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इंतज़ार करने की मनोवृत्ति रखिए!

इंतज़ार करने की मनोवृत्ति रखिए!

इंतज़ार करने की मनोवृत्ति रखिए!

“मैं अपने उद्धारकर्त्ता परमेश्‍वर की बाट जोहता रहूंगा; मेरा परमेश्‍वर मेरी सुनेगा।”मीका 7:7.

1, 2. (क) गलत नज़रिया रखने की वज़ह से वीराने में इस्राएलियों पर क्या असर हुआ? (ख) अगर एक मसीही की मनोवृत्ति सही नहीं होगी तो उसे क्या हो सकता है?

 ज़िंदगी की हर अच्छी या बुरी परिस्थिति को हम किस नज़र से देखते हैं, यह हमारी मनोवृत्ति पर निर्भर करता है। इस्राएलियों की मिसाल लीजिए। जब वे वीराने में थे तो उनके चारों तरफ बस बंजर ज़मीन थी। उस वक्‍त यहोवा ने चमत्कार किया और उन्हें खाने को मन्‍ना दिया। इसके लिए उन्हें यहोवा का एहसान मानना चाहिए था। इससे यह ज़ाहिर होता कि उनका नज़रिया सही है और वे हर हालात में अच्छाई ढूँढ़ने और संतुष्ट रहने की कोशिश करते हैं। मगर, उनका नज़रिया सही नहीं था। इसलिए वे एहसान दिखाने के बजाय शिकायत करने लगे। उन्हें मिस्र के स्वादिष्ट भोजन की याद सताने लगी। उन्हें मन्‍ना एकदम बेस्वाद और घटिया लगने लगा। इसकी वज़ह से वे निराश और नाखुश हो गए। वाकई उनका नज़रिया कितना गलत था!—गिनती 11:4-6.

2 उसी तरह आज भी, एक मसीही की मनोवृत्ति की वज़ह से ज़िंदगी उसके लिए या तो खुशियों की बहार होगी या फिर गम का गहरा सागर। अगर उसकी मनोवृत्ति सही नहीं है तो बहुत जल्दी वह निराश हो जाएगा, उसकी खुशियाँ छिन जाएगी। यह एक गंभीर बात है क्योंकि नहेमायाह ने कहा: “यहोवा का आनन्द [हमारा] दृढ़ गढ़ है।” (नहेमायाह 8:10) जी हाँ, एक सही, यहाँ तक कि खुश रहने की मनोवृत्ति हमें दृढ़ बना सकती है और कलीसिया में भी शांति और एकता बढ़ा सकती है।—रोमियों 15:13; फिलिप्पियों 1:25.

3. किस तरह सही नज़रिए ने यिर्मयाह को बुरे-से-बुरे हालात का सामना करने में मदद की?

3 यिर्मयाह बहुत ही मुश्‍किल समयों में जी रहा था, मगर वह निराश नहीं हुआ। बुरे हालात में भी उसे कोई न कोई अच्छाई ज़रूर दिखायी देती थी। सा.यु.पू. 607 में यरूशलेम के नाश के दौरान उसने रोंगटे खड़े कर देनेवाले भयंकर हादसे देखे थे। मगर निराश होने के बजाय यिर्मयाह को उस हालात से होनेवाले फायदे दिखायी दिए। उसे यह मालूम था कि यहोवा इस्राएल जाति को नहीं भूलेगा और वह अपनी दया के कारण बचा लेगा। इस बारे में यिर्मयाह ने विलापगीत की अपनी किताब में लिखा: “हम मिट नहीं गए; यह यहोवा की महाकरूणा का फल है, क्योंकि उसकी दया अमर है। प्रति भोर वह नई होती रहती है; तेरी सच्चाई महान है।” (विलापगीत 3:22, 23) पुराने ज़माने से लेकर आज तक यहोवा के कई सेवकों ने बुरे-से-बुरे हालात में भी अपना नज़रिया सही बनाए रखा, यहाँ तक कि वे ऐसे हालात में भी खुश रहे।—2 कुरिन्थियों 7:4; 1 थिस्सलुनीकियों 1:6; याकूब 1:2.

