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गुस्ताखी करने से अपमान होता है

गुस्ताखी करने से अपमान होता है

गुस्ताखी करने से अपमान होता है

“जब अभिमान होता, तब अपमान भी होता है, परन्तु नम्र लोगों में बुद्धि होती है।”—नीतिवचन 11:2.

1, 2. गुस्ताख व्यक्‍ति क्या करता है और उसका अंजाम क्या होता है?

 एक लेवी के दिल में जलन की आग इस कदर धधकी कि उसने कई लोगों को परमेश्‍वर द्वारा ठहराए गए अधिकारियों के खिलाफ भड़का दिया। एक राजकुमार के दिमाग पर महान बनने का जुनून इस कदर सवार हुआ कि उसने अपने पिता की गद्दी हड़पने के लिए एक घिनौनी साज़िश रची। एक राजा इस कदर उतावला हो गया कि उसने जान-बूझकर परमेश्‍वर की हिदायतों को नज़रअंदाज़ किया। ऐसे बड़े अपराध करके इन तीनों इस्राएलियों ने गुस्ताखी की।

2 गुस्ताख व्यक्‍ति अपने अधिकार की हद पार कर देता है। वह बड़ा ही ढीठ और अभिमानी होता है और उसका अंजाम अकसर बहुत बुरा होता है। ऐसे रवैये की वज़ह से कई राजा पूरी तरह तबाह हो गए और कई साम्राज्य टूटकर बिखर गए हैं। (भजन 19:13; यिर्मयाह 50:29, 31, 32; दानिय्येल 5:20) यहोवा के कुछ सेवकों ने भी इसके शिकार होकर अपनी ज़िंदगी बरबाद कर ली।

3. गुस्ताख होने के खतरों के बारे में हम कहाँ से सीख सकते हैं?

3 इसीलिए बाइबल कहती है: “जब अभिमान होता, तब अपमान भी होता है, परन्तु नम्र लोगों में बुद्धि होती है।” (नीतिवचन 11:2) इस बात की सच्चाई साबित करने के लिए बाइबल में कई लोगों के उदाहरण दिए गए हैं। उन पर गौर करने से हमें यह जानने में मदद मिलेगी कि अगर हम अभिमानी होकर गुस्ताखी करेंगे, तो क्या खतरा हो सकता है। आइए अब हम उन तीन इस्राएलियों पर गौर करें जिन्हें गुस्ताखी करने की वज़ह से घोर अपमान सहना पड़ा।

जलन की आग में सुलगता—कोरह

4. (क) कोरह कौन था और हम कैसे कह सकते हैं कि वह कई साल तक वफादार रहा? (ख) बाद में वह कैसे बदल गया?

4 कोरह, लेवी के गोत्र का था। वह मूसा और हारून का चचेरा भाई था। कोरह ने कई सालों तक यहोवा की सेवा वफादारी से की। जब यहोवा ने इस्राएलियों को मिस्र से छुड़ाया तो उनमें कोरह भी एक था। उसने खुद अपनी आँखों से देखा कि किस तरह यहोवा ने लाल सागर के दो भाग कर दिए। यह उसके लिए कितनी बड़ी आशीष थी। और सीनै पर्वत के पास जब कई इस्राएली बछड़े की मूरत बनाकर उसकी पूजा करने लगे तब कोरह ने यहोवा का ही पक्ष लिया। (निर्गमन 32:26) लेकिन कुछ समय के बाद, वही कोरह परमेश्‍वर के ठहराए गए अधिकारियों के खिलाफ हो गया। उसने मूसा और हारून से बगावत की। इतना ही नहीं, उसने रूबेन के वंश के दातान, अबीराम और ओन, साथ ही 250 इस्राएली प्रधानों को भी अपनी तरफ मिला लिया। * इन सब ने मिलकर मूसा और हारून से कहा: “अब बस करो; क्योंकि सारी मण्डली का एक एक मनुष्य पवित्र है, और यहोवा उनके मध्य में रहता है; इसलिये तुम यहोवा की मण्डली में ऊंचे पदवाले क्यों बन बैठे हो?”—गिनती 16:1-3.

5, 6. (क) कोरह ने मूसा और हारून के खिलाफ बगावत क्यों की? (ख) हम क्यों कह सकते हैं कि कोरह को अपनी आशीषों की कोई कदर नहीं थी?

