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स्तुतिरूपी बलिदान, जिनसे यहोवा खुश होता है

स्तुतिरूपी बलिदान, जिनसे यहोवा खुश होता है

स्तुतिरूपी बलिदान, जिनसे यहोवा खुश होता है

“अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्‍वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ।”रोमियों 12:1.

1. बाइबल में मूसा की व्यवस्था के अधीन चढ़ाए जानेवाले बलिदानों के बारे में क्या कहा गया है?

 “क्योंकि व्यवस्था जिस में आनेवाली अच्छी वस्तुओं का प्रतिबिम्ब है, पर उन का असली स्वरूप नहीं, इसलिये उन एक ही प्रकार के बलिदानों के द्वारा, जो प्रति वर्ष अचूक चढ़ाए जाते हैं, पास आनेवालों को कदापि सिद्ध नहीं कर सकतीं।” (इब्रानियों 10:1) यहाँ प्रेरित पौलुस साफ-साफ बता रहा है कि मूसा की कानून-व्यवस्था के अधीन चढ़ाए जानेवाले बलिदानों से इंसानों को उद्धार नहीं मिल सकता।—कुलुस्सियों 2:16, 17.

2. व्यवस्था में दी गयी बलिदानों और भेंटों की जानकारी को समझने में हमारी मेहनत क्यों बेकार नहीं गयी है?

2 क्या इसका मतलब यह है कि भेंट और बलिदानों के बारे में उत्पत्ति से व्यवस्थाविवरण में दी गयी जानकारी का आज मसीहियों के लिए कोई फायदा नहीं है? हमने पिछले एकाध साल में, थियोक्रैटिक मिनिस्ट्री स्कूल में इन पाँचों किताबों को पढ़ा है। कुछ भाई-बहनों ने उनमें दी गई बातों को समझने में बहुत मेहनत की है। क्या उनकी मेहनत बेकार गयी है? जी नहीं, ऐसी बात नहीं है, क्योंकि “जितनी बातें पहिले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिक्षा के लिये लिखी गईं हैं कि हम धीरज और पवित्र शास्त्र की शान्ति के द्वारा आशा रखें।” (रोमियों 15:4) सो फिर सवाल उठता है कि हम व्यवस्था में दी गयी बलिदान और भेंटों की जानकारी से कौन-सी “शिक्षा” और “शान्ति” पा सकते हैं?

हमारी शिक्षा और शांति के लिए

3. हमें किन दो चीज़ों की ज़रूरत है?

3 मूसा की कानून-व्यवस्था के मुताबिक इस्राएलियों को अपने पापों की माफी पाने और परमेश्‍वर के साथ अच्छा रिश्‍ता कायम रखने के लिए बलिदान चढ़ाने की ज़रूरत थी। आज हम कानून-व्यवस्था के अधीन नहीं हैं, सो हमें बलि चढ़ाने की ज़रूरत नहीं है। मगर हमें भी अपने पापों की माफी चाहिए और परमेश्‍वर के साथ अच्छा रिश्‍ता भी। आज हम ये दोनों कैसे पा सकते हैं? पौलुस कहता है कि ये हमें जानवरों के बलिदान से नहीं मिल सकता, बल्कि सिर्फ यीशु दे सकता है। पौलुस ने कहा: “वह [यीशु] जगत में आते समय कहता है, कि बलिदान और भेंट तू ने न चाही, पर मेरे लिये एक देह तैयार किया। होम-बलियों और पाप-बलियों से तू प्रसन्‍न नहीं हुआ। तब मैं ने कहा, देख, मैं आ गया हूं, (पवित्र शास्त्र में मेरे विषय में लिखा हुआ है) ताकि हे परमेश्‍वर तेरी इच्छा पूरी करूं।”—इब्रानियों 10:5-7.

4. पौलुस ने भजन 40:6-8 को यीशु पर कैसे लागू किया?

