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हथियार बनाने से जान बचाने तक का सफर

हथियार बनाने से जान बचाने तक का सफर

जीवन कहानी

हथियार बनाने से जान बचाने तक का सफर

ईसीडॉरस ईस्माइलीडिस—की ज़ुबानी

मैं घुटनों के बल बैठा था। मेरा चेहरा आँसुओं से भीगा हुआ था। मैंने परमेश्‍वर से गिड़गिड़ाकर यह प्रार्थना की: “हे परमेश्‍वर, मैं हथियार बनाने की यह नौकरी नहीं करना चाहता। मैंने दूसरी नौकरी ढूँढ़ने की जी-तोड़ कोशिश की, मगर नाकाम रहा हूँ। कल मैं अपना इस्तीफा देने जा रहा हूँ। परमेश्‍वर, मैं अपने चार बच्चों को भूख से तड़पता नहीं देख सकता।” आखिर मुझ पर मुसीबत का यह पहाड़ कैसे टूट पड़ा? आइए खुलकर बताता हूँ।

मेरा जन्म 1932 में उत्तरी ग्रीस के ड्रॉमॉ शहर में हुआ था। और मेरी ज़िन्दगी बड़े आराम से कट रही थी। मुझे आगे ज़िन्दगी में क्या करना चाहिए इस बारे में पिताजी हमेशा मुझसे बातें किया करते थे। उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया कि मैं अमरीका जाकर पढ़ाई करूँ। दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान ग्रीस में बहुत लूटमार हुई थी। इसके बाद से ग्रीसवासियों का यह कहना था: “चाहे कोई हमारी धन-संपत्ति भले ही लूट ले, पर हमारे दिमाग में जो है, वह तो कोई नहीं लूट सकता।” मैंने भी मन में ठान लिया कि मैं ऊँची शिक्षा हासिल करूँगा जिसे कभी कोई नहीं चुरा सकेगा।

बचपन से ही मैं बहुत-से यूथ ग्रूप का सदस्य था। इन्हें ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च की तरफ से बनाया गया था। वहाँ हमें खतरनाक पंथों से होशियार रहने के लिए सिखाया जाता था। खासकर यहोवा के साक्षियों से, क्योंकि उनके अनुसार यह ग्रूप यीशु मसीह का विरोध करनेवाला ग्रूप था।

सन्‌ 1953 में मैंने ऐथेंस में एक टैक्निकल स्कूल से ग्रेजुएशन किया और इसके बाद मैं जर्मनी चला गया ताकि मैं नौकरी के साथ-साथ आगे पढ़ाई भी करता रहूँ। लेकिन वहाँ मुझे कोई काम नहीं मिला इसलिए नौकरी की तलाश में मुझे अलग-अलग देशों में जाना पड़ा। समय गुज़रता गया और एक दिन ऐसा भी आया जब मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं बची। उस वक्‍त मैं बैल्जियम में था। मुझे याद है कि एक दिन मैं बहुत निराश हो गया था, ये ही सब सोचते-सोचते मैं दुःखी मन से चर्च की तरफ चलता गया और वहाँ जाकर ज़मीन पर बैठ गया। मैं वहाँ ऐसे फूट-फूटकर रोने लगा कि मेरे आँसू ज़मीन पर गिरने लगे। मैंने गिड़गिड़ाते हुए परमेश्‍वर से बिनती की कि किसी तरह मुझे अमरीका पहुँचा दे। मैंने वादा किया कि वहाँ मैं पैसा कमाने की अंधी दौड़ में नहीं भागूँगा बल्कि पढ़ाई करके एक अच्छा इंसान, साथ ही एक अच्छा ईसाई बनने की कोशिश करूँगा। आखिर में, मैं 1957 में अमरीका पहुँच गया।

अमरीका में नए सफर की शुरुआत

अमरीका में मेरे जैसे परदेसियों के लिए जीवन गुज़ारना बहुत कठिन था, खासकर जब हाथ में न पैसा हो, और न वहाँ की भाषा आती हो। इसलिए मैं गुज़ारा करने के लिए रात को दो जगह काम करता था और बड़ी मुश्‍किल से दिन में स्कूल भी जाता था। मैंने कई कॉलेजों से शिक्षा हासिल करके डिप्लोमा हासिल किया। उसके बाद मैंने लॉस एन्जलिस के कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से बैचलर आफ साइन्स की डिग्री हासिल की। जैसा कि शुरू में मैंने बताया, पापा मुझे हमेशा ऊँची शिक्षा पाने के लिए प्रोत्साहित किया करते थे। जब मैं जीवन से संघर्ष कर रहा था, उस वक्‍त भी उनके शब्द मेरे कानों में गूँजते रहते थे।