5 लेकिन इतने सालों तक वफादार रहने के बाद, आखिर कोरह ने बगावत क्यों की? ऐसा नहीं था कि मूसा लोगों पर ज़ुल्म ढाता था क्योंकि बाइबल कहती है कि मूसा “पृथ्वी भर के रहने वाले सब मनुष्यों से बहुत अधिक नम्र स्वभाव का था।” (निर्गमन 12:3) दरअसल बात यह थी कि कोरह उनसे जलने लगा था। मूसा और हारून को इस्राएलियों में खास ज़िम्मेदारी दी गई थी और उनका बड़ा नाम था। कोरह चाहता था कि ये नाम और ये पदवी उसे मिल जाए। और इसी वज़ह से उसने उन पर यह इलज़ाम लगाया कि वे अपनी मरज़ी से ही सब के अधिकारी बन बैठे हैं।—भजन 106:16.

6 एक और बात यह है कि कोरह को यहोवा द्वारा मिली गई अपनी ज़िम्मेदारियों की बिलकुल कदर नहीं थी। कोरह याजक तो नहीं था मगर लेवी के गोत्र के होने के नाते उसे इस्राएलियों को यहोवा के नियम सिखाने की ज़िम्मेदारी थी। और कोरह कहात के घराने का था इसलिए उसे परमेश्‍वर के तम्बू के पात्रों और सामान को ढोने की भी ज़िम्मेदारी मिली थी। इस काम के लिए कहात के घराने को शुद्ध और पवित्र रहना था क्योंकि यहोवा ने उन्हें अलग किया था। (यशायाह 52:11) ये सब उसके लिए कितना बड़ा सम्मान था। मगर उसने इन सभी आशीषों को तुच्छ जाना। इसलिए मूसा ने उससे पूछा: ‘क्या यह तुम्हें छोटी बात जान पड़ती है, कि यहोवा ने तुम्हें इतनी बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ दी है, फिर भी तुम्हें याजक का पद चाहिए?’ (गिनती 16:9, 10) कोरह सोचता था कि यहोवा की सेवा में एक ऊँची पदवी पाना ही सबसे बड़ी बात है मगर सच तो यह है कि यहोवा ने जो भी ज़िम्मेदारी दी है, उसे वफादारी से निभाने से बड़ी और कोई बात नहीं है।—भजन 84:10.

7. (क) मूसा ने कोरह और उसके आदमियों से क्या कहा? (ख) कोरह की गुस्ताखी का अंजाम क्या हुआ?

7 मूसा ने कोरह और उसके आदमियों से कहा कि वे सब अगली सुबह धूपदान और धूप लेकर तम्बू के सामने हाज़िर हों। दरअसल, कोरह और उसके आदमी याजक नहीं थे, इसलिए उन्हें धूप चढ़ाने का हक भी नहीं था। इसलिए अगर वे धूपदान और धूप लेकर जाते, तो यही ज़ाहिर होता कि वे खुद को याजक बनने के लायक समझ रहे हैं। मूसा की बात पर विचार करने के लिए उनके पास सारी रात पड़ी थी। मगर उन्होंने सही फैसला नहीं किया। वे अगली सुबह धूपदान लेकर हाज़िर हो गए। उनकी इस गुस्ताखी की वज़ह से यहोवा का क्रोध उन पर भड़क उठा। रूबेनियों को तो ‘पृथ्वी ने अपना मुंह पसारके निगल लिया।’ कोरह और बाकी सभी लोगों को यहोवा की आग ने भस्म कर डाला। (व्यवस्थाविवरण 11:6; गिनती 16:16-35; 26:10) कोरह की गुस्ताखी की वज़ह से यहोवा ने उसे ठुकरा दिया और इस तरह उसका घोर अपमान हुआ।

जलन पर काबू पाइए

8. किस तरह मसीही भी “डाह” कर सकते हैं?

8 कोरह की कहानी हमारे लिए एक चेतावनी है। “डाह” या जलन की भावना हम असिद्ध इंसानों में पैदाइशी होती है। इसलिए यह गुण मसीही कलीसिया में भी दिख सकता है। (याकूब 4:5) मिसाल के लिए, हम पर शायद पदवी पाने का जुनून सवार हो। इसलिए कलीसिया में जो ज़िम्मेदारियाँ हम पाना चाहते हैं, वो अगर किसी और को मिल जाए तो कोरह की तरह शायद हमारे अंदर भी जलन की आग भड़क उठे। या फिर हमारा रवैया पहली सदी के मसीही, दियुत्रिफेस की तरह भी हो सकता है, जो हमेशा प्रेरितों की नुक्‍ताचीनी करता था क्योंकि उस पर भी कलीसिया में ‘बड़ा बनने’ का जुनून सवार था।—3 यूहन्‍ना 9.

