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राज्य के बीज बोना

राज्य के बीज बोना

राज्य के बीज बोना

“भोर को अपना बीज बो, और सांझ को भी अपना हाथ न रोक।”सभोपदेशक 11:6.

1. आज मसीहियों के लिए सबसे ज़रूरी काम क्या है?

 पुराने ज़माने के इस्राएल में खेती-बाड़ी ही लोगों की रोज़ी-रोटी थी। इसीलिए यीशु अकसर खेती-बाड़ी से जुड़ी चीज़ों की मिसाल देकर लोगों को सच्चाई सिखाता था। मिसाल के तौर पर, उसने परमेश्‍वर के राज्य के प्रचार की तुलना बीज बोने के साथ की। (मत्ती 13:1-9, 18-23; लूका 8:5-15) आज परमेश्‍वर के राज्य का प्रचार करना, यानी लोगों के दिलों में परमेश्‍वर के वचन का बीज बोना हम मसीहियों के लिए सबसे ज़रूरी काम है।

2. हमारा प्रचार का काम क्यों ज़रूरी है, और इसे पूरा करने के लिए आज क्या-क्या किया जा रहा है?

2 अंत के इस समय में बाइबल सच्चाई का प्रचार करना बड़े सम्मान की बात है। रोमियों 10:14, 15 (NHT) साफ-साफ बताता है कि यह काम क्यों इतना ज़रूरी है: ‘वे प्रचारक के बिना कैसे सुनेंगे? और वे प्रचार कैसे करेंगे जब तक कि भेजे न जाएं? जैसा कि लिखा है, “उनके पांव कैसे सुहावने हैं जो भली बातों का सुसमाचार लाते हैं!”’ इसलिए यहोवा के साक्षी आज पूरे जोश से इस काम में जुटे हुए हैं। और वे बाइबल और बाइबल को समझानेवाली किताबों को 340 भाषाओं में प्रकाशित करते हैं। इन किताबों को तैयार करने में 18,000 से ज़्यादा स्वयंसेवक, अपने-अपने देश की शाखाओं और मुख्यालय में काम करते हैं। और लगभग साठ लाख साक्षी दुनिया भर में इन किताबों को बाँटने में जुटे हुए हैं।

3. प्रचार के काम का क्या नतीजा हो रहा है?

3 इस प्रचार के काम का क्या नतीजा हो रहा है? एक तो यह है कि पहली सदी की तरह ही आज भी काफी लोग परमेश्‍वर के वचन को अपनाकर मसीही बन रहे हैं। (प्रेरितों 2:41, 46, 47) दूसरा, प्रचार के काम से दुनिया भर में यह ज़रूरी गवाही दी जा रही है कि यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है और इससे उसके नाम की महिमा भी हो रही है। (मत्ती 6:9) और तीसरा, बाइबल का ज्ञान देने की वज़ह से आज लोगों की ज़िंदगी सुधर रही है और उन्हें अनंत जीवन की आशा मिल रही है।—प्रेरितों 13:47.

4. लोगों के लिए प्रेरितों के दिल में किस हद तक प्यार था?

4 जिन लोगों को हम प्रचार करते हैं उनके लिए हममें सच्चा प्यार होना चाहिए। पहली सदी में यीशु के शिष्यों के दिल में भी लोगों के लिए प्यार और ममता थी। वे किस हद तक लोगों से प्यार करते थे, यह हमें प्रेरित पौलुस के इन शब्दों से पता चलता है: “इस प्रकार तुम्हारे प्रति ममता होने के कारण हमें प्रसन्‍नता हुई कि न केवल तुम्हें परमेश्‍वर का सुसमाचार सुनाएं वरन्‌ तुम्हारे लिए अपने प्राणों को भी दे दें, क्योंकि तुम हमारे लिए अत्यन्त प्रिय हो गए थे।” (1 थिस्सलुनीकियों 2:8, NHT) लोगों को प्यार दिखाने में सबसे अच्छी मिसाल यीशु और स्वर्गदूतों ने रखी है। सो, आइए अब देखें कि प्रचार के काम में यीशु और स्वर्गदूत कैसे हिस्सा लेते हैं और यह भी देखें कि हम उनकी मिसाल से क्या सीख सकते हैं।

यीशु—राज्य का बीज बोनेवाला

5. जब यीशु पृथ्वी पर था तब उसके लिए कौन-सा काम सबसे ज़रूरी था?