इसी समय के दौरान मेरी मुलाकात एकॉतेरीनी नाम की एक खूबसूरत लड़की से हुई। वह भी ग्रीस की रहनेवाली थी। फिर 1964 में हम दोनों ने शादी कर ली। तीन साल के बाद हमें एक बेटा हुआ, और फिर चार सालों में दो और बेटे और एक बेटी हुई। पढ़ाई के साथ-साथ परिवार की देखभाल करना मेरे लिए एक चुनौती थी।

मैं अमरीकी एअरफोर्स में काम करता था जहाँ मिसाइल और दूसरे हथियार बनाए जाते थे। वहाँ बड़े-बड़े रॉकेट और अंतरिक्ष-यान भी बनाए जाते थे। अपोलो 8 और 11 को बनाने में मेरा भी हाथ था जिसके लिए मुझे मैडल भी मिले थे। उसके बाद मैंने और पढ़ाई की और मिलेटरी के लिये अंतरिक्ष-यान बनाने में और ज़्यादा जुट गया। उसी दौरान मैंने सोचा कि मैंने अब सब कुछ पा लिया है यानी एक सुंदर घर, एक अच्छी पत्नी, समझदार बच्चे और एक इज़्ज़तदार नौकरी।

उसूलोंवाला एक दोस्त

जहाँ मैं काम करता था वहाँ 1967 में मेरी मुलाकात जिम से हुई। वह बहुत ही सीधा-साधा और भला इंसान था। उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी। मैं जब भी उसे कॉफी ब्रेक में बुलाता वह कभी मना नहीं करता था। वह इस मौके का बखूबी फायदा उठाता और मुझे बाइबल की कई बातें बताता। एक दिन उसने मुझे बताया कि उसने बाइबल की ये सारी बातें यहोवा के साक्षियों से सीखी थीं।

यह सुनकर मुझे धक्का लगा कि जिम कहाँ जाकर ऐसे लोगों के चक्कर में फँस गया जो यीशु मसीह को नहीं मानते। लेकिन मैंने कभी उसका विरोध नहीं किया क्योंकि वह मेरी बहुत परवाह करता था। जिम मुझे अकसर कोई नई किताब या पत्रिका लाकर पढ़ने के लिए देता था। एक दिन मेरे ऑफिस में आकर जिम ने कहा: “ये देखो ईसीडॉरस, इस वॉच टावर मैगज़ीन में बताया है कि खुशहाल परिवार बनाने के लिए क्या करना चाहिए। ये लो इस मैगज़ीन को अपने पास रखो और घर जाकर अपनी पत्नी के साथ पढ़ना।” मैंने उसे बताया कि मैं ज़रूर पढ़ूँगा, लेकिन बाद में टॉयलॆट जाकर उस मैगज़ीन के टुकड़े-टुकड़े करके कचरे के डिब्बे में फेंक दिए।

दरअसल, यहोवा के साक्षियों के बारे में मुझे गलत जानकारी दी गई थी। इसलिए जिम मुझे जो भी किताबें या मैगज़ीन देता, मैं उन्हें फाड़कर फेंक देता। ऐसा तीन साल तक चलता रहा। मैंने जिम से दोस्ती सिर्फ उसके अच्छे व्यवहार की वज़ह से कर रखी थी। मगर मैंने यह भी सोच रखा था कि धर्म के मामले में वह मुझसे जो कुछ कहेगा उसे मैं एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दूँगा।

मगर धीरे-धीरे मुझे एहसास होने लगा था कि जो कुछ मैं विश्‍वास करता और मानता आया हूँ जैसे त्रियेक, नरक, और अमर आत्मा की शिक्षाएँ, ये बाइबल के मुताबिक सही नहीं हैं। (सभोपदेशक 9:10; यहेजकेल 18:4; यूहन्‍ना 20:17) मैं एक ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च का सदस्य था। बस इसी बात के गुरूर की वज़ह से मैं जिम के सामने यह कबूल करने से झिझकता था कि वह जो कह रहा है वही सही है। लेकिन फिर मैंने इस बात पर गौर किया कि जो कुछ भी जिम बताता था वह बाइबल से बताता था कभी उसने मुझ पर अपनी राय थोपने की कोशिश नहीं की। इसीलिए मुझे लगा कि ज़रूर उसकी बातों में दम है।