9. (क) कलीसिया की ज़िम्मेदारियों के बारे में कैसा नज़रिया रखना गलत है? (ख) यहोवा के संगठन में एक-दूसरे के बारे में हमारा नज़रिया कैसा होना चाहिए?

9 इसका मतलब यह नहीं कि भाइयों को कलीसिया में ज़िम्मेदारियाँ पाने की बिलकुल भी कोशिश नहीं करनी चाहिए। पौलुस के मुताबिक तो ऐसा करना एक भला काम है। (1 तीमुथियुस 3:1) लेकिन हमें कभी-भी ऐसा नहीं समझना चाहिए कि कलीसिया की ज़िम्मेदारियाँ हमारी ‘हैसियत’ की निशानी है या उनसे यह पता चलता है कि हम सफलता की किस शिखर पर पहुँचे हैं। यीशु ने कहा था: “जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने। और जो तुम में प्रधान होना चाहे, वह तुम्हारा दास बने।” (मत्ती 20:26, 27) तो फिर जिन लोगों को हमसे ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ मिली हैं, उनसे हमें जलना नहीं चाहिए। दूसरी बात यह है कि यहोवा ‘हैसियत’ के हिसाब से अपने लोगों की कीमत नहीं आँकता! यीशु ने कहा भी था: ‘तुम सब भाई हो।’ (मत्ती 23:8) जी हाँ, यहोवा के संगठन में तन-मन से सेवा करनेवाले सभी लोग उसकी नज़रों में बराबर और अनमोल हैं, फिर चाहे वे प्रचारक हों या पायनियर, सच्चाई में नए हों या पुराने। (लूका 10:27; 12:6, 7; गलतियों 3:28; इब्रानियों 6:10) आज यहोवा के लाखों सेवक उसकी इस सलाह पर चल रहे हैं: “तुम सब के सब एक दूसरे की सेवा के लिये दीनता से कमर बान्धे रहो।” (1 पतरस 5:5) उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करना कितनी खुशी की बात है!

महान बनने के जुनून में—अबशालोम

10. अबशालोम कौन था और उसने प्रजा को अपनी तरफ खींचने के लिए क्या साज़िश रची?

10 महान बनने का जुनून कितना खतरनाक होता है, यह हम दाऊद के तीसरे बेटे अबशालोम की ज़िंदगी से बखूबी जान सकते हैं। वह दाऊद की जगह राजा बनना चाहता था। इसलिए उसने दाऊद के पास न्याय के लिए आनेवालों को अपनी तरफ खींचने की साज़िश रची। पहले तो उसने लोगों को यह यकीन दिलाया कि दाऊद प्रजा की ठीक से देखभाल नहीं कर रहा है। फिर वह लोगों से सीधे-सीधे अपने मन की बात कहने लगा: “भला होता कि मैं इस देश में न्यायी ठहराया जाता! कि जितने मुकद्दमावाले होते वे सब मेरे ही पास आते, और मैं उनका न्याय चुकाता।” इसके बाद तो अबशालोम ने हद कर दी। बाइबल कहती है: “जब कोई उसे दण्डवत्‌ करने को निकट आता, तब वह हाथ बढ़ाकर उसको पकड़के चूम लेता था। और जितने इस्राएली राजा के पास अपना मुकद्दमा तै करने को आते उन सभों से अबशालोम ऐसा ही व्यवहार किया करता था।” इसका नतीजा क्या हुआ? “अबशालोम ने इस्राएली मनुष्यों के मन को हर लिया।”—2 शमूएल 15:1-6.

11. अबशालोम ने दाऊद की गद्दी हड़पने के लिए क्या किया?

11 दरअसल शुरू से ही अबशालोम की नज़र अपने पिता की गद्दी पर थी। साज़िश रचने के पाँच साल पहले, जब दाऊद के पहले बेटे अम्नोन ने अबशालोम की बहन का बलात्कार किया तो उसने अम्नोन का कत्ल कर दिया। लेकिन यह बस दिखावा था कि वह बलात्कार का बदला ले रहा है। (2 शमूएल 13:28, 29) उसने शायद अम्नोन का कत्ल इसलिए किया होगा ताकि राजगद्दी पाने की उसकी कोशिश में अम्नोन रास्ते का काँटा न बने। * और जब सही वक्‍त आया, तो अबशालोम ने असली कदम उठाया और पूरे राज्य में यह ऐलान करा दिया कि वह इस्राएल का नया राजा बन गया है।—2 शमूएल 15:10.

