नुक्ता-चीनी करना बाइबल का नज़रिया
नुक्ता-चीनी करना बाइबल का नज़रिया
आज दुनिया में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो नुक्ता-चीनी करते हैं, हर बात में नुक्स निकालते हैं, या दूसरों की नीयत पर शक करते हैं। 19वीं सदी के एक पादरी, हॆन्री वार्ड बीचर ने कहा कि ‘ऐसे लोगों में और उल्लू में कोई फर्क नहीं है। उल्लू को सिर्फ रात में दिखायी देता है और उसे सिर्फ छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े ही दिखायी देते हैं। उसी तरह इन लोगों को हमेशा दूसरों की हर छोटी-से-छोटी गलती दिखायी देती है। दूसरों में नुक्स निकालना वे अपना परम-कर्तव्य समझते हैं। उन्हें दूसरों में अच्छे गुण बिलकुल भी नहीं दिखते।’ ऐसे लोग बहुत ही शक्की मिज़ाज़ के होते हैं। वे दूसरों के हर काम पर, हर बात पर, यहाँ तक कि उनकी नीयत पर भी शक करते हैं। क्या हम मसीहियों में ऐसा रवैया होने चाहिए? इस बारे में बाइबल क्या कहती है? हम इनसे कैसे दूर रह सकते हैं?
नुक्स निकालनेवालों की जमात
पुराने ज़माने के यूनान में सुकरात, प्लेटो (अफलातून) और अरस्तू जैसे जाने-माने तत्वज्ञानी उभरे थे। उनकी शिक्षाओं का लोगों पर काफी गहरा असर हुआ था, और आज भी इसका असर खासकर पश्चिम देशों में दिखायी देता है। उनकी शिक्षा क्या थी और उनका सिखाने का तरीका क्या था? आइए इस दिलचस्प इतिहास पर एक नज़र डालें।
सुकरात (सा.यु.पू. 470-399) का मानना था कि सच्ची खुशी ऐशो-आराम, मोह-माया या काम-वासना से नहीं मिल सकती। ये सब सच्ची खुशी पाने में बाधा खड़ी करती हैं। हम अच्छे गुण पैदा करके सच्ची खुशी पा सकते हैं। इसी उद्देश्य से उसने सारे ऐशो-आराम का त्याग करके साधारण जीवन बिताया। उसका उसूल था ‘सादा जीवन, उच्च विचार।’
लेकिन सुकरात ने अपनी शिक्षा देने का एक बहुत ही अजीब तरीका अपनाया। कैसे? आम तौर पर तत्वज्ञानी अपनी शिक्षा सही साबित करने के लिए लोगों के सामने दलीलें पेश करते थे, मगर सुकरात दूसरे तत्वज्ञानियों की शिक्षाओं में खोट निकालकर अपनी शिक्षा को सही साबित करता था। उसका मानना था कि सच्चाई सिखाने के लिए झूठी शिक्षाओं में नुक्स निकालकर उनका पर्दाफाश करना ज़रूरी है। यही तरीका दूसरे लोग भी अपनाने लगे।
सुकरात का एक चेला था, तत्वज्ञानी ऎन्टिस्थॆनीस (करीब सा.यु.पू. 445-365)। उसने और उसके साथियों ने सुकरात की शिक्षा को और दो कदम आगे बढ़ाया। वे सिखाने लगे कि ऐशो-आराम, मोह-माया या काम-वासना सिर्फ बाधा ही नहीं हैं, बल्कि ये सब पाप हैं। सच्ची खुशी इन सबसे नहीं, सिर्फ सद्गुणी होने से ही मिलती है। इस उद्देश्य से उन्होंने दीन-दुनिया और ऐशो-आराम का पूरी तरह त्याग कर दिया। वे लोगों में सिर्फ खोट ही नहीं निकालते थे, बल्कि उन्हें घटिया भी समझते थे क्योंकि उनकी नज़र में ऐसा एक भी इंसान नहीं था जो सद्गुणी हो। वे लोगों में इस कदर नुक्स निकालते थे मानो एक कुत्ता हड्डी में से माँस का हर छोटा टुकड़ा नोचकर निकाल रहा हो। उनके इसी स्वभाव की वज़ह से उन्हें कीनीकॉस कहा जाने लगा, जिसका मतलब है “कुत्तों के माफिक।” *
