“नम्र लोगों में बुद्धि होती है”
“नम्र लोगों में बुद्धि होती है”
‘यहोवा तुझ से इसे छोड़ और क्या चाहता है, कि तू अपने परमेश्वर के साथ नम्रता से चले?’—मीका 6:8.
1, 2. एक नम्र इंसान कैसा होता है?
एक प्रेरित ने यहोवा की सेवा में बहुत कामयाबी हासिल करने के बावजूद कभी दूसरों पर छाने की कोशिश नहीं की। इस्राएल का एक न्यायी बड़ा ही हिम्मतवाला था मगर उसने कभी अपने आपको श्रेष्ठ नहीं समझा। और अब तक के सबसे महान इंसान ने यह कबूल किया कि उसके अधिकार की कुछ सीमाएँ हैं। इन तीनों में एक खास गुण था: नम्रता।
2 अभिमान और नम्रता में बहुत बड़ा फर्क है। एक नम्र इंसान अपनी काबीलियतों और हैसियत के बारे में सही नज़रिया रखता है। उसमें घमंड नहीं होता। वह कभी अपनी बड़ाई नहीं करता और उसमें महान बनने का जुनून सवार नहीं होता। वह हमेशा दूसरों की इज़्ज़त करता और उनके विचार भी सुनता है।
3. नम्र लोगों को बुद्धिमान क्यों कहा गया है?
3 बाइबल कहती है: “नम्र लोगों में बुद्धि होती है।” (नीतिवचन 11:2) नम्र लोगों को यहाँ बुद्धिमान कहा गया है क्योंकि वे परमेश्वर के बताए तरीके से चलते हैं और गुस्ताखी नहीं करते। इसीलिए वे बेइज़्ज़ती से बचते हैं। (नीतिवचन 8:13; 1 पतरस 5:5) नम्र होना सचमुच कितनी बुद्धिमानी की बात है, यह हम परमेश्वर के कई सेवकों की मिसाल से देख सकते हैं। आइए हम उन तीन नम्र लोगों पर गौर करें जिनका ज़िक्र शुरुआत में किया गया है।
पौलुस—एक “सेवक” और “भण्डारी”
4. पौलुस को कौन-सी खास आशीषें मिली थीं?
4 पहली सदी के मसीहियों में पौलुस एक खास व्यक्ति था। क्यों न हो, आखिर उसने यहोवा की सेवा में सबसे बढ़कर परिश्रम जो किया था! वह प्रचार के काम में हज़ारों किलोमीटर दूर तक भी यात्रा करता था, चाहे उसे समुन्दर ही क्यों न पार करना पड़े। उसने कई कलीसियाएँ स्थापित की। इसके अलावा, यहोवा ने पौलुस को कई दर्शन दिखाए और अनेक भाषाएँ बोलने का वरदान भी दिया। (1 कुरिन्थियों 14:18; 2 कुरिन्थियों 12:1-5) यही नहीं, यहोवा ने पौलुस को बाइबल की 14 किताबें लिखने का भी सुअवसर दिया। इसलिए हम कह सकते हैं कि पौलुस ने बाकी प्रेरितों से बढ़कर परिश्रम किया।—1 कुरिन्थियों 15:10.
5. हम कैसे कह सकते हैं कि पौलुस अपने बारे में एक सही नज़रिया रखता था?
5 कुछ लोग शायद सोचें कि पौलुस ने यहोवा की सेवा में जब इतना कुछ किया, तो उसने ज़रूर लोगों की वाह-वाही लूटी होगी, या दूसरों पर खूब अधिकार जताया होगा। लेकिन यह सच नहीं क्योंकि पौलुस नम्र था। वह अपने बारे में सही नज़रिया रखता था। उसने कहा कि “मैं प्रेरितों में सब से छोटा हूं, बरन प्रेरित कहलाने के योग्य भी नहीं, क्योंकि मैं ने परमेश्वर की कलीसिया को सताया था।” (1 कुरिन्थियों 15:9) पौलुस पहले मसीहियों को बहुत सताया करता था इसलिए वह खुद को परमेश्वर का सेवक बनने के बिलकुल योग्य नहीं समझता था। उसे एहसास था कि यहोवा ने अपने अनुग्रह की वज़ह से ही उसे स्वीकार किया और पौलुस उसके साथ एक रिश्ता कायम कर सका। और यहोवा के अनुग्रह से ही उसे दूसरी खास आशीषें भी मिलीं। (यूहन्ना 6:44; इफिसियों 2:8) इसीलिए परमेश्वर के काम में इतना कुछ करने के बाद भी पौलुस ने खुद को कभी बाकी प्रेरितों से बड़ा नहीं समझा।—1 कुरिन्थियों 9:16.