12. किस तरह अबशालोम की गुस्ताखी से उसका घोर अपमान हुआ?

12 अबशालोम को कुछ हद तक कामयाबी ज़रूर मिली। उसके ‘राजद्रोह की गोष्ठी ने बल पकड़ा, क्योंकि उसके पक्ष के लोग बराबर बढ़ते गए।’ और दाऊद को तो अपनी जान बचाने के लिए दूर भाग जाना पड़ा। (2 शमूएल 15:12-17) लेकिन कुछ ही समय बाद अबशालोम को अपने किए की सज़ा मिल गई। योआब ने अबशालोम को मार डाला, फिर उसे एक बड़े गड़हे में डाल दिया और उस पर पत्थरों का एक बहुत बड़ा ढेर लगा दिया। ज़रा सोचिए, राजा का पद पाने की कोशिश करनेवाले इस इंसान पर ऐसी नौबत आई कि उसका अंतिम संस्कार तक नहीं हुआ। * महान बनने के जुनून में अबशालोम ने जो गुस्ताखी की, उससे वाकई उसका घोर अपमान हुआ।—2 शमूएल 18:9-17.

महान बनने के जुनून से बचिए

13. किस तरह एक मसीही में महान बनने का जुनून सवार हो सकता है?

13 अबशालोम का ऊँचे पद पर उठना और फिर गिरना हमारे लिए एक सबक है। आज की इस दुनिया में यह आम बात है कि लोग हमेशा दूसरों की नज़रों में छाए रहने या फिर ऊँचा ओहदा पाने के इरादे से अपने अधिकारियों की खुशामद करते हैं या चिकनी-चुपड़ी बातें करते हैं। इसके अलावा, वे अपने नीचे काम करनेवालों का भी साथ पाने के लिए अपने बारे में खूब बढ़ा-चढ़ाकर बोलते हैं। अगर हम मसीही सावधान न रहें तो ऐसी भावना हमारे अंदर भी पनप सकती है। ऐसी भावना पहली सदी के कुछ मसीहियों में भी थी, जिसकी वज़ह से प्रेरितों को उन्हें चिताने की ज़रूरत पड़ी।—गलतियों 4:17; 3 यूहन्‍ना 9, 10.

14. अपने बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बोलना क्यों गलत है?

14 यहोवा अपने संगठन में ऐसे लोगों को नहीं रहने देगा जो “अपना ही सम्मान खोजते हैं।” (नीतिवचन 25:27, NHT) बाइबल चेतावनी देती है: “प्रभु सब चापलूस ओठों को और उस जीभ को जिस से बड़ा बोल निकलता है काट डालेगा।” (भजन 12:3) अबशालोम सचमुच चापलूस था। उसने लोगों के सामने बड़ी-बड़ी बातें कीं, बस इसलिए कि उसे सिंहासन मिल जाए। लेकिन यह कितनी खुशी की बात है कि आज हमारी मसीही कलीसिया में ऐसे लोग नहीं हैं क्योंकि वे पौलुस की इस सलाह पर चलने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं: “विरोध या झूठी बढ़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।”—फिलिप्पियों 2:3.

राजा शाऊल—एक उतावला इंसान

15. शाऊल ने पहले किस तरह नम्रता दिखायी?

15 शाऊल पहले बहुत नम्र था। एक बार जब भविष्यवक्‍ता शमूएल ने शाऊल के बारे में कुछ अच्छा कहा, तो शाऊल ने नम्रता से कहा: “क्या मैं बिन्यामिनी, अर्थात्‌ सब इस्राएली गोत्रों में से छोटे गोत्र का नहीं हूं? और क्या मेरा कुल बिन्यामीनी के गोत्र के सारे कुलों में से छोटा नहीं है? इसलिये तू मुझ से ऐसी बातें क्यों कहता है?”—1 शमूएल 9:21.

16. शाऊल ने जल्दबाज़ी में क्या गलत कदम उठाया?

