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त्याग भरी ज़िंदगी—सबसे बेहतरीन ज़िंदगी!

त्याग भरी ज़िंदगी—सबसे बेहतरीन ज़िंदगी!

त्याग भरी ज़िंदगी—सबसे बेहतरीन ज़िंदगी!

बिल की उम्र 50 साल है। वह बिल्डिंग टॆक्नॉलॉजी का टीचर है। वह यहोवा के साक्षियों के लिए उपासना की जगह यानी किंगडम हॉल के डिज़ाइन बनाने और उनका निर्माण करने में मदद करता है। हालाँकि वह बाल-बच्चोंवाला आदमी है, फिर भी वह इस काम के लिए कई हफ्ते उनके साथ बिताता है, मगर पैसे बिलकुल नहीं लेता। सब कुछ अपनी खुशी से करता है। एमा 22 साल की पढ़ी-लिखी, होनहार और मेहनती लड़की है। वह भी चाहे तो अपनी ज़िंदगी में शोहरत और पैसा कमा सकती है। मगर इसके बजाय, वह हर महीने 70 से भी ज़्यादा घंटे लोगों को मुफ्त में बाइबल सिखाती है। मॉरिस और उसकी पत्नी, बॆटी, अब रिटायर हो चुके हैं। मगर घर में आराम फरमाँने के बजाय ये दूसरे देश चले गए हैं ताकि वहाँ के लोगों को परमेश्‍वर के बारे में ज़्यादा सिखा सकें।

ये सभी लोग हमारी-आपकी तरह ही आम इंसान हैं। मगर फिर भी ये दूसरों की खातिर अपना समय, पैसा और अपनी ताकत लगा रहे हैं। क्यों? क्योंकि उन्हें परमेश्‍वर और लोगों से गहरा प्यार है। उन्हें मालूम है कि ऐसा करना बहुत ज़रूरी भी है। इसी वजह से उन्होंने दूसरों की मदद करने के लिए अपनी ज़िंदगी में कई त्याग किए हैं।

त्याग करने का मतलब यह नहीं होता कि हम दीन-दुनिया को भूलकर साधू-संत या बैरागी बन जाएँ। नहीं। इसका मतलब है कि दूसरों की मदद करने के लिए या अपना फर्ज़ निभाने के लिए अपने स्वार्थ की चिंता न करते हुए खुशी-खुशी अपनी इच्छाओं से मुँह मोड़ लेना।

यीशु मसीह—सबसे बढ़िया मिसाल

त्याग करने के मामले में परमेश्‍वर के बेटे, यीशु ने हमारे लिए सबसे बढ़िया मिसाल रखी है। पृथ्वी पर आने से पहले स्वर्ग में उसकी ज़िंदगी इतनी शानदार थी जिसका कोई इंसान अंदाज़ा नहीं लगा सकता। वह तो तमाम जहाँ के मालिक और शहनशाह, खुद यहोवा परमेश्‍वर के सबसे करीब रहता था! उसका अपने पिता परमेश्‍वर और बाकी स्वर्गदूतों के साथ बहुत-ही गहरा और मधुर रिश्‍ता था। उसे परमेश्‍वर के साथ शानदार सृष्टि बनाने में भी हाथ बँटाने का मौका मिला था। तभी तो वह कुशल “कारीगर” कहलाया। (नीतिवचन 8:30, 31) सचमुच यीशु के पास इतना बड़ा सम्मान था, उसकी ज़िंदगी इतनी खुशियों भरी थी कि उसकी बराबरी दुनिया के सबसे अमीर आदमी के साथ भी नहीं की जा सकती।

इसके बावजूद यीशु ने, “अपने आप को . . . शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।” (फिलिप्पियों 2:7) जी हाँ, उसने अपनी इच्छा से स्वर्ग की तमाम खुशियाँ त्याग दीं और पृथ्वी पर एक मामूली इंसान की ज़िंदगी जीने आ गया। इसके लिए उसे शैतान के वश में पड़े, इस संसार में पापी इंसानों के बीच रहना पड़ा। (1 यूहन्‍ना 5:19) यहाँ उसे बहुत-ही साधारण ज़िंदगी बितानी पड़ी। उसे हर तरह की दुःख-तकलीफें झेलनी पड़ीं। मगर उसने ठान लिया था कि चाहे उसे कितने ही त्याग क्यों न करने पड़े, वह हर कीमत पर अपने पिता की इच्छा पूरी करेगा। (मत्ती 26:39; यूहन्‍ना 5:30; 6:38) मगर ऐसी त्याग भरी ज़िंदगी उसके प्यार और वफादारी की आज़माइश थी। क्या वह इस आज़माइश में कामयाब होता? प्रेरित पौलुस ने कहा: “[उसने] अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।” (फिलिप्पियों 2:8) जी हाँ, लोगों को पाप और मौत से छुड़ाने के लिए आखिर में उसने अपनी जान तक कुर्बान कर दी!—उत्पत्ति 3:1-7; मरकुस 10:45.