6. पौलुस किस तरह कुरिन्थियों के साथ नम्रता से पेश आया?
6 पौलुस ने कुरिन्थ की कलीसिया के साथ जिस तरीके से व्यवहार किया, उसमें खासकर उसकी नम्रता दिखायी देती है। उस कलीसिया के कुछ लोग अलग-अलग अध्यक्षों की तरफ आकर्षित हो गए थे और उनमें भेद करने लगे थे। कुछ लोग अपुल्लोस को सबसे बड़ा मानते थे, कुछ कैफा को, तो कुछ पौलुस को। (1 कुरिन्थियों 1:11-15) लेकिन पौलुस ने न तो उन कुरिन्थियों से तारीफ चाही, और ना ही उसने कभी उनकी तारीफ का गैर-फायदा उठाया। जब वह उनसे मिलने गया, तो उसने ‘बड़े-बड़े शब्दों से अपने ज्ञान का दिखावा नहीं किया।’ इसके बजाय उसने दीनता दिखाते हुए अपने और अपने साथियों के बारे में कहा: “मनुष्य हमें मसीह के सेवक और परमेश्वर के भेदों के भण्डारी समझे।” *—1 कुरिन्थियों 2:1-5, नयी हिन्दी बाइबिल; 4:1.
7. पौलुस कड़ी सलाह देते समय भी किस तरह नम्रता से पेश आता था?
7 पौलुस जब किसी को कड़ी सलाह देता था तब भी नम्रता से पेश आता था। उसने अपने प्रेरित होने के अधिकार पर नहीं, बल्कि “परमेश्वर की दया” और “प्रेम” के आधार पर भाई-बहनों को सलाह दी। (रोमियों 12:1, 2; फिलेमोन 8, 9) इसकी वज़ह क्या थी? क्योंकि वह खुद को भाई-बहनों का “सहायक” समझता था इसलिए उन पर ‘प्रभुता नहीं जताना’ चाहता था। (2 कुरिन्थियों 1:24) पौलुस के इस नम्र स्वभाव की वज़ह से ही पहली सदी के मसीही उसे बहुत प्यार करते थे।—प्रेरितों 20:36-38.
अपनी ज़िम्मेदारियों के बारे में सही नज़रिया
8, 9. (क) हमें अपने बारे में हमेशा सही नज़रिया क्यों रखना चाहिए? (ख) जिनके पास कई ज़िम्मेदारियाँ होती हैं, वे किस तरह नम्रता दिखा सकते हैं?
8 हम मसीहियों को पौलुस की बढ़िया मिसाल पर चलते हुए अपने बारे में सही नज़रिया रखना चाहिए। हमें चाहे बड़ी-से-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ ही क्यों न सौंपी जाए मगर हमें कभी भी यह नहीं सोचना चाहिए कि हम दूसरों से बड़े हैं। पौलुस ने लिखा: “यदि कोई कुछ न होने पर भी अपने आप को कुछ समझता है, तो अपने आप को धोखा देता है।” (गलतियों 6:3) क्यों? क्योंकि “सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं।” (तिरछे टाइप हमारे।) (रोमियों 3:23; 5:12) जी हाँ, हमें कभी-भी नहीं भूलना चाहिए कि हम आदम की वज़ह से पापी बन गए हैं और मौत के गुलाम हैं। कुछ खास ज़िम्मेदारियों के मिलने का मतलब यह नहीं कि हम अब पापी नहीं रहे। (सभोपदेशक 9:2) पौलुस की तरह हम भी परमेश्वर के अनुग्रह से ही उसके साथ एक रिश्ता कायम कर पाते हैं और हमें खास ज़िम्मेदारियाँ भी सिर्फ उसी की दया से मिलती हैं।—रोमियों 3:12, 24.
