोश कम हो सकता है। (लूका 21:34, 35; मरकुस 4:18, 19) और असिद्ध होने की वज़ह से भी हम शायद “अपना पहिला सा प्रेम छोड़” दें। (प्रकाशितवाक्य 2:1-4) ऐसे में हो सकता है कि हम प्रचार का काम दिल से नहीं, बल्कि फर्ज़ समझकर करने लगें। तो अपने जोश और उत्साह को बरकरार रखने में बाइबल किस तरह हमारी मदद करती है?

जैसे ‘हृदय में धधकती हुई आग’

5, 6. प्रचार के काम के बारे में प्रेरित पौलुस का नज़रिया कैसा था?

5 यहोवा ने जो प्रचार का काम हमें सौंपा है वह कोई मामूली काम नहीं है बल्कि बहुत ही ज़रूरी काम है। प्रेरित पौलुस इस काम को एक सम्मान की बात समझता था। मगर उसे लगता था कि वह इस सम्मान के लायक है ही नहीं। इसलिए उसने कहा: “मुझे, जो सब पवित्र लोगों में छोटे से भी छोटा हूं, यह अनुग्रह प्राप्त हुआ कि मैं ग़ैरयहूदियों को मसीह के अथाह धन का सुसमाचार सुनाऊं, और सब पर यह प्रकाशित करूं कि उस रहस्य का प्रबन्ध क्या है जो सम्पूर्ण वस्तुओं के सृजनहार परमेश्‍वर में युगों से गुप्त था।”—इफिसियों 3:8, 9, NHT.

6 अपने प्रचार के काम के बारे में पौलुस का यह नज़रिया हमारे लिए बहुत बढ़िया मिसाल है। प्रचार के बारे में उसने रोम के मसीहियों को लिखा: “मैं . . . सुसमाचार-प्रचार करने के लिए उत्सुक हूँ।” वह सुसमाचार सुनाने से कभी लजाता नहीं था। (रोमियों 1:15, 16, NHT) वह सही नज़रिया रखते हुए और पूरे उत्साह के साथ अपनी सेवकाई को पूरा करता था।

7. पौलुस ने रोम के मसीहियों से क्या कहा?

7 इतना ही नहीं, प्रेरित पौलुस जानता था कि परमेश्‍वर की सेवा में अपना उत्साह कायम रखना कितना ज़रूरी है। इसीलिए उसने रोम के मसीहियों से कहा: “प्रयत्न करने में आलसी न हो, आत्मिक उत्साह से परिपूर्ण रहो, और प्रभु की सेवा करते रहो।” (रोमियों 12:11, NHT) सो हमें हमेशा होशियार रहना चाहिए कि कहीं हम आध्यात्मिक अर्थ में “आलसी” या सुस्त तो नहीं बन रहे। ऐसे लक्षण दिखाई देते ही हमें फौरन अपने आपको जाँचना होगा कि कहाँ हम सुधार कर सकते हैं।—नीतिवचन 22:3.

8. (क) यिर्मयाह के हृदय की दशा कैसी हो गयी और क्यों? (ख) यिर्मयाह के अनुभव से हम क्या सीख सकते हैं?

8 कभी-कभी निराश होने की वज़ह से भी हमारा उत्साह कम हो सकता है। ऐसे समयों में यहोवा अपनी पवित्र आत्मा के ज़रिए हमारा हौसला बढ़ाता है। यिर्मयाह की मिसाल लीजिए। एक बार वह इतना निराश हो गया था कि उसने सोचा कि वह प्रचार फिर कभी नहीं करेगा। उसने तो यहाँ तक कहा: “मैं उसकी [यहोवा की] चर्चा न करूंगा न उसके नाम से बोलूंगा।” क्या इसका मतलब यह है कि उसका विश्‍वास कमज़ोर पड़ गया था? जी नहीं। उसका विश्‍वास इतना मज़बूत था और यहोवा के लिए उसका प्यार इतना गहरा था कि वह प्रचार का काम बंद न कर सका। वह कहता है: “[अगर मैं परमेश्‍वर के वचन की चर्चा न करूँ] तो मेरे हृदय की ऐसी दशा होगी मानो मेरी हड्डियों में धधकती हुई आग हो, और मैं अपने को रोकते रोकते थक गया पर मुझ से रहा नहीं जाता।” (यिर्मयाह 20:9) यिर्मयाह की तरह, परमेश्‍वर के वफादार सेवक भी कभी-कभी निराश हो सकते हैं। ऐसे में वे यहोवा से मदद के लिए प्रार्थना कर सकते हैं। और जब यहोवा देखता है कि उनके दिल में भी परमेश्‍वर के वचन का प्रचार करने का उत्साह है, तो वह उन्हें अपनी पवित्र आत्मा देकर उनका हौसला बढ़ाता है।—लूका 11:9-13; प्रेरितों 15:8.