‘तुम्हारा स्वभाव भी वैसा ही हो’

प्रेरित पौलुस हमसे कहता है कि “जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो।” (फिलिप्पियों 2:5) हम यीशु की तरह अपना स्वभाव कैसे बना सकते हैं? एक तरीका है कि हम सिर्फ ‘अपनी ही हित की नहीं, बरन दूसरों की हित की भी चिन्ता करें।’ (फिलिप्पियों 2:4) जी हाँ, जो दूसरों से सच्चा प्यार करते हैं, वे सिर्फ ‘अपनी भलाई नहीं चाहता।’—1 कुरिन्थियों 13:5.

जो लोग दूसरों की हित की भी परवाह करते हैं, वे उनकी मदद करने के लिए बड़े-बड़े त्याग करने को भी तैयार रहते हैं। मगर आज इस दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम हैं। ज़्यादातर लोग स्वार्थी हैं और सिर्फ अपने बारे में ही सोचते हैं। अगर दुनिया का असर हम पर होने लगा, तो हम भी अपना हर काम बस अपने लिए, अपने स्वार्थ के लिए ही करेंगे। इसलिए हमें हरदम होशियार रहना चाहिए कि हम दुनिया के ऐसे रवैयों का हम पर असर न हो।

कभी-कभी दूसरों की नेक सलाह भी हमें अपनी ज़िंदगी में त्याग करने से रोक सकती है। मिसाल के तौर पर, प्रेरित पतरस की बात लीजिए। जब उसे मालूम पड़ता है कि यीशु ने जो रास्ता अपनाया है, वह इतना कठिन है कि आखिर में उसे अपना प्राण भी त्यागना पड़ेगा, तो वह यीशु से कहता है: “हे प्रभु, खुद पर इतने ज़ुल्म न ढ़ा।” (मत्ती 16:22, NW) मगर यीशु ने अपने पिता की हुकूमत की खातिर और इंसानों के उद्धार की खातिर ये रास्ता अपनी इच्छा से चुना था। अब क्योंकि पतरस इसे पूरी तरह नहीं समझ सका था इसलिए उसने यीशु को रोकना चाहा।

‘अपने आप से इन्कार कर’

यीशु ने तब क्या किया? उसने “अपने चेलों की ओर देखकर पतरस को झिड़क कर कहा; कि हे शैतान, मेरे साम्हने से दूर हो; क्योंकि तू परमेश्‍वर की बातों पर नहीं, परन्तु मनुष्यों की बातों पर मन लगाता है।” फिर उसने भीड़ से और अपने चेलों से कहा: “जो कोई मेरे पीछे आना चाहे, वह अपने आप से इन्कार करे और अपना क्रूस उठाकर, मेरे पीछे हो ले।”—मरकुस 8:33, 34.

पतरस ने यीशु के कहने का मतलब अच्छी तरह समझ लिया था। यह बात हमें उसकी पत्री से पता चलती है जो उसने इस घटना के 30 साल बाद लिखी। उसमें उसने मसीहियों को ज़िंदगी में त्याग करने की सलाह दी। उसने यह नहीं कहा कि वे आराम की ज़िंदगी बिताएँ। बल्कि उसने उन्हें कहा कि वे इस दुनिया की अभिलाषाओं को छोड़ दें और दूसरों की भलाई करने में लगे रहें। उसने उन्हें हर परीक्षा का सामना करते हुए परमेश्‍वर की इच्छा पर चलते रहने के लिए भी कहा।—1 पतरस 1:6, 13, 14; 4:1, 2.

आज हमारे लिए अक्लमंदी इसी में है कि हम भी यीशु की तरह अपने आप को यहोवा के हाथ में सौंप दें और उसकी इच्छा के मुताबिक चलें। प्रेरित पौलुस ने भी बिलकुल ऐसा ही किया था। वह दुनिया में नाम और शोहरत कमाने की अंधी दौड़ में नहीं भागा। अगर वह ऐसा करता तो परमेश्‍वर की इच्छा कभी पूरी नहीं कर पाता। उसने इन सबका त्याग किया ताकि वह अपना कीमती समय प्रचार में लगा सके और यहोवा के लिए अपनी कदरदानी ज़ाहिर कर सके। उसने कहा: ‘जहाँ तक मेरी बात है, मेरे पास जो कुछ है, तुम्हारे लिए प्रसन्‍नता के साथ खर्च करूँगा, यहाँ तक कि अपने आप को भी तुम्हारे लिए खर्च कर डालूँगा।’ (2 कुरिन्थियों 12:15, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) जी हाँ, पौलुस ने काबिलीयत का अपने स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि परमेश्‍वर की सेवा करने के लिए इस्तेमाल किया।—प्रेरितों 20:24; फिलिप्पियों 3:8.