9 जो व्यक्ति इस बात को समझ जाता है, वह न तो कभी अपनी ज़िम्मेदारियों को लेकर घमंड करेगा, न ही अपनी कामयाबियों के बारे में शेखी मारेगा। (1 कुरिन्थियों 4:7) इसके बजाय, वह नम्रता से पेश आएगा। किसी को सलाह देते वक्त वह एक अफसर की तरह नहीं बल्कि एक सहकर्मी की तरह बात करेगा। यह याद रखना ज़रूरी है कि अगर हम किसी काम में माहिर हैं, तो दूसरों की तारीफ चाहना या उनकी तारीफ का गैर-फायदा उठाने की कोशिश करना गलत है। (नीतिवचन 25:27, NHT; मत्ती 6:2-4) क्योंकि वही तारीफ मायने रखती है जो हमारे बारे में दूसरे अपने आप करते हैं। और अगर कोई हमारी तारीफ करे, तब भी हमें होशियार रहना चाहिए कि कहीं हम घमंड से फूल न जाएँ।—नीतिवचन 27:2; रोमियों 12:3.
10. जो भाई-बहन हमेशा दूसरों की नज़रों में नहीं आते, वे भी किस तरह “विश्वास में धनी” हैं?
10 मान लीजिए आपको कलीसिया में बहुत-सी ज़िम्मेदारियाँ मिली हैं। अगर आप नम्र हैं तो आप दूसरों का ध्यान अपनी तरफ खींचने की कोशिश नहीं करेंगे। आप दूसरों को कभी यह एहसास नहीं दिलाएँगे कि पूरी कलीसिया बस आपकी मेहनत और लगन पर ही टिकी हुई है। मसलन, एक भाई सिखाने में बहुत माहिर हो सकता है। (इफिसियों 4:11, 12) लेकिन अगर वह नम्र होगा तो वह नहीं भूलेगा कि भाई-बहन सिर्फ भाषणों से ही सब कुछ नहीं सीखते। हम कलीसिया के दूसरे भाई-बहनों से भी बहुत कुछ सीखते हैं। मसलन, जब हम देखते हैं कि अकेले ही घर सँभालनेवाले भाई या बहन अपने बच्चों के साथ हर सभा में हाज़िर होते हैं और कई दुःख-तकलीफों से घिरे हुए होने के बावजूद कुछ भाई-बहन कोई भी मीटिंग नहीं चूकते, तो क्या इससे हमारा हौसला नहीं बढ़ता? इतना ही नहीं, जब हम देखते हैं कि बच्चे, स्कूल और दूसरी जगहों में हमेशा बुरे लोगों का सामना करने के बावजूद, कलीसिया में अच्छी तरक्की करते हैं, तो क्या इससे हमारा हौसला नहीं बढ़ता? (भजन 84:10) ऐसे भाई-बहनों को शायद कलीसिया में बहुत ज़िम्मेदारियाँ न मिली हों, इसलिए वे शायद सब की नज़रों में न आएँ। अकसर बहुत लोगों को तो मालूम भी नहीं होता कि ये भाई-बहन अपने विश्वास की खातिर कितनी तकलीफें झेल रहे हैं। लेकिन एक बात पक्की है कि वे भी उन्हीं मसीहियों की तरह “विश्वास में धनी” हैं जिन्हें बहुत ज़िम्मेदारियाँ मिली हैं। (याकूब 2:5) आखिर, यहोवा की नज़रों में सबसे अनमोल बात हमारी वफादारी है, पदवी नहीं।—मत्ती 10:22; 1 कुरिन्थियों 4:2.