“पवित्र आत्मा की आग न बुझाओ”

9. पवित्र आत्मा की आग को हम कैसे बुझा सकते हैं?

9 अपना जोश कायम रखने के लिए हमें एक और बात को ध्यान में रखना होगा जिसे प्रेरित पौलुस ने थिस्सलुनिके के मसीहियों से कहा था: “पवित्र आत्मा की आग न बुझाओ।” (1 थिस्सलुनीकियों 5:19, नयी हिन्दी बाइबिल) जब किसी के काम या सोच-विचार परमेश्‍वर के उसूलों के खिलाफ होते हैं, तब वह खुद ही पवित्र आत्मा को अपने पर काम करने से रोकता है और इस तरह पवित्र आत्मा की आग बुझा देता है। (इफिसियों 4:30) क्या ऐसा हो सकता है कि हम मसीही पवित्र आत्मा की आग को बुझा दें? जी हाँ। हम मसीहियों को सुसमाचार सुनाने की आज्ञा मिली है। आज भले ही दुनियावाले इस काम का मज़ाक उड़ाएँ क्योंकि वे इसकी एहमियत नहीं जानते। लेकिन हम तो जानते हैं कि प्रचार का काम कितना ज़रूरी है और यह कितने बड़े सम्मान की बात है। इसलिए अगर हम मसीही, प्रचार के काम को जानबूझकर नज़रअंदाज़ करते हैं, तो हम परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा की आग को खुद बुझा देते हैं।

10. (क) लोगों की बातों का हम पर क्या असर पड़ सकता है? (ख) हमारे प्रचार के बारे में 2 कुरिन्थियों 2:17 में कौन-सा बढ़िया विचार बताया गया है?

10 जब हम प्रचार करते हैं, तो कुछ लोगों को यह गलतफहमी होती है कि हम घर-घर जाकर बस किताबें बेच रहे हैं, या चंदा माँग रहे हैं। लेकिन अगर लोगों की ऐसी बातों का हम अपने ऊपर असर होने देंगे, तो प्रचार के काम में हमारा जोश कम हो जाएगा। सो हमें प्रचार के काम को लोगों की नहीं बल्कि यहोवा और यीशु की नज़र से देखना चाहिए। प्रेरित पौलुस ने भी इस काम के बारे में कहा: “परमेश्‍वर के वचन को अपने लाभ के लिये, उसमें मिलावट करके बेचने वाले बहुत से दूसरे लोगों जैसे हम नहीं हैं। नहीं! हम तो परमेश्‍वर के सामने परमेश्‍वर की ओर से भेजे हुए व्यक्‍तियों के समान मसीह में स्थित होकर, सच्चाई के साथ बोलते हैं।” (तिरछे टाइप हमारे।)—2 कुरिन्थियों 2:17, ईज़ी टू रीड वर्शन।

11. सताहट और विरोध के बावजूद कौन-सी बात ने पहली सदी के मसीहियों को जोशीले रहने में मदद दी और उनकी मिसाल से हम क्या सीख सकते हैं?

11 प्रचार के काम में कभी-कभी हमारा विरोध किया जाता है या हमें सताया जाता है। पहली सदी में यीशु के चेलों के साथ भी ऐसा ही हुआ था। उनका प्रचार बंद करवाने के लिए हुक्म जारी किया गया था और उन्हें धमकी भी दी गयी थी। मगर वे डरे नहीं। बाइबल बताती है कि “वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गए, और परमेश्‍वर का वचन हियाव [हिम्मत] से सुनाते रहे।” (प्रेरितों 4:17, 21, 31) इस घटना के कुछ साल बाद पौलुस ने तीमुथियुस को जो लिखा, उससे भी मसीहियों को प्रचार के बारे में सही नज़रिया रखने में मदद मिलती है: “परमेश्‍वर ने हमें भय [कायरता] की नहीं पर सामर्थ, और प्रेम, और संयम की आत्मा दी है। इसलिये हमारे प्रभु की गवाही से, और मुझ से जो उसका कैदी हूं, लज्जित न हो, पर उस परमेश्‍वर की सामर्थ के अनुसार सुसमाचार के लिये मेरे साथ दुख उठा।”—2 तीमुथियुस 1:7, 8.

हमारा फर्ज़

12. प्रचार करने का हमारा सबसे प्रमुख कारण क्या है?