4. कठिन हालात में भी यीशु की मनोवृत्ति कैसी थी और इससे उसे क्या मदद मिली?

4 यिर्मयाह के ज़माने के छः सौ साल बाद, यीशु इस पृथ्वी पर आया। कठिन हालात में भी अच्छाई ढूढ़ने की मनोवृत्ति की वज़ह से, वह भी हर दुःख-तकलीफ को झेलने में कामयाब हुआ। इस बारे में हम पढ़ते हैं: ‘यीशु ने उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्जा की कुछ चिन्ता न करके, यातना स्तंभ का दुख सहा; और सिंहासन पर परमेश्‍वर के दहिने जा बैठा।’ (इब्रानियों 12:2) यीशु ने बहुत ही कड़े विरोध और सताहट का सामना किया, यहाँ तक कि उसने यातना स्तंभ की वेदना भी सही, मगर उसने अपनी नज़र “उस आनन्द” पर गड़ाए रखी “जो उसके आगे धरा था।” वह आनंद क्या था? पहला, यह साबित करना कि विश्‍व पर शासन करने का हक सिर्फ यहोवा का है। दूसरा, परमेश्‍वर के नाम पर लगे इलज़ाम को हटाने का अवसर। तीसरा, अपना बलिदान देकर इंसानों को मिलनेवाली आशीषों की आशा देना।

इंतज़ार करने की मनोवृत्ति अपनाइए

5. ऐसी कौन-सी आम स्थिति है जिसमें इंतज़ार करने की मनोवृत्ति हमें मामले को सही नज़रिए से देखने में मदद करेगी?

5 अगर हम यीशु की तरह मनोवृत्ति रखेंगे तो हम ‘यहोवा के आनन्द’ को अपने अंदर बरकरार रख सकेंगे, उस वक्‍त भी जब हमें लगता है कि हमारी सब उम्मीदों पर पानी फिर गया है और हमारा कोई भी काम जैसे हम चाहते हैं वैसे, और जब हम चाहते हैं तब पूरा नहीं होता। भविष्यवक्‍ता मीका ने कहा: “मैं यहोवा की ओर ताकता रहूंगा, मैं अपने उद्धारकर्त्ता परमेश्‍वर की बाट जोहता रहूंगा।” (मीका 7:7; उत्पत्ति 49:18) हम भी दिखा सकते हैं कि हम परमेश्‍वर की बाट जोहते हैं। कैसे? कई तरीकों से। एक तरीका है, जब हमें लगता है कि एक ज़िम्मेदार भाई ने कोई गलती की है और उस पर फौरन कार्यवाही करनी चाहिए या उसे सुधारा जाना चाहिए। मगर कुछ भी नहीं किया जाता। अगर हममें परमेश्‍वर की बाट जोहने और इंतज़ार करने की मनोवृत्ति है, तो हम यह सोचेंगे कि ‘क्या उस भाई ने सचमुच गलती की है, या मुझसे ही समझने में कोई गलती हुई है? अगर उसने गलती की भी है तो क्या यह हो सकता है कि यहोवा उसे खुद ही सुधरने का मौका दे रहा है, और इसलिए उस पर कोई बड़ी कार्यवाही करने की शायद ज़रूरत ही न पड़े?’

6. अगर व्यक्‍ति कोई समस्या या किसी कमज़ोरी पर काबू पाने की कोशिश कर रहा है, तो इंतज़ार करने की मनोवृत्ति कैसे उसकी मदद कर सकती है?

6 बाट जोहने या इंतज़ार करने की यह मनोवृत्ति हमें तब भी मदद करेगी जब हम कोई समस्या का सामना कर रहे हों या हम किसी कमज़ोरी पर काबू पाने की कोशिश कर रहे हों। मान लीजिए हमने इसके लिए यहोवा से मदद माँगी, पर समस्या खत्म ही नहीं हो रही है। ऐसे में हम क्या करेंगे? हमें उस समस्या को खत्म करने के लिए अपनी तरफ से हर कोशिश करते रहना चाहिए, साथ ही यीशु के इन शब्दों पर भी पूरा विश्‍वास रखना चाहिए: ‘मांगते रहो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूंढ़ते रहो, तो तुम पाओगे; खटखटाते रहो, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा।’ (लूका 11:9) सो हमें प्रार्थना करते रहना चाहिए और यहोवा की बाट जोहते रहनी चाहिए। फिर सही समय पर और अपने तरीके से यहोवा हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देगा।—1 थिस्सलुनीकियों 5:17.

7. बाइबल की हमारी समझ को धीरे-धीरे बढ़ाने के बारे में किस तरह से इंतज़ार करने की मनोवृत्ति हमारी मदद करेगी?

7 जैसे-जैसे बाइबल की भविष्यवाणियाँ पूरी होती हैं, वैसे-वैसे बाइबल के बारे में हमारी समझ को बढ़ाया जाता है। मगर, कभी-कभी हमें शायद लगे कि किसी खास भविष्यवाणी की समझ अब तक हमें दे दी जानी चाहिए थी। मगर, जब उसकी समझ उस वक्‍त नहीं दी जाती है जब हम चाहते हैं, तो क्या हम इंतज़ार करने के लिए तैयार रहते हैं? याद रखिए कि यहोवा ने ‘मसीह के भेद’ को थोड़ा-थोड़ा करके कुछ 4,000 सालों के दौरान प्रकट किया और यह यहोवा के हिसाब से सही था। (इफिसियों 3:3-6) इसे मद्देनज़र रखते हुए क्या हमारे पास बेसब्र होने या जल्दबाज़ी करने की कोई वज़ह है? क्या हमें इस बात का शक है कि यहोवा के लोगों को ‘सही समय पर भोजन’ देने के लिए “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को नियुक्‍त किया गया है? (मत्ती 24:45) अगर हर बात पूरी तरह से समझ नहीं आती हो, तो इसकी वज़ह से हम परमेश्‍वर की सेवा में अपनी खुशी क्यों खोएँ? याद रखिए कि सिर्फ यहोवा ही यह तय करता है कि वह कब और कैसे ‘अपने मर्म’ को प्रकट करेगा।—अमोस 3:7.

8. यहोवा के धीरज की वज़ह से कई लोगों को कैसे फायदा हुआ है?

8 कुछ लोग शायद इस वज़ह से निराश हों कि उन्होंने यहोवा की सेवा में इतने साल बिताए हैं, मगर वे “यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन” को देखने के लिए जीवित नहीं रहेंगे। (योएल 2:30, 31) लेकिन, अगर वे इस स्थिति में भी अच्छाई ढूँढ़ने की कोशिश करें, तो वे हौसला पा सकते हैं। पतरस ने सलाह दी थी: “हमारे प्रभु के धीरज को उद्धार समझो।” (2 पतरस 3:15) यहोवा ने अब तक धीरज धरा है, इसकी वज़ह से और भी कितने लाखों नेकदिल इंसान सच्चाई सीखकर यहोवा की सेवा करने लगे हैं। क्या यह खुशी की बात नहीं है? और तो और, यहोवा जितना ज़्यादा धीरज धरता है, उतना ही ज़्यादा हमें भी ‘डरते और कांपते हुए अपने अपने उद्धार का कार्य्य पूरा करने’ का मौका मिलता है।—फिलिप्पियों 2:12; 2 पतरस 3:11, 12.

9. अगर हम यहोवा की सेवा में पहले जितना नहीं कर पा रहे हैं, तो इंतज़ार करने की मनोवृत्ति कैसे हमारी मदद कर सकती है?