क्या हमारा नज़रिया भी प्रेरित पौलुस की तरह है? यह जानने के लिए हमें अपने आपसे कुछ सवाल पूछने होंगे: मैं अपने समय, पैसे, ताकत और अपनी काबिलीयतों का किसके लिए इस्तेमाल करता हूँ? अपने लिए? अपने स्वार्थ के लिए? या दूसरों की मदद करने के लिए? क्या मैं प्रचार करके लोगों की जान बचाने के काम में और ज़्यादा हिस्सा ले सकता हूँ? क्या मैं पायनियर बन सकता हूँ? किंगडम हॉल बनाने या उनकी देखरेख करने का काम कर सकता हूँ? क्या मैं ज़रूरतमंदों की मदद करने के लिए हरदम तैयार रहता हूँ? क्या मैं यहोवा को अपना सब कुछ देता हूँ?—नीतिवचन 3:9.

देने में ज़्यादा खुशी

मगर क्या ज़िंदगी में इतने त्याग करना सचमुच अक्लमंदी की बात है? बेशक है। पौलुस को कई त्याग करने की वजह से बहुत-सी आशीषें मिलीं। इसीलिए जब वह मिलितुस शहर में इफिसुस के भाइयों को मिला, तो उसने उन्हें भी अपनी ज़िंदगी में त्याग करने के लिए उकसाया। उसने कहा: “मैं ने तुम्हें सब कुछ करके दिखाया, कि इस रीति से [त्याग और] परिश्रम करते हुए निर्बलों को सम्भालना, और प्रभु यीशु की बातें स्मरण रखना अवश्‍य है, कि उस ने आप ही कहा है; कि लेने से देना धन्य है।” (प्रेरितों 20:35) पौलुस की तरह आज लाखों लोगों ने यहोवा की सेवा करने और दूसरों की मदद करने के लिए काफी त्याग किए हैं और इससे आज वे बहुत खुश हैं। उन्हें भविष्य में भी खुशी मिलेगी, क्योंकि यहोवा उनके त्याग के लिए उन्हें भरपूर आशीष देगा।—1 तीमुथियुस 4:8-10.

बिल्डिंग टॆक्नॉलॉजी के टीचर, बिल से पूछा गया कि वह मुफ्त में यहोवा के साक्षियों के लिए किंगडम हॉल बनाने में इतनी मेहनत क्यों करता है। उसने बताया: “उनकी मदद करके मुझे बेहद खुशी मिलती है। मुझे इस बात से बहुत ही तसल्ली मिलती है कि मेरी काबिलीयत दूसरों के काम आ रही है।” पढ़ी-लिखी नौजवान एमा से पूछा गया कि वह दूसरों को बाइबल सिखाने में इतनी मेहनत क्यों करती है। उसने कहा: “यहोवा ने मेरे लिए इतना कुछ किया है। उसके बदले में मैं उसे क्या दे सकती हूँ? मैं जवान हूँ, और यही चाहती हूँ कि जब तक मुझमें ताकत है, तब तक यहोवा की सेवा करती रहूँ, दूसरों के काम आऊँ। यह करने के लिए रुपए-पैसे और ऐशो-आराम का त्याग करना कोई बड़ी बात नहीं है।”

मॉरिस और उसकी पत्नी बॆटी को भी इस बात का कोई गिला नहीं कि पूरी ज़िंदगी घर-गृहस्थी सँभालने के बाद वे घर बैठकर आराम नहीं फरमा रहे हैं। चूँकि वे रिटायर्ड हो चुके हैं और उनके पास फुरसत ही फुरसत है, इसलिए वे अपनी बची हुई ज़िंदगी में कुछ लाभदायक काम करना चाहते हैं। वे कहते हैं, “हम बस घर बैठकर खटिया नहीं तोड़ना चाहते। इसलिए हम दूसरे देश में बस गए हैं ताकि अपने समय का अच्छा इस्तेमाल करें और लोगों को यहोवा के बारे में सिखाएँ।”

क्या इन लोगों की तरह आप भी अपनी ज़िंदगी में त्याग करने के लिए तैयार हैं? यह सच है कि ऐसा करना हमेशा आसान नहीं होगा, क्योंकि हमारी कमज़ोरियों और ख्वाहिशों की वजह से हमारे लिए त्याग करना मुश्‍किल हो सकता है। (रोमियों 7:21-23) लेकिन अगर हम यहोवा के बताए रास्ते पर चलते रहें तो हम इसमें ज़रूर कामयाब होंगे। (गलतियों 5:16, 17) और हम जो भी त्याग करेंगे, उनके लिए यहोवा हमें आशीष ज़रूर देगा। जी हाँ, वह ‘आकाश के झरोखे खोलकर हम पर अपरम्पार आशीष की वर्षा करेगा।’—मलाकी 3:10; इब्रानियों 6:10.

[पेज 23 पर तसवीर]

यीशु की ज़िंदगी त्याग की एक मिसाल है

आपके बारे में क्या?

[पेज 24 पर तसवीर]

पौलुस ने सुसमाचार का प्रचार करने के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया