“उसका समय अब तक न आया था”
“उसका समय अब तक न आया था”
“किसी ने उस पर हाथ न डाला, क्योंकि उसका समय अब तक न आया था।”—यूहन्ना 7:30.
1. यीशु ने अपना हर काम किन दो बातों को ध्यान में रखकर किया?
“मनुष्य का पुत्र, वह इसलिये नहीं आया कि उस की सेवा टहल किई जाए, परन्तु इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे: और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपने प्राण दे।” यह बात यीशु ने अपने प्रेरितों से कही थी। यीशु की बात से पता चलता है कि वह जानता था कि उसे क्यों मरना है। (मत्ती 20:28) वह यह भी जानता था कि उसे मरने से पहले क्या काम करना है, क्योंकि उसने रोमी गवर्नर पुन्तियुस पीलातुस से कहा: “मैं ने इसलिये जन्म लिया, और इसलिये जगत में आया हूं कि सत्य पर गवाही दूं।” (यूहन्ना 18:37) यीशु को यह भी इल्म था कि इस काम के लिए उसके पास सिर्फ साढ़े तीन साल का समय है। क्योंकि दानिय्येल की भविष्यवाणी में बताया गया था कि सत्तरहवें सप्ताह की शुरूआत में यानी सा.यु. 29 में मसीहा प्रगट होगा और अपनी सेवकाई शुरू करेगा। फिर आधे सप्ताह के बीतने पर यानी सा.यु. 33 में काट डाला जाएगा। (दानिय्येल 9:24-27; मत्ती 3:16, 17; 20:17-19) इसीलिए यीशु ने पृथ्वी पर अपने जीवन में जो भी काम किया, दो खास बातों को ध्यान में रखकर किया। पहला यह कि पृथ्वी पर उसके आने का मकसद क्या है और दूसरा, अपना काम पूरा करने के लिए उसके पास समय कितना है।
2. सुसमाचार की किताबों के मुताबिक यीशु कैसा इंसान था और कैसे पता चलता है कि उसे अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास था?
2 सुसमाचार की किताबें पढ़ने से साफ पता चलता है कि यीशु बहुत ही मेहनती और जोशीला इंसान था। उसने इस्राएल की एक छोर से दूसरे छोर तक जाकर परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाया और कई चमत्कार किए। जब यीशु ने अपनी सेवकाई शुरू की तो उस समय के बारे में बाइबल कहती है: “उसका समय अब तक न आया था।” खुद यीशु ने कहा: “अभी तक मेरा समय पूरा नहीं हुआ।” लेकिन जब उसका काम पूरा होने को आया, तब उसने कहा: “वह समय आ गया है।” (यूहन्ना 7:8, 30; 12:23) यीशु को परमेश्वर से मिली अपनी ज़िम्मेदारी का पूरा एहसास था कि उसे कितने समय के अंदर अपना काम पूरा करना है, जिसमें उसका जीवन-बलिदान करना भी शामिल था। इसी बात को ध्यान में रखते हुए यीशु ने अपना हर काम किया। और जब हम इसकी जाँच करेंगे तो हमें उसकी शख्सियत और उसके सोचने के तरीके के बारे में और भी गहरी समझ मिलेगी। और हम ‘उसके पदचिन्हों पर चल’ पाएँगे। (1 पतरस 2:21) तो आइए उसकी ज़िंदगी पर एक नज़र डालें।
परमेश्वर की मर्ज़ी पूरा करने का दृढ़ संकल्प!
3, 4. (क) काना गाँव में शादी के दौरान क्या होता है? (ख) यीशु मरियम की हिदायत पर एतराज़ क्यों करता है और इससे हम क्या सीख सकते हैं?
3 सामान्य युग 29 का साल है। कुछ ही दिनों पहले यीशु ने अपने नए चेलों को चुना है और वह उनके साथ गलील के काना गाँव में, एक शादी में आया है। शादी में पता चलता है कि दाखरस कम पड़ गया है। तब यीशु की माँ उसे कुछ करने की हिदायत देती है। वह कहती है: “उन के पास दाखरस नहीं रहा।” लेकिन यीशु जवाब देता है: “हे महिला मुझे तुझ से क्या काम? अभी मेरा समय नहीं आया।”—यूहन्ना 1:35-51; 2:1-4.
4 “हे महिला मुझे तुझ से क्या काम?” यह कहकर यीशु अपनी माँ मरियम की हिदायत पर एतराज़ कर रहा है। मगर क्यों? कुछ ही हफ्ते पहले वह तीस साल का हुआ था और तब बपतिस्मा के समय परमेश्वर ने उसे अपनी पवित्र-आत्मा से मसीहा के तौर पर अभिषिक्त किया। और यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने कहा: “यह परमेश्वर का मेम्ना है, जो जगत का पाप उठा ले जाता है।” (यूहन्ना 1:29-34; लूका 3:21-23) बपतिस्मे के बाद से यीशु को सिर्फ परमेश्वर की हिदायतों पर चलना है और उसकी मर्ज़ी के मुताबिक काम करना है। (1 कुरिन्थियों 11:3) अब किसी और को, यहाँ तक कि उसके परिवार के सदस्यों को भी उसे हिदायतें नहीं देनी हैं। इसीलिए यीशु मरियम की बात पर एतराज़ करता है। उसके जवाब से यह साफ पता चलता है कि उसने अपने पिता की इच्छा पूरी करने का दृढ़ संकल्प कर लिया है! आइए हम भी परमेश्वर के प्रति अपना “सम्पूर्ण कर्त्तव्य” निभाने के लिए ऐसा ही दृढ़ संकल्प करें।—सभोपदेशक 12:13.
5. काना में यीशु कौन-सा चमत्कार करता है और इसका दूसरों पर क्या असर होता है?
5 मरियम भी यीशु के कहने का मतलब समझ जाती है। इसलिए और दखलअंदाज़ी किए बिना, वह सेवकों से कहती है: “जो कुछ वह तुम से कहे, वही करना।” तब यीशु सेवकों को मटकों में पानी भरने के लिए कहता है और पानी को बेहतरीन दाखरस में बदल देता है। इस तरह दाखरस की कमी पूरी करके यीशु मामले को सुलझाता है, साथ ही अपनी चमत्कारिक शक्ति का सबसे पहला सबूत देता है। इससे यह भी ज़ाहिर होता है कि उस पर परमेश्वर की आत्मा है। यीशु का यह चमत्कार देखकर नए चेलों का विश्वास मज़बूत होता है।—यूहन्ना 2:5-11.
यहोवा के घर के लिए धुन
6. यरूशलेम के मंदिर में यीशु का गुस्सा क्यों भड़क उठता है और वह क्या करता है?
6 अब सा.यु. 30 की वसंत ऋतु है। यीशु अपने चेलों के साथ फसह मनाने यरूशलेम जा रहा है। यरूशलेम पहुँचने पर वे यीशु को कुछ ऐसा करते देखते हैं जो शायद उन्होंने पहले कभी नहीं देखा। बात यह है कि यहूदी व्यापारी यरूशलेम में, मंदिर के ठीक अंदर बैठकर बलिदान के लिए पशु-पक्षी बेच रहे हैं। और जो यहूदी भक्त इन्हें खरीदने आते हैं, उन्हें ऊँचे दाम लगाकर खूब लूट रहे हैं। जब यीशु यह देखता है तो उसका गुस्सा भड़क उठता है। वह रस्सियों का एक कोड़ा बनाकर व्यापारियों को वहाँ से भगाने लगता है। सर्राफों के पैसे बिखरा देता है, उनके पीढ़ों को उलट-पलट देता है। और कबूतर बेचनेवालों को हुक्म देता है: “इन्हें यहां से ले जाओ।” यीशु का यह जोश देखकर उसके चेलों को परमेश्वर के पुत्र के बारे में की गई यह भविष्यवाणी याद आती है: “तेरे घर की धुन मुझे खा जाएगी।” (यूहन्ना 2:13-17; भजन 69:9) यीशु की तरह हमें भी हमेशा सावधान रहना चाहिए ताकि इस दुनिया की हवा हमें न लगे और परमेश्वर की उपासना शुद्ध रूप से करते रहें।
7. (क) नीकुदेमुस मसीह से मिलने क्यों जाता है? (ख) यीशु ने सामरी स्त्री को जो गवाही दी, उससे हम क्या सीख सकते हैं?
7 यरूशलेम में यीशु बड़े-बड़े चिन्ह दिखाता है, जिससे कई लोग उस पर विश्वास करने लगते हैं। महासभा यानी यहूदी उच्च न्यायालय का एक सदस्य नीकुदेमुस भी उससे इतना प्रभावित हो जाता है कि वह उससे और ज़्यादा सीखने के लिए रात में आकर मिलता है। इस तरह यीशु और उसके चेले “यहूदिया के देश” में प्रचार करने और चेला बनाने में व्यस्त रहते हैं। वे लगभग आठ महीने तक वहीं रहकर काम करते हैं। मगर यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले की कैद के बाद, वे यहूदिया से गलील को रवाना हो जाते हैं। रास्ते में जब वे सामरिया से गुज़रते हैं तो यीशु मौका देखकर एक सामरी स्त्री को गवाही देता है। फिर वह स्त्री नगर में जाकर सबको यीशु के बारे में बताती है, जिससे और भी बहुत-से सामरी उस पर विश्वास करने लगते हैं। आइए यीशु की तरह हम भी बिना कोई मौका गँवाए सुसमाचार सुनाते रहें।—यूहन्ना 2:23; 3:1-22; 4:1-42; मरकुस 1:14.
गलील में ज़ोर-शोर से प्रचार
8. यीशु गलील में क्या करता है?
8 इसके पहले कि मौत का “समय” आ जाए, यीशु को परमेश्वर की सेवा में बहुत कुछ करना है। वह गलील में इतने बड़े पैमाने पर प्रचार का काम करता है, जितना उसने यहूदिया और यरूशलेम में भी नहीं किया था। वह ‘सारे गलील में फिरता हुआ उन की सभाओं में उपदेश करता है, और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता है, और लोगों की हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता को दूर करता है।’ (मत्ती 4:23) यीशु के ये शब्द गलील के पूरे जिले में गूँज उठते हैं: “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।” (मत्ती 4:17) कुछ महीने बाद यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के दो चेले, यीशु के बारे में जानने के लिए यीशु के पास आते हैं। तब वह उनसे कहता है: “जो कुछ तुम ने देखा और सुना है, जाकर यूहन्ना से कह दो; कि अन्धे देखते हैं, लंगड़े चलते फिरते हैं, कोढ़ी शुद्ध किए जाते हैं, बहिरे सुनते हैं, मुरदे जिलाए जाते हैं; और कंगालों को सुसमाचार सुनाया जाता है। और धन्य है वह, जो मेरे कारण ठोकर न खाए।”—लूका 7:22, 23.
9. भीड़ क्यों यीशु के पीछे हो लेती है और हम इससे क्या सीख सकते हैं?
9 यीशु की “चर्चा आस पास के सारे देश में फैल” जाती है। इसलिए गलील, दिकापुलिस, यरूशलेम और यहूदिया से, साथ ही यरदन पार से भी भीड़ की भीड़ उसके पीछे आने लगती है। (लूका 4:14, 15; मत्ती 4:24, 25) ऐसा नहीं कि वे सिर्फ चंगा होने के लिए उसके पीछे आ रहे हैं, मगर इसलिए क्योंकि उसकी शिक्षाएँ लाजवाब हैं। उसका संदेश लोगों का दिल जीत लेता है और उनमें जोश भर देता है। (मत्ती 5:1–7:27) उसके शब्द मधुर और अनुग्रह भरे हैं। (लूका 4:22) और उसके “उपदेश” देने का तरीका ऐसा है कि लोग “चकित” रह जाते हैं। वह पूरे अधिकार के साथ बोलता है। (मत्ती 7:28, 29; लूका 4:32) तो फिर, जिस इंसान में ऐसी काबिलीयत हो, उसकी तरफ कौन खिंचा चला नहीं आएगा? आइए हम भी सिखाने की ऐसी काबिलीयत बढ़ाएँ कि नेकदिल इंसान सच्चाई की तरफ खिंचे चले आएँ।
10. नासरत के लोग यीशु को क्यों मार डालना चाहते हैं, मगर वे कामयाब क्यों नहीं होते?
10 लेकिन कभी-कभी यीशू का उपदेश सुननेवालों का इरादा सही नहीं होता था। अब नासरत के लोगों को ही लीजिए। अपनी सेवकाई की शुरूआत में जब यीशु वहाँ के अराधनालय में उपदेश देने गया, तो लोग उसके मीठे बोल और “अनुग्रह” की बातें सुनकर प्रभावित ज़रूर हुए, मगर वे उससे कुछ और भी चाहते थे। वे चमत्कार देखना चाहते थे। दरअसल वे स्वार्थी थे और उनमें विश्वास की कमी थी, इसलिए यीशु ने उनकी ख्वाहिश पूरी नहीं की, उल्टे उनके कपट का पर्दाफाश किया। इससे वे गुस्से में इतने तमतमा गए कि उठकर यीशु को नगर से बाहर पहाड़ की चोटी तक खदेड़ा ताकि वहाँ से उसे नीचे गिरा दें। मगर यीशु उनके हाथ से बच निकला क्योंकि तब तक उसकी मृत्यु का “समय” नहीं आया था!—लूका 4:16-30.
11. (क) कुछ धर्म-गुरू किस इरादे से यीशु का उपदेश सुनने आते हैं? (ख) यीशु पर सब्त का नियम तोड़ने का इलज़ाम क्यों लगाया जाता है?
11 यीशु का उपदेश सुनने के लिए अकसर शास्त्री, फरीसी और सदूकी जैसे बहुत-से धर्म-गुरु भी आते हैं। मगर उनमें से ज़्यादातर उससे कुछ सीखने नहीं, बल्कि उसके उपदेशों में से गलतियाँ ढूँढ़कर उसे फँसाने के इरादे से आते हैं। (मत्ती 12:38; 16:1; लूका 5:17; 6:1, 2) उदाहरण के लिए, देखिए कि सा.यु. 31 में जब यीशु फसह मनाने यरूशलेम आता है, तो क्या होता है। वह सब्त के दिन मंदिर में एक रोगी को ठीक करता है जो 38 साल से बीमार है। यह देखकर धर्म-गुरू यीशु पर इलज़ाम लगाते हैं कि ‘तुमने सब्त के दिन काम करके नियम तोड़ा है।’ तब यीशु कहता है: “मेरा पिता अब तक काम करता है, और मैं भी काम करता हूं।” तो वे यीशु पर एक और इलज़ाम लगाते हैं कि ‘तू अपने आपको परमेश्वर का पुत्र कहकर परमेश्वर की निंदा कर रहा है।’ इसलिए वे उसे मार डालने की कोशिश करते हैं। मगर यीशु अपने चेलों के साथ यरूशलेम छोड़कर गलील चला जाता है। आज हमारे साथ भी ऐसा हो सकता है। प्रचार काम और चेला बनाने के काम में हमें कई विरोधी मिल सकते हैं। तब उनके साथ बेकार में बहस करने और मुसीबत मोल लेने के बजाए यीशु की तरह वहाँ से निकल जाने में ही अकलमंदी होगी।—यूहन्ना 5:1-18; 6:1.
12. यीशु किस हद तक गलील में प्रचार का काम करता है?