4 भजन 40:6-8 को यीशु पर लागू करते हुए पौलुस कहता है कि यीशु “बलिदान और भेंट,” ‘होम-बलि और पाप-बलि’ चढ़ाने नहीं आया था। दरअसल, यीशु एक ऐसी देह की बलि चढ़ाने आया था जिसे खुद यहोवा ने तैयार किया था, और जो हर मायने में आदम की देह की तरह थी। (उत्पत्ति 2:7; लूका 1:35; 1 कुरिन्थियों 15:22, 45) परमेश्‍वर का सिद्ध बेटा, यीशु उत्पत्ति 3:15 में बतायी गयी स्त्री का “वंश” भी था। अपनी ‘एड़ी डसे’ जाने के बाद उसे ‘शैतान का सिर कुचलना था।’ यहोवा के इस इंतज़ाम से इंसानों के लिए उद्धार का रास्ता खुला। हाबिल के समय से परमेश्‍वर के सभी सेवक इसी “वंश” की आस में थे।

5, 6. मसीहियों के पास परमेश्‍वर के साथ रिश्‍ता रखने का कौन-सा बेहतर ज़रिया है?

5 “वंश” के रूप में यीशु की इस खास भूमिका के बारे में पौलुस कहता है: “जो पाप से अनजान था, उसी को उसने [परमेश्‍वर] हमारे लिए पाप ठहराया कि हम उसमें परमेश्‍वर की धार्मिकता बन जाएं।” (2 कुरिन्थियों 5:21, NHT) एक बाइबल में “पाप ठहराया” इन शब्दों का अनुवाद “पाप-बलि बनाया,” यूँ किया गया है। प्रेरित यूहन्‍ना कहता है: “वही हमारे पापों का प्रायश्‍चित्त है: और केवल हमारे ही नहीं, बरन सारे जगत के पापों का भी।” (1 यूहन्‍ना 2:2) सो, यीशु मसीह के बलिदान की वज़ह से हम मसीही परमेश्‍वर के साथ हमेशा का रिश्‍ता रख सकते हैं, जबकि जानवरों के बलिदान से इस्राएलियों के लिए यह मुमकिन नहीं था। इसलिए यीशु का बलिदान परमेश्‍वर के साथ रिश्‍ता रखने का एक बेहतर ज़रिया है। (यूहन्‍ना 14:6; 1 पतरस 3:18) जी हाँ, अगर हम यहोवा के इस इंतज़ाम यानी छुड़ौती बलिदान पर विश्‍वास रखें और उसकी आज्ञा मानें, तभी हम अपने पापों की माफी पा सकते और उसके साथ एक अच्छा रिश्‍ता रख सकते हैं। (यूहन्‍ना 3:17, 18) इस बात से हमारे दिल को सचमुच “शान्ति” मिलती है! मगर अब सवाल उठता है कि हम छुड़ौती बलिदान में विश्‍वास कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं?

6 छुड़ौती बलिदान किस तरह एक बेहतर ज़रिया है, यह समझाने के बाद प्रेरित पौलुस इब्रानियों 10:22-25 में ऐसे तीन तरीके बताता है, जिनके द्वारा हम छुड़ौती के इंतज़ाम पर अपना विश्‍वास ज़ाहिर कर सकते हैं और इसके लिए परमेश्‍वर को एहसान दिखा सकते हैं। ये तीनों तरीके खासकर ‘पवित्र स्थान में प्रवेश करनेवाले,’ यानी स्वर्ग जानेवाले अभिषिक्‍त मसीहियों के लिए हैं। (इब्रानियों 10:19) लेकिन, अगर हम यीशु के बलिदान से लाभ पाना चाहते हैं, तो हमें भी इन तीनों तरीकों पर ध्यान देना चाहिए।

शुद्ध और दोष से मुक्‍त बलिदान चढ़ाएँ

7. (क) इब्रानियों 10:22 से बलिदानों के बारे में क्या पता चलता है? (ख) अन्‍न या जानवर को अर्पण करने से पहले क्या किया जाता था, ताकि परमेश्‍वर उसे कबूल करे?

7 सबसे पहले तरीके और माँग के बारे में बात करते हुए पौलुस कहता है: “आओ; हम सच्चे मन, और पूरे विश्‍वास के साथ, और विवेक का दोष दूर करने के लिये हृदय पर छिड़काव लेकर, और देह को शुद्ध जल से धुलवाकर परमेश्‍वर के समीप जाएं।” (इब्रानियों 10:22) यहाँ कुछ ऐसा ही करने के लिए कहा गया है जो हर बलिदान के समय किया जाता था। सबसे बड़ी माँग यह थी कि बलि के लिए वही जानवर चढ़ाया जाए जो व्यवस्था के मुताबिक शुद्ध और निष्कलंक है। पक्षियों में से सिर्फ पंडुकी या छोटे कबूतरों की ही बलि चढ़ायी जानी थी। इन्हें सही इरादे से चढ़ाया जाना था और इनमें किसी भी तरह का ‘दोष’ नहीं होना था। तभी परमेश्‍वर उसे कबूल करता, यानी उसे ‘उनके प्रायश्‍चित्त के तौर पर ग्रहण’ करता। (लैव्यव्यवस्था 1:2-4, 10, 14; 22:19-25) अगर अन्‍नबलि चढ़ायी जा रही है, तो उसमें खमीर नहीं होना चाहिए था क्योंकि खमीर सड़न को दर्शाता है। ना ही उसमें शहद, या किसी फल का रस होना चाहिए था क्योंकि वह भी खमीर का काम करता है। इन सबके अलावा, बलिदानों को, चाहे वह जानवर हो या अन्‍न, जब वेदी पर अर्पित किया जाता था, तो उसमें नमक भी मिलाया जाना था, क्योंकि नमक किसी भी खाने की चीज़ को जल्दी सड़ने नहीं देता।—लैव्यव्यवस्था 2:11-13.

8. (क) बलिदान चढ़ानेवाले व्यक्‍ति को कैसा होना चाहिए था? (ख) अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमारी भक्‍ति को कबूल करे, तो हमें क्या करना चाहिए?

8 यह हुई बलि के अन्‍न या जानवर के शुद्ध होने की बात। मगर बलिदान चढ़ानेवाले व्यक्‍ति के बारे में क्या? कानून-व्यवस्था में कहा गया था कि परमेश्‍वर को बलि चढ़ानेवाले हर व्यक्‍ति को भी शुद्ध और हर दोष से मुक्‍त होना चाहिए। अगर एक व्यक्‍ति किसी वज़ह से अशुद्ध हो जाता, तो उसे परमेश्‍वर की नज़र में फिर से शुद्ध होने के लिए पहले पापबलि या दोषबलि चढ़ानी पड़ती थी। इसके बाद ही वह परमेश्‍वर के साथ अच्छा रिश्‍ता रख सकता था और तभी उसकी होमबलि या मेलबलि को परमेश्‍वर कबूल करता। (लैव्यव्यवस्था 5:1-6, 15, 17) क्या इससे हम यह नहीं सीखते कि हमें भी हमेशा शुद्ध रहना चाहिए, ताकि हम परमेश्‍वर के साथ अच्छा रिश्‍ता रख सकें? जी हाँ, अगर हम चाहते हैं कि परमेश्‍वर हमारी भक्‍ति को कबूल करे, तो हमें परमेश्‍वर के नियम नहीं तोड़ने चाहिए, और अगर तोड़ते हैं तो सुधारने के लिए फौरन कदम उठाना चाहिए। इसमें हमारी मदद करने के लिए परमेश्‍वर ने ‘कलीसिया के प्राचीनों’ का और छुड़ौती बलिदान का इंतज़ाम किया है, जिसका हमें फायदा उठाना चाहिए।—याकूब 5:14; 1 यूहन्‍ना 2:1, 2.

9. यहोवा को और दूसरे झूठे देवी-देवताओं को चढ़ाए जानेवाले बलिदानों में सबसे बड़ा फर्क कौन-सा है?

9 जी हाँ, यहोवा के लिए चढ़ाए जानेवाले बलिदान हमेशा किसी भी तरह के दोष या गंदे रीति-रिवाज़ों से मुक्‍त होते थे। मगर दूसरे झूठे देवी-देवताओं को चढ़ाए जानेवाले बलिदानों के मामले में ऐसा नहीं था। यहोवा के लिए और दूसरे झूठे देवी-देवताओं के लिए चढ़ाए जानेवाले बलिदानों में यही सबसे बड़ा फर्क और खासियत थी। इसके बारे में एक किताब कहती है: “यह गौरतलब है कि कभी-भी यहोवा के लिए चढ़ाए जानेवाले बलिदानों का जादू-टोने, शकुन-अपशकुन देखने, देवदासियों, कामुक और लैंगिक रीति-रिवाज़ों, मनुष्य की बलियों या मरे हुए लोगों की खातिर बलिदान चढ़ाने से बिलकुल भी ताल्लुक नहीं था।” इन सबसे हम एक बात सीखते हैं: यहोवा पवित्र है, और वह किसी भी तरह के पाप या गंदे कामों को न तो कबूल करता है, ना ही उन्हें नज़रअंदाज़ करता है। (हबक्कूक 1:13) परमेश्‍वर की भक्‍ति और उसे चढ़ाए जानेवाले बलिदानों को हर तरह से शुद्ध होना चाहिए।—लैव्यव्यवस्था 19:2; 1 पतरस 1:14-16.

10. रोमियों 12:1, 2 में दी गयी पौलुस की सलाह के मुताबिक, हमें अपनी ज़िंदगी के बारे में क्या जाँचकर देखना चाहिए?

10 इसलिए हमें यह जाँचकर देखना चाहिए कि हम अपनी ज़िंदगी में जो भी काम करते हैं, क्या वह यहोवा की मरज़ी के मुताबिक है और हम जो सेवा कर रहे हैं, क्या वह यहोवा को कबूल होगा। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि कभी-कभार मीटिंग या प्रचार में चले जाने से हमें अपनी ज़ाती ज़िंदगी में कुछ भी करने की छूट मिल जाती है या हमें परमेश्‍वर के हर नियम को मानने की ज़रूरत नहीं है। (रोमियों 2:21, 22) जी हाँ, अगर हमारे सोच-विचार या काम अशुद्ध हो जाएँ, तो हम यह उम्मीद नहीं रख सकते कि परमेश्‍वर हमें आशीष देगा या हमारे साथ रिश्‍ता कायम रखेगा। याद रखिए कि पौलुस ने कहा: “हे भाइयो, मैं तुम से परमेश्‍वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्‍वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है। और इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नए हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्‍वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।”—रोमियों 12:1, 2.

स्तुतिरूपी बलिदान दिल से चढ़ाइए

11. इब्रानियों 10:23 में “अंगीकार” शब्द का मतलब क्या है और इससे संबंधित कौन-सा शब्द इस्तेमाल किया गया है?

11 यीशु के बलिदान से लाभ पाने के दूसरे तरीके के बारे में पौलुस कहता है: “अपनी आशा के अंगीकार को दृढ़ता से थामे रहें; क्योंकि जिस ने प्रतिज्ञा किया है, वह सच्चा है।” (इब्रानियों 10:23) शब्द “अंगीकार” का मूल अर्थ है “सबके सामने मानना।” पौलुस इसी से संबंधित एक और शब्द, “स्तुतिरूपी बलिदान” का इस्तेमाल करता है। (इब्रानियों 13:15) यह हमें हाबिल, नूह और इब्राहीम जैसे लोगों द्वारा चढ़ाए गए बलिदानों की याद दिलाता है।

12, 13. होमबलि चढ़ाकर इस्राएली क्या दिखाता था, और हम भी यह कैसे दिखा सकते हैं?

12 हर इस्राएली “स्वयं” अपनी खुशी से भेंट के तौर पर “यहोवा के सम्मुख” होमबलि चढ़ाता था। (लैव्यव्यवस्था 1:3, NHT) होमबलि चढ़ाने के द्वारा वह यहोवा की भरपूर आशीषों और प्यार को सब के सामने अंगीकार करता था यानी उसके लिए एहसान दिखाता था। होमबलि की एक खासियत याद कीजिए कि उसमें पूरे-के-पूरे जानवर को वेदी पर होम किया जाता था। यह दर्शाता था कि बलि चढ़ानेवाला व्यक्‍ति पूरी तरह यहोवा को समर्पित है। उसी तरह, हमें यहोवा को अपने ‘स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात्‌ अपने होठों का फल’ खुशी से और पूरे दिल से चढ़ाने चाहिए। यही छुड़ौती बलिदान में अपना विश्‍वास ज़ाहिर करने और उस इंतज़ाम के लिए कदरदानी दिखाने का दूसरा तरीका है।

13 आज हम मसीहियों को जानवरों या फल-सब्ज़ियों की बलि चढ़ाने की ज़रूरत नहीं है। मगर हम पर राज्य का सुसमाचार सुनाने और चेले बनाने की ज़िम्मेदारी ज़रूर है। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) सो क्या हम राज्य का सुसमाचार सुनाने में पूरा-पूरा हिस्सा लेते हैं, और ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को यह सिखाते हैं कि परमेश्‍वर भविष्य में वफादार इंसानों के लिए क्या करनेवाला है? क्या हम सिखाने और चेला बनाने के काम के लिए समय निकालते हैं और इस काम में पूरी मेहनत करते हैं? जब हम पूरे जोश के साथ प्रचार के काम में हिस्सा लेते हैं, तो यहोवा इससे खुश होता है। और यह उसकी नज़रों में होमबलि के सुखदायक सुगंध की तरह है।—1 कुरिन्थियों 15:58.