उस दौरान मेरी पत्नी ने भाँप लिया कि कुछ तो चल रहा है। उसने मुझसे पूछा कि क्या आप अपने उस दोस्त से बातचीत करते हो जो यहोवा के साक्षियों से मिलता-जुलता है। मेरे हाँ कहने पर उसने कहा: “देखिए जी, हम कोई और चर्च चलते हैं मगर यहोवा के साक्षियों के यहाँ नहीं।” मगर कुछ ही समय बाद ऐसा हुआ कि हमारा पूरा परिवार साक्षियों की मीटिंग जाने लगा था।

बहुत मुश्‍किल फैसला

फिर मैंने उनके साथ बाइबल स्टडी करना शुरू किया। एक बार मैंने बाइबल में भविष्यद्वक्‍ता यशायाह के ये शब्द पढ़े: “वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया बनाएंगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध फिर तलवार न चलाएगी, न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे।” (यशायाह 2:4) फिर मैंने खुद से एक सवाल किया, ‘शांति के परमेश्‍वर की सेवा करनेवाला एक इंसान भला ऐसी नौकरी कैसे कर सकता है जहाँ दूसरों की जान लेने के लिए भयानक हथियार बनाए जाते हों?’ (भजन 46:9) मैंने जल्दी ही फैसला कर लिया कि कुछ भी हो मुझे अपनी नौकरी छोड़नी है।

आप समझ सकते हैं कि मेरे लिए यह एक बहुत बड़ा फैसला था। क्योंकि अब समाज में मेरा एक रुतबा था। मैं कामयाबी की बुलंदियों को छू रहा था। यहाँ तक पहुँचने के लिए मैंने सालों खूब पढ़ाई की, और न जाने कितने त्याग किए थे, तब जाकर कहीं मैं यह मंज़िल हासिल कर सका। लेकिन अब मुझे ये सब छोड़ना था। मेरे दिल में यहोवा के लिए सच्चा प्यार था, और मैंने उसकी इच्छा पूरी करने की ठान ली थी। इसलिए आखिरकार मैंने वो नौकरी छोड़ दी।—मत्ती 7:21.

अब मैं दूसरी नौकरी की तलाश में लग गया। जल्द ही मुझे सीऎटल, वाशिंगटन में एक कंपनी में नौकरी मिल गई। लेकिन बाद में मैंने देखा कि यहाँ तो मुझे पहले से भी ज़्यादा हथियार बनाने पड़ते हैं। इसलिए मैंने अपनी नौकरी में हथियार बनाने का काम छोड़ कोई और काम करने की जी-तोड़ कोशिश की। मगर मेरी हर कोशिश बेकार गई। और अगर अब मैं वहाँ नौकरी करता रहता तो मेरा विवेक मुझे हमेशा कचोटता रहता।—1 पतरस 3:21.

यह बात हमारी समझ में आ गई कि अब हमें अपनी ज़िन्दगी में कुछ खास बदलाव लाने हैं। 6 महीने के अन्दर हमने अपने रहन-सहन का तरीका बदल दिया, और परिवार के दूसरे खर्चों में कटौती कर दी। हमने अपना बड़ा आलीशान घर बेचकर कोलोरेडा के देनवर शहर में एक छोटा-सा घर खरीद लिया। अब बारी थी, मेरे आखिरी कदम उठाने की। मैंने अपना इस्तीफा लिखा जिसमें मैंने बताया कि मैं यह नौकरी अपने विश्‍वास के कारण छोड़ रहा हूँ। उस रात जब बच्चे सो गए, तब मैंने और एकॉतेरीनी ने घुटनों के बल बैठकर यहोवा से प्रार्थना की। इसी का ज़िक्र मैंने शुरू में किया है।

एक महीने से कम समय में हम देनवर शहर में जाकर बस गए। और दो सप्ताह बाद, जुलाई 1975 में मैंने और मेरी पत्नी ने बपतिस्मा ले लिया। लेकिन 6 महीने तक मुझे नौकरी नहीं मिली, हमारे पास जो भी जमा-पूँजी थी वह धीरे-धीरे खत्म होती जा रही थी। सातवें महीने में हमारे पास उतना पैसा भी नहीं था कि हम बैंक लोन की किश्‍त भर सकें। इसलिए अब मैं छोटी-मोटी नौकरी करने के लिए भी तैयार था। पर जल्द ही मुझे इंजीनियर का काम मिल गया। अब मेरी तनख्वाह पहले से आधी ज़रूर थी लेकिन यह उससे कहीं बढ़कर था जिसके लिए मैंने यहोवा से बिनती की थी। सचमुच, मैं बहुत खुश हूँ कि मैंने आध्यात्मिक बातों को पहला स्थान दिया।—मत्ती 6:33.

हमने बच्चों को यहोवा से प्यार करना सिखाया

मैंने और एकॉतेरीनी ने यहोवा के सिद्धांतों के मुताबिक अपने चारों बच्चों की परवरिश की। हालाँकि यह एक चुनौती-भरा काम था मगर यहोवा की मदद से हम यह कर सके। आज यह देखते हुए मुझे बड़ी खुशी होती है कि मेरे सारे बच्चे परमेश्‍वर के मार्ग पर चल रहे हैं। वे अपना पूरा समय परमेश्‍वर के राज्य का प्रचार करने में लगा रहे हैं। हमारे बेटे क्रीस्तोस, लाकेस और ग्रेगरी, तीनों मिनिस्टीरियल ट्रेनिंग स्कूल से ग्रेजुएट हुए हैं और आज वे अलग-अलग जगहों में सेवा रहे हैं। वे कलीसियाओं में विज़िट करने के द्वारा भाई-बहनों को आध्यात्मिक रूप से मज़बूत करते हैं। और हमारी बेटी टूला न्यू यॉर्क के हैडक्वॉटर्स में सेवा कर रही है। जब हमने देखा कि किस तरह हमारे बच्चों ने यहोवा की सेवा करने के लिए अपनी बड़ी-बड़ी नौकरियों को त्याग दिया, तो इस बात ने हमारे दिल को छू लिया।

बहुत-से लोगों ने हमसे पूछा कि बच्चों की इतनी अच्छी परवरिश के पीछे आखिर क्या राज़ है? बच्चों की अच्छी तरह परवरिश करने के पीछे कोई खास फार्मूला तो नहीं हैं मगर इतना ज़रूर है कि हमने हमेशा यह कोशिश की कि बच्चों के दिल में परमेश्‍वर और पड़ोसियों के प्रति प्यार बिठा सकें। (व्यवस्थाविवरण 6: 6, 7; मत्ती 22:37-39) हमारे बच्चों ने सीखा है कि हम तभी यह कह सकते हैं कि हम यहोवा परमेश्‍वर से प्यार करते हैं जब हम ऐसा अपने कामों से दिखाते हैं।

हमारा पूरा परिवार मिलकर सप्ताह में एक दिन, ज़्यादातर शनिवार को प्रचार के लिए जाता था। और हर सोमवार की रात, खाने के बाद पारिवारिक बाइबल अध्ययन किया करता था। हम अपने हर बच्चे के साथ एक अलग बाइबल स्टडी भी करते थे। जब बच्चे छोटे थे, तब हम हरेक के साथ बाइबल स्टडी सप्ताह में कई दिन, थोड़ी-थोड़ी देर के लिए करते थे ताकि वे अच्छी तरह से समझ सकें। लेकिन जब वे बड़े हो गए तब हम उनके साथ हफ्ते में एक दिन, देर तक बाइबल स्टडी करते थे। उस दौरान बच्चे हमसे खुलकर अपने दिल की बात बताया करते थे और जो कुछ समस्या होती थी उस पर बातचीत करते थे।

हम एक-साथ मिलकर बहुत मज़े भी करते थे। हमें म्यूज़िकल इन्सट्रूमैंट बजाना बहुत पसन्द था। हर कोई अपना मन-पसन्द गाना बजाता था। कभी-कभी हम दूसरे परिवारों को अपने घर बुलाते थे और उनकी संगति से भी हमने बहुत कुछ सीखा। हम छुट्टियाँ लेकर सैर-सपाटे पर भी निकलते थे। एक बार की छुट्टियों में हमने दो सप्ताह बिताए थे। उस वक्‍त हम कोलरेडा की पहाड़ियों पर चढ़े और बहुत मज़ा किया। फिर हम वहाँ की कलीसिया के साथ प्रचार में भी गए। और जब ज़िला अधिवेशन होते या कहीं किंगडम हॉल बनाने का काम होता तो बच्चे भी उसमें हिस्सा लेते थे। वे आज भी वो दिन याद करके खुश होते हैं। एक बार हम उन्हें अपने रिश्‍तेदारों से मिलवाने के लिए ग्रीस भी लेकर गए। वहाँ वे ऐसे भाई-बहनों से भी मिल सके जिन्हें उनके विश्‍वास की वज़ह से जेल में डाल दिया गया था। इस बात ने उनके दिलो-दिमाग पर एक गहरी छाप छोड़ी थी कि उन्हें भी सच्चाई की खातिर हर मुसीबत का डटकर सामना करना चाहिए।

हाँ, यह बात सच है कि कई बार हमारे कुछ बच्चे सही तरीके से पेश आने में चूक गए और वे गलत लोगों से भी दोस्ती कर बैठे। और ऐसी बात नहीं है, कई बार हमसे भी गलती हो गई थी। जैसे हमनें कभी-कभी उन पर ज़रूरत से ज़्यादा सख्ती बरती और इस तरह उनके लिए समस्या पैदा कर दी। लेकिन ऐसे में भी बाइबल की मदद से जब हमने उन्हें “प्रभु की शिक्षा” देकर समझाया, तो सब कुछ सँभल गया।—इफिसियों 6:4; 2 तीमुथियुस 3:16, 17.

ज़िन्दगी के सबसे अच्छे पल।

जब बच्चों ने पूर्ण समय की सेवकाई शुरू कर दी, तो उसके बाद मैंने और एकॉतेरीनी ने गम्भीरता से इस बात पर सोचा कि हम भी अपनी सेवकाई को बढ़ाने के लिये क्या कर सकते हैं। इसलिए 1994 में मेरे रिटायर होने के बाद हम दोनों ने रेगुलर पायनियरिंग शुरू कर दी। जिस जगह हम सेवकाई करते हैं, वहाँ कई कॉलेज और विश्‍वविद्यालय भी हैं। वहाँ के कुछ विद्यार्थियों के साथ हम बाइबल अध्ययन भी करते हैं। स्कूल और कॉलेज के बच्चों को किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है उन्हें मैं अच्छी तरह से समझ सकता हूँ क्योंकि कभी मैं भी इस दौर से गुज़रा था। इसलिए उनको सच्चाई सिखाने में मुझे बहुत कामयाबी मिली। मैंने इथियोपिया, चीन, चीली, तुर्की, थाइलैंड, ब्राज़ील, बोलीव्या, मिस्र, और मैक्सिको से आए विद्यार्थियों को सच्चाई सिखायी जिससे मुझे बहुत खुशी मिली। और मुझे टेलिफोन के ज़रिए सुसमाचार सुनाना भी बहुत अच्छा लगता है, खासतौर से उन लोगों को जो मेरी मातृ-भाषा जानते हैं।

हालाँकि मेरी कुछ सीमाएँ हैं, क्योंकि एक तो मेरी बोली में ग्रीक भाषा का ज़्यादा असर है, दूसरी मेरी ढलती उम्र, फिर भी मैं सेवकाई में हमेशा हाज़िर रहने और यशायाह जैसा जोश दिखाने की कोशिश करता हूँ, जिसने ऐसा कहा: “मैं यहां हूं! मुझे भेज।” (यशायाह 6:8) हम बहुत खुश हैं कि हमने छः से भी ज़्यादा लोगों को सच्चाई में आने में मदद की। सचमुच ये मेरी ज़िन्दगी के सबसे अच्छे पल थे।

एक समय ऐसा भी था जब मैं खतरनाक हथियार बनाने का काम करता था जिनसे लोगों की जान ली जाती थी। लेकिन यहोवा की दया से मैं और मेरा परिवार यहोवा के समर्पित सेवक बन सके और आज हम लोगों की ज़िन्दगी बचाने का काम कर रहे हैं। मुझे अपनी ज़िन्दगी में बहुत-से चुनौती भरे फैसले करने पड़े। उनके बारे में जब मैं सोचता हूँ तो मैं देख सकता हूँ कि मलाकी 3:10 के ये शब्द मेरे बारे में भी पूरे हुए हैं: “‘सेनाओं का यहोवा यह कहता है, कि ऐसा करके मुझे परखो कि मैं आकाश के झरोखे तुम्हारे लिए खोलकर तुम्हारे ऊपर अपरम्पार आशीष की वर्षा करता हूं कि नहीं।’” सचमुच यहोवा ने मुझे अपरम्पार आशीष दी है!