12 इसके बाद यीशु करीब अगले डेढ़ साल तक ज़्यादातर गलील में ही रहकर प्रचार करता है, और सिर्फ तीन पर्व मनाने के लिए यरूशलेम जाता है। साढ़े तीन साल के दौरान यीशु गलील में तीन बार बड़े पैमाने पर प्रचार काम करता है। पहली बार, अपने चार नए चेलों के साथ। दूसरी बार, बारह प्रेरितों के साथ। और आखिरी बार इन्हीं बारह प्रेरितों के साथ, मगर इन्हें ज़्यादा अच्छी तरह सिखाकर भेजता है और बहुत बड़े पैमाने पर प्रचार करता है। जी हाँ, गलील में वाकई ज़ोर-शोर से प्रचार किया गया!—मत्ती 4:18-25; लूका 8:1-3; 9:1-6.
यहूदिया और पेरीया में हिम्मत के साथ प्रचार
13, 14. (क) किस मौके पर यहूदी यीशु को पकड़ने की कोशिश करते हैं? (ख) सिपाही यीशु को क्यों नहीं पकड़ते?
13 अब सा.यु. 32 का पतझड़ है और यीशु गलील में ही है। उसका “समय” अभी तक नहीं आया है। मण्डपों का पर्व पास है, इसलिए यीशु के भाई उससे आग्रह करते हैं: “यहां से कूच करके यहूदिया में चला जा।” वे चाहते हैं कि यीशु पर्व में जाकर सभी लोगों के सामने अपनी चमत्कारिक शक्ति का सबूत दे। मगर यीशु जानता है कि अभी वहाँ जाना खतरे से खाली नहीं है, इसलिए वह जवाब देता है: “मैं अभी इस पर्ब्ब में नहीं जाता; क्योंकि अभी तक मेरा समय पूरा नहीं हुआ।”—यूहन्ना 7:1-8.
14 यीशु गलील में कुछ समय तक रुकता है और फिर वह यरूशलेम के लिए रवाना हो जाता है। लेकिन ‘प्रगट में नहीं, बल्कि गुप्त रूप से।’ और जैसा कि यीशु को शक था, यहाँ यरूशलेम में यहूदी सचमुच उसे ढूँढ़ रहे हैं और पूछ-ताछ कर रहे हैं कि “वह कहां है?” आधा पर्व बीतने पर यीशु हिम्मत के साथ मंदिर में जाकर उपदेश देने लगता है। यहूदी उसे पकड़ना चाहते हैं ताकि उसे सलाखों के पीछे बंद कर दें या फिर उसे जान से मार दें। मगर वे एक बार फिर नाकाम हो जाते हैं, क्योंकि ‘उसका समय अब तक नहीं आया है।’ वहाँ पर्व में यीशु का उपदेश सुनकर कई लोग उस पर विश्वास करने लगते हैं। यहाँ तक कि फरीसियों ने जिन सिपाहियों को उसे पकड़ लाने के लिए भेजा था, वे भी उसके उपदेश से ऐसे चकित हो जाते हैं कि खाली हाथ लौटते हैं। और फरीसियों से कहते हैं: “किसी मनुष्य ने कभी ऐसी बातें न कीं।”—यूहन्ना 7:9-14, 30-46.
15. यीशु को मारने के लिए यहूदी पत्थर क्यों उठाते हैं और बाद में यीशु किस तरह ज़ोरों पर काम शुरू करता है?
15 पर्व में यीशु अपने पिता के बारे में सिखाता है, मगर उसके दुश्मन उसका विरोध करते हैं। और ऐसा पूरे पर्व के दौरान चलता रहता है। पर्व के आखिरी दिन जब यीशु कहता है कि इब्राहीम के पहले से ही उसका अस्तित्व था, तो धर्म-गुरुओं का गुस्सा ऐसा भड़क उठता है कि वे उसे मारने के लिए पत्थर उठा लेते हैं। लेकिन यीशु वहाँ से छिपकर निकल जाता है। (यूहन्ना 8:12-59) इसके बाद वह यरूशलेम को छोड़ बाकी यहूदिया में गवाही देने का काम बड़े ज़ोरों पर करता है। इसके लिए वह 70 चेलों को चुनता है। उन्हें हिदायतें देता है और दो-दो करके प्रचार के लिए यहूदिया के उन अलग-अलग जगहों में भेजता है, जहाँ वह बाद में जानेवाला है।—लूका 10:1-24.
16. समर्पण के पर्व के दौरान यीशु किस खतरे से बच निकलता है और इसके बाद वह दोबारा किस काम में जुट जाता है?
16 अब सा.यु. 32 का साल है। जाड़े का मौसम है और यीशु की मृत्यु का “समय” करीब आ रहा है। इस समय वह समर्पण का पर्व मनाने यरूशलेम आया हुआ है। यहूदी अब भी उसे जान से मारने की फिराक में हैं। जब यीशु मंदिर के ओसारे में टहल रहा है, तब यहूदी आकर उसे घेर लेते हैं। एक बार फिर उस पर परमेश्वर की निंदा करने का इलज़ाम लगाकर, उसे मारने के लिए पत्थर उठा लेते हैं। मगर हमेशा की तरह यीशु वहाँ से बच निकलता है। वह यरदन नदी पार करके पेरीया चला जाता है। और नगर-नगर, गाँव-गाँव जाकर लोगों को उपदेश देने के काम में दोबारा लग जाता है। कई लोग उस पर विश्वास करते हैं। मगर तभी उसे अपने प्यारे दोस्त लाजर की बीमारी की खबर मिलती है और उसे दोबारा यहूदिया आना पड़ता है।—लूका 13:33; यूहन्ना 10:20-42.
17. (क) पेरीया में यीशु को कौन-सी ज़रूरी खबर मिलती है? (ख) यह कैसे पता चलता है कि यीशु जानता है कि उसे कब क्या करना है?
17 लाजर की बीमारी की खबर उसकी बहन मरियम और मरथा ने भिजवायी थी, जो यहूदिया के बैतनिय्याह नगर में रहते हैं। खबर लानेवाला कहता है: “हे प्रभु, देख, जिस से तू प्रीति रखता है, वह बीमार है।” इस पर यीशु कहता है: “यह बीमारी मृत्यु की नहीं, परन्तु परमेश्वर की महिमा के लिये है, कि उसके द्वारा परमेश्वर के पुत्र की महिमा हो।” इसलिए यीशु जान-बूझकर दो दिन तक पेरीया में ही रुक जाता है। फिर अपने चेलों से कहता है: “आओ, हम फिर यहूदिया को चलें।” चेले उलझन में पड़ जाते हैं और पूछते हैं: ‘हे रब्बी, अभी तो यहूदी तुझ पर पत्थरवाह करना चाहते थे, और फिर भी तू वहीं जाना चाहता है?’ लेकिन यीशु अच्छी तरह जानता है कि उसके पास बहुत कम समय या “दिन” रह गया है। वह यह भी जानता है कि इस बचे हुए समय में उसे क्या करना है।—यूहन्ना 11:1-10.
ऐसा चमत्कार जिसे सबको कबूल करना पड़ा
18. यीशु बैतनिय्याह में क्या देखता है और फिर वह क्या करता है?
18 जब यीशु बैतनिय्याह पहुँचता है तो उसे सबसे पहले मरथा मिलती है और कहती है: “हे प्रभु, यदि तू यहां होता, तो मेरा भाई कदापि न मरता।” फिर मरियम और उसके घर आए लोग भी, यीशु से मिलने आते हैं। सभी लोग बहुत रो रहे हैं। तब यीशु पूछता है: “तुम ने उसे कहां रखा है?” वे कहते हैं: “हे प्रभु, चलकर देख ले।” लाजर को एक गुफा में रखा गया था, जिसका द्वार पत्थर से बंद किया गया था। जब सभी लोग लाजर की कब्र के पास पहुँचते हैं तो यीशु कहता है: “पत्थर को उठाओ।” मरथा समझ नहीं पाती कि यीशु क्या करना चाहता है, इसलिए एतराज़ करते हुए कहती है: “हे प्रभु, उस में से अब तो दुर्गंध आती है क्योंकि उसे मरे चार दिन हो गए।” लेकिन यीशु कहता है: “क्या मैं ने तुझ से न कहा था कि यदि तू विश्वास करेगी, तो परमेश्वर की महिमा को देखेगी।”—यूहन्ना 11:17-40.