परमेश्‍वर और मनुष्यों की संगति से आनंद पाना

14. इब्रानियों 10:24, 25 में पौलुस के शब्द हमें किस चीज़ की याद दिलाते हैं?

14 यीशु के बलिदान से लाभ पाने का आखिरी तरीका है, बाकी मसीहियों के साथ अच्छा रिश्‍ता रखना। पौलुस कहता है कि हम “प्रेम, और भले कामों में उस्काने के लिये एक दूसरे की चिन्ता किया करें। और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसे कि कितनों की रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहें; और ज्यों ज्यों उस दिन को निकट आते देखो, त्यों त्यों और भी अधिक यह किया करो।” (इब्रानियों 10:24, 25) “प्रेम, और भले कामों में उस्काने के लिये,” “एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना,” और “एक दूसरे को समझाते रहें,” ये शब्द हमें याद दिलाते हैं कि मेलबलि क्यों चढ़ायी जाती थी।

15. मेलबलि और मसीही सभाओं में कौन-सी समानता है?

15 “मेलबलि” चढ़ाकर व्यक्‍ति दिखाता था कि उसका परमेश्‍वर के साथ पहले से ही मेल है और उसके और परमेश्‍वर के बीच अच्छा रिश्‍ता मौजूद है। यहाँ इब्रानी भाषा में “मेल” के लिए इस्तेमाल किया गया शब्द बहुवचन में है। इससे पता चलता है कि बलि चढ़ानेवाले का दो जनों के साथ मेल है, एक तो यहोवा परमेश्‍वर के साथ और दूसरा बाकी इस्राएलियों के साथ। मेलबलियों के बारे में एक विद्वान कहता है: “मेलबलि चढ़ाने का समय परमेश्‍वर के साथ संगति करने और आनंद करने का समय था क्योंकि इस समय परमेश्‍वर मानो इस्राएलियों का मेहमान बनकर उनके साथ मेलबलि का भोजन करता था।” यह हमें यीशु के वादे की याद दिलाता है: “जहां दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं, वहां मैं उन के बीच में होता हूं।” (मत्ती 18:20) सो, जैसे मेलबलि चढ़ाने के समय, यहोवा मानो इस्राएलियों के बीच हुआ करता था, उसी तरह जब हम सभाओं में जाते हैं, मसीही संगति का आनंद उठाते हैं और शिक्षा पाते हैं, तब हमारा प्रभु यीशु मसीह भी हमारे बीच मौजूद होता है। जी हाँ, इसी वज़ह से सभाओं से हमें खुशी मिलती है और हमारा विश्‍वास और भी बुलंद होता है।

16. मेलबलियों को मद्देनज़र रखते हुए, मसीही सभाओं में हम सबसे उत्तम भाग कैसे अर्पित कर सकेत हैं?

16 मेलबलि में जानवर के शरीर की पूरी चरबी, यानी अंतड़ियों और गुर्दों के आस-पास की, कलेजे के ऊपर की झिल्ली और कमर के पास की चरबी वेदी पर होम की जाती थी। और बलि अगर भेड़ के बच्चे का हो, तो उसकी मोटी पूँछ की चरबी भी होम की जाती थी। (लैव्यव्यवस्था 3:3-16) चरबी को शरीर का सबसे उत्तम भाग माना जाता है। इसलिए इसे वेदी पर होम करने का मतलब था यहोवा को बढ़िया-से-बढ़िया भाग अर्पित करना। क्योंकि मेलबलि की तुलना हमारी मसीही सभाओं से की जा सकती है, तो हम मसीही सभाओं में अपना सबसे उत्तम भाग कैसे अर्पित कर सकते हैं? दिल से गीत गाकर, ध्यान से सुनकर, और हमेशा जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार रहकर। इस तरह सभाओं में हम न सिर्फ यहोवा से तालीम पाते हैं, बल्कि हम उसकी स्तुति भी करते हैं, जिससे हमें बहुत खुशी मिलती है। भजनहार ने कहा, “याह की स्तुति करो! यहोवा के लिये नया गीत गाओ, भक्‍तों की सभा में उसकी स्तुति गाओ!”—भजन 149:1.