गिदोन—अपने पिता के घराने में “सब से छोटा”
11. स्वर्गदूत से बात करते वक्त गिदोन ने किस तरह नम्रता दिखाई?
11 मनश्शे के गोत्र का गिदोन, एक हट्टा-कट्टा जवान था। उसके समय में इस्राएल जाति मुसीबत के दौर से गुज़र रही थी। सात सालों से मिद्यानी लोग उन पर ज़ुल्म कर रहे थे। लेकिन अब उन्हें छुड़ाने के लिए यहोवा का वक्त आ गया था। इसलिए एक स्वर्गदूत ने गिदोन को दर्शन देकर कहा: “हे शूरवीर सूरमा, यहोवा तेरे संग है।” स्वर्गदूत से ऐसी तारीफ सुनकर क्या गिदोन घमंड से फूल उठा? नहीं बल्कि उसने स्वर्गदूत से आदरपूर्वक कहा: “हे मेरे प्रभु, बिनती सुन, यदि यहोवा हमारे संग होता, तो हम पर यह सब विपत्ति क्यों पड़ती?” जवाब में स्वर्गदूत ने उसे सारी बातें बतायी और कहा: ‘तू ही इस्राएलियों को मिद्यानियों के हाथ से छुड़ाएगा।’ यह सुनकर क्या गिदोन ने यह सोचा कि अब तो मुझे इस मुल्क का शहंशाह बनने का मौका मिला है, इसलिए यह मौका किसी हालत मेरे हाथ से जाने न पाए? नहीं, इसके बजाय उसने कहा: “हे मेरे प्रभु, बिनती सुन, मैं इस्राएल को क्योंकर छुड़ाऊं? देख, मेरा कुल मनश्शे में सब से कंगाल है, फिर मैं अपने पिता के घराने में सब से छोटा हूं।” नम्रता की क्या ही बेहतरीन मिसाल!—न्यायियों 6:11-15.
12. गिदोन ने यहोवा से मिले काम को पूरा करने में किस तरह सूझ-बूझ दिखायी?
12 लेकिन गिदोन को लड़ाई में भेजने से पहले यहोवा ने उसकी परीक्षा ली। कैसे? गिदोन का पिता बाल देवता का पुजारी था। गिदोन से कहा गया कि वह अपने पिता की बाल की वेदी को नष्ट कर दे और वेदी के पास जो मूरत थी, उसे भी गिरा दे। यह काम करने के लिए उसे वाकई हिम्मत की ज़रूरत थी। और जिस तरीके से गिदोन ने यह काम किया, उसमें उसकी सूझ-बूझ दिखाई देती है और यह भी कि वह अपनी हद पहचानता है। वह चाहे तो यह काम खुलेआम लोगों के सामने कर सकता था मगर उसने यह काम रात के समय किया ताकि वह किसी की नज़रों में न आए। इतना ही नहीं, उसने बड़ी होशियारी से काम लिया। वह अपने साथ दस सेवकों को ले गया। कुछ सेवकों को उसने पहरा देने के लिए कहा और कुछ के साथ मिलकर उसने वेदी और मूरत को तोड़ दिया। * यहोवा की आशीष उस पर रही और उसने अपनी ज़िम्मेदारी पूरी की। और वक्त आने पर यहोवा ने इस्राएलियों को मिद्यानियों के हाथ से छुड़ाने का काम उसे सौंपा।—न्यायियों 6:25-27.
नम्रता और सूझ-बूझ से काम लेना
13, 14. (क) जब हमें कोई खास ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है, तो हमारा रवैया कैसा होना चाहिए? (ख) इस मामले में भाई मैकमिलन ने कौन-सी बेहतरीन मिसाल रखी?