उनके जीवन पर उनकी शिक्षाओं का असर
हालाँकि ऐशो-आराम, मोह-माया या काम-वासना के विरुद्ध इन तत्वज्ञानियों की यह शिक्षा अपने-आप में सही थी, मगर ये तत्वज्ञानी इन पर अमल करने के लिए कोई भी हद पार कर देते थे। मशहूर तत्वज्ञानी डायोजिनीस की ज़िंदगी इसकी अच्छी मिसाल है।
डायोजिनीस का जन्म सा.यु.पू. 412 में काला सागर के पास सनोपी नाम के शहर में हुआ था। वह अपने पिता के साथ ऎथॆन्स आया, जहाँ उसने सुकरात की शिक्षा के बारे में जाना। ज़्यादा शिक्षा पाने के लिए वह ऎन्टिस्थॆनीस का शागिर्द बन गया। उस पर इस शिक्षा की ऐसी धुन सवार हो गयी कि वह सुकरात और ऎन्टिस्थॆनीस से भी चार कदम आगे निकल गया। सुकरात ने कुछ हद तक साधारण जीवन जीया, ऎन्टिस्थॆनीस ने मोह-माया और ऐशो-आराम का पूरी तरह त्याग किया, और डायोजिनीस तो इन सबसे मुँह मोड़कर एक भिक्षु या सन्यासी बन गया। मोह-माया और ऐशो-आराम कितना बुरा है, यह दिखाने के लिए कहा जाता है कि वह कुछ समय के लिए एक टब में रहा।
कहा जाता है कि एक ईमानदार और सद्गुणी आदमी की तलाश में वह भरी दोपहरी में ऎथॆन्स की गलियों में जलता हुआ चिराग लेकर घूमा था! ऐसा करके वह लोगों की खामियाँ ज़ाहिर कर रहा था। उसके ऐसे कामों का लोगों पर काफी असर हुआ। ऐसे ही सनकी तरीके अपनाकर और दूसरों में नुक्स निकालकर वह और दूसरे तत्वज्ञानी, लोगों को सिखाते थे। कहा जाता है कि एक बार सिकंदर महान ने डायोजिनीस से कहा ‘तू जो चाहे माँग। मैं तुझे दूँगा।’ तब डायोजिनीस ने उससे बस इतना कहा: ‘बस थोड़ा हटकर खड़े हो जाओ, मुझे सूरज की रोशनी चाहिए!’
डायोजिनीस और दूसरे तत्वज्ञानी भिखारियों की तरह रहा करते थे। इंसानी रिश्ते या समाज कार्य की उनके लिए कोई अहमियत नहीं थी। लोगों में खोट निकालने के सुकरात के तरीके का उन पर इस कदर असर हुआ कि वे भी दूसरों की इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ा देते थे। इसीलिए इन तत्वज्ञानियों को “कुत्तों के माफिक” कहा जाने लगा। मगर नुक्स निकालने में तो डायोजिनीस से बढ़कर और कोई नहीं था। इसलिए उसका नाम ‘सबसे खूँखार कुत्ता’ पड़ गया। और जब सा.यु.पू. 320 में 90 साल की उम्र में उसकी मौत हुई, तो उसकी कब्र पर संगमरमर से बना कुत्ते का एक पुतला खड़ा किया गया।
इन तत्वज्ञानियों की शिक्षा का दूसरे तत्वज्ञानियों पर भी असर हुआ। मगर समय के गुज़रते डायोजिनीस और उसके शागिर्दों के सनकीपन को लोग नापसंद करने लगे। और एक ऐसा समय आया, जब उनकी शिक्षा और उनके सिखाने का तरीका इतिहास के पन्नों में दफन होकर रह गया।
बाइबल क्या कहती है?