9 जब हम विरोध, बीमारी, ढलती उम्र, या कोई दूसरी समस्या की वज़ह से परमेश्‍वर की सेवा में पहले जितना नहीं कर पाते हैं, तो इंतज़ार करने की मनोवृत्ति हमें हताश होने से रोक सकती है। कैसे? यहोवा हमसे बस यही चाहता है कि हम पूरे दिल से उसकी सेवा करें। (रोमियों 12:1) यहोवा और उसका बेटा यीशु ‘कंगाल और दरिद्र पर तरस’ खाते हैं और वे हमसे उतना ही करने की उम्मीद करते हैं जितना हम कर सकते हैं। (भजन 72:13) फिलहाल हम शायद कुछ समस्याओं की वज़ह से यहोवा की सेवा में बहुत ज़्यादा न कर पा रहे हों, मगर जब तक हालात बदल नहीं जाते, चाहे इस दुनिया में या आनेवाली नयी दुनिया में, तब तक हमें धीरज धरते हुए जितना हो सके, उतना ही करने की कोशिश करनी चाहिए। इब्रानियों 6:10 में लिखी बात भी हमें आज के हालात से खुशी पाने में मदद कर सकती है। वहाँ लिखा है: “परमेश्‍वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये इस रीति से दिखाया, कि पवित्र लोगों की सेवा की, और कर भी रहे हो।”

10. बाट जोहने की मनोवृत्ति रखनेवाला व्यक्‍ति क्या नहीं करेगा और क्यों?

10 बाट जोहने की मनोवृत्ति हमें अपने अंदर घमंड पैदा न होने देने और मामले को अपने हाथ में न लेने में मदद करती है। जो लोग इंतज़ार करने को तैयार नहीं रहते हैं वे आगे जाकर धर्मत्यागी बन जाते हैं। ऐसे लोग शायद सोचते हैं कि बाइबल की समझ में या संगठन के काम करने के तौर-तरीकों में कुछ बदलाव करने की ज़रूरत है। मगर वे यह भूल जाते हैं कि यहोवा अपने नियत समय में, अपनी पवित्र आत्मा के ज़रिए विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास के द्वारा ऐसे बदलाव करवाएगा। और वो भी उस समय में जो उसके मुताबिक ठीक हो, न कि हमारे मुताबिक। और जो भी बदलाव होते हैं वे यहोवा की इच्छा और मकसद के मुताबिक होने चाहिए, न कि हमारे। मगर धर्मत्यागी लोग जल्दबाज़ी करते हैं और अपने घमंड के आगे झुक जाते हैं। और अपने सोच-विचार न बदलने की वज़ह से वे ठोकर खा जाते हैं। लेकिन, अगर उन्होंने मसीह का सा स्वभाव अपनाया होता, तो वे परमेश्‍वर की बाट जोहते रहते और अपनी खुशी को बरकरार रख सकते थे। इतना ही नहीं, वे यहोवा के लोगों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर अब भी काम कर रहे होते।—फिलिप्पियों 2:5-8.

11. इंतज़ार करने के दौरान हम अपने समय का अच्छा इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं और ऐसा करने से हम किनकी मिसाल पर चल रहे होंगे?

11 जी हाँ, इंतज़ार करने की मनोवृत्ति रखने का मतलब यह नहीं है कि हम हाथ-पे-हाथ धरे बैठे रहें। हम इंतज़ार के दौरान समय का अच्छा इस्तेमाल कर सकते हैं। हमारे पास काम भी तो काफी है! मसलन, हम पर्सनल बाइबल स्टडी करने में समय बिता सकते हैं और इस तरह दिखा सकते हैं कि वफादार भविष्यवक्‍ताओं और स्वर्गदूतों की तरह हम भी आध्यात्मिक बातों में बहुत दिलचस्पी लेते हैं। ऐसी दिलचस्पी के बारे में पतरस कहता है: “इसी उद्धार के विषय में उन भविष्यद्वक्‍ताओं ने बहुत ढूंढ़-ढांढ़ और जांच-पड़ताल की, . . . और इन बातों को स्वर्गदूत भी ध्यान से देखने की लालसा रखते हैं।” (1 पतरस 1:10-12) पर्सनल स्टडी करना ज़रूरी तो है ही, मगर बिना नागा मीटिंगों में जाना और प्रार्थना करना भी उतना ही ज़रूरी है। (याकूब 4:8) लगातार आध्यात्मिक भोजन लेने और दूसरे मसीहियों के साथ मेलजोल रखने के द्वारा हम दिखाते हैं कि हम मन के दीन हैं और हमें आध्यात्मिक बातों में दिलचस्पी है और हमने मसीह का स्वभाव अपनाया है।—मत्ती 5:3.

एक सही और बुद्धिमान नज़रिया अपनाइए

12. (क) आदम और हव्वा क्या नहीं चाहते थे? (ख) आदम और हव्वा की तरह मनोवृत्ति दिखाने से क्या अंजाम हुआ है?

12 जब परमेश्‍वर ने पहले मानव जोड़े को बनाया, तब उसने उनके लिए सही-गलत का स्तर तय करने का हक अपने पास ही रखा। (उत्पत्ति 2:16, 17) मगर आदम और हव्वा न तो परमेश्‍वर के अधीन रहना चाहते थे ना ही उसका मार्गदर्शन चाहते थे। सो उन्होंने बगावत की और उसका अंजाम आज हम दुनिया में चारों तरफ देख सकते हैं। प्रेरित पौलुस ने कहा: “एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया।” (रोमियों 5:12) आदम के ज़माने से आज तक कुछ छः हज़ार साल बीते हैं और इन सालों के दौरान जो कुछ हुआ है, उससे हमें यिर्मयाह के इन शब्दों की सच्चाई दिखती है: “हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।” (यिर्मयाह 10:23) यिर्मयाह के इन शब्दों को कबूल करने का मतलब यह नहीं निकलता कि हम नाकामयाब हो रहे हैं। दरअसल कबूल करना अक्लमंदी की ही बात है। क्योंकि इतिहास से हमने देखा है कि “एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाता है,” और इसकी एक खास वज़ह है कि इंसान परमेश्‍वर से स्वतंत्र होकर खुद शासन चलाना चाहता है।—सभोपदेशक 8:9.

13. किस हद तक इंसान समस्याओं को खत्म कर पाएगा, इसके बारे में यहोवा के साक्षी क्या सही नज़रिया रखते हैं?

13 दुनिया की हालत को देखते हुए, यहोवा के साक्षी अच्छी तरह जानते हैं कि इंसान कभी भी दुनिया की सभी समस्याओं को पूरी तरह खत्म नहीं कर सकता। क्योंकि इंसान की काबिलीयत और ताकत की कुछ सीमाएँ हैं। अगर हम कबूल करते हैं कि आज की समस्याएँ इंसान नहीं, बल्कि सिर्फ परमेश्‍वर ही खत्म कर सकता है, तो हम खुश रहेंगे और निराश नहीं होंगे। लेकिन सिर्फ सही नज़रिया रखना हर समस्या का समाधान नहीं है। 1950 के आस-पास अमरीका के एक पादरी ने एक किताब लिखी थी जिसका शीर्षक था, द पावर ऑफ पॉसिटिव थिंकिंग। इस किताब की बहुत बिक्री हुई। इसमें बताया गया था कि अगर व्यक्‍ति का नज़रिया सही है और वह हर हालात में कुछ अच्छाई ढूँढ़ने की कोशिश करता है, तो उसकी ज़्यादातर समस्याएँ सुलझ जाएँगी। यह कुछ हद तक तो सच है मगर तजुर्बे से पता चलता है कि व्यक्‍तिगत तौर पर इंसान की काबिलीयत और ताकत सीमित है। क्योंकि हमारे पास पूरा ज्ञान, कौशल, दूसरी ज़रूरी चीज़ें नहीं हैं इसलिए हम अपने सभी अरमानों को पूरा नहीं कर पाते हैं। अब अगर बड़े पैमाने पर देखें तो, दुनिया की समस्याएँ इतनी बड़ी हैं कि चाहे इंसान कितना भी सही नज़रिया क्यों न रख ले, इन समस्याओं को पूरी तरह से खत्म करना उसके बस की बात है ही नहीं!

14. क्या यहोवा के साक्षी हमेशा उल्टा सोचते हैं और हार मान लेते हैं? समझाइए।

14 यहोवा के साक्षी यही मानते हैं कि इंसान दुनिया के हालात को पूरी तरह से नहीं सुधार सकता, इसीलिए कभी-कभी लोग उन पर यह आरोप लगाते हैं कि वे हमेशा उल्टा ही सोचते हैं और हार मान लेते हैं। मगर, ऐसी बात नहीं है क्योंकि असल में यहोवा के साक्षी, लोगों को परमेश्‍वर के बारे में बताने के लिए उत्सुक रहते हैं जो दुनिया की हर समस्या को हमेशा-हमेशा के लिए जड़ से मिटा सकता है। और ऐसा करने के द्वारा वे यही दिखाते हैं कि वे यीशु मसीह का स्वभाव का अनुकरण कर रहे हैं। (रोमियों 15:2) इतना ही नहीं, वे परमेश्‍वर के साथ एक अच्छा रिश्‍ता कायम करने में दूसरों की मदद भी करते हैं। वे जानते हैं कि आगे जाकर इसी से लोगों को सबसे ज़्यादा फायदा होगा।—मत्ती 28:19, 20; 1 तीमुथियुस 4:16.

15. यहोवा के साक्षियों के काम से लोगों की ज़िंदगी कैसे बेहतर बन जाती है?

15 यहोवा के साक्षी समाज की समस्याओं और बुराइयों को नज़रअंदाज़ नहीं करते। यहोवा के साक्षी बनने से पहले एक व्यक्‍ति को काफी बदलना पड़ता है। उसे उन सभी बुरी आदतों और लतों को छोड़ना पड़ता है जिन्हें परमेश्‍वर पसंद नहीं करता। (1 कुरिन्थियों 6:9-11) यहोवा के साक्षियों ने बाइबल की शिक्षाओं के द्वारा लोगों को बदचलनी, हद-से-ज़्यादा शराब पीने, नशीली दवाइयाँ लेने, और जुआ खेलने की आदतों को छोड़ने में मदद दी है। जिससे ये लोग अपने परिवार की ज़िम्मेदारी उठाना और उन्हें ईमानदारी से पूरा करना सीख सके हैं। (1 तीमुथियुस 5:8) ऐसी मदद से परिवारों में होनेवाली समस्याएँ काफी कम हो जाती हैं। इस तरह समाज की समस्याएँ भी घट जाती हैं क्योंकि नशीले पदार्थ लेनेवाले और घर में मार-पीट करनेवाले लोगों की संख्या कम हो जाती हैं। यहोवा के साक्षी कानून के नियमों का पालन करते हैं और साथ ही दूसरों की ज़िंदगी को बेहतर बनाने के द्वारा ऐसी एजेंसियों का बोझ कम करते हैं जो समाज की समस्याओं को हटाने में लगी रहती हैं।

16. यहोवा के साक्षी सुधार-आंदोलनों में हिस्सा क्यों नहीं लेते?

16 क्या यहोवा के साक्षियों ने दुनिया के नैतिक माहौल को सुधारा है? पिछले दस सालों में साक्षियों की संख्या 38,00,000 से बढ़कर लगभग 60,00,000 हो गयी। इसका मतलब है कुछ 22,00,000 लोग अपनी बुरी और गंदी आदतें छोड़ कर सही रास्ते पर आ गए हैं और मसीही बन गए हैं। यह संख्या कोई छोटी-मोटी तो नहीं है! मगर, पिछले दस सालों में पूरी दुनिया की 87,50,00,000 आबादी के मुकाबले यह संख्या शायद बहुत ही कम लगे! हालाँकि यहोवा के साक्षी जानते हैं कि बहुत ही कम लोग ज़िंदगी की सही राह पर चलना चाहेंगे, मगर उनकी मदद करने से उन्हें बहुत खुशी मिलती है। (मत्ती 7:13, 14) यहोवा के साक्षी उस समय का इंतज़ार कर रहे हैं जब परमेश्‍वर पूरी दुनिया की सभी समस्याओं को खत्म कर देगा। इसलिए वे आज ऐसे किसी भी सुधार-आंदोलनों में हिस्सा नहीं लेते जिनके शुरू-शुरू में इरादे तो बहुत नेक होते हैं मगर आगे जाकर वे कुछ हासिल नहीं कर पाते या हिंसा पर उतर आते हैं।—2 पतरस 3:13.

17. यीशु ने दूसरों की मदद करने के लिए क्या-क्या किया मगर उसने क्या करने से इंकार किया?

17 इस तरह के आंदोलनों में हिस्सा न लेने के द्वारा, यहोवा के साक्षी यह दिखाते हैं कि उन्हें यहोवा पर पूरा-पूरा भरोसा है, ठीक जैसे यीशु को था जब वह इस ज़मीन पर था। पहली सदी में, यीशु ने चमत्कार करके कई लोगों को चंगा किया। (लूका 6:17-19) यहाँ तक कि यीशु ने मरे हुओं को जिलाया! (लूका 7:11-15; 8:49-56) मगर उसने उस समय बीमारी की समस्या को या मौत को मिटाने की कोशिश नहीं की। वह चाहे तो ऐसा कर सकता था क्योंकि सिद्ध इंसान होने की वज़ह से उसके पास ऐसा करने की ताकत थी। वह चाहता तो राजनीति और समाज की बड़ी-बड़ी समस्याओं को खत्म करने के लिए काफी कुछ कर सकता था। मगर उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि वह जानता था कि परमेश्‍वर के मुताबिक ऐसा करने का समय अभी नहीं आया है। इतना ही नहीं, उसके ज़माने के कुछ लोग तो चाहते भी थे कि यीशु शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ले और सभी बुराइयों को मिटा दे। मगर यीशु ने ऐसा करने से इंकार किया। बाइबल कहती है: “जो आश्‍चर्य कर्म उस ने कर दिखाया उसे वे लोग देखकर कहने लगे; कि वह भविष्यद्वक्‍ता जो जगत में आनेवाला था निश्‍चय यही है। यीशु यह जानकर कि वे मुझे राजा बनाने के लिये आकर पकड़ना चाहते हैं, फिर पहाड़ पर अकेला चला गया।”—यूहन्‍ना 6:14, 15.

18. (क) हम कैसे कह सकते हैं कि यीशु इंतज़ार करने के लिए हमेशा तैयार रहता है? (ख) सन्‌ 1914 से यीशु ने क्या करना शुरू किया है?

18 यीशु ने राजनीति में हिस्सा लेने या सिर्फ समाज-सेवा के काम करते रहने से इंकार किया क्योंकि वह जानता था कि उसका राजा बनने और पूरी दुनिया से बुराई हटाने और सबको चंगा करने का समय अभी नहीं आया है। अमर होने और आत्मिक रूप में स्वर्ग में जाने के बाद भी, वह कार्यवाही करने से पहले यहोवा के नियत समय तक इंतज़ार करने के लिए तैयार था। (भजन 110:1; प्रेरितों 2:34, 35) 1914 में परमेश्‍वर के राज्य का राजा बनने के समय से “वह विजेता के रूप में जय प्राप्त करने के लिए निकल पड़ा।” (प्रकाशितवाक्य 6:2, नयी हिन्दी बाइबिल; 12:10) हम सच्चे मसीही उस राज्य और राजा के अधीन होना चाहते हैं जबकि मसीही होने का दावा करनेवाले कई लोग इस राज्य के बारे में बाइबल की शिक्षाओं से अनजान रहना चाहते हैं!

इंतज़ार का फल मीठा होगा या खट्टा?

19. कौन-सी स्थिति में इंतज़ार करने से ‘मन उदास होता है’ और कौन-सी स्थिति में खुशी होती है?

19 सुलैमान जानता था कि इंतज़ार करते रहने से बहुत निराशा होती है। उसने लिखा, “जब आशा पूरी होने में विलम्ब होता है, तो मन शिथिल [“उदास,” NHT] होता है।” (नीतिवचन 13:12) यह तो मानना पड़ेगा कि जब एक व्यक्‍ति किसी ऐसी बात का इंतज़ार कर रहा होता है जिसका पूरा होना या न होना निश्‍चित नहीं होता, तो इससे उसे बहुत चिढ़ या निराशा होती है। मगर, जब हम किसी ऐसी निश्‍चित बात के पूरा होने का इंतज़ार कर रहे होते हैं तब हमें निराशा नहीं होती। खासकर जब हम किसी खुशी की घटना के लिए इंतज़ार कर रहे होते हैं जैसे किसी की शादी का, बच्चे के पैदा होने का, या अपने अज़ीज़ों से मिलने का, तो उस घटना के बारे में पहले से ही सोचकर हमें बेइंतहा खुशी होती है। और यह खुशी तब और भी बढ़ जाती है जब हम इंतज़ार की घड़ियों का अच्छा उपयोग करते हैं और आनेवाली उस घटना की तैयारी में लगे रहते हैं।

