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क्या आप ज़िंदगी में ज़्यादा खुशी और संतुष्टि पा सकते हैं?

क्या आप ज़िंदगी में ज़्यादा खुशी और संतुष्टि पा सकते हैं?

क्या आप ज़िंदगी में ज़्यादा खुशी और संतुष्टि पा सकते हैं?

एक बार अमरीका में सबसे ज़्यादा कीमतवाला एक नोट निकाला गया और वह था 10,000 डालर का। उस नोट की कीमत चाहे कितनी ही ज़्यादा क्यों न हो मगर जिस कागज़ पर वह छपा था, उसकी कीमत तो बस चवन्‍नी के बराबर है।

क्या इस मामूली कागज़ के टुकड़े से आपको खुशी और सच्ची संतुष्टि मिल सकती है? आज करोड़ों लोग सोचते हैं कि उन्हें मिल सकती है। उनकी नज़रों में पैसा ही ज़िंदगी है। इसलिए पैसा कमाने के चक्कर में वे अपना रात-दिन एक कर देते हैं। वे न तो अपनी सेहत का ख्याल करते हैं, न दोस्तों का। यहाँ तक कि अपने परिवार को भी नज़रअंदाज़ कर देते हैं। मगर इसका क्या फायदा? क्या हम पैसे से ज़िंदगी में हमेशा के लिए सच्ची खुशी और संतुष्टि पाते हैं?

एक शोधकर्ता का कहना है कि हम पैसे के बल पर खुशी और संतुष्टि पाने की जितनी कोशिश करते हैं, वे हमसे उतनी ही दूर भागती हैं। पत्रकार अल्फी कोन कहता है कि “सच्ची खुशी को खरीदा नहीं जा सकता। . . . और जो इंसान समझता है कि ज़िंदगी में धन-दौलत ही सब कुछ है, वह अकसर चिंताओं से घिरा रहता है, निराशा में डूबा रहता है और खुशी उससे कोसों दूर रहती है।”—इंटरनैशनल हेरल्ड ट्रिब्यून।

जाँच के बाद शोधकर्ताओं को भले ही समझ आ गया हो कि ज़िंदगी में सच्ची खुशी और संतुष्टि पाने के लिए सिर्फ धन-दौलत ही काफी नहीं है। मगर ज़्यादातर लोग इससे सहमत नहीं होते। क्योंकि आज हर दिन लोगों पर विज्ञापनों की बौछार होती है। इनके ज़रिए लोगों के दिमाग में यह बिठाया जाता है कि जब तक वे विज्ञापनों में दिखायी गयी हर छोटी-बड़ी चीज़, चाहे वह कार हो या चॉकलेट, नहीं खरीद लेते, तब तक ‘उनकी ज़िंदगी—ज़िंदगी नहीं।’

जब इस तरह भौतिक चीज़ों को खरीदने के लिए बढ़ावा दिया जाता है तो अंजाम क्या होता है? लोगों की ज़िंदगी में आध्यात्मिक बातों के लिए कोई जगह नहीं रह जाती। इस बारे में जर्मनी के कोलोन शहर के आर्कबिशप ने हाल में कहा: “आज तो लोगों की ज़ुबान पर परमेश्‍वर का नाम तक नहीं आता!”—न्यूज़वीक पत्रिका।

हो सकता है कि आपका भी सारा वक्‍त, सारी मेहनत बस रोज़ी-रोटी कमाने में ही बीत जाता हो। आप शायद सोचते हों कि मुझे कुछ और करने की फुरसत ही कहाँ? मगर फिर भी, आपके मन में कभी-कभी यह खयाल ज़रूर आता होगा कि क्या ज़िंदगी का मतलब यही है कि इंसान तब तक मशीन की तरह घिसता रहे, जब तक कि उसकी सेहत हार न मान ले या उम्र दगा न दे दे? ज़िंदगी में कुछ और भी तो होना चाहिए।

आखिर आपको ज़िंदगी में सच्ची खुशी और संतुष्टि कैसे मिल सकती है? क्या आध्यात्मिक बातों की तरफ ज़्यादा ध्यान देने से आपको सच्ची खुशी और संतुष्टि मिल सकती है?