13 गिदोन ने जिस तरीके से नम्रता दिखाई और अपनी हद पहचानकर काम किया, उससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। मिसाल के लिए, जब हमें परमेश्वर की सेवा में कोई खास ज़िम्मेदारी दी जाती है तो हमारा रवैया कैसा होता है? क्या हम सबसे पहले यह सोचने लगते हैं कि अब मुझे लोगों से कितना सम्मान मिलेगा? या हम नम्रता दिखाते हुए और प्रार्थना करते हुए इस बारे में गंभीरता से सोचते हैं कि क्या मैं यह ज़िम्मेदारी निभाने के काबिल हूँ? इस मामले में भाई ए. एच. मैकमिलन की मिसाल काबिल-ए-तारीफ है, जिन्होंने पृथ्वी पर अपना जीवन 1966 में पूरा किया था। एक बार वॉच टावर संस्था के पहले अध्यक्ष, भाई सी. टी. रसल ने उनसे पूछा कि आपकी राय में मेरे बाद अध्यक्ष बनने के लिए कौन काबिल है? जब वे आपस में चर्चा कर रहे थे तब भाई मैकमिलन कह सकते थे कि आप चाहें तो यह ज़िम्मेदारी मैं निभा सकता हूँ, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं कहा। आखिर में भाई रसल ने खुद ही कहा कि यह ज़िम्मेदारी आप ही क्यों नहीं सँभालते। तब भाई मैकमिलन ने क्या किया? इसके बारे में भाई मैकमिलन ने कई साल बाद एक किताब में लिखा, “जब भाई ने ऐसा कहा, तो मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था कि मैं क्या जवाब दूँ। मैंने इस बारे में गहराई से सोचा और यहोवा से बहुत प्रार्थना भी की। आखिरकार मैंने भाई से कहा कि मुझे अध्यक्ष बनने के बजाय आपका सहायक बनकर सेवा करने में ही खुशी होगी।”
14 इसके कुछ ही समय बाद, भाई रसल चल बसे और अध्यक्ष की जगह खाली हो गयी। जब भाई रसल प्रचार के आखिरी दौर पर निकले थे, तो उनका सारा काम भाई मैकमिलन ही सँभालते थे। इसलिए एक भाई ने उनसे कहा: “मैक, लगता है कि अध्यक्ष बनने का मौका अब तुम्हारा है। जब भाई रसल प्रचार के दौर पर निकले, तो तुम ही उनके खास प्रतिनिधि थे और उन्होंने हमें सब कुछ तुम्हारे कहे अनुसार ही करने के लिए कहा था। अब तो भाई रसल नहीं रहे। इसलिए अगला अध्यक्ष तुम ही बनोगे।” लेकिन भाई मैकमिलन ने इसके जवाब में कहा: “नहीं भाई, हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। यह संगठन प्रभु का है और हम यहाँ वही ज़िम्मेदारी निभा सकते हैं, जिसके लिए प्रभु हमें काबिल समझता है। और जहाँ तक मेरा सवाल है, मुझे पक्का यकीन है कि मैं अध्यक्ष बनने के काबिल नहीं हूँ।” फिर भाई मैकमिलन ने अध्यक्ष के पद के लिए एक दूसरे भाई का नाम लिया। भाई मैकमिलन को भी गिदोन की तरह अपनी काबीलियत का सही अंदाज़ा था। और हमें भी उनकी तरह होना चाहिए।
15. प्रचार काम में हम किस तरह समझदारी दिखा सकते हैं?
15 हम जिस तरीके से अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाते हैं, उसमें भी हमें नम्र होना चाहिए। गिदोन ने सूझ-बूझ के साथ काम लिया था वरना उसके विरोधियों का क्रोध भड़क उठता और वह खामखाह मुसीबत मोल लेता। उसी तरह हमें भी प्रचार में बात करते वक्त नम्रता और समझदारी दिखानी चाहिए। यह सच है कि हम एक आध्यात्मिक लड़ाई लड़ रहे हैं, जिसमें हम लोगों की ‘गढ़’ समान झूठी दलीलों को ढाने का काम कर रहे हैं। (2 कुरिन्थियों 10:4, 5) लेकिन हमें अपना संदेश सुनाते वक्त लोगों को नीचा नहीं दिखाना चाहिए या ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिए जिससे वे बुरा मान जाएँ। इसके बजाय, हमें उनके विचारों का आदर करना चाहिए, उनके जो विचार सही हैं, उन पर ज़ोर देकर बातचीत आगे बढ़ानी चाहिए और फिर हमारे संदेश की अच्छी बातों पर उनका ध्यान आकर्षित करना चाहिए।—प्रेरितों 22:1-3; 1 कुरिन्थियों 9:22; प्रकाशितवाक्य 21:4.