19. लाजर का पुनरुत्थान करने से पहले यीशु, ऊँची आवाज़ में प्रार्थना क्यों करता है?
19 जब कब्र पर से पत्थर हटा दिया जाता है तब यीशु ऊँची आवाज़ में प्रार्थना करता है, ताकि सभी लोग जान सकें कि अब वह जो चमत्कार करेगा, वह परमेश्वर की शक्ति से करेगा। फिर वह बड़े शब्द से पुकारता है: “हे लाजर, निकल आ।” और लाजर बाहर निकल आता है! उसके हाथ, पाँव और मुँह सब कपड़े से बंधे हुए हैं, इसलिए यीशु कहता है: “उसे खोलकर जाने दो।”—यूहन्ना 11:41-44.
20. जो लोग लाजर को जी उठता देखते हैं, वे क्या करते हैं?
20 जो लोग मरथा और मरियम को तसल्ली देने आए हैं, उनमें से बहुत लोग यीशु का यह चमत्कार देखकर उस पर विश्वास करने लगते हैं। लेकिन कुछ लोग इस चमत्कार के बारे में फरीसियों को बताने दौड़े चले जाते हैं। यह खबर सुनते ही याजक और फरीसी तुरंत महासभा के लोगों को इकट्ठा करते हैं। वे बड़े तनाव में आ जाते हैं और कहते हैं: “हम करते क्या हैं? यह मनुष्य तो बहुत चिन्ह दिखाता है। यदि हम उसे योंही छोड़ दें, तो सब उस पर विश्वास ले आएंगे और रोमी आकर हमारी जगह और जाति दोनों पर अधिकार कर लेंगे।” तब महायाजक काइफा कहता है: “तुम कुछ नहीं जानते। और न यह सोचते हो, कि तुम्हारे लिये यह भला है, कि हमारे लोगों के लिये एक मनुष्य मरे, और न यह, कि सारी जाति नाश हो।” सो उसी दिन से वे सब मिलकर उसे मार डालने की तरकीब ढूँढ़ने लगते हैं।—यूहन्ना 11:45-53.
21. लाजर को ज़िंदा करने के बाद से यीशु की ज़िंदगी कौन-सा मोड़ लेती है?
21 इस तरह बैतनिय्याह पहुँचने में देर लगाने की वजह से ही यीशु एक ऐसा चमत्कार कर पाता है, जिसे सबको कबूल करना पड़ता है। परमेश्वर की शक्ति से वह एक ऐसे इंसान को ज़िंदा करता है जिसे मरे चार दिन हो चुके थे! महासभा को भी मजबूरन इस चमत्कार को कबूल करना पड़ता है। वे बहुत झुँझला जाते हैं और ठान लेते हैं कि अब वे यीशु की जान लेकर ही दम लेंगे! जी हाँ, इस चमत्कार के बाद से यीशु की ज़िंदगी एक नया मोड़ ले लेती है, क्योंकि “अब उसका समय आ गया” है।
आप क्या जवाब देंगे?
• यीशु कैसे दिखाता है कि उसे परमेश्वर से मिली अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास है?
• यीशु दाखरस के बारे में अपनी माँ की हिदायत पर एतराज़ क्यों करता है?
• यीशु जिस तरह अपने विरोधियों से पेश आता है, उससे हम क्या सीख सकते हैं?
• लाजर की बीमारी की खबर सुनकर भी यीशु जाने में देर क्यों लगाता है?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 12 पर तसवीरें]
परमेश्वर द्वारा मिले काम को पूरा करने में यीशु ने पूरी शक्ति लगा दी