5 यीशु एक सिद्ध इंसान था। अगर वह चाहता तो लोगों को बहुत धन-दौलत दे सकता था, इलाज के बेहतरीन तरीके ढूँढ़ सकता था या विज्ञान को नई ऊँचाइयों तक ले जा सकता था। मगर ऐसा करना उसका मकसद नहीं था। उसका मकसद था सुसमाचार का प्रचार करना। (लूका 4:17-21) अपने इस काम के बारे में उसने कहा: “मैं ने इसलिये जन्म लिया, और इसलिये जगत में आया हूं कि सत्य पर गवाही दूं।” (यूहन्‍ना 18:37) सो, यीशु के लिए लोगों को किसी और चीज़ के बारे में ज्ञान देना इतना ज़रूरी नहीं था जितना कि राज्य के बीज बोना और लोगों को परमेश्‍वर और उसके मकसद के बारे में बताना।—रोमियों 11:33-36.

6, 7. (क) यीशु ने अपने पुनरुत्थान के बाद चेलों से जो वादा किया, उसका मतलब क्या था और वह इसे कैसे पूरा कर रहा है? (ख) प्रचार के बारे में आप यीशु से क्या सीख सकते हैं?

6 यीशु ने खुद को राज्य का बीज बोनेवाला कहा। (यूहन्‍ना 4:35-38) उसने हर मौके पर सुसमाचार के बीज बोए। जब उसे सूली पर चढ़ाया गया था तब भी उसने भविष्य में आनेवाली नयी दुनिया का सुसमाचार सुनाया था। (लूका 23:43) प्रचार के लिए उसका जोश और उत्साह उसकी मौत पर भी खत्म नहीं हुआ, क्योंकि जी उठने के कुछ ही समय बाद उसने अपने चेलों को आज्ञा दी कि वे राज्य के बीज बोते रहें और चेला बनाते रहें। साथ ही, यीशु ने अपने चेलों से यह वादा भी किया: “देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं।”—मत्ती 28:19, 20.

7 इस वादे का मतलब क्या था? इसका मतलब यह था कि यीशु ‘जगत के अन्त तक सदैव’ अपने चेलों के संग रहेगा, सुसमाचार सुनाने के काम में उनकी मदद करेगा, उनका मार्गदर्शन करेगा, और उन्हें सँभालेगा। और वह अपना वादा निभा रहा है और आज भी प्रचार के काम में हमारी अगुवाई कर रहा है। (मत्ती 23:10) वह मसीही कलीसिया का प्रमुख है, इसलिए यहोवा ने दुनिया भर में राज्य का सुसमाचार सुनाने की ज़िम्मेदारी यीशु को सौंपी है।—इफिसियों 1:22, 23; कुलुस्सियों 1:18.

स्वर्गदूत भी सुसमाचार सुनाते हैं

8, 9. (क) स्वर्गदूतों ने इंसानों में गहरी दिलचस्पी कैसे दिखायी है? (ख) किस अर्थ में हम अपना प्रचार का काम मानो मंच पर करते हैं?

8 जब यहोवा परमेश्‍वर ने इंसानों को बनाया, तो स्वर्गदूत ‘एक संग आनन्द से गाने लगे और जयजयकार करने लगे।’ (अय्यूब 38:4-7) तब से, इन स्वर्गदूतों ने इंसानों में गहरी दिलचस्पी ली है। यहोवा ने इंसानों को अपना संदेश सुनाने के लिए इन स्वर्गदूतों का इस्तेमाल किया है। (भजन 103:20) और आज भी सुसमाचार फैलाने के इस खास काम में इन स्वर्गदूतों का इस्तेमाल किया जा रहा है। प्रेरित यूहन्‍ना ने एक दर्शन में एक “स्वर्गदूत को आकाश के बीच में उड़ते हुए देखा, जिस के पास पृथ्वी पर के रहनेवालों की हर एक जाति, और कुल, और भाषा, और लोगों को सुनाने के लिये सनातन सुसमाचार था। और उस ने बड़े शब्द से कहा; परमेश्‍वर से डरो; और उस की महिमा करो; क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ पहुंचा है।”—प्रकाशितवाक्य 14:6, 7.

9 बाइबल स्वर्गदूतों को “सेवा टहल करनेवाली आत्माएं” कहती है “जो उद्धार पानेवालों के लिये सेवा करने को भेजी जाती हैं।” (इब्रानियों 1:14) ये स्वर्गदूत पूरे जोश और उत्साह के साथ अपना काम तो करते ही हैं, साथ ही उनकी नज़रें हम पर और हमारे काम पर भी रहती हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि हम अपना प्रचार का काम मानो एक बहुत बड़े मंच पर करते हैं और सभी स्वर्गदूत दर्शकों की तरह देख रहे हैं। (1 कुरिन्थियों 4:9) इससे हमें यह पता चलता है कि प्रचार का काम कितना गंभीर काम है। और यह जानकर हमें कितना हौसला मिलता है कि इस काम में स्वर्गदूत भी हमारे साथ हैं!

हम पूरे उत्साह से अपना काम पूरा करते हैं

10. सभोपदेशक 11:6 की बढ़िया सलाह किस तरह हमारे प्रचार काम पर लागू होती है?

10 हमारे प्रचार काम में यीशु और स्वर्गदूत इतनी दिलचस्पी क्यों लेते हैं? इसका एक कारण खुद यीशु ने हमें बताया: “मैं तुम से कहता हूं; कि . . . एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में परमेश्‍वर के स्वर्गदूतों के साम्हने आनन्द होता है।” (लूका 15:10) इन स्वर्गदूतों की तरह हमें भी लोगों में दिलचस्पी है और हम चाहते हैं कि वे अपना मन फिराएँ। इसीलिए हम पूरा मन लगाकर हर जगह राज्य के बीज बोने की कोशिश करते हैं। शायद सैकड़ों-हज़ारों में से बस एक ही व्यक्‍ति सुसमाचार सुनकर मन फिराए। मगर जब एक व्यक्‍ति भी मन फिराता है तो हमें उतनी ही खुशी होती है जितनी कि स्वर्गदूतों को। इसलिए हम सभोपदेशक 11:6 की इस सलाह को मानते हैं: “भोर को अपना बीज बो, और सांझ को भी अपना हाथ न रोक; क्योंकि तू नहीं जानता कि कौन सुफल होगा, यह या वह, वा दोनों के दोनों अच्छे निकलेंगे।”

11. हमारी किताबों में कितनी ताकत है?

11 सुसमाचार सुनाने के काम में हमारी किताबें बीज की तरह काम करती हैं। हालाँकि हम इन किताबों को अलग-अलग लोगों में बाँटते हैं, मगर हम यह नहीं बता सकते कि कौन-सी किताब कहाँ फल लाएगी। कभी-कभी ऐसा होता है कि हम किसी एक को किताब देते हैं, मगर ये किसी दूसरे नेकदिल इंसान के हाथ लग जाती है और वह सच्चाई में आ जाता है। यह बात दिखाती है कि इस काम के पीछे यहोवा, यीशु और स्वर्गदूतों का हाथ है। आइए कुछ अनुभव देखें जो इस बात को साबित करते हैं।

सच्चे परमेश्‍वर का मार्गदर्शन

12. किस तरह से एक पुरानी पत्रिका ने यहोवा को जानने में एक परिवार की मदद की?

12 रॉबर्ट और लीला अपने परिवार के साथ एक बड़े शहर में रहते थे। सन्‌ 1953 में, वे पॆन्सिलवेनिया, अमरीका के देहात में एक पुराने फार्महाउस में आकर रहने लगे। कुछ समय बाद, रॉबर्ट ने सीढ़ियों के नीचे की खाली जगह पर एक बाथरूम बनाने की सोची। इसके लिए उसे वहाँ से कुछ लकड़ी के तख्ते निकालने पड़े। तब उसने देखा कि वहाँ चूहों ने कुतरे हुए कागज़ के टुकड़े, अखरोट के खोल, और बहुत-सी दूसरी चीज़ें जमा कर रखा है। इनके बीच में द गोल्डन एज पत्रिका भी पड़ी हुई थी। उसमें बच्चों की परवरिश के विषय पर एक लेख दिया गया था जो उसे खासकर पसंद आया। उस लेख में बाइबल की काफी सलाह दी गयी थी जो रॉबर्ट को इतनी अच्छी लगीं कि उसने लीला से कहा कि वे “द गोल्डन एज पत्रिकावालों के धर्म” को अपना लेंगे। कुछ ही हफ्तों के अंदर, यहोवा के साक्षी उनके घर आए। मगर रॉबर्ट ने उनसे कहा कि वह सिर्फ “द गोल्डन एज पत्रिकावालों के धर्म” में दिलचस्पी रखता है। साक्षियों ने उसे बताया कि वे ही उस पत्रिका को प्रकाशित करते हैं और अब उस पत्रिका का नाम बदलकर अवेक! रखा गया है। तब रॉबर्ट और लीला साक्षियों के साथ लगातार बाइबल का अध्ययन करने लगे और फिर बपतिस्मा भी ले लिया। बाद में, इन्होंने अपने सातों बच्चों के दिलों में भी सच्चाई के बीज बोए और उन्होंने भी बपतिस्मा लिया। आज, उसके परिवार के 20 से भी ज़्यादा सदस्य बपतिस्मा लेकर यहोवा परमेश्‍वर की सेवा में लगे हुए हैं।