12 जब हम सही इरादे से प्रचार करेंगे, तो प्रचार के बारे में हमारा नज़रिया भी सही होगा। सो हमें जानना चाहिए कि हम प्रचार क्यों करते हैं? भजनहार हमें इसका सबसे प्रमुख कारण बताता है: “हे यहोवा, . . . तेरे भक्‍त लोग तुझे धन्य कहा करेंगे! वे तेरे राज्य की महिमा की चर्चा करेंगे, और तेरे पराक्रम के विषय में बातें करेंगे; कि वे आदमियों पर तेरे पराक्रम के काम और तेरे राज्य के प्रताप की महिमा प्रगट करें।” (भजन 145:10-12) जी हाँ, सबके सामने यहोवा की स्तुति करने और उसके नाम को पवित्र ठहराने के इरादे से ही हम प्रचार करते हैं। चाहे लोग हमारी बातें सुनें या न सुनें, हमारे प्रचार करने से यहोवा की स्तुति होती है।

13. सुसमाचार का प्रचार करने के और कौन-से कारण हैं?

13 हम प्रचार इसलिए भी करते हैं क्योंकि हम लोगों के विनाश के ज़िम्मेदार नहीं होना चाहते। (यहेजकेल 33:8; मरकुस 6:34) प्रेरित पौलुस भी ऐसा ही सोचता था। उसने कहा: “मैं यूनानियों और अन्यभाषियों का और बुद्धिमानों और निर्बुद्धियों का कर्जदार हूं।” (रोमियों 1:14) जैसे एक कर्ज़दार की ज़िम्मेदारी होती है कि वह अपना कर्ज़ चुकाए, उसी तरह पौलुस अपनी ज़िम्मेदारी समझता था कि वह दूसरों को सुसमाचार सुनाए मानो वह उनका कर्ज़दार हो। वह जानता था कि परमेश्‍वर चाहता है कि “सब मनुष्यों का उद्धार हो।” (1 तीमुथियुस 2:4) पौलुस की तरह आज हमारी भी यही ज़िम्मेदारी बनती है कि हम लोगों को प्रचार करें। इतना ही नहीं, प्रचार करने के पीछे एक और वज़ह है प्रेम। खुद यहोवा इंसानों से इतना प्रेम करता है कि उसने अपने बेटे को भेजा ताकि वह हमारे लिए अपनी जान दे। (यूहन्‍ना 3:16) उसने कितनी बड़ी कुर्बानी दी! यहोवा की तरह हम भी लोगों से प्रेम करते हैं। तो क्या हमें लोगों को सुसमाचार सुनाने के लिए समय नहीं निकालना चाहिए, मेहनत नहीं करनी चाहिए?

14. समझाइए कि बाइबल “संसार” को किस नज़र से देखती है।

14 हमें हिम्मत के साथ प्रचार करना है, मगर इसका मतलब यह नहीं कि हम लोगों की आलोचना करें। हम हमेशा उन्हें इस नज़र से देखते कि वे आगे जाकर हमारे मसीही भाई-बहन बनेंगे। यह सच है कि बाइबल अकसर संसार की आलोचना करती है। मिसाल के तौर पर, पौलुस ने ‘इस संसार के ज्ञान’ और “सांसारिक अभिलाषाओं” से दूर रहने की चेतावनी दी। (1 कुरिन्थियों 3:19; तीतुस 2:12) एक बार उसने इफिसुस के मसीहियों से कहा कि जब वे “इस संसार की रीति पर” चल रहे थे, तब वे परमेश्‍वर की नज़र में “मरे हुए थे।” (इफिसियों 2:1-3) प्रेरित यूहन्‍ना ने भी कहा: “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।”—1 यूहन्‍ना 5:19.

15. प्रचार करते वक्‍त हमें क्या नहीं करना चाहिए और क्यों?