16 लेकिन राजा बनने के बाद शाऊल में धीरे-धीरे घमंड पैदा होने लगा। जब इस्राएल और पलिश्‍तियों के बीच युद्ध छिड़ा तो शाऊल को गिलगाल जाकर वहाँ शमूएल का इंतज़ार करना था ताकि वह आकर इस्राएलियों की खातिर होमबलि चढ़ाए और प्रार्थना करे। लेकिन शमूएल को आने में देर हो रही थी, इसलिए शाऊल बेसब्र हो गया और उसने खुद होमबलि चढ़ा दी। उसके बलि चढ़ाने के कुछ ही समय बाद शमूएल वहाँ पहुँच गया। शमूएल ने शाऊल से पूछा: “तू ने क्या किया?” तब शाऊल ने कहा: “जब मैं ने देखा कि लोग मेरे पास से इधर उधर हो चले हैं, और तू ठहराए हुए दिनों के भीतर नहीं आया . . . सो मैं ने अपनी इच्छा न रहते भी होमबलि चढ़ाया।”—1 शमूएल 13:8-12.

17. (क) एक बार को शाऊल का काम शायद सही क्यों लगे? (ख) शाऊल ने जो कदम उठाया उसे यहोवा ने गलत क्यों ठहराया?

17 ऊपरी तौर पर शायद हमें शाऊल का यह कदम सही लगे। आखिर यहोवा के लोग “सकेती में” और “संकट में” पड़े थे, उन्हें मुसीबत से बचाने के लिए मदद की सख्त ज़रूरत थी। (1 शमूएल 13:6, 7) यह सच है कि मुसीबत के वक्‍त जल्द-से-जल्द कोई कदम उठाना गलत बात नहीं है। * लेकिन याद रखिए कि यहोवा देख सकता है कि हम जो भी करते हैं, उसके पीछे हमारा इरादा क्या है। (1 शमूएल 16:7) हालाँकि बाइबल में साफ नहीं बताया गया है, मगर यहोवा ने देखा होगा कि शाऊल ने किस इरादे से होमबलि चढ़ाई। शायद शाऊल के बेसब्र होने की वज़ह उसका घमंड हो। उसे यह सोचकर गुस्सा आया होगा कि ‘जब मैं पूरे इस्राएल का राजा हूँ तो मुझे उस बूढ़े नबी का इंतज़ार करने की क्या ज़रूरत है? वह कौन होता है मुझसे इंतज़ार करवानेवाला?’ उसने यह भी सोचा होगा कि शमूएल के आने तक बहुत देर हो जाएगी, मुझे ही कुछ करना होगा। इसलिए उसने यहोवा से मिली साफ हिदायतों को नज़रअंदाज़ किया और आगे बढ़कर खुद ही बलि चढ़ा दी। मगर इसका अंजाम क्या हुआ? शमूएल ने उसे फटकारते हुए कहा: “अब तेरा राज्य बना न रहेगा . . . क्योंकि तू ने यहोवा की आज्ञा को नहीं माना।” (1 शमूएल 13:13, 14) शाऊल की कहानी एक और मिसाल है कि गुस्ताखी करने से अपमान ही होता है।

उतावले मत होइए

18, 19. (क) जब एक मसीही उतावला हो जाता है, तो वह किस तरह गुस्ताखी कर सकता है? (ख) मसीही कलीसिया को ठीक से चलाने के लिए कौन-सी बात सबसे ज़रूरी है?

18 शाऊल की गुस्ताखी बाइबल में इसलिए दर्ज़ है ताकि हम इससे कुछ सीख सकें। (1 कुरिन्थियों 10:11) भाई-बहनों के कामों में खामियाँ देखकर शायद हम चिढ़ जाएँ। और कभी-कभी हम शायद शाऊल की तरह उतावले होकर सोचने लगें कि काम को सही ढंग से निपटाने के लिए मुझे ही कुछ करना होगा। मान लीजिए, एक भाई ज़िम्मेदारियाँ निभाने में बहुत कुशल है। वह समय का पाबंद है और भाषण देने और सिखाने में बहुत माहिर है। इसलिए शायद उसे बाकी भाइयों के काम में बस खोट-ही-खोट नज़र आए क्योंकि वे उसकी तरह कलीसिया की ज़िम्मेदारी निभाने में कुशल नहीं हैं। तो क्या इस भाई को बेसब्र होकर उन्हें नीचा दिखाना चाहिए? क्या उसे दूसरों को यह एहसास दिलाना चाहिए कि मेरे बगैर कलीसिया का कोई भी काम ठीक से हो ही नहीं सकता? ऐसा करना तो गुस्ताखी होगी!