यहोवा हमें भरपूर आशीषें देगा

17, 18. (क) यरूशलेम के मंदिर के उद्‌घाटन के समय सुलैमान ने क्या-क्या बलिदान चढ़ाए? (ख) इसका उन्हें क्या फल मिला?

17 सामान्य युग पूर्व 1026 के सातवें महीने में, यरूशलेम के मंदिर के उद्‌घाटन के समय, राजा सुलैमान ने “यहोवा के सम्मुख [बहुत बड़ी संख्या में] बलिदान” चढ़ाए। उसने “होमबलि, अन्‍नबलि और मेलबलियों की चरबी चढ़ाई।” अन्‍नबलि के अलावा उसने 22,000 बैलों और 1,20,000 भेड़ों की बलि चढ़ायी।—1 राजा 8:62-65, NHT.

18 क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में बलिदान चढ़ाने का कितना खर्च आया होगा और कितनी मेहनत लगी होगी? मगर इन बलिदानों की वज़ह से इस्राएलियों को जो आशीषें मिलीं, उनके सामने यह खर्च कुछ भी नहीं था। इस पर्व के आखिर में, सुलैमान “ने प्रजा के लोगों को बिदा किया। और वे राजा को धन्य, धन्य, कहकर उस सब भलाई के कारण जो यहोवा ने अपने दास दाऊद और अपनी प्रजा इस्राएल से की थी, आनन्दित और मगन होकर अपने अपने डेरे को चले गए।” (1 राजा 8:65, 66) जी हाँ, सुलैमान ने सच ही कहा कि “प्रभु [यहोवा] की आशीष से मनुष्य धनवान बनता है। प्रभु धन के साथ उसको दुःख नहीं देता।”—नीतिवचन 10:22, नयी हिन्दी बाइबिल।

19. परमेश्‍वर से आशीष पाने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

19 यह ‘आनेवाली अच्छी वस्तुओं के प्रतिबिम्ब’ का समय नहीं, बल्कि “असली स्वरूप” का समय है। (इब्रानियों 10:1) महायाजक की तरह, यीशु मसीह अति-पवित्र, यानी स्वर्ग में प्रवेश कर चुका है, और अपने लहू की कीमत पेश कर चुका है, ताकि उसके बलिदान में विश्‍वास रखनेवाले सभी लोगों के लिए प्रायश्‍चित किया जाए। (इब्रानियों 9:10, 11, 24-26) अगर हम इस महान बलिदान पर विश्‍वास करेंगे, और पूरे दिल से परमेश्‍वर को स्तुति के शुद्ध और निर्दोष बलिदान चढ़ाएँगे, तो हम भी “आनन्दित और मगन होकर” आगे बढ़ते रह सकते हैं और यहोवा से भरपूर आशीषें पाने की आशा कर सकते हैं।—मलाकी 3:10.

आप किस तरह जवाब देंगे?

• मूसा की कानून-व्यवस्था में दी गयी बलिदानों और भेंटों की जानकारी से हम कैसी “शिक्षा” और “शान्ति” पा सकते हैं?

• बलिदान चढ़ाने के लिए सबसे पहली माँग क्या है और इसका आज हमारे लिए क्या मतलब है?

• होमबलि की तरह आज हम क्या चढ़ाते हैं?

• मेलबलि और मसीही सभाओं में कौन-सी समानता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 18 पर तसवीर]

इंसानों का उद्धार करने के लिए यहोवा ने यीशु के छुड़ौती बलिदान का इंतज़ाम किया

[पेज 20 पर तसवीर]

अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमारी सेवा को कबूल करे, तो हमें हर प्रकार की अशुद्धता से दूर रहना होगा

[पेज 21 पर तसवीर]

प्रचार के काम में हिस्सा लेकर हम दिखाते हैं हम यहोवा की भलाई के लिए एहसानमंद हैं