15 दरअसल बाइबल उस “संसार” की आलोचना करती है जो परमेश्‍वर से दूर है। वह संसार में रहनेवाले हर इंसान की आलोचना नहीं करती। इसलिए जब लोगों को हम प्रचार करते हैं तो हमें उनके बारे में पहले से ही कोई राय नहीं बना लेनी चाहिए कि वे सुसमाचार नहीं सुनेंगे। ना ही यह तय करना हमारा काम है कि वे ‘भेड़’ हैं या ‘बकरी।’ यहोवा ने यह काम यीशु को दिया है, सो वही इसका फैसला करेगा, हम नहीं। (मत्ती 25:31-46) साथ ही, आज ऐसे कई लोगों की मिसाल देखी जा सकती है जो पहले बहुत ही बुरे थे, मगर उन्होंने सुसमाचार सुना, अपनी ज़िंदगी में बड़े-बड़े बदलाव किए और परमेश्‍वर की राह पर चलने लगे। सो, हालाँकि हम बुराई के कीचड़ में फँसे लोगों से मेल-जोल रखना तो नहीं चाहते हैं, मगर मौका आने पर हम उन्हें राज्य का सुसमाचार सुनाने से नहीं झिझकते। बाइबल भी ऐसे लोगों के बारे में बताती है जो मसीही न होते हुए भी ‘अनन्त जीवन के लिये ठहराए हुए थे’ और जो आगे जाकर मसीही बन गए थे। (प्रेरितों 13:48) हम नहीं जानते कि कौन अनंत जीवन के लिए ठहराया गया है और कौन नहीं, सो हमें बार-बार लोगों के पास जाकर गवाही देनी होगी। इसीलिए हम सभी लोगों के साथ “नम्रता और भय” सहित पेश आते हैं और यह उम्मीद करते हैं कि आज नहीं तो कल, उनमें से कुछ लोग हमारा संदेश सुनकर जीवन की राह पर चलने लगेंगे।—2 तीमुथियुस 2:25; 1 पतरस 3:15.

16. दूसरों को ‘शिक्षा देने’ की कला में हम क्यों निपुण होना चाहते हैं?

16 लोगों को सिखाने की कला विकसित करने के द्वारा भी हम प्रचार के काम में अपना उत्साह बढ़ा सकते हैं। मिसाल के लिए, अगर किसी व्यक्‍ति को क्रिकेट खेलना नहीं आता, तो उसे क्रिकेट खेलने में मज़ा भी नहीं आएगा। लेकिन जो क्रिकेट अच्छी तरह खेल लेता है, वह पूरे उत्साह और जोश के साथ क्रिकेट खेलेगा। उसी तरह, मसीही अपनी सेवकाई, तभी उत्साह और जोश से कर पाएँगे जब वो दूसरों को ‘शिक्षा देने’ की कला में निपुण होंगे। (2 तीमुथियुस 4:2; तीतुस 1:9) पौलुस ने तीमुथियुस को सलाह दी: “अपने आप को परमेश्‍वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करनेवाला ठहराने का प्रयत्न कर, जो लज्जित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो।” (2 तीमुथियुस 2:15) तो फिर, हम अपने सिखाने की कला को कैसे बेहतर बना सकते हैं?

17. हम बाइबल का ज्ञान लेने की “लालसा” कैसे पैदा कर सकते हैं और इससे प्रचार में हमें क्या मदद मिलेगी?

17 सिखाने की कला को बेहतर बनाने का एक तरीका है, बाइबल का सही-सही और गहरा ज्ञान लेना। प्रेरित पतरस ने कहा: “नये जन्मे हुए बच्चों की नाईं निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो, ताकि उसके द्वारा उद्धार पाने के लिये बढ़ते जाओ।” (1 पतरस 2:2) एक स्वस्थ बच्चा भूख लगते ही अपने-आप दूध की लालसा करता है। मगर मसीहियों को बाइबल का ज्ञान लेने की “लालसा” पैदा करनी पड़ती है। वे यह “लालसा” कैसे पैदा कर सकते हैं? लगातार गहराई से अध्ययन करने की आदत बनाने के द्वारा। (नीतिवचन 2:1-6) इसके लिए हममें लगन और अनुशासन होना चाहिए और हमें मेहनत करने के लिए तैयार रहना चाहिए। तभी हम सिखाने की कला में निपुण होंगे। और हमारी इस मेहनत का फल हमें ज़रूर मिलेगा। बाइबल की गहरी स्टडी करने के द्वारा हम आत्मिक जोश से भरे रहेंगे और सीखी हुई बातों को दूसरों को बताने के लिए उत्साही होंगे।

18. मसीही सभाएँ कैसे हमारी सिखाने की कला को बेहतर बना सकती हैं?

18 सिखाने की कला को बेहतर बनाने का एक और तरीका है मसीही सभाओं में जाना। जब भाषणों के दौरान बाइबल की कोई आयत पढ़ी जाती है, तो हम भी अपनी बाइबल खोलकर वह आयत पढ़ सकते हैं। साथ ही, हम सभाओं में, खासकर प्रचार से संबंधित भाषणों पर पूरा-पूरा ध्यान दे सकते हैं। हम डॆमोंस्ट्रेशन से भी काफी कुछ सीख सकते हैं, इसलिए हमें अपना ध्यान यहाँ-वहाँ भटकने नहीं देना चाहिए। इसके लिए हमें खुद को अनुशासित करना पड़ेगा। (1 तीमुथियुस 4:16) सभाएँ हमारा विश्‍वास मज़बूत करती हैं, बाइबल का अध्ययन करने के लिए हममें लालसा पैदा करती हैं, और सुसमाचार सुनाने के लिए हममें जोश पैदा करती हैं।

यहोवा हमारी मदद ज़रूर करेगा

19. प्रचार के काम में लगे रहना क्यों ज़रूरी है?