यीशु—नम्रता की सबसे बेहतरीन मिसाल
16. यीशु ने किस तरह दिखाया कि उसकी भी कुछ सीमाएँ हैं?
16 अपनी सीमाओं को पहचानने में सबसे बेहतरीन मिसाल यीशु मसीह की है। * पूरे विश्वमंडल में यीशु की तरह कोई और यहोवा के इतने करीब नहीं था। इसके बावजूद यीशु ने नम्रता दिखाई। उसने यह कबूल किया कि उसकी कुछ सीमाएँ हैं और कुछ मामलों में उसका कोई अधिकार नहीं है। (यूहन्ना 1:14) मिसाल के लिए, जब याकूब और यूहन्ना की माँ ने यीशु से गुज़ारिश की कि वह उसके दोनों बेटों को अपने दाएँ बाएँ बिठाए, तो यीशु ने कहा: “अपने दहिने बाएं किसी को बिठाना मेरा काम नहीं।” (मत्ती 20:20-23) और एक बार यीशु ने कहा था: “मैं अपने आप से कुछ नहीं कर सकता . . . मैं अपनी इच्छा नहीं, परन्तु अपने भेजनेवाले की इच्छा चाहता हूं।”—यूहन्ना 5:30; 14:28; फिलिप्पियों 2:5, 6.
17. यीशु ने लोगों के साथ व्यवहार में किस तरह नम्रता दिखाई?
17 यीशु असिद्ध इंसानों से हर बात में श्रेष्ठ था और उसके पास पृथ्वी पर के सभी इंसानों से बढ़कर अधिकार था। लेकिन फिर भी यीशु अपने चेलों के साथ नम्रता से पेश आया। उसने अपने चेलों के सामने अपने ज्ञान की डींग नहीं मारी। उसने उन पर दया की और उनकी ज़रूरतें समझी। (मत्ती 15:32; 26:40, 41; मरकुस 6:31) हालाँकि वह एक सिद्ध इंसान था मगर वह जानता था कि असिद्ध इंसान की अपनी कुछ कमज़ोरियाँ हैं। इसलिए उसने अपने चेलों से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं की, ना ही उसने उन पर कभी इतना बोझ डाला कि वे उसे ढो न सकें। (यूहन्ना 16:12) तभी तो लोगों को उसके साथ रहने में सुकून मिलता था।—मत्ती 11:29.
यीशु की तरह नम्र बनिए
18, 19. अगर हम यीशु की तरह नम्रता दिखाना चाहते हैं तो (क) अपने बारे में हमारा नज़रिया कैसा होना चाहिए? (ख) दूसरों के साथ हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए?
18 यीशु से बढ़कर महान इंसान आज तक दुनिया में कोई पैदा नहीं हुआ। इतना महान होने पर भी जब उसने नम्रता दिखाई, तो हमें और कितना नम्र होना चाहिए! मगर असिद्ध इंसान नम्रता दिखाने से चूक जाते हैं, क्योंकि अकसर वे यह बात कबूल करने को तैयार नहीं होते कि उनके अधिकार की कुछ सीमाएँ हैं। लेकिन मसीही ऐसे नहीं हैं, वे यीशु की तरह अपने अधिकार की सीमा को समझते हैं। वे नम्र होने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं। वे घमंडी नहीं होते इसलिए वे दूसरे काबिल लोगों को ज़िम्मेदारी सौंपने से पीछे नहीं हटते। और जब कोई ज़िम्मेदार व्यक्ति उन्हें सलाह देता है, तो वे उसे खुशी-खुशी कबूल करते हैं। वे कलीसिया के हर काम में साथ देते हैं, इसलिए सारा काम “सभ्यता और क्रमानुसार” पूरा होता है।—1 कुरिन्थियों 14:40.