[पेज 27 पर बक्स/तसवीर]

लाकेस: पापा को कपटी लोगों से सख्त नफरत थी। उन्होंने खुद भी बहुत कोशिश की जिससे वो ऐसे न हों, खासतौर से इस बात में उन्होंने अपने परिवार के लिए एक अच्छा उदाहरण रखा। वो अक्सर हमसे कहते थे: “यहोवा को अपना जीवन समर्पित करने में एक बहुत ही अहम बात शामिल है। हमारे अन्दर हमेशा परमेश्‍वर की खातिर त्याग की भावना होनी चाहिए। यही एक सही मसीही होने का मतलब है।” उनके ये शब्द मेरे दिल में अच्छी तरह बैठ गए हैं। उनके उदाहरण से मुझे भी परमेश्‍वर यहोवा के लिए त्याग करने की हिम्मत मिली।

[पेज 27 पर बक्स/तसवीर]

क्रीस्तोस: मैं अपने मम्मी-पापा की दिल से कद्र करता हूँ कि उन्होंने पूरी निष्ठा के साथ यहोवा की सेवा की और हम बच्चों की परवरिश करने की जो ज़िम्मेदारी उन्हें यहोवा की तरफ से मिली उसे उन्होंने बखूबी निभाया। हम हर काम एक साथ मिलकर किया करते थे, फिर चाहे वह यहोवा की सेवा हो या या छुट्टियाँ मनाना हो। मेरे मम्मी-पापा चाहे तो ज़िन्दगी में और भी बहुत कुछ कर सकते थे लेकिन इसके विपरीत उन्होंने सादगी भरी ज़िन्दगी बिताई और अपना पूरा ध्यान परमेश्‍वर की सेवा में लगाया। आज, मैं भी कह सकता हूँ कि जब मैं यहोवा की सेवा में पूरी तरह लग जाता हूँ तो मुझे सच्ची खुशी मिलती है।

[पेज 28 पर बक्स/तसवीर]

ग्रेगरी: मम्मी-पापा के शब्दों से ज़्यादा उनकी मिसाल से मुझे बहुत हिम्मत मिली। पहले मैं पूर्ण समय की सेवा करने से बहुत झिझकता था कि मैं यह कर पाऊँगा या नहीं। लेकिन मम्मी-पापा की मिसाल और सेवकाई में उनकी खुशी देखकर मैंने सारी चिंताएँ छोड़ दी और पूर्ण समय की सेवकाई में लग गया। मैं उनका बहुत आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे यह समझने में मदद की कि मेहनत करने से ही खुशी मिलती है।

[पेज 28 पर बक्स/तसवीर]

टूला: मम्मी-पापा हमेशा इस बात पर ज़ोर दिया करते थे कि परमेश्‍वर यहोवा के साथ हमारे रिश्‍ते से बढ़कर कोई और बात हमारे लिए अनमोल नहीं है। और परमेश्‍वर यहोवा को अपना भरसक देकर ही जीवन में हम सच्ची खुशी पा सकते हैं। उन्होंने हमें यहोवा के करीब आने में मदद की। पापा हमेशा हमसे कहा करते थे कि जिस दिन यहोवा के लिए हम अपना भरसक करते या उसे सर्वोत्तम देते हैं उस दिन हमें बहुत खुशी मिलती है कि हमने यहोवा के लिए कुछ किया और रात को हम चैन की नींद सो सकते हैं।

[पेज 25 पर तसवीर]

सन्‌ 1951 में जब मैं ग्रीस में एक फौजी था

[पेज 25 पर तसवीर]

सन्‌ 1966 में एकॉतेरीनी के साथ

[पेज 26 पर तसवीर]

सन्‌ 1996 में मेरा परिवार, बाएँ से दाएँ, ऊपर से नीचे: ग्रेगरी, क्रीस्तोस, टूला, लाकेस, एकॉतेरीनी और मैं