19 जिन भाई-बहनों में “आत्मिक उत्साह” होता है और जिनमें सुसमाचार सुनाने का जोश रहता है, वे हमेशा प्रचार के काम में लगे रहते हैं। (इफिसियों 5:15, 16) हाँ, हरेक के हालात अलग-अलग होते हैं और हम हमेशा जितना चाहते हैं उतना समय प्रचार में नहीं बिता पाते। (गलतियों 6:4, 5) मगर यह ज़रूरी नहीं कि हम प्रचार में कितने घंटे बिताते हैं। ज़रूरी यह है कि क्या हम प्रचार करने के लिए हर मौके का फायदा उठाते हैं और हमेशा इस काम में लगे रहते हैं। (2 तीमुथियुस 4:1, 2) यह क्यों ज़रूरी है? क्योंकि जितना ज़्यादा हम बात करेंगे, उतना ही ज़्यादा हम इस काम का महत्त्व समझेंगे। (रोमियों 10:14, 15) जब हम ऐसे लोगों से बात करते हैं जो आहें भरते और दुःख के मारे चिल्लाते हैं, और जिनके पास भविष्य की कोई आशा नहीं है, तो हममें करुणा और हमदर्दी के गुण पैदा होते हैं। और जितना ज़्यादा हममें लोगों के लिए हमदर्दी होगी, उतना ही ज़्यादा हम प्रचार के काम में लगे रहेंगे।—यहेजकेल 9:4; रोमियों 8:22.

20, 21. (क) हमें अब भी कौन-सा काम करना बाकी है? (ख) यहोवा हमारी मदद किस तरह कर रहा है?

20 यहोवा ने हमें सुसमाचार प्रचार करने का काम सौंपा है। उसके ‘सहकर्मियों’ के तौर पर यह हमारा पहला काम है। (1 कुरिन्थियों 3:6-9) सो हम पूरे उत्साह और जोश के साथ और पूरा मन लगाकर यह काम करना चाहते हैं। (मरकुस 12:30; रोमियों 12:1) आज भी दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जो सच्चाई जानने के लिए तरस रहे हैं और जो अनंत जीवन पाने के लिए ठहराए गए हैं। सो अब भी काफी काम करना बाकी है। मगर हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि हमारी सेवकाई को पूरा करने में यहोवा हमारी मदद ज़रूर करेगा।—2 तीमुथियुस 4:5.

21 हमारी मदद करने के लिए यहोवा हमें अपनी पवित्र आत्मा, साथ ही “आत्मा की तलवार” यानी बाइबल देता है, जिससे हम ‘साहस के साथ सुसमाचार के रहस्य को प्रकट कर सकते हैं।’ (इफिसियों 6:17-20, NHT) ऐसा हो कि हमारा जोश देखकर लोग वही कहें जैसा प्रेरित पौलुस ने थिस्सलुनीकिया के मसीहियों से कहा था: “हमारा सुसमाचार तुम्हारे पास न केवल वचन मात्र ही में बरन सामर्थ और पवित्र आत्मा, और बड़े निश्‍चय के साथ पहुंचा है।” (1 थिस्सलुनीकियों 1:5) हाँ, आइए हम सब बड़ी उत्सुकता और जोश के साथ प्रचार के काम में लगे रहें!

आइए, एक बार फिर देखें

• प्रचार के काम में हमारे उत्साह पर “जीवन की चिन्ताओं” का क्या असर हो सकता है?

• सुसमाचार सुनाने की हमारी इच्छा किस तरह से हमारे दिलों में “धधकती हुई आग” के जैसी होनी चाहिए?

• हमें प्रचार के काम को किस नज़र से देखना चाहिए?

• संसार के लोगों के बारे में हमारा नज़रिया कैसा होना चाहिए?

• प्रचार काम में अपने उत्साह को बरकरार रखने में यहोवा किस तरह हमारी मदद करता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 9 पर तसवीर]

पौलुस और यिर्मयाह की तरह मसीही भी जोश के साथ प्रचार करते हैं

[पेज 10 पर तसवीर]

हम परमेश्‍वर और लोगों से प्रेम करते हैं, इसलिए पूरे उत्साह के साथ प्रचार काम में लगे रहते हैं