13. बाइबल में दिलचस्पी जगाने में किस बात ने विल्यम और आइडा की मदद की?

13 कुछ 40 साल पहले की बात है। पोर्टो रीको में रहनेवाले विल्यम और उसकी पत्नी आइडा को बाइबल का अध्ययन करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। जब भी यहोवा के साक्षी उनका दरवाज़ा खटखटाते, वे इस तरह खामोश हो जाते मानो घर पर कोई भी न हो। एक दिन विल्यम घर की मरम्मत के लिए कोई चीज़ खरीदने गया। लौटते वक्‍त उसे कचरे के डिब्बे में पीले रंग की एक किताब पड़ी हुई दिखी। यह किताब थी रिलीजन जिसे यहोवा के साक्षियों ने सन्‌ 1940 में प्रकाशित किया था। विल्यम उस किताब को घर ले गया और पढ़ने लगा। जब उसे पता चला कि झूठे और सच्चे धर्म के बीच क्या फर्क है तो और ज़्यादा जानने के लिए उसकी दिलचस्पी बढ़ी। और अगली बार जब यहोवा के साक्षी उनके घर आए, तो विल्यम और आइडा ने खुशी-खुशी उनकी बातें सुनी और उनके साथ बाइबल का अध्ययन करने लगे। कुछ महीनों बाद सन्‌ 1958 में दोनों ने डिवाइन विल इंटरनैशनल एसॆम्बली में बपतिस्मा ले लिया। तब से, उन्होंने 50 से भी ज़्यादा लोगों को मसीही बनने में मदद दी है।

14. इस अनुभव के मुताबिक, हमारे बाइबल साहित्य क्या कर सकते हैं?

14 ग्यारह साल का कार्ल बहुत ही नटखट था। वह हर वक्‍त कोई-ना-कोई मुसीबत मोल ले लेता था। उसका पिता एक जर्मन मॆथडिस्ट था और उसने कार्ल को सिखाया कि बुरे लोगों के मरने के बाद उन्हें नरक में तड़पाया जाता है। सो कार्ल के दिल में नरक का खौफ बैठ गया। एक दिन सन्‌ 1917 में, कार्ल ने सड़क पर एक पर्ची पड़ी हुई देखी और वह उसे उठाकर पढ़ने लगा। उसमें एक शीर्षक था: “नरक क्या है?” इस पर्ची में “नरक” के विषय पर एक भाषण के लिए आमंत्रण दिया गया था। इसे यहोवा के साक्षी पेश करनेवाले थे जिन्हें उस समय बाइबल स्टूडॆन्ट्‌स कहा जाता था। कार्ल ने यह भाषण सुना, बाइबल स्टडी की और करीब एक साल बाद बपतिस्मा लेकर बाइबल स्टूडॆन्ट बन गया। सन्‌ 1925 में उसे यहोवा के साक्षियों के हॆडक्वाटर में काम करने के लिए निमंत्रण मिला और आज तकरीबन 80 साल बाद भी वह वहीं काम कर रहा है। सड़क किनारे पड़ी हुई उस छोटी-सी पर्ची ने कितना बड़ा कमाल कर दिखाया!

15. प्रचार के काम में यहोवा कैसे शामिल है?

15 हम यह नहीं जान सकते कि इन लोगों को सच्चाई में लाने में स्वर्गदूतों का कहाँ तक हाथ रहा है। मगर इसमें कोई शक नहीं कि यीशु और स्वर्गदूत प्रचार के काम में पूरे जोश के साथ हिस्सा ले रहे हैं और यहोवा इसमें मार्गदर्शन कर रहा है। ऐसे अनुभव साबित करते हैं कि हमारी किताबें कितनी असरदार हैं!