हालाँकि आज दुनिया ऐसे लोगों से भरी पड़ी है, मगर बाइबल कहती है कि हम मसीहियों में ऐसा रवैया नहीं होने चाहिए। क्यों? इसकी वज़ह जानने के लिए हमें बाइबल के कुछ सिद्धांतों पर गौर करना होगा। सो आइए, हम उन सिद्धांतों पर नज़र दौड़ाएँ।
“यहोवा करुणापूर्ण और दयालु है। परमेश्वर सहनशील और प्रेम से भरा है। यहोवा सदैव ही आलोचना नहीं करता। यहोवा हम पर सदा को कुपित नहीं रहता है।” (भजन 103:8, 9, ईज़ी टू रीड वर्शन) सो अगर यहोवा इस जहाँ का शहनशाह और मालिक होते हुए भी “आलोचना नहीं करता,” बल्कि लोगों पर दया दिखाता है, तो क्या हम मसीहियों को भी ऐसा नहीं करना चाहिए? इस मामले में हम मसीहियों को “परमेश्वर के सदृश्य” बनना चाहिए।—इफिसियों 5:1.
यीशु मसीह बिलकुल अपने पिता, यहोवा की तरह था। वह हमारे लिए ‘एक आदर्श दे गया है, कि हम उसके पदचिन्ह पर चलें।’ (1 पतरस 2:21; इब्रानियों 1:3) हाँ, माना कि यीशु ने धर्म के ढोंगियों का और बुरे कामों का पर्दाफाश किया। (यूहन्ना 7:7) मगर वह सिर्फ नुक्स निकालनेवाला नहीं था, क्योंकि उसने लोगों की अच्छाइयों को भी देखा और उनकी तारीफ की। उदाहरण के लिए, नतनएल के बारे में उसने कहा: “देखो, यह सचमुच इस्राएली है: इस में कपट नहीं।” (यूहन्ना 1:47) और उसने विश्वास रखनेवाले लोगों की तारीफ की और इसी विश्वास के आधार पर उन्हें चंगा भी किया। (मत्ती 9:22) जब एक स्त्री ने अपनी खुशी से यीशु को बहुत ही बेशकीमती तोहफा दिया, तो कुछ लोगों ने उसकी आलोचना की। मगर यीशु जानता था कि उसके इरादे नेक थे, इसलिए उसने कहा: “सारे जगत में जहां कहीं यह सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, वहां उसके इस काम का वर्णन भी उसके स्मरण में किया जाएगा।” (मत्ती 26:6-13) जी हाँ, यीशु लोगों की सिर्फ आलोचना नहीं करता था। ना ही वह अपने चेलों के इरादों पर शक करता था, बल्कि उन पर भरोसा करता था और वह ‘अन्त तक उनसे प्रेम करता रहा।’—यूहन्ना 13:1.
ज़रा सोचिए। यीशु एक सिद्ध इंसान था, उसमें कोई कमी, कोई खामी, या कोई नुक्स नहीं था। अगर वह चाहता तो दूसरे असिद्ध लोगों में बड़ी आसानी से ऐब ढूँढ़ सकता था। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसने लोगों को सुकून पहुँचाया और उनकी हिम्मत बढ़ायी।—मत्ती 11:29, 30.
1 कुरिन्थियों 13:7, NHT) बाइबल कहती है कि हमें लोगों से प्रेम करना है। अगर हम सच्चा प्रेम करते हैं, तो हम उन पर विश्वास करेंगे और बेवज़ह उनकी नीयत पर शक नहीं करेंगे। मगर हाँ, हमें कुछ लोगों से होशियार रहना चाहिए क्योंकि कुछ लोगों की नीयत ठीक नहीं रहती।—नीतिवचन 14:15.
“[प्रेम] सब बातों पर विश्वास करता है।” (परमेश्वर भी अपने सेवकों से प्रेम करता है और उन पर विश्वास करता है। वह उनकी हर कमज़ोरी से अच्छी तरह वाकिफ है। फिर भी वह उन्हें शक की निगाह से नहीं देखता। वह उनकी काबिलीयत को देखते हुए उनसे वही माँग करता है जो वे कर सकते हैं। (भजन 103:13, 14) वह उनके अच्छे गुण देखता है, उन पर भरोसा करता है और उनको बड़ी-से-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ सौंपता है और इस तरह उनका सम्मान करता है।—1 राजा 14:13; भजन 82:6.
‘मैं यहोवा, मन को खोजता और हृदय को जांचता हूं ताकि प्रत्येक जन को उसकी चाल-चलन के अनुसार अर्थात् उसके कामों का फल दूं।’ (यिर्मयाह 17:10) जी हाँ, हम नहीं देख सकते हैं कि दूसरों के मन में क्या है, सिर्फ यहोवा देख सकता है। इसलिए हर किसी की नीयत पर शक करना ठीक नहीं होगा।
अगर हम दुनिया के लोगों की तरह दूसरों में नुक्स निकालने और उन पर शक करने लगें, तो इससे कलीसिया में फूट पड़ सकती है, कलीसिया की शांति भंग हो सकती है। इसके बजाय, आइए हम यीशु मसीह की तरह बनें, जो दूसरों में खामियों से ज़्यादा अच्छे गुणों या खूबियों को देखता था। वह एक दोस्त की तरह उन पर पूरी तरह भरोसा करता था।—यूहन्ना 15:11-15.
“जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो।” (लूका 6:31) यीशु की इस सलाह को हम ज़िंदगी के कई हालात में लागू कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर, हम सब चाहते हैं कि लोग हमारे साथ इज़्ज़त से बात करें, अच्छी तरह पेश आएँ। सो, सबसे पहले हमें लोगों के साथ इज़्ज़त से बात करनी चाहिए, और उनके साथ अच्छी तरह पेश आना चाहिए। जब यीशु ने बड़े ज़बरदस्त तरीके से झूठे धर्म की शिक्षाओं का पर्दाफाश किया, तब भी उसने सिर्फ नुक्स निकालने या उनकी बेइज़्ज़ती करने के इरादे से ऐसा नहीं किया।—मत्ती 23:13-36.
इस गलत रवैये से कैसे दूर रहें
अगर किसी ने हमारे साथ विश्वासघात किया हो, तो हम हर व्यक्ति पर शक करने लगते हैं, उनमें नुक्स निकालने लगते हैं। मगर हमें याद रखना होगा कि हम असिद्ध और पापी इंसानों के साथ यहोवा किस तरह व्यवहार करता है। वह हम पर भी पूरा विश्वास करता है। उसी तरह हमें भी दूसरों पर विश्वास करना चाहिए। फिर हम भी संगी विश्वासियों को यहोवा की नज़र से देखेंगे और उन्हें ऐसे इंसान समझेंगे जो सही काम करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।
कुछ लोगों के साथ ऐसे दर्दनाक हादसे होते हैं, जिनकी वज़ह से उनका लोगों पर से विश्वास उठ जाता है। हाँ, यह तो सच है कि असिद्ध इंसानों पर अपना पूरा भरोसा रखना अक्लमंदी का काम नहीं है। (भजन 146:3, 4) मगर मसीही कलीसिया के भाई-बहनों पर आप भरोसा रख सकते हैं। वे आपको दिल से चाहते हैं और आपका हौसला बुलंद कर सकते हैं। ज़रा सोचिए कि मसीही कलीसिया में ऐसे कितने भाई-बहन हैं जो दूसरों के लिए माँ, बाप, बहन, भाई या बेटा-बेटी साबित होते हैं। ऐसे भाई-बहन दूसरों को अपने परिवार की ज़रा भी कमी महसूस होने नहीं देते। (मरकुस 10:30) ज़रा गिनकर देखिए कि मुसीबत की घड़ी में कितने भाई-बहन मदद के लिए आते हैं और सच्चे दोस्त साबित होते हैं। *—नीतिवचन 18:24.
दूसरों पर शक करके या उनमें नुक्स निकालकर नहीं, बल्कि उन पर पूरा भरोसा करके और उनसे प्यार करके हम दिखाएँगे कि हम यीशु के सच्चे चेले हैं, क्योंकि यीशु ने कहा: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्ना 13:35) सो आइए हम मसीही भाई-बहनों से प्यार करें, उनके अच्छे गुणों को देखें। इस तरह हम परमेश्वर के “सदृश्य” होंगे।
[फुटनोट]
^ यह भी हो सकता है उन्हें यह नाम काइनोसर्जेस इस शब्द से मिला हो, जो ऎथॆन्स के एक अखाड़े का नाम है जहाँ ऎन्टिस्थॆनीस सिखाया करता था।
^ मई 15, 1999 की प्रहरीदुर्ग का लेख “मसीही कलीसिया—ताज़गी और खुशी का ज़रिया” देखिए।
[पेज 21 पर तसवीर]
नुक्स निकालनेवालों का उस्ताद, डायोजिनीस
[चित्र का श्रेय]
From the book Great Men and Famous Women