19 अगर हम नम्र होंगे, तो हम दूसरों से हद-से-ज़्यादा की माँग नहीं करेंगे। इसके बजाय हम उनकी ज़रूरतों का खयाल रखेंगे। (फिलिप्पियों 4:5) हो सकता है कि हमारे अंदर ऐसी काबीलियतें या खूबियाँ हों जो दूसरों में नहीं। लेकिन अगर हम नम्र होंगे, तो हम दूसरों से हमेशा बिलकुल हमारी मरज़ी के मुताबिक काम करने की उम्मीद नहीं करेंगे। हम यह याद रखेंगे कि हर इंसान की अपनी सीमा है, इसलिए अगर उनसे गलती हो जाती है तो हम उन्हें माफ करेंगे। आखिर ‘सब में श्रेष्ठ बात यह है कि हम एक दूसरे से अधिक प्रेम रखें; क्योंकि प्रेम अनेक पापों को ढांप देता है।’—1 पतरस 4:8.
20. अगर हमारे अंदर अभिमान या गुस्ताखी का रवैया दिखायी देता है, तो हम क्या कर सकते हैं?
20 यह कितना सच है कि नम्र लोगों में बुद्धि होती है। लेकिन अगर आप में अभिमान या गुस्ताखी का रवैया दिखायी देता है, तो निराश मत होइए। दाऊद की तरह यहोवा से बिनती कीजिए: “तू अपने दास को ढिठाई [गुस्ताखी] के पापों से भी बचाए रख; वह मुझ पर प्रभुता करने न पाएं!” (भजन 19:13) अगर हम पौलुस, गिदोन और सबसे बढ़कर यीशु मसीह की मिसाल पर चलेंगे तो यह बात हमारे बारे में भी सच होगी: “नम्र लोगों में बुद्धि होती है।”—नीतिवचन 11:2.
[फुटनोट]
^ यहाँ “सेवक” के लिए यूनानी भाषा में जिस शब्द का इस्तेमाल हुआ, उसका मतलब है, किसी बड़े जहाज़ के निचले हिस्से में पतवार चलानेवाला दास। दूसरी तरफ “भण्डारी” के हाथों में बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ होती थीं। कुछ भण्डारियों को तो पूरी ज़मीन-जायदाद की देखभाल की भी ज़िम्मेदारी सौंपी जाती थी। फिर भी कई मालिकों की नज़रों में वे नाव खेनेवाले सेवक के बराबर ही होते थे।
^ वेदी और मूरत को तोड़ने के लिए गिदोन रात के समय गया, तो इसका यह मतलब नहीं कि वह डरपोक था। वह दिलेर था, यह हमें इब्रानियों 11:32-38 से पता चलता है क्योंकि वहाँ गिदोन का नाम भी उन लोगों में आता है जो “बलवन्त हुए” और “लड़ाई में वीर निकले।”
^ इस मामले में हम यीशु को इसलिए सबसे बेहतरीन मिसाल कहते हैं, क्योंकि जहाँ तक यहोवा की बात है, ऐसा कोई भी काम या अधिकार नहीं जो उसकी सीमा के बाहर हो। मगर हाँ, नम्रता दिखाने में यहोवा ही सबसे बेहतरीन मिसाल है।—भजन 18:35.
क्या आपको याद है?
• नम्र इंसान कैसा होता है?
• हम पौलुस की तरह नम्रता कैसे दिखा सकते हैं?
• गिदोन की मिसाल से हम नम्रता के बारे में क्या सीख सकते हैं?
• किस तरह यीशु ने नम्रता की सबसे बेहतरीन मिसाल रखी?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 15 पर तसवीर]
पौलुस के नम्र स्वभाव की वज़ह से ही दूसरे मसीही उसे बहुत प्यार करते थे
[पेज 17 पर तसवीर]
गिदोन ने परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में सूझ-बूझ से काम लिया
[पेज 18 पर तसवीर]
परमेश्वर का पुत्र, यीशु हमेशा नम्रता से पेश आता है