हमारा धन

16. दूसरा कुरिन्थियों 4:7 से हम क्या सीख सकते हैं?

16 प्रेरित पौलुस ने कहा कि परमेश्‍वर ने ‘मिट्टी के बरतनों में धन रखा’ है। ‘मिट्टी के बरतन’ हैं हम इंसान, और परमेश्‍वर ने जो ‘धन’ हमें सौंपा है, वह है हमारा प्रचार करने का काम। हम इंसान असिद्ध और पापी हैं, इसलिए अपनी ताकत से यह काम पूरा नहीं कर सकते। सो यह काम पूरा करने के लिए ‘यहोवा हमें असीम सामर्थ देता है।’ (2 कुरिन्थियों 4:7) जी हाँ, हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा इस काम को पूरा करने के लिए हमें सामर्थ देगा।

17. प्रचार के काम में हमें किन मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है और फिर भी हमें क्यों हार नहीं माननी चाहिए?

17 प्रचार के काम में हमें अकसर मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है। जैसे कुछ इलाकों में प्रचार करने में या वहाँ तक पहुँचने में बहुत दिक्कत होती है, कहीं-कहीं लोग हमारा संदेश बिलकुल भी सुनना नहीं चाहते या कभी-कभी वे हाथा-पाई पर उतर आते हैं। ऐसे इलाकों में काफी मेहनत करने के बाद भी कोई कामयाबी नहीं मिलती। लेकिन, अगर हम प्रचार के काम की एहमियत समझते हैं तो हम यह नहीं सोचेंगे कि हमारी मेहनत बेकार गयी है। क्योंकि हम जानते हैं कि अगर सच्चाई के बीज में अंकुर फूटेगा तो यह लोगों को न सिर्फ आज खुशी देगा बल्कि भविष्य में हमेशा-हमेशा की ज़िंदगी भी। सो आज हालाँकि हमें मेहनत करनी पड़े मगर आगे जाकर इसका फल ज़रूर अच्छा निकलेगा, ठीक जैसे भजन 126:6 में कहा गया है: “चाहे बोनेवाला बीज लेकर रोता हुआ चला जाए, परन्तु वह फिर पूलियां लिए जयजयकार करता हुआ निश्‍चय लौट आएगा।”

18. प्रचार के काम में हमें क्या करते रहने की कोशिश करनी चाहिए और इससे क्या फायदा होगा?

18 इसलिए आइए, हम हर मौके का फायदा उठाएँ और पूरे जोश और उत्साह के साथ परमेश्‍वर के राज्य के बीज बोने में लगे रहें। और यह कभी न भूलें कि हालाँकि हम बीज बो रहें हैं या पानी डालकर उन्हें सींच रहे हैं, मगर यहोवा ही उन्हें बढ़ाता है। (1 कुरिन्थियों 3:6, 7) जिस तरह यीशु और स्वर्गदूत प्रचार के काम में अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करते हैं, उसी तरह यहोवा हमसे यही उम्मीद करता है कि हम भी सेवकाई में अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करें। (2 तीमुथियुस 4:5) इसलिए आइए हम अपनी सिखाने की कला को बेहतर बनाते रहें, प्रचार के बारे में सही नज़रिया रखें, साथ ही अपने जोश और उत्साह को बरकरार रखें। इससे क्या फायदा होगा? पौलुस इसका जवाब देता है: “यदि ऐसा करता रहेगा, तो तू अपने, और अपने सुननेवालों के लिये भी उद्धार का कारण होगा।”—1 तीमुथियुस 4:16.

हमने क्या सीखा?

• प्रचार के काम का क्या नतीजा हो रहा है?

• प्रचार के काम में आज यीशु मसीह और स्वर्गदूत किस तरह हिस्सा ले रहे हैं?

• क्यों हमें हर मौके का फायदा उठाकर राज्य के बीज बोने चाहिए?

• जब प्रचार के काम में हमें मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है तो हमें हार क्यों नहीं माननी चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 15 पर तसवीर]

किसानों की तरह, आज मसीही हर जगह राज्य के बीज बो रहे हैं

[पेज 16, 17 पर तसवीर]

यहोवा के साक्षी 340 भाषाओं में अलग-अलग किताबें तैयार करते हैं और लोगों में बाँटते हैं