20. (क) कौन-कौन-सी अद्‌भुत घटनाओं के लिए हम पूरे विश्‍वास के साथ इंतज़ार कर रहे हैं? (ख) यहोवा के उद्देश्‍यों के पूरा होने के इंतज़ार में, हमें क्या करने से खुशी मिलेगी?

20 जब हमें पूरा यकीन होता है कि हम जिस चीज़ का इंतज़ार कर रहे हैं वह हमें ज़रूर मिलेगी, तब इंतज़ार करने से ‘मन उदास’ और निराश नहीं होगा—चाहे हमें यह न भी मालूम हो कि वह चीज़ हमें कब मिलेगी। परमेश्‍वर के वफादार सेवक जानते हैं कि मसीह का हज़ार साल का राज्य बहुत जल्द शुरू होनेवाला है। उन्हें पूरा यकीन है कि बीमारी और मौत को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाएगा। वे खुशी से उस समय का इंतज़ार करते हैं जब मरे हुए लाखों लोगों को फिर से ज़िंदा किया जाएगा। उनमें हमारे भी कितने सारे अज़ीज़ लोग होंगे। (प्रकाशितवाक्य 20:1-3, 6; 21:3, 4) आज के वातावरण और माहौल की बिगड़ती हालात को देखते हुए, वे बहुत खुशी से उस समय का इंतज़ार कर रहे हैं जब पूरी पृथ्वी को परादीस यानी एक खूबसूरत बगीचे जैसा बना दिया जाएगा। (यशायाह 35:1, 2, 7) तो फिर इंतज़ार करने के दौरान अपने समय का अच्छा इस्तेमाल करना और ‘प्रभु के कार्य में अपने आपको सदा पूरी तरह समर्पित कर देना’ कितनी बुद्धिमानी की बात है! (1 कुरिन्थियों 15:58, ईज़ी टू रीड वर्शन) इसके लिए आध्यात्मिक भोजन लेते रहिए। यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को और भी मज़बूत करते जाइए। ऐसे लोगों को ढूँढ़ निकालिए जो यहोवा की सेवा करना चाहते हैं। अपने मसीही भाई-बहनों का हौसला बुलंद करते रहिए। नयी दुनिया आने में जितना भी समय बचा है, उसका पूरा-पूरा फायदा उठाइए। तब, यहोवा के लिए इंतज़ार करने से ‘मन कभी उदास’ नहीं होगा। इसके बजाय, यह आपके दिल में खुशियाँ ही खुशियाँ भर देगा!

क्या आप समझा सकते हैं?

• यीशु ने कैसे दिखाया कि वह इंतज़ार करने को तैयार है?

• ऐसे कौन-कौन-से हालात हैं जिनमें मसीहियों को इंतज़ार करना चाहिए?

यहोवा के साक्षी यहोवा पर भरोसा रखते हुए उसकी बाट जोहना क्यों चाहते हैं?

यहोवा के उद्देश्‍यों के पूरा होने के इंतज़ार के दौरान, क्या करने से हमें खुशी मिलेगी?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 12 पर तसवीरें]

यीशु ने उस आनंद के लिये जो उसके आगे धरा था, अंत तक धीरज धरा

[पेज 13 पर तसवीरें]

यहोवा की सेवा में सालों बिताने के बाद भी हम अपनी खुशी बरकरार रख सकते हैं

[पेज 15 पर तसवीरें]

यहोवा के साक्षी बनने के द्वारा लाखों लोगों ने अपनी ज़िंदगी बेहतर बना ली है