19 सच पूछो तो कलीसिया को एक बनाए रखने में कौन-सी बात सबसे ज़्यादा ज़रूरी है? हमारा हुनर? ज़िम्मेदारियाँ निभाने की काबीलियत? बाइबल की गहरी समझ? माना कि कलीसिया का काम ठीक से होने के लिए इन बातों की अपनी अहमियत है। (1 कुरिन्थियों 14:40; फिलिप्पियों 3:16; 2 पतरस 3:18) लेकिन यीशु ने कहा था कि हमारे बीच प्रेम होना सबसे ज़रूरी है, इसी से हम उसके चेलों के तौर पर पहचाने जाएँगे। (यूहन्‍ना 13:35) इसलिए प्राचीन अच्छी तरह समझते हैं कि हालाँकि कलीसिया का कामकाज ठीक तरीके से होना ज़रूरी है मगर यह कोई बड़ी कंपनी नहीं, जहाँ सिर्फ काम-काज ठीक-ठाक से किए जाने पर ज़ोर दिया जाता है, बल्कि यह तो भाई-बहनों का ऐसा झुंड है, जिसे सबसे बढ़कर प्यार और हमदर्दी की ज़रूरत है। (यशायाह 32:1, 2; 40:11) ये कुछ ऐसे उसूल हैं जिन्हें तोड़ना गुस्ताखी होगी और इससे कलीसिया की शांति भंग हो सकती है। लेकिन अगर परमेश्‍वर के सिद्धांत को मन में रखकर काम सही तरीके से किया जाए, तो कलीसिया में शांति बरकरार रहेगी।—1 कुरिन्थियों 14:33; गलतियों 6:16.

20. अगले लेख में हम किन सवालों का जवाब देखेंगे?

20 कोरह, अबशालोम और शाऊल के साथ जो हुआ वह साबित करता है कि नीतिवचन 11:2 की यह बात बिलकुल सच है: गुस्ताखी करने से घोर अपमान होता है। लेकिन उस आयत में यह भी कहा गया है: “नम्र लोगों में बुद्धि होती है।” तो सवाल यह है कि नम्र होने का मतलब क्या है? क्या बाइबल में कुछ उदाहरण हैं जिनसे हमें इस गुण के बारे ज़्यादा जानकारी मिल सकती है? आज हम किस तरह नम्रता दिखा सकते हैं? इन सवालों का जवाब हम अगले लेख में देखेंगे।

[फुटनोट]

^ दातान, अबीराम और ओन याकूब के पहिलौठे बेटे रूबेन के वंशज थे। तो उन्होंने सोचा होगा कि हम पहिलौठे के वंशज होकर मूसा के अधीन क्यों रहें। और शायद इसीलिए वे कोरह के साथ हो लिए।

^ दाऊद का दूसरा बेटा किलाब था। लेकिन उसके बारे में बाइबल में कोई जानकारी नहीं है। शायद वह अबशालोम के बगावत के पहले ही मर चुका था।

^ इस्राएलियों में लाश का दफनाया जाना बहुत इज़्ज़त की बात समझी जाती थी। इसलिए अगर किसी को दफनाया नहीं जाता तो इसका मतलब होता कि उस व्यक्‍ति की इज़्ज़त नहीं की गई और यह समझा जाता था कि परमेश्‍वर ने उसे ठुकरा दिया है।—यिर्मयाह 25:32, 33.

^ मिसाल के लिए, जब एक मरी की वज़ह से हज़ारों इस्राएली मारे जा रहे थे, तो उस मरी को रोकने के लिए पीनहास ने फौरन कदम उठाया। और जब दाऊद के आदमी भूख से तड़प रहे थे, तो दाऊद ने उनके साथ मिलकर “परमेश्‍वर के घर” से भेंट की रोटी खाई। परमेश्‍वर ने न तो पीनहास को, ना ही दाऊद को दंड दिया क्योंकि उनके इरादे नेक थे। उन्होंने गुस्ताखी नहीं की थी।—मत्ती 12:2-4; गिनती 25:7-9; 1 शमूएल 21:1-6.

क्या आपको याद है?

• गुस्ताख व्यक्‍ति क्या करता है?

• कोरह ने किस तरह जलन की वज़ह से गुस्ताखी की?

• अबशालोम की कहानी से हम क्या सीखते हैं?

• शाऊल की तरह उतावले न होने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 10 पर तसवीर]

शाऊल इस कदर उतावला हो गया कि उसने